Sunday 15 May 2016

बच्चे को रिजल्ट के तनाव में न डालें


- एकता शर्मा 

  इन दिनों बच्चों के रिजल्ट आ रहे हैं! बच्चों की सालभर की मेहनत सामने आ रही है! अखबारों में शीर्ष पर सफलता पाने वाले बच्चों के बारे में छप रहा है, तो दुखद ख़बरें भी उसी अखबार के पन्नों पर हैं! ये ख़बरें हैं असफल बच्चों द्वारा खुदकुशी करने की! इस तरह की घटनाएं करियर में प्रतिद्वंदिता के साथ-साथ बढ़ती जा रही है! दसवीं, बारहवीं की बोर्ड परीक्षाओं के समय बच्चों की स्थिति कुछ ज्यादा ही नाजुक होती है! इसलिए कि यही वो मोड़ होता है, जहां से बच्चे की आगे की पढाई की दिशा तय होती है। यही कारण है कि इस उम्र के बच्‍चों के मन में रिजल्‍ट को लेकर कुछ ज्यादा ही तनाव रहता हैं! उसे पहला तनाव तो इस बात का होता है कि उनका अपना रिजल्ट कैसा आएगा? दूसरा, इस बात का कि वे अपने परिवार की उम्मीदों पर खरे उतर पाएंगे या नहीं? तीसरा, यदि उनके दोस्तों को उनसे ज्यादा पर्सेंटेज आ गए तो? पहला तनाव स्वाभाविक है, क्योंकि बच्चे हो खुद पता होता है कि उसने कितने सवालों के जवाब दिए हैं? जब बच्चा सालभर मेहनत करता है और उसी के अनुरुप रिजल्ट की उम्मीद भी करता है! वास्तव में यह पॉज़िटिव तनाव है, जिससे बच्चा बहुत ज्यादा परेशान नहीं होता। सबसे ज्यादा वो परेशान तब  होता है जब घरवाले अपने सपनों और उम्मीदों का बोझ बच्चे पर लाद देते हैं! वो डॉक्टर बनेगा, आईएएस करेगा या सेना जाएगा? ये बच्चा अपनी रूचि और क्षमता के अनुसार तय नहीं करता, बल्कि उसके घरवाले अपने सपनों के हिसाब से उसके भविष्य के सपने देखने लगते हैं!   
  वास्तव में बच्चों का तनाव रिजल्ट आने के पहले और बाद में घरवालों के व्यवहार पर निर्भर करता है। बच्चों से ज्यादा यदि उसके परिवारवाले तनाव ले लेंगे, तो तय है कि बच्चा पहले से ही नाउम्मीद हो जाएगा! यही नाउम्मीदी उसे किसी गलत दिशा में मोड़ सकती है! यदि किसी कारण बच्चे का रिजल्ट उम्मीद के अनुरूप नहीं आए तो परिवार की पहली जिम्मेदारी ये बनती है कि उसे शर्मिंदा न करें! परीक्षा में कम नंबर आना या असफल हो जाना अपराध नहीं है! ऐसी स्थिति में पहले तो परिजन और खासकर माता-पिता खुद अपने आपको संभाले, बच्चे के रिजल्ट को स्वीकार करें और फिर बच्चे को मानसिक संबल दें। ये बेहद नाजुक वक़्त होता है, ऐसे समय उसकी किसी अन्य बच्चे से तुलना न करें! यदि रिश्तेदार या पड़ोसी बच्चे के रिजल्ट पर अफ़सोस जताने की कोशिश करें, तो उन्हें ऐसा न करने दें! बच्चे को भरोसा दिलाएं कि दोबारा मेहनत करके वो ज्यादा बेहतर नतीजे ला सकता है! क्योंकि, माता-पिता का व्यवहार और सहयोग ही बच्चों को रिजल्ट के तनाव से बाहर लाने में कारगर हो सकता है। 
  जिस दिन बच्चे का रिजल्ट आने वाला हो, उस दिन को सामान्य दिनों की तरह दिखाएँ! उसे ख़ास दिन जैसा फील न होने दें, क्योकि ऐसे में बच्चा तनाव में आ सकता है! कोशिश हो कि बच्चा अकेला न रहे! उसे सकारात्मक माहौल दें और उससे परीक्षा और रिजल्ट से हटकर बातें करें! खुद के बचपन की बातें बताएं और उन यादों  शेयर करें जब आप पढ़ते थे और रिजल्ट आते थे! इससे बच्चे को रिजल्ट से होने वाले तनाव से उभरने में मदद मिलेगी। रिजल्ट अच्छा आएगा तो उसे क्या गिफ्ट दोगे, ऐसी बात कतई न करें! इससे बच्चे में नकारात्मक भाव उभर सकते हैं। 
 यदि संयोग से रिजल्ट अपेक्षा के अनुरुप नहीं आए तो भी उसे प्रताड़ित न करे! सकारात्मक माहौल देते हुए उसे ज्यादा मेहनत के लिए प्रेरित करें। उन लोगों के बारे में बताएं जिनके रिजल्ट अच्छे नहीं रहे हों, पर वे जीवन में सफलता के शीर्ष पर पहुंचे हों! दूसरे बच्चों और खासकर बच्चे के नजदीकी दोस्त के रिजल्ट से तो उसकी तुलना बिल्कुल न करें! इसलिए कि बच्चे को ये शर्मिंदगी असहनीय होती है। पढ़ाई लेकर आगे क्या प्लानिंग करना है, इस बारे में कोई बात न करें! बाहरी लोगों से भी ऐसी चर्चा करने से बचें कि बच्चे के खराब रिजल्ट से आपको दुखी हैं। कमरे में उसे अकेला बिल्कुल न छोड़ें! कोई ऐसा सामान भी बच्चे के पास न छोड़ें, जिस वो खुद को नुकसान पहुंचा सकता है। परिवार के सदस्य बच्चे से सकारात्मक व्यवहार करें और हो सके तो उसे कहीं आउटिंग पर जाएँ! कोशिश हो कि बच्चा दोस्तों से दूर न हों! एक खास बात ये भी कि उसके सोशल नेटवर्किंग पर डाले जाने वाले स्टेटस और मैसेज पर नजर रखें! यदि परिवारवाले तीन-चार दिन बच्चे को संभाल लें, तो फिर बच्चा अपने आपको सँभालने में समर्थ हो जाता है! 
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(महिला और बच्चों के अधिकार क्षेत्र में कार्यरत)
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