Monday 31 October 2016

परदे पर कम ही मनी दिवाली!

एकता शर्मा 

    हिंदी फिल्मों के कथानक में त्यौहारों को कुछ ख़ास ही महत्व दिया जाता है। फिल्मों में सबसे ज्यादा मनाई जाती है होली, जन्माष्टमी और ईद। हिंदूओं का सबसे बड़ा त्यौहार होते हुए भी कथानक में दिवाली का प्रसंग कम ही देखने को मिला! परदे पर दिवाली तभी दिखाई देती है, जब उसे फिल्म में कहीं पिरोया गया हो! दिवाली को लेकर कुछ फ़िल्में भी बनी, पर इनकी संख्या उंगलियों पर गिनने लायक ही रही! 

  बदलती दुनिया में दिवाली मनाने का तरीका बदला और उसके साथ ही फिल्मों में भी यही बदलाव दिखाई दिया। दिवाली से जुड़े गीत और सीन अहम प्रसंग की तरह शामिल रहे। कई फिल्मों में महत्‍वपूर्ण दृश्‍य दिवाली की पृष्‍ठभूमि में भी फिल्‍माए गए। कई फिल्मों में गीतों माध्यम से दिवाली का उजियारा, खुशियां, भव्‍यता और सामूहिक परिवार की भावना स्‍पष्‍ट नज़र आई। ब्‍लैक एंड व्‍हाइट के दौर से लेकर आज की रंगीन फिल्‍मों तक में दिवाली केंद्रीय भाव की तरह कायम रही है, लेकिन ऐसा बहुत कम ही हुआ!  
   ज्ञात सिनेमा इतिहास के मुताबिक जयंत देसाई ने 1940 में 'दिवाली' नाम से पहली बार फिल्म बनाई थी! करीब पंद्रह साल बाद 1955 में बनी 'घर घर में दिवाली' बनी, जिसमें गजानन जागीरदार ने काम किया था। फिर एक लंबा अरसा गुजरा और 1965 में दीपक आशा की फिल्म 'दिवाली की रात' आई! आदित्य चोपड़ा ने 2000 में बनाई 'मोहब्बतें' के कथानक में दिवाली के जरिए फिल्म के पात्रों को एक जरूर किया, पर इसके आगे प्रसंग बदल गया था। 1998 में बनी कमल हासन की फिल्म 'चाची-420' में भी दिवाली का प्रसंग था, जब कमल हसन की बेटी पटाखे से घायल हो जाती है। विनोद मेहरा और मौशमी चटर्जी की 1972 में आई 'अनुराग' में भी दिवाली के कुछ दृश्य दिखाई दिए थे।
    अमिताभ बच्चन की सुपर हिट फिल्म 'जंजीर' जरूर ऐसी फिल्म है, जिसकी शुरुआत ही दिवाली से होती है। पटाखों के शोर में अजीत एक परिवार को ख़त्म कर देता है! लेकिन, एक बच्चा छुपकर सब देखता है और क्लाइमैक्स में वो अजीत से बदला ले लेता है। इसके अलावा कभी किसी फिल्म में दिवाली कभी कहानी से नहीं जोड़ी गई! जब से ओवरसीज में हिंदी सिनेमा के दर्शक बढे हैं, दिवाली जैसे त्यौहारों को फिल्मकारों ने सीमित कर दिया। कई फिल्मों में दिवाली को अहमियत भी दी गई, तो उन्हें गीतों तक ही! याद किया जाए तो वर्तमान दौर में शिर्डी के सांई बाबा, हम आपके हैं कौन, मुझे कुछ कहना है, मोहब्बतें, कभी खुशी कभी गम, आमदनी अठ्ठन्नी खर्चा रूपैया और चाची-420 ही ऐसी फिल्में रहीं! अमिताभ बच्चन ने अपनी फिल्म कंपनी एबीसीएल के तहत 2001 में 'हैप्पी दिवाली' बनाने की घोषणा की थी! इसमें अमिताभ के अलावा आमिर खान और रानी मुखर्जी भी थे! फिल्म की शूटिंग भी शुरू हुई, लेकिन बाद में किसी कारण से फिल्म लटक गई, तो फिर आगे ही नहीं बढ़ सकी!
  देखा गया है कि फिल्मकारों ने पिछले कुछ सालों से दिवाली के दृश्यों और गानों से किनारा ही कर लिया! एक तरह से कथानक से त्यौहार गायब ही हो गए।विषयवस्तु में भी बदलाव आता दिखाई देने लगा! दिवाली को पृष्ठभूमि  के कुछ गानों जरूर प्रसिद्धि मिली। गोविंदा की फिल्म 'आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया' का गाना 'आई है दिवाली ... सुनो जी घरवाली' दिवाली को ध्यान में रखकर बना था। 1961 में आई 'नज़राना' में भी लता मंगेशकर का गाया दिवाली गीत 'एक वो भी दिवाली थी,  दिवाली है' था। 1977 में आई मनोज कुमार की फिल्म 'शिर्डी के सांई बाबा' का दीवाली गीत 'दीपावली मनाये सुहानी' अब तक का सर्वाधिक लोकप्रिय दिवाली गीत माना जाता है। करण जौहर की 2001 में आई 'कभी खुशी कभी गम' का टाइटल गीत ही दीवाली पर केंद्रित था। ब्लैक एंड व्हाइट युग की फिल्म 'खजांची' के 'आई दीवाली आई, कैसी खुशहाली लाई' भी अनोखे अंदाज का दिवाली गीत था। 'पैग़ाम' में मोहम्‍मद रफ़ी का गाया और जॉनी वाकर पर फिल्माया दिवाली गीत वास्‍तव में यह कॉमेडी गाना था। इस सबके बावजूद दूसरे त्यौहारों मुकाबले सिनेमा के परदे पर दिवाली के पटाखे कम ही फूटते हैं।
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Tuesday 25 October 2016

परदे से गायब किसान का दर्द!

- एकता शर्मा 

  हिंदी सिनेमा में भी किसान एक अहम विषय रहा है। इस पर कई फिल्में बनीं। रोटी, माँ, मदर इंडिया, दो बीघा जमीन, उपकार, खानदान और 'गंगा-जमुना' से लेकर 'लगान' तक सिनेमा में किसान की जिंदगी फिल्माई जाती रही हैं। लेकिन, जब से फिल्मों में कॉरपोरेट कल्चर का तड़का लगा है, 'पीपली लाइव' तक आते-आते किसान का दर्द भी फ़िल्मी मसाला बन गया! हिंदी सिनेमा में दशकों तक जमीन, किसान और मजदूर पर फिल्में बनती रहीं! लेकिन, आर्थिक उदारवाद के बाद हमारी जीवनशैली इतनी बदली कि गांव और किसान तो दूर, फिल्मों से दिवाली, होली जैसे त्यौहार भी गायब हो गए! 
     पचास और साठ के दशक में किसान और गांव की पृष्ठभूमि पर कई फ़िल्में बनी। ज्यादातर फिल्मों में साहूकार और उसके पाले हुए गुंडे पटकथा का स्थाई हिस्सा होते थे! कर्ज वसूलने के लिए ये किसान की फसलों में आग लगा देते थे। मजबूर किसान की बेटी को उठा ले जाते थे। लंबे समय तक यही पटकथा घुमा फिराकर फिल्माई जाती रही! महबूब खान द्वारा निर्देशित 'मदर इंडिया' तो एक औरत के किसानी संघर्ष और त्रासदी की महागाथा थी। इस फिल्म में गाँव की महाजनी सभ्यता की क्रूरता और अत्याचार से लड़ती औरत की मार्मिक कहानी कही गई थी। बाबूराव पेंटर की ‘साहूकारी पाश’ भी इसी तरह की ग्रामीण फिल्म थी! सत्यजित रे ने ‘पाथेर पांचाली’ बनाकर गांव और किसान के दर्द  दुनिया को दिखाया। ऋत्विक घटक की फिल्मों ने भी हाशिए पर बैठे किसानों के लिए कुछ ऐसा ही किया! बिमल राय ने भी ‘दो बीघा जमीन’ बनाई! महबूब खान से लेकर दिलीप कुमार, फिर नरगिस, राजकपूर, सुनील दत्त और मनोज कुमार, अमिताभ बच्चन ने भी गांव-किसान को महत्‍व दिया।   
   प्रेमचंद की कहानी 'हीरा-मोती' के माध्‍यम में भी किसान का दर्द बताने की पहल हुई थी। तब किसानों को साहूकारी पंजे में जकड़कर अपने ही खेतों पर बंधुआ बनाकर काम करवाना जमींदारी की पहचान बन चुकी थी। 'हीरा मोती' में फिल्मकार ने सामंती शोषण के इसी चक्र के खिलाफ आवाज उठाई थी। सआदत हसन मंटो की कहानी ‘किसान कन्या’ पर ख्वाजा अहमद अब्बास ने ‘धरती के लाल’ बनाई! बिमल राय की ‘दो बीघा जमीन’ भी सराही गई! 'गोदान' के बाद यदि किसानों की व्यथा कहीं अपने भयावह रूप में सामने आई, तो वह इस फिल्म में देखने को मिली थी। बलराज साहनी और निरूपा राय के बेहतरीन अभिनय ने इस फिल्म को और अधिक ऊँचाई दी थी। आज के दौर में आई अनुषा रिजवी की फिल्म 'पीपली लाइव' में विवश किसान की आत्महत्या को महिमा मंडित करने पर व्यंग्य था। मीडिया चैनलों, पत्रकारों तथा राजनेताओं की हास्यास्पद हरकतों पर ये तीखा व्यंग्य था। यह दिखाने की कोशिश की गई थी कि टीआरपी की होड़ में समाचार चैनल किस हद तक जा सकते हैं।  
  आशुतोष गोवारिकर की 'लगान' में विक्टोरिया युग के औपनिवेशिक भारत में जारी लगान प्रथा का कथानक था। इसके माध्यम से आशुतोष ने गुलाम भारत में लगान व्यवस्था से त्रस्त किसान की विवशता का चित्रण करने की कोशिश की थी। फिल्म के संवादों में अवधी, ब्रज तथा भोजपुरी का अद्भुत सम्मिश्रण था। 'मदर इंडिया' के बाद यह फिल्म ऑस्कर अवार्ड के लिए भारत से विदेशी फिल्म श्रेणी में भी नामित की गई थी।
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Sunday 2 October 2016

'गरबा' और 'डांडिया' से ग्लैमर का तड़का

- एकता शर्मा 
  नवरात्रि में देवी प्रतिमा के सामने होने वाला गुजरात का परंपरागत लोक नृत्य 'गरबा' और 'डांडिया' कब फिल्मों के परदे पर पहुँच गया, पता ही नहीं चला! फिल्मों में इस चलन के बारे में कोई दावा तो नहीं किया जा सकता! पर, 70 के दशक तक की फिल्मों में ये कम ही दिखाई दिया! धार्मिक गीत तो ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों में भी होते थे, पर उसमें गरबा या डांडिया का तड़का बाद में लगा! 'सरस्वती चंद्र' का नूतन पर फिल्माया गीत 'मैं तो भूल चली बाबुल का देस' जरूर गरबे का रंग लिए था। दरअसल, परदे पर डांडिया या गरबा गीतों को भक्ति, मोहब्बत और ग्लैमर का प्रतीक माना जाता हैं। इस तरह के गीतों को फिल्माने में बड़े केनवस का इस्तेमाल होता है। सैकड़ों जूनियर डांसरों के बीच भारी-भरकम कपडे और गहने इसकी खासियत होते। लेकिन, ये न तो विशुद्ध डांडिया होता है, न गरबा! वास्तव में अधिकांश फिल्मों में इन दोनों नृत्य शैलियों का घुलामिला रूप होता है। 
   बॉलीवुड के हर बड़े एक्टर  एक्ट्रेस ने परदे पर डांडिया किया है! अमिताभ बच्चन और रेखा पर फिल्म 'सुहाग' में 'नाम रे सबसे बड़ा तेरा नाम' फिल्माया गया था। इसमें भक्ति के साथ फिल्म का अहम् मोड़ भी था! 'काई पो चे' का गीत 'परी हूँ मैं ...' भी गरबा पंडालों में सबसे ज्यादा बजने वाला गीत है। 'ब्राइड एंड प्रेज्यूडिस' में ऐश्वर्या रॉय 'डोला डोला ... ' पर थिरकी थी। 'मिर्च मसाला' फिल्म में भी गरबा शैली का एक डांस स्मिता पाटिल, दीप्ति नवल और सुप्रिया और रत्ना पाठक पर फिल्माया था। 'अवतार' में ‘चलो बुलावा आया है ...' का आज भी हर कोई दीवाना है। 'जय संतोषी माँ' के गीत 'मैं तो आरती उतारूं रे ... ' भक्‍तों की पहली पसंद है। ऐसे गीत दर्शकों की धार्मिक भावनाओं के लिए आइटम के तौर पर फिल्माए गए हैं। 
 आमिर खान ने भी 'लगान' में ग्रेसी सिंह के साथ गरबा शैली में 'राधा कैसे न जले ... ' पर गरबा किया था। यह गीत आमिर और ग्रेसी सिंह के बीच मनुहार का चित्रण था। आमिर खान तो 'लव लव लव' में जूही चावला के साथ 'डिस्को डांडिया ... ' पर थिरके थे। 'आप मुझे अच्छे लगाने लगे' में रितिक रोशन और अमीषा पटेल के साथ गरबा नृत्य पर थिरके थे। 'मैं प्रेम की दीवानी हूँ' में करीना कपूर स्टेज पर रितिक रोशन के लिए 'बनी बनी मैं तो बनी ... ' गीत पर गरबा करते हुए प्यार का इज़हार करती है। 'प्रतिकार' फिल्म के 'चिट्ठी मुझे लिखना ... ' गीत को डांडिया शैली में अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित के साथ फिल्माया था।
  दक्षिण की कई फिल्मों में भी डांडिया और गरबा का मिला-जुला रूप दिखाई दिया! जबकि, उस इलाके में इस लोक नृत्य जानने वाले कम। 'कांधलर धिनम' (वैलेंटाइन डे) में गरबा और डांडिया था। इस फिल्म को हिंदी में 'दिल ही दिल में' नाम से डब करके रिलीज़ किया गया! इसमें 'चाँद उतर आया है ज़मीन पे गरबे की रात में' सोनाली बेंद्रे और कुणाल सिंह पर फिल्माया था। जबकि, संजय लीला भंसाली की फ़िल्में गुजराती पृष्टभूमि वाली होती हैं, इसलिए उनमें गरबा या डांडिया एक आइटम सॉंग जैसा होता है। 'हम दिल दे चुके सनम' के 'ढोली तारो ढोल बाजे' में सलमान खान और ऐश्वर्या राय के बीच का पनपते रोमांस को उभारा गया था! ' गोलियों की रासलीला : रामलीला' के 'नगाडा संग ढोल बाजे' में दीपिका पादुकोण के घेरदार लहंगे ने डांस को नया कलेवर दिया था। सलमान खान समेत बॉलीवुड के कई बड़े स्टार फिल्मों में डांडिया और गरबा तो कर चुके हैं।लेकिन, शाहरुख खान पर अभी तक गरबा या डांडिया शैली का कोई डांस नहीं फिल्माया गया! लेकिन, शायद आने वाली फिल्म 'रईस' में वे भी गरबा करते नज़र आएंगे। 
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