Sunday 18 December 2016

संगीत के बिना अधूरी है फ़िल्में

-  एकता शर्मा  

  संगीत हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को भी प्रदर्शित करता है। जहाँ तक हिन्दी फिल्मों के गानों का सवाल है, वह समय के साथ बदलते रहे हैं। कभी गजलों का दौर आता है, कभी परदे पर कव्वालियां गूंजने लगती है। फिल्मों के संगीत ने कभी किसी संगीत से परहेज नहीं किया! फिर वो शास्त्रीय संगीत हो, पॉप संगीत वो या फोक संगीत! फिल्म की कहानी शहर की हो या गांव की, रोमांटिक फिल्म हो या सस्पेंस हमेशा ही गाने फिल्म का हिस्सा थे, हैं और रहेंगे! कथानक के साथ गीत और संगीत का तालमेल बैठा ही लिया जाता है।  

  फिल्मों के आरंभिक वर्षों में कई तरह की फिल्में बनी, जिन्हें आसानी से ऐतिहासिक, पौराणिक ,धार्मिक, फेंटेसी फिल्मों के रूप में वर्गीकृत किया सकता था। जब हिन्दी फिल्मों ने पहली बोलती फिल्म 'आलमआरा' के साथ आवाज पाई, ये चलन तभी से शुरू हो गया! 1931 में अर्देशर इरानी की इस फिल्म में 7 गाने थे। इसके बाद ही जमशेदजी की फिल्म 'शीरी फरहाद' आई, जिसमें आपेरा स्टाइल में 42 गाने थे। इसके बाद 'इंद्रसभा' में 69 गीतों का भंडार था। लेकिन, इसके बाद फिल्मों में गानों की संख्या घटने लगी! हर फिल्म में 6 से लेकर 10 गाने शामिल किए जाने का सिलसिला शुरू हुआ। 1934 से गानों को ग्रामोफोन्स पर रिकार्ड किए जाने शुरू हुआ और बाद में रेडियो चैनलों पर इसका प्रसारण आरंभ हुआ।
    फिल्मों के शुरूआती दिनों में फिल्मी गीतों की जगह भजनों का दौर जारी रहा। उसके बाद इस पर उर्दू जुबान में लिखे गीतों का जादू छाया! अब तो वो दौर है कि इसमें सारी भाषाएं और शैलियां घुलमिल गई! फिर भी ब्रज, भोजपुरी, पंजाबी और राजस्थानी लोक गीतों का इस पर हमेशा प्रभाव रहा है। हिन्दी फिल्मों में गानों के साथ नृत्य का भी चोली-दामन का साथ रहा है। फिल्म की सिचुएशन कैसी भी हो, फिल्मकार इसके अनुरूप गाने बनवा ही लेते है। यहां तक कि एक्शन फिल्मों में भी मारधाड़ के बीच भी गानों के लिए जगह बनाने का कारनामा कई फिल्मों में दोहराया जाता रहा है।  
  हमारी बहुसंस्कृति जीवन शैली ने हिन्दी फ़िल्मी गानों ने भाषाओं के सारे बंधन तोड़ दिए और देश के कोने-कोने में हिन्दी फिल्मी गीत सुने जाने लगे! यहां तक की स्थानीय लोक मनोरंजन के साधनों जैसे रामलीला, नौटंकी और तमाशों में भी हिन्दी फिल्मों के गाने गूंजने लगे। पिछले सात दशक से ये गाने हमारे देश के अलावा दक्षिण एशिया के कई देशों में धूम मचा रहे हैं। हिन्दी फिल्म संगीत को लोकप्रिय बनाने में 80 के दशक में आए सस्ते टेपरिकार्डरों और सस्ती टेपों ने भी भरपूर योगदान दिया। आज भी हिन्दी फिल्मी गीत रेडियो, टीवी और यू-टयूब जैसी साइटों पर उपलब्ध हैं। इसके अलावा सीडी और डीवीडी के माध्यम से भी हिन्दी फिल्मी गीत सारी दुनिया में सुने जा रहे हैं।
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Friday 9 December 2016

इस्लाम में निकाह बंधन नहीं महज कॉन्ट्रैक्ट!

- एकता शर्मा 

प्रसंग : तीन तलाक़ 

   किसी भी शादीशुदा मुस्लिम महिला के लिए ‘तलाक, तलाक, तलाक’ ऐसे शब्द हैं जो उसकी जिंदगी को बर्बाद करने की कुव्वत रखते हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट का ताजा फैसला इसी पृष्ठभूमि से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट के पूछने पर केंद्र सरकार ने भी स्पष्ट किया था कि वो इस प्रथा का विरोध करती है। इसे जारी रखने देने के पक्ष में नहीं है। सरकार का दावा है कि उसका ये कदम देश में समानता और मुस्लिम महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकार दिलाने के लिए है। सरकार ये भी कह रही है कि ऐसी मांग खुद मुस्लिम समुदाय के भीतर से उठी है! क्योंकि, मुस्लिम महिलाएं लंबे समय से तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठाती आ रही हैं। कुल मिलाकर सरकार तलाक के मुद्दे पर खुद को मुस्लिम महिलाओं के मसीहा के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है।
   इस्लाम में निकाह हिंदू विवाह व्यवस्था की तरह बंधन नहीं होता! निकाह को 'अहदो पैमान' यानि पक्का समझौता (सिविल कॉन्ट्रैक्ट) माना गया है। मर्द और औरत आपसी रज़ामंदी के बाद ये करार करता है। इस्लाम ने पति-पत्नी को इस समझौते को निभाने के लिए कई हिदायतें दी हैं! इसे तोड़ना आसान भी नहीं है। सिर्फ तीन बार तलाक़ कह देने से ही शादी टूट जाती हो, ऐसा नहीं है। शरिअत में पूरे इंतजाम हैं कि एक बार रिश्त-ए-निकाह में जुड़ने वाला पुरुष और महिला खानदान बनाएं और आखिरी वक़्त तक इसको कायम रखने की पूरी कोशिश करें। कुरआन ने भी निकाह को मीसाक-ए-गलीज़ यानी मजबूत समझौता करार दिया है।
  इस्लाम में तलाक देने के तीन तरीके सबसे ज्यादा चलन में हैं। तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-बिद्अत! यही झगड़ें की सबसे बड़ी वजह भी हैं। एक साथ तलाक, तलाक, तलाक कहना ये मामला 'तलाक-ए-बिद्अत' से जन्मा है। मुसलमानों के बीच तलाक-ए-बिद्अत का ये झगड़ा 1400 साल पुराना है। जबकि, भारत में मुस्लिम पर्सनल के झगड़े की बुनियाद 1765 में पड़ी! इस्लाम में निकाह तोड़ने के चार तरीके हैं! तलाक, तफवीज़-ए-तलाक़, खुलअ और फ़स्ख़-ए-निकाह। 'तलाक' के तहत पूरा अधिकार मर्द को है। इसी तरह निकाह को खत्म करने के लिए तफवीज़-ए-तलाक़, खुलअ और फ़स्ख़-ए-निकाह का अधिकार औरतों को भी है।
  इस्लाम में 'तफवीज़-ए-तलाक़' पति-पत्नी के अलग होने का एक तरीका है। इसमें निकाह तोड़ने का अधिकार औरत को है। मर्द तलाक देने का अपना अधिकार बीबी के सुपुर्द कर देता है। ख़ुलअ भी निकाह तोड़ने का एक तरीका है। इसका हक भी औरत को है। अगर औरत को लगता है कि वो शादीशुदा जिंदगी की जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर सकती या इस मर्द के साथ उसका निर्वाह संभव नहीं है, तो वो अलग होने का फैसला करती है। लेकिन, अलग होने पर औरत को मैहर की रक़म वापस पड़ती है। तीसरा है तलाक़। ये अधिकार मर्द को है और सारा झमेला इसे लेकर है। तलाक देने का तरीका बहुत ही साफ है। इसकी तीन कड़ियाँ हैं। तलाक-ए-रजई, तलाक-ए-बाइन और तलाक-ए-मुगल्लज़ा।
  'तलाक-ए-रजई' को तलाक की कार्रवाई का पहला चरण कहा जाता है। इस्लाम के मुताबिक यदि कोई पति अपनी पत्नी को छोड़ना चाहता है तो पहले उसे एक तलाक देना होता है। ये तलाक भी माहवारी के समय लागू नहीं माना जाता! 'तलाक-ए-बाइन' दूसरा चरण है। शुरु के दो महीनों में यदि पुरुष ने दिया गया पहला तलाक वापस नहीं लिया और तीसरा महीना शुरू हो गया तो अब तलाक पड़ना माना जाता है। इसे 'तलाक-ए-बाइन' कहते हैं। तीसरा चरण है 'तलाक-ए-मुगल्लज़ा!' ये तलाक का तीसरा और अंतिम चरण है। तीसरे महीने में अगर पुरुष ने कहा कि 'मैं तुमको तीसरी बार तलाक देता हूँ!' ऐसा कहने के बाद आखिरी तलाक भी पड़ गई मानी जाती है। इसे 'तलाक-ए-मुगल्लज़ा' कहा जाता हैं। इसके बाद पति-पत्नी के बीच निकाह नहीं हो सकता!
    ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) मुसलमानों में प्रचलित ‘तीन तलाक’ की प्रथा में किसी भी फेरबदल के खिलाफ अड़ा है। जबकि, इस मुद्दे पर पूरी दुनिया का नजरिया उलट है। करीब 22 मुस्लिम देश जिनमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं, ने अपने यहां सीधे तीन बार तलाक की प्रथा खत्म कर दी। इस सूची में तुर्की और साइप्रस भी शामिल है, जिन्होंने धर्मनिरपेक्ष पारिवारिक कानूनों को अपना लिया। ट्यूनीशिया, अल्जीरिया और मलेशिया के सारावाक प्रांत में कानून के बाहर किसी तलाक को मान्यता नहीं है। ईरान में शिया कानूनों के तहत तीन तलाक की कोई मान्यता नहीं है। यह अन्यायपूर्ण प्रथा इस समय भारत और दुनियाभर के सिर्फ सुन्नी मुसलमानों में बची है।
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विवादों की विरासत है कंगना रनौत

 - एकता शर्मा 

  कंगना रनौत का जब भी जिक्र होता है, बात उनसे जुड़े विवादों की ही होती है। उसके अभिनय को लेकर चर्चा कम ही होती देखी गई! क्योंकि, कंगना उन एक्ट्रेस में से है, जो अपने विवादस्पद बयानों और कारनामों से मीडिया में छाई रहती है। फिलहाल वे रितिक रोशन से चल रहे अदालती मामले को लेकर सुर्ख़ियों में है। कंगना ने दावा किया था कि वो और रितिक रोशन रिलेशनशिप में थे, तब रितिक ने उन्हें कई मेल किए थे। इस पर रितिक ने साइबर क्राइम सेल में शिकायत दर्ज कराई थी कि कोई उनके नाम का इस्तेमाल करके कंगना को मेल भेज रहा है। इससे पहले अध्ययन सुमन से रिश्ते को लेकर भी वे ख़बरों में छाई रही थी!
  जबकि, इस एक्ट्रेस ने अपने छोटे से करियर में तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार जीता है और एक्टिंग के मामले में अपनी समकालीन एक्ट्रेस से आगे हैं। क्वीन, फैशन और तनु वेड्स मनू सीरीज की दोनों फिल्मों में कंगना ने अपने रोल में जान डाल दी थी! कंगना ने भी 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' की रिलीज से पहले कहा था कि इस फिल्म में मैं जो रोल मैं कर रही हूँ, जानती हूँ कि इसे काफी पसंद किया जाएगा! आखिरकार जब फिल्म परदे पर आई तो न सिर्फ व्यवसायिक रूप से सफल रही बल्कि इसे कई पुरस्कार भी मिले।
  कंगना को फिल्म 'फैशन' में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री व फिल्म 'क्वीन' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने पर तो उत्साहित कंगना ने अपने उत्साह का कारण पुरस्कार के बजाए ये बताया था कि मैं इसलिए ज्यादा रोमांचित हूं, क्योंकि मेरे साथ अमिताभ बच्चन को भी सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया। ‘पीकू’ में श्रेष्ठ अभिनय के लिए अमिताभ बच्चन को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है। 'क्वीन' में अभिनय के लिए पहले सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का 'फिल्म फेयर' और फिर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलने के बाद से ही कंगना को नंबर वन अभिनेत्री माना जाने लगा है। कंगना को बॉलीवुड की उन एक्ट्रेस में भी गिना जाता है, जो अपने बलबूते पर किसी फिल्म को हिट कराने का माद्दा रखती हैं, वह भी अभिनय के दम पर।
  रितिक रोशन से जुबानी जंग के अलावा कंगना अपने पूर्व बॉयफ्रेंड अध्ययन सुमन को लेकर भी खासी चर्चित रही है। अध्ययन ने कंगना के सनकीपन और बर्ताव को लेकर कई आरोप लगाए थे। यहाँ तक कहा था कि वे काला जादू करती हैं। दोनों काफी करीब थे, पर अचानक न जाने क्या हो गया कि दोनों के बीच दूरियां आने लगीं और फिर दोनों का ब्रेकअप हो गया! दोनों के ब्रेकअप की कहानी किसी रहस्य से कम नहीं थी! इसके अलावा कंगना के एटीट्यूट को लेकर भी कई बार विवाद उभरे हैं। खुद के बारे में कंगना रनौत का कहना है कि उन्हें एक स्वतंत्र और मजबूत महिला माना जाता है, इसलिए युवतियां खुद को उनसे जोड़कर देख पाती हैं। मेरे स्टाइल की समझ का इसलिए अनुसरण किया जाता हैं कि मेरे ड्रेसिंग सेंस से प्रतिबिंबित होने वाली आधुनिक सोच से वे खुद को जोड़ पाती हैं।
   आशा चंद्रा से प्रशिक्षण लेकर 2005 में कंगना ने फिल्मों में अपना भाग्य आजमाया। एक कैफे में निर्देशक अनुराग बसु की उन पर नजर पड़ी और उन्होंने कंगना को अपनी फिल्म 'गैंगस्टर' का लीड़ रोल का प्रस्ताव दिया, जिसे कंगना ने स्वीकार कर लिया। फिल्म चल निकली और इसी के साथ कंगना भी बॉलीवुड में छा गई! इसके बाद कंगना की 'वो लम्हे' आई, जो हिट रही। कंगना ने अनुराग बसु की 'लाइफ इन ए मेट्रो' में भी काम किया, जिसमें उनके काम को समीक्षकों की अच्छी सराहना मिली। 2008 में आई मधुर भंडारकर की 'फैशन' ने तो कंगना के दिन फेर दिए! इस फिल्म में कंगना के साथ प्रियंका चोपड़ा भी थीं। फिल्म में अपनी भूमिका के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहअभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला।
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