Sunday 30 July 2017

परदे पर नई नायिका के उदय का दौर

 - एकता शर्मा 

  फिल्मों में लम्बे अरसे तक नायिका की भूमिका नायक के साथ रोमांस तक सीमित थी। फ़िल्म की कहानियों में नायिका को बहुत कम केंद्रीय भूमिका दी जाती थी। कथानक का ताना-बाना ऐसा बुना जाता था कि नायक ही केंद्र में रहे! महिलाओं के मुद्दों पर बनने वाली फ़िल्में या तो कला फ़िल्में बन जाती या उन पर 'लीक से हटकर' बनी फ़िल्म का ठप्पा लगा दिया जाता है। लेकिन, अब यह चलन बदलता लग रहा है। लेकिन, अब फ़िल्मों में नायिकाओं का उदय होने लगा! अब वो अकेली हनीमून मना आती है, अपराधियों को ढूंढ लेती है और खुद गैंग भी चला लेती है। 
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  भारतीय सिनेमा में लंबे समय तक पुरुषों का रहा है। निर्माता से लगाकर दर्शकों तक पुरुष की केंद्र में रहे। ऐसे में नायक को अपनी एक सहयोगी भी चाहिए। जिसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं हो, पर नायिका की भूमिका में वो नायक को आगे बढाती नजर आए! वो अपना व्यक्तित्व तक दांव पर लगाने में पीछे नहीं हटे। फिल्मों के कथानक के अपने अलग ही विषय होते हैं, जो समय, काल और परिस्थितियों के मुताबिक बदलते रहते हैं। कभी दर्शकों को लगातार प्रेम कहानियां परोसी जाती है, कभी एक्शन तो कभी सामाजिक फिल्मों से बड़ा परदा सराबोर रहता है। 
  फिल्म इंडस्ट्री की इसी परंपरा की ताजा कड़ी है महिला प्रधान फ़िल्में! पिछले तीन सालों में परदे पर ऐसी फ़िल्में ज्यादा दिखाई दीं जो महिलाओं पर केंद्रित रहीं! इनमें पिछला साल तो ऐसी फिल्मों के लिए काफी अच्छा रहा। बीते साल में बॉलीवुड में महिलाओं से जुड़ी कई फ़िल्में रिलीज़ हुई जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर भी अच्छी कमाई की। कमर्शियल फिल्मों के बजाए इनफार्मेशनल फिल्मों ने भी काफी नाम कमाया! महिलाओं पर केंद्रित कहानियों पर कई फिल्में बनी जो महिलाओं के प्रति रुढ़िवादी सोच को खारिज करने और महिला सशक्तिकरण से जुड़ी थीं। 
 साल 2014 में महिलाओं के मुद्दों या उनके नज़रिए को दर्शाती गुलाब गैंग, क्वीन, मर्दानी और मैरी कॉम जैसी फ़िल्में बनी! 2015 में दम लगा के हईशा, एन एच 10, पीकू, तनु वेड्स मनु रिटर्न्स, एंग्री इंडियन गॉडेस परदे पर दिखाई दी। लेकिन, 2016 में बॉलीवुड में महिलाओं से जुडी कहानियों को ज्यादा जगह भी मिली और उन फिल्मों को पसंद भी किया गया। महिलाओं की कहानियां कहती दस से ज़्यादा फ़िल्में रिलीज़ हुई। इन फिल्मों ने 'नायक प्रधान' फिल्म इंडस्ट्री की निर्धारित परंपरा को तोड़ दिया। 
  अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म 'पिंक' महिला केंद्रित फिल्म नहीं है। बल्कि, उससे भी कहीं आगे है। मीरा नायर की फिल्म क्वीन आफ काटवे, नीरजा, अकीरा, सरबजीत, साला खुडूस जैसी फिल्में भी महिलाओं पर केन्द्रित फिल्में थी। सुजाय घोष द्वारा निर्देशित 'कहानी-2' के सस्पेंस में विद्या बालन और अर्जुन रामपाल की मुख्य भूमिकाएं हैं। लेकिन, फोकस पूरी तरह फिल्म की नायिका पर ही रहा। आमिर खान की फिल्म 'दंगल' महावीर सिंह फोगट की जीवन कथा पर आधारित स्पोर्ट्स ड्रामा थी। इसमें फोगट अपनी बेटियों गीता और बबिता को कुश्ती सिखाकर उन्हें अंतर्राष्ट्रीय महिला पहलवान बनाता हैं। 
  इस साल आई फिल्म 'नूर' भी महिला केंद्रित थी। पाकिस्तानी लेखिका सबा इम्तियाज के उपन्यास 'कराची : यू आर किलिंग मी!' का कथानक भी महिला प्रधान था। फिल्म में लेखिका ने मुंबई आधारित प्रेम गाथा का चित्रण किया था। लेकिन, सोनाक्षी सिन्हा अभिनीत ये फिल्म चली नहीं। आने वाली फिल्म 'हसीना' का मूल कथानक भी एक गैंगस्टर महिला का है। ये फिल्म कुख्यात दाउद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर की जीवन शैली पर आधारित है। इसमें श्रृद्धा कपूर ने 'हसीना' की भूमिका निभाई है। देखना है कि ये दौर कब तक चलता है। 
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Saturday 22 July 2017

अब बॉलीवुड को रिलीज से पहले लीकेज का भी खतरा!

एकता शर्मा 

  अभी तक फिल्मकार फिल्मों के पोस्टर, सीन और शूटिंग के फोटो लीक हो जाने को लेकर चिंतित रहा करते थे। लेकिन, अब नया खतरा है पूरी फिल्म के लीक हो जाने का! ताजा घटना के मुताबिक अक्षय कुमार की नई फिल्म 'टॉयलेट एक प्रेम कथा' थिएटर में रिलीज से पहले ही लीक हो गई! रिलीज से पहले कई बार विवादों में फंस चुकी इस फिल्म को लेकर एक सनसनीखेज खबर सामने आई! फिल्म के निर्देशक रेमो डिसूजा की बिल्डिंग के जिम ट्रेनर ने उन्हें एक पेन ड्राइव ये कहकर दी थी, कि इसमें अक्षय की आने वाली फिल्म के कुछ हिस्सों का वीडियो है। लेकिन, ट्रेनर के कहने पर रेमो ने जब पेन ड्राइव चलाकर देखा तो उनके होश उड़ गए। उन्होंने देखा कि उस पेन ड्राइव में फिल्म की पूरी कॉपी मौजूद है। 


    इससे पहले अनुराग कश्यप की फिल्म 'उड़ता पंजाब' के लीक होने को लेकर जमकर विवाद हुआ था। फिल्म के प्रदर्शन को हरी झंडी भी मुश्किल से मिली, लेकिन रिलीज होने से पहले उसके भी लीक होने की खबर सामने आई थी। इसी तरह डायरेक्टर इंद्र कुमार की फिल्म 'द ग्रेट ग्रैंड मस्ती' के भी रिलीज के दो हफ्ते पहले लीक होने की खबर उड़ी थी। यूं तो लीक होने वाली फिल्मों की लंबी फेहरिस्त है। लेकिन, सवाल यही हैं कि इसके पीछे असली कहानी क्या है। क्या ऑनलाइन हैकरों का प्रभाव इतना बढ़ चुका है कि उनसे फिल्मों को बचाना मुश्किल हो गया। या फिर फिल्म निर्माण से प्रदर्शन के बीच की प्रक्रिया में ही इतने छेद हैं, जो फिल्म की गोपनीयता को बनाकर नहीं रख पाते!  
  पिछले कुछ सालों में फिल्मों का लीक होना खतरा बनता जा रहा है। रिलीज से एक दिन पहले 'सुल्तान' के भी ऑनलाइन लीक होने की खबर आई थी। कहा जाता है कि एक बार फिल्म ऑनलाइन लीक हो जाए तो उसे काफी नुकसान उठाना पड़ता है। 'ऐ दिल है मुश्किल' भी ऑनलाइन लीक हो चुकी है। फिल्म के इस तरह लीक होने से इसके बिजनेस पर भी काफी फर्क पड़ा। रजनीकांत की फिल्म 'कबाली' भी ऑनलाइन लीक हुई थी। यह फिल्म रिलीज होने के 5 दिन पहले लीक होकर दर्शकों तक पहुँच गई थी। 
  शाहिद कपूर और कंगना रनौत की फिल्म 'रंगून' के बारे में भी खबर थी कि ये ऑनलाइन लीक हुई थी। 80 करोड़ के बजट में तैयार हुई 'रंगून' विशाल भारद्वाज की सबसे महंगी फिल्मों में से एक है। फिल्म के इस तरह लीक होने से काफी नुकसान भी उठाना पड़ा। नवाजुद्दीन सिद्दिकी की केतन मेहता निर्मित फिल्म 'माझी द माउंटेन मैन' भी फिल्म रीलिज से पहले ही चोरी से बाजार में आ गई थी। हालांकि, फिल्म की अच्छी कमाई थी, लेकिन लीक नहीं होती तो शायद और अच्छी कमाई करती। चंद्रप्रकाश द्विवेदी 'मोहल्ला अस्सी' भी काफी विवादित रही थी। इस फिल्म को भी लीक हो जाने के कारण काफी नुकसान भी झेलना पड़ा था। अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन की फिल्म 'पा' का भी हाल कुछ ऐसा ही हुआ था। 
  नील नीतिन मुकेश की फिल्म 'तेरा क्या होगा जॉनी' के साथ भी ऐसी ही घटना घटी थी। फिल्म लीक हो गई थी, इसका सीधा असर फिल्म की कमाई पर पड़ा। सेंसर बोर्ड ने 'पांच' फिल्म की रीलिज पर बैन लगा दिया था। लेकिन, ये फिल्म भी इंटरनेट पर लीक हो गई थी। मराठी की सुपरहिट फिल्म 'सैरात' के भी लीक होने का हल्ला था। इसके बाद भी 'सैरात' सबसे ज्यादा कमाने वाली मराठी फिल्म बनी। बॉलीवुड की तो छोड़िए हॉलीवुड की फिल्म निर्देशक जैक स्नाइडर की फिल्‍म 'बैटमैन वर्सेस सुपरमैन : डॉन ऑफ जस्टिस' और 'गेम ऑफ थ्रोन्स सीजन-5' भी लीक हो गई थी।  
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Sunday 16 July 2017

बाल कुपोषण बीमारी नहीं, सरकारी लापरवाही!

- एकता शर्मा 

  हमारे देश में हर साल कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है। दक्षिण एशिया के देशों में भारत कुपोषण के मामले में सबसे बुरी हालत में है। ये बात संयुक्त राष्ट्र के सामने एक रिपोर्ट के माध्यम से आई है। इधर, मध्यप्रदेश में भी सरकारी स्तर पर करवाए गए सर्वे में 36 हज़ार से ज्यादा बच्चे कुपोषित पाए गए! सबसे चिंताजनक बात ये है कि सरकार कुपोषण को बीमारी मानती है, जबकि वास्तव में ये सरकारी लापरवाही का नमूना है।


  राजस्थान और मध्य प्रदेश में किए गए सर्वेक्षणों में पाया गया कि देश के सबसे गरीब इलाकों में आज भी बच्चे भुखमरी के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इस ओर ध्यान दिया जाए तो इन मौतों को रोका जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र ने भारत में जो आंकड़े पाए हैं, वे अंतरराष्ट्रीय स्तर से कई गुना ज्यादा हैं. संयुक्त राष्ट्र ने स्थिति को "चिंताजनक" बताया है।
  भारत में 'फाइट हंगर फाउंडेशन' और 'एसीएफ इंडिया' ने मिलकर 'जनरेशनल न्यूट्रिशन प्रोग्राम' की शुरुआत की है। भारत में एसीएफ के उपाध्यक्ष राजीव टंडन ने इस प्रोग्राम के बारे में बताते हुए कहा कि कुपोषण को 'चिकित्सीय आपात स्थिति' के रूप में देखने की जरूरत है। साथ ही उन्होंने इस दिशा में बेहतर नीतियों के बनाए जाने और इसके लिए बजट दिए जाने की भी पैरवी की। नई दिल्ली में हुई कॉन्फ्रेंस में सरकार से जरूरी कदम उठाने पर जोर दिया गया! राजीव टंडन ने सरकार से कुपोषण मिटाने को एक "मिशन" की तरह लेने की अपील की है। उन्होंने कहा कि सरकार अगर चाहें, तो इसे एक नई दिशा दे सकते हैं।
  एसीएफ की रिपोर्ट बताती है कि भारत में कुपोषण जितनी बड़ी समस्या है, वैसा पूरे दक्षिण एशिया में और कहीं देखने को नहीं मिला! रिपोर्ट में लिखा गया है कि भारत में अनुसूचित जनजाति (28%), अनुसूचित जाति (21%), पिछड़ी जाति (20%) और ग्रामीण समुदाय (21%) पर अत्यधिक कुपोषण का बहुत बड़ा बोझ है। वहीं महाराष्ट्र में राजमाता जिजाऊ मिशन चलाने वाली वंदना कृष्णा का कहना है कि राज्य सरकार कुपोषण कम करने के लिए कई कदम उठा रही है, पर साथ ही उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि दलित और आदिवासी इलाकों में अभी भी सफलता नहीं मिल पाई है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बच्चों को खाना ना मिलने के साथ साथ, देश में खाने की बर्बादी का ब्योरा भी दिया गया है।
मध्यप्रदेश में हालात और बदतर
  देश के साथ मध्यप्रदेश में कुपोषण के हालात और बदतर हैं। सरकार इसे खत्म करने की बात कर रही हो, लेकिन स्थिति जस की तस हैं। महिला और बाल विकास विभाग के सर्वे में भी सामने आया हैं की प्रदेश में 36  हजार से ज्यादा बच्चे ऐसे हैं, जो कुपोषण के शिकार हैं। ये सरकारी आंकड़े हैं, जिनपर आँख मूंदकर विश्वास नहीं किया जा सकता, पर फिर भी ये चिंताजनक तो है हीं! इस सर्वे के दौरान 81 हजार आंगनबाड़ियों के 56 लाख 35 हजार बच्चों का वजन लिया, जिसमें 11 लाख 30 हजार बच्चों का वजन सामान्य से कम मिला है। एक लाख 72 हजार बच्चे अति कम वजन के सामने आए।
  संयुक्त संचालकों ने आंगनबाड़ियों में जाकर 11 हजार बच्चों के वजन लिए गए हैं।। जिला कार्यक्रम अधिकारी ने 70 हजार तथा बाल विकास परियोजना अधिकारियों ने 8 लाख बच्चों का वजन लिया। इसके बाद सेक्टर सुपरवाइजर द्वारा भी वजन कराए गए। प्रदेश में ऐसा पहली बार हुआ है कि अधिकारियों ने खुद वजन लिए। संबंधित मंत्री ने कहा की अब इन सारे बच्चों को शुध्द शाकाहारी भोजन देकर कुपोषण से बचाया जाएगा।इसके लिए स्व सहायता समूह को पोषण का काम भी दिया जा चुका हैं। जो बच्चों के लिए ऐसी सामग्री उपलब्ध कराएंगें जो ज्यादा दिनों तक न चले सिर्फ हफ्ते के पहले ही खत्म हो जाए।
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Saturday 15 July 2017

अब सिर्फ मोहब्बत से फिल्म नहीं चलती!

- एकता शर्मा  


  एक समय था जब हिंदी फिल्मों का परदा मोहब्बत से सराबोर था। ब्लैक एंड व्हॉइट के ज़माने से परदे के रंगीन होने तक मोहब्बत फिल्मों की आवश्यक विषय वस्तु रहा! लेकिन, अब तेजी से फ़िल्मी कथानकों से मोहब्बत हाशिए पर आता जा रहा है। शायद पहली बार सिनेमा को अहसास हुआ कि जीवन में मोहब्बत तो हो सकती है, लेकिन मोहब्बत के लिए जीवन नहीं हो सकता। हिन्दी सिनेमा के सामने अब दर्शकों की जो नई पीढ़ी है, उसके लिए प्रेम कथाएं आकर्षण केंद्र नहीं हैं। जो नए निर्देशक इस नई पीढ़ी से संवाद बना पा रहे हैं, उनकी प्राथमिकताएं भी अब प्रेम कहानियाँ नहीं रही। बीते सालों में जैसे-जैसे सिनेमा यथार्थ की ओर कदम बढ़ाता गया, उसमें मोहब्बत की मात्रा घटती गई। कोई मांझी-द माउंटेन मैन, दंगल, सरबजीत या एमएस धोनी बनाता है, जहाँ मोहब्बत महज जीवन के एक अंश के रूप में ही है।
  आमिर खान की दंगल, सलमान खान की सुलतान और शाहरुख खान की ‘डियर जिंदगी’ में भी मोहब्बत के लिए कोई जगह नहीं है। शाहरुख के लिए इस तरह की भूमिकाओं के चयन के पीछे का कारण उम्र का दबाव बताया जा सकता है। लेकिन, यह धारणा तब गलत साबित हो जाती है जब सिर्फ शाहरुख की फिल्मों में नहीं बल्कि रिलीज हुई ज्यादातर हिन्दी फिल्मों में यह ट्रेंड दिखाई देता है। ‘सुल्तान’ में सलमान खान और अनुष्का शर्मा हैं। दोनों के बीच एक मीठी सी परंपरागत तकरार वाली प्रेमकथा भी है। लेकिन, बस एक आधार तैयार होने के लिए। फिल्म एक व्यक्ति की जिद और स्वाभिमान की कथा में तब्दील हो जाती है। पूरी फिल्म में कुछ याद रहता है तो पहलवानी के दांवपेंच और केबल टीवी ऑपरेटर का विश्वविख्यात पहलवान बनने का संघर्ष। 'दंगल' में ऐसी ही जिद आमिर खान की रही।
  ‘एयरलिफ्ट’ में युद्ध भूमि में फंसे अपने नागरिकों को निकालने की जद्दोजहद यहां इतने सशक्त रूप में प्रदर्शित की गई थी कि पति-पत्नी के प्रेम को अलग से रेखांकित करने की निर्देशक राजा कृष्ण मेनन को जरूरत ही महसूस नहीं हुई। दर्शकों को इस फिल्म में नायक-नायिका के संबंध की बस सूचना भर मिलती है। ‘साला खड़ूस’ में कोच और खिलाड़ी के बीच प्रेम की इतनी क्षीण रेखा बन पाती है कि अंत तक आते-आते दर्शकों के लिए वह महत्वहीन होकर रह जाती है। जय गंगाजल, अलीगढ़, घायल वंस अगेन, नीरजा, उड़ता पंजाब, अकीरा और ‘पिंक’ जैसी कई फिल्मों ने तो मोहब्बत की परंपरागत चर्चा की जरूरत भी नहीं समझी। अक्षय कुमार की चर्चित फिल्म ‘रुस्तम’ में मोहब्बत कम और धोखे अधिक दिखे।
  जब हिंदी सिनेमा ने मोहब्बत का पूरे ब्यौरों के सात बयान करने की जरूरत समझी तो उसे ‘मिरजिया’ और ‘मोहन जो दाड़ो’ की तरह पीरियड में जाना पड़ा! जबकि, परंपरागत प्रेमकथा के चक्रव्यूह में फंसी ‘की और का सनम तेरी कसम, सनम रे, तुम बिन-2, रॉक स्टार-2, ऐ दिल है मुश्किल और ‘बेफिक्रे’ को दर्शकों ने नकार दिया। मराठी में बनी सबसे चर्चित फिल्म ‘सैराट’ को भी प्रेमकथा नहीं कहा जा सकता। शुरुआती दृश्यों में तरुण प्रेम की उथली सी कथा को बयान करती यह कहानी कब परिवार, रिश्ते, समाज, शहर, जाति, वर्ग, राजनीति की गहराइयों में खो जाती है इसका पता ही नहीं चलता।
 शाहरुख खान की ‘रईस’ और ऋतिक रोशन की ‘काबिल’ सलमान खान की सुपर फ्लॉप फिल्म 'ट्यूबलाइट' में भी मोहब्बत नदारद है। ‘रईस’ गुजरात के माफिया अब्दुल लतीफ की बायोपिक मानी जा रही है, जबकि ‘काबिल’ में एक नेत्रहीन के संघर्ष को दिखाया गया है। अक्षय कुमार की ‘जॉली एलएलबी-2’ और शाहिद कपूर की ‘रंगून’ में तो एक अलग कथाभूमि की उम्मीद की ही जा सकती है। अब हम आश्वस्त रह सकते हैं कि हिन्दी सिनेमा के लिए मुद्दे और नएपन के दबाव से बाहर निकलना आसान होगा।
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बड़े परदे से भी बड़ा होता नायिका का कद

- एकता शर्मा 


लम्बे अरसे से फ़िल्मों की अकसर इस बात के लिए आलोचना की जाती है कि फ़िल्म की कहानियों में महिला पात्रों को कभी केंद्रीय भूमिका नहीं दी जाती। उन्हें दूसरा दर्जा ही दिया जाता है। कथानक का पूरा ताना-बाना ऐसा बुना जाता है कि हीरो ही केंद्र में रहे! हीरोइन को नाच-गाने, रोमांस या फिर हीरो की भूमिका को सपोर्ट करने वाला रोल दिया जाता रहा है। महिलाओं के मुद्दों पर बनने वाली फ़िल्में या तो कला फ़िल्में बन जाती हैं या उन पर 'लीक से हटकर' बनी फ़िल्म का ठप्पा लगा दिया जाता है। लेकिन, अब यह चलन बदल रहा है। हिंदी फ़िल्मों में नायिकाओं का उदय हुआ है। वो अकेली हनीमून मना आती है, अपराधियों को ढूंढ लेती है और खुद गैंग भी चला लेती है।  यहां उन फिल्मों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है जिन्होंने सिनेमा के पर्दे पर महिला पात्रों को एक नया रंग दिया है। 
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   भारतीय सिनेमा में लंबे समय तक पुरुषों का रहा है। निर्माता से लगाकर दर्शकों तक पुरुष की केंद्र में रहे। ऐसे में नायक को अपनी एक सहयोगी भी चाहिए। जिसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं हो, पर नायिका की भूमिका में वो नायक को आगे बढाती नजर आए! वो अपना व्यक्तित्व तक दांव पर लगाने में पीछे नहीं हटे। 'अभिमान' में जया भादुड़ी की भूमिका ऐसा ही एक उदहारण था। बीते सिनेमा की नायिकाएं हों या ‘दिलवाले दुलहनियाँ’ की और ‘कुछ कुछ होता है’ की लंदन रिटर्न पर ओम जय जगदीश हरे जाती नायिका, इसी में उसकी भारतीयता दर्शाई जाती है! हिंदी सिनेमा का दर्शक ऐसी ही नायक आश्रित नायिकाओं का मुरीद भी रहा है। लेकिन, बदलते वक़्त ने नायिका नई भूमिका सौंप दी।
   फिल्मों के कथानक के अपने अलग ही विषय होते हैं, जो समय, काल और परिस्थितियों के मुताबिक बदलते रहते हैं। कभी दर्शकों को लगातार प्रेम कहानियां परोसी जाती है, कभी एक्शन तो कभी सामाजिक फिल्मों से बड़ा परदा सराबोर रहता है। फिल्म इंडस्ट्री की इसी परंपरा की ताजा कड़ी है महिला प्रधान फ़िल्में! पिछले तीन सालों में परदे पर ऐसी फ़िल्में ज्यादा दिखाई दीं जो महिलाओं पर केंद्रित रहीं! इनमें पिछला साल तो ऐसी फिल्मों के लिए काफी अच्छा रहा। बीते साल में बॉलीवुड में महिलाओं से जुड़ी कई फ़िल्में रिलीज़ हुई जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर भी अच्छी कमाई की। कमर्शियल फिल्मों के बजाए इनफार्मेशनल फिल्मों ने भी काफी नाम कमाया! महिलाओं पर केंद्रित कहानियों पर कई फिल्में बनी जो महिलाओं के प्रति रुढ़िवादी सोच को खारिज करने और महिला सशक्तिकरण से जुड़ी थीं।
     फिल्मों में महिलाओं को केंद्रीय पात्र बनाए जाने से फिल्मों का परिदृश्य भी बदल रहा है! बॉलीवुड में महिलाओं को 'हीरो' की तरह देखा जा रहा है, जो पूरी फिल्म को अपने कंधे पर लेकर चलती हैं। सिर्फ कथानक ही नहीं प्रमोशंस, मार्केटिंग और पूरा अभियान ही उनके आसपास घूमता हैं। अब ऐसी कई बेहतरीन फिल्में आई, जिनमें महिलाओं के चरित्र को इस तरह से प्रदर्शित किया गया जिससे उनका आत्मविश्वास और भावनाएं उजागर हुई हैं। ऐसी ही और फिल्मों का निर्माण हो रहा है, जो महिलाओं पर केन्द्रित हैं और उनकी महिमा मंडित करने में मददगार होंगी।
 साल 2014 में महिलाओं के मुद्दों या उनके नज़रिए को दर्शाती गुलाब गैंग, क्वीन, मर्दानी और मैरी कॉम जैसी फ़िल्में बनी! 2015 में दम लगा के हईशा, एन एच 10, पीकू, तनु वेड्स मनु रिटर्न्स, एंग्री इंडियन गॉडेस परदे पर दिखाई दी। लेकिन, 2016 में बॉलीवुड में महिलाओं से जुडी कहानियों को ज्यादा जगह भी मिली और उन फिल्मों को पसंद भी किया गया। महिलाओं की कहानियां कहती दस से ज़्यादा फ़िल्में रिलीज़ हुई। इन फिल्मों ने 'नायक प्रधान' फिल्म इंडस्ट्री की निर्धारित परंपरा को तोड़ दिया।
  अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म 'पिंक' महिला केंद्रित फिल्म नहीं है। बल्कि, उससे भी कहीं आगे है। यह समाज को अंदर तक चोट पहुंचाने के साथ समाज के नकली मुखौटे भी बेनकाब करने का काम भी करती है। यह फिल्म महिलाओं के जीवनशैली के बारे में उठने वाले तमाम 'सवालों' का सटीक जवाब देती है। मीरा नायर की फिल्म क्वीन आफ काटवे, नीरजा, अकीरा, सरबजीत, साला खुडूस जैसी फिल्में भी महिलाओं पर केन्द्रित फिल्में थी।
  सुजाय घोष द्वारा निर्देशित 'कहानी-2' के सस्पेंस में विद्या बालन और अर्जुन रामपाल की मुख्य भूमिकाएं हैं। लेकिन, फोकस पूरी तरह फिल्म की नायिका पर ही रहा। यह 'कहानी' की सिक्वल फिल्म बिल्कुल नहीं थी, लेकिन इस ब्राण्ड की अगली किस्त जरूर थी। आमिर खान की सफल फिल्म 'दंगल' महावीर सिंह फोगट की जीवन कथा पर आधारित स्पोर्ट्स ड्रामा थी। इसमें फोगट अपनी बेटियों गीता और बबिता को कुश्ती सिखाकर उन्हें अंतर्राष्ट्रीय महिला पहलवान बनाता हैं। इस साल आई फिल्म 'नूर' भी महिला केंद्रित थी। पाकिस्तानी लेखिका सबा इम्तियाज के उपन्यास 'कराची : यू आर किलिंग मी!' कथानक था। फिल्म में लेखिका ने मुंबई आधारित प्रेम गाथा का चित्रण किया था। लेकिन, सोनाक्षी सिन्हा अभिनीत ये फिल्म चली नहीं। आने वाली फिल्म 'हसीना' का मूल कथानक भी एक गैंगस्टर महिला का है। ये फिल्म कुख्यात दाउद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर की जीवन शैली पर आधारित है। इसमें श्रृद्धा कपूर ने 'हसीना' की भूमिका निभाई है। देखना है कि ये दौर कब तक चलता है। क्योंकि, एक ही विषय पर फ़िल्में तब तक ही बनती है, जब तक दर्शक उन्हें पसंद करे। एक-दो फ़िल्में भी असफल हुई तो फिल्मकार फिर किसी नए विषय की तरफ मुड़ने में देर नहीं करते!
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आधे साल में अभी तक 5 फिल्मों ने ही लुभाया

- एकता शर्मा 

  आधा साल करीब-करीब निकल गया। बीते छह महीनों में रिलीज हुई फिल्मों पर नजर दौड़ाई जाए तो बहुत ज्यादा आशा नहीं बंधती! चंद (यानी पांच) फिल्मों को छोड़ दें तो अधिकांश फ़िल्में दर्शकों को लुभाने में नाकामयाब रही हैं। लेकिन, जो फ़िल्में चलीं तो उन्होंने कमाई के रिकॉर्ड ही तोड़ दिए। इस नजरिए से या तो फ़िल्में सुपर हिट रही या सुपर फ्लॉप! बाकी रहे आधे साल में कई बड़ी फ़िल्में आना है। लेकिन, 'बाहुबली-2' के चर्चे अभी खत्म नहीं हुए! इस फिल्म ने बॉलीवुड इतिहास के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं। 'बाहुबली-2' ने अभी तक 462.77 प्रतिशत मुनाफा कमाया। ये फिल्म देश की सबसे ज्यादा कमाने वाली फिल्म तो है। किन्तु, आमिर खान की 'दंगल' से उसकी होड़-जोड़ जारी है।
  'बाहुबली-2' के अलावा भी कुछ ऐसी फ़िल्में हैं जिन्होंने कमाई करने में कोई कसर नहीं छोड़ी! ऋतिक रोशन की फिल्म 'काबिल' को साल की बड़ी हिट में गिना जा सकता है। कलेक्शन में भले ही ये फिल्म शाहरूख खान की 'रईस' से पीछे हो, लेकिन मुनाफे के मामले में 'रईस' से काफी आगे निकल चुकी है। 'काबिल' की सफलता देखते हुए ही रिलीज के एक हफ्ते बाद इसकी स्क्रीन भी बढ़ा दी गई थी। इस फिल्म ने 170 प्रतिशत से ज्यादा मुनाफा कमाया। अक्षय कुमार की 'जॉली एलएलबी-2' भी आधे साल की हिट फिल्मों में से एक है।
  लेकिन, इन सबके के बीच यदि कोई और एक फिल्म सभी का ध्यान आकर्षित किया है तो वह है इरफान खान की 'हिंदी मीडियम' ने। फिल्म का विषय लोगों को कितना पसंद आया! मुनाफे के मामले में भी 'हिंदी मीडियम' 2017 की सुपरहिट फिल्मों में शामिल हो चुकी है। फिल्म ने अब तक 68 करोड़ के आसपास की कमाई कर ली। 'हिंदी मीडियम' में जिस आसानी से गंभीर विषय को दिखाया गया वह काबिले तारीफ है। फिल्म की कहानी गुदगुदाती भी है और बांधकर भी रखती है। कहानी कोई बहुत अनूठी तो नहीं, लेकिन विषय सोचने पर मजबूर कर देता है, और इसके साथ डायरेक्टर ने जिस तरह का ट्रीटमेंट किया है वह बेहतरीन है।
  ईद पर हर साल सलमान खान की फिल्में ही रिकॉर्ड तोड़ सफलता हांसिल करती रही है। सभी को सलमान की फिल्म का ही इंतजार रहता है। इस बार सलमान की 'ट्यूबलाइट' आने वाली है। इसे आधे साल दौरान रिलीज होने वाली फिल्मों में ही गिना जा जाएगा। मगर, इस बार सलमान से टक्कर लेने का सनी देओल ने इरादा कर लिया है। सनी देओल, प्रीति जिंटा, अमीषा पटेल, अरशद वारसी और मियहुं चक्रवर्ती की फिल्म 'भैयाजी सुपरहिट' भी ईद पर रिलीज होने वाली है। हर दर्शक को सलमान की 'ट्यूबलाइट' का इंतदार है, ऐसे में अगर सनी देओल की फिल्म आती है, तो दोनों फिल्मों की टक्कर देखना भी रोचक होगा।
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Friday 7 July 2017

हिन्दी फिल्मों में भी 'गुरू' की महिमा अपरम्पार

- एकता शर्मा 

     जीवन के हर क्षेत्र में गुरू का अपना महत्व होता है। बॉलीवुड भी इसका अपवाद नहीं है। यहां गुरू नाम से कलाकार भी हुए हैं और 'गुरू' नाम से फिल्में भी बनी हैं। कुछ महान गुरूओं के कुछ महान शिष्य भी हुए हैं। हिंदी फिल्मों में 'गुरु' नाम वाले केवल एक अभिनेता हुए गुरु दत्त। जहां तक 'गुरू' शीर्षक से बनने वाली फिल्मों का सवाल है तो यह सिलसिला 1959 में बनी फिल्म 'गुरू घंटाल' से शुरू हुआ था। एसएम युसूफ निर्देशित इस काॅमेडी फिल्म में मीना कुमारी, मोतीलाल के साथ उषा किरण और अजीत ने काम किया था। काॅमेडियन के नाम पर इसमे आगा, सुंदर और मिर्जा मुशर्रफ थे। 1979 में 'गुरू हो जा शुरू' शीर्षक से एक एक्शन फिल्म भी बनी थी। बाद में इसी नाम से एक बार फिर फिल्म बनी। इसमें गुमनाम सितारों की भरमार थी। ये फिल्म कब आई और चली गई, कोई नहीं जानता।
  1989 में 'गुरू दक्षिणा' और 'गुरू' नाम से दो फिल्में आई। पहली फिल्म ने कोई पहचान नहीं बनाई! इसी साल श्रीदेवी की उमेश महरा निर्देशित फिल्म 'गुरु' रिलीज हुई थी। इस फिल्म में उनके जोड़ीदार मिथुन चक्रवर्ती थे। फिल्म को  बॉक्स ऑफिस पर अच्छी सफलता भी मिली थी। यही वो फिल्म थी, जिसके निर्माण दौरान मिथुन चक्रवर्ती और श्रीदेवी की शादी की अफवाह उड़ी थी, फिल्म पत्रिकाओं में फोटो तक छप गए थे। 1993 में विनोद मेहरा ने श्रीदेवी, अनिल कपूर और ऋषि कपूर को लेकर 'गुरूदेव' बनी, लेकिन इसकी रिलीज से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई।
  'गुरू' शीर्षक से बनी सबसे उल्लेखनीय फिल्म है 2007 में रिलीज मणिरत्नम की फिल्म थी 'गुरु।' इस फिल्म ने  अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या रॉय की 'ढाई अक्षर प्रेम के' और 'उमराव जान' जैसी फ्लॉप फिल्मों की जोड़ी को हिट बना दिया! कहते हैं कि ये फिल्म धीरू भाई अम्बानी के जीवन पर आधारित एक सफल फिल्म थी, जिसने अभिषेक के डूबते कैरियर को कुछ समय के लिए संभाल लिया था। फराह खान ने भी शाहरुख़ खान को लेकर 'मैं हूँ ना' बनाई थी। संजय लीला भंसाली ने सलमान खान और ऐश्वर्या रॉय को लेकर 'हम दिल दे चुके सनम' बनाई थी, जिसमें सलमान संगीत सीखने गुरु के यहाँ जाता है और उनकी बेटी को दिल दे बैठता है। आमिर खान ने 'तारे जमीं पर' बनाकर तो मानों इतिहास बना दिया! जबकि, यशराज की फिल्म 'मोहब्बतें' में अमिताभ बच्चन ने कठोर शिक्षक का उल्लेखनीय किरदार निभाया था। 'स्टेनली का डिब्बा' भी गुरु की भूमिका वाली एक बेहतरीन फिल्म मानी जाती है।    
  बॉलीवुड में गुरू-शिष्य परम्परा का भी अपना अलग इतिहास है। इस क्रम में राजकपूर के गुरू केदार शर्मा का उल्लेख जरूरी है, जिन्होंने राजकपूर को कभी पृथ्वीराज कपूर का बेटा नहीं माना! एक बार तो गलती होने पर उन्होंने राजकपूर को तमाचा रसीद कर दिया था। राजकपूर खुद भी राहुल रवैल और जेपी दत्ता के गुरू थे। गुरूदत्त ने राज खोसला और आत्माराम जैसे सफल निर्देशकों का बॉलीवुड से परिचय कराया था। टीनू आनंद ने सत्यजीत रे से निर्देशन के गुर सीखे तो बासु भट्टाचार्य प्रसिद्ध निर्देशक बिमलराय के शिष्य थे। जिन्होंने बाद में उनकी बेटी रिंकी से शादी कर गुरू शिष्य परम्परा को विवादित बना दिया था।
  अभिनेताओं में दिलीप कुमार तो मनोज कुमार से लेकर शाहरूख खान तक कई सितारों के अघोषित गुरू साबित हुए हैं। अनिल कपूर ने राज कपूर की परम्परा को आगे बढाया तो राजेश खन्ना और जैकी श्राफ ने देवानंद के लटके झटकों की नकल करके उनके शिष्य बनने का प्रयास किया। भगवान दादा को बॉलीवुड का डांस गुरु कहा जा सकता है। अमिताभ बच्चन को लम्बी टांगों के कारण डांस करने में परेशानी होती थी। इसलिए उन्होंने भगवान दादा वाला अंदाज अपनाया। अमिताभ भगवान दादा को अपना डांसिंग गुरु कहते थे। गायन में मोहम्मद रफी को तो महेन्द्र कपूर से लेकर सोनू निगम अपना गुरू मानते रहे। किशोर कुमार की नकल करके कुमार शानू और बाबुल सुप्रियो ने अपनी पहचान बनाई। हिन्दी फिल्म इंड्रस्ट्री की अधिकांश गायिकाएं लता मंगेशकर को ही अपना गुरू मानती हैं।
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Saturday 1 July 2017

कहानी में ही पावर नहीं था तो 'ट्यूबलाइट’ कैसे जलती?

- एकता शर्मा 

  सलमान खान की हालिया रिलीज ‘ट्यूबलाइट’ से जैसी ट्रेड को उम्मीद थी फिल्म वैसा कमाल दिखाने में नाकामयाब रही है। अगर फिल्म की अब तक की कमाई की बात की जाए तो ईद के बावजूद वो अभी तक केवल 104 करोड़ रुपए हो पाई! 'ट्यूबलाइट' को पहले ही दिन क्रिटिक्स ने सलमान खान की बड़ी गलती करार दिया था। भाईजान के फैंस ने भी इसे उस तरह से स्वीकार नहीं किया, जैसा कि उनकी फिल्मों को प्यार मिलता रहा है। हालांकि, जब यह फिल्म रिलीज होने वाली थी, तब ट्रेड ने अंदाजा लगाया था कि इसकी कमाई लगभग 500 करोड़ के आसपास रहेगी! लेकिन, बॉक्स ऑफिस आंकड़े कुछ और ही सच्चाई बयां कर रहे हैं। 

यदि ये सवाल किया जाए कि 'ट्यूबलाइट' जली क्यों नहीं, तो इसके जवाब में कई तर्क साफ़ दिखाई देंगे। एक तो ये कि पूरे समय स्क्रीन पर सलमान का ही चेहरा दिखना कुछ ज्यादा हो गया! वो भी एक मंदबुद्धि के रूप में सलमान को इतनी देर देखना दर्शक पचा नहीं पाए! मंदबुद्धि के रूप में 'कोई मिल गया' में जो कमाल रितिक रोशन ने किया, वो सलमान नहीं कर सके। इस तरह की एक्टिंग में रितिक बहुत भारी थे। पूरी फ़िल्म में 'यकीन' को केंद्र बनाया गया। 'यकीन' यानी ऐसा 'विश्वास' कि यदि किसी बात पर किया जाए तो वो होकर रहता है। जबकि, खुद फ़िल्म ही इस बात से भटक गई! सलमान अपने भाई की मौत पर बहुत आसानी से यकीन कर लेता है। उसके कपड़े और जूते जलाकर उसकी झूठी अस्थियां तक विसर्जित करता है। जबकि, यहाँ एक बार भी ये नहीं बताया गया कि सलमान को यकीन है कि उसका भाई ज़िंदा है। नायिका का पिता कौन था और कहाँ चला गया और वापस कैसे आया? ये सवाल भी अंत तक सुलझ नहीं सका!
  फिल्म ये स्पष्ट करने में भी भटकी है कि सलमान (यानी लक्ष्मणसिंह बिष्ट) केवल हाथ को एक दिशा में केंद्रित करके पहले बोतल और फिर पहाड़ हिला देता है! यहाँ तक कि भारत और चीन का युद्ध खत्म होने का कारण भी फिल्म में सलमान के किरदार को बताया गया है। लेकिन, ये सवाल तो अनुत्तरित ही रह गया कि वो ऐसा क्यों कर सका? बेहतर होता कि उसकी इस अदृश्य शक्ति का कोई ठोस कारण बताया जाता! जादूगर बना शाहरुख़ भी बोतल के हिलने के भी पीछे कोई ठोस कारण नहीं बता पाया! इस हाई-टेक्नोलॉजी के युग में ऐसे चमत्कार आज की दर्शक भला हजम भी कैसे करें? बॉक्स ऑफिस पर फिल्म के पानी न मांगने का एक बड़ा कारण ये भी है कि फ़िल्म में प्रेम कहानी का अभाव है। फिल्म में कोई नायिका नहीं है और जो है उसे भी नायिका की तरह प्रस्तुत नहीं किया गया!
  फ़िल्म में अच्छे गानों और मसाले का अभाव है! सलमान के माता-पिता और बचपन की कहानी को बहुत जल्दी में बताया गया। इसे थोड़ा विस्तार से दर्शाया जाना था। यहाँ तक कि सोहेल को भी कैमरे पर बहुत लिमिटेड दिखाया! दोनों भाइयों के प्रेम को जितना दिखाया जाना था, वैसा भी नहीं किया! इस प्रेम से जुड़े कई सीन जोड़े जा सकते थे! जैसा कि 'करन-अर्जुन' में कभी दिखा था। फ़िल्म की पृष्ठभूमि भी भारत और चीन की लड़ाई पर आधारित होना भी गले नहीं उतरता! जिस घटना को लोग भूल चुके है और नई पीढ़ी तो उस बारे में ज़्यादा जानती भी नहीं! सलमान और सोहेल की ड्रेसिंग सेन्स भी असर नहीं छोड़ पाई! फ़िल्म को पुराने समय का रंग देने की कोशिश की, मगर वो नाकामयाब रही। जहाँ तक एक्टिंग की बात है तो सभी की ठीक रही, मगर फ़िल्म में बहुत सी कमियां हैं, जिसका खामियाजा सलमान की इमेज को भुगतना पड़ा! यहाँ तक कि स्टोरी, डायरेक्शन, संवाद और म्यूजिक में कुछ भी प्रभावी नहीं है।
   सलमान खान को भी 'ट्यूबलाइट' के बॉक्स ऑफिस आंकड़ों से निराशा ही हुई होगी! फिल्म से वे जिस तरह की कमाई की उम्मीद कर रहे थे 'ट्यूबलाइट' वो करने में कामयाब नहीं हो पाई! जो लोग 'ट्यूबलाइट' को सलमान खान की गलती या उनके करियर की ढलान बता रहे हैं, वो ये न भूलें कि उन्होंने 'जय हो' जैसी फिल्म देने के बाद 'दबंग' और 'बजरंगी भाईजान' जैसी फिल्म दीं थीं। अब इंतजार कीजिए 'टाइगर जिंदा है' का!
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