- एकता शर्मा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संसद के नए कानून बनाने तक तीन तलाक पर रोक लगा दी है। जबकि, फिल्मों में 'तीन तलाक़' एक फ़िल्मी कथानक की तरह बरसों से छाया रहा। ये सामाजिक मसला था इसलिए निर्देशकों ने इसपर फ़िल्में बनाने में ज्यादा रियायत भी नहीं ली! लेकिन, निकाह जैसी फिल्म ने इस मुद्दे को सही तरीके से दर्शकों के सामने रखा था। फिल्म का एक संवाद बहुत लोकप्रिय हुआ था 'जब औरत की मर्जी के बगैर निकाह नहीं हो सकता तो तलाक कैसे हो सकता है?'
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इसी फिल्म से पाकिस्तान की एक्ट्रेस सलमा आगा ने बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत की थी। राज बब्बर और दीपक पाराशर फिल्म के दो एक्टर थे। फिल्म का कथानक तीन तलाक से एक औरत की जिंदगी में आए तूफान को लेकर था। पहले इसका नाम ‘तलाक तलाक तलाक’ रखा गया था। लेकिन, सेंसर बोर्ड से आपत्ति और विचार-विमर्श के बाद फिल्म का नाम ‘निकाह’ रखा गया। नाम इसीलिए बदला गया था कि सामान्य जीवन में इसे बोलने से किसी मुस्लिम मर्द का अपनी पत्नी से तलाक न हो जाए! क्योंकि, इस्लाम की मान्यता के मुताबिक मुस्लिम महिला के कान में अगर उसके पति द्वारा उच्चरित तीन बार ‘तलाक...तलाक...तलाक’ सुनाई दे दे, तो फिर वह तलाक माना जाता है।
पहले सन् 1938 में एक फिल्म बनी थीं जिसका नाम ही था ‘तलाक।’ इस फिल्म का निर्देशन सोहराब मोदी ने किया था। इसमें तलाक को एक सामाजिक बुराई के तौर पर दिखाया गया था। सायरा बानो की मां नसीम बानो ने इस फिल्म में मुख्य किरदार निभाया था। 1958 में आई फिल्म 'तलाक़' में राजेंद्र कुमार ने अपने शानदार अभिनय से लोगों का दिल जीत जीत लिया था. इस फिल्म के लिए निर्देशक महेश कौल को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड के लिए नामांकित भी किया गया था। इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म के फिल्मफेयर अवॉर्ड के लिए भी नामित किया गया था। इसमें राजेंद्र कुमार और कामिनी कदम ने अभिनय किया था। फिल्म की कहानी हिन्दू पति-पत्नी के दांपत्य जीवन पर आधारित थी, न कि मुस्लिम पति-पत्नी पर। 1960 में आई गुरु दत्त, जॉनी वाकर और वहीदा रहमान की फिल्म 'चौदहवीं का चांद' भी तलाक जैसे मुद्दों पर बनी थी। इस फिल्म को भी लोगों द्वारा काफी सराही गई थी।
तीन तलाक़ जैसी प्रथा के खिलाफ समाज में जागरूकता जगाने की कोशिश निर्देशक विपुल झा ने भी की थी। उन्होंने एक शॉर्ट फिल्म 'ट्रिपल तलाक़' बनाई थी। यह फिल्म सच्ची घटना पर आधारित थी, जिसमें तलाक से जुड़े कई जरूरी मुद्दों को फिल्म के माध्यम से दर्शाया गया था। तलाक मुद्दे पर ही 'हलाल' भी बनी थी, जिसे निर्देशक शिवाजी लोटन पटेल ने बनाया था। लेखराज टंडन की फिल्म ‘फिर उसी मोड़ पर’ की कहानी भी 'तीन तलाक' से पीड़ित एक मुस्लिम महिला की थी, जो तलाक के बाद संघर्ष के दौर से गुजरती है। हालात ऐसे बनते हैं कि अपने और अपनी बहू के लिए वह भारतीय संविधान के तहत इंसाफ मांगती है।
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