Tuesday 12 June 2018

कुछ फ़िल्में जो सिनेमाघर से सालों नहीं उतरी!


- एकता शर्मा 

  ज उन फिल्मों को हिट माना जाता है, जो सौ करोड़ या उससे ज्यादा का बिजनेस कर ले। जबकि, पहले हिट का मतलब था, जो फ़िल्में कई महीनों क्या सालों तक टाकीजों में चलें! 1943 में बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘किस्मत’ रिलीज हुई थी। फिल्म में अशोक कुमार हीरो थे। ये फिल्म भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास की पहली ब्लॉकबस्टर थी। लेकिन, यह आजादी से पहले की बात थी। आजादी के बाद की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर फिल्मों में राजकपूर की 'बरसात' फिल्म का नाम आता है। उसके बाद 'मुगल-ए-आजम' और 'शोले' जैसी फिल्में भी हैं। 
    समय के साथ करवट लेटे बॉलीवुड ने कई रूप बदले। आमिर खान की फिल्म 'कयामत से कयामत तक' के आने पर 80 के दशक का अमिताभ बच्चन का एंग्री यंगमैन का किरदार हवा हो गया। उसकी जगह ले ली सलमान, आमिर और शाहरुख़ जैसे हीरो ने। लेकिन, 'दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे' के साथ ही इस बात का एलान हो गया कि बॉलीवुड से गांव और देहात की फिल्मों का दौर गुजर चुका है। फिर दस्तक दी एनआरआई फिल्मों ने दस्तक दी! लगभग एक दशक तक ऐसी ही फिल्मों का जमाना छाया रहा जिनका हीरो परदेश से आता था। 2010 के बाद बॉलीवुड ने फिर से करवट लेनी शुरू की। फिर जमाना आया असल जिंदगी से जुड़ी फिल्मों का। फिर वह चाहे 'दम लगा के हईशा' हो या 'अलीगढ़' या फिर क्वीन, बरेली की बर्फी,शुभ मंगल सावधान। बेशक इसके साथ ही बॉलीवुड से गांव देहात खत्म हो गए। लेकिन, छोटे शहर लौट रहे हैं। 
  इसी दौर के साथ जरा उन फिल्मों पर नजर डालें, जिनके पोस्टर सिनेमाघरों पर ऐसे चढ़े कि सालों, महीनों तक नहीं उतरे! 'दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे'  भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे ज्यादा हफ्तों तक चलने वाली फिल्म है। ये फिल्म 20 अक्टूबर, 1995 में रिलीज हुई थी, और 20 साल तक मुंबई के मराठा मंदिर में चली। फिल्म दर्शकों के दिलों पर राज करने वाले जय, वीरू, ठाकुर, कालिया, सांबा, बसंती, धन्नो और गब्बर जैसे यादगार किरदारों वाली फिल्म 'शोले' 15 अगस्त, 1975 को रिलीज हुई। ये फिल्म मुंबई के मिनर्वा थिएटर में पांच साल तक लगातार चली थी। लगभग 286 हफ्ते तक इसने दर्शकों का मनोरंजन किया। 
  दिलीप कुमार, मधुबाला और पृथ्वीराज कपूर की अदाकारी वाली शानदार फिल्म  'मुगल-ए-आजम' अपने समय की महंगी फिल्मों में से थी। इसने भी सिनेमाघरों में लगभग 150 हफ्ते पूरे किए। दिलीप और मधुबाला की कैमिस्ट्री, अपने संगीत और भव्य सेट्स की वजह से फिल्म ने खूब नाम कमाया। राज कपूर की फिल्म 'बरसात' फिल्म 21 अप्रैल, 1949 को रिलीज हुई थी। राज कपूर की यह पहली हिट फिल्म थी। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 100 हफ्ते पूरे किए थे। कहा जाता है कि इस फिल्म की सफलता के बाद राज कपूर ने आरके स्टूडियो ही खरीद लिया था। इसी फिल्म के पोस्टर से आर.के स्टूडियो का लोगो लिया गया। 
   राजश्री की 'मैंने प्यार किया' फिल्म 29 दिसंबर, 1989 को रिलीज हुई थी। इसके शुरू में सिर्फ 29 प्रिंट रिलीज किए गए थे। इस फिल्म के साथ सलमान खान ने बॉलीवुड में डेब्यू किया था। फिल्म लगभग 50 हफ्तों तक सिनेमाघरों में चली। आमिर खान और करिश्मा कपूर की ‘जब जब फूल खिले’ का रीमेक  फिल्म 'राजा हिंदुस्तानी' 15 नवंबर, 1996 को रिलीज हुई थी। फिल्म का गाना परदेसी परदेसी सुपरहिट हो गया था, और फिल्म का कामयाबी में इसका काफी बड़ा हाथ रहा था। 'कहो न प्यार है' हृतिक रोशन की डेब्यू फिल्म थी जो 14 जनवरी, 2000 में रिलीज हुई। फिल्म में हृतिक का स्टाइल, डांस और एक्शन सब दर्शकों को खूब भाया, और उन्हें एक नया सुपरस्टार मिला। ये फिल्म भी करीब एक साल तक सिनेमाघरों में चली। अब तो कोई फिल्म 4 हफ्ते  भी किसी सिनेमाघर में टिक जाए तो उसके बॉक्स ऑफिस बिजनेस की दुहाई ली जाने लगती है।  
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हमारे घरों में टीवी नहीं होता, तो क्या होता?


- एकता शर्मा 
   आज टेलीव‌िजन जिंदगी की जरुरत बन गया है। ख़बरें जानना हो या मनोरंजन मूड हो, टीवी के रिमोट के बिना किसी का काम नहीं चलता। अब तो ये कल्पना करना भी मुश्किल है कि यदि घरों में टीवी नहीं होता तो क्या होता? कभी बुद्धू बक्सा कहा जाने वाला टेलीविजन आज ज्ञान का भंडार भी है। देश में टीवी को आए 5 दशक से ज्यादा हो गए! डेढ़ दशक तो निजी मनोरंजन चैनलों को हो गए। इस दौरान सैकड़ों सीरियल दर्जनों चैनलों पर दिखाए गए! टीवी का एक ऐसा दौर भी आया जब 'रामायण' और उसके बाद बीआर चोपड़ा की 'महाभारत' देखने को दर्शक इतने लालायित रहते थे। सडकों पर अघोषित कर्फ्यू जैसा माहौल हो जाता था। टीवी पर आने वाले राम और सीता के चरित्रों की पूजा की जाती थी। 
  ये वही वक़्त था जब इन धार्मिक सीरियलों के प्रसारण पर टीवी की आरती उतारी जाती थी। रविवार को देर तक सोने वाले लोग भी 'रंगोली' देखने के लिए नींद का त्याग करने से नहीं हिचकते थे। तब शनिवार और रविवार की शाम को फ़िल्म का इंतजार किसे नहीं होता था! लेकिन, उसके बाद टीवी का मनोरंजन स्तर पारिवारिक षड्यंत्रों वाले सीरियलों में फंसकर रह गया। रिश्तों में साजिशों का छोंक लगाकर गढ़ी गई कहानियों पर बने सीरियल ही मनोरंजन बनते हैं। मनोरंजन का दूसरा फार्मूला बने रियलिटी शो! इनमें भी नाच, गाने वाले शो ही ज्यादा हैं। 

  सिनेमा और टीवी के मनोरंजन में सबसे बड़ा फर्क ये है कि सीरियलों की कहानियाँ और किरदार तभी तक दर्शकों की नजर में चढ़े रहते हैं, जब तक वो शो ऑनएयर होता है। शो के ख़त्म होते ही दर्शक उन्हें भुला देते हैं। लेकिन, दूरदर्शन के दौर में जो सीरियल आते थे, उन्हें लोग आज भी नहीं भूले! इसलिए कि उनका कथानक भारतीय परंपरा, जीवन शैली, संस्कृति और सभ्यता से जुड़ा रहता था! 'रामायण' और 'महाभारत' जैसे शो धर्मग्रंथों पर आधारित थे तो 'चाणक्य' और 'चंद्रकांता संतति' को पसंद करने वालों की भी बड़ी संख्या थी! 'रजनी' जैसे सीरियल ने एक तरह से उपभोक्ता आंदोलन को जन्म दिया तो 'मुंगेरीलाल के हसीन सपने' स्वस्थ्य हास्य था! 'शक्तिमान' जहाँ बच्चों का पसंदीदा शो था, तो 'शांति' ने परिवारिक रिश्तों और एक औरत की कहानी को इस तरह से स्‍थापित किया कि आज के टीवी शो उसी लकीर पर चल रहे हैं। 
  टीवी के याद रखने लायक कार्यक्रम उँगलियों पर गिने जा सकते हैं! टीवी के दर्शक भी बंटें हुए हैं, इसलिए ये पता नहीं चलता कि दर्शकों की पसंद क्या है? टीआरपी (टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट) का फार्मूला टीवी कार्यक्रमों की लोकप्रियता दर्शाता है। पर, उसे भी सटीक आकलन नहीं माना जा सकता! आशय ये कि दर्शक क्या देखना चाहता है, ये कोई नहीं जानता! टीवी सीरियल के इतिहास में हम लोग, बुनियाद, ब्योमकेश बख्‍शी, मुंगेरीलाल के हसीन सपने, ये जो है जिंदगी, नीम का पेड़, कच्ची धूप, विक्रम और बेताल, अलिफ लैला, मालगुडी डेज, भारत एक खोज, परमवीर चक्र, रजनी, फौजी, चित्रहार और रंगोली को कौन भूल सकता है? पर, उसके बाद ऐसा क्या हुआ कि कोई भी कार्यक्रम दर्शकों के दिल में ये जगह नहीं बना पाया? 
  बिग बॉस, भाभी जी घर पर हैं, बालिका वधु, लॉफ्टर शो, कॉमेडी नाइट्स विद कपिल को दर्शकों ने पसंद तो किया, पर इनका सुरूर स्थाई नहीं रहा! रामायण, महाभारत, चंद्रकांता, चाणक्य, जंगल बुक, सास भी कभी बहू थी और कौन बनेगा करोड्पति जैसे कार्यक्रमों ने जरूर दर्शकों बांधे रखा! टीवी के मनोरंजन के उस दौर की तुलना आज से नहीं की जा सकती! इसलिए कि नई पीढ़ी के लिए सोशल मीडिया भी मनोरंजन का बड़ा माध्यम बन गया है।
  अब तो ये सवाल उठने लगा है कि टीवी मनोरंजन का भविष्य क्या होगा? क्योंकि, धीरे-धीरे फिल्मों के लगभग बड़े कलाकार टीवी पर दिखाई देने लगे! शायद ही कोई ऐसा फिल्म एक्टर होगा, जिसने इस परदे से परहेज किया हो! ऐसे में मनोरंजन के इन दोनों माध्यमों में अंतर कैसे किया जाए? अमिताभ बच्चन से लगाकर सलमान खान और माधुरी दीक्षित से शिल्पा शेट्टी तक ने रियलिटी शो जरिए छोटे परदे पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। फिल्मों से बाहर हुए कलाकार भी सीरियलों में नजर आने लगे! दर्शक जिन चेहरों को फिल्मों से खारिज कर देते हैं, वही टीवी पर नजर आने लगेंगे तो मनोरंजन नई हवा का क्या होगा?
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