Friday 20 July 2018

'कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे'

यादें  : गोपालदास 'नीरज'

- एकता शर्मा

   हिंदी के जाने-माने कवि और गीतकार गोपालदास 'नीरज' का एक लोकप्रिय गीत 'कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे' आज बहुत याद आ रहा है। क्योंकि, आज नीरज का कारवां अनंत यात्रा पर निकल गया, हम दूर से उनकी यादों का गुबार हम देख रहे हैं। वे हिंदी मंचों के प्रसिद्ध कवियों में से एक थे। लम्बे अरसे तक कवि सम्मेलनों का दौर उनके बिना अधूरा रहता था, पर अब ये खालीपन हमेशा बना रहेगा। गोपालदास सक्सेना उर्फ़ 'नीरज' का फिल्मी सफर बहुत छोटा रहा! उन्होंने महज पाँच साल ही गीत लिखे, लेकिन सांस बंद होने तक लिखने रहने की ख्वाहिश रखने वाले इस कवि को इस दौर में लिखे गए ‘कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे’ और ‘जीवन की बगिया महकेगी’ जैसे अमर गीतों के लिए अंत तक रायल्टी मिलती रही। दिनकर उन्हें हिंदी की 'वीणा' मानते तो अन्य कवि उन्हें 'संत कवि' कहा करते थे। 
  नीरज की रचनाएँ करीब सात दशक तक सुनने वालों को लुभाती रही! पहचान की ख्वाहिश से अछूते इस गीतकार का यह सफर शायद कवियों, गीतकारों में सबसे लम्बा रहा! हिन्दी कवियों की नई पौध के अगुवा माने जाने वाले नीरज प्रख्यात कवि हरिवंशराय बच्चन को अपना आदर्श मानते थे। उनका कहना था कि मेरा कवित्व बच्चनजी की प्रेरणा से ही जागा! हरिवंशराय बच्चन से जुड़ा एक किस्सा वे अकसर सुनाते थे। कहते थे कि मैं उन कवियों में से हूँ, जिन्हें बच्चनजी की गोद में बैठने का भी मौका मिला था! वो वाक्या सुनाते हुए उन्होंने बताया था कि उस वक्त मेरी उम्र करीब 17 साल रही होगी। मैं, बच्चनजी कुछ कवियों के साथ बांदा में एक कवि सम्मेलन के लिए बस से जा रहे थे। बस खचाखच भरी थी और मुझे सीट नहीं मिली थी। उस वक्त बच्चनजी ने मुझे अपनी गोद में बैठने को कहा और मैं बैठ भी गया! मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ कि मुझे उनसे इतना स्नेह मिला। 
   फिल्मों में कई सुपरहिट गाने लिख चुके नीरज को उनके गीतों के लिए कई सम्मान मिले। उन्हें 1991 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था। इससे पहले नीरज को 2007 में पद्मभूषण सम्मान से नवाजा गया! उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें 'यश भारती' सम्मान से भी सम्मानित किया था। फिल्मों में कई हिट गीत लिखने वाले गोपालदास नीरज को तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड मिला! 'पहचान' फिल्म के गीत 'बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं' और 'मेरा नाम जोकर' के 'ए भाई ज़रा देख के चलो' ने नीरज की प्रतिभा को कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचाया! उनके एक दर्जन से ज्यादा कविता संग्रह प्रकाशित हुए! 
  उनका जन्म 4 जनवरी, 1924 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरावली गांव में हुए था। जीवन की शुरुआत इटावा की कचहरी में टाइपिस्ट का काम करते हुए शुरू की थी। उसके बाद एक दुकान पर नौकरी की! फिर दिल्ली में सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डीएवी कॉलेज में क्लर्की की। मेरठ कॉलेज में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर अध्यापन कार्य भी किया। इसके बाद कवि सम्मेलनों में लोकप्रियता के चलते नीरज को मुंबई फ़िल्मी दुनिया में गीतकार के रूप में काम करने का अवसर मिला। 
  नीरज ने एक बार कहा था कि अगर दुनिया से रुखसती के वक्त आपके गीत और कविताएँ लोगों की जबान और दिल में हों, तो यही आपकी सबसे बड़ी पहचान होगी। इसकी ख्वाहिश हर फनकार को होती है। शायद सचिन देव बर्मन और संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन के शंकर जैसे मौसीकीकारों के निधन की वजह से उनका फिल्मी सफर बहुत छोटा रह गया। लिखे जो खत तुझे’ ‘ए भाई जरा देख के चलो’ ‘दिल आज शायर है, ‘फूलों के रंग से’ और ‘मेघा छाए आधी रात’ जैसे सदाबहार गीतों के रचयिता नीरज का मानना था कि     सचिन देव बर्मन के संगीत ने इन गीतों को यादगार बनाया, इसी वजह से देश-विदेश में मेरे गीतों की  रॉयल्टी बढ़ गई है।
  नीरज सिर्फ मंचीय कवि ही नहीं थे, उन्हें फिल्मों में भी उतनी ही कामयाबी मिली! उनके लिखे लोकप्रिय फिल्मी गीतों में शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब, लिखे जो खत तुझे, ऐ भाई ... जरा देखकर चलो, दिल आज शायर है, खिलते हैं गुल यहां, फूलों के रंग से, रंगीला रे ...  तेरे रंग में और आदमी हूं  आदमी से प्यार करता हूं शामिल है। नीरज' की लोकप्रियता का इसी से आंकी जा सकती है कि उन्होंने अपनी हिंदी रचनाओं से पाठकों के मन की गहराई में अपनी जगह बनाई, वहीं गंभीर पाठकों के मन को भी गुदगुदाया! उनकी कई कविताओं का गुजराती, मराठी, बंगाली, पंजाबी और रूसी में भी अनुवाद हुआ है। उनकी रचनाओं में जो दर्द था, वो उनकी अपनी पीड़ा थी। उनकी लिखे संग्रहों में आसावरी, बादलों से सलाम लेता हूँ, गीत जो गाए नहीं, नीरज की पाती, नीरज दोहावली, गीत-अगीत, कारवां गुजर गया, पुष्प पारिजात के, काव्यांजलि, नीरज संचयन, नीरज के संग-कविता के सात रंग, बादर बरस गयो, मुक्तकी, दो गीत, नदी किनारे, लहर पुकारे, प्राण-गीत, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिये, वंशीवट सूना है और नीरज की गीतिकाएँ शामिल हैं। लेकिन, अब ये सारे संग्रह रखे रह गए! उनका भी एक कारवां था, जो आज गुजर गया ... हमेशा के लिए! उससे उठने वाला गुबार हमें उनकी याद दिलाता रहेगा। 
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Monday 16 July 2018

दर्शकों ने 'संजू' को दी जादू की झप्पी!


- एकता शर्मा 

  संजय दत्त की बायोपिक 'संजू' बॉक्स ऑफिस पर लगातार कमाई कर रही है। फिल्म को लेकर समीक्षकों की जो भी राय हो, पर रणवीर कपूर की अदाकारी से सजी इस फिल्म की पहले दिन की कमाई ने सलमान खान की रेस-3, टाइगर श्रॉफ की बागी-2 और दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह की पद्ममावत को भी पीछे छोड़ दिया। 'संजू' का दूसरे दिन का कलेक्शन भी बेहतरीन रहा! फिल्म ने करीब 39 करोड़ रुपए का बिजनेस किया। सभी फिल्मों को पछाड़ते हुए 'संजू' आज टॉप- वन मूवी बन चुकी है। सलमान खान स्टारर 'रेस-3' ने पहले दिन 29.17 करोड़ रुपये का बिजनेस किया था। 'बागी-2' ने पहले दिन 25.10 करोड़ का आंकड़ा छुआ था। इस लिस्‍ट में अब चौथे नंबर पर रणबीर कपूर, दीपिका पादुकोण और शाहिद कपूर की फिल्‍म 'पद्मावत' (19 करोड़)' है और पांचवे पर 'वीरे दी वेडिंग' (10.70 करोड़) है। 

   जानकारी के मुताबिक 'संजू' ने अब तक इंडियन बॉक्स-ऑफिस पर करीब 300 करोड़ रुपए का बिजनेस किया है। फिल्म की वर्ल्ड वाइड कमाई भी जबरदस्त रही है। फिल्म ने शुरुआती 11 दिनों में 460 करोड़ रुपए का वर्ल्ड वाइड कलेक्शन किया था। फिल्म एक्सपर्ट्स 'संजू' की कमाई की रफ्तार देखकर अनुमान लगा रहे हैं कि फिल्म इंडियन बॉक्स ऑफिस पर नया रिकॉर्ड बनाएगी। 'संजू' के कारण दूसरे हफ्ते कोई बड़ी फिल्म रिलीज नहीं हुई! तीसरे हफ्ते 'सुरमा' ने हिम्मत की, पर बात नहीं बनी! 'धड़क' भी 'संजू' की स्पीड देखकर किनारे हो गई है। अब 'धड़क' नई तारीख पर रिलीज होगी। अनुमान लगाया जा रहा है कि संजय दत्त और रणबीर कपूर दोनों की लाइफ टर्निंग फिल्म साबित होगी।      
  रणबीर के करियर की अभी तक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई है। 'संजू' से पहले 'ये जवानी है दीवानी' ही रणबीर की सबसे बड़ी हिट फिल्म थीं, जिसने बॉक्स-ऑफिस पर करीब 190 करोड़ रुपए की कमाई की थीं! लगातार फ्लॉप फिल्मों के कारण रणबीर कपूर का ग्राफ लगातार गिर रहा था जिसे 'संजू' ने संभाल लिया। समीक्षकों का कहना है कि परदे पर रणबीर को देखकर लगता है, जैसे उन्होंने संजय दत्त की पर्सनालिटी को घोलकर पी लिया हो! परदे पर रणबीर कपूर चलते हुए ऐसे लगते हैं, मानो संजय दत्त खुद चल रहे हों! फिल्म के गाने भी रिलीज से ही लोगों की जुबान पर चढ़ गए हैं। 
  संजय दत्त की भूमिका निभा रहे रणबीर कपूर की एक्टिंग को भी सराहा गया है. रणबीर ने भी इस फिल्म के लिए काफी मेहनत की है। देखकर लगता है कि दर्शक रणबीर को नहीं, बल्कि संजय दत्त को देख रहे हैं। रणबीर कपूर ने पहली बार राजकुमार हिरानी के साथ काम किया है। रणबीर ने बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत साल 2007 में संजय लीला भंसाली की फिल्म 'सांवरिया' फिल्म से की थी। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर नहीं चल पाई, लेकिन इसके बाद 'वेक अप सिड', 'रॉकेट सिंह', 'सेल्समेन ऑफ द इयर ' जैसी फिल्मों में उसने अपने अभिनय का अलग परिचय दिया। लेकिन, 'संजू' ने बता दिया कि रणबीर कपूर चॉकलेटी हीरो ही नहीं है, उसकी रेंज बहुत बड़ी है।   
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कुछ ज्यादा ही बीमार होने लगा बॉलीवुड



- एकता शर्मा 

   बीमारी से कोई भी मुक्त नहीं है! फिर वो चाहे आम आदमी हो या बॉलीवुड का कलाकार! लेकिन, देखने में आ रहा है कि ज्यादातर कलाकार किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त हो रहे हैं। उनकी ये बीमारी फिल्म का हिस्सा न होकर वास्तविक है। यही कारण है कि वे भी दर्द से कराहते हैं और दवाइयों खाते हुए एक्टिंग भी करते रहते हैं। रहते हैं। अभी बॉलीवुड में हरफनमौला कलाकार इरफ़ान (खान) की बीमारी की चर्चा थमी भी नहीं थी कि सोनाली बेंद्रे को कैंसर होने की खबर आई! कुछ दिन पहले एक टीवी शो 'इंडियाज़ बेस्ट ड्रामेबाज़' में बतौर जज शामिल हुई सोनाली बेंद्रे दिखना बंद हो गई, तो किसी ने नहीं सोचा था कि ये उनकी बीमारी की वजह से है! सोनाली ने सोशल मीडिया पर यह जानकारी दी। सोनाली ने लिखा कि हाल ही में जांच के बाद मुझे ये पता चला है कि मुझे हाईग्रेड मेटास्टेटिस कैंसर है। इसकी उम्मीद मुझे कभी नहीं थी। होने वाले दर्द के बाद मैंने अपनी जांच करवाई, इसके बाद चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई! 
    इरफ़ान ने अभी तक सौ से अधिक फिल्मों में काम किया है। जिनमें पीकू, मक़बूल, हांसिल, लंच बॉक्स, पान सिंह तोमर और हिंदी मीडियम जैसी फिल्में शामिल हैं। बीमारी का शिकार होने वालों में इरफ़ान अकेले नहीं हैं। बॉलीवुड का इतिहास कलाकारों की बीमारियों से भरा पड़ा है। सलमान खान आज सबसे सफल हीरो हैं। लगातार हिट फिल्में दे रहे हैं। लेकिन, लंबे समय से वे एक बीमारी से परेशान हैं। सलमान को एक अजीब सी बीमारी है, मेडिकल की भाषा में इसे 'ट्रिगेमिनल न्यूराल्जिया' कहा जाता है। सामान्य बोलचाल में कहें तो, यह चेहरे और जबड़े से जुड़ी एक बीमारी है जिसमें मरीज को हमेशा झनझनाहट जैसा दर्द होता रहता है। इसे फेसियल डिसऑर्डर भी समझा जा सकता है। ये बीमारी भी हज़ारों में से किसी एक को होती है। शाहरुख खान भी अब तक आठ सर्जरी करा चुके हैं। घुटना, गर्दन, टखना, पसली और कंधे की! बताया जाता है कि इसका कारण फिल्मों में डांस और एक्शन सीन हैं। लेकिन, फिर भी शाहरुख ने ये काम छोड़ा नहीं है।
  'कृष' की शूटिंग के समय रितिक रोशन ने कई एक्शन सीन किए थे, जिसका उनके दिमाग पर भी पड़ा। पता चला कि उनके दिमाग में जगह-जगह खून जमा है। ऑपरेशन के बाद से रितिक ठीक हैं। सैफ अली खान को भी छाती में दर्द की तकलीफ हो चुकी है। नेपाल के राज परिवार से जुडी और बॉलीवुड की सेंशेसन रही मनीषा कोइराला भी अंडाशय के कैंसर से जूझ चुकी है। मुमताज को भी 2002 में स्तन कैंसर से पीड़ित बताया गया था। अमिताभ बच्चन भी 'स्प्लीनिक रप्चर' से त्रस्त हैं। 1984 में वे एक बीमारी के कारण शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो गए और डिप्रेशन में भी चले गए थे। आज भी उन्हें पूरी तरह स्वस्थ नहीं बताया जाता।
 गुजरे जमाने के राज कपूर भी दमे का शिकार हुए थे। दिलीप कुमार तो अकसर अस्पताल आते-जाते रहते हैं। एक्ट्रेस साधना ऐसे रोग से बीमार हुई, जिसका इलाज आज 50 पैसे की गोली से हो जाता है। बचपन में चेचक का टीका न लगने से गीताबाली को जान गंवानी पड़ी थी। पृथ्वीराज कपूर कैंसर का शिकार होने वाले पहले फिल्म सितारा थे। उनके बेटे शम्मीकपूर ने अपने जीवन की सांझ डायलसिस करते गुजारी। जुबली फिल्मों के सितारे राजेंद्र कुमार भी बीमारी का ही शिकार हुए थे! 
  संजीव कुमार, विनोद मेहरा, अमजद खान, संगीतकार आदेश श्रीवास्तव, लक्ष्मीकांत बेर्डे, नरगिस, गुरुदत्त, मीना कुमारी, मधुबाला और गीता बाली जैसे लोग भी थे, जिनकी आज सिर्फ यादें ही शेष हैं। ये सभी किसी न किसी बीमारी का असमय शिकार हुए थे। लेकिन, बीमारी किसी की लोकप्रियता से प्रभावित नहीं होती! जब बीमारी को आना होता है तो वो कोई पहचान नहीं देखती कि उसका शिकार होने वाला इरफ़ान खान है सोनाली बेंद्रे या कोई आम आदमी! बॉलीवुड में जब कोई कलाकार बीमार होता है तो उसकी बीमारी सिर्फ उसे ही दर्द नहीं देती, बल्कि उससे उसकी फिल्म से जुड़े कई लोग प्रभावित होते हैं। ऐसे में दर्शक भगवान् से दुआ ही कर सकता है कि उनके पसंदीदा कलाकार को स्वस्थ रखना! 

फ़िल्में किसी की सलाह से नहीं चलती!



 - एकता शर्मा 

    ब वो दौर नहीं रहा, जब दर्शक फिल्म की समीक्षा पढ़कर फिल्म देखने जाते थे! एक समय था जब शुक्रवार को फिल्म रिलीज होती थी, उसकी समीक्षा रविवार के अखबार में छपती थी! फिल्म के निर्माता और निर्देशक भी फिल्म समीक्षकों को प्रभावित करने का बहाना ढूंढते रहते थे। लेकिन, अब वो दौर नहीं रहा! फिल्म देखने वालों को अब न तो समीक्षा का इंतजार रहता है और न वे इससे प्रभावित ही होते हैं। असल बात तो ये है कि फिल्म समीक्षा अब स्वांतः सुखाय होकर रह गई है। इसलिए भी कि फिल्मों के ब्लैक एंड व्हाइट के ज़माने से आजतक फिल्मों का कारोबार कभी समीक्षाओं का मोहताज नहीं रहा! ऐसी फिल्मों की लिस्ट बहुत लम्बी है, जिन्हें समीक्षकों ने नकार दिया, पर वे देखने वालों की पसंद पर खरी उतरी! ताजा उदाहरण है ईद पर रिलीज हुई सलमान खान की फिल्म 'रेस-3' जिसे समीक्षकों ने नकार दिया, लेकिन सलमान के चाहने वालों ने फिल्म को हिट करा दिया! इस फिल्म ने 200 करोड़ की कमाई की है। 

  थोड़ा पीछे जाएं, तो हिंदुस्तानी फिल्म इतिहास के सफलतम फिल्मों में से एक 'शोले' (1975) के बारे लिखा गया था कि ये बुझे अंगारे जैसी  फिल्म है। बदले के फॉर्मूले पर बनी इस फिल्म में कुछ भी नयापन नहीं है। पर, 'शोले' ने सफलता का जो शिखर रचा, वो किसी से छुपा नहीं हैं। अमिताभ बच्चन की फिल्म 'मर्द' (1985) को भी देशभक्ति के जबरन ठूंसे फॉर्मूले की फिल्म कहा गया था। लेकिन, इस फिल्म ने भी धमाल किया था। सलमान खान की सुपर हिट फिल्म 'हम आपके है कौन' को भी नापसंद कर दिया था। लिखा गया था कि ये किसी शादी के वीडियो लगता है। जबकि, बॉलीवुड में 100 करोड़ रुपए कमाने वाली ये पहली फिल्म थी। आमिर खान और करिश्मा कपूर की 1996 में आई 'राजा हिंदुस्तानी' को समीक्षकों ने औसत दर्जे की फिल्म कहा था। जबकि, ये फिल्म उस साल की सबसे बड़ी हिट फिल्म हुई! 'गदर' (2001) की भी जबरदस्त आलोचना का शिकार हुई थी। कहा गया था कि इसे देशभक्ति का पुराना फॉर्मूला कहा गया था। पर, जब फिल्म परदे पर उतरी तो बॉक्स ऑफिस तक गरमा गया था।
 1943 में आई अशोक कुमार की फिल्म 'किस्मत' के बारे में समीक्षकों ने लिखा था कि फिल्म में अशोक कुमार को जिस तरह जेबकतरा और अपराधी बताया गया है, उसे देखकर युवाओं का सोच अपराधी बनने की तरफ मुड़ सकता है! लेकिन, दर्शकों ने उस फिल्म को बेहद पसंद किया था। राजकपूर की फिल्म 'श्री-420' (1955) भी जबरदस्त आलोचना का शिकार हुई थी। पर इस फिल्म को भी दर्शकों ने हाथों हाथ लिया। सर्वकालीन सफल प्रेम कहानी 'बॉबी (1973) को समीक्षकों ने प्यार के घिसे पिटे फॉर्मूले पर बनी फिल्म बताकर नकार दिया था। पर, दर्शकों ने 'बॉबी' को सफलता की उस ऊंचाई पर पहुँचाया। 
  शाहरुख़ खान और अनुष्का शर्मा की 2008 में आई फिल्म 'रब ने बना दी जोड़ी' को पुरानी प्रेम कहानी बताया गया था। फिल्म के कुछ हिस्सों को बेवकूफियों से भरा लिखा गया। जबकि, इस फिल्म ने 90 करोड़ की धुंवाधार कमाई की थी। सलमान खान की बॉडीगार्ड (2011) के बारे में कि इस फिल्म में कई खामियां हैं। पर, इस फुरसतिया सलाह को दर्शकों ने झटक दिया! ये फिल्म बॉलीवुड के इत‌िहास की सबसे सफल फिल्मों में दर्ज हुई! राउडी राठौर (2012) के बारे में तो कहा गया था कि ये मूर्खतापूर्ण घटनाओं से भरी फिल्म है। जबकि, अक्षय कुमार के दो दशक लंबे करियर में इस फिल्म ने सबसे शानदार ओपनिंग की थी। ग्रांड मस्ती (2013), 2 स्टेट (2014), और 'जय हो' भी ऐसी ही फ़िल्में हैं, जो समीक्षकों को पसंद नहीं आई थी, पर दर्शकों ने इन्हें सर पर चढ़ाया। दरअसल, फ़िल्में दर्शकों के लिए बनती हैं न कि समीक्षकों के लिए! इसलिए सच्ची सफल फिल्म वही है जो दर्शकों की नजरों में चढ़े! वैसे भी आजकल दर्शक फिल्म की रिलीज से हफ्तेभर पहले फिल्म की ऑनलाइन बुकिंग करवाते हैं। लेकिन, फिर भी यदि समीक्षकों को लगता है कि फिल्म उनकी वजह से चलती है तो ये उनकी खुशफ़हमी ही है।  
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संजय दत्त की जिंदगी के पाँच पहलु है 'संजू' में



- एकता शर्मा

   संजय दत्त की जिंदगी के कई रंग रहे हैं। ये बाहर से दिखने में जितनी रंगीन थी, अंदर से उतनी ही बदरंग और उलझी हुई! संजय दत्त एक ऐसे परिवार से हैं, जिसकी समाज में काफी इज्जत रही है। पिता सुनील दत्त सिर्फ एक्टर ही नहीं थे, एक समाजसेवी के रूप में उनकी पहचान कहीं ज्यादा सशक्त थी। संजय की माँ नरगिस भी उन शख्सियतों में से थी, जो एक बेहतरीन एक्ट्रेस होने के साथ अपना अलग रसूख रखती थीं। लेकिन, इस दंपत्ति के बेटे संजय के जीवन का लम्बा अरसा काफी उलझनों में बीता। लाड़, प्यार और परिवार की शानोशौकत ने संजय को बिगड़ैल बना दिया था। संजय की जिंदगी में इतने उतार-चढ़ाव और मोड़ आए, जो किसी कहानी से कम नहीं थे। पिता-पुत्र का रिश्ता, तीन शादियां, कई अफेयर्स, अपराध, फिल्म, ड्रग्स, जेल की सजा जैसी बातें उनकी जिंदगी का हिस्सा रही हैं। यही कारण था कि राजकुमार हिरानी ने कोई काल्पनिक कहानी के बजाए संजय दत्त की जिंदगी को ही अपनी फिल्म 'संजू' के लिए चुना जो अब परदे पर उतरने के लिए तैयार है।  
  सुनील दत्त और नरगिस की पहली संतान संजय दत्त को बचपन में इतना प्यार मिला कि वे बिगडैल संतान बन गए। उनमें 'मदर इंडिया' के बिरजू के गुण पल्लवित होने लगे। यहीं से एडवेंचर ने उनकी जिंदगी में दस्तक दी और वह एक के बाद एक एडवेंचर करते रहे और ता उम्र उसमें उलझते रहे। उनका पहला एडवेंचर था नशे को आजमाना। संजय दत्त ने एडवेंचर की तरह आजमाया गया नशा, उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया। लेकिन, सुनील दत्त और नरगिस उसे इस दलदल से बाहर निकाल लाए। उसके बाद उन्होंने फिल्मों में काम करना आरंभ किया। पहली फिल्म 'राॅकी' के प्रदर्शन से पहले नरगिस के निधन ने उनके जीवन से प्रेम छिन लिया। उसके बाद जो कुछ हुआ, वो किसी एडवेंचर से कम नहीं है!
 ‘संजू’ के जरिए राजकुमार हिरानी संजय दत्त की जिंदगी के उन सभी पहलुओं से पर्दा उठाने की कोशिश की है, जो अभी तक लोग ठीक से नहीं जानते! इस फिल्म में संजय दत्त की जिंदगी के पांच दौर को समेटा गया है। इन पांच दौर में संजय दत्त की जिंदगी में जो कुछ घटा, उन सभी घटनाओं को रनबीर कपूर के जरिए बड़े परदे पर उतारा जाएगा। इसमें संजय दत्त के ड्रग्स एडिक्ट होने से लेकर उनकी 308 गर्लफ्रेंड्स तक के बारे जिक्र है। संजय का हीरोइनों से नाम जुड़ना सामान्य बात थी! लेकिन, फिल्म से माधुरी दीक्षित से उनके रिश्तों को अलग रखा गया है। 'खलनायक' के दौरान संजय दत्त और माधुरी दीक्षित एक-दूसरे के करीब आए थे। इस बीच संजय दत्त अपराध के दलदल में फंस गए और माधुरी ने उनसे दूरी बना ली। माधुरी-संजय का अफसाना संजय दत्त की जिंदगी का अहम मोड़ है। लेकिन, इस किस्से को फिल्म से अलग रखा गया है। 
  राजकुमार हिरानी ने इस फिल्म का प्लॉट तभी बना लिया था, जब संजय पुणे के यरवदा जेल से सजा काटकर निकले थे। हिरानी ने उनके बाहर आने का रियल शॉट लिया था, जो शायद फिल्म में भी दिखाई दे! संजय की जिंदगी इतनी पैचीदगी भरी है कि खुद संजय दत्त को भी उस पर आश्चर्य है कि वे उन रास्तों पर कैसे पहुंचे, जो उनके लिए नहीं बने थे! निर्देशक राजकुमार हिरानी ने खुलासा भी किया कि संजय दत्त फिल्म की स्क्रिप्ट सुनते वक्त रो पड़े थे। हिरानी ने संजय दत्त पर बायोपिक बनाने के लिए काफी रिसर्च किया है। संजय की जिंदगी के कई अनछुए पहलुओं को इसमें जगह दी गई! हिरानी का कहना है कि स्क्रिप्ट खत्म होने के बाद जब हम संजय दत्त के पास गए और पूरी कहानी सुनाई! इस स्क्रिप्ट को सुनने के बाद वे खुद पर काबू नहीं रख सके और रो पड़े! कहने लगे कि 'ढाई घंटे में तुमने मेरी सारी जिंदगी बता दी।' देखा जाए तो हमेशा चर्चा में बने रहना संजय दत्त का शगल रहा है। कभी वे अपनी हरकतों के कारण सुर्खियाँ बनते रहे, उन्हीं सुर्ख़ियों पर बनी फिल्म के कारण वे छाए हुए हैं। 
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अब क्रूर नहीं रही परदे की सौतेली माँ!



-  एकता शर्मा 

  सौतेली माँ ऐसा डरावना शब्द है, जो सदियों से समाज को कंपकंपाता आ रहा है। असल माँ की मौत बाद यदि पिता दूसरी शादी कर ले, तो घर आने वाली दूसरी औरत पति की पहली पत्नी से हुई संतानों की सौतेली माँ होती है। ये दूसरी औरत जैसी भी हो, बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार भी करे, तब भी उसकी छवि हमेशा ख़राब बताई जाती रही है। समाज में भी और फिल्मों में भी! फिल्मों में ये चरित्र हमेशा ही क्रूरता का पर्याय रहा है। ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के समय से अभी तक ये परंपरा जारी है। उस दौर में सामाजिक फिल्मों में ट्विस्ट देने के लिए एक खलनायिका की भूमिका रखी जाती थी, जो या तो क्रूर जल्लाद सास होती थी या सौतेली माँ!    
 फिल्मों में अकसर सौतेली मां की छवि बेहद क्रूर और डरावनी दिखाई जाती है। जबकि, असल जिदंगी में सभी सौतेली माँ जुल्मी नहीं होती! ललिता पंवार, मनोरमा और शशिकला वाले ज़माने की बात अलग है, जब आँखे तरेरने वाली सौतेली मायें बच्चों पर हर तरह के जुल्म करती थी! इसके बाद 'बेटा' जैसी फिल्म आई जिसमें अरुणा ईरानी ने सौतेली माँ का किरदार अपने बेटे अनिल कपूर के साथ कुछ अलग ही अंदाज निभाया था। अब ऐसी फिल्मों का जमाना तो चुक सा गया है। अब तो फिल्मकारों ने भी किरदार को नया कलेवर देकर समाज नई हवा के झौंके का अहसास कराया है।      

  जानी-मानी और हाल ही में दिवंगत अभिनेत्री श्रीदेवी की अंतिम फिल्म 'मॉम' की कहानी भी कुछ अलग ट्रीटमेंट वाली थी। ये दो बेटियों और सौतेली माँ के रिश्तों को नए सिरे से परिभाषित करने वाली फिल्म है। जिसने सौतेली माँ की छवि को खंडित कर दर्शकों के दिल में सौतेले शब्द के मायने बदल दिए। इस फिल्म में बेटी सौतेली माँ को मैडम कहकर बुलाती है। फिल्म की कहानी एक ऐसी मां की है, जो अपनी सौतेली बेटी के गुनाहगारों को सजा दिलाने लिए किसी भी हद तक चली जाती है। इसमें श्रीदेवी ने देवकी का किरदार निभाया, जो सख्त बायलॉजी सख्त टीचर होती  है और पति और दो बेटियों के साथ दिल्ली में रहती है। देवकी की लाइफ में एक ऐसा मोड़ आता है, जब कुछ लोग उसकी बड़ी बेटी के साथ दुष्कर्म करके उसे नाले में फेककर चले जाते हैं। आर्या की जान तो बच जाती है, लेकिन उसकी जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है। सबूत न होने से के आर्या के गुनाहगार भी रिहा कर दिए जाते हैं। ऐसे में देवकी खुद अपने बेटी को इंसाफ दिलाने का फैसला करती है। लेकिन, देवकी चाहती है कि वह अपने हाथों से अपनी बेटी के गुनाहगारों को सजा दे। 
   फिल्मकारों की असल जिंदगी में भी सौतेली माओं की कमी नहीं है। ये मायें न तो क्रूर हैं और न षड्यंत्रकारी! बल्कि, ज्यादातर सौतेली मायें उन बच्चों की सबसे अच्छी दोस्त साबित हुई हैं। करीना कपूर खान और उनकी सौतेली बेटी सारा अली खान की उम्र में सिर्फ 13 साल का अंतर है। सैफ से शादी करने के बाद करीना ने अपने सौतेले बच्चों को अपना दोस्त समझा और उनके साथ हमेशा दोस्तों की ही तरह पेश आईं। सारा खान, सैफ की पहली पत्नी अमृता सिंह की बेटी हैं। संजय दत्त की सबसे बड़ी बेटी त्रिशाला उम्र में अपनी मम्मी मान्यता से सिर्फ 9 साल छोटी हैं। मान्यता और त्रिशाला का रिश्ता भी दोस्तों जैसा है। बताते हैं कि मान्यता की सोशल मीडिया पर हर फोटो को सबसे पहले उनकी बेटी त्रिशाला का ही लाइक मिलता है। महेश भट्ट की दूसरी पत्नी सोनी राजदान (आलिया भट्ट की माँ) के साथ पूजा भट्ट भी काफी कम्फर्टेबल फील करती हैं। पूजा और उनकी सौतेली माँ सोनी में 16 साल का अतंर है। आशय यही कि सभी सौतेली मायें क्रूर नहीं होती! पर, सभी 'मॉम' फिल्म के किरदार की तरह  अच्छी होती है, ये दावा भी नहीं किया जा सकता!
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