Monday 28 January 2019

अब आ गया बायोपिक फिल्मों का ट्रेंड!


- एकता शर्मा
   फिल्मी दुनिया का अपना चलन है। यहाँ जब भी कोई आइडिया हिट होता है, सभी फिल्म बनाने वाले वही चाल चलने लगते हैं। वास्तव में तो ये भेड़ चाल है, लेकिन हिट आइडिये को कोई छोड़ना नहीं चाहता। ख़ास बात ये कि ये चलन हर दौर में बदलता है! जब देश में फ़िल्में बनना शुरू हुई, तो देशप्रेम और आजादी अलख जगाने वाले विषय को भुनाया गया। लम्बे समय तक तक ऐसी फिल्मों का दौर चला! आजादी के बाद जंग की कहानियों पर फ़िल्में बनी! साठ और सत्तर के दशक में प्यार-मोहब्बत की कहानियों को फिल्माया गया! ऐसे ही अभी बायोपिक का जमाना है। फिल्मकार नई-नई हस्तियों को ढूंढ ढूंढकर उनकी जिंदगी पर फ़िल्में बनाने में व्यस्त हैं। अभी करीब 25 से ज्यादा ऐसी फिल्मों पर काम हो रहा है, जो किसी न किसी की बायोपिक है! इस साल करीब 15 बायोपिक परदे पर उतरने वाली हैं। हाल ही में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर आधारित 'मणिकर्णिका' और शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे पर बनी फिल्म 'ठाकरे' रिलीज हुई है। इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर 'द एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर' रिलीज हुई थी। 2019 के पहले महीने में ही तीन बायोपिक रिलीज हुई! 
   पिछले साल (2018) 25 जनवरी को संजय लीला भंसाली की कथित विवादस्पद फिल्म 'पद्मावत' आई थी। वह भी एक बायोपिक फिल्म ही थी, जो अजमेर की रानी पद्मावती से जुडी एक सच्ची घटना पर आधारित थी। 'पद्मावत' की तरह 'मणिकर्णिका' भी झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की जिंदगी पर बनी फिल्म है। इस साल बनने वाली अधिकांश बायोपिक फिल्मों में महिलाओं की जिंदगी पर ज्यादा फोकस है। 'मणिकर्णिका' तो परदे पर उतर आई, पर 'लक्ष्मी' नाम की एक और महिला प्रधान फिल्म आने वाली है। 'छपाक' नाम की ये फिल्म लक्ष्मी अग्रवाल की जिंदगी की कहानी है, जिस पर एसिड अटैक हुआ था। लक्ष्मी ने अद्धभुत साहस का परिचय देते हुए इन हालातों में भी जीना सीख लिया। दीपिका पादुकोण इसमें लक्ष्मी की भूमिका निभाने के साथ इस फिल्म का निर्माण भी खुद कर रही हैं। 'शकीला' फिल्म भी बन रही है। ये फिल्म केरल की एक्ट्रेस शकीला की कहानी है, जिसकी सेमी-पोर्न फिल्मों ने 90 के दशक में दक्षिण की फिल्म इंडस्ट्री में धूम मचा दी थी। 
  बैडमिंटन की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी सायना नेहवाल पर बन रही बायोपिक में सायना की भूमिका श्रद्धा कपूर निभाएगी! जाह्नवी कपूर भी वायु सेना की पहली महिला पायलट गुंजन सक्सेना की ज़िंदगी पर बन रही फिल्म में गुंजन का रोल करेंगी। गुंजन ने कारगिल युद्ध में जो योगदान दिया, उससे उन्हें 'कारगिल गर्ल' भी कहा जाने लगा। एक फिल्म महिला साइकिलिस्ट देबोराह हेरोल्ड पर बन रही है, जो देश की साइकल स्टार मानी जाती हैं। फिल्म में देबोराह बनने का मौका जैकलीन फर्नान्डीज को मिल रहा है।
   सबसे बड़ी बायोपिक फिल्म 'गांधी' पर 1982 में बनी थी। इसे ब्रिटिश फिल्मकार रिचर्ड एटनबरो ने बनाया था। इस फिल्म को 8 ऑस्कर अवार्ड भी जीते थे। इसके बाद बाबा आंबेडकर, सरदार पटेल और सुभाषचन्द्र बोस समेत कई हस्तियों पर बायोपिक बनीं। लेकिन, फिल्मकारों में बायोपिक बनाने का जुनून मिल्खा सिंह पर बनी 'भाग मिल्खा भाग' के बाद ही दिखाई दिया। इसके बाद खिलाडियों पर मेरी कॉम, एमएस धोनी, अज़हर, बुधिया सिंह, सूरमा और 'दंगल' फिल्में बनी। अगले साल रणवीर सिंह भी क्रिकेटर कपिल देव की बायोपिक '83' में दिखाई देंगे। निर्देशक कबीर खान ने इस फ़िल्म का नाम '83' इसलिए रखा, क्योंकि 1983 में ही कपिल देव की कप्तानी में भारत ने विश्व कप जीता था। इसके बाद नीरजा, वीरप्पन, सरबजीत, अन्ना, मंटो के बाद संजय दत्त पर 'संजू' भी बन गई। लेकिन, सभी बायोपिक सफल नहीं हुई! क्रिकेटर अजहरुद्दीन पर बनी बॉयोपिक बुरी तरह फ्लॉप हुई! जबकि, 'संजू' ने तो 300 करोड़ से ज्यादा का बिजनेस किया। 
  इसी साल रितिक रोशन की फिल्म 'सुपर 30' आने वाली है, जो बिहार के जाने-माने टीचर आनंद कुमार की बायोपिक है। अजय देवगन भी ऐतिहासिक योद्धा 'तानाजी : द अनसंग वार्रियर' बना रहे हैं। यह फिल्म मराठा साम्राज्य के सेना नायक तानाजी मालुसरे की कहानी है। अमिताभ बच्चन फिल्म 'झुण्ड' भी नागपुर के खेल शिक्षक विजय बरसे पर आधारित है, जिसने स्लम बस्ती के बच्चों के लिए 2001 में 'स्लम सॉकर' की स्थापना की थी। उनके इस काम ने बच्चों का ध्यान फुटबॉल खेलने में इतना लगा कि पूरे महाराष्ट्र में इनकी टीम का नाम हो गया!  अक्षय कुमार भी 'केसरी' बना रहे हैं जो 1897 की सारागढ़ की लड़ाई के योद्धा हवालदार इशर सिंह के जीवन पर आधारित है। इस फिल्म में परिणीति चोपड़ा भी साथ हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर भी फिल्म बनना शुरू हो गई! सुरेश ओबेरॉय ने विवेक ओबेरॉय को नरेंद्र मोदी की भूमिका में लेकर इस फिल्म का काम भी शुरू कर दिया। यानी बायोपिक से शुरू हुआ ये साल लगता है बायोपिक पर ही ख़त्म होगा!  
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'मणिकर्णिका' तो पड़ाव है, कंगना की जांबाजी के किस्से कम नहीं!

- एकता शर्मा 
 कंगना रनौत की फ़िल्मी दुनिया में कुछ अलग पहचान और जांबाज जैसी इमेज है। वे न सिर्फ अच्छी अदाकारा हैं, बल्कि हिम्मतवाली, मुंहफट महिला भी है। उन्होंने अपने साथ हुए हर अन्याय का हमेशा खुलकर और जमकर विरोध किया है। रितिक रोशन के साथ हुए इनके विवाद की बात जगजाहिर है। लेकिन, नया मसला उनकी नई फिल्म 'मणिकर्णिका' को लेकर है। करणी सेना के फिल्म के कथानक का विरोध किया है! उनका कहना है कि रिलीज से पहले उन्हें फिल्म दिखाई जाए! रनौत की फिल्म 'मणिकर्णिका' झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर आधारित है। करणी सेना की ये आपत्ति कुछ वैसी ही है, जैसी उन्होंने 'पद्मावत' को लेकर उठाई थी। 
    इस पर कंगना रनौत ने करारा जवाब दिया। उनका कहना है कि राजपूत समूह की करणी सेना उनकी फिल्म 'मणिकर्णिका : द क्वीन ऑफ झांसी' को लेकर उन्हें परेशान कर रही है। ये फिल्म अगले हफ्ते शुक्रवार को रिलीज होने वाली है। कंगना का कहना है कि फिल्म को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन ने प्रमाण पत्र दिया है। 'चार इतिहासकारों ने भी फिल्म देखकर 'मणिकर्णिका' को हरी झंडी दिखाई है। इसके बाद भी करणी सेना ने कोई गड़बड़ की, तो उन्हें पता होना चाहिए कि मैं भी एक राजपूत हूँ, मैं सबको बर्बाद कर दूंगी।
 ‘मणिकर्णिका : द क्वीन ऑफ झांसी’ को लेकर उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ का आरोप लगाया है। जबकि, फिल्म न तो किसी ने देखी है और न उसकी कहानी किसी को पता है। 'मणिकर्णिका' के बारे में कहा गया कि फिल्म में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और एक अंग्रेज अफसर के बीच मोहब्बत बताई गई है। जबकि, कंगना रनौत का कहना है कि फिल्म में ऐसा कोई तथ्य ही नहीं है। ये फिल्म लेखिका जयश्री मिश्रा की विवादस्पद किताब 'रानी' के कुछ अंशों पर आधारित है। लेकिन, आरोप लगाने वालों के पास फिल्म की कहानी को लेकर ऐसा कोई तथ्य नहीं है, जो उनके आरोप की पुष्टि करे! सिर्फ शूटिंग के कुछ सीन देखकर उन्होंने अनुमान लगाया है।
  'पद्मावत' की तरह 'मणिकर्णिका' की शूटिंग भी राजस्थान के कई शहरों में की गई है। 'मणिकर्णिका' की कहानी रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर आधारित हैं, जिन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ सन् 1857 की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। महाराष्ट्र की करणी सेना विंग ने फिल्ममेकर्स को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि यदि फिल्म में रानी लक्ष्मीबाई की छवि को बदनाम करने की कोशिश या फिर ब्रिटिशर्स के लिए प्रेम दिखलाया गया तो मेकर्स को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा! रानी लक्ष्मीबाई का असली नाम मणिकर्णिका था और उनका जन्म वाराणसी के मराठी परिवार में हुआ था। विवाह के बाद में रानी लक्ष्मीबाई झांसी चली गईं थीं। 
  इस बात ज्यादा वक़्त नहीं बीता, जब 'पद्मावत' को लेकर करणी सेना ने देशभर में उत्पा‍त मचाया था। उनके विरोध के कारण फिल्म की रिलीज में देरी हुई और कुछ बदलाव भी करना पड़े थे। 'पद्मावत' के बाद अब ‘मणिकर्णिका' को निशाना बनाने की कोशिश की गई है। कंगना रनौत की इस बात में दम है कि कुछ लोग ऐसे विवाद के जरिए लोकप्रियता पाना चाहते हैं। जबकि, वास्तव में फिल्म की कहानी में झांसी की रानी के प्रेम का कोई प्रसंग ही नहीं है। यह फिल्म अंग्रेजों और झांसी की रानी के बीच हुई लड़ाई पर आधारित है। फिल्म की कहानी ‘बाहुबली’ फिल्म के लेखक विजयेंद्र प्रसाद ने लिखी है। वे खुद इस किरदार से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी बेटी का नाम ही मणिकर्णिका रख दिया। 
  देखा जाए तो विवादों से कंगना रनौत का रिश्ता काफी पुराना है। 'मणिकर्णिका' की कहानी में तथ्यात्मक गड़बड़ी के आरोप के अलावा 'कृष' के निर्देशक से भी कंगना के मतभेद काफी छाये रहे। 'मणिकर्णिका' का निर्देशन पहले वे ही कर रहे थे। उन्होंने तो कंगना के साथ काम करने से ही इंकार कर दिया! उनका कहना था कि कंगना का व्यवहार काफी ख़राब है। बॉलीवुड में कंगना रनौत हमेशा ही अपने व्यवहार के कारण सुर्ख़ियों में रही है। बताते हैं कि कंगना को फिल्म के कई सीन ठीक नहीं लगे और उन्होंने उसे फिर से फिल्माने को कहा! लेकिन, निर्देशक ने ये पैचवर्क से मना कर दिया! उनका कहना था कि फिर से शूटिंग करने की कोई जरुरत नहीं हैं! इस विवाद के बाद फिल्म के बचे हिस्से का डायरेक्शन कंगना रनौत ने संभाला। क्योंकि, कृष इस समय 'एनटी रामाराव' की बायॉपिक की शूटिंग में बिजी हैं। 
  एक मामला ये भी है कि फिल्म की शूटिंग पूरी होने के बाद कंगना ने फिल्म में एक अहम् रोल निभा रहे सोनू सूद पर भी फिल्म के कुछ सीन फिर से फिल्माने के लिए दबाव डाला था! जिसके लिए सोनू के पास समय नहीं था और उन्होंने मना कर दिया। तात्पर्य यह कि कंगना रनौत को विवादों में बने रहने की आदत हो गई है! रितिक रोशन के साथ भी कंगना की लंबी कानूनी लड़ाई चली है। कंगना का नाम रितिक की आने वाली फिल्म 'सुपर 30' के वितरकों को भड़काने के मामले से भी जोड़ा जा रहा है। कहा तो ये भी जा रहा है कि 'मणिकर्णिका' को लेकर वास्तव में कोई विवाद ही नहीं है! कंगना ने खुद ही तथ्यों से छेड़छाड़ का आरोप लगवाया, ताकि फिल्म को 'पद्मावत' तरह पॉपुलरिटी मिले! सच क्या है, ये तो नहीं पता पर कंगना इस फिल्म को हिट करवाने के लिए हथकंडे भी इस्तेमाल कर सकती है। 
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फीके मसालों वाली कमजोर फिल्म है मनमोहन सिंह की गाथा!


- एकता शर्मा 
     कई सालों बाद कोई फिल्म राजनीति में विवाद का कारण बनी है। ये है 'द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर' जो संजय बारू की किताब पर रची गई है। फिल्म बेहद कमजोर और दर्शकों को बांधने में असफल रही है। संजय बारू केवल चार साल मनमोहन सिंह के सलाहकार रहे। लेकिन, उन्होंने मनमोहनसिंह के पूरे दस साल के कार्यकाल पर किताब लिखी है और फिल्म भी उसी तरह बनी है। इसलिए दावे से कहा नहीं जा सकता कि फिल्म मनमोहन सिंह के कार्यकाल का सही-सही खुलासा करती है। फिल्म में कई ऐसे प्रसंग हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि वहाँ संजय बारू मौजूद नहीं होंगे! फिर भी उन्होंने घटनाओं को ऐसे लिखा है, जैसे सबकुछ उनके सामने घटा हो! कुछ ऐसे भी दृश्य हैं जिनमें सिर्फ़ दो ही लोग हैं, फिर लेखक ने अपनी कल्पना से कैसे पता कर लिया कि वहाँ क्या हुआ होगा! एक दृश्य में एक प्रतिनिधिमंडल के सामने मनमोहन सिंह फ़ाइल पटकते नज़र आते हैं। जब वहाँ बारू थे ही नहीं तो उन्हें उन दृश्यों का पता कैसे चला?  
   इस फिल्म को राजनीतिक प्रश्रय मिला है, ये साफ नजर आता है। सेंसर बोर्ड ने जो फिल्म पास की, उसमें कुछ डायलॉग को आपत्तिजनक मानकर हटा दिया गया है। लेकिन, वे ट्रेलर में दिखाए गए हैं। इसे सेंसर बोर्ड के साथ धोखाधड़ी और नियमों का स्पष्ट उल्लंघन माना जा सकता है। कई जगह लेखक का बचकानापन भी स्पष्ट दिखाई देता है। वे अपने आपको देश की संवैधानिक व्यवस्था और प्रधानमंत्री कार्यालय से भी ऊपर दिखाते नज़र आते हैं। इससे लगता है कि उन्हें प्रधानमंत्री चुने जाने की प्रक्रिया और बहुमत से सरकार बनाने के लिए चुनी गई पार्टी की नीतियों का ही अंदाजा नहीं है। कई जगह वे पीएमओ के बड़े अधिकारियों की खिल्ली उड़ाते भी दिखाई देते हैं। संजय बारू प्रधानमंत्री के महज मीडिया सलाहकार थे! लेकिन, फिल्म में वे खुद को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और पीएमओ के अधिकारियों से भी ऊपर समझते हैं। वे कारपोरेट जगत प्रोफेशनल्स की तरह व्यवहार करते नजर आते हैं। 
 संजय बारू कहते हैं कि वे प्रधानमंत्री मनमोहन के भाषण भी लिखते थे। पाकिस्तान पर मनमोहनजी को क्या बात करनी चाहिए, ये निर्णय भी वे बारू से पूछकर लेते थे। ये तथ्य कितने सही हैं, इस बात खुलासा कौन करेगा? मनमोहन सिंह तो कहेंगे नहीं कि सच्चाई क्या है! वास्तव में ये फिल्म मनमोहन सिंह की छबि खराब करने की साज़िश जैसी लगती है। फिल्म में एक डिस्क्लेमर भी चलता है कि यह फिल्म किसी भी घटनाक्रम, पात्र और प्रतीकों से अपने आपको अलग करती है। ये अमूमन हर फिल्म में होता है। इसके बावजूद फिल्म में नाम ,पार्टी, चुनाव चिह्न, नेता, घटनाक्रम और टीवी चैनलों के वास्तविक फुटेज का इस्तेमाल किया गया है। ऐसे में या तो डिस्क्लेमर के अनुसार फिल्म को काल्पनिक कहानी माना जाए? 
   इस फिल्म में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल के दस सालों का कालखंड दिखाया गया है। लेकिन, इन पूरे दस सालों में मनमोहन सिंह असहाय, लाचार और राजनीतिक रूप से नासमझ नज़र आए! मनमोहन सिंह ने अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील पर जो साहस दिखाया था, उसका ज़िक्र भी पूरा नहीं है। फिल्म में मनमोहन सिंह की नीतियों के सकारात्मक पक्ष भी ठीक से नहीं दर्शाए गए! खाद्य सुरक्षा क़ानून, मनरेगा और अंतर्राष्ट्रीय मंदी के समय सूझबूझ भरी नीतियों को दर्शकों के सामने नहीं रखा गया। देश की मज़बूत अर्थव्यवस्था में उनके योगदान का भी कहीं उल्लेख नहीं है। ये फिल्म की वे कमजोरियां हैं, जो सच्चाई को छुपाती नजर आती हैं।  
  'द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर' को यदि सिर्फ फिल्म के तौर पर लें और इससे जुड़े सारे विवाद भूल जाएं, तो ये बेहद कमजोर फिल्म है। प्रोडक्शन और ट्रीटमेंट के लिहाज से दर्शकों को निराश करती है। फिल्म में अनुपम खेर ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का किरदार निभाया है और अक्षय खन्ना ने संजय बारू का। पूरी फिल्म इन्हीं दोनों किरदारों के आसपास घूमती है। देखकर लगता है कि ये फिल्म काफी जल्दबाजी में किसी ख़ास मकसद से बनाई गई है। फिल्म में कई डिटेल्स में भी डायरेक्टर चूकते नजर आते हैं। मनमोहन सिंह स्वयं संजय बारू को अपना संजय बताते हैं। मतलब ये हुआ कि दर्शकों को मनमोहन सिंह की जिंदगी की महाभारत संजय बारू की नजरों से देखने का मौका मिलता है। अनुपम खेर ने मनमोहन सिंह के किरदार को हूबहू परदे पर उतारने की कोशिश तो की है, पर इसमें वे पूरी तरह सफल नहीं हुए। उनके चलने और बोलने का अंदाज कई बार दर्शकों को हँसा देता है। मनमोहन सिंह को फिल्म में जिस हास्यास्पद किरदार की तरह दिखाने की कोशिश की गई, वो खटकता भी है। कुल मिलाकर ये एक कमजोर फिल्म है, जो बॉक्स ऑफिस के आंकड़ों से भी सामने आ गया!  
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चुनाव के मौसम में फिर राजनीति में पहुँची मौसमी!

- एकता शर्मा 
   गुजरे वक़्त की जानी-मानी एक्ट्रेस मौसमी चटर्जी की पहचान बदल गई! वे भाजपा में शामिल हो गई हैं। शायद अगले लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल से चुनाव लड़ेंगी। उन्होंने 70 के दशक में अपनी अदाकारी से पहले बांग्ला और फिर हिंदी सिनेमा में पहचान बनाई। मौसमी उस दौर में हिंदी सिनेमा की महंगी एक्ट्रेस में से एक थीं, जब परदे पर बड़ी-बड़ी एक्ट्रेस का राज था। फिल्मों की पारी के बाद लम्बा अंतराल लेकर अब मौसमी ने राजनीति की दुनिया की तरफ रुख किया है। वे पश्चिम बंगाल में अपना असर दिखाने के लिए भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुई हैं। वैसे वे पहले भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुकी हैं।   
   मौसमी का जन्म 26 अप्रैल 1948 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता प्रांतोष चट्टोपाध्याय सेना में ऑफीसर थे। उनका असली नाम इंदिरा चटर्जी है, लेकिन बंगाली फिल्मों के डायरेक्टर तरुण मजूमदार ने उनका नाम बदलकर मौसमी रख दिया था। मौसमी उन चुनिंदा अभिनेत्रियों में हैं, जिन्होंने शादी और फिर बच्ची के जन्म के बाद फिल्म उद्योग में कदम रखा। 18 वर्ष की उम्र में बेटी को जन्म देने के बाद मौसमी चटर्जी ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। 19 साल की उम्र में उन्होंने बंगाली फिल्म से डेब्यू किया। बंगाली के बाद उन्होंने हिंदी फिल्मों में कदम रखा और अपनी पहली फिल्म 'अनुराग' से अपनी बेहतरीन एक्टिंग से दर्शकों का दिल जीता। 
  कम उम्र में ही मौसमी ने पुराने ज़माने के गायक हेमंत कुमार के बेटे प्रोड्यूसर जयंत मुखर्जी से शादी कर ली थी। मौसमी और जयंत की दो बेटियां हुईं पायल और मेघा। पहली बेटी के जन्म के वक्त उनकी उम्र केवल 18 साल थी। मौसमी ने शादी के बाद ही हिन्दी फिल्मों में काम करना शुरू किया। मनोज कुमार की फिल्म 'रोटी कपड़ा और मकान' (1974) की शूटिंग के दौरान मौसमी चटर्जी गर्भवती थी। शूटिंग के दौरान उनके ऊपर ढेर सारा आटा गिर गया। अपनी हालत देखकर मौसमी चटर्जी रोने तक लगी थी। शूटिंग के वक़्त नीचे गिरने से उन्हें ब्लीडिंग भी होने लगी थीं, मौसमी को तुरंत अस्पताल ले जाया गया। लेकिन, खुशकिस्मत थी कि कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। 
  मौसमी चटर्जी फिलहाल भाजपा में शामिल हुई हैं, लेकिन वे राजनीति में पहले भी दखल दे चुकी हैं। मौसमी ने कोलकाता की उत्तर-पूर्व सीट से कांग्रेस के टिकट पर 2004 में लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन वे हार गई थीं। भाजपा के लिए मौसमी का पार्टी में शामिल होना, अहम माना जा रहा है। पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव के दौरान वे भाजपा का एक जाना-पहचाना चेहरा होंगी। मौसमी चटर्जी 2004 के बाद अब सक्रिय राजनीति में वापसी कर रही हैं। 15 साल बाद वे भाजपा में शामिल हुई हैं। 2004 में मौसमी ने बंगाल से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, मगर उस वक्त उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। 
  16 साल में मौसमी चटर्जी ने अपने करियर की शुरुआत बांग्ला फ़िल्म 'बालिका बधु' से की थी। उसके बाद पहली हिंदी फिल्म की 'अनुराग' (1972) में काम किया। उन्होंने कई बेहतरीन फ़िल्में अंगूर, मंज़िल और रोटी कपड़ा और मकान की। उन्होंने राजेश खन्ना, शशि कपूर, जीतेंद्र, संजीव कुमार, विनोद मेहरा और अमिताभ बच्चन जैसे बेहतरीन कलाकारों के साथ काम किया है। मौसमी चटर्जी के बारे में कहा जाता था कि वो रोने वाले दृश्य बड़े ही सरलता के साथ कर लेती थीं। इसके लिए उन्हें ग्लीसरीन की भी ज़रूरत नहीं पड़ती थी। मौसमी खुद भी कहती हैं कि ये ऊपरवाले का दिया हुआ एक वरदान है। जब किसी दृश्य में मुझे रोना होता था तो मैं सोचती थी, कि ये मेरे साथ सच में हो रहा है और मैं रो पड़ती थी। 
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छोटे बजट और छोटे सितारों ने बड़ी फिल्मों को किया चित्त!

बीता साल  - 2018

- एकता शर्मा 
   साल के बीतने पर पलटकर देखने की परंपरा रही है। सालभर लोगों का मनोरंजन करने वाली फिल्मों को भी साल के अंत में कसौटी पर कसा जाता है। इस नजरिए से 2018 कुछ सितारों के लिए बेहद खास रहा। उन्होंने अपने बेहतरीन अभिनय से लोगों का दिल तो जीता ही, बॉक्स ऑफिस पर फिल्म को शानदार सफलता दिलाई। लेकिन, ये कमाल करने वाली ज्यादातर फ़िल्में छोटे बजट और छोटे सितारों वाली ही थीं। बड़े सितारों की महँगी फिल्मों ने तो बॉक्स ऑफिस पर कोई कमाल नहीं किया। आमिर खान की 'ठग्स ऑफ हिन्दोस्तॉन', सलमान खान की 'रेस-3' और शाहरुख़ खान की 'जीरो' को तो दर्शकों ने जमीन दिखा दी। यानी तीनों खान 2018 के साल में ढेर में लगे! रणबीर सिंह की 'सिम्बा' भी साल के जाते-जाते दर्शकों को निराश कर गई! 
    छोटे बजट की बड़ी फिल्मों में 'अंधाधुन' शीर्ष पर हैं, जिसने 73 करोड़ रुपए की कमाई की हैं। फिल्म में अभिनय तब्बू, आयुष्मान खुराना और राधिका आप्टे ने किया हैं जिसका निर्देशन श्रीराम राघवन ने किया है। अलग कहानी के साथ बनी यह फिल्म दर्शकों को बॉक्स ऑफिस पर आकर्षित करने में कामयाब रही। फिल्म' स्त्री' बेहद अलग और चर्चा में रही। फिल्म का निर्देशन अमर कौशिक ने किया। फिल्म के अभिनेताओं की अगर बात करें तो राजकुमार राव ने बेहतरीन अभिनय किया साथ ही श्रद्धा कपूर ने अपने परफार्मेंस से सबका दिल जीत लिया। इस फिल्म में पंकज त्रिपाठी, अपारशक्ति खुराना और अभिषेक बनर्जी भी सहायक भूमिकाओं में दिखाई दिए। फिल्म के गाने भी लोगों को काफी पसंद आए।
   'बधाई हो' भी ऐसी फिल्म रही, जिसने दर्शकों के पैसे वसूल करवा दिए। 29 करोड़ के बजट से बनी यह फिल्म हिंदी कॉमेडी-ड्रामा फिल्म है। इसमें आयुष्मान खुराना, नीना गुप्ता, गजराज राव, सुरेखा सीकरी और सान्या मल्होत्रा जैसे कलाकार हैं, जिन्होंने अपने शानदार अभिनय से लोगों का दिल जीत लिया और फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर शानदार सफलता दिलाई। साल की एक और सफल फिल्म रही 'राजी' जिसका श्रेय आलिया भट्ट को दिया जा रहा है। आलिया के किरदार को दर्शकों ने सराहा और इसे उनकी अभी तक की बेहतरीन फिल्म बताया गया। मेघना गुलज़ार द्वारा निर्देशित और विनीत जैन, करण जौहर द्वारा निर्मित यह फिल्म भारतीय जासूस पर बनी थ्रिलर फिल्म है। इसमें आलिया भट्ट के साथ विक्की कौशल, रजित कपूर, शिशिर शर्मा और जयदीप अहलावत ने अभिनय किया है।
  फार्मूला फिल्मों में संजय दत्त पर बनी फिल्म 'संजू' सबसे ज्यादा कमाई करने वाली रही। इस फिल्म में रणबीर कपूर ने अभिनय किया और इस फिल्म का निर्देशन राजकुमार हिरानी ने किया। रणबीर कपूर ने दत्त के रूप में कई कलाकारों के साथ अभिनय किया, जिसमें सुनील दत्त, परेश रावल, दीया मिर्जा,सोनम कपूर और अनुष्का शर्मा शामिल हैं। 2017 में रिलीज होने वाली संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावत' विवादों कारण 2018 में परदे पर उतरी। 'पद्मावत' को काफी आलोचनाओं से गुजरना पड़ा था। कभी फिल्म के टाईटल के कारण तो कभी फिल्म की शूटिंग के दौरान हुए हादसों की वजह से। लेकिन, सभी परिस्थितयों से लड़ते हुए फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कलेक्शन किया। यह फिल्म भारतीय महाकाव्य पर आधारित अवधि ड्रामा फिल्म थी। इस फिल्म में दीपिका पादुकोण शाहिद कपूर और रणवीर सिंह ने बेहतरीन अभिनय किया और यह साल  की बेहद चर्चित फिल्मों में से एक रही।
  इस साल 'मनमर्जियां' साल 2018 की अलग और युवाओं पर आधारित फिल्म रहीं, पसंद किया गया। तापसी पन्नू के किरदार की लोगों ने तारीफ की। हांलाकि, इस फिल्म को भी काफी आलोचनाओं से भी गुजरना पड़ा। यह फिल्म अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित और कनिका ढिल्लन द्वारा लिखित भारतीय हिंदी-भाषा की रोमांटिक कॉमेडी-ड्रामा लव ट्राएंगल फिल्म है। इस फिल्म में तापसी पन्नू के साथ अभिषेक बच्चन और विक्की कौशल ने भी शानदार अभिनय किया है। सलमान खान की फिल्म 'रेस-3' ने बुरी तरफ फ्लॉप होने वाली फिल्मों में रही। फिल्म का म्यूजिक लोगों को काफी पसंद आया पर यह फिल्म दर्शकों के अरमानों पर खड़ी नहीं उतर सकीं। 
सबसे ज्यादा चली 'स्त्री' 
   साल 2018 में कम बजट वाली फिल्मों का बॉलीवुड में जलवा रहा और इन्होंने जमकर कमाई भी की। इस साल सबसे ज्यादा मुनाफा देने वाली फिल्मों की बात करें तो टॉप-3 में ऐसी कोई भी फिल्म नहीं है, जिसकी स्टार कास्ट बड़ी हो या जिस फिल्म का बजट बहुत ज्यादा हो! फिलहाल इस मामले में राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर की 'स्त्री' 548% की कमाई के साथ पहले नंबर पर रही। हालांकि, इस साल सबसे ज्यादा करीब 340 करोड़ रुपए की कमाई रणबीर कपूर कीफिल्म 'संजू' ने की है। फिल्म 'स्त्री' का बजट था 20 करोड़ लेकिन इस फिल्म ने कमाई की है 129 करोड़ की। 'बधाई हो' भी लो-बजट फिल्म थी और इसकी निर्माण लागत 22 करोड़ थी, पर इसने कमाई की 136 करोड़ रुपए की। इसी तरह 'सोनू के ट्वीटी की स्वीटी' 24 करोड़ में बनी, पर इसने बॉक्स ऑफिस पर 108 करोड़ रुपए कमा लिए। संजय दत्त की बायोपिक कही जाने वाली 'संजू' 80 करोड़ में बनी, पर इसने 341 करोड़ की बड़ी कमाई की। जबकि, 30 करोड़ में बनी आलिया भट्ट की फिल्म 'राजी' ने 123 करोड़ रुपए कमाए। साल 2018 में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली 10 फिल्मों में 'संजू' ने 341 करोड़, 'पद्मावत' ने 300 करोड़, 2.0 (हिंदी) ने 188 करोड़, 'रेस-3' ने 169 करोड़, 'बागी-2'ने 165 करोड़, 'ठग्स ऑफ हिंदोस्तान' ने 145 करोड़, 'बधाई हो' 136 करोड़, 'ने स्त्री' ने 129 करोड़, 'राजी' ने 123 करोड़, 'सोनू के ट्वीटी की स्वीटी' ने 108 करोड़ रुपए कमाए।   
सालभर छाई रही ये हीरोइन   
   दीपिका पादुकोण ने फ़िल्म 'पद्मावत' में रानी पद्मिनी की भूमिका में दीपिका पादुकोण ने अपने अभिनय से हर किसी का दिल जीत लिया था। फ़िल्म में रानी पद्मावती की भूमिका में अभिनेत्री न केवल सौंदर्य बल्कि हिम्मत और वीरता का भी प्रदर्शन किया। दर्शकों के दिलो में जगह बनाते हुए 'पद्मावत' बॉक्स ऑफिस पर 300 करोड़ का आंकड़ा पार करने में सफल रही। इसी के साथ, महिला नेतृत्व में बनी इस फिल्म के साथ 300 करोड़ क्लब में प्रवेश करने वाली दीपिका बॉलीवुड की एकमात्र अभिनेत्री है। 
   श्रद्धा कपूर ने फ़िल्म 'स्त्री' के साथ बॉलीवुड में औरत की ताकत का महत्व बखूबी से समझा दिया। श्रद्धा ने पहली बार रोचक शैली में अपने हाथ आजमाया। श्रद्धा फिल्म के साथ दर्शकों का दिल जीतने में भी सफ़ल रही! इस बात की गवाही बॉक्स ऑफिस कलेक्शन से भी मिलती है। 'स्त्री' साल की सबसे सराहनीय और कंटेंट संचालित फिल्मों में से एक है। फ़िल्म में श्रद्धा अपनी भूमिका के लिए भी सराही गई! यह फिल्म लगभग 14 सप्ताह तक सिनेमाघरों में अपनी जगह बनाए रखने वाली श्रद्धा कपूर की पहली फिल्म है। 
  अपनी चुलबुली अदाकारी के लिए पहचानी जाने वाली आलिया भट्ट ने 'राज़ी' में अपनी एक्टिंग से हर किसी को हैरान किया। फ़िल्म में आलिया के अभिनय को सराहा गया और यह फ़िल्म साल की बेहतरीन फ़िल्मो में शामिल हो गई। इस फिल्म को अपनी दमदार कहानी और अभिनय के लिए लम्बे समय तक याद रखा जाएगा। महिला सशक्तिकरण के साथ यह साल इन सभी अभिनेत्रियों के लिए भी शानदार रहा। इनके अभिनय ने दर्शकों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ी। 
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सितारों की शादियों की रंगत से सराबोर रहा ये साल

- एकता शर्मा 

  बॉलीवुड के अपने अलग ही रंग है। 2018 के साल में जब बड़ी-बड़ी फिल्मों ने दर्शकों को निराश किया तो सालभर इन्हीं बड़े सितारों की शादियों की धूम मची रही। इस साल को 'सेलिब्रिटी वेडिंग ईयर' के रूप में भी याद किया जा सकता है। इस साल कई बड़े कलाकारों ने शादी रचाई! कुछ ने देश में तो कुछ ने विदेश में फेरे लिए। प्रियंका चोपड़ा, सोनम कपूर, दीपिका पादुकोण, रणबीर सिंह, नेहा धूपिया के अलावा साल के अंतिम महीने में बाद मशहूर कॉमेडियन कपिल शर्मा ने भी शादी कर ली। इन सभी शादियों ने मीडिया में भी जमकर सुर्खियां बटोरीं। 
    साल की सबसे बड़ी और धमाकेदार शादी रही मुकेश अंबानी की बेटी ईशा और पिरामल ग्रुप के उत्तराधिकारी आनंद प‍िरामल की। ये शादी बेहद शाही अंदाज़ में हुई और इसमें देश, विदेश की कई नामी हस्तियां शामिल थी। 12 दिसंबर को ईशा और आनंद मुंबई में शादी के बंधन में बंधे। राजनीति और बिज़नेस की दुनिया के कई बड़े नाम ईशा की शादी में शामिल हुए। उदयपुर और मुंबई में हुए शादी के आयोजनों ने दुनियाभर में धूम मचा दी। देश-विदेश हर जगह के मीडिया ने भी इस शादी को भरपूर कवरेज दी। बॉलीवुड के कई सितारे इस शादी में न सिर्फ शामिल हुए, बल्कि जमकर नाचे भी और दूल्हे के पिरामल परिवार को खाना परोसने की रस्म भी अदा की। ईशा-आनंद की शादी इस साल की इंडिया की सबसे महंगी शादी भी मानी गई! 
   बॉलीवुड की सुपर हिट जोड़ी रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण ने लम्बी मोहब्बत के बाद कोंकणी और सिंधी रीति-रिवाज़ से 14 नवंबर को इटली के 'लेक कोमो' में शादी की। इस शादी में उनके परिवार और खास दोस्त ही शामिल थे। भारत आने के बाद दोनों ने बेंगलुरु और मुंबई में भव्य रिसेप्शन रखा, जिसमें बॉलीवुड और राजनीति की तमाम हस्तियों ने शिरकत की। इसी साल बॉलीवुड की देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा ने भी विदेशी दूल्हे निक जोन्स से विवाह रचाया। एक दिसंबर को राजस्थान के उम्मेद भवन पैलेस में दोनों ने शादी की। इस शादी में भी सिर्फ दोनों के परिवार के लोग ही शामिल हुए। प्रियंका और निक ने हिंदू और क्रिश्चियन दोनों ही रीतियों से शादी की। इनके रिसेप्शन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा बॉलीवुड के कई सितारे शामिल हुए। बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल ने 14 दिसम्बर को अपने पुराने दोस्त पी कश्यप के साथ फेरे ले लिए। पूरी दुनिया को सायना और पी कश्यप ने ही अपनी शादी के बारे में बताया, पर बुलाया चुनिंदा लोगों को। इस शादी के रिसेप्शन में दक्षिण के सितारे नागार्जुन और रकुल प्रीत जरूर दिखाई दिए थे। 
  अनिल कपूर की एक्ट्रेस बेटी सोनम कपूर अपने पुराने साथी बिजनेसमैन आनंद आहूजा से 8 मई को शादी के बंधन में बंध गईं। ये शादी सोनम की आंटी के घर बेहद सादगी से हुई। बॉलीवुड के कई बड़े कलाकार सोनम की शादी में दिखाई दिए। राजनीति के दिग्गज अमर सिंह भी शादी के फंक्शन में नजर आए। एक गुमनाम शादी नेहा धूपिया और अंगद बेदी ने की। 10 मई को हुई इस शादी में सिर्फ परिवार वाले शामिल थे, बाकी किसी को इस शादी की खबर तक नहीं थी। गुरुद्वारे में अंगद और नेहा ने सिख रीति-रिवाज़ से शादी की। 12 अक्टूबर को टीवी कलाकार प्रिंस नरूला और युविका चौधरी ने मुंबई में शादी की। इनकी शादी में सुनील शेट्टी, सोहेल खान, नेहा धूपिया और टीवी के कई कलाकार शामिल हुए। 
  साल के अंत की बड़ी शादी हुई कामेडियन कपिल शर्मा और गिन्नी चतरथ की। 12 दिसंबर को ये शादी जालंधर में हुई। शादी पंजाबी रीति-रिवाज़ों के साथ हुई। टीवी और फिल्म जगत के कई सितारों ने कपिल की शादी को अटेंड किया। इसके अलावा मिथुन चक्रवर्ती के बेटे महाक्षय की शादी भी चर्चा में रही। शादी से कुछ दिन पहले ही एक महिला ने उन पर यौन उत्पीडन का आरोप लगाया था और इस कारण ये शादी विवादों में आ गई थी। महाक्षय ने मदलसा शर्मा से शादी की। इन शादियों के हंगामे के बाद भी अभी तक सलमान खान की शादी न होना इस पूरे साल चर्चा में बना रहा!   
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ये है शाहरुख़ के अभिनय का नया रंग!

- एकता शर्मा 
  शाहरुख खान की नई फिल्म 'जीरो' रिलीज हो गई। ये फिल्म मेरठ के 38 साल के बौने की कहानी है, जो अमेर‍िका के नासा मिशन तक जाती है। ये शाहरुख के करियर की सबसे महंगी और कुछ अलग किरदार वाली फिल्म है। इसमें शाहरुख़ ने एक बौने का किरदार निभाया है। इस फिल्म के बजट का अनुमान 200 करोड़ लगाया गया है। लंबे इंतजार के बाद शाहरुख खान उनकी पुरानी अदा में दिखाई दिए। उनके बौने किरदार बउवा का दर्शकों में पहले से ही क्रेज था। इस फ‍िल्‍म का वीएफएक्‍स यानी स्पेशल इफेक्ट भी दमदार है।  
   जब  भी एक्टिंग की बात आती है, तो शाहरुख खान को रोमांस के बादशाह के रूप में याद किया जाता है। लेकिन, शाहरुख खान ने पर्दे पर न सिर्फ रोमांस किया, बल्कि कई बार ऐसी भूमिकाएं भी की, जो बॉलीवुड में शायद और कोई भी नहीं कर पाता। कुछ भूमिकाएं अच्छी थी और उसमें शाहरुख का रोल भी काफी कठिन था इसके बावजूद उन्होंने इन फिल्मों में अपने अभिनय से जान डाल दी। शाहरुख ने कई फिल्मों में दमदार अभिनय के साथ निगेटिव किरदार भी निभाएं!  
   'माय नेम इज खान' फिल्म में शाहरुख खान ने एक कमजोर दिमाग वाले इंसान का रोल किया था। जो कि बता रहा था कि हर मुस्लिम आतंकवादी नहीं होता है। 'चक दे इंडिया' में शाहरुख खान का हॉकी के खेल से दूर-दूर तक कोई वास्ता नही है। इसके बावजूद उन्होने इस फिल्म में हॉकी कोच का किरदार निभाया था। 'डर' को शाहरुख खान के अभिनय की बेहतरीन फिल्मों में गिना जाता है। इसमें शाहरुख खान ने एक वन साइडेड लवर का किरदार निभाया था। 'डुप्लीकेट' फिल्म में शाहरुख खान ने डुप्लीकेट का रोल निभाया था, जिसमे एक किरदार विलेन होता है। 'फैन' में शाहरुख खान ने खुद का ही फैन बनकर अपनी एक्टिंग से लोगों का दिल जीत लिया था। 'डॉन' फिल्म अमिताभ बच्चन के नाम दर्ज थी। इस फिल्म में काम करके लोगों के दिमाग से अमिताभ बच्चन की छवि को निकालना एक बहुत बड़ा काम था। 'बाजीगर' वो फिल्म थी, जिसने शाहरुख खान को नई ऊंचाइयां दी थी। शाहरुख ने बाजीगर में अपनी एक्टिंग का ऐसा तड़का लगाया कि वो देखते ही देखते था गए। अब उन्होंने 'जीरो' में बौने  किरदार निभाकर अपनी नई पहचान बनाई है। ये उनके अभिनय का नया रंग कहा जा सकता है। फिल्म का बॉक्स ऑफिस रिजल्ट क्या होता है, ये तो बाद में सामने आएगा, पर अब दर्शक बौने शाहरुख़ को भी याद रखेंगे।  
  शाहरुख़ ने अपनी फिल्मों में अभी तक कई तरह के किरदार निभाए हैं। वे प्रेमी राज, राहुल, टूटे दिल के प्रेमी देवदास, हॉकी के सख्त कोच, स्मगलर डॉन जैसे किरदारों में नजर आने के बाद अब बौने के रूप में नजर आए हैं। शाहरुख़ का कहना है कि किरदार में आपका भरोसा हो या न हो, लेकिन इसे जीवंत बनाने के लिए आपको जुनूनी बनना पड़ता है। बॉलीवुड में दो दशकों से अधिक समय से राज कर रहे शाहरुख़ का ये भी कहना बतौर अभिनेता मेरा काम अपने अभिनय के जरिए दर्शकों को किरदार में विश्वास दिलाना है। हकीकत में मैं 'देवदास' की तरह शराब पीकर मौत को गले नहीं लगाऊंगा, लेकिन फिल्म में मैंने ऐसा किया। जब आप किसी किरदार को निभाते हैं तो आपको यह नहीं सोचना चाहिए कि लोग आपको बारे में क्या सोचेंगे, बल्कि यह सोचना चाहिए कि लोग किरदार के बारे में क्या सोचेंगे। तो फिर अब ये दर्शकों को सोचना है कि 'जीरो' का बउवा कैसा है!  
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अभी तक कोई खोज नहीं पाया, हिट फिल्म का फार्मूला!


- एकता शर्मा 
  भी तक किसी के पास इस सवाल का जवाब नहीं है, कि कोई फिल्म हिट क्यों होती है और फ्लॉप कैसे होती है? किसी हीरो की एक फिल्म हिट हो जाती है और उसी के बाद दूसरी फ्लॉप! हिट और फ्लॉप फिल्मों का अभी तक कोई फार्मूला नहीं है। दर्शकों की पसंद और नापसंद फिल्म बनाने वालों के लिए आज भी एक अबूझ है। सलमान खान जैसे हीरो की ट्यूबलाइट और रेस-3 हाल ही में फ्लॉप होने वाली फ़िल्में हैं। सर्वाधिक लोकप्रिय अमिताभ बच्चन की लिस्ट में भी फ्लॉप फिल्मों की लाइन लगी है। फिल्म की कहानी अच्छी हो, तो क्या फिल्म चलेगी, क्या गीत-संगीत से दर्शक आकर्षित होते हैं, संवाद की फिल्म में क्या अहमियत है या फिर जमकर एक्शन हो तो दर्शक खिंचे चले आएंगे? यदि किसी फिल्म में ये सब हों तो क्या फिल्म के हिट होने की गारंटी है? इस बात का किसी के पास कोई जवाब नहीं है! 

    बड़े सितारों के भरोसे फिल्म को खींचने की कवायद भी कई बार मात खा चुकी है। इंडस्ट्री में ऐसा कोई स्टार नहीं है, जिसके करियर में कोई फ्लॉप न हो! अमिताभ बच्चन और शाहरुख़ खान से लगाकर राजेंद्र कुमार तक की फ़िल्में फ्लॉप हो चुकी है, जिसे जुबली कुमार कहा जाता था। वास्तव में किसी फिल्म की सफलता के कई कारण होते हैं। उनका समानुपातिक तालमेल ही फिल्म को सफल बनाता है। कहानी तो किसी भी फिल्म की जान होती है और उसमें रंग भरती है कसी हुई पटकथा। फिर नंबर आता है गीत-संगीत का। इन सबके बाद निर्देशक की रचनात्मकता से संपूर्ण फिल्म बनती है। लेकिन, ऐसा व्यवस्थित तालमेल कम ही बनता है। यही कारण है कि कभी गीत फिल्म का सहारा बन जाते हैं तो कभी एक्शन से नैया पार लगती है। लेकिन, कभी किसी एक्टर की संवाद अदायगी फिल्म की पहचान बन जाए तो वह सालों तक उसकी याद ताजा रखता है।
 जानकारों का कहना है कि दर्शकों का बड़ा वर्ग संवादों को ज्यादा महत्व नहीं देता। उनका तर्क है कि फिल्म सिर्फ संवादों से नहीं चलती, कई और कारणों से अच्छी बनती हैं। अगर निर्देशन की बात की जाए तो शांताराम, सोहराब मोदी, केदार शर्मा, नितिन बोस, राज कपूर, चेतन आनंद, विमल राय, ऋषिकेश मुखर्जी, यश चोपड़ा और सुभाष घई जैसे कई बड़े निर्देशकों की फिल्में पिटी हैं। 1950 के दशक में माना जाता था कि मधुर गीत-संगीत फिल्म को चलाता है। लेकिन, ऐसी दर्जनों मिसाल हैं जब फिल्म का गीत-संगीत लोकप्रिय हो गया, पर फिल्म नहीं चली। 
  कुछ फिल्मों के साथ कोई ऐसी घटना जुड़ जाती है जो फिल्म की सफलता का कारण बनती है। ‘मुगल-ए-आजम’ को उसके कांच से बने वैभवशाली शीश महल और उसमें फिल्माए गए रंगीत गीत ‘जब प्यार किया तो डरना क्या’ से याद किया जाता है। ‘मदर इंडिया’ में आग में घिरी नरगिस को सुनील दत्त का बचाना ही यादगार घटना बन गया। ‘कुली’ को इसलिए याद किया जाता है, क्योंकि उसकी शूटिंग के दौरान पुनीत इस्सर का घूंसा लगने से अमिताभ बच्चन घायल हो गए थे। उनकी आंत फटना इतनी बड़ी घटना बन गई थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपना विदेशी दौरा स्थगित कर स्वदेश लौटना पड़ा था। फिल्म में वो दृश्य रोककर बताया जाता था कि इस दृश्य में अमिताभ को चोट लगी थी। 
   आजादी से पहले तो कुछ फिल्में सिर्फ ओजपूर्ण संवादों की वजह से ही चर्चित हुईं। सोहराब मोदी की ‘पुकार’ व ‘सिकंदर’ इसकी मिसाल हैं। इन फिल्मों के संवादों में गजब की आग थी। केदार शर्मा की ‘चित्रलेखा’ में पाप और पुण्य की व्याख्या करने वाले संवाद चुटीले थे। बीआर चोपड़ा की ‘कानून’ व ‘इंसाफ का तराजू’ में संवादों से ही कानून व्यवस्था की बखिया उधेड़ी गई थी। लेकिन, कई फिल्मों की पहचान ही उनका एक संवाद बन गई। 'शोले' और 'मुग़ल-ए-आजम' को आज संवादों की वजह से ही याद किया जाता है।  
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सिनेमा के परदे पर समलैंगिक किरदार

- एकता शर्मा

   सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक रिश्तों पर अपना फैसला सुना दिया। अब आपसी सहमति से समलैंगिक संबध बनाना अपराध नहीं माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने दो वयस्कों के बीच सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली धारा-377 को ही खत्म कर दिया। इस मसले पर लंबे समय से बहस चल रही थी। जबकि, कुछ फिल्मों में भी इस तरह के किरदारों को लम्बे समय से द‍िखाया जाता रहा है। समलैंगिक शब्द सुनते ही सभी के मन में ख्याल आता है कि लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे! लेकिन, बॉलीवुड में ऐसे कई अभिनेता हैं, जो समाज की इस सच्चाई से आपको रुबरु कराने के लिए फिल्मों में गे (समलैंगिक) की भूमिका निभा चुके हैं। किसी ने गंभीर किरदार बनकर तो किसी ने कॉमेडी के अंदाज में ये भूमिका निभाई! एक नजर डालते हैं, ऐसे कलाकारों पर जो फिल्मों में समलैंगिक बन चुके हैं।
     चिराग मल्होत्रा और प्रणय पचौरी की फिल्म 'टाइम आउट', भी एक गे-कैरेक्टर के आसपास घूमती फिल्म है। हंसल मेहता की फिल्म 'अलीगढ़' में मनोज बाजपेई भी समलैंगिक प्रोफेसर का किरदार निभा चुके हैं। जबकि, 'दोस्ताना' दो ऐसे किरदार की कहानी थी, जो असलियत में तो समलैंगिक नहीं होते! लेकिन, किराए का घर ढूंढने के लिए मजबूरी में उन्हें ये किरदार निभाना पड़ता है। जॉन अब्राहम और अभिषेक बच्चन इसी रोल में नज़र आए थे। 1996 में आई दीपा मेहता की फिल्म 'फायर' होमोसेक्सुअलिटी और फ्रीडम ऑफ स्पीच जैसे मुद्दे पर बनी थी। फिल्म में शबाना आज़मी और नंदिता दास होमोसेक्सुअल किरदार में नज़र आई थीं। 
  करण जौहर की फिल्म 'स्टूडेंट ऑफ द इयर' में अभिनेता ऋषि कपूर ने कॉलेज के प्रिंसिपल का किरदार निभाया था, लेकिन इस किरदार के हाव-भाव गे-किरदार जैसे थे। हाल ही में आई फिल्म 'पद्मावत' साल की सबसे बड़ी विवादित फ़िल्मों में से एक रही! इस फिल्म में जिम सौरभ का किरदार होमोसेक्सुअल जैसा था। शॉर्ट फिल्म 'तेरे जैसा यार कहां' में बॉलीवुड के डायरेक्टर सतीश कौशिक ने एक क्यूट रोल निभाया है। वे इस फिल्म में कैंसर पेशेंट के रोल में हैं। वहीं इस फिल्म में उनका किरदार होमोसेक्सुअल जैसे मुद्दे से जुड़ा हुआ है।   अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्मों में अलग ही इमेज रही है! लेकिन, 'ढिशूम' में अक्षय ने समलैंगिक का किरदार निभाया। अक्षय का कहना है कि उन्हें गर्व है कि उन्होंने ये किरदार निभाया! शायद अपनी जेनरेशन का मैं पहला कलाकार हूं, जिसने ऑनस्क्रीन समलैंगिक बनने की चुनौती स्वीकार की! बॉलीवुड के चार डायरेक्टरों ने ने एक फिल्म बनाई थी। इसमें करन जौहर की शार्ट फिल्म में रणदीप हुड्डा और साकिब सलीम ने समलैंगिक का रोल किया था। फिल्म में इन दोनों के बीच एक किसिंग सीन था, जो काफी चर्चा में रहा! अनुपम खेर ने सलमान खान की फिल्म 'दुल्हन हम ले जाएंगे' में करिश्मा कपूर के मामा के रोल निभाया था, जो कि एक समलैंगिक रोल था। फिल्म 'माई ब्रदर निखिल' भी इसी विषय की फिल्म थी। इसमें संजय सूरी और पूरब कोहली ने समलैंगिक का किरदार किया था। 
  निर्देशक फ़राज़ आरिफ़ अंसारी की शॉर्ट फ़िल्म 'सिसक' को कई फ़िल्म महोत्सवों में दिखाया गया! 'सिसक' समलैंगिकों पर बनी भारत की पहली साइलेंट फ़िल्म है। इसे 'विकेड क्वीर' (समलैंकिगों पर बोस्टन के सालाना फ़िल्म महोत्सव) में विजेता घोषित किया गया था। यहीं इस फ़िल्म का वर्ल्ड प्रीमियर भी हुआ था। निर्देशक फ़राज़ ने कहा था कि बोस्टन के इतिहास में ये पहला मौका है, जब कोई भारतीय फ़िल्म विजेता बनी! 
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अमिताभ के जादू में 'केबीसी' का तड़का!


- एकता शर्मा
  अमिताभ बच्चन 'कौन बनेगा करोड़पति' का 10वां सीजन लेकर फिर टीवी पर आ रहे हैं। बीते 18 सालों से अमिताभ टीवी के इस रियलिटी शो को को होस्ट करते आ रहे हैं। 'कौन बनेगा करोड़पति' यानी 'केबीसी' एक ऐसा रियलिटी गेम शो है, जिसमें प्रतियोगी सवालों के सही जवाब देकर अधिकतम निर्धारित राशि तक जीत सकता है। इसका पहला प्रसारण सन् 2000 में हुआ था। यह शो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहे गए शो ‘हू वांट्स टू बी अ मिलियनेयर’ से प्रेरित है। अमिताभ बच्चन 2000 से ही इस शो के साथ जुड़े हैं। सीजन छोड़कर अमिताभ बच्चन केबीसी के सभी सीजन होस्ट कर चुके हैं। अमिताभ बच्चन ने छोटे परदे पर इसी शो के माध्यम से पदार्पण किया था। अमिताभ के अलावा एक बार के अलावा एक बार शाहरुख खान भी इस शो को होस्ट कर चुके हैं! लेकिन, जो जादू अमिताभ बच्चन में है, वो शाहरुख़ नहीं ला सके और अगले शो में फिर अमिताभ को ही सूत्रधार की कुर्सी संभालना पड़ी! 
    इसके बावजूद इस शो का होस्ट बनने की इच्छा जाहिर करने वाले कलाकारों की कमी नहीं है। अमिताभ बच्चन के फ्लॉप एक्टर बेटे अभिषेक बच्चन भी एक बार होस्ट की कुर्सी के प्रति अपना मोह दर्शा चुके हैं। पिछले दिनों तो 'दस का दम' जैसे फ्लॉप शो के होस्ट सलमान खान भी 'कौन बनेगा करोड़पति' को होस्ट करने की इच्छा जता चुके हैं। फैंस को शो का इंतजार काफी दिनों से था. इस बार के शो में क्या बदलाव होगें ये देखना दिलचस्प होगा। शो के क्विज़ मास्टर सिद्दार्थ बसु का कहना है कि इस बार हम दर्शकों के लिए बहुत सारा मनोरंजन लाए हैं। इस बार के सवाल पहले से ज्यादा मुश्किल हो सकते हैं। 'कौन बनेगा करोड़पति' ऐसा गेम शो है जो पहले सीजन से ही दर्शकों का पसंदीदा कार्यक्रम बन गया था। 
  समझा  है कि इस बार का शो कुछ ज्यादा ही इंट्रेस्टिंग होगा। देखना होगा कि इस बार के मुकाबले में कौनसा प्रतियोगी सबसे ज्यादा रकम लेकर अपने घर जाता है। इस बार शो को काफी बदला भी गया है और इसमें कुछ नयापन लाने की कोशिश की गई है। बताते हैं कि इस बार शो में हाईलेवल ग्राफिक्स का इस्तेमाल किया गया है। इस बार शो में 31 मिलियन से ज्यादा लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। शो में दर्शकों के लिए एक ऐसे विज्युअल डिलाईट होने का वादा किया गया है, जो कि ऑगमेंटेड रियलिटी (एआर) के इस्तेमाल के साथ आ रहा है। ये दर्शकों को नया अनुभव देगा। फिफ्टी-फिफ्टी, ऑडियंस पोल और जोडीदार लाइफलाइन को बरकरार रखा गया है। 
  इस साल 'आस्क द एक्सपर्ट' लाइफलाइन भी प्रतियोगियों मिलेगी। इसमें एक सही उत्तर के साथ एक विशेषज्ञ वीडियो कॉल पर प्रतियोगी की मदद करने के लिए मौजूद होगा। शो में पहली बार, खेल-राजनीति से लेकर विभिन्न विषयों पर ऑडियो-विज़ुअल प्रश्न फोरमैट में शामिल किए गए हैं। 'केबीसी' के 10वें सीजन में समाजसेवी प्रकाश आमटे और उनकी पत्नी मंदाकिनी भी दिखाई देंगे, वे 'कर्मवीर' नाम के एक स्पेशल एपिसोड का हिस्सा होंगे। अमिताभ ने अपने ब्लॉग पर भी में लिखा कई कि दो असाधारण लोगों के साथ समय बिताना प्रेरणादायी और भावनात्मक रहा! लंबे समय बाद ऐसा हुआ। बाबा आमटे के बेटे प्रकाश आमटे आदिवासियों के बीच रहकर काम कर रहे हैं। 
     इस शो की बड़ी सफलता में सिद्धार्थ बसु के योगदान को भुला पाना भी संभव नहीं है। शो को इतने लम्बे समय तक रोचक बनाए रखने में अमिताभ बच्चन के अलावा उन बदलाव  योगदान है, जो किए जाते रहे हैं। इसे निर्देशन का ही प्रभाव कहा जाएगा कि 'केबीसी' की सफलता से प्रेरित होकर दस का दम, छप्पर फाड़ के, सच का सामना जैसे कई क्विज़ शो आए पर 'कौन बनेगा करोड़पति' के आस-पास भी ये न पहुँचे। दिलचस्प बात यह है कि निर्देशक सिद्धार्थ बसु एक्टिंग भी करते हैं। उनका जलवा दर्शक ‘मद्रास कैफ़े’ और ‘बॉम्बे वेलवेट’ जैसी फिल्मों में देख चुके हैं। बसु ने नाटकों में भी काम किया है। बसु ने अपने जीवन के शुरूआती दिनों में काफी संघर्ष देखा, जिसमें नाटकों में कार्य करने के अतिरिक्त, डॉक्यूमेंट्री बनाना और होटल तक में काम करना शामिल रहा है। 'कौन बनेगा करोड़पति' सिद्धार्थ बसु का ही वह विजन है, जिसने टेलीविजन की दुनिया में एक नया इतिहास रचने में सफलता पाई है। केबीसी का 10वां सीजन तो अमिताभ बच्चन ही होस्ट कर रहे हैं! लेकिन, केबीसी के आगे आने वाले सीजन अमिताभ होस्ट करते हैं या फिर सलमान खान, ये देखना दिलचस्प होगा!
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मनोज कुमार जैसे किरदारों में अब अक्षय!

- एकता शर्मा

  रसों तक सिनेमा के परदे पर मनोज कुमार की पहचान देशभक्त हीरो के रूप में बनी रही! यहाँ तक कि एक किरदार के कारण उनका नाम ही भारत कुमार पड़ गया था। जब भी किसी देशभक्ति वाली फिल्म का नाम दिमाग में आता है, तो जहन में सबसे पहले मनोज कुमार का ही चेहरा उभरता है। मनोज कुमार ने पूरब और पश्चिम, उपकार, रोटी, कपडा और मकान और 'क्रांति' जैसी कई देशभक्ति भरी फ़िल्में दी। उनके अभिनय से हटने के बाद बरसों तक उनकी ये कुर्सी खाली रही! लेकिन, जिस तरह अक्षय कुमार की सामाजिक सरोकार और देशभक्ति वाली फ़िल्में आ रही है, उन्हें अगला मनोज कुमार समझा जा सकता है। 
   बॉलीवुड के 'खिलाडी़' अक्षय कुमार ने देशहित की कहानियों वाली कई फिल्में की हैं। इन्हीं में से एक 'अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों' है। ये अक्षय की पहली फिल्म थी, जिसमें वे सैनिक के किरदार में थे। अनिल शर्मा के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था। 'हॉलीडे : ए सोल्जर इज नेवर ऑफ ड्यूटी' भी ऐसी ही फिल्म थी, जिसका निर्देशन एआर मुरूगादास ने किया था। फिल्म में अक्षय कुमार ने एक जिम्मेदार सैनिक अधिकारी का रोल किया था। फिल्म में अक्षय सेना से छुट्टी पर घर लौटते हैं, फिर भी एक मिशन को पूरा करने की धुन में लगे रहते हैं। 
    नीरज पांडेय के निर्देशन में बनी 'बेबी' में अक्षय कुमार भारतीय खुफिया एजेंसी 'रॉ' के एजेंट की भूमिका में नजर आए हैं। इसमें अक्षय एक छोटी से टीम लेकर आतंकवाद के खिलाफ निकलते हैं। टीनू सुरेश देसाई के निर्देशन में बनी 'रुस्तम' में अक्षय कुमार एक ईमानदार नेवी ऑफिसर के रोल में थे। वे अपने ही विभाग में चल रहे एक बड़े घोटाले को उजागर करते हैं। लेकिन, इसके लिए उन्हें अपनी पत्नी की इज्जत को दांव पर लगाना पड़ता है। 
  ऐसी ही एक देशभक्ति वाली फिल्म थी 'एयरलिफ्ट' जिसमें अक्षय देशभक्ति तो दिखाते हैं, पर दुबई में रहने वाले एक बिजनेसमैन बनकर। ये फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है। इसमें कुवैत के गृहयुद्ध में फंसे भारतीय अप्रवासियों को वहां से बाहर निकालते हैं। अक्षय की 'गब्बर इज बैक' भी देशभक्ति वाली फिल्म थी। अक्षय इस फिल्म में लोगों को उनकी जिम्मेदारी याद दिलाने और सरकारी खामियों को उजागर करते हैं। वे भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता की मदद भी करते हैं। 
  'टॉयलेट : एक प्रेमकथा' भी अक्षय की सामाजिक सरोकार वाली फिल्म है। इसके अलावा 'पैडमेन' में उन्होंने ऐसे व्यक्ति का किरदार निभाया है, जो महिलाओं की सेनेटरी पेड की समस्या को आधार बनाकर बदलाव की बात करता है। अक्षय कुमार की हल ही में रिलीज हुई फिल्म 'गोल्ड' आजाद भारत को पहला ओलंपिक गोल्ड मैडल जिताने का सपना देखने वाले हॉकी खिलाड़ी की कहानी है। इस फिल्म में उस समय के नेशनल हॉकी कोच तपन दास की जिंदगी से प्रेरित किरदार निभाते नजर आते हैं। ज्यादा याद किया जाए तो सैनिक, खट्टा-मीठा, जॉली एलएलबी को भी इसी लिस्ट में रखा जा सकता है।  
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20 साल बाद फिर थिरकी रेखा!


- एकता शर्मा 

   फ़िल्मी दुनिया में रेखा ऐसी अभिनेत्री रही हैं, जिनका जलवा आज भी बरक़रार है! पिछले दिनों थाईलैंड में हुए आइफा अवॉर्ड में रेखा ने भले ही खत्म हो गया हो, पर 20 साल बाद स्टेज पर उतरी रेखा ने जिस तरह डांस किया, वो उनके चाहने वालों के दिल में उतर गया! जिसने भी वो कार्यक्रम टीवी पर देखा, वो अचंभित था कि क्या 63 साल की रेखा में आज भी इतना ग्लैमर बरक़रार है? लोग रेखा की स्टेज परफॉर्मेंस को भूल नहीं पा रहे हैं। जिस उम्र में अभिनेत्रियां रिटायर हो जाती हैं, उस उम्र में रेखा ने स्टेज पर जलवे बिखेरकर देखने वालों के दिलों में हलचल मचा दी। आईफा अवॉर्ड समारोह में रेखा हल्के गुलाबी रंग के अनारकली सूट में अपने अंदाज में कई गानों पर नाचीं। वे 20 मिनट तक स्टेज पर थिरकीं। 
   फिल्मों से जुड़े हर अवॉर्ड समारोह में कांजीवरम साड़ी में सजी धजी दिखाई देने वाली रेखा का नाम ही रेखा है, वरना उनकी जिंदगी बहुत ज्यादा टेढ़ी-मेढ़ी रही। रेखा ने अपनी जिंदगी में काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। बचपन है ही एक ज्योतिष ने भविष्यवाणी कर दी थी कि उनके ग्रहों का मेल ऐसा है कि उन्हें कभी पति सुख कभी नहीं मिलेगा। यही कारण है कि रेखा की जिंदगी में कई पुरुष आएं, लेकिन ये साथ लम्बे समय नहीं चला। रेखा ने ज्यादातर संबंधों को स्वीकारा नहीं, लेकिन गॉसिप कॉलम में वे हमेशा सुर्खियां बनी रहीं। उन्हें सच्चा प्यार नहीं मिला, जिसकी उन्हें तलाश थी। रेखा ने विवाह भी किया, लेकिन उसका अंत त्रासद रहा। 
  रेखा आज भी खूबसूरत दिखती हैं। बल्कि, ढलती उम्र के साथ वे ज्यादा निखरती जा रही है। रेखा का जीने का बेफिक्र अंदाज और जिंदादिली अब भी बरकरार है। उनके निजी जीवन को लेकर बुहत कुछ कहा जाता रहा है। लेकिन, रेखा ने इन सबकी कोई परवाह नहीं की। रेखा के पति की मौत हो चुकी है, फिर भी उनकी मांग में सिंदूर दिखाई देता है। इस पर न जाने कितनी अटकलें लगाई जाती रहीं, लेकिन रेखा ने इन सबकी परवाह नहीं की! फ़िल्मी दुनिया की अब तक का सबसे बड़ी गॉसिप है अभिनेता अमिताभ बच्चन और रेखा का रिश्ता! अफवाहें तो यहां तक रहीं कि जिस दिन ऋषि कपूर और नीतू सिंह की शादी थी, उसी दिन रेखा और अमिताभ बच्चन ने भी शादी कर ली थी। ऋषि कपूर और नीतू सिंह की रिसेप्शन पार्टी में भी रेखा सिंदूर और मंगलसूत्र पहनकर पहुंचीं थीं। ये भी खबरें थी कि रेखा ने विनोद मेहरा से 1973 में शादी की थी। लेकिन, उन्होंने विनोद मेहरा को महज शुभचिंतक बताया और किसी भी अन्य संबंधों से इनकार किया। रेखा की घोषित शादी मुकेश अग्रवाल से 1990 में हुई थी। लेकिन, यह शादी ज्यादा नहीं चली और साल 1991 में अग्रवाल ने आत्महत्या कर ली थी।
   तमिलनाडु में जन्मी रेखा का पूरा नाम भानुरेखा गणेशन है। कहा जाता है रेखा ने जब फिल्मी जीवन की शुरुआत की थी तब वो काफी मोटी थी। उस समय किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि सांवली और मोटी सी लड़की आगे जाकर बॉलीवुड की अभिनेत्री बनेगी। रेखा ने सिर्फ व्यावसायिक फिल्में की, बल्कि कलात्मक फिल्मों से भी उन्होंने अपने अभिनय की छाप छोड़ी! रेखा 1966 में फिल्मों में आ गईं थी। उनकी पहली फिल्म तेलुगु में 'रंगुला रत्नम' थी, जिसमें उन्होंने एक बाल कलाकार की भूमिका निभाई थी। लेकिन, हिंदी सिनेमा में उनकी शुरुआत 1970 में आई फिल्म 'सावन भादों' से हुई। रेखा ने बॉलीवुड में एक लंबा समय गुजारा! इतने समय में बॉलीवुड अभिनेत्रियों की दो- तीन पीढियों की न जाने कितनी हीरोइनें आईं चर्चित हुईं और फिर भुला दी गईं। लेकिन, रेखा बिना थके लबें समय तक बॉलीवुड में सक्रिय रही हैं। अब उन्होंने आईफा के स्टेज पर जलवा बिखेरकर एक बार अपने चाहने वालों के दिल की धड़कने बढ़ा दी। 
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देश को सलाम करती ये फिल्में!


- एकता शर्मा 

  बॉलीवुड में देश की आजादी पर कई फिल्में बनी है। जिसे काफी पसंद किया गया! आजादी के संघर्ष की इन फिल्मों में कई ऐसी फिल्में हैं, जो हमारे अंदर देशभक्ति का जज्बा जगाती हैं। कहते हैं देशभक्ति का नशा जिसके सर चढ़ जाए सारी दुनिया उसके कदमों में होती है। बॉलीवुड की देशभक्ति से भरी फ़िल्में इस नशे को और भी बढ़ा देती हैं। देशभक्ति पर बनी ये फ़िल्में जब भी परदे पर आई, दर्शकों के रोंगटे खड़े हो गए! कहा जाता है कि 1962 में आई फिल्म ‘हकीक़त’ में जब दर्शकों ने परदे पर भारतीय सैनिकों को युद्ध करते देखते तो खड़े होकर सैल्यूट करने लगते थे। जब सिनेमाघरों में देशभक्ति उतरती है तो दर्शकों के अन्दर भी देशभक्ति का जज्बा लहरें मारने लगता है।
  बॉलीवुड में 1952 में बनी एक ऐसी ही फिल्म बनी थी 'आनंदमठ' जिसमें राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम' को भी पहली बार दिखाया गया। यह फिल्म बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास 'आनंदमठ' पर ही आधारित थी। फिल्म में भारत भूषण, गीता बाली, पृथ्वीराज कपूर, प्रदीप कुमार थे। फिल्म में देश के शूरवीरों के बलिदान को दिखाया गया है। फिल्म में 18वीं शताब्दी में अंग्रेजी हुकूमत से लड़े गए क्रांतिकारियों की कहानी थी। इसमें वंदे मातरम भी गाया गया था।  
  1965 में बनी 'शहीद' में मनोज कुमार थे। फिल्म की कहानी 1916 से शुरू होती है, जब भगतसिंह के चाचा अजितसिंह को ब्रिटिश शासन के खिलाफ बगावत करने के जुर्म में पुलिस गिरफ्तार करके ले जाती है। बड़े होकर भगतसिंह भी अपने चाचा के नक्शे कदमों पर चलने लगते हैं और साइमन कमीशन के खिलाफ हो रहे आंदोलन में शामिल हो जाते हैं। मनोज कुमार ने भगतसिंह के किरदार को परदे पर उतारा था। इस फिल्म की कहानी भगत के साथी बटुकेशवर दत्त ने लिखी थी। और यह संयोग ही था कि जिस वर्ष में फिल्म रिलीज होने वाली थी उसी वर्ष बटुकेशवर की मौत हो गई। 1962 में आई 'हकीकत' ऐसे सैनिकों की टुकड़ी के बारें में थी, जो लद्दाख में भारत और पाकिस्तान के बीच छिड़ी जंग का हिस्सा है। 
   1997 में रिलीज हुई जेपी दत्ता की फिल्म 'बॉर्डर' भारत और पाकिस्तान के बीच लोंगोवाल में हुई जंग पर आधारित थी। इस फिल्म की खासियत ये थी कि इसमें जंग को सच्चाई के साथ दिखाया गया था। इसके अलावा फिल्म में जवानों की निजी जिंदगी की भी कहानियां थी। कोई जवान सरहद पर अपने परिवार को किस हालत में छोड़कर पर आता है! किसी का परिवार उसका इंतजार करता रहता है, कभी छुट्टी मिलने के बावजूद जवान  घर नहीं जा पाते! 'बॉर्डर' को देशभक्ति पर बनी एक बेहतरीन फिल्म माना जाता है। बैन किंग्सले की 'गांधी' देशभक्ति वाली फिल्म तो नहीं थी, पर इस फिल्म ने महात्मा गांधी के जीवन की सच्चाई को दर्शकों के सामने जरूर लाया था। इसमें गांधीजी से जुड़े हर पहलू को पर्दे पर दर्शाने की कोशिश की गई थी। फिल्म ने 8 ऑस्कर अवॉर्ड्स जीते थे।
  फरहान अख्तर की 2004 में आई फिल्म 'लक्ष्य' 1999 के कारगिल युद्ध के संघर्ष की ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित काल्पनिक कहानी थी। रितिक लेफ्टिनेंट करण शेरगिल की भूमिका में थे। वे अपनी टीम का नेतृत्व करके आतंकवादियों पर विजय पाते हैं। 'मंगल पांडे : द राइजिंग' क्रांतिकारी मंगल पांडे की जिंदगी पर बनी फिल्म थी, जिन्होंने 1857 में ब्रिटिश अफसरों का विद्रोह किया था। माना जाता है कि मंगल पांडे ने ही सबसे पहले अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की जंग का आगाज किया था। 1967 में आई फिल्म मनोज कुमार की फिल्म ‘उपकार’ भी देशभक्ति से ओतप्रोत फिल्म थी। इस फिल्म को बनाने का मकसद ‘जय जवान, जय किसान’ के नारे को बुलंद करना था। फिल्म की कहानी राधा (कामिनी कौशल) और उसके दो बेटों भारत (मनोज कुमार) और पूरन (प्रेम चोपड़ा) के बीच जमीन के बंटवारे पर आधारित थी। ये तो वे चंद फ़िल्में हैं, जो उँगलियों पर गिनी गईं! बीते सौ से ज्यादा सालों में हिंदी फिल्मों के परदे पर ऐसी कई फ़िल्में बनी, जिन्होंने लोगों की देशभक्ति को झकझोर दिया था। अभी भी इन फिल्मों का दौर ख़त्म नहीं हुआ, वक़्त के साथ इनकी कहानियाँ बदली हैं, पर इनकी भावनाओं में कोई फर्क नहीं आया!  
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बॉलीवुड फिल्मों पर बैन से पाकिस्तान को मिलता चैन!


- एकता शर्मा

   पाकिस्तान कितनी भी कोशिश कर ले, पर वो किसी भी मामले में भारत से मुकाबला नहीं कर सकता! फिल्मों के मामले में वो हमेशा ही बॉलीवुड से मात खाता आया है। लेकिन, पाकिस्तानी दर्शक भारत की हिंदी फिल्मों के दीवाने हैं। यही कारण है कि वहाँ हिंदी फ़िल्में तो अच्छा कारोबार करती हैं, पर उनके सामने पाकिस्तानी फ़िल्में ढेर हो जाती हैं। पाकिस्तानी फिल्मकारों की मुसीबत ये है कि न तो वे बॉलीवुड के स्तर की फ़िल्में बना पाते हैं और न पाकिस्तानी दर्शकों को हिंदी फ़िल्में देखने से रोक पाते हैं! यही कारण है कि पाकिस्तान सरकार किसी न किसी बहाने हिंदी फिल्मों की रिलीज पर बैन लगा देती है। 

   ताजा मामला ऋषि कपूर और तापसी पन्नू की फिल्म 'मुल्क' को पाकिस्तान में बैन कर देने का हुआ! वहाँ के सेंसर बोर्ड ने 'मुल्क' को पाक के सिनेमाघरों में रिलीज करने से रोक लगा दी। इस फिल्‍म में भारतीय मुसलमानों पर उठने वाले हर सवाल को सलीके से उठाया गया है। यह पहला मौका नहीं है, जब पाकिस्‍तान ने ऐसी हरकत की हो! ईद पर रिलीज हुई सलमान खान की फिल्म 'रेस-3' को भी पाकिस्तान में बैन किया गया था। करीना कपूर, सोनम कपूर, स्‍वरा भास्‍कर और शिखा तल्‍सानिया की फिल्म 'वीरे दी वेडिंग' को भी पाकिस्तान सेंसर बोर्ड ने बैन कर दिया था। शादी करके पाकिस्‍तान जाकर भारतीय सेना के लिए जासूसी करने वाली लड़की की कहानी वाली आलिया भट्ट की फिल्‍म 'राजी' को भी इसी साल बैन किया जा चुका है। तापसी पन्नू की ही 'नाम शबाना', शाहिद कपूर की फिल्म 'उड़ता पंजाब' और आमिर खान की फिल्म 'दंगल' जैसी कई फिल्मों को पाकिस्तान सरकार अपने रिलीज होने से रोक चुकी है।   
  'रेस-3' को बैन करने के पीछे पाकिस्तान सरकार का तर्क ये है कि ईद का मौका पाकिस्तानी फिल्मों की दुनिया के कारोबार के लिए अच्छा मौका होता है। यदि ईद पर बॉलीवुड की फिल्म रिलीज की जाएगी, तो पाकिस्तानी फिल्मों का कारोबार ठप हो जाएगा। सलमान खान को लेकर पाकिस्तान में भारी क्रेज है। इससे पहले जब भी सलमान की कोई फिल्म वहाँ रिलीज हुई, पाकिस्तानी फिल्मों ने पानी नहीं माँगा! ईद के मौके पर वहाँ रिलीज होने वाली पाकिस्तानी फिल्मों में माहिरा खान की 'वजूद' के अलावा दो और फिल्में 'सात दिन मोहब्बत इन' और 'आजादी' रिलीज हुई थी। 
   'मुल्क' की रिलीज को बैन किए जाने पर फिल्म के डायरेक्टर अनुभव सिन्हा ने ट्वीट करके पाकिस्तान के लोगों से एक लेटर भी शेयर किया। इस लंबे लेटर की शुरुआत में उन्होंने लिखा कि प्यारे पाकिस्तानियों, कुछ हारे हुए लोगों द्वारा एंटीनेशनल कहे जाने से बिना डरे मैं आपको प्यारे पाकिस्तानियों कहने का जोखिम उठा रहा हूँ। मुझे परवाह नहीं है। मैंने हाल ही में 'मुल्क' नामक एक फिल्म बनाई है, दुर्भाग्यवश आप कानूनी रूप से इसे देखने में सक्षम नहीं होंगे! क्योंकि, आपके देश में सेंसर बोर्ड ने इसे देखने से प्रतिबंधित कर दिया है। अनुभव ने आगे लिखा कि देर सवेर यह फिल्म आप तक पहुंचेगी। आप इसे जरुर देखें और मुझे बताएं कि पाकिस्तान के सेंसर बोर्ड ने इसे क्यों बैन किया? मैं चाहता यही हूं कि आप इसे सिनेमाघरों में जाकर देखें, लेकिन अगर ऐसा नहीं हो पा रहा है तो आप इसे गैर कानूनी तरीके से ही देखिए! हालांकि, हमारी टीम पायरेसी के विरोध में है लेकिन अगर यही एक तरीका है तो यही सही! 
   अनुभव सिन्हा का अनुमान बिल्कुल सही निकला होगा! 'मुल्क' को अब तक लाखों पाकिस्तानी देख भी चुके होंगे। क्योंकि, पाकिस्तान में बॉलीवुड फिल्मों को चोरी से देखने का चलन काफी पुराना है। बॉलीवुड की जिस भी फिल्म को वहाँ बैन किया जाता है, उस फिल्म का पाइरेटेड वर्जन पाकिस्तान में करोड़ों का कारोबार करता है। क्योंकि, कोई भी सरकार दर्शकों की भावनाओं को तो कभी बैन सकती! 'रिफ्यूजी' फिल्म का एक गीत याद कीजिए 'पंछी. नदिया, पवन के झौंके, कोई सरहद ना इन्हें रोके।' पाकिस्तान की सरहद जिन्हें नहीं रोक सकती, उस लिस्ट में बॉलीवुड की फिल्मों का नाम लिखना भी गलत नहीं होगा!     
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प्रियंका से सलमान की नाराजी गलत नहीं!


- एकता शर्मा 
  बॉलीवुड में हीरोइनों को कभी भी हीरो की तरह तवज्जो नहीं मिलती! इतिहास गवाह है कि यहाँ हीरो के कंधे पर ही पूरी फिल्म का दारोमदार टिका होता है। नरगिस की 'मदर इंडिया' जैसी इक्का-दुक्का फिल्मों को छोड़ दिया जाए, तो अधिकांश फ़िल्में हीरो प्रधान ही होती हैं। सिर्फ फ़िल्में ही नहीं, फिल्मों का कारोबार भी हीरो के नाम और उसके काम से ही चलता है। ऐसे में यदि कोई हीरोइन अपनी शादी के लिए किसी बड़े हीरो के प्रोडक्शन हाउस की फिल्म छोड़ दे, तो हीरो का गुस्से में तिलमिलाना सही भी लगता है।
   ये प्रसंग कोई कहानी नहीं, बल्कि हाल ही में घटी एक सही घटना है। मामला है प्रियंका चोपड़ा के सलमान खान की फिल्म 'भारत' के छोड़ने का! कहा जा रहा है कि प्रियंका ने ये फिल्म अक्टूबर में हॉलीवुड सिंगर निक जोंस से अपनी शादी के लिए छोड़ दी! पर एक कहानी यह भी सामने आई है कि हॉलीवुड में अपनी प्रसिद्धी के घमंड से चूर प्रियंका चोपड़ा 'भारत' के पोस्टर में दिशा पाटनी के साथ नहीं दिखना चाहती थी। क्योंकि, वे नहीं चाहती थी कि उनके साथ को छोटी एक्ट्रेस पोस्टर शेयर करे। उन्होंने इस फिल्म की शुरुआत में ही शर्त रखी थी कि वे फिल्म के लिए अपने सोलो पोस्टर चाहती हैं। सलमान खान की तरह फिल्म में उनके भी कई लुक दिखाई देने वाले थे। ऐसा नहीं है कि प्रियंका पहली बार किसी को-स्टार के साथ पोस्टर में दिखाई देती! पहले भी वे 'अंदाज' और 'बाजीराव मस्तानी' के पोस्टर्स में भी वह अपनी को-स्टार्स के साथ पोस्टर में नजर आ चुकी है।
  प्रियंका चोपड़ा ने शूटिंग शुरू होने के कुछ दिन पहले ही जिस तरह से सलमान खान की इस बड़ी फिल्म से किनारा किया है, उसके पूरी बॉलीवुड की झकझोर दिया! इसलिए भी कि सलमान आज जिस मुकाम पर है, वहाँ कोई हीरोइन उसे नाराज करने का जोखिम मोल लेना नहीं चाहेगी। लेकिन, प्रियंका ने सलमान से जिस तरह किनारा किया है, वो बॉलीवुड में अपनी तरह की पहली घटना है। चौंकाने वाली बात ये है कि प्रियंका ने सलमान की 'भारत' जिस कारण से छोड़ने का एलान किया, लेकिन, वे सोनाली बोस की फिल्म 'द स्काई इज पिंक' से अलग नहीं हुई! वे इस फिल्म की शूटिंग भी शुरु कर देंगी। इस फिल्म में प्रियंका के साथ फरहान अख्तर और जायरा बसीम हैं।
  'भारत' छोड़ने को लेकर प्रियंका तो कुछ नहीं बोली, पर डायरेक्टर अली अब्बास जफर ने अपने ट्वीट के जरिए ये इशारा जरूर दिया था कि शादी के कारण प्रियंका ने 'भारत' फिल्म छोड़ दी है दी है। प्रियंका की इस हरकत पर सलमान की नाराजी की बड़ी वजह ये है कि ये फिल्म सलमान खान की बहन अलवीरा के पति अतुल अग्निहोत्री की कंपनी 'रील लाइफ प्रोडक्शंस' कर रही है। जबकि प्रियंका ने 'भारत' की दो दिन की शूटिंग भी कर ली। बॉलीवुड में किसी फिल्म को इस तरह छोड़ देना गैरजिम्मेदाराना रवैया माना जाता है। प्रियंका की आखिरी हिंदी फिल्म प्रकाश झा की 'गंगाजल' थी, जो 2016 में रिलीज हुई थी। इस साल की शुरुआत में उन्होंने ट्वीट कर जानकारी दी कि वह जल्द ही बॉलीवुड में वापसी करने जा रही हैं। फिल्म साइन करने के बाद प्रियंका ने ट्वीट किया था कि मैं 'भारत' का हिस्सा बनकर बहुत खुश हूँ। 
  प्रियंका और अमेरिकी सिंगर और सांगराइटर निक जोंस हाल ही में प्रियंका के साथ मुंबई आए थे। इस मुंबई यात्रा के बाद प्रियंका और निक का रिश्ता और मजबूत हो गया था। पिछले काफी समय से प्रियंका और निक की शादी करने की खबरें आ रही थी, जो अब तय हो गई। प्रियंका और निक सगाई पहले ही कर चुके हैं। लेकिन, शादी से पहले प्रियंका ने सलमान से पंगा लेकर अच्छा नहीं किया। सलमान को चाहने वाले प्रियंका के इस बर्ताव की तुलना उनकी फिल्म 'एतराज' के किरदार से कर रहे हैं। जिसमें उन्होंने एक स्वार्थी महिला की भूमिका निभाई थी, जो अपने मतलब के लिए किसी को भी धोखा देने में देर नहीं करती! 'भारत' फिल्म को छोड़ना भी प्रियंका का इसी तरह का किस्सा तो है! 
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हिट फिल्म का कोई फार्मूला नहीं!


- एकता शर्मा 

  श्रीदेवी की बेटी और शाहिद कपूर के भाई की बहुप्रतीक्षित फिल्म 'धड़क' की बॉक्स ऑफिस रिपोर्ट उम्मीद के अनुकूल नहीं है। मराठी की सबसे सफल फिल्म मानी जाने वाली 'सैराट' का हिंदी संस्करण कही जाने वाली 'धड़क' के बारे में ये मायूस करने वाली खबर है! लेकिन, ऐसा क्यों हुआ, इसका जवाब किसी के पास नहीं है! जिस कहानी पर मराठी में बनी फिल्म आलटाइम हिट हुई, उसी को हिंदी के दर्शकों ने नकार दिया। 'धड़क' ने इस सवाल को फिर जिंदा कर दिया कि आखिर कोई फिल्म हिट कैसे और क्यों होती है? एक फिल्म हिट होती है और दूसरी फ्लॉप! इंडस्ट्री में हिट और फ्लॉप का अभी तक न तो कोई निर्धारित फार्मूला है और न कोई इसका कारण ही समझ पाया! 
  फिल्मकारों के लिए दर्शकों की पसंद और नापसंद आज भी एक अबूझ पहेली है। फिल्म की कहानी अच्छी हो तो क्या फिल्म चलेगी, क्या गीत-संगीत से दर्शक आकर्षित होते हैं, संवाद की फिल्म में क्या अहमियत है या फिर जमकर एक्शन हो तो दर्शक खिंचे चले आएंगे? यदि किसी फिल्म में ये सब हों तो क्या फिल्म के हिट होने की गारंटी है? लेकिन, किसी के पास कोई जवाब नहीं है! फिल्म जानकारों का कहना है कि दर्शकों का बड़ा वर्ग संवादों को ज्यादा महत्व नहीं देता। उनका तर्क है कि फिल्म सिर्फ संवादों से नहीं चलती, कई और कारणों से अच्छी बनती हैं। अगर निर्देशन की बात की जाए तो शांताराम, सोहराब मोदी, केदार शर्मा, नितिन बोस, राज कपूर, चेतन आनंद, विमल राय, ऋषिकेश मुखर्जी, यश चोपड़ा और सुभाष घई जैसे कई बड़े निर्देशकों की फिल्में पिटी हैं। 1950 के दशक में माना जाता था कि मधुर गीत-संगीत फिल्म को चलाता है। लेकिन, ऐसी दर्जनों मिसाल हैं जब फिल्म का गीत-संगीत लोकप्रिय हो गया, पर फिल्म नहीं चली। 
  बड़े सितारों के भरोसे फिल्म को खींचने की कवायद भी कई बार मात खा चुकी है। इंडस्ट्री में ऐसा कोई स्टार नहीं है, जिसके करियर में कोई फ्लॉप न हो! अमिताभ बच्चन और शाहरुख़ खान से लगाकर राजेंद्र कुमार तक की फ़िल्में फ्लॉप हो चुकी है, जिसे जुबली कुमार कहा जाता था। वास्तव में किसी फिल्म की सफलता के कई कारण होते हैं। उनका समानुपातिक तालमेल ही फिल्म को सफल बनाता है। कहानी तो किसी भी फिल्म की जान होती है और उसमें रंग भरती है कसी हुई पटकथा। फिर नंबर आता है गीत-संगीत का। इन सबके बाद निर्देशक की रचनात्मकता से संपूर्ण फिल्म बनती है। लेकिन, ऐसा व्यवस्थित तालमेल कम ही बनता है। यही कारण है कि कभी गीत फिल्म का सहारा बन जाते हैं तो कभी एक्शन से नैया पार लगती है। लेकिन, कभी किसी एक्टर की संवाद अदायगी फिल्म की पहचान बन जाए तो वह सालों तक उसकी याद ताजा रखता है।
 आजादी से पहले तो कुछ फिल्में सिर्फ ओजपूर्ण संवादों की वजह से ही चर्चित हुईं। सोहराब मोदी की ‘पुकार’ व ‘सिकंदर’ इसकी मिसाल हैं। इन फिल्मों के संवादों में गजब की आग थी। केदार शर्मा की ‘चित्रलेखा’ में पाप और पुण्य की व्याख्या करने वाले संवाद चुटीले थे। बीआर चोपड़ा की ‘कानून’ व ‘इंसाफ का तराजू’ में संवादों से ही कानून व्यवस्था की बखिया उधेड़ी गई थी। लेकिन कई फिल्मों की पहचान ही उनका एक संवाद बन गई। 'शोले' और 'मुग़ल-ए-आजम' को आज संवादों की वजह से ही याद किया जाता है। लेकिन, इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि 'सैराट' क्यों चली और 'धड़क' को दर्शकों ने क्यों नकार दिया?  
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