Sunday 24 March 2019

पड़ौसी से रिश्तों का फिल्मी अध्याय भी खट्टा-मीठा!


- एकता शर्मा

  पड़ौसी देश से खट्टे-मीठे रिश्तों पर फ़िल्में बनाने का जुनून हमारे देश में बरसों से चल रहा है। ये एक ऐसा फ़िल्मी फार्मूला है, जो कभी फेल नहीं होता! पाकिस्तान से रिश्तों पर दो तरह की फिल्में बनती रही हैं। कुछ फिल्में दोनों देशों के बीच हुए युद्धों और आतंकवाद पर बनी तो दूसरी तरह की फ़िल्में वे थीं जो देश के बंटवारे और इसके बाद के उपजे हालात को लेकर बनी! कुछ फिल्मकारों ने कटुता और आतंकवाद के बीच प्रेम का तड़का भी लगाया। वीरजारा, बजरंगी भाईजान और सदियां ऐसी ही फ़िल्में हैं। इन सभी फिल्मों में देश विभाजन के बाद भारत-पाकिस्तान में रह रहे लोगों की कसक को दिखाया गया। इन फिल्मों में यह भी दिखाने का प्रयास किया गया है कि दोनों देशों की संस्कृति एक है। अवाम के दिलों में भी भारत के प्रति प्रेम है, लेकिन दोनों देशों के बीच खिंची सरहद की लकीर और राजनीति लोगों को मिलने नहीं दे रही।
    देश विभाजन की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों की सूची काफी लंबी है। इनमें प्रमुख फिल्में हैं गदर, पिंजर, ट्रेन टू पाकिस्तान, सदियां, उरी, राजी, सरबजीत और ऐसी दर्जनों ऐसी फिल्में जिनकी शूटिंग अमृतसर, तरनतारन, गुरदासपुर और पठानकोट जिलों में हुई है। ये सभी फिल्में देश विभाजन के बाद उपजी त्रासदी और सामरिक संबंधों पर आधारित थी। इनमें फिल्मकारों ने दर्शकों को यह बताने या दिखाने की कोशिश की है, कि भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद दोनों देशों के रिश्तों में कितनी तल्खी है। इन दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं हैं। जो भावनाएं इन दिनों हालात से निर्मित हुई है, सिनेमा हाल के अंदर इस तरह के हालात हमारी फिल्मों ने कई बार निर्मित किए हैं। भारत-पाक को लेकर बनी फिल्मों को भी सफलता की गारंटी माना जाता है। मई 2018 में रीलिज हुई फिल्म 'राजी' हो या हाल में प्रदर्शित 'उरी!' इन सभी फिल्मों ने सिनेमाघरों में दर्शकों को अंत तक बांधे रखा और अच्छी कमाई की।
     'गदर' और 'ट्रेन टू पाकिस्तान' दोनों फिल्मों दिखाया गया है कि किस तरह रेलगाडियों पर लोगों की लाशें पाकिस्तान से भारत आ रही हैं। कल तक एक दूसरे का दुखदर्द साझा करने वाले हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे खून के प्यासे हो जाते हैं। 'पिंजर' में लोगों ने देखा कि देश विभाजन के दौरान एक लड़की का धर्म जबरन बदला जाता है। कुछ ऐसा ही 'रिफ्यूजी' में भी दिखाने की कोशिश की गई थी। अभिषेक बच्चन द्वारा अभीनित इस फिल्म की भी ज्यादातर शूटिंग पंजाब में ही हुई है। अब हाल ही में सलमान खान द्वारा अभिनित फिल्म 'भारत' की शूटिंग भी लुधियाना और अमृतसर में हुई है। इस फिल्म में भी भारत विभाजन के दृश्यों को फिल्माया गया है।
  इससे पहले भी भारत में पाकिस्तानी फिल्मों का प्रदर्शन होता रहा है। 2008 में पाकिस्तानी निर्देशक शोएब मंसूर की फिल्म 'खुदा' के लिए आई थी। यह पिछले 43 सालों में शायद पहली फिल्म थी, जो सरहद के बाहर भारत में प्रदर्शित की गई थी। इसके बाद महरीन जब्बार की फिल्म 'राम चंदर पाकिस्तानी' आई थी। यही नहीं सन 2011 में मंसूर की फिल्म 'बोल' को भी भारत में रीलिज किया गया, जिसे अच्छी सफलता मिली थी। भारत में प्रदर्शित इन सभी फिल्मों में भारत-पाक सरहद पर बसे गांवों के लोगों की परेशानियों को दिखाया गया, जिसमें वे गलती से सीमा पार कर भारत में दाखिल हो जाते हैं। इन फिल्मों में यह भी दिखाने का प्रयास किया गया है कि दोनों देशों के लोगों की संस्कृति (भारत और पाकिस्तान के पंजाब) और बोलचाल एक जैसी है। बीएसएफ से लेकर जेलों में बंद पाकिस्तानी कैदियों, जो रास्ता भटककर भारत आ जाते हैं के साथ मधुर व्यवहार को दिखाया गया है। इन सभी फिल्मों ने भारत में अच्छी कमाई की है। इसके साथ भारतीय फिल्म 'बजरंगी भाईजान' और 'वीरजारा' ने भी पाक में अच्छी कमाई की थी।
   अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों, लक्ष्य, बार्डर और एलओसी कारगिल, फैंटम, हिंदुस्तान की कसम (नई और पुरानी) और 'द हीरो' सबसे सफल फ़िल्में हैं, जो भारत-पाक के रिश्तों पर बनी है! इसके अलावा भारतीय जासूसों जिन्होंने देश की सुरक्षा के लिए लंबे समय तक पाकिस्तान में जासूसी की, उनके जीवन पर आधारित कुछ चुनिंदा फिल्मों की बात करें, तो सलमान खान की फिल्म एक था टाईगर, टाईगर अभी जिंदा और अब पिछले साल रीलिज हुई आलिया भट्ट अभिनित 'राजी' थी। यदि फिल्मों की कमाई की बात करें तो गदर ने तब 77 करोड़, कश्मीर में पकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर बनी फिल्म 'द हीरो' ने 26 करोड़ और हरेंद्र सिक्थ के उपन्यास 'कालिंग सहमत' पर बनी फिल्म 'राजी' जिसमें दिखाया गया है कि 1971 के भारत-पाक जंग में एक युवा लडकी जो भारत की कवर एजेंट थी और देश के लिए किस तरह से पाकिस्तान में जासूसी करती है। इस फिल्म दोनों देशों के संबंधों पर फिल्मों की सफलता सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 122 करोड की कमाई की थी जो बॉक्स ऑफिस पर सफल मानी गई। 
   भारतीय सेना के पराक्रम पर बनी 'गाजी' ने भी खासी कमाई की, जबकि इन दिनों प्रदर्शित 'उरी' ने तो भारतीय लोगों में एक नया जज्बा भर दिया। वह सर्जिकल स्ट्राइक से इतने प्रभावित हुए, मानों उन्हीं ने जाकर यह काम अंजाम किया हो। कुछ लोग यह मानते हैं कि इस फिल्म से खीजकर ही पुलवामा पर आतंकवादी हमला हुआ है। हाल ही में जो 'एयर स्ट्राइक' और अभिनंदन की वापसी हुई है उससे भी कई फिल्मकारों को आगामी फिल्म का मसाला मिल गया होगा। 
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Thursday 21 March 2019

कई अनोखे रंग हैं फ़िल्मी होली के!


- एकता शर्मा

  फिल्मों में होली गीत अपना ख़ास स्थान रखते हैं। मस्ती से सराबोर इस त्यौहार के ब्लैक एंड व्हाइट से रंगीन फिल्मों तक में कई रंग दिखाए जाते रहे हैं। फ़िल्मी होली में जहाँ शरारत है, छेड़छाड़ है, प्यार है, दोस्ती है और यहां तक कि विरह भी होली के रंगों में झलकता दिखाई देता है। होली ने फिल्मों में खूब रंग बिखेरे हैं। होली का हुड़दंग जहाँ प्रेमी-प्रेमिका को करीब आने का मौका देता है, वहीं फिल्मों में इस रंगीन त्यौहार का हर अवसर के लिए प्रयोग किया गया है। हर सिचुएशन के लिए होली गीतों का भी प्रयोग किया गया है। फिल्मों में होली के नाच-गाने कहानी का सिक्वेंस आगे बढ़ाने में तो कारगर होते ही हैं। अगर कभी गाने पटकथा का हिस्सा नहीं भी होते थे, तब भी मनोरंजन के नजरिए से उन्हें फिल्म में शामिल किया जाता रहा है। फिल्मों के बहुत से यादगार गीत और सीन हैं, जो होली का नाम आते ही आँखों के सामने उभर आते हैं। ऐसे गीत भी हैं जो होली का पर्याय बन गए! कुछ ऐसे भी हैं, जो प्रेम संदेश देते हैं। लेकिन, सुनील दत्त की फिल्म 'जख्मी' का होली गीत 'आई रे आई से होली तूफ़ान दिल में लिए ...' बदले की भावना का संदेश देता है।  
   फिल्मी होली हीरो-हीरोइन की नजदीकी दिखाने का सबसे सशक्त माध्यम रहा है। फिल्मीं प्रेमियों के लिए होली का दिन ज़माने की नजरों से बचकर नजदीक आने का बहाना रहा है। इसी फॉर्मूले पर हिंदी फिल्मों में सबसे ज्यादा होली गीत फिल्माए गए हैं। 'कोहिनूर' का गीत 'तन रंग लो जी आज मन रंग लो ...' में दिलीप कुमार और मीना कुमारी प्यार का इजहार करते हैं। 'कामचोर' में राकेश रोशन और जयाप्रदा पर गीत फिल्माया गया 'मल दे गुलाल मोहे ...' भी ऐसा ही रोमांटिक गाना है। लेकिन, इन सारे गीतों में सबसे ज्यादा रोमांटिक है 'सिलसिला' का 'रंग बरसे भीगे चुनर वाली ...' है। फिल्म में इस गाने के बाद ही कहानी नया मोड़ लेती है। फ़िल्मी होली में नोकझोंक का जिक्र किया जाए तो ऐसे होली गीतों में 'मदर इंडिया' के 'होली आई रे कन्हाई ...' को भी शामिल किया जाता है, जिसमें फिल्म के नायक राजेन्द्र कुमार और सुनील दत्त गांव की लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करते है। वी शांताराम की फिल्म 'नवरंग' में नायिका संध्या 'जा रे हट नटखट ...' से नायक को होली के बहाने छेड़छाड़ करने से रोकती है। वहीं, नायक उसे परेशान करने की कोशिश करते हुए कहता है 'आज मीठी लगे है तेरी गाली रे'। 'शोले' फिल्म में धर्मेंद्र-हेमा मालिनी की नोक-झोंक 'होली के दिन दिल मिल जाते हैं ...' में दिखाई दी थी। इसी गीत में अमिताभ और जया भादुड़ी के अनकहे प्यार की भावनाएं भी दिखाई दी थी! 
  कई फिल्में ऐसी हैं, जिनमें होली का अलग ही स्थितियों में प्रयोग किया गया है। इनमें राजेश खन्ना, आशा पारेख की 'कटी पतंग' हैं, जिसमें सामाजिक बाध्यताओं के चलते विधवा की रंगों से दूरी और राजेश खन्ना के उसके प्रति प्रेम की भावनाएं 'आज न छोड़ेंगे बस हमजोली...' में नजर आती हैं। शाहरुख-जूही की 'डर' में एकतरफा प्यार में पागल शाहरुख जूही के साथ होली खेलने की अपनी कसम को पूरा करने के लिए रंगों से अपना चेहरा ढंककर उसके घर बेधड़क पहुंच जाता हैं। इनसे अलग मीनाक्षी शेषाद्री व ऋषि कपूर की 'दामिनी' में होली के दिन नायिका ऐसा हादसा देख लेती है, जो उसके जीवन में तूफान ले आता है। होली का फायदा उठाकर उसके ससुराल के कुछ लोग नौकरानी के साथ सामूहिक बलात्कार करते हैं। इसके बाद दामिनी (मीनाक्षी शेषाद्री) नौकरानी को न्याय दिलाने के लिए अपने परिवार के लोगों के खिलाफ खड़ी हो जाती है। 
  फिल्मों में होली के बहाने कहानी को नया रंग देने का चलन अब कम हो गया है। एकाध ही फिल्म दिखाई देती है जिसमें होली सिक्वेंस को फिल्माया गया हो! अमिताभ-हेमा की पारिवारिक फिल्म 'बागवान' में होली का गीत नजर आया था, उसके बाद कोई जोरदार होली गीत नहीं दिखा! अमिताभ बच्चन ने 'होली खेले रघुबीरा ...' से अपना 'रंग बरसे ...'वाला जादू फिर बिखेरा था। अमिताभ की ही फिल्म 'वक्त' में भी होली के रंग दिखाई दिए, पर वे छींटे ही रह गए! फिल्मों में होली को प्रेम की वेदना और विरह के माध्यम से भी दर्शाया गया है। वहीदा रहमान पर 'गाइड' में फिल्माया गया गीत 'आई होली आई, सब रंग लाई, बिन तेरे होली भी न भाई ...' दरअसल एक तड़फ थी। फिल्मों में होली को इसलिए भी पहचान मिली कि इस दिन दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं। 'शोले' में 'होली के दिन दिल मिल जाते हैं...' में भी गीतकार ने यही सब दर्शाया! सुभाष घई की 'सौदागर' में होली पर कोई गीत नहीं था, लेकिन होली के दिन राजकुमार और दिलीप कुमार फिर से दोस्त बन जाते हैं, जो एक-दूसरे के जॉनी दुश्मन थे। 
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Saturday 16 March 2019

तूफ़ान सा उठा और थम क्यों गया 'मी टू' का शोर?


- एकता शर्मा 
    कुछ दिनों पहले देश में 'मी-टू' का बवाल मचा था। बॉलीवुड में रोज ऐसी खबरें सुनाई देने लगी थीं। लेकिन, अब ये शोर थम गया! लगता है जैसे कहीं कुछ हुआ ही नहीं! देखा जाए तो बाॅलीवुड के लिए यह व्यवहार नई बात नहीं है। अबकी बार यह 'मी-टू' के नए कलेवर के साथ सामने आया है। इससे पहले काॅस्टिंग काउच के नाम से ऐसी घटनाएं गाहे-बगाहे सामने आती रहती थी। 'मी-टू' के तूफान को सुनामी बनाने में मीडिया का भी बड़ा योगदान है। सारे टीवी चैनलों ने जिनके पास सुर्खियां बटोरने वाले विषयों का अकाल पड़ा था, उन्होंने बात का बतंगड बनाकर इसे राष्ट्रीय मसला बना दिया। जबकि, बच्चा-बच्चा जानता है कि फिल्मी दुनिया में ये घृणित परम्परा उतनी ही पुरानी है, जितनी यह इंडस्ट्री।
 जिन लोगों ने भी 'मी-टू' से जुड़ी खबरें पढ़ी या सुनी होगी, उन्होंने एक बात नोट की होगी कि इसमें आरोप तो नामी-गिरामी लोगों पर लगे! लेकिन, आरोप लगाने वाली हस्तियां उतनी नामी गिरामी नहीं हैं। कई अभिनेत्रियों का नाम तो लोगों ने पहली बार 'मी-टू' के वाक़ये में ही सुना होगा। सवाल उठता है कि क्या फिल्मी दुनिया में इस तरह की घटनाएं केवल छोटी अभिनेत्रियों के साथ ही होती है? हकीकत तो यह है कि तमाम बड़ी अभिनेत्रियां भी कभी न कभी ऐसे दुर्व्यवहार की शिकार हो चुकी है। लेकिन, इस मामले में वे अभी तक खामोश हैं। मजे की बात है कि जिन लोगों ने तथाकथित रूप से उनके साथ 'मी-टू' कैटेगरी का सलूक किया गया है। यदि कंगना रनौत को छोड़ दिया जाए, तो 'मी-टू' पर किसी बड़ी अभिनेत्री की आप-बीती सामने नहीं आई। जबकि, हेमा मालिनी, रेखा, जीनत अमान और माधुरी दीक्षित भी इस तरह की हरकतों का शिकार हो चुकी हैं।
    यासीर उस्मान ने अपनी पुस्तक 'रेखा : अनटोल्ड स्टोरी' में लिखा है कि फिल्म 'अनजान सफर' के समय रेखा की उम्र केवल 15 साल की थी। फिल्म के निर्देशक राजा नवाथे और नायक विश्वजीत ने एक चाल चली। निर्देशक चाहते थे कि रेखा को बिना बताए विश्वजीत उसे अपनी तरफ खींचकर जकड़ ले और उसके होंठों पर जबरदस्त चुंबन कर ले। कैमरा चालूू होती ही विश्वजीत ने रेखा को जोर से अपनी और खींचा और पूरे पांच मिनट तक उसके होंठों को चूमते रहे। इस हरकत से रेखा रोती रही और पूरी यूनिट बेशरमों की तरह ठहाके लगाते रही। देखा जाए तो यह एक तरह से यौन शोषण का ही मामला है। लेकिन, रेखा यह सब सहकर आज भी खामोश हैं।
  'जानेमन' के सेट पर नशे में धुत्त प्रेमनाथ ने हेमामालिनी को बूरी तरह से जकड़ लिया था। हेमा मज़बूरी में चिल्लाती रही, तब देवआनंद ने आगे बढ़कर उसे प्रेमनाथ के शिकंजे से छुडवाया था। ये वैसी ही घटना है, जिसे आज की चंद अभिनेत्रियां 'मी-टू' का नाम दे रही है। इस मामले में हेमा मालिनी आज भी चुप है। जीनत अमान की हालत तो और भी खराब हुई थी। कंगना रनौत आज शादी के वादे और उसके बाद जिस शोषण की बात कर रही है, वह घटना जीनत की जिंदगी में बुरे सपने की तरह घट चुकी है। रितिक रोशन के ही ससुर संजय खान ने जीनत अमान से निकाह करने के बाद उसका शोषण किया और 'अब्दुल्ला' के सेट पर उसे बुरी तरह पीटा भी। लेकिन, आज क्या जीनत अमान उस घटना का जिक्र करेगी? 
  देश के रईस खानदान की बहू और पूर्व अभिनेत्री टीना मुनीम के गाल पर चोट का एक निशान देखा जा सकता है। यह निशान उन्हें राजेश खन्ना ने दिया था। क्या टीना अपने आपको 'मी-टू का शिकार कहलाने का साहस दिखा सकती है? यह ठीक है किसी भी क्षेत्र में महिलाओं का यौन शोषण नहीं होना चाहिए। लेकिन, यदि ऐसा कुछ हुआ है तो आवाज उठना चाहिए! लेकिन, ये मुहिम भी फ़िल्मी ट्रेंड की तरह उभरकर ठंडी हो गई! क्या वास्तव में ऐसा कुछ हुआ भी था या नहीं!

अभिनंदन की वापसी पर झूमा बॉलीवुड!

- एकता शर्मा 
  भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान पाकिस्तान द्वारा युद्ध बंदी बना लिए गए थे। बाद में भारत के दबाव और जिनेवा संधि के तहत उन्हें करीब 60 घंटे बाद रिहा कर दिया गया। लेकिन, अभिनंदन ने पाकिस्तान की सीमा में पैराशूट से गिरने के बाद जिस बहादुरी और जोश का प्रदर्शन किया, उससे पूरे देश के साथ बॉलीवुड भी ख़ुशी मना रहा है। जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने के पायलट अभिनंदन वर्धमान की रिहाई का आदेश दिया था, उसके बाद से ही ट्विटर पर जमकर रिएक्शन आए। अमिताभ बच्चन, शाहरुख़ खान, रणवीर सिंह और अतिया शेट्टी जैसे सितारों ने इस खबर का स्वागत किया। भारतीय वायु सेना के पायलट अभिनंदन वर्धमान को लेकर सब अपने तरीके से राय दे रहे हैं। 
  अभिनंदन की वापसी से अमिताभ बच्चन बहुत खुश हैं। उन्होंने ट्वीट कर लिखा ‘एक सच्चा सिपाही सिर्फ इसलिए नहीं लड़ता है, क्योंकि वह अपने सामने खड़े शख्स ने नफरत करता है। वह इसलिए लड़ता है, क्योंकि जो उसके पीछे खड़ा है वह उससे प्यार करता है। अभिनंदन स्वागतम, सुस्वागतम्।’ शाहरुख खान ने ट्वीट में अभिनंदन की जमकर तारीफ की और लिखा 'इससे बेहतर अहसास कुछ और नहीं हो सकता कि आप घर लौट रहे हैं। आपकी बहादुरी ही हमें और मजबूत बनाती है।' शाहरुख खान ने तिरंगा भी अपने ट्विटर एकाउंट पर शेयर किया है। रणवीर सिंह ने लिखा 'घर वापसी पर आपका स्वागत है अभिनंदन! आपकी वीरता सर आंखों पर! पूरे राष्ट्र की प्रेरणा. जय हिंद।' अभिनंदन की भारत वापसी पर परिणीति चोपड़ा ने लिखा 'हर किसी को हीरोइज्न क्या होता है, आपसे सीखना चाहिए। पूरे राष्ट्र को आप और आपकी बहादुरी पर फक्र है।' बॉलीवुड एक्ट्रेस और सुनील शेट्टी की बेटी अतिया शेट्टी ने ट्वीट किया है 'घर वापसी पर स्वागत है अभिनंदन वर्तमान। हम आपके इतने आभारी हैं जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। आपकी बहादुरी और स्वार्थ रहित सेवा के लिए शुक्रिया। आप हमारे लिए एक हीरो से भी ज्यादा हैं, आप हमारी उम्मीद हैं। जय हिंद। 
  भजन गायक अनूप जलोटा ने भी ट्वीट किया। उन्होंने भारतीय वायु सेना के इस पायलट को अनोखा गिफ्ट देने की बात कही! अनूप जलोटा ने अभिनंदन की रिहाई के आदेश के बाद खुशी में लिखा 'दृढ़ विश्वास था कि हमारे देश के वीर अभिनंदन सकुशल भारत लौटेंगे और उनकी अनुमति से मैं उनके सम्मान में मुंबई में संगीत के सितारों के साथ एक सम्मान समारोह का आयोजन करना चाहूंगा। यदि यह संभव हो सका,तो मेरे जीवन को सार्थकता मिलेगी और मैं अपने आप को बहुत सौभाग्यशाली मानूंगा।' उन्होंने इस तरह अपनी तरफ से उपहार देने की घोषणा की है। जलोटा कुछ समय पहले 'बिग बॉस' में आए थे और खूब सुर्खियों में भी रहे थे। लेकिन, अभिनंदन को इस तरह अपनी ओर सम्मान देने की उनकी कोशिश की सोशल मीडिया पर खूब तारीफ हो रही है और उनका ये ट्वीट भी वायरल भी हो रहा है। 
  विनिता नंदा ने भावुक होकर कहा कि जब से खबर सुनी मैं टेलीविजन स्क्रीन से नजरें नहीं हटा सकी! क्योंकि, मैं उन्हें देखना चाहती थी आज वे भारत वापस आ रहे हैं। मैं शांति के लिए प्रार्थना कर रही हूं और कामना कर रही हूं कि ईश्वर हमें हिंसामुक्त ब्रह्मांड प्रदान करें। इस समय मैं कुछ और नहीं सोच सकती। बॉलीवुड एक्ट्रेस स्वरा भास्कर ने भी पाकिस्तान के इस फैसले पर ट्वीट किया। स्वरा ने अभिनंदन को भारत भेजने के पाकिस्तान के फैसले का स्वागत किया।  
  करन जौहर ने ट्वीट करते हुए लिखा ‘हम आपकी बहादुरी को सलाम करते हैं। वेलकम होम अभिनंदन।’ इमरान हाशमी ने लिखा ‘भारत में हर कोई आपका इंतजार कर रहा है सर ... हमें आप पर गर्व है। भारत के वीर बेटे को हमारी तरफ से सैल्यूट। हमारी तरफ से सलाम।’ अनुपम खेर ने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा ‘प्यारे अभिनंदन! आपका भारत की धरती पर एक बार फिर से अभिनंदन है। हम सबको समय समय पर साहस, धैर्य, विश्वास, गर्व और गौरव वाली जीती जागती मिसाल की जरूरत पड़ती है। विपरीत परिस्थितियों में आपके व्यक्तित्व ने हमें वो दिखाया। उसके लिए 130 करोड़ भारतवासियों की तरफ़ से धन्यवाद। जीते रहो।’ वहीं अभिनेता अनुपम खेर ने एक शानदार कविता शेयर करते हुए अभिनंदन की वापसी पर उनका स्वागत किया.
   अजय देवगन ने अभिनंदन की वतन वापसी की तस्वीरें शेयर कर लिखा 'आपके घर में आपका स्वागत है असली फाइटर हीरो, विंग कमांडर अभिनंदन।' वहीं शाहिद कपूर ने लिखा 'अपने रियल हीरो को घर वापस आते देखकर मैं खुद को भाग्यशाली महसूस कर रहा हूँ! जय हिंद।' अभिषेक बच्चन ने कुछ इस तरह खुशी जाहिर की। उन्होंने ट्वीट कर लिखा 'घर में आपका स्वागल है हीरो.. अभिनंदन!'
  एक्ट्रेस अमृता राव लगातार टीवी पर अभिनंदन की वापसी का नजारा देखती रही! उन्होंने ट्विटर पर तस्वीर शेयर करते हुए लिखा 'भारत के असली हीरो वापस लौट रहे हैं, घर में आपका स्वागत है! मैं खुश और राहत महसूस कर रही हूं।' मनोज वाजपेई ने लिखा 'अभिनंदन को अभिनंदन .. हमारे बहादुर सैनिक को सलाम।' ए आर रहमान ने लिखा 'घर वापसी पर आपका स्वागत है अभिनंदन .. सिद्धार्थ वशिष्ट के साथ हमारी प्रार्थनाएं हैं! 
जय हिंद!'  
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Saturday 2 March 2019

सिनेमा का अर्थशास्त्र और दर्शक का नजरिया, दोनों बदल गए!


- एकता शर्मा

   हिंदी सिनेमा का एक ऐसा भी वक़्त था, जब सिनेमा घरों में महीनों तक फ़िल्में चलती थीं! 6 महीने चलती तो चली तो 'सिल्वर जुबली' और सालभर चले तो 'गोल्डन जुबली' मनती थी। सिनेमा के दर्शक एक ही फिल्म को कई-कई बार देखा करते थे! फर्स्ट डे, फर्स्ट शो देखने का एक अलग ही जुनून होता था। सिनेमा घरों की टिकट खिड़कियों पर मारा-मारी तक होती थी! लोग देर रात से ही टिकट की लाइन में लग जाया करते थे। नई फ़िल्में और उनकी कहानियाँ लोगों  बातचीत के विषय हुआ करते थे। अब ये सब गुजरे दिन की बात हो गई! सिंगल परदे वाले थियेटर की जगह मल्टीप्लेक्स ने ली! लेकिन, फिल्म देखने वाले आज भी वही हैं।   
  भारत में फ़िल्में बनाना और देखना दोनों ही जुनून रहा है। फिल्म रिलीज के पहले दिन ब्लैक में टिकट बिकना आम बात है। इसलिए कि इसके पीछे भी सबसे पहले फिल्म देखने का जुनून ही है। दादासाहेब फाल्के ने जब 1913 में भारत में पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ बनाई थी, तो उन्हें पत्नी के गहने तक बेचने पड़े थे। राज कपूर ने 'मेरा नाम जोकर' बनाई थी, तब उनका सबकुछ कर्ज में डूब गया था। लेकिन, अब ऐसे किस्से सुनाई नहीं देते, क्योंकि फ़िल्में ऐसा बिजनेस नहीं रह गया कि फिल्मकार की सारी पूंजी डूब जाए! भारतीय फिल्म उद्योग तेजी से आगे बढ़ रहा है। 2020 तक इस उद्योग के 23,800 करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है।   
    बदलते दौर में अब वो स्थिति नहीं है कि फ्लॉप फिल्म के निर्माता को कर्ज अदा करने के लिए अपना बंगला और गाड़ी तक गंवाना पड़ती हो! वास्तविकता तो ये है कि अब कोई फिल्म फ्लॉप ही नहीं होती। फिल्मकारों ने कमाई के कई तरीके खोज लिए गए हैं। फ्लॉप फिल्में भी आसानी से अपनी लागत निकालने में कामयाब हो जाती हैं। फ़िल्मी सितारों के नाम पर टिकी सिनेमा की दुनिया के अर्थशास्त्र को कॉरपोरेट कंपनियों ने अपनी पूंजी के सहारे मुनाफा कमाने के फॉर्मूले से जोड़ लिया है। बड़ी फ़िल्म के ढाई-तीन हजार प्रिंट रिलीज किए जाते हैं, जो प्रचार के दम पर तीन दिन में ही लागत के साथ मुनाफा निकाल लेती हैं। यशराज फिल्म की 'ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान' इसका सबसे ताजा उदाहरण है! बुरी तरह फ्लॉप हुई इस फिल्म ने प्रचार से ऐसा आभामंडल बनाया कि शुरू के तीन दिन में ही कमाई कर ली। 
   आज सिनेमा का अर्थशास्त्र पूरी तरह मुनाफे के सिद्धांत पर चलने लगा है। अब तो एनआरआई ने इस उद्योग में पैसा लगाना शुरू कर दिया। 2001 में जब सरकार ने फिल्मों को उद्योग का दर्जा दिया, इसके बाद से फिल्म उद्योग का पूरी तरह कॉरपोरेटीकरण हो गया! फिल्मों के निर्माण से इसके डिस्ट्रीब्यूशन तक के तरीके में इतना बदलाव आया कि हिट और फ्लॉप फिल्म की परिभाषा ही बदल गई। फिल्म के रिलीज से पहले ही सेटेलाइट राइट्स, अब्रॉड, म्यूजिक, वीडियो के लिए अलग-अलग राइट्स बेचे जाते हैं। इससे प्रोडक्शन हाऊस को जबरदस्त आय होती है और एक तरह से रिलीज से पहले ही फिल्म की लागत निकल आती है। देखा जाए तो यूटीवी मोशन पिक्चर्स, इरॉस, रिलायंस इंटरनेटमेंट, एडलैब्स, वायकॉम-18, बालाजी टेलीफिल्म्स और यशराज फिल्म्स जैसे प्रोडक्शन हाउसों ने सिनेमा कारोबार का पूरा खेल बदल दिया है। इनका फिल्मों में पैसा लगाने का तरीका भी अलग है। अब ये फिल्म नहीं ‘पोर्टफोलियो मैनजमेंट’ करते हैं। 
   मल्टीप्लेक्स ने भी फिल्म देखने के तरीके बदल दिए। यही कारण है कि कम बजट की फ़िल्में भी दर्शकों तक पहुंच रही है और अच्छा खासा बिजनेस कर रही है। सिर्फ कुछ अलग सी कहानी के दम पर ही निर्माता लागत से तीन से चार गुना कमाई करने लगे हैं। ये फिल्मों के बदले अर्थशास्त्र का उदाहरण हैं। ये पूरा परिवेश ही धीरे-धीरे बदल रहा है। इसीलिए समझा आने लगा है कि किसी के अच्छे दिन आए हों या नहीं, पर सिनेमा के तो अच्छे दिन आ ही गए! लेकिन, ये कितने दिन रहेंगे, कहा नहीं जा सकता! क्योंकि, जिस तरह लोग फ़िल्में और वेब सिरीज देखने के लिए मोबाइल फोन की छोटी सी स्क्रीन में सिमटते जा रहे हैं, कब मानसिकता बदल जाए कहा नहीं जा सकता!  
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परदे पर देशप्रेम की भावना का उभार!


- एकता शर्मा

   ब भी देश पर कोई संकट जैसे हालात बनते हैं, देशभक्ति की भावना उभरती है। हाल ही में कश्मीर में हुए आतंकवादी हमले के बाद पूरे देश में राष्ट्रभक्ति का ज्वार आया है। ये पहली बार नहीं है, इस तरह की भावना हर बार देखी गई है। पिछले दिनों ऊरी सेक्टर में हुए आतंकवादी हमले के बाद भी हाल ही में फिल्म बनी है। जिन फ़िल्मी विषयों ने दर्शकों में भावनाओं के रंग भरे, उनमें से एक है देशभक्ति! ब्लैक एंड व्हाइट से लगाकर आज मल्टीप्लेक्स फिल्मों के ज़माने तक देशभक्ति सबसे जीवंत विषय की तरह उपयोग किया जाता रहा है। आजादी के बाद बनी फिल्मों में आजादी का संघर्ष और स्वतंत्रता सैनानियों पर केंद्रित फ़िल्में ज्यादा बनती रही! इन फिल्मों ने ही नई पीढ़ी को आजादी के नायकों की कुर्बानी का अहसास कराया! साथ ही यह संदेश भी दिया कि जीवन में मातृभूमि सर्वोपरि है। लेकिन, अब देशभक्ति को कई नए संदर्भों में परोसा जा रहा है। फिर वो बॉर्डर हो, लक्ष्य हो, एलओसी कारगिल, रंग दे बसंती हो या कुछ साल पहले आई रिचर्ड एटिनबरो की 'गाँधी!' इन सभी फिल्मों की कहानी का केंद्रीय तत्व देशभक्ति ही रहा!
    देशभक्ति जैसे विषय पर आधारित सबसे ज्यादा फ़िल्में 1940 से 1960 के बीच बनी! भारत छोड़ो आंदोलन पर 1940 में ‘शहीद’ आई। इस फिल्म के गीत ‘वतन की राह पे वतन के नौजवां शहीद हों’ को मोहम्मद रफी और खान मस्ताना की आवाज ने अमर कर दिया! आज भी जब कोई इस गीत को सुनता है तो उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं! 1950 में बनी ‘समाधि’ में सुभाषचंद्र बोस के आह्वान पर अशोक कुमार को उनकी सेना में शामिल होते दर्शाया गया! अशोक कुमार सिंगापुर पहुंचते हैं, जहां सामने ब्रिटिश सेना की तरफ से उनका बड़ा भाई उनसे युद्ध करता है। 1951 में बनी ‘आंदोलन’ में बापू का सत्याग्रह, साइमन कमीशन, वल्लभभाई पटेल का बारदोली आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन दिखाया गया था। 1952 में ‘आनंदमठ’ आई, जिसमें लता मंगेशकर का गाया ‘वन्दे मातरम’ लोकप्रिय हुआ।1953 में सोहराब मोदी ने ‘झांसी की रानी’ बनाकर स्वतंत्रता संग्राम को जीवंत कर दिया था। 
  बॉलीवुड में देश भक्ति की फिल्मों का दूसरा दौर आया 1990 और 2000 के दशक में! इस दौरान देश भक्ति को लेकर कई फिल्में बनी! हिंदी फिल्म उद्योग ने इस दौरान बॉर्डर, एलओसी कारगिल, द लीजेंड ऑफ भगत सिंह और द राइजिंग : बेस्ड ऑफ मंगल पांडेय जैसी कई फिल्में बनाईं! इन सभी की कहानी आजादी के सैनानियों और युद्धों पर आधारित थीं। इन फिल्मों की सफलता से समाज में आ रहे उस बदलाव का पता चलता है कि दर्शक अपने आसपास के सामाजिक विषयों को नए संदर्भों में देखना चाहता हैं। जिस तरह से नई पीढ़ी का सोच बदल रहा है, देशभक्ति दर्शाने के तरीकों में बदलाव आना लाजिमी है। जेपी दत्ता ने 'बॉर्डर' में जो देश भक्ति दिखाई वो तत्कालीन परिस्थितियों में इसलिए जरुरी थी कि उस दौर में पाकिस्तान सबसे कट्टर दुश्मन था। फिर एक देशभक्ति 'रंग दे बसंती' वाली थी, जिसमें युवाओं में भरे देश प्रेम की भावना थी। फिल्म में युवा एक भ्रष्ट नेता को मार देते हैं। आशय ये कि समय के साथ-साथ फिल्मों में देशभक्ति का एक नया रूप सामने आने लगा है, जरुरत है इसे दर्शाने की! 
 आमिर खान ने 2005 में देश के 1857 के पहले स्वतंत्रता विद्रोह और इसके नायक मंगल पांडे पर फिल्म बनाई। इंटरनेट की दुनिया में जी रही नई पीढ़ी ने फिल्म देखकर ही जाना कि मंगल पांडे ने कैसे ब्रिटिश फौज से मुकाबला किया और खुद को खत्म करने की कोशिश की? इस पीढ़ी में से ज्यादातर लोग शायद फिल्म से पहले मंगल पांडे को इस रूप में जानते भी नहीं होंगे। आमिर की ‘मंगल पांडे’ ने ही युवाओं को अहसास कराया कि जिस आजादी में वे उन्मुक्तता से सांस ले रहे हैं, वह उन्हें मंगल पांडे जैसे लोगों से ही मिली है। आजादी के संघर्ष में शहीद होने वाले रिश्तों में तो हमारे अपने नहीं होंगे! लेकिन, इनकी अहमियत को महसूस कराने में फिल्मों की भूमिका अहम थी!  
   देशभक्ति पर बनी फ़िल्में अपने प्रासंगिक विषय के कारण ही पसंद नहीं की जाती! इसके किरदार भी फिल्मों की तरह दर्शकों के दिल में बस जाते हैं। चाहे वह 'शहीद' और 'पूरब पश्चिम' में मनोज कुमार हों, 'हिन्दुस्तान की कसम' में राजकुमार हों, 'सरफरोश' में आमिर खान हों, लक्ष्य' में रितिक रोशन हो या 'लीजेंड ऑफ भगत सिंह' में अजय देवगन! इस तरह की फिल्मों ने युवाओं में सेना में शामिल होने का जज्बा भी सिखाया! 1970 मनोज कुमार ने 'पूरब और पश्चिम' बनाकर जो देशभक्ति दिखाई, उसके बाद मनोज कुमार को दर्शक इसी रूप में पहचानने लगे! अपनी इसी पहचान के बाद मनोज कुमार ने उपकार, क्रांति, रोटी कपडा और मकान जैसी कई हिट फिल्में दीं। इसके बाद ही उन्हें `मिस्टर भारत` कहकर पुकारा जाने लगा! अभी भी देशभक्ति का छोंक लगाकर फ़िल्में बनाने का दौर खत्म नहीं हुआ! चक दे इंडिया, रंग दे बसंती, लक्ष्य और ऊरी इसी श्रेणी की फ़िल्में हैं। देशप्रेम की भावना के साथ ये एक सफल फ़िल्मी विषय भी है।
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