Saturday 15 June 2019

परदे के आगे और परदे के पीछे पिता-पुत्र की जोड़ियां!

- एकता शर्मा 

    बॉलीवुड में पिता-पुत्र की जोड़ी वाली फिल्में परदे पर हमेशा से ही धमाल मचाती रही है। फिल्म इंडस्ट्री का इतिहास देखें तो पचास के दशक से ही पिता-पुत्र की जोड़ी फिल्मों में पसंद की जाती रही है। वर्ष 1951 में प्रदर्शित फिल्म 'आवारा' में पृथ्वीराज कपूर और राज कपूर ने अपने अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। 'आवारा' के बाद राज कपूर ने अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के साथ वर्ष 1971 में प्रदर्शित 'कल आज और कल' में भी काम किया था। इस फिल्म में राज कपूर के पुत्र रणधीर कपूर ने भी  अभिनय किया था।  
     फिल्म इंडस्ट्री में सुनील दत्त ने जब भी अपने पुत्र संजय दत्त के साथ अभिनय किया तब फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुई। सुनील दत्त और संजय दत्त की सुपरहिट जोड़ी सबसे पहले फिल्म 'रॉकी' में एक साथ नजर आई थी। इसके बाद 'मुन्नाभाई एमबीबीएस' में भी दर्शकों ने दोनों को देखा! खास तौर पर फिल्म का वह दृश्य जिसमें संजय दत्त अपने पिता सुनील दत्त के गले लगते हैं, दर्शकों में काफी लोकप्रिय हुआ। 'यमला पगला दीवाना' सिरीज की तीन फिल्मों में बॉलीवुड के ही-मैन धर्मेन्द्र अपने पुत्र सनी देओल और बॉबी देओल के साथ धमाल मचाते नज़र आए। उसके पहले धर्मेन्द्र ने अपने पुत्रों के साथ 'अपने' में काम किया था। धर्मेन्द्र ने 80 और 90 के दशक में अपने पुत्र सनी देओल के साथ 'सल्तनत' और 'क्षत्रिय' जैसी फिल्मों में काम कर दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया। इस पिता-पुत्र की जोड़ी का बॉलीवुड में अनोखा रिकॉर्ड भी है। धर्मेंद्र और सनी देओल ने अब तक 10 फिल्में साथ की हैं। इस जोड़ी की अंतिम फिल्म 'यमला पगला दीवाना फिर से' थी। दोनों की जोड़ी की पहली बार 1984 में आई थी। ये दोनों पिछले 34 सालों से परदे पर हैं।
   परदे पर बेहतरीन कैमिस्ट्री के नजरिए से देखा जाए तो पिता-पुत्र की जोड़ियों में अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन की जोड़ी निर्विवाद रूप से सर्वश्रेष्ठ कही जा सकती हैं। ये जोड़ी जब भी परदे पर साथ नजर आई तो उसे दर्शकों की जबरदस्त सराहना मिली है। रामगोपाल वर्मा इस जोड़ी को सबसे पहले फिल्म 'सरकार' में एक साथ लेकर आए। पिता-पुत्र की इस जोड़ी ने फिल्म भी में पिता और पुत्र की ही भूमिका निभाई और दर्शकों की कसौटी पर खरा उतरकर फिल्म को सुपरहिट बना दिया। इसके बाद यह जोड़ी 'बंटी और बबली', 'सरकार राज', 'कभी अलविदा ना कहना' और 'पा' जैसी सुपरहिट फिल्मों में एक साथ नज़र आई।फिल्म इंडस्ट्री के जुबली कुमार के नाम से मशहूर राजेन्द्र कुमार ने अपने पुत्र कुमार गौरव के साथ सुपरहिट फिल्म 'लव स्टोरी' और 'फूल' में काम किया है।
फ़िल्मी परिवारों में पिता-पुत्र    बाॅलीवुड के पहले परिवार के रूप में चर्चित कपूर परिवार में बाप-बेटों के बीच मजबूत रिश्तों की कहानी बहुत लोकप्रिय है। पृथ्वीराज कपूर पहले नायक थे जिनका पारिश्रमिक एक लाख रूपए प्रति फिल्म होता था। उन्होंने तमाम सफलता के बावजूद राजकपूर को एक क्लैपर बाॅय बनाकर फिल्मी दुनिया में प्रस्तुत किया, ताकि वह अपने बूते पर अपना फिल्मी कैरियर बना सके। शम्मी कपूर और शशि कपूर के साथ भी उन्होंने यही किया। आगे चलकर राजकपूर ने अपने बेटों को फिल्मों में ब्रेक जरूर दिया, लेकिन उन्हें लांच करने में कोई मदद नहीं की। कपूर परिवार में बाप-बेटों का यह रिश्ता आज भी बरकरार है, जिसे ऋषि कपूर और रणबीर कपूर निभा रहे हैं।
  चाहे बाप बेटों के बीच यह संबंध हरिवंशराय बच्चन और अमिताभ बच्चन या अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन के बीच हो। दोनों ही संबंधों में पिता ने अपने बच्चों के लिए त्याग और बलिदान ही नहीं संघर्ष भी किया है। बचपन में अमिताभ बहुत बीमार थे और उनकी तबियत ठीक नहीं हो रही थी। तब हरिवंशराय बच्चन एक कवि सम्मेलन में इंदौर आए थे। उन्हें तेजी बच्चन ने अमिताभ की बिगडती हालत की जानकारी दी। तब हरिवंशराय बच्चन ने अपने इष्टदेव हनुमान से प्रार्थना की कि यदि अमिताभ अच्छे हो गए तो वह शराब पीना छोड देंगे। उनकी प्रार्थना का असर यह हुआ कि अमिताभ अच्छे हो गए। उस दिन के बाद मधुशाला के रचियता बच्चन जी ने शराब को छुआ तक नही। अमिताभ भी कुछ ऐसे ही हैं। अपने बेटे अभिषेक को स्थापित करने के लिए उन्होंने सब कुछ दांव पर लगा दिया। बेटे ही नहीं अपनी बेटी श्वेता के साथ भी उनकी गजब की      बांडिंग है।
  यश चोपडा को बॉलीवुड का बादशाह कहा जाता है। पहली फिल्म से अंतिम फिल्म को हिट करवाने का माद्दा रखने वाले यश चोपड़ा और उनके बेटे आदित्य चोपड़ा के बीच भी सफलता का यह संबंध जारी रहा। जब तक यश चोपड़ा जीवित थे, आदित्य ने उनके साथ एक से बढकर एक सफल फिल्म बनाई! उनके बाद भी अच्छी फिल्में बनाने की परम्परा को बरकरार रखा है। 
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थैंक यू पापा!

- एकता शर्मा   
 दादी, पापा और मैं हम तीनों ही फिल्मों के बहुत शौकीन रहे हैं! ये बात करीब दो दशक पुरानी है। मैं ग्रेजुएशन के बाद आगे पत्रकारिता का कोर्स करना चाहती थी, लेकिन दादी मेरी जल्दी शादी कराने की जिद किए बैठी थी! उन्होंने एक लड़का भी तय कर दिया था! मेरा विरोध लड़के को लेकर नहीं था! मैं बस आगे कुछ करना चाहती थी! लेकिन, संस्कारों और पारिवारिक माहौल में खुलकर अपनी बात रखने की हिम्मत मुझमे नहीं थी। पापा 5 भाई और 2 बहनों में सबसे बड़े थे और में उनकी पहली बेटी! ऐसे में मेरा कोई भी कदम परिवार के बच्चों के भविष्य पर असर डाल सकता था! पापा और मुझे दोनों को ही फिल्मों का बहुत शौक रहा है! पापा तो एक्टर बनना चाहते थे और उनका जुनून इस हद तक था कि उन्होंने मुंबई जाकर 'शोले' के गब्बर सिंह वाले रोल के लिए ऑडीशन भी दिया था।
     पापा के इसी शौक ने मेरा जीवन बदल दिया! मेरी शादी न करने की इच्छा जाहिर करने की हिम्मत नहीं थी! मेरी इस इच्छा को शायद पापा ने समझ लिया था! उस दौरान आमिर खान और पूजा भट्ट की फिल्म 'दिल है कि मानता नहीं' रिलीज हुई थी! दादी समेत हमारा पूरा परिवार फिल्म देखने गया था! फिल्म के क्लाइमेक्स में पूजा भट्ट के पिता बने अनुपम खेर बेटी की पसंद को समझकर उसे बार-बार कहते हैं 'भाग जा बेटी, भाग जा! अभी भी समय है मैं सब संभाल लूंगा!' मेरे साथ तो ऐसी कोई बात थी नहीं! मैं तो अपने पत्रकारिता की पढाई के लिए शादी टालना चाहती थी! इसका रास्ता पापा ने फिल्म देखकर निकाला! घर आकर उन्होंने मजाक मजाक में अनुपम खैर की नक़ल करके वही सीन दोहराया! मुझे और दादी को देखकर वे हंसने लगे! दादी भी उनकी माँ थी, वो भी समझ गई कि पापा क्या चाहते है! इसी माहौल में दादी ने मुझसे मेरे दिल की बात पूछ ली! पापा ने भी उन्हें समझाया कि अपनी बेटी कुछ गलत तो नहीं कर रही है, फिर हम क्यों उसके साथ जबरदस्ती करें! उसकी इच्छा पढ़ने की है, तो उसे पढ़ने दिया जाए! शादी तो बाद में भी हो सकती है! फिल्म का कुछ असर दादी को भी हुआ! उन्हें लगा कि बात सही है! ... इस तरह मेरी शादी टल गई! सिर्फ इसलिए कि पापा ने मेरा साथ दिया! आज भी मैं वो घटना याद करती हूँ, तो सिहर जाती हूँ कि यदि पापा ने मेरा साथ नहीं दिया होता, तो शायद मेरी पढाई अधूरी ही रह जाती! और मैं आज जहाँ हूँ, वहाँ शायद नहीं होती। 
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संतान के प्रति पिता का प्रेम अव्यक्त भाव!

'फादर्स-डे' के लिए

  सूर्य प्रतिदिन उदित हो अपने प्रकाश से और प्रकाश में समाहित ऊर्जा से समस्त संसार को जीवन प्रदान  कर  और समस्त प्राणियों के जीवन को सुचारू चलने की व्यवस्था करता है, परिवार में वही स्थान पिता का है। वह परिवार की ऊर्जा स्त्रोत तथा शक्तिपूंज होता है। पिता की दिनचर्या अपने परिवार की सुचारू जीवन के लिए होती है! वो न सिर्फ माता को बीज प्रदान कर अपनी संतान का निर्माण करता है, वरन उसे नित्य अपनी आजीविका से सींच कर एक विशाल वृक्ष बनाने में अपना पूर्ण सहयोग भी प्रदान करता है। पिता का कलेजा मजबूत होता है, तो केवल यह नारियल के ऊपरी आवरण की तरह होता है। अंदर से वह उतना ही नरम और शुभ्र होता है। उसकी आंखें भले ही नम न दिखाई दे, लेकिन यह केवल एक पिता ही जानता है कि न जाने कितनी बार उसने रात के अंधेरे में चुपचाप अपने तकिए को आसुंओं से भिगोया है। यदि वह अपने आंसुओं को सुखा लेता है, तो इसका कारण यही है कि उसके आंसुओं को देखकर उसकी संतान टूट न जाए।
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- एकता शर्मा 

   जीवन में मां का प्यार नजर आता है, लेकिन पिता का प्यार दिखाई नहीं देता। यदि मां धरती की तरह गहरी है, तो पिता आसमान की तरह अनंत और असीम। पिता का प्यार इतना गहरा होता है कि उस प्यार को देखने के लिए नजरों की जरूरत नहीं होती! केवल दिल से पिता का प्यार महसूस किया जा सकता है। बचपन में जब माँ प्यार से सिर पर हाथ फेरकर प्यार करने का अहसास कराती है! तब, पिता केवल यही पूछते थे होंगे कि किसी चीज की जरूरत तो नहीं है? पिता का यह सब पूछना ही उनके अव्यक्त प्रेम का प्रतीक है। उनकी बातों और आंखों में प्यार होता है, पर पिता कभी अपना प्यार जता नहीं पाता! हमारा समाज पुरूष प्रधान कहलाता हो, लेकिन यहां मातृशक्ति का वर्चस्व रहा है। अंकसूचियों में पिता का नाम अंकित हो ,लेकिन उसे कभी महत्व नहीं दिया गया। हकीकत तो यह है कि भले ही पिता एक मां की तरह अपने कोख से बच्चे को जन्म न दे पाए। लेकिन, बच्चे के जीवन में पिता का बहुत बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है। वह जीवन के हर मुकाम पर अपनी संतान के साथ परछाई की तरह खड़ा होता है। यदि उनके महत्व को वांछित मान नहीं मिलता, तो इसका कारण है कि मानव जीवन में पिता की कल्पना एक सशक्त और ऐसे दृढ हृदय वाले इंसान के रूप में की गई है, जिसका न तो कलेजा पसीजता है और न कभी उसकी आंखें नम दिखाई देती है।
  ये ऐसा रिश्ता जो किसी भी धर्म, देश, भाषा, जाति और समाज में सदैव समान रहता है! जिसका ध्येय इन सब बातों से ऊपर सिर्फ अपनी संतान की सुरक्षा, उसके जीवन के निर्माण और उसे अच्छी सामाजिक पृष्ठभूमि देने का होता है। वो अपनी संतान में अपना प्रतिबिम्ब तो देखना चाहता है, परन्तु अपने से अच्छी और आकर्षक छवि में। पिता का अस्तित्व कुछ ऐसा होता है कि उसका सानिध्य प्राप्त करते ही एक घने वटवृक्ष की छाया में मिलने वाली शांति सा अहसास होता है। अपनी विशाल शाखाओं की छाया में सुरक्षा का अहसास प्रदान करने वाले वृक्ष जो प्रकृति की मार से कर रहे संघर्ष का अहसास छाया लेने वाले को नहीं होने देता, उसी तरह पिता सदैव संघर्ष कर अपनी संतान के जीवन को आकार देने के लिए अपनी खुशियो का त्याग करता है। पिता के त्याग की भावना उसकी बेटी या बेटे के जीवन की अंश पूंजी होती है। यही पहचान उसकी संतानों को बहुत से रिश्तों से परिचित कराती है। इसी पहचान और रिश्तों के जरिये संतान पिता के बताए और अपनी महत्वाकांक्षाओं की प्राप्ति के मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सफल बनाती है।    
    गलतियों पर टोकने, बाल बढ़ाने, दोस्तों के साथ घूमने और टीवी देखने के लिए डांटने वाले पिता की छवि शुरु में बच्चे के बालमन में हिटलर की तरह रहती है। लेकिन, जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, वह समझते जाते हैं कि उनके पिता के सख्त व्यवहार के पीछे उनका प्रेम ही रहता है! बचपन से एक पिता खुद को सख्त बनाकर बच्चों को कठिनाइयों से लड़ना सिखाता है। अपने बच्चों को खुशी देने के लिए वो अपनी खुशियों की परवाह तक नहीं करता। एक पिता जो कभी मां का प्यार देता हैं, कभी शिक्षक बनकर गलतियां बताता हैं तो कभी दोस्त बनकर कहता हैं कि मैं तुम्हारे साथ हूं! यह सब देखकर कहा जा सकता है कि पिता वो कवच हैं, जिनकी सुरक्षा में रहते हुए बच्चे अपने जीवन को एक दिशा देने की सार्थक कोशिश करते हैं। कई बार तो बच्चों को अहसास भी नहीं होता कि उनकी सुविधाओं के लिए उनके पिता ने कहाँ से और कैसे व्यवस्था की है।
  पिता की अनेक संतान हो सकती है परन्तु सभी के लिए पिता का भाव हमेशा सम होता है । यही पिता के हृदय की विशालता होती है। पिता कैसा भी हो सफल, असफल, अमीर, गरीब, शिक्षित या फिर अशिक्षित! उसका भाव अपनी संतान  को हर क्षेत्र में अपने से अधिक सफल देखने का ही होता है। मनुष्य इस रिश्ते पर आकर कितना अलग हो जाता है। यहीं आकर शायद उसकी प्रतियोगिता की भावना समाप्त हो जाती है। संतानों को कई रिश्तो की सम्पूर्णता प्रदान करने वाला पिता उसे अनुभव प्रदान करने के लिए उसके बाल साथी, शिक्षक, युवा मित्र और कई बार अंग रक्षक भी बनकर उसके व्यक्तित्व को निखरता है। इसीलिए पुत्र को पिता की परछाई भी कहा जाता है।
  पुत्री के लिए तो पिता ही सब कुछ होता है। यह वह बाबुल है, जो अपनी बुलबुल को क्रूर दुनिया में चारों तरफ बिखरे सैयादों से बचाता है। पिता के आश्रय में बेटी अपने को सुरक्षित तथा सशक्त पाती है। कहने को तो बेटियां सारी जिंदगी अपनी मां के सानिध्य में रहती हैं! लेकिन, जितना अवयक्त स्नेह उन्हें अपने पिता से मिलता है ,दुनिया में ऐसा स्नेह कहीं भी नहीं मिलता! पिता और पुत्र में अक्सर खटपट होती रहती है ,लेकिन बाप और बेटी में एक अवलम्बन तथा अवयक्त भावनाओं से जुड़ा संबंध होता है। इसका नजारा हमें आज के समाज में देखने को मिल रहा है। एक बार बेटा अपने पिता को न पूछे लेकिन बेटियों को हमेशा पिता की परवाह रहती है! वो ता उम्र उनके लिए चिंतित रहते हुए उनकी सेवा में समर्पित रहती है।  
  जितने भी सफल व्यक्तियों को देखेंगे, तो उनके जीवन की सफलता में उनके पिता की भूमिका होती है। उन्होंने अपने पिता से प्रेरणा ली होती है और उनको आदर्श माना होता है। इसके पीछे सिर्फ यही कारण होता है कि कोई व्यक्ति लाख बुरा हो, लाख गंदा, लेकिन अपनी संतान को वह अच्छी बातें और संस्कार ही देने का प्रयत्न करता है! ऐसे कई उदाहरण हैं कि कोई व्यक्ति नालायक होता है, शराबी होता है, जुआरी होता है लेकिन ज्यों ही वह पिता बनता है अपनी सारी बुरी आदतें इसलिए छोड़ देता है ताकि उसके बच्चों पर बुरा असर न पड़े। हालाँकि, यह संसार बहुत बड़ा है और इसमें लोग भी भिन्न प्रकार के हैं। पर, यह कहा जा सकता है कि अपने बच्चे के लिए हर पिता बेहतर कोशिश करता है, अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा! इसलिए वह तारीफ के काबिल तो होता ही है! अपने पिता से अफसोस और शिकायतें तो सिर्फ वो लोग करते हैं जिन्होंने जिंदगी में अपने आप को साबित नहीं किया वरना हर पिता का जीवन सीखने योग्य होता है। पिता ही दुनिया का एक मात्र शख्स है, जो चाहते है कि उसका बच्चा उससे भी ज्यादा तरक्की करे, उससे भी ज्यादा नाम कमाए।
 समय के साथ हर तरह का बदलाव तो स्वाभाविक हैं! लेकिन, पिता के कर्तव्य में कोई बदलाव नहीं आएगा! क्योंकि, यह सब हमारी संस्कृति और संस्कार में निहित है। बदलते जमाने और रोजगार की जरूरतों की वजह से आज कई बच्चे उनके  माता-पिता से दूर हो गए हैं । ऐसे में वह उन बुजुर्ग कदमों को चाहकर भी सहारा नहीं दे पा रहे हैं, उनका अकेलापन नहीं दूर कर पा रहे हैं। यह मजबूरी मन में एक टीस से भर देती है। ऐसे में विभिन्न अवसरों, त्यौहारों पर उन्हें समय अवश्य ही देना चाहिए, बेशक वह अवसर 'फादर्स डे' ही क्यों न हो!
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गिरीश कर्नाड नहीं रहे, अब 'टाइगर' की खबर कौन रखेगा?

- एकता शर्मा 

 लमान खान की फिल्म 'टाइगर' और 'टाइगर जिंदा है' में ख़ुफ़िया एजेंसी 'रॉ' के चीफ डॉ शेनॉय एक ऐसा किरदार था, जिसे लोग भूल नहीं पाए थे! ख़ुफ़िया एजेंट 'टाइगर' यानी सलमान को किस मिशन पर लगाना है, ये जिम्मा डॉ शेनॉय का ही था! लेकिन, अब उन्हें भूलना होगा! क्योंकि, वे अब इस दुनिया से बिदा हो गए! सलमान की इन दोनों फिल्मों में वही ऐसा किरदार था, जिसे 'टाइगर' की खबर होती थी! लेकिन, अब जबकि वे नहीं रहे 'टाइगर' की खबर कौन रखेगा?   
    गिरीश कर्नाड की उम्र 81 साल थी। वे एक एक्टर होने के साथ-साथ लेखक, अवॉर्ड विजेता नाटक लेखक और डायरेक्टर भी थे। उनकी पहली फिल्म 1970 में कन्नड़ भाषा में 'संस्कार' आई थी। इस फिल्म को राष्ट्रपति का गोल्डन लोटस अवॉर्ड मिला था। इसके बाद उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में काम किया! लेकिन, उनकी आखिरी फिल्म भी कन्नड़ की थी, जो पिछले साल 26 अगस्त को रिलीज हुई! हिंदी की उनकी अंतिम फ़िल्म सलमान खान के साथ 'टाइगर ज़िंदा है' थी! उनकी हिट कन्नड़ फ़िल्मों में से तब्बालियू मगाने, ओंदानोंदु कलादाली, चेलुवी, कादु और कन्नुड़ु हेगादिती को गिना जा सकता है!
  वे लम्बे समय से बीमार थे। 'टाइगर जिंदा है' में भी दर्शकों ने उन्हें नाक में ऑक्सीजन की नली लगाए हुए देखा था! दर्शकों को लगा कि उनका ये गेटअप किरदार का हिस्सा है, जबकि वास्तव में गिरीश कर्नाड को ऑक्सीजन की जरुरत लगती थी! सोमवार सुबह उन्होंने बेंगलुरु के अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली! उनका जन्म 19 मई, 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में हुआ था। उन्होंने धारवाड़ के कर्नाटक विश्वविद्यालय से स्नातक किया। बाद में वे एक रोड्स स्कॉलर के रूप में इंग्लैंड गए। कर्नाड ने ऑक्सफोर्ड से दर्शनशास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र में मास्टर्स की डिग्री ली थी। 1963 में वे ऑक्सफोर्ड यूनियन के प्रेसीडेंट भी बने थे।
  हिंदी में उनकी शुरूआती फ़िल्में कलात्मक फ़िल्में निशांत, मंथन और 'पुकार' थी! नागेश कुकुनूर की इक़बाल, डोर, '8x10 तस्वीर' और 'आशाएं' में भी उनके किरदार दर्शकों को याद हैं। आरके नारायण की किताब पर बने प्रसिद्ध टीवी सीरियल 'मालगुड़ी डेज़' में उन्होंने बाल कलाकार स्वामी के पिता का किरदार निभाया था। विज्ञान पर आधारित एक टीवी कार्यक्रम 'टर्निंग पॉइंट' में वे होस्ट बने थे।
  गिरीश कर्नाड के लिखे तुगलक, हयवदन, तलेदंड, नागमंडल व ययाति जैसे नाटक बहुत लोकप्रिय हुए थे। इन्हें कई भाषाओं में अनुदित कर परफॉर्म भी किया जा चुका है। गिरीश कर्नाड की कन्नड़ और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में उनकी समान पकड़ थी। उन्हें 1994 में साहित्य अकादमी, 1998 में ज्ञानपीठ, 1974 में पद्म श्री, 1992 में पद्म भूषण, 1972 में संगीत नाटक अकादमी, 1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी, 1998 में ज्ञानपीठ और 1998 में कालिदास सम्मान से सम्‍मानित किया गया था। कर्नाड को चार बार फिल्म फेयर अवॉर्ड मिले!
  फिल्मों, नाटकों, लेखन, निर्देशन के अलावा भी गिरीश कर्नाड ने अपनी प्रतिभा कई क्षेत्रों में दिखाई! वे बहुमुंखी प्रतिभा के धनी थे। 60 के दशक में नाटक लेखन से ही गिरीश कर्नाड की पहचान बन गई थी! कन्नड़ नाटकों के लेखन में गिरीश कर्नाड की वही भूमिका थी, जो बंगाली में बादल सरकार, मराठी में विजय तेंदुलकर और हिंदी में मोहन राकेश जैसे नाटककारों की मानी जाती है। वे करीब 5 दशक से ज्यादा समय तक नाटकों के लिए सक्रिय रहे! उन्होंने अंग्रेजी के भी कई प्रसिद्द नाटकों का अनुवाद किया! खुद गिरीश कर्नाड के नाटक भी कई भारतीय भाषाओं में अनुदित हुए। गिरीश कर्नाड को दक्षिण भारतीय रंगमंच और फिल्मों का पितामह माना जाता है।
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'भारत' के दर्शकों ने दी सलमान को डबल ईदी!

  

ये माना जाता रहा है कि परदे पर ईद तो सलमान खान की मनती है! लेकिन, दो बार सलमान की ईद बिगड़ गई! पहली बार 'ट्यूबलाइट' ने बिगाड़ी और दूसरी बार 'रेस-3' ने! लेकिन, इस बार 'भारत' ने दोनों बार की पूर्ति कर दी! हाल ही में सलमान ने एक कार्यक्रम में कहा था कि मुझे इस बार दर्शकों से डबल ईदी चाहिए और दर्शकों ने उन्हें दे भी दी! इस फिल्म ने पहले ही दिन 42.30 करोड़ की कमाई करके इस साल के रिकॉर्ड तोड़ दिए! 'भारत' सलमान के कॅरियर की पहले दिन सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई! इससे पहले 'प्रेम रतन धन पायो' ने पहले दिन 40 करोड़ कमाए थे!    
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- एकता शर्मा 

   बॉलीवुड में सलमान खान का जवाब नहीं! उन्हें और उनकी फिल्मों को चाहने वालों की कमी नहीं है! ईद पर तो दर्शकों के लिए सलमान की फिल्म देखना किसी उत्सव से कम नहीं होता! यही कारण है कि की फिल्म 'भारत' ने पहले दिन ही बंपर कमाई की। ईद के दिन इस फिल्म के मॉर्निंग शो भी 60-70 फीसदी तक फुल रहे! इस फिल्म ने पहले दिन ही बंपर कमाई करते हुए बेहद बड़ी ओपनिंग दर्ज कराई है। फिल्म ने पहले दिन ही 42.30 करोड़ का कारोबार किया। आमिर खान की फिल्म 'ठग्स ऑफ हिंदोस्तान' के बाद सलमान की फिल्म 'भारत' दूसरी सर्वाधिक ओपनिंग वाली फिल्म बनी। इस फिल्म को क्रिकेट वर्ल्ड कप के चलते थोड़ा सा नुकसान जरुर हुआ! अन्यथा ये फिल्म पहले दिन की कमाई में आमिर खान की फिल्म के रिकॉर्ड तोड़ देती। इस फिल्म में सलमान खान की धांसू एंट्री और इमोशन का तड़का मनोरंजन का फुल डोज है। इस फिल्म ने 'प्रेम रतन धन पायो' के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया। सलमान खान की इस फिल्म ने पहले दिन 40 करोड़ रुपए का कारोबार किया था। लेकिन, अब इस आंकड़ें को पीछे छोड़कर ये फिल्म सलमान के कॅरियर की 'ओपनिंग डे' में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई!
   फिल्म को उत्तर प्रदेश और गुजरात से ताबड़तोड़ प्रदर्शन करते हुए सबसे ज्यादा कमाई की! फिल्म ने सिर्फ मल्टीप्लेक्सेस ही नहीं, सिंगल स्क्रीन्स में भी हंगामा मचाया। 'टाइगर जिंदा है' से उलट ये फिल्म एक्शन ड्रामा नहीं, बल्कि इमोशन्स, डांस और मस्ती से भरपूर है। जिससे दर्शकों को भरपूर एंटरटेनमेंट मिला है। हालांकि, 'भारत' अपने ओपनिंग-डे पर एक फिल्म को पछाड़ने में नाकामयाब रही है। हॉलीवुड फिल्म 'एवेंजर्स एंडगेम' ने भारत में अपने पहले दिन 53.10 करोड़ का कारोबार किया था। 'एवेंजर्स एंडगेम' वो फिल्म है, जिसने साल 2019 में सबसे बड़ी ओपनिंग दर्ज कराई थी, इसे 'भारत' भी पछाड़ने में नाकामयाब रही है।
  'भारत' इस साल की दूसरी सबसे बड़ी ओपनर है। जिस दिन बॉक्स ऑफिस पर 'भारत' रिलीज हुई, उसी दिन भारत का पहला वर्ल्ड-कप मैच साउथ अफ्रीका के साथ था। ट्रेड एक्सपर्ट मान रहे हैं कि इस वजह से भी फिल्म की कमाई पर असर पड़ा है। अगर उस दिन भारत और साउथ अफ्रीका का मैच नहीं होता, तो फिल्म ओपनिंग-डे पर 50 करोड़ के आसपास पहुंच सकती थी। 'भारत' ने दूसरे दिन भी शानदार शुरूआत की है। बताया जा रहा है कि दूसरे दिन फिल्म ने मॉर्निंग शोज में लगभग 30% का ऑक्यूपेंसी रेट दर्ज कराया है।
   सलमान की साल 2017 में 'ट्यूबलाइट' और 2018 में ‘रेस 3’ ईद के मौके पर इतनी बुरी तरह से फ्लॉप हुई थी। लगातार दो हादसे के बाद कई लोग कहने लगे थे, कि अब सलमान खान का वक्त खत्म हो गया है। हालांकि, ‘भारत’ के साथ सलमान ने बॉक्स ऑफिस पर ऐसी वापसी की, कि आलोचकों के मुंह बंद हो गए। ‘भारत’ की धमाकेदार शुरूआत देखने के बाद ट्रेड पंडित भी यह कहने लगे हैं कि ईद के मौके पर सलमान को कोई पछाड़ नहीं सकता। फैंस के लिए ईद का मतलब सलमान खान हैं और यही अटल सत्य है।
  'भारत' की ताबड़तोड़ कमाई देखने के बाद कई ट्रेड एक्सपर्ट कहने लगे हैं कि क्या रोहित शेट्टी और अक्षय कुमार अपनी अपकमिंग फिल्म 'सूर्यवंशी' की रिलीज डेट में बदलाव करेंगे, जो अगले साल ईद के मौके पर सलमान की 'इंशाअल्लाह' से टकराने वाली है? अक्षय कुमार और रोहित शेट्टी ने अपनी एक्शन फिल्म 'सूर्यवंशी' की शूटिंग शुरू कर दी है! वहीं, सलमान ने अपनी 'इंशाअल्लाह' की शूटिंग शुरू भी नहीं की! 'इंशाअल्लाह' को संजय लीला भंसाली बनाने वाले हैं और इसमें सलमान के साथ आलिया भट्ट दिखाई देंगी। 'इंशाअल्लाह' के लिए सलमान खान और संजय लीला भंसाली काफी समय के बाद साथ आए हैं, जिसे कारण फैंस को फिल्म से काफी सारी उम्मीदें हैं। इसके ऊपर से अब 'भारत' की सफलता भी सलमान खान के नाम के साथ जुड़ गई हैं, जिसका फायदा अगले साल ईद के मौके पर जरूर ही मिलेगा।
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दर्शकों के दिल से उतर गया रोमांस का खुमार!

- एकता शर्मा  
 न दिनों जो फ़िल्में आ रही है, उनमें एक बात कॉमन है कि उनमें प्रेम नदारद है! कोई भी फिल्मकार प्रेम की कहानियों पर फिल्म बनाने की हिम्मत नहीं कर रहा! बड़ी मुश्किल से करण जौहर ने 'स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर-2' और 'कलंक' जैसी प्रेम कहानियाँ बनाने की रिस्क ली, तो नतीजा सबके सामने है। दोनों फिल्मों को दर्शकों ने घास तक नहीं डाली! जबकि, सर्जिकल स्ट्राइक पर बनी 'उरी' और जाँबाज सिख सैनिकों की फिल्म 'केसरी' को हाथों-हाथ लिया गया।दरअसल, ये दर्शकों की बदली रूचि है! वे नकली कहानियों से ऊब चुके हैं और कुछ जीवन से जुड़ा सच देखना चाहते हैं।      
  प्रेम हिंदी फिल्मों के कथानक का स्थाई भाव रहा है! श्वेत-श्याम से लगाकर रंगीन फिल्मों तक जो बात कॉमन रही, वो है प्रेम कहानियां! फिल्मों की कहानी चाहे एक्शन हो, सामाजिक हो, कॉमेडी या फिर हॉरर! हर फिल्म में कोई न कोई लव स्टोरी जरूर होती है। बल्कि, प्रेम के बहाने ही फिल्म के कथानक को आगे बढ़ाया जाता रहा! यहाँ तक कि आजादी के संघर्ष वाली फिल्मों में भी नायक की कहीं न कहीं आँख लड़ती ही थी! लेकिन, अब लगता है जैसे हिंदी फिल्मों की कहानियों में मोहब्बत हाशिए पर आ गई! सीधे शब्दों में कहा जाए तो फिल्मों ने मोहब्बत से तलाक़ ले लिया! पिछले सालों में आई ज्यादातर हिट फिल्मों के कथानक में प्रेम नदारद था! यदि किसी फिल्म में प्रेम प्रसंग था भी तो महज कहानी को आगे बढ़ाने के लिए थे! फिल्म की मूल कहानी मोहब्बत के लिए सब कुछ दांव पर लगाने पर केंद्रित नहीं था।
  अब लगता है वो दिन ढल रहे हैं, जब फिल्म का पूरा कथानक हीरो-हीरोइन और खलनायक पर ही रच दिया जाता था। सामाजिक फ़िल्में बनाने के लिए पहचाने जाने वाले 'राजश्री' ने भी ग्रामीण परिवेश में कच्चे और सच्चे प्रेम को ही सबसे ज्यादा भुनाया! लेकिन, बीते साल की अधिकांश अच्छी फ़िल्में दर्शकों के बदलते नजरिए का संकेत है। जिस तरह हॉलीवुड में स्टोरी और कैरेक्टर को ध्यान में रखकर फ़िल्में बनती है, वही चलन अब बॉलीवुड में भी आने लगा! इसलिए कि नई पीढ़ी के जो दर्शक हॉलीवुड की फिल्मों को पसंद करते हैं, वे हिंदी फिल्मों में भी वही देखना चाहते हैं। शायद यही कारण है कि राजेश खन्ना के बाद रोमांटिक फिल्मों के सबसे चहेते नायक रहे शाहरुख़ खान ने भी फैन, डियर जिंदगी, रईस और जीरो जैसी फिल्मों में काम करने का साहस किया। शाहरूख़ और आलिया भट्ट की 'डियर ज़िंदगी' में तो मोहब्बत नदारद ही थी। इसमें शाहरुख़ ने उम्रदराज काउंसलर किरदार निभाया है। 'फ़ैन' में तो स्टोरी ही एक हीरो और उसके एक चाहने वाले पर केंद्रित थी! और 'रईस' तो एक माफिया की ही कहानी है। अब वो वक़्त शायद चला गया जब नायक, नायिका हमेशा मिलन को बेताब रहा करते थे। 'एमएस धोनी : द अनटोल्ड स्टोरी' में तो पूरा फ़ोकस ही क्रिकेटर की ज़िंदगी है। दो प्रेम प्रसंग भी हैं, पर सिर्फ कहानी को आगे बढ़ाने के लिए!
 बजरंगी भाईजान, सुल्तान, दंगल, रुस्तम, नीरजा, पिंक, कहानी-2, एयरलिफ्ट, नील बटे सन्नाटा, उड़ता पंजाब, एमएस धोनी से लगाकर 'काबिल' और 'जॉली एलएलबी-2' तक में हीरोइन उपयोगिता नाम मात्र की रही। करण जौहर की फ़िल्म 'ऐ दिल है मुश्किल' में तो ब्रेकअप को सेलिब्रेट किया गया। आलिया भट्ट ने भी 'डियर ज़िंदगी' में ब्रेकअप के बाद ज़िंदगी को कहा जस्ट गो टू हेल! सलमान खान की 'बजरंगी भाईजान' और 'सुल्तान' दोनों ही फिल्मों में हीरोइन कहीं भी कहानी पर बोझ नहीं लगती! अक्षय कुमार की 'रुस्तम' वास्तव में एक प्रेम कहानी है, लेकिन उसकी कहानी का आधार कोर्ट केस ही रहता है। सोनम कपूर की फिल्म 'नीरजा' तो पूरी तरह एक एयर होस्टेस के कर्तव्य कहानी है। वास्तव में प्रेम कहानी को हाशिए पर रखने का ये ट्रेंड धीरे-धीरे आया और सफल भी हुआ! इसलिए अब समझा जा सकता है कि आगे आने वाली फिल्मों का कथानक बदला नजर आएगा। हीरो, हीरोइन फिल्म में होंगे तो, पर वे रोमांस करें ये जरुरी नहीं है।    
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दर्शकों के सिर चढ़कर बोलता ‘एवेंजर्स एंडगेम’ का जादू!

- एकता शर्मा 
  ब भी फिल्मों के इतिहास में कमाई को लेकर कभी जिक्र होगा तो देश में प्रदर्शित हॉलीवुड फिल्म ‘एवेंजर्स एंडगेम’ के बगैर बात पूरी नहीं होगी। इस फिल्म ने ओपनिंग से लेकर अगले तीन हफ़्तों में कमाई का जो रिकॉर्ड बनाया है, वो इतनी ऊंचाई पर पहुँच गया कि वहाँ तक पहुंचना आसान नहीं लग रहा। मार्वल स्टूडियोज की इस फिल्म ने दूसरे हफ्ते में ही 78 करोड़ का कारोबार किया। फिल्म की सारी कमाई को जोड़ा जाए तो बॉक्स ऑफिस पर इसने अभी तक करीब 400 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया! 'एवेंजर्स एंडगेम' जिस दिन से रिलीज हुई है, बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड बनाती जा रही है। फिल्म ने रिलीज के दूसरे ही हफ्ते में देश की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली कई फिल्मों के रिकॉर्ड तोड़े हैं। इसने सलमान की 3 फिल्मों सुल्तान, टाइगर जिंदा है और बजरंगी भाईजान को पीछे छोड़ दिया। साथ ही रणबीर कपूर के करियर की सबसे बड़ी हिट फिल्म 'संजू' और आमिर खान की फिल्म 'पीके' की कमाई को भी मात दे दी।
  जब ये फिल्म रिलीज हुई, उससे महीने पहले से दर्शकों में ख़ासा उत्साह था। बाद में दर्शकों का ये उत्साह ‘एवेंजर्स एंडगेम’ की एडवांस बुकिंग में भी तब्दील होता दिखाई दिया। फिल्म ने रिलीज से पहले ही कई सारी फिल्मों के रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए थे। इसी उत्साह का ही नतीजा था कि सिनेमाघर मालिकों ने फैसला किया था कि ‘एवेंजर्स एंडगेम’ के शो 24 घंटे चलेंगे, यानी पूरे 8 शो! फिल्म को लेकर लिए गए इस बड़े फैसले के बाद ट्रेड पंडितों ने भी भविष्यवाणी कर दी थी कि 'एवेंजर्स : एंडगेम' पहले दिन न केवल 'दंगल' बल्कि 'बाहुबली 2' का रिकॉर्ड भी ध्वस्त कर देगी और वही हुआ भी! 
   फिल्म 'एवेंजर्स : एंडगेम' ने सिनेमाघरों में पहले दिन 50 करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार करने में सफल रही। इस तरह 'एवेंजर्स एंडगेम' ने अपने ओपनिंग-डे पर ही 'बाहुबली-2' (हिन्दी) का ओपनिंग-डे रिकॉर्ड तोड़ दिया। डायरेक्टर राजामौली द्वारा बनाई गई फिल्म 'बाहुबली-2' ने हिन्दी बॉक्स ऑफिस पर पहले दिन 41 करोड़ की कमाई की थी। 'बाहुबली 2' हिन्दी का रिकॉर्ड तोड़ने के साथ ही 'एवेंजर्स एंडगेम' ऐसी सबसे बड़ी नॉन-हॉलीडे रिलीज भी बन गई, जो इतनी बम्पर कमाई करने में कामयाब रही। 'बाहुबली-2' और 'संजू' अभी तक हिन्दी की सबसे बड़ी नॉन हॉलीडे ओपनर्स हैं। इनके अलावा बॉलीवुड में जिन फिल्मों ने भी रिकॉर्ड तोड़ कमाई की है, वो सभी किसी न किसी हॉलीडे पर रिलीज हुई हैं। 'बाहुबली-2' को देशभर में 6500 स्क्रीन्स के साथ रिलीज किया गया था और 'एवेंजर्स एंडगेम' को भी लगभग इतनी ही स्क्रीन्स मिली थी।  
   'एवेंजर्स: एंडगेम' का क्रेज भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में सिर चढ़कर बोल रहा है। ये फिल्म सिर्फ भारत और अमेरिका के अलावा पूरी दुनिया में हंगामा मचा रही है। फिल्म ने रिलीज होते ही ताबड़तोड़ कमाई के आंकड़ें देना शुरू कर दिए थे। फिल्म ने रिलीज के बाद महज दो दिन में ही दुनियाभर से 1825 करोड़ की कमाई की थी। इस फिल्म को कई देशों में 24 और 25 अप्रैल को ही रिलीज कर दिया गया था। फिल्म ने अब तक कुल 260 मिलियन डॉलर की कमाई कर ली है। यानि की फिल्म की कमाई 1825 करोड़ रुपए पार हो चुकी है। फिल्म ने आमिर की फिल्म 'ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान' की ओपनिंग के  रिकॉर्ड को ताेड़कर करीब 53 लाख रुपए की कमाई की। दूसरे हफ्ते में 'टाइगर जिंदा है' (331.11 करोड़), 'संजू' (329.25 करोड़) और 'पीके' (324.30 करोड़), 'बजरंगी भाईजान' (316.79) और 'सुल्तान' (300.10 करोड़) की कमाई करने वाली फिल्मों से आगे निकल गई! सिनेमा इतिहास में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म का श्रेय 'बाहुबली-2' को जाता है। इस फिल्म ने 506.50 करोड़ का बिजनेस किया था। अभी बस यही फिल्म 'एवेंजर्स एंडगेम' से कमाई के मामले में आगे है। कह नहीं सकते कि इसे भी हॉलीवुड का ये जादू चकनाचूर कर दे!
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