Sunday, 23 February 2020

जूते पॉलिश करने वाले 'सनी' के सुरों ने छुआ आसमान


- एकता शर्मा
   टेलीविजन के सिंगिंग रियलिटी शो 'इंडियन आइडल' के 11वें सीजन का टाइटल पंजाब के भटिंडा के सनी हिंदुस्तानी ने जीत लिया। ख़ास गायन प्रतिभा को देखते हुए सनी की जीत पर कोई उंगली भी नहीं उठाई जा रही। अंतिम पाँच में आए प्रतियोगियों में सभी एक से एक अच्छे गायक थे, लेकिन सनी हिंदुस्तानी बेजोड़ हैं। अपने नाम 'सनी' के साथ 'हिंदुस्तानी' उपनाम भी उन्हें इसी शो में जज रहे अन्नू मलिक ने दिया है। 'सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन' के इस फिनाले में जज नेहा कक्कड़, हिमेश रेशमिया, विशाल ददलानी और मेजबान आयुष्मान खुराना और उनकी नई फिल्म 'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' की टीम रही।
    भटिंडा के सनी का जीवन बहुत संघर्ष और गरीबी में बीता। इस शो में आने से पहले वे रेलवे स्टेशन और सड़क पर जूते पॉलिश किया करते थे। लेकिन, इतनी मेहनत के बाद भी उनको खाने के लाले पड़ते थे। सनी के पिता नानक भी जूते पॉलिश करते थे। जम्मू में आई बाढ़ के दौरान उनकी मौत हो गई थी। वहां वे सेना के जवानों के जूते पॉलिश करने जाया करते थे। इसी दौरान एक बार वे बाढ़ में फंस गए थे। सनी के पिता को भी गाने का शौक था! वे शादी-ब्याह में गाया करते थे, जिससे उन्हें कभी खाना और पैसे मिल जाते थे। सनी की दादी भी गाकर भीख मांगा करती थीं। उनकी मां सोमा देवी भी गुब्बारे बेचकर गुजारे लायक पैसे कमाने की कोशिश करती थी। कई बार ये स्थिति आ जाती कि उन्हें लोगों से अनाज या खाना मांगकर गुजारा करना पड़ता। ऐसी स्थिति में सनी का इंडियन आइडल खिताब जीतना बहुत बड़ी उपलब्धि है।
    बतौर विजेता सनी को 25 लाख रुपए, टाटा अल्ट्रॉज़ कार और और टी-सीरीज की आने वाली फिल्म में गाने का अनुबंध मिला है। ये निश्चित रूप से उनके लिए किसी सपने के सच होने जैसी बात है। अपनी जीत से खुश सनी ने कहा कि मैंने पहले दौर से गुजरने के बारे में भी नहीं सोचा था, 'इंडियन आइडल' जीतना तो बहुत दूर की बात थी। मैंने एक लंबा रास्ता तय किया है और विश्वास नहीं कर सकता कि सफर अभी शुरू हुआ है। इतने बड़े मंच पर गाने का अवसर मिलने से लेकर इस शो को असल में जीतने तक, यह मेरे सभी सपनों, इच्छाओं और प्रार्थनाओं का एक साथ सच होने जैसा है। मुझे सलाह देने और मेरा मार्गदर्शन करने के लिए जजों का और मुझे संगीत उद्योग के दिग्गजों के सामने प्रदर्शन करने और इतने सारे सितारों से मिलने के लिए एक मंच देने का अवसर देने के लिए मैं आभारी हूं। मैं विश्वास नहीं कर सकता कि पूरे भारत ने मेरी आवाज को सुना और मुझे देश की आवाज बनाने के लिए पूरे दिल से वोट दिया।
   उन्होंने अंतिम मुकाबले में चार फाइनलिस्ट को पछाड़ते हुए ये खिताब जीता। जिनमें ओंकना मुखर्जी, अद्रिज घोष, रिधम कल्याण और रोहित राउत रहे। सनी ने दिल को छूने वाली आवाज का जलवा बिखेरा और 'भर दो झोली मेरी', 'हल्का हल्का सुरूर' जैसे गाने गाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी आवाज का जादू ही ऐसा था कि वहां फिनाले पर पहुंचे स्पेशल मेहमान आयुष्मान खुराना और नीना गुप्ता भी उनकी तारीफ करने से खुद को रोक नहीं सके। इस शो में शुरुआत से ही सनी सबके बीच काफी चर्चा में रहे। जजों विशाल ददलानी, नेहा कक्कड़ और अनु मलिक के चहेते रहे और इसकी वजह थी उनकी मखमली आवाज। उनकी आवाज की तुलना और गायन शैली हमेशा ही विख्यात सूफी गायक नुसरत फतेह अली खान से की जाती रही है।  ऑडिशन के बाद से ही सनी बके चहेते बने रहे। सनी को नुसरत साहब की रूह तक कहा गया। बतौर मेहमान आए एक एपिसोड में कलाकार कुणाल खेमू उनकी आवाज से इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने उन्हें अपने गले से उतारकर लक्ष्मीजी का सोने का लॉकेट गिफ्ट दिया था। शो में पहुंचे अजय देवगन और काजोल भी सनी की आवाज सुनकर काफी प्रभावित हुए थे। उन्हें हिमेश रेशमिया की फिल्म में गाने का कॉन्ट्रैक्ट पहले ही मिल चुका है।
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Saturday, 22 February 2020

क्या 'बिग बॉस' के चाहने से सिद्धार्थ ने शो जीता!

टेलीविजन के परदे पर चार महीने तक 'बिग बॉस' का जलवा छाया रहा! कलर्स चैनल के इस शो में प्रतियोगी वही करते हैं, जो 'बिग बॉस' चाहते हैं! लेकिन, किसी ने कभी 'बिग बॉस' को देखा नहीं, सिर्फ आवाज सुनी है! लेकिन, इस बार ये शो कुछ ज्यादा ही चर्चित और विवादस्पद रहा! इसे जबरदस्त टीआरपी मिली और इस कारण इसे महीनाभर बढ़ाया भी गया। लेकिन, इस शो के विजेता सिद्धार्थ शुक्ला को लेकर दर्शक एकमत नहीं रहे! इस बात की चर्चा भी रही कि इस बार का 'बिग बॉस' फिक्स था! पूरे शो में अपनी नकारात्मक छवि बनाने वाले टेलीविजन कलाकार सिद्धार्थ शुक्ला की जीत दर्शकों के गले नहीं उतर रही है। ये बात भी सुनाई दी, कि सिद्धार्थ को शो जिताने में सलमान खान की भी भूमिका रही है।   
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 - एकता शर्मा
   टेलीविजन के सबसे ज्यादा चर्चित टीवी रियलिटी शो 'बिग बॉस' का 13वां सीजन टीवी एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला ने जीत लिया। वे शो के सबसे चर्चित कंटेस्टेंट्स में से एक थे। 'बिग बॉस' के घर में रहते हुए सिद्धार्थ शुक्ला ने अपनी हरकतों से खुद को लाइम लाइट में बनाए रखा! ये इस खेल की रणनीति भी है कि आप कितनी देर अपने आपको कैमरे के सामने बनाए रखते हैं। उन्होंने अपनी इस रणनीति की वजह से खूब सुर्खियां बटोरी और शो का खिताब भी जीता। ये कहने वाले भी कम नहीं हैं कि शो फिक्स था और होस्ट सलमान खान के सपोर्ट के कारण सिद्धार्थ शुक्ला ने ये शो जीता, जबकि आसिम रियाज उनसे कहीं ज्यादा लोकप्रिय रहे। लेकिन, सिद्धार्थ ऐसी खबरों पर ध्यान देना नहीं चाहते! एक इंटरव्यू में सिद्धार्थ ने कहा कि ये बहुत दुख की बात है कि लोग इस तरह से सोचते हैं। मैंने काफी मुश्किल से ये टाइटल जीता है! उस पर कोई सवाल उठाता है, तो दुख होता है। जो लोग ऐसा सोचते हैं उनके लिए मैं सॉरी फील करता हूं।
    ये शो सोशल मीडिया पर भी खूब छाया। हाल ही में 'ट्विटर इंडिया' ने अपनी एक रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक 'बिग बॉस-13' डिजिटल प्लेटफॉर्म पर काफी हिट साबित हुआ। 'बिग बॉस' के पिछले सीजन यानी साल 2018 के शो को लेकर 4.1 करोड़ ट्वीट किए गए थे, जबकि इस साल 1 जनवरी 2020 से शो के खत्म होने यानी 15 फरवरी तक ही 10.5 करोड़ ट्वीट किए गए। इस दौरान दर्शकों ने सिद्धार्थ शुक्ला के लिए सबसे ज्यादा ट्वीट किए थे। सिद्धार्थ शुक्ला के अलावा दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा ट्वीट हासिल करने वाले आसिम रियाज रहे थे। कई दर्शकों ने सोशल मीडिया पर 'बिग बॉस-13' को फिक्स्ड बताया। वहीं कई टीवी के सितारों ने भी सिद्धार्थ शुक्ला के विजेता बनने पर शो की आलोचना की। चार महीने से ज्यादा समय तक चले शो में इस बार छह फाइनिलस्ट थे। सिद्धार्थ और आसिम के बाद तीसरे नंबर पर शहनाज गिल रहीं। रश्मि देसाई टीवी की बड़ी नाम हैं, लेकिन वे चौथे स्थान पर रही! इसके बाद आरती सिंह पांचवें नंबर पर थीं। वहीं पारस छाबड़ा छठे नंबर पर थे और पहले ही 10 लाख रुपए लेकर उन्होंने शो छोड़ दिया था।
सिद्धार्थ शुक्ला इलाहाबाद के रहने वाले हैं और पेशे से इंटीरियर डिजाइनर हैं। उन्होंने बतौर टेलीविजन अभिनेता और मॉडल अपना करियर शुरू किया था। उन्होंने 2008 में टीवी शो 'बाबुल का आंगन' से अपने अभिनय की शुरुआत की थी। बाद में उन्हें लव यू जिंदगी, बालिका वधु और दिल से दिल तक में देखा गया। उन्होंने रियलिटी शो झलक दिखला जा, फियर फैक्टर: खतरों के खिलाड़ी और बिग बॉस-13 में हिस्सा लिया। 2014 में सिद्धार्थ ने फिल्म 'हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया' में सहायक भूमिका भी की थी।
    'बिग बॉस' जीतने के बाद सिद्धार्थ ने कहा था कि जब मैंने इस शो के लिए हामी भरी, उस दिन से सिर्फ जीतने की ख्वाहिश थी। इतने हफ्ते घर में रहने के बाद जब ट्रॉफी हाथ में आई तो बहुत ख़ुशी हो रही है। मेरे जैसे जितने भी कंटेस्टेंट्स आए थे, वे सभी इस शो में जीतना ही चाहते थे। शुरुआत में मैं थोड़ा नर्वस था, लेकिन जैसे ही दिन बीतते गए, मेरा कॉन्फिडेन्स भी बढ़ता गया। मेरी मां बहुत खुश हुई हैं और उनकी ख़ुशी देखकर मेरी खुशी दोगुनी हो गई। घर में एक दिन भी ऐसा नहीं बीता, जब मैं सोचता कि मैं क्या सही कर रहा हूं और क्या गलत। कम्पटीशन खुद से ही किया करता था और खुश हूं कि अपने फैंस की बदौलत इस शो का विजेता बन पाया। मैं किसी को हराकर जीतने के बारे में नहीं सोचता था, बस खुद को जीतना देखना था और बस यही सोचकर पूरा 'बिग बॉस' का सफर तय किया। शो में मेरा एग्रेशन काफी चर्चा में रहा! हालांकि, मैं बेमतलब किसी भी बात पर रिएक्ट कर देता था। हर सिचुएशन अलग होती है और ये शो बिलकुल स्क्रिप्टेड नहीं था। हर किसी के साथ अच्छा व्यव्हार करना वो भी हर समय, ये बिल्कुल मुमकिन नहीं है।
     सिद्धार्थ शुक्ला का क्रेज 'बिग बॉस-13' के खत्म होने के बाद भी बना हुआ है। सिद्धार्थ अब शहनाज गिल के शो 'मुझसे शादी करोगे' में हुई है। यहां भी दोनों का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है। 'कलर्स' चैनल के इस नए शो 'मुझसे शादी करोगे' में सिद्धार्थ शुक्ला अपनी दोस्त शहनाज गिल का दूल्हा ढूंढने में उनकी मदद कर रहे हैं। शहनाज गिल और सिद्धार्थ शुक्ला की दोस्ती 'बिग बॉस 13' में खूब लोकप्रिय थी। सिद्धार्थ ने कहा कि शहनाज गिल मेरी बहुत अच्छी दोस्त है और उसके साथ की जर्नी हमेशा यादगार रहेगी। हम दोनों टच में ज़रूर रहेंगे। फ़िलहाल इसके बारे में ज्यादा नहीं बता पाऊंगा। शहनाज पूरे सफर में बहुत अच्छे से रही है और वो जैसी थी मैं भी उनके साथ वैसा ही था। मेरे लिए वो एक बच्चे जैसी है। उसके साथ बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखें हैं, लेकिन उसके साथ जब भी बातें करता था मुझे बहुत कम्फर्टेबल फील होता था।
   सिद्धार्थ शुक्ला की जीत पर रश्मि देसाई ने नकारात्मक प्रतिक्रिया दी। रश्मि ने एक अंग्रेजी वेबसाइट से बातचीत के दौरान कहा कि बिग बॉस के घर मेें मैंने सिद्धार्थ के सफर को देखा, उसके आधार पर मैं ये कह सकती हूं कि उन्होंने अच्छा खेला। लेकिन, काबिलियत की बात करें तो मेरी नजर में आसिम रियाज ज्यादा विजेता के काबिल थे। वैसे तो मैं भी अपने आपको विजेता के तौर पर देख रही थी, लेकिन अंत में पिछड़ गई। मैं सिद्धार्थ की जीत पर सवाल खड़े नहीं कर रही, लेकिन आसिम की शो में ग्रोथ सबसे ज्याजा अच्छी रही है। सिद्धार्थ को सलमान का सपोर्ट करने की वजह अभी तक ये माना जा रहा था कि वे सलमान की आने वाली फिल्म 'राधे' का हिस्सा हैं। फिर कहा गया कि सिद्धार्थ को गौतम गुलाटी ने रिप्लेस कर दिया है। क्योंकि, 'राधे' की ज्यादातर शूटिंग पूरी हो चुकी है। इस कारण सिद्धार्थ शुक्ला का इस प्रोजेक्ट में हिस्सा बनना संभव नहीं है। सिद्धार्थ के पास कई प्रोजेक्ट हैं, जो उन्हें लम्बे समय तक बिजी रखेंगे।
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Monday, 17 February 2020

'जुस्तजू जिसकी थी, उसको तो न पाया हमने'

खय्याम

- एकता शर्मा 

   संगीत की दुनिया में मोहम्मद जहूर हाशमी उर्फ़ खय्याम किसी परिचय के मोहताज कभी नहीं रहे! 'कभी-कभी' और 'उमराव जान' जैसी फिल्मों में कालजयी संगीत देकर खय्याम ने अपनी अलग पहचान बनाई थी! आज भी इन फिल्मों के गीतों को पसंद किया जाता है। जबकि, इस संगीतकार को मनहूस कहने वाले भी कम नहीं थे। ऐसे लोगों का कहना था कि खय्याम के गीत तो पसंद किए जाते हैं, पर उनके संगीत वाली फ़िल्में जुबली नहीं मनाती! लेकिन, 'कभी-कभी' ने इस भ्रम को भी तोड़ दिया।  
    खय्याम ने संगीत की दुनिया में 17 साल की उम्र में अपना करियर लुधियाना से शुरू किया था। वे छुपकर फ़िल्में देखा करते थे और उनकी इच्छा कलाकार बनने की थी। इस वजह से उनके परिवार ने उन्हें घर से निकाल दिया था। लेकिन, बाद में उनकी रूचि संगीत में बढ़ी और उन्होंने इसी विधा को करियर बनाना चाहा। शुरूआती सफलता के बाद उन्हें पहला बड़ा ब्रेक 'उमराव जान' से मिला! इस फिल्म के गाने आज भी लोगों के दिलों में जगह बनाए हैं। उन्हें इस फिल्म के बेहतरीन संगीत के लिए नेशनल और फिल्मफेयर अवॉर्ड के साथ ही कई पुरस्कार मिले। 'उमराव जान' के बाद बाज़ार, कभी-कभी, नूरी, त्रिशूल और 'रजिया सुल्तान' जैसी फ़िल्मों के गीत भी उन्होंने रचे। उनके संगीतबद्ध किए गैर-फिल्मी गानों को भी काफी पसंद किया गया। उन्होंने मीना कुमारी की एलबम जिसमें उन्होंने कविताएं गाई थीं, उसके लिए भी संगीत दिया था। खय्याम को पहली फिल्म 'हीर रांझा' मिली थी। लेकिन, उन्हें पहचान मोहम्मद रफ़ी के गीत 'अकेले में वह घबराते तो होंगे' से मिली। बाद में 'शोला और शबनम' ने उन्हें बतौर संगीतकार स्थापित कर दिया।
   जब खय्याम को 'उमराव जान' में संगीत देने का मौका मिला तो उनके सामने कमाल अमरोही की 'पाकीज़ा' थी, जो अपने समय की जबर्दस्त कामयाब फिल्म थी। इसका संगीत गुलाम मोहम्मद ने दिया था। 'उमराव जान' और 'पाकीजा' की पृष्ठभूमि एक सी होने से वे असमंजस में थे कि वे अपनी कोशिश में कामयाब होंगे या नहीं! 'उमराव जान' के संगीत को खास बनाने के लिए उन्होंने इतिहास भी पढ़ा और उस समय के संगीत की जानकारी हांसिल की। अंततः मेहनत रंग लाई और 1982 में आई मुज़फ़्फ़र अली की 'उमराव जान' ने व्यावसायिक और संगीत की सफलता के झंडे गाड़ दिए। 'जुस्तजू जिसकी थी, उसको तो न पाया हमने' जैसा गीत आज भी गुनगुनाया जाता है। ख़य्याम ने अपनी कामयाबी का श्रेय फिल्म की नायिका रेखा को भी देते हुए कहा था कि उन्होंने मेरे संगीत में जान दाल दी! उनका अभिनय देखकर मुझे तो यही लगा था कि रेखा ही पिछले जन्म में उमराव जान थी। 
   फ़िल्मी दुनिया में एक भ्रम फैला था कि खय्याम के संगीत वाली फिल्मों के गाने तो हिट हुए, लेकिन फिल्मों ने कभी सिल्वर जुबली भी नहीं मनाई! 'कभी-कभी' से पहले यश चोपड़ा को भी लोगों ने यही बात याद दिलाई थी। सभी उन्हें मेरे साथ काम करने के लिए मना कर रहे थे। उन्होंने खय्याम से कहा भी था कि इंडस्ट्री में कई लोग कहते हैं कि खय्याम बहुत बदकिस्मत आदमी हैं। इसके बावजूद यश चोपड़ा ने 'कभी-कभी' का संगीत देने का चांस मिला और उस फिल्म ने गोल्डन जुबली मनाकर आलोचकों का मुंह बंद कर दिया था। खय्याम उन संगीतकारों में रहे जिन्होंने कभी ज्यादा काम करने का लोभ नहीं पाला! उन्होंने कम लेकिन बेहतरीन काम किया। उस दौर के कई बड़े फिल्मकारों ने इसीलिए उन्हें पसंद भी किया।  
  खय्याम पंजाबी थे, इसलिए उन्होंने अपने संगीत में पंजाबी लोकसंगीत का अच्छा इस्तेमाल किया। उस दौर में नौशाद के अलावा खय्याम ही ऐसे  संगीतकारों थे, जिन्हें शास्त्रीय रागों पर संगीत रचने में महारत हांसिल थी। खय्याम ने अपने छह दशक के करियर में 30-35 से ज्यादा फिल्में नहीं की।    मुकेश का गाये 'फिर सुबह होगी' के गीत 'वो सुबह कभी तो आएगी' ने उस ज़माने में कमाल कर दिया था। ये उस साल की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में एक थी। इस फिल्म के बाद भी खय्याम और साहिर लुधियानवी की जोड़ी ने एक साथ फिल्मों के लिए काम किया। 80 के दशक में आई 'रजिया सुल्तान' में लता मंगेशकर का गाया 'ऐ दिले नादान' गाना लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा था। इसी दशक में उन्होंने 'उमराव जान' का भी संगीत दिया, जो संगीत इतिहास की अहम फिल्मों में से एक है। 
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Friday, 7 February 2020

अनमोल मोहब्बत के इजहार का अरबों का कारोबार!



    दुनिया में प्यार की कोई कीमत नहीं होती! लेकिन, वेलेंटाइन-डे के इस त्यौहार ने साबित कर दिया कि प्यार अनमोल नहीं होता, इसका भी कोई मोल होता है। ये ऐसा प्यार का दिन होता है, जिसके लिए प्रेमी करोड़ों रुपए लुटा देते हैं। पूरे हफ्ते मनाए जाने वाले मोहब्बत के त्यौहार के लिए कोई पैसे के मोल को कई नहीं देखता। यही कारण है कि प्यार का ये त्यौहार कारोबार में बदल गया! प्यार के नाम पर बने इस वैलेंटाइंस-डे और वैलेंटाइन-वीक पर प्यार करने वाले कितना खर्च करते हैं, उसका भी कोई हिसाब नहीं लगाया जा सकता! इसके बावजूद कारोबारियों की नजर इस पर बनी रहती है। वैलेंटाइन-वीक को औद्योगिक मांग में छाई सुस्ती को दूर करने का उपाय भी माना जा सकता है। वेलेंटाइन डे पूरी दुनिया में पूरे जोश के साथ मनाया जाता है और भारत में भी इसका प्रसार तेजी से हो रहा है। इस दिन एक दूसरे को चाहने वाले मनपसंद तोहफे देकर अपनी भावनाओं का इजहार करते हैं।
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- एकता शर्मा

   कारोबार की नजर से देखा जाए तो प्यार जितना बढ़ेगा, प्रेमी जितने बढ़ेंगे ये कारोबार भी उतनी ही तेजी बढ़ेगा। लेकिन, ये कारोबार कितना होगा, इस बारे में कोई दावा नहीं कर सकता! क्योंकि, यदि उपहार कोई प्रोडक्ट हो, तो उसकी बिक्री का अनुमान लगाया जा सकता है! लेकिन, वैलेंटाइन-वीक में इतनी वैरायटी होती है कि उस कारोबार को आंकड़ों में नहीं समेटा जा सकता! बस अनुमान ही लगाया जा सकता है कि प्रेमियों ने अपने प्यार पर कितना खर्च किया! यही अनुमान बताता है कि ये आंकड़ा 22 से 25 अरब रुपए के आसपास है। ये अनुमान भी दो साल पहले व्यापारिक संगठन 'एसोचैम' ने अपने सर्वे से निकाला है। इस सर्वे के मुताबिक वेलेंटाइन-डे के मौके पर बड़े वेतन वाले अफसर, सरकारी नौकरी करने वाले, कॉरपोरेट सेक्टर और आईटी कंपनियों के अफसर 50 हजार रुपए तक गिफ्ट में खर्च करते हैं। वहीं कॉलेज के छात्र हज़ार रुपए से 10 हजार तक खर्च कर देते हैं।
    'एसोचैम' ने इस सर्वें के लिए बड़े शहरों के 800 कंपनी अधिकारी, 150 शिक्षा संस्थानों के 1000 से अधिक विद्यार्थियों से बात की थी। बाद में निष्कर्ष से यह आंकड़ें निकाले गए! 'एसोचैम' का मानना था कि इस कारोबार में 20% की दर से इजाफा हो रहा है। सर्वे में कहा गया था कि इस दौरान स्पॉ और ब्यूटी पार्लर के काम में भी लगातार तेजी आने की संभावना है। इसमें कहा गया है कि करीब 65% पुरुष अपनी प्रेमिका के लिए उपहार की खरीदते हैं, जबकि 35% महिलाएं भी इसी तरह की खरीददारी करती हैं। वैलेंटाइन-वीक पर उपहार के रूप में टेडी-बीयर, गुलाब, कपड़े, गहने, ग्रीटिंग कार्डस, चॉकलेट्स और इलेक्ट्रॉनिक्स गेजेट्स की जमकर बिक्री होती है। लेकिन, सबसे ज्यादा बिकता है गुलाब! प्यार के इस त्यौहार पर लाल गुलाब की खासी मांग होती है। प्रेमी महंगे दाम पर गुलाब खरीदकर अपनी प्रेमिकाओं को देकर अपने प्यार का इजहार करते है। अनुमान है कि फूलों का ही कारोबार 200 मिलियन का होता है।
   एसोचैम सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2014 में वैलेंटाइन-डे पर जहां 16,000 करोड़ रुपए का फुटकर कारोबार हुआ था, वहीं 2016 में यह 40% बढ़कर 22,000 करोड़ रुपए तक पहुंचा! वैलंटाइंस-डे पर इस साल ऑनलाइन खरीदारी का जोर ज्यादा रहने का अनुमान है। अनुमान है कि कुल बिक्री में ऑनलाइन का हिस्सा करीब 35% से ज्यादा होगा। ग्रीटिंग कार्ड्स और गिफ्ट कारोबार के लीडर कहे जाने वाले 'आर्चीज' के बिजनेस डेवपमेंट हेड राघव मूलचंदानी का कहना है कि कंपनी की कुल बिक्री में से 11% वैलेंटाइन-वीक से आती है। कंपनी के प्रीमियम कार्ड की बिक्री और मांग भी इसी दौरान देखी जाती है। आर्चीज ग्रीटिंग कार्ड, स्टेशनरी और गिफ्ट आइटम का कारोबार करती है। कंपनी के भारत में 230 ऑफिस हैं और भारत के बाहर कंपनी की 300 फ्रैंचाइजी हैं। कई विदेशी कंपनियों के साथ आर्चीज की साझेदारी है। 
     प्यार के प्रतीक गुलाब के फूल की कीमत वैलेंटाइन-डे पर 10 रुपए से बढ़कर 60 रुपए के रिकॉर्ड स्तर पर होने का अनुमान है। गुलाब को उपहार के तौर पर इसलिए वरीयता दी जाती है कि सस्ता होने के साथ प्यार के इजहार माध्यम भी माना जाता है। 'एसौचेम' के सर्वे के मुताबिक वैलेंटाइन-डे पर फूलों की मांग कई गुना बढ़ जाती है। इससे पूरे पुष्प उत्पादन उद्योग सालाना 30% की दर से बढ़ रहा है। फूलों की मांग तेजी से बढऩे के कारण इस साल ये उद्योग 10 हज़ार करोड़ रुपए तक पहुंचेगा। इस साल पुष्प उद्योग बढ़कर 10% होने की संभावना है।
  वैलेंटाइन-वीक पर मासूम से दिखने वाले रंग-बिरंगे टेडी बेयर, गुलाब के गुलदस्ते और बड़ी चॉकलेट बॉक्स में दो छोटी टॉफ़ी जैसी रोमांटिक चीज़ों की बिक्री ज्यादा होती है। ये भी एक आश्चर्य की बात है कि इस प्यार के त्यौहार का कोई परंपरागत गिफ्ट नहीं होता! प्रेमी-प्रेमिका आपस में भी एक दूसरे को उनकी पसंद की चीजें गिफ्ट करते हैं। ये भी एक कारण है कि वैलेंटाइन-वीक के दौरान होने वाले कारोबार को किसी दायरे में नहीं बांधा जा सकता! एक हैरान करने वाला एक ट्रेंड ये भी सामने आया था! वैलेंटाइन-डे से ठीक पहले लकड़ी वाली हॉकी स्टिक और क्रिकेट की विकेट्स के प्री-ऑर्डर में भी जमकर इज़ाफ़ा हुआ। मशहूर वैलेंटाइन विशेषज्ञ और जाने-माने मनोवैज्ञानिक कोकी कूलेरस भी इस हॉकी ट्रेंड को लेकर काफ़ी अचरज में थे। उन्होंने बताया था कि हॉकी इतनी क्यों बिक रही है? मेरे ख़याल से हॉकी को लेकर नौजवान लोगों में जागरूकता बढ़ रही है।
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Wednesday, 5 February 2020

लता की लंबी परछाईं में गुम हुई आवाज!


सुमन कल्याणपुर

  फ़िल्मी दुनिया में जब मंगेशकर बहनों का डंका बजता था, तब कई मधुर पार्श्व गायिकाओं को आगे बढ़ने का मौका नहीं मिला। ऐसी ही एक गायिका हैं, सुमन कल्याणपुर। उन्होंने अपने दौर के करीब सभी बड़े संगीतकारों के लिए गीत गाए। उनकी आवाज और गायकी का अंदाज काफी हद तक लता मंगेशकर से मिलता था, इसीलिए जब भी लता की किसी संगीतकारों या गायकों से अनबन हुई तो उसका लाभ सुमन कल्याणपुर को मिला। लेकिन, उनके जीवन में एक घटना ऐसी घटी जो उन्हें आज भी कचोटती है। महाराष्ट्र के नांदेड़ में आयोजित 'आषाढी महोत्सव' के दौरान सुमन कल्याणपुर ने उस बात का खुलासा किया था। उन्होंने बताया था कि सन 1946 में पंडित नेहरू के सामने मुझे 'ए मेरे वतन के लोगो' गीत गाने का मौका मिला था। ये जानकर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन, जब कार्यक्रम के दौरान गाना गाने के लिए मंच के पास पहुंची तो मुझे रोका गया और कहा गया कि वे इस गाने की बजाय दूसरा गाना गाएं। कल्याणपुर ने बताया था कि ए मेरे वतन लोगों मुझसे छीन लिया गया था यह मेरे लिेए बड़ा सदमा था। उन्हें यह बात आज भी चूभती है।
  एक समय जब किसी मामले में मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर में अनबन हुई तो इसका लाभ सुमन कल्याणपुर को मिला। रफ़ी के साथ गाए उनके अधिकांश गीत कामयाब हुए। दिल एक मंदिर है, तुझे प्यार करते हैं करते रहेंगे, अगर तेरी जलवानुमाई न होती, मुझे ये फूल न दे, बाद मुद्दत के ये घड़ी आई, ऐ जाने तमन्ना जाने बहारां, तुमने पुकारा और हम चले आए, अजहूं न आए बालमा, ठहरिए होश में आ लूं तो चले जाईएगा, पर्वतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है, ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे, रहें ना रहें हम महका करेंगे, इतना है तुमसे प्यार मुझे मेरे राजदार और 'दिले बेताब को सीने से लगाना होगा' जैसे गीत उसी दौर में बने थे।
  उनके घर में कला और संगीत की तरफ सभी का झुकाव था। लेकिन, इतनी इजाजत नहीं थी कि सार्वजनिक तौर पर गाया जाए। पहली बार उन्हें 1952 में मुझे 'ऑल इंडिया रेडियो' पर गाने का मौका मिला। ये सुमन कल्याणपुर का पहला सार्वजनिक कार्यक्रम था! इसके बाद 1953 में उन्हें मराठी फिल्म 'शुची चांदनी' में गाने का मौका मिला। उन्हीं दिनों शेख मुख्तार फिल्म 'मंगू' बना रहे थे जिसके संगीतकार मोहम्मद शफी थे। मराठी गीतों  प्रभावित होकर ही उन्हें 'मंगू' में तीन गीत रिकॉर्ड करवाए थे। किन्तु, न जाने क्या हुआ और 'मंगू' संगीतकार को बदल दिया गया। मोहम्मद शफी की जगह ओपी नैयर आ गए। उन्होंने सुमन कल्याणपुर के तीन में से दो गीत हटा दिए और सिर्फ एक लोरी 'कोई पुकारे धीरे से तुझे' ही रखी। 'मंगू' के फौरन बाद उन्हें इस्मत चुगताई और शाहिद लतीफ की फिल्म 'दरवाजा' में नौशाद के साथ पाँच गीत गाने का मौका मिला। 1954 में ही उन्हें ओपी नैयर के संगीत निर्देशन में बनी फिल्म 'आरपार' के हिट गीत 'मोहब्बत कर लो, जी कर कर लो, अजी किसने रोका है' में रफी और गीता का साथ देने का मौका मिला था। सुमन के मुताबिक इस गीत में उनकी गाई एकाध पंक्ति को छोड़ दिया जाए तो उनकी हैसियत महज कोरस गायिका की सी रह गई थी।
  आज भी उनका नाम उन सुरीली गायिकाओं में होता है, जिन्होंने लता मंगेशकर के एकाधिकार के दौर में अपनी पहचान बनाई। इसके बावजूद उन्हें वो जगह कभी नहीं मिली, जिसकी वो हकदार थीं। शास्त्रीय गायन की समझ, मधुर आवाज़ और लम्बी रेंज जैसी सभी खासियतों के होते हुए भी सुमन कल्याणपुर को कभी लता मंगेशकर की परछाईं से मुक्त नहीं होने दिया गया। अपने करीब तीन दशक के अपने करियर में उन्होंने कई भाषाओँ में तीन हजार से ज्यादा फिल्मी-गैर फिल्मी गीत-ग़ज़ल गाए। बचपन से सुमन कल्याणपुर की पेंटिंग और संगीत में सुमन की हमेशा से दिलचस्पी थी। अपने पारिवारिक मित्र और पुणे की प्रभात फिल्म्स के संगीतकार पंडित 'केशवराव भोले' से गायन उन्होंने संगीत सीखा। उन्होंने गायन को महज़ शौकिया तौर पर सीखना शुरू किया था लेकिन धीरे धीरे इस तरफ उनकी गंभीरता बढ़ने लगी तो वो विधिवत रूप से 'उस्ताद खान अब्दुल रहमान खान' और 'गुरूजी मास्टर नवरंग' से संगीत की शिक्षा लेने लगीं।
  सत्तर के दशक में नए संगीत निर्देशकों और गायिकाओं के आने के साथ ही सुमन कल्याणपुर की व्यस्तताएं कम हो गेन। 1981 में बनी फिल्म 'नसीब' का 'रंग जमा के जाएंगे' उनका आखिरी रिलीज गीत साबित हुआ। सुमन के मुताबिक, फिल्म 'नसीब' के बाद मुझे गायन के मौके अगर मिले भी तो वो गीत या तो रिलीज ही नहीं हो पाए और अगर हुए भी तो उनमें से मेरी आवाज नदारद थी। गोविंदा की फिल्म 'लव 86' में मैंने एक सोलो और मोहम्मद अजीज के साथ एक युगलगीत गाया था। लेकिन, जब वो फिल्म और उसके रेकॉर्ड रिलीज हुए तो मेरी जगह कविता कृष्णमूर्ति ले चुकी थीं। कुछ ऐसा ही केतन देसाई की फिल्म 'अल्लारक्खा' में भी हुआ था जिसके संगीतकार अनु मलिक थे। सुमन कल्याणपुर को रसरंग (नासिक) का 'फाल्के पुरस्कार' (1961), सुर सिंगार संसद का 'मियां तानसेन पुरस्कार' (1965 और 1970), 'महाराष्ट्र राय फिल्म पुरस्कार' (1965 और 1966), 'गुजरात राय फिल्म पुरस्कार' (1970 से 1973 तक लगातार) जैसे करीब एक दर्जन पुरस्कार मिल चुके हैं। अब उन्हें मध्यप्रदेश सरकार ने भी वर्ष 2017 के लिए राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान देने की घोषणा की, जो उन्हें 6 फ़रवरी 2020 को लता मंगेशकर की जन्मस्थली इंदौर में दिया गया।
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Saturday, 25 January 2020

परदे पर देशभक्ति का तड़का लगाती फिल्में!

- एकता शर्मा
   फिल्म के परदे पर बिकने वाले हर विषय को भुनाया जाता है। उनमें एक देशभक्ति भी है। लेकिन, ये ऐसा विषय है जिसके विविध आयाम होते हैं! आजादी के परवानों की जिंदगी और उनके संघर्ष पर फिल्म बनाना देशभक्ति है, तो युद्ध आधारित ऐसी फ़िल्में जिनमें भारत ने जीत का झंडा लहराया हो, उसके प्रसंगों पर फिल्म निर्माण भी देशभक्ति ही है। अब तो ऐसे खेलों पर भी फ़िल्में बनाई गई, जिनमें भारत के खिलाड़ी जीते, उन फिल्मों को भी इसी श्रेणी में रखा गया। आजादी के संघर्ष पर कई फिल्में बनी, जिन्हें पसंद भी किया गया! ऐसी फिल्मों ने हमारे अंदर देशभक्ति का जज्बा भी जमकर जगाया! कहते हैं देशभक्ति का नशा जिसके सर चढ़ जाए सारी दुनिया उसके कदमों में होती है। देशभक्ति पर बनी ये फ़िल्में इस नशे को और बढ़ा देती हैं। 
   देशभक्ति के विषयों पर बनी ये फ़िल्में जब परदे पर आई तो दर्शकों के रोंगटे खड़े हो गए! कहा जाता है कि 1962 में आई फिल्म ‘हकीक़त’ में जब दर्शकों ने परदे पर भारतीय सैनिकों को युद्ध करते देखा तो वे खड़े होकर सैल्यूट करने लगे थे। देखा गया है कि जब भी सिनेमाघरों में देशभक्ति वाली कोई फिल्म लगती है, तो दर्शकों में अजीब सा ज़ज्बा लहरें मारने लगता है। 1952 में बनी ऐसी ही एक फिल्म थी 'आनंदमठ' जिसमें राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम' को पहली बार दर्शाया गया था। यह फिल्म बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास 'आनंदमठ' पर ही आधारित थी। फिल्म में भारत भूषण, गीता बाली, पृथ्वीराज कपूर, प्रदीप कुमार थे। फिल्म में देश के शूरवीरों के बलिदान को दिखाया गया है। फिल्म में 18वीं शताब्दी में अंग्रेजी हुकूमत से लड़े गए क्रांतिकारियों की कहानी थी। 
  1965 में बनी 'शहीद' में मनोज कुमार थे। फिल्म की कहानी 1916 से शुरू होती है, जब भगतसिंह के चाचा अजितसिंह को ब्रिटिश शासन के खिलाफ बगावत करने के जुर्म में पुलिस गिरफ्तार करके ले जाती है। बड़े होकर भगतसिंह भी अपने चाचा के नक्शे कदमों पर चलने लगते हैं और साइमन कमीशन के खिलाफ हो रहे आंदोलन में शामिल हो जाते हैं। मनोज कुमार ने भगतसिंह के किरदार को परदे पर उतारा था। इस फिल्म की कहानी भगत के साथी बटुकेशवर दत्त ने लिखी थी। यह संयोग ही था कि जिस वर्ष में फिल्म रिलीज होने वाली थी, उसी वर्ष बटुकेशवर की मौत हो गई। 1962 में आई 'हकीकत' ऐसे सैनिकों की टुकड़ी के बारें में थी, जो लद्दाख में भारत और पाकिस्तान के बीच छिड़ी जंग का हिस्सा है।
   1997 में रिलीज हुई जेपी दत्ता की फिल्म 'बॉर्डर' भारत और पाकिस्तान के बीच लोंगोवाल में हुई जंग पर आधारित थी। इस फिल्म की खासियत ये थी कि इसमें जंग को सच्चाई के साथ दिखाया गया था। इसके अलावा फिल्म में जवानों की निजी जिंदगी की भी कहानियां थी। कोई जवान सरहद पर अपने परिवार को किस हालत में छोड़कर पर आता है! किसी का परिवार उसका इंतजार करता रहता है, कभी छुट्टी मिलने के बावजूद जवान घर नहीं जा पाते! 'बॉर्डर' को देशभक्ति पर बनी एक बेहतरीन फिल्म माना जाता है। बैन किंग्सले की 1982 में आई 'गांधी' देशभक्ति वाली फिल्म तो नहीं थी, पर इस फिल्म ने महात्मा गांधी के जीवन की सच्चाई को दर्शकों के सामने जरूर लाया था। इसमें गांधीजी से जुड़े हर पहलू को पर्दे पर दर्शाने की कोशिश की गई थी। फिल्म ने 8 ऑस्कर अवॉर्ड्स जीते थे।
   फरहान अख्तर की 2004 में आई फिल्म 'लक्ष्य' 1999 के कारगिल युद्ध के संघर्ष की ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित काल्पनिक कहानी थी। रितिक लेफ्टिनेंट करण शेरगिल की भूमिका में थे। वे अपनी टीम का नेतृत्व करके आतंकवादियों पर विजय पाते हैं। 'मंगल पांडे : द राइजिंग' क्रांतिकारी मंगल पांडे की जिंदगी पर बनी फिल्म थी, जिन्होंने 1857 में ब्रिटिश अफसरों का विद्रोह किया था। माना जाता है कि मंगल पांडे ने ही सबसे पहले अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की जंग का आगाज किया था। 1967 में आई फिल्म मनोज कुमार की फिल्म ‘उपकार’ भी देशभक्ति से ओतप्रोत फिल्म थी। इस फिल्म को बनाने का मकसद ‘जय जवान, जय किसान’ के नारे को बुलंद करना था। फिल्म की कहानी राधा (कामिनी कौशल) और उसके दो बेटों भारत (मनोज कुमार) और पूरन (प्रेम चोपड़ा) के बीच जमीन के बंटवारे पर आधारित थी। ये तो वे चंद फ़िल्में हैं, जो उँगलियों पर गिनी गईं! बीते सौ से ज्यादा सालों में हिंदी फिल्मों के परदे पर ऐसी कई फ़िल्में बनी, जिन्होंने लोगों की देशभक्ति को झकझोर दिया था। अभी भी इन फिल्मों का दौर ख़त्म नहीं हुआ, वक़्त के साथ इनकी कहानियाँ बदली हैं, पर इनकी भावनाओं में कोई फर्क नहीं आया!  
  1953 में आई फिल्म 'झांसी की रानी' भी आजादी खिलाफ जंग लड़ने वालों पर बनने वाली फिल्मों में से एक थी। दशकों बाद एक बार फिर कंगना रनौट ने इसी विषय पर 'मणिकर्णिका' बनाकर रानी लक्ष्मीबाई का इतिहास जीवंत किया है। 1993 में वल्लभभाई पटेल पर फिल्म 'सरदार' बनाई गई और 2004 में आई 'नेताजी सुभाषचन्द्र बोस : द फॉरगॉटन हीरो' इसके बाद 2005 में आई 'मंगल पांडे : द राइजिंग' भी उन जांबाजों पर बनी फ़िल्में थीं, जिन्होंने आजादी की अलख जगाई थी। पिछले कुछ समय से देशभक्ति को खेल के साथ जोड़कर दिखाने का नया दौर शुरू हुआ है। जंग के मैदान में नहीं, तो खेल के मैदान में दुश्मनों को धूल चटाते देखना भारतीय दर्शकों को भी खूब भाता है तभी तो इस श्रेणी की फिल्में ब्लॉकबस्टर साबित होती हैं। इनमे चक दे इंडिया (2007), भाग मिल्खा भाग, मैरीकॉम (2014) और दंगल (2016) प्रमुख हैं।
   वास्तव में देशभक्ति वाली फिल्मों को एक तड़के की तरह इस्तेमाल किया गया है! लेकिन, ऐसी फिल्मों ने लोगों  जगाने का भी काम किया है। आजादी से पहले 1943 में आई फिल्म 'किस्मत' का गाना 'दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है' उस वक़्त अंग्रेज सरकार के विरोध का प्रतीक बन गया था। आजादी से पहले भारतीय फिल्मकारों की फिल्मों को ब्रिटिश सेंसर बोर्ड की मंजूरी लेना पड़ती थी। ब्रिटिश अफसरों के कमजोर भाषा ज्ञान के कारण इस फिल्म के गाने को मंजूरी मिल गई। महात्मा गांधी के 'भारत छोड़ो आंदोलन' के कुछ महीनों बाद आई ये फिल्म इस गाने की वजह से अमर हो गई।
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Friday, 24 January 2020

'कबीर सिंह' का कमाल, साल के अंत में छाया 'दबंग' और 'गुड न्यूज़ का जलवा!

सालभर का लेखा जोखा

  साल 2019 को फिल्मों से होने वाली कमाई और दर्शकों की पसंद के नजरिए से अच्छा साल माना जा रहा है। इस साल कई फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर ताबड़तोड़ कमाई की और दर्शकों का प्यार भी जीता। सबसे बड़ा कमाल किया शाहिद कपूर की फिल्म 'कबीर सिंह' ने! साऊथ की रीमेक इस फिल्म ने सारे अनुमान ध्वस्त करते हुए साल की बड़ी हिट में अपना नाम दर्ज किया। रितिक रोशन की 'सुपर-30' और रणवीर कपूर की 'गली बॉय' ने भी अच्छी कमाई की! इसके अलावा आयुष्मान खुराना की 'ड्रीम गर्ल' और 'बाला' ने भी अच्छी कमाई की। साल के आखिरी महीने रिलीज हुई सलमान की 'दबंग-3' और अक्षय कुमार की 'गुड न्यूज़' ने भी अच्छी कमाई के संकेत दिए! जबकि, खानदानी शफाखाना, वाय चीट इंडिया और 'जबरिया जोड़ी' ऐसी फ़िल्में रहीं जो बॉक्स ऑफिस पर ध्वस्त गईं! कुछ फिल्मों ने उम्मीद के मुताबिक कमाई तक नहीं की और कुछ तो अपनी लागत तक नहीं निकाल पाईं। 
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- एकता शर्मा 

  लमान खान की हाल ही में रिलीज फिल्म 'दबंग-3' को भी दर्शकों ने शानदार रिस्पांस दिया। इस फिल्म ने एडवांस बुकिंग से ही 12 करोड़ का कारोबार कर लिया! इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दर्शकों के बीच इस फिल्म को लेकर किस तरह की दीवानगी है। सामने आई फैंस की शुरूआती रिएक्शन की बात की जाए तो वो बहुत ही शानदार हैं। सलमान खान के फैंस को उनका चुलबुल पांडे अवतार काफी पसंद आ रहा है। 24 करोड़ के फर्स्ट डे कलेक्शन के बाद दूसरे दिन भी फिल्म ने 24 करोड़ से अधिक का कारोबार किया। फिल्म ने तीन दिन में 49.25 करोड़ का कलेक्शन किया, जो अनुमान से कम है। क्रिसमस के बाद सिनेमा घर में पहुंची अक्षय कुमार और करीना कपूर की 'गुड न्यूज' ने धमाके के साथ सिल्वर स्क्रीन पर शुरुआत की। इस फिल्म को पहले शो में ही जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला। मॉर्निंग शो में जबरदस्त भीड़ रही। फिल्म में अक्षय और करीना के अलावा दर्शकों को कियारा आडवाणी और दिलजीत दोसांझ की जबरदस्त केमिस्ट्री ने भी प्रभावित किया है। उम्मीद की जा रही है कि फिल्म बेहतरीन कारोबार करेगी। 

अब तक की 10 सुपरहिट और 10 फ्लॉप फिल्मों पर एक नजर :

- कबीर सिंह : साउथ की कई रीमेक फिल्में बॉलीवुड में बनती हैं। लेकिन, जो कमाल इस साल 'कबीर सिंह' ने किया वो किसी करिश्मे से कम नहीं! शाहिद कपूर और कियारा आडवाणी की ये फिल्म 21 जून को रिलीज हुई थी। फिल्म का बजट 60 करोड़ रुपए था और फिल्म ने 278.24  करोड़ रुपए की कमाई की। पहले हफ्ते फिल्म ने करीब 135 करोड़ रुपए, दूसरे हफ्ते करीब 80 करोड़ और तीसरे हफ्ते करीब 36 करोड़ की कमाई करते हुए पांचवे हफ्ते भी सिनेमाघर में टिकी रही। कबीर सिंह तेलुगू फिल्म 'अर्जुन रेड्डी' का रीमेक है।
- भारत : सलमान खान और कटरीना कैफ स्टारर फिल्म 'भारत' ईद पर 5 जून को रिलीज हुई थी। सलमान की ये फिल्म दक्षिण कोरियाई फिल्म 'ओड टू माय फादर' का रीमेक थी। फिल्म में सलमान के पांच अलग-अलग लुक देखने को मिले थे। फिल्म ने पहले ही दिन 42.30 करोड़ रुपए कमाए थे। वहीं इस फिल्म ने कुल 211.07 करोड़ की कमाई की थी। फिल्म में सलमान-कटरीना के साथ दिशा पाटनी, सुनील ग्रोवर, नोरा फतेही भी नजर आए थे।
- मिशन मंगल : स्वतंत्रता दिवस के खास मौके पर अक्षय कुमार की फिल्म 'मिशन मंगल' रिलीज हुई थी। फिल्म में अक्षय कुमार के साथ सोनाक्षी सिन्हा, तापसी पन्नू, कीर्ति कुल्हारी, शरमन जोशी, विद्या बालन सहित कुछ और स्टार्स भी नजर आए थे। फिल्म ने पहले दिन 29.16 करोड़ की कमाई की थी तो वहीं फिल्म ने 178.11 करोड़ रुपए का कलेक्शन किया है।
- केसरी : अक्षय कुमार और परिणीति चोपड़ा की फिल्म 'केसरी' 21 मार्च को रिलीज हुई थी। फिल्म ने पहले दिन 21.06 करोड़ की कमाई की थी। वहीं फिल्म ने 154. 41 करोड़ की कमाई की थी। फिल्म सारागढ़ी के युद्ध पर आधारित थी, जिसको अनुराग सिंह ने डायरेक्ट किया था।
 - उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक : साल की धमाकेदार शुरुआत का श्रेय 'उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक' को जाता है। ये फिल्म 11 जनवरी को रिलीज हुई थी। फिल्म ने पहले दिन महज 8.20 करोड़ रुपए की कमाई की थी। लेकिन, धीरे-धीरे इस फिल्म ने रफ्तार पकड़ी और कुल 245.36 करोड़ रुपए की कमाई की। फिल्म में विकी कौशल लीड किरदार में नजर आए थे।
- टोटल धमाल : अनिल कपूर, अजय देवगन, माधुरी दीक्षित स्टार फिल्म 'टोटल धमाल' 22 फरवरी को रिलीज हुई थी। फिल्म ने पहले दिन 16.50 करोड़ की कमाई की थी। वहीं फिल्म की कुल कमाई 154.23 करोड़ रही। इस फिल्म की खास बात ये रही थी कि फिल्म को ज्यादा अच्छे रिव्यूज नहीं मिले थे लेकिन बावजूद इसके फिल्म ने जमकर कमाई की। फिल्म का निर्देशन इंद्र कुमार ने किया है।
- सुपर 30 : 12 जुलाई 2019 को रितिक रोशन और मृणाल कुलकर्णी की फिल्म 'सुपर 30' रिलीज हुई थी। फिल्म ने पहले दिन 11.83 करोड़ की कमाई की थी। वहीं फिल्म ने कुल 146.91 करोड़ की कमाई की थी। फिल्म में रितिक सुपर 30 के संचालक आनंद के किरदार में नजर आए थे।
- गली बॉय : रणवीर सिंह और आलिया भट्ट की 'गली बॉय' 14 फरवरी को रिलीज हुई थी। फिल्म में रणवीर सिंह और आलिया एक दम अलग अंदाज में नजर आए थे। रणवीर ने फिल्म में जमकर रैप किया था। फिल्म ने पहले दिन 19.40 करोड़ रुपये की कमाई की थी तो वहीं फिल्म की कुल कमाई 140.25 करोड़ रुपये थी। फिल्म का निर्देशन जोया अख्तर ने किया था।
- दे दे प्यार दे : अजय देवगन, रकुलप्रीत और तबु स्टार फिल्म दे दे प्यार दे 17 मई 2019 को रिलीज हुई थी। फिल्म ने पहले दिन 10.41 करोड़ रुपए की कमाई की थी। वहीं फिल्म ने कुल कमाई 103.64 करोड़ रुपए की कमाई की। फिल्म में अजय देवगन काफी वक्त बाद कॉमेडी करते नजर आए थे। फिल्म का निर्देशन आकिव अली ने किया है।
- लुका छुपी : बॉलीवुड के चॉकलेट बॉय कार्तिक आर्यन की फिल्म 'लुका छुपी' भी 100 करोड़ क्लब में शामिल हुई थी। फिल्म में कार्तिक के साथ कृति सेनन नजर आई थीं। न सिर्फ फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कलेक्शन किया था, बल्कि फिल्म के गाने भी हिट रहे थे। फिल्म ने पहले दिन 8.01 करोड़ रुपए जबकि कुल 103.64 करोड़ की कमाई की थी।

ये फ़िल्में जो अपनी लागत भी नहीं निकाल सकीं 

- मलाल : शर्मिन सहगल, मीजान जाफरी, समीर धर्माधिकारी, अंकुश बिष्ट की फिल्म 'मलाल' 5 जुलाई को रिलीज हुई थी। फिल्म को मंगेश हडावले ने निर्देशित और टी-सीरीज और संजय लीला भंसाली ने प्रोड्यूस किया था। फिल्म एक तमिल फिल्म का रीमेक थी। फिल्म से जावेद जाफरी के बेटे मीजान और संजय लीला भंसाली की भांजी शर्मिन ने बॉलीवुड डेब्यू किया था। फिल्म ने पहले दिन 45 लाख रुपए और कुल 2.54 करोड़ रुपए की कमाई की थी।
- नोटबुक : जहीर इकबाल और प्रनूतन की फिल्म 'नोटबुक' 29 अप्रैल को रिलीज हुई थी। फिल्म को सलमान खान ने प्रोड्यूस और नितिन कक्कड़ ने डायरेक्ट किया था। फिल्म से मोहनीश बहल की बेटी प्रनुतन ने डेब्यू किया था। फिल्म ने पहले दिन महज 50 लाख रुपए की कमाई की थी। वहीं फिल्म का कुल कलेक्शन 3.72 करोड़ रुपए रहा।
- खानदानी शफाखाना : 2 अगस्त 2019 को सोनाक्षी सिन्हा और वरुण शर्मा की फिल्म 'खानदानी शफाखाना' रिलीज हुई थी। इस फिल्म के साथ ही रैपर-सिंगर बादशाह ने भी बॉलीवुड डेब्यू किया था। इसका म्यूजिक तो हिट हुआ था! लेकिन, फिल्म बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम साबित हुई। खानदानी शफाखाना ने पहले दिन महज 75 लाख रुपए का कलेक्शन किया था। जबकि, कुल कमाई 3.83 करोड़ रुपए थी। इसका डायरेक्शन शिल्पी दासगुप्ता ने किया था।
- गेम ओवर : 14 जुलाई 2019 को तापसी पन्नू स्टार की फिल्म गेम ओवर रिलीज हुई थी। इसका निर्देशन और लेखन अश्विन सरावनन ने किया था। फिल्म को अच्छे रिव्यूज मिलने के बाद भी यह बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम साबित हुई। गेम ओवर ने पहले दिन 38 लाख रुपये कमाए थे जबकि कुल कमाई 4.69 करोड़ रुपये रही थी।
- अर्जुन पटियाला : दिलजीत दोसांझ, कृति सेनन और वरुण शर्मा की फिल्म 'अर्जुन पटियाला' 26 जुलाई को रिलीज हुई थी। इसका म्यूजिक हिट था, लेकिन यह फ्लॉप साबित हुई। 'अर्जुन पटियाला' ने पहले दिन 1.25 करोड़ की कमाई की थी! जबकि, कुल कलेक्शन 6.62 करोड़ रुपए रहा था। इसका निर्देशन रोहित जुगराज ने किया था।
- वाय चीट इंडिया : इमरान हाशमी की फिल्म 'वाय चीट इंडिया' 18 जनवरी को रिलीज हुई थी। फिल्म शिक्षा के बाजार के काले सच पर आधारित थी। इसका म्यूजिक दर्शकों को काफी पसंद आया था। लेकिन, फिल्म कुछ खास पसंद नहीं आई थी। इसने पहले दिन 1.71 करोड़ रुपये की कमाई की, जबकि कुल कलेक्शन 8.66 करोड़ था। 'वाय चीट इंडिया' का निर्देशन सौमिक सेन ने किया था।
- इंडियाज मोस्ट वांटेड : अर्जुन कपूर की फिल्म 'इंडियाज मोस्ट वांटेड' बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम साबित हुई थी। फिल्म 24 मई को रिलीज हुई थी। इसने पहले दिन 2.10 करोड़ रुपये की कमाई की थी। जबकि, फिल्म की कुल कमाई 11.90 करोड़ रही थी। इसके गाने भी दर्शकों को पसंद नहीं आए थे। फिल्म का निर्देशन राजकुमार गुप्ता ने किया था।
- जबरिया जोड़ी : सिद्धार्थ मल्होत्रा और परिणीति चोपड़ा स्टारर फिल्म 9 अगस्त को रिलीज हुई थी। इसका म्यूजिक तो लोगों को पसंद आया लेकिन फिल्म दर्शकों पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई। फिल्म ने पहले दिन 2.70 करोड़ की कमाई की थी तो वहीं फिल्म ने कुल 16.33 करोड़ का कलेक्शन किया था। फिल्म का निर्देशन प्रशांत सिंह ने किया था।
- ठाकरे : बालासाहेब ठाकरे को बड़े पर्दे पर लाने का काम नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने किया था। फिल्म को अच्छे रिव्यूज मिले थे और साथ ही साथ फिल्म दर्शकों को पसंद भी आई थी। बावजूद इसके ठाकरे उम्मीद के मुताबिक कमाई नहीं कर पाई। यह 25 जनवरी 2019 को रिलीज हुई थी। फिल्म ने पहले दिन 2.75 करोड़ रुपए की कमाई की थी। जबकि, कुल बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 18.19 करोड़ का था। ठाकरे का निर्देशन अभिजीत पानसे ने किया था।
- एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा : सोनम कपूर, अनिल कपूर और राजकुमार राव की फिल्म 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' से काफी उम्मीद लगाई जा रही थीं। यह उम्मीद पर खरी नहीं उतरी और बॉक्स ऑफिस पर कोई कमाल नहीं कर सकी। शैली चोपड़ा धार निर्देशित फिल्म ने पहले दिन 2.90 करोड़ की कमाई की थी। जबकि, फिल्म का कुल कलेक्शन 20.28 करोड़ रहा था। 
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