-एकता शर्मा
हिंदी फिल्म संगीत का ये कौनसा दौर है, कोई नहीं जानता! क्योंकि, आजकल की फिल्मों में संगीत को लेकर बहुत घालमेल जैसा माहौल है। कभी किसी फील्म का संगीत दिल में उतर जाता है, तो किसी फिल्म के संगीत से उकताहट सी होने लगती है। अरिजीत सिंह, आतिफ असलम की आवाज और अमित त्रिवेदी के संगीत ने जरूर मैलोडी को जिंदा रखा है, वरना ज्यादातर फिल्मों में कानफोड़ू संगीत ही सुनाई देता है। आश्चर्य की बात है कि बीते कुछ सालों में न तो किसी नए भजन की रचना हुई, न किसी कव्वाली की और न राष्ट्रभक्ति वाले किसी गीत की! याद करने की कोशिश भी की जाए तो शायद याद नहीं आएगा कि एक-दो दशक में कभी ऐसा कोई नया गीत सुनने में आया हो!
आजकल ज्यादातर फिल्मों में जो भी गाने लिए जा रहे हैं, वो या तो कहानियों से जुड़े प्रेम में पगे गीत होते हैं या फिर संगीत कंपनियों के पास से रेडीमेड ले लिए जाते हैं। अब तो इससे भी आगे का दौर ये आ गया कि पुरानी फिल्मों के गीतों को नए कलेवर में नए गायकों से गवा लिया जाता है। इसलिए कहा जा सकता है कि फिल्म संगीत का यह दौर बड़ा बेहद निराशाजनक है। स्थापित और सिद्धहस्त संगीतकार और पार्श्व गायक-गायिकाएं सिर्फ टेलीविजन के लाइव शो में जज बनकर बैठे नजर आ रहे हैं। जबकि, कानफोड़ू संगीत वाले संगीतकारों को जमकर काम मिल रहा है। आजकल जो फिल्म संगीत सुनाई दे रहा है उसका सबसे नकारात्मक पक्ष ये है कि उसमे 'मैलोडी' कहीं नहीं है। भारतीय फिल्म संगीत अपने आपमें चिंतन का बहुत बड़ा और विस्तारित विषय है। इसने संगीत की कई शैलियों को जन्म दिया है। फिल्मों का सुगम संगीत दशकों से प्रचलित है। सुगम संगीत में फिल्म संगीत है।
आज के समय के श्रेष्ठ संगीत की बात की जाए तो जिस संगीतकार ने सुनने वालों के दिलों पर राज किया, वो है एआर रहमान। वो संगीत की ताजी हवा का झोंका बनकर आए और सबके दिलों में बस गए। उन्होंने बहुत कम समय में सफलता का स्वाद चख लिया। एआर रहमान ने अपने करिअर की शुरुआत मणिरत्नम की फिल्म 'रोजा' से की थी। लेकिन, फिर पलटकर नहीं देखा। उन्होंने रंगीला, बॉम्बे, ताल, लगान, रंग दे बसंती, जोधा अकबर से लेकर 'मॉम' तक में अपनी विविधता का परिचय दिया है। शास्त्रीय संगीत, सूफी संगीत, कर्नाटक संगीत और कव्वाली तक पर उनका पूरा-पूरा अधिकार है। कहा जा सकता है कि वे आज के वक़्त के सबसे वे सफलतम संगीतकार है। लेकिन, उनके जैसा कोई दूसरा क्यों नहीं बन सका? आज भी फिल्म संगीत का यह सफर जारी है। इस दौर का कुछ फिल्म संगीत सुनने लायक तो है, लेकिन कालजयी नहीं! संगीत प्रेमी आज भी 60 और 70 के दशक के संगीतकारों और गायकों के गीत गुनगुनाते हैं। बीते दो दशकों में आई कुछ धुनें कर्णप्रिय तो थीं, लेकिन संगीत को समझने वालों के दिलों में जगह नहीं बना सकीं।
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