Saturday 30 April 2016

फिल्मों में आज भी कमजोर क्यों है नारी?


 हिंदी फिल्मों में हीरो और हीरोइन का दर्जा बराबर का माना जाता है, पर हीरोइन की हैसियत ऐसी नहीं होती कि वो फिल्म का बोझ अपने कंधे पर उठा सके! इसलिए नहीं कि वो ऐसा कर नहीं सकती! बल्कि, इसलिए कि निर्माता और निर्देशक को भरोसा नहीं होता! यही कारण है कि देश में हरसाल सैकड़ों फ़िल्में बनती हैं, पर महिला प्रधान फिल्मों की गिनती की जाए तो सालभर में उतनी फ़िल्में भी नहीं बनती जितनी हाथ में उंगलियां होती हैं। आज मदर इंडिया, अर्थ, दामिनी और लज्जा जैसी फ़िल्में क्यों नहीं बनती जिनसे भारतीय नारी की अलग छवि बनती है।  

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 * एकता शर्मा 
  करीना कपूर और अर्जुन कपूर की फिल्म 'की एंड का' में नायक को नायिका की तरह घरेलू काम करते हुए बताया गया है! इस पर भी करीना का कहना है कि ‘की एंड का’ यह महिला सशक्तीकरण पर आधारित नहीं है। फिल्म के जरिए समाज में बदलाव लाने की कोई कोशिश नहीं की गई है। सबसे पहले तो फिल्म मनोरंजन का एक जरिया है। यह फिल्म महिला सशक्तीकरण, लैंगिक समानता अथवा समाज बदलने के उद्देश्य से बनाया गया वृत्तचित्र नहीं है। दरअसल, यही वो कारण है कि कोई फिल्म निर्माता महिला प्रधान फिल्म बनाने का साहस कम ही करता!

  अब तक की श्रेष्ठ महिला प्रधान फिल्मों पर नजर दौड़ाई जाए तो चंद फिल्में ही हैं जिन्हें याद किया जाए! 1957 में बनी 'मदर इंडिया' वो भारतीय फ़िल्म है जिसे महबूब ख़ान द्वारा लिखा और निर्देशित किया गया। फ़िल्म में नर्गिस, सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार और राजकुमार मुख्य भूमिका में हैं। ये फ़िल्म महबूब ख़ान द्वारा ही निर्मित औरत (1940) का रीमेक है। यह गरीबी से पीड़ित गाँव में रहने वाली औरत राधा की कहानी है जो कई मुश्किलों का सामना करते हुए अपने बच्चों का पालन पोषण करने और जागीरदार से बचने की मेहनत करती है। उसकी मेहनत और लगन के बावजूद वह एक आदर्श उदाहरण पेश करती है और भारतीय नारी की परिभाषा स्थापित करती है। फिर अंत में खुद अपने गुंडे बेटे को मार देती है। 1975 में बनी गुलज़ार की फिल्म 'आंधी' के जरिए विवादों की ऐसी आंधी उठी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर फिल्म के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया गया! कथित रूप से गांधी के जीवन पर आधारित फिल्म की नायिका सुचित्रा सेन का पूरा गेटअप उनसे प्रेरित था! बालों के कुछ हिस्सों की सफेदी वाले हेयर स्टाइल और एक हाथ से साड़ी का पल्लू संभालने और दूसरे हाथ से लोगों को देखकर हाथ हिलाने की उनकी शैली को ही नायिका ने अपने अभिनय में उतारा था! 1977 में निर्मित 'भूमिका' को श्याम बेनेगल ने निर्देशित किया था! फिल्म में मुख्य भूमिका में थे स्मिता पाटिल, आमोल पालेकर, अनंत नाग, नसीरुद्दीन शाह, अमरीश पुरी। फिल्म 1940 के वक्त की स्क्रीन एक्ट्रेस हंसा वाडकर पर आधारित थी।

  1982 में आई फिल्म अर्थ को महेश भट्ट ने निर्देशित किया था। फिल्म में शबाना आजमी, कुलभूषण खरबंदा, स्मिता पाटिल मुख्य भूमिका में थे। फिल्म में महेश भट्ट ने परवीन बॉबी के साथ अपने विवाहेत्तर संबंधों को फिल्माया था। 1987 की केतन देसाई की फिल्म 'मिर्च मसाला' में उन महिलाओं की पीड़ा को उभारा गया था, जो मसालों के कारखानों में काम करती है। 1993 में आई राजकुमार संतोषी की फिल्म 'दामिनी' में दामिनी का रोल किया था मीनाक्षी शेषाद्री ने। 'दामिनी' एक ऐसी नारी की गाथा है जो अन्याय के विरुद्ध बीड़ा उठाकर चैन से नहीं बैठते तथा मरते दम तक संघर्ष करते हैं। दामिनी अपने देवर राकेश को नौकरानी के साथ दुष्कर्म करते देख लेती है. अपने परिवार के खिलाफ जाकर दामिनी नौकरानी को इंसाफ दिलाने में जुट जाती है।
  सन 2001 में मधुर भंडारकर की फिल्म 'चांदनी बार' में बार में काम करने वाली लड़कियों की जिंदगी पर प्रकाश डाला गया है. तबू इस फिल्म में मुख्य भूमिका में हैं। 2001 में ही आई राजकुमार संतोषी की फिल्म 'लज्जा' पुरुष आधिपत्यवाद की शिकार चार अलग-अलग वर्गों से संबंधित महिलाओं की यात्रा कथा है, जो उन्हें एक साथ ले आती है। और वे प्रताडि़त होने से इंकार कर, अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करती हैं। 2011 में आई 'नो वन किल्ड जेसिका' राजकुमार गुप्ता द्वारा निर्देशित फिल्म थी, जो सनसनीखेज जेसिका लाल हत्याकांड पर आधारित थी। इसी साल आई 'द डर्टी पिक्चर' सिल्क स्मिता की जीवनी पर आधारित हिन्दी फिल्म थी। फिल्म का निर्देशन मिलन लुथरिया ने किया! सुजॉय घोष द्वारा निर्देशित 'कहानी' फिल्म की हीरोइन विद्या बालन के इर्दगिर्द घूमती है जो कि प्रेग्नेंट होती है। विद्या लंदन से कोलकाता अपने पति अर्णब बागची को ढूंढने के लिए आती है जो दो महीनों से लापता होता है। इसी साल आई फिल्म 'नीरजा' मुंबई की पैन एम एयरलाइन्स की विमान परिचारिका नीरजा भनोट पर आधारित थीं। 5 सितंबर 1986 को मुम्बई से न्यूयॉर्क जा रही फ्लाइट के अपहृत विमान में यात्रियों की सहायता एवं सुरक्षा करते हुए वे आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गईं थीं। 2014 में आई विकास बहल की फिल्म 'क्वीन' को भी औरत की आजादी की प्रतीक फिल्म कहा जा सकता है। मंगेतर द्वारा शादी स्थगित करने से रानी बनी कंगना रनौत हनीमून पर अकेले ही जाने का निर्णय लेती है। यूरोप घूमते हुए वह खुश होती है, नए दोस्त बनाती और आजादी हांसिल करती है। 'क्वीन' एक बेहतरीन फिल्म है जिसमें एक लड़की की बाहरी यात्रा के साथ-साथ आंतरिक यात्रा देखने को मिलती है, जो उसमें बदलाव लाती है। कंगना रनोट ने फिल्म में बेहतरीन अभिनय किया है।
   पिछले साल (2015) भी कुछ महिला प्रधान फ़िल्में बनी। कुछ फिल्मों ने अच्छा बिजनेस भी किया! कुछ महिला प्रधान फिल्में दर्शकों के जहन में हमेशा रहेंगी। 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' में श्रेष्ठ भूमिका के लिए कंगना रनौत को नेशनल अवॉर्ड दिया गया! फिल्म में दोहरे अवतार में कंगना ने अपने एक्टिंग के दम पर दर्शकों का मनोरंजन तो किया ही साथ ही अपने दो अलग-अलग किरदारों में शानदार अदायगी से पूरी इंडस्ट्री को हैरत में डाल दिया। अनुष्का शर्मा की 'एनएच-10' में अनुष्का ने जमीनी हकीकत पर आधारित फिल्म बनाई और नील भूपलम के साथ अहम किरदार निभाया। 'पीकू' में दीपिका पादुकोण ने फिर अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया। दीपिका ने अमिताभ की बेटी 'पीकू' के रूप में पूरा घर संभाला और दर्शकों ने अपने परिवार के साथ इस फिल्म को सराहा। 'मसान' में ऋचा चढ्डा के किरदार को दर्शकों ने जमकर सराहा। ऋचा ने अपने टैलेंट के जरिए इस फिल्म के साथ दर्शकों को सोचने पर विवश किया। 'मार्गरिटा विद अ स्ट्रॉ' में कल्कि कोचलिन को भी इस फिल्म से काफी सराहना मिली।
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Friday 8 April 2016

'मेरी आवाज ही पहचान है ...'


लता मंगेशकर : सात दशक से छाया आवाज का जादू 

  संगीत का एक महत्वपूर्ण अंग है 'ताल।' इस शब्द को उलट दिया जाए तो जो शब्द बनता है, संगीत की शुरूआत उसी शब्द से होती है। संगीत के सारे सुर उस शब्द पर आकर थम जाते हैं, यह शब्द है 'लता।' भारत रत्न लता मंगेशकर को दुनिया में किसी परिचय की जरूरत ही नहीं है। आखिर चांद, सितारों, जमीन, आसमान, नदियों और सागरों की तरह शास्वत वस्तुएं किसी परिचय की मोहताज नहीं होती। संगीत की स्वरलहरियों और सात सुरों के संसार में लता ऐसी ही शास्वत शख्यियत है, जिनके कंठ से सरस्वती के सुर निकलते हैं। 'रामलीला' में गाकर लताजी ने फ़िल्मी दुनिया में 71 साल पूरे जरूर कर लिए, पर ये सफर अभी भी जारी है।   
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- एकता शर्मा 

   हिन्दी सिनेमा के ट्रेजेडी किंग और विख्यातनाम कलाकार दिलीप कुमार ने लगभग चार दशक पहले 1974 में लंदन स्थित रायल एलबर्ट हाल में अपनी दिलकश आवाज में कहा था 'जिस तरह कि फूल की खुशबू या महक का कोई रंग नहीं होता, वह महज खुशबू होती है। जिस तरह बहते पानी के झरने या ठंडी हवा का कोई मुकाम, घर, गांव, देश या वतन नहीं होता। जिस उभरते सूरज या मासूम बच्चे की मुस्कान का कोई मजहब या भेदभाव नहीं होता, उसी तरह से कुदरत का एक करिश्मा है लता मंगेशकर।' तो दर्शकों से खचाखच भरे हाल में कई मिनटों तक तालियों की गडगडाहट गूंजती रही! वास्तव में दिलीप कुमार ने लता मंगेशकर का जो परिचय दिया वह न केवल उनकी सुरीली आवाज बल्कि उनके सौम्य व्यक्तित्व का सच्चा इजहार है। 
   1974 से 1991 तक दुनिया में सबसे ज्यादा गीत गाकर 'गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड' में अपना नाम शुमार कराने वाली लता मंगेशकर ने सभी भारतीय भाषाओं में अपने सुर बिखेरें हैं। यदि  भारतीय फिल्मी गायक-गायिकाओं में कोई नाम सबसे ज्यादा सम्मान से लिया जाता है, तो वह है सिर्फ और सिर्फ लता मंगेशकर। 28 सितम्बर 1929 को मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी इंदौर मे जन्मी लता को गायन कला विरासत में मिली। उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर शास्त्रीय गायक तथा थिएटर कलाकार थे। यदि दीनानाथ मंगेशकर के नाटक 'भावबंधन' की नायिका का नाम लतिका न होता और उनके माता-पिता अपनी सबसे बड़ी बेटी को यह नाम नहीं देते, तो आज शायद हम उन्हें उनके बचपन के नाम हेमा हर्डिकर के नाम से जानते! लता का बचपन का नाम हेमा और सरनेम हर्डिकर था, जिसे बाद में उनके परिवार ने गोवा मे अपने गृह नगर मंगेशी के नाम पर मंगेशकर रखा और आज इसी नाम लता मंगेशकर को सारी दुनिया जानती है और स्वरसामज्ञी सा सम्मान देती है। 
सफर सत्तर सालों का 
   1942 में जब लताजी मात्र 13 साल की थी, उनके पिताजी की हृदय रोग से मृत्यु हो गई। तब अभिनेत्री नंदा के पिता और नवयुग चित्रपट कंपनी के मालिक मास्टर विनायक ने बतौर अभिनेत्री और गायिका लता मंगेशकर का करियर आरंभ करने में मदद की। वसंत जोगलेकर की मराठी फिल्म 'किती हसाळ' में 1942 में पहली बार सदाशिव राव नर्वेकर की संगीत रचना में गाए गीत 'नाचु या गडे, खेलू सारी मानी हाउस भारी' गाकर अपना करियर आरंभ करने वाली लता ने कभी पीछे मुड कर नहीं देखा! सत्तर सालों से वे हिन्दी फिल्म जगत की शीर्षस्थ और सर्वाधिक सम्मानित गायिका के रूप में विराजमान है। उस्ताद अमानत अली खान से हिन्दुस्तानी संगीत सीखकर उन्होंने 1946 में पहला हिन्दी गीत 'पा लागू कर जोरी' गाया। 1945 में 'बड़ी मां' में अभिनय के साथ लता ने 'माता तेरे चरणों में' भजन गाया। 
   1947 में विभाजन के बाद जब उनके गुरू अमानत अली खान पाकिस्तान चले गए तो उन्होंने अमानत खान देवास वाले से शास्त्रीय संगीत सीखा। इस दौरान बड़े गुलाम अली खान के शिष्य पंडित तुलसीदास शर्मा ने भी उन्हें प्रशिक्षित किया और संगीतकार गुलाम हैदर ने उन्हें 1948 में 'मजबूर' फिल्म का गीत 'दिल मेरा तोडा' गवाया और अपने उर्दू के उच्चारण को सुधारने के लिए मास्टर शफी से बकायदा उर्दू का ज्ञान लिया। 1949 में जब कमाल अमरोही की फिल्म 'महल' में उन्होंने मधुबाला पर फिल्माया गीत 'आएगा आने वाला गाया' तो सारा देश उनकी आवाज से मंत्रमुग्ध हो गया। उसके बाद से हर फिल्म में लता का गाया गाना जरूरी माना जाने लगा।
   पचास के दशक में अनिल विश्वास के साथ अपना गायन आरंभ कर लताजी ने शंकर-जयकिशन, नौशाद, एसडी.बर्मन, पंडित हुस्नलाल भगतराम, सी. रामचन्द्र, हेमंत कुमार, सलिल चौधरी, खैयाम, रवि, सज्जाद हुसैन, रोशन, कल्याणजी-आनंदजी, वसंत देसाई, सुधीर फडके, उषा खन्ना, हंसराज और मदनमोहन के साथ स्वरलहरियां बिखेरी। साठ और सत्तर के दशक में लता ने चित्रगुप्त, आरडी बर्मन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, सोनिक ओमी जैसे नए संगीतकारों के साथ काम किया। उसके बाद उन्होंने राजेश रोशन, अनुमलिक, आनंद मिलिन्द, भूपेन हजारिका, ह्रदयनाथ मंगेशकर, शिवहरी, राम-लक्ष्मण, नदीम श्रवण, जतिन-ललित, उत्तम सिंह, एआर रहमान और आदेश श्रीवास्तव जैसे नए संगीतकारों को अपनी आवाज देकर फिल्मी दुनिया में स्थापित किया। जहां तक गायकों का सवाल है लता ने हर काल के हर छोटे बड़े गायकों की आवाज से आवाज मिलाकर श्रोताओं के कानों में रस घोला है। 
लता पर हर शख्स फिदा 
  लता मंगेशकर की आवाज में यदि शहद सी मिठास है तो चंदन सी महक भी है। यदि उनमें चांदनी सी चमक है तो भक्ति संगीत की पवित्रता और बाल सुलभ सादगी और सरलता भी है। उनकी आवाज की एक खासियत यह भी है कि यदि आंखें मूंदकर लताजी के गीतों को सुना जाए तो सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि पर्दे पर यह गीत किस पर फिल्माया जा रहा है। अपने उम्र के इस पडाव में जब वह माधुरी, काजोल या किसी नर्ह तारिका के लिए गाती हैं, तो ऐसा लगता नहीं कि यह आवाज किसी परिपक्व गायिका की है। बल्कि, ऐसा लगता है जैसे कोई सोलह बरस की अल्हड युवती गा रही है। उनकी आवाज की इसी खासियत की वजह से पिछले सत्तर बरसों से वह लगभग सभी नायिकाओं को अपने सुरो से अलंकृत कर चुकी है और उनकी इसी अदा पर हर शख्स उन पर फिदा है। 
   वैसे तो हर गायक या गायिका का किसी खास संगीतकार से तालमेल ज्यादा बेहतर होता है। वे उसके लिए बेहतरीन गायन करते हैं। लेकिन, लता ने सभी संगीतकारों के साथ उम्दा और बेहद उम्दा ही गाया। यह बात जरुर है कि संगीतकार मदनमोहन और सी. रामचन्द्र के साथ उनकी खास पटती थी। मदनमोहन की फिल्म 'अनपढ़' के गीत 'आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे' सुनकर संगीतकार नौशाद ने मदनमोहन को फोन करके कहा कि आपके इस गीत पर मेरा सारा संगीत कुर्बान है! ऐसी ही एक रोचक बात यह भी सुनी जाती थी कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकारअली भुट्टो ने कहा था कि एक लता हमें दे दो और पूरा पाकिस्तान ले लो! हालांकि, इस बात में कोई सच्चाई होगी, मानना मुश्किल है। क्योंकि, यह वही लता है जिसने 27 जून 1963 को  नई दिल्ली में 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाकर पंडित नेहरू को रूला दिया था। 
हर शैली में हीरे सी चमक 
   लता मंगेशकर ने हर शैली के गीतों में अपनी सुरीली आवाज से प्राण फूंके हैं। सलील चैधरी के संगीत से सजी 'मधुमती' में जब वे 'आ जा रे परदेसी' गाती हैं, तो लगता है जन्मों से कोई विरहन अपने प्रेमी के इंतजार में तड़फकर उसे पुकार रही है। शंकर-जयकिशन की धुन पर जब वे 'चोरी-चोरी' में 'पंछी बनूं उडती फिरूं मस्त गगन में' गाती हैं तो सुनने वालों को ऐसा लगता है जैसे लताजी की आवाज को पर मिल गए हों! इसी फिल्म के गीत 'ये रात भीगी भीगी' और 'आ जा सनम मधुर चांदनी में हमतुम मिले तो' सुनकर ऐसा लगता है जैसे उन्होंने अपनी आवाज में सारे जहां की रूमानियत उडेंल दी है! इसके साथ ही जब 'मुगले आजम' में उन्होंने 'प्यार किया तो डरना क्या' गाया तो शहंशाह के सामने अनारकली की बगावत के सुर सभी को सुनाई देने लगे। इसी फिल्म में जब 'मोहे पनघट पर नंदलाल छेड गयो रे' गाया तो श्रोताओं के मन भक्ति मे डूब गए। इसी तरह 1962 में संगीतकार जयदेव की संगीत रचना 'अल्लाह तेरो नाम' और 'प्रभु तेरो नाम' गाकर अपनी आवाज के समर्पण का जादू दिखाया।
आज भी बह रही है सुर गंगा 
   वैसे तो वे आजकल गाती नहीं हैं, लेकिन पिछले साल उन्होंने अपने जन्मदिन पर खुद का म्यूजिक एलबम निकालकर भजन प्रस्तुत किए। संजय लीला भंसाली की आने वाली फिल्म 'रामलीला' में गाना गाकर लताजी ने अपनी संगीत यात्रा के 71 साल पूरे कर लिए हैं। लेकिन, आज भी उनकी आवाज में कुदरत का वही आशीर्वाद और मां सरस्वती की वही अनुकम्पा विद्यमान है ।  
सम्मान और पुरस्कार  
   'भारत रत्न' सा सम्मानित लता मंगेशकर को 1969 में पदमभूषण, 1999 में पद्म विभूषण, 1989 में दादा साहब फालके पुरस्कार, 1997 में महाराष्ट्र भूषण अवार्ड, 1999 में एनटीआर नेशनल अवार्ड, 2009 में एएनआर नेशनल अवार्ड, तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, चार बार फिल्मफेयर पुरस्कार तथा 1993 में फिल्मफेयर लाइफटाइम एचीवमेट पुरस्कार मिले। नई प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए उन्होंने फिल्मफेयर पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया था। 1984 में मध्य प्रदेश सरकार ने उनके नाम से लता मंगेशकर अवार्ड आरंभ किया। 1992 में महाराष्ट्र सरकार ने भी उनके नाम से लता मंगेशकर अवार्ड आरंभ किया। 
गायिका का साथ संगीतकार भी  
   बहुत कम लोग जानते हैं कि लता मंगेशकर एक अच्छी गायिका ही नहीं एक अच्छी संगीतकार और फिल्म निर्मात्री भी हैं। उन्होंने 1955 में पहली बार मराठी फिल्म 'राम राम पाव्हणे' में संगीत दिया। इसके बाद आनंद घन के छद्म नाम से मराठा टिटुका मेलवावा, मोहित्याची मंजुला, ताम्बादी माटी और साधी माणसे में संगीत दिया। इसके साथ ही 1953 मे मराठी फिल्म वाडाल, 1953 में सी. रामचन्द्र के साथ मिलकर हिन्दी फिल्म जहांगीर,1955 में कंचन और 1990 में 'लेकिन' फिल्म का निर्माण किया। फोटोग्राफी की शौकीन लता की गायकी की महक इतनी फैली कि 1999 में उनके नाम से एक परफ्यूम 'लता यू डि' प्रस्तुत किया गया था। 
संगीत से संसद तक 
  1999 में राज्यसभा के लिए मनोनीत लता मंगेशकर ने  बतौर सांसद न तो कभी वेतन लिया और न कोई भत्ता! यहां तक कि उन्होंने दिल्ली में सांसदों को मिलने वाला आवास तक नहीं लिया। संसद से दूर रहकर भी उन्होंने देश सेवा में हमेशा हाथ बंटाया! 2001 में 'भारत रत्न' जैसे सर्वोच्च सम्मान से नवाजी गई लताजी ने इसी साल अपने पिता के नाम से पुणे में 'मास्टर दीनानाथ मंगेशकर हास्पिटल बनवाया। 2005 में भारतीय डायमंड एक्सपोर्ट कंपनी 'एडोरा' के लिए स्वरांजलि नाम से ज्वेलरी कलेक्शन प्रस्तुत किया। इस कलेक्शन के पांच आभूषणों की नीलामी से मिले 105,000 पौंड उन्होंने 2005 को कश्मीर मे आए भूकम्प पीड़ितों के लिए दान कर दिया। 
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Wednesday 6 April 2016

दुनिया की सरकारें लोगों को खुशियाँ देकर खुश!

- एकता शर्मा 

  मध्यप्रदेश सरकार ने भी 'हैप्पीनेस मिनिस्ट्री' के गठन की घोषणा की है। मध्यप्रदेश ने खुशहाली के मामले में पहल की हो, पर देश में सरकारी स्तर पर न तो कोई योजना है और न अभियान! ये प्रयोग इसलिए भी तार्किक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि बाकी सारे सरकारी विभागों के प्रति लोगों के अनुभव बेहद ख़राब हैं! लोग सबसे ज्यादा परेशान ही सरकार की कार्यप्रणाली से हैं, तो वे सरकार खुश कैसे हो जाएंगे? मुख्यमंत्री शिवराज का कहना है कि 'हैप्पीनेस मिनिस्ट्री' के ज़रिए लोगों को सकारात्मक वातावरण दिया जाएगा। लोगों को अच्छी शिक्षा मिले, शिक्षण संस्थाओं का वातावरण अच्छा हो, विपरीत परिस्थितियों में लोग हौसला न छोड़ें, ऐसी व्यवस्था की जाएगी। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश देश में पहला राज्य होगा, जहां इस तरह की मिनिस्ट्री स्थापित की जाएगी। उन्हें इसकी प्रेरणा भूटान से मिली! जहाँ 1972 में भूटान के चौथे नरेश जिग्मे सिंगे वांग्चुक ने 'हैप्पीनेस इंडेक्स' की अवधारणा को लागू किया था! जहां सभी मंत्रालयों की जिम्मेदारी बनती है कि आत्महत्या की सोचने वाले और निराश लोगों की समस्या सुलझाईं जाए। हालांकि, अभी ये साफ़ नहीं है कि मध्य प्रदेश सरकार का ये मंत्रालय क्या काम करेगा और लोगों को ख़ुशहाली को कैसे मापा जाएगा!

 दरअसल, खुशियों को लेकर दुनिया का नजरिया बदल रहा है। अब खुशहाली ज्यादा जरूरी हो गई है। तरक्की का पैमाना अब जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) नहीं, बल्कि जीएनएच यानी 'ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस' बन गया है। अब समाज में भावनात्मक जुड़ाव को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है। इसी कड़ी में संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में 157 देशों की 'हैप्पीनेस रिपोर्ट' जारी की है। इसके मुताबिक तीन साल में 70 देशों में खुशहाली बढ़ी है। जबकि, 56 देशों में इसमें मामूली गिरावट रही! रिपोर्ट के मुताबिक आर्थिक रूप से कमजोर देश मुश्किलों के बावजूद संपन्न देशों की तुलना में ज्यादा खुश हैं। संयुक्त राष्ट्र ने 20 मार्च को ‘इंटरनेशनल हैप्पीनेस डे’ के तौर पर घोषित किया है। रिपोर्ट में एक चौंकाने वाली बात सामने आई है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन हमसे ज्यादा खुश हैं। पाकिस्तान हमसे 26 पायदान आगे हैं, जबकि बांग्लादेश हमसे 8 स्थान ऊपर है। 
   इस साल की 'वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट' के मुताबिक खुशहाली में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी निकारागुआ में दर्ज की गई! सबसे ज्यादा गिरावट आई ग्रीस में! जिन देशों में खुशहाली की दर गिरी है उनमें भारत, पाकिस्तान, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और इटली भी हैं। इस लिस्ट में भारत का नंबर 118 वां है। अमेरिका 13वें और ब्रिटेन 23वें पायदान पर है। अभी तक सबसे खुशहाल देश स्विट्जरलैंड था, पर अब डेनमार्क पहले नंबर पर गया! ऑस्ट्रेलिया भी टॉप-10 खुशहाल देशों में शामिल हुआ! भूटान के सम्राट जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने 1972 में जीडीपी की जगह 'ग्रॉस हैप्पीनेस इंडेक्स' लागू किया था। यहाँ सभी मंत्रालयों की जिम्मेदारी है, लोगों की समस्याएं सुलझाएं और जीवन स्तर ऊंचा उठाने के लिए काम करें। 
  खुशहाली नापने का पैमाना है स्वस्थ्य जीवन, भ्रष्टाचार से मुक्ति और मुश्किल वक्त में साथ देने वाले! अब इसमें असमानता को भी शरीक किया गया है। आयरलैंड, आइसलैंड और जापान ने आपदाओं, वित्तीय संकट के बावजूद खुशहाली हांसिल की। 2007 की आर्थिक मंदी और 2011 के भूकंप के बाद जापान ने खुद को संभाला। आयरलैंड और आइसलैंड आर्थिक संकट से निपटने में कामयाब रहे। इसकी वजह एकजुटता को बताया गया है। फ़रवरी में यूएई ने 'मिनिस्टर ऑफ़ हैप्पीनेस' की नियुक्ति की! वहां 28 साल की ओहूद अल रौमी यूएई की मिनिस्टर ऑफ़ हैप्पीनेस हैं!
   निकारागुआ, सिएरा लियोन, इक्वाडोर, माल्डोवा, चिली में खुशहाली बढ़ी है। जबकि, ग्रीस, मिस्र, सउदी अरब, बोत्सवाना और वेनेजुएला के लोगों में खुशहाली में कमी आई! वेनेजुएला में 2013 'वाइस मिनिस्ट्री ऑफ सुप्रीम सोशल हैप्पीनेस' बनाया गया था। ब्रिटेन 2010 में प्रधानमंत्री ने 'वेल बीईंग एंड हैप्पीनेस इंडेक्स' लॉन्च किया। इसमें देखा जाता है कि लोगों का जीवन स्तर पिछली बार की तुलना में कितना बदला है। 2010 में ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव ने बहुआयामी गरीबी सूचकांक लॉन्च किया। अमेरिका ने 2012 में अमेरिका ने एक रिपोर्ट तैयार करवाई। इसमें सिफारिश की गई कि सरकार सर्वे के जरिए यह जानने की कोशिश करें कि कितने लोग खुशहाल और संतुष्ट हैं। कनाडा में 2011 में 'कैनेडियन इंडेक्स ऑफ वेल बीईंग' (सीआईडब्ल्यू) लॉन्च किया गया। सिंगापुर में 2013 में राष्ट्रपति डॉ. टोनी टैन ने वित्तीय सुधारों के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों को भी अहमियत देने की सलाह दी। उन्होंने भूटान की तर्ज पर काम करने का प्रस्ताव रखा। थाईलैंड में 1997-2001 की राष्ट्रीय योजना में 'ग्रीन हैप्पीनेस इंडेक्स' लॉन्च किया गया। इसमें मानव विकास को सबसे ऊपर रखा गया है। तात्पर्य ये कि अब लोगों को खुश रखने की कोशिश सरकारी स्तर पर भी शुरू हो रही है! कई देशों में तो इसकी पहल भी होने लगी! मध्यप्रदेश ने देश में पहली बार कदम बढ़ाया है, कहीं ये शिगूफा न साबित हो!  
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Monday 4 April 2016

हालात से हारी ये फ़िल्मी हस्तियाँ

* एकता शर्मा 

  दिखने में फिल्म कलाकारों की ज़िंदगी बहुत ख़ूबसूरत दिखाई देती है। लेकिन, परदे पर नकली जिंदगी जीते-जीते वे असल मुश्किल हालातों से संघर्ष करना भूल जाते हैं! जब असल जीवन में कोई संकट आता है तो वे उसका मुकाबला नहीं कर पाते! इसका प्रमाण हैं ये फिल्म और टीवी हस्तियाँ जिन्होंने ज़िंदगी से हारकर आत्महत्या कर ली! इंसान अपने पूरे जीवन में हालातों से लड़ता हुआ ही आगे बढ़ता है! लेकिन, कई बार हालात ही इंसान को तोड़ देते हैं। ऐसे में वो हार मान जाता है। ये सच है कि ज़िंदगी बहुत कीमती होती है। वही इसकी कीमत समझ पाते हैं, जिनमें जीने का माद्दा होता हैं। 'बालिका वधु' सीरियल से लोकप्रिय हुई अभिनेत्री प्रत्युषा बैनर्जी की आत्महत्या ने इस प्रसंग को एक बार फिर छेड़ दिया है। 
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- गुरुदत्त
  फिल्मों के ब्लैक एन्ड व्हाइट ज़माने में गुरुदत्त को ट्रेजिडी एक्टर कहा जाता था। प्यासा, साहब बीवी और गुलाम और चौदहवीं का चांद जैसी चर्चित फिल्मों के फिल्मकार गुरुदत्त ने भी अपने जीवन का अंत आत्महत्या से किया था। 1964 में गुरूदत्त मृत पाए गए थे। उन्होंने शराब और नींद की गोलियों का सेवन कर लिया था। ये बात अलग है कि गुरुदत्त के आत्महत्या का कारण ग्लैमर की दुनिया से निराशा नहीं, बल्कि पारिवारिक थी। वे पत्नी और अपने बीच दूरियों बढ़ने से डिप्रेशन में आ गए थे। आज भी ये बहस  कि गुरुदत्त की मौत हादसा थी या आत्महत्या? लेकिन उनके परिवार ने उनकी मौत को एक दुर्घटना ही कहा था। ऐसा भी कहा जाता है कि आत्महत्या के लिए गुरुदत्त का यह तीसरा प्रयास था। 
- मनमोहन देसाई
  अमिताभ बच्चन को एंग्री यंग मैन  का ख़िताब जिन फिल्मों से मिला, वे फिल्में  फिल्मकार ने बनाई थी! अमर अकबर एंथनी, कुली, परवरिश जैसी मशहूर फिल्मों का हिस्सा रहे, मनमोहन देसाई की मौत ने बॉलीवुड को चौंका दिया था। 1994 में मुंबई के ग्रांट रोड इलाके की बिल्डिंग में आपने फ्लैट से गिरकर उनकी मौत हो गई थी। उनकी मौत का असली कारण आज भी एक रहस्य बना हुआ हैं। ऐसा कहा जाता हैं कि फिल्मों के विफल रहने के कारण देसाई ने आत्महत्या कर ली।
- सिल्क स्मिता
  दक्षिण भारत की फ़िल्म इंडस्ट्री की सबसे सेक्सी कलाकार मानी जाने वाली सिल्क स्मिता ने 1996 में आत्महत्या कर ली थी! उन्होंने कई पारिवारिक दिक्कतों को झेलते हुए फिल्मों में अपनी जगह बनाई थी! लेकिन, जब परेशानियों ने वहां भी पीछा नहीं छोड़ा तो इस अभिनेत्री ने आत्महत्या कर ली! इस एक्ट्रेस के जीवन पर एक फिल्म भी बनी, जो बेहद सफल रही थी! 
- परवीन बॉबी
 अमिताभ बच्चन के साथ जोड़ी बनाने वाली इस अभिनेत्री ने सफलता का शिखर छुआ था! लेकिन, वहां से उतरना उसे गवारा नहीं हुआ! बाद में संदिग्ध हालातों में उनकी मृत्यु गई। इसे लेकर कई तरह की अफवाहें हैं। कुछ लोगों का कहना है कि डॉयबिटीज़ बढ़ जाने के कारण उनकी मृत्यु हो गई। दूसरी तरफ़ कहा जाता है कि एक शादीशुदा शख़्स से उनका अफेयर चल रहा था, जिसके चलते उन्होंने आत्महत्या कर ली। लेकिन, ये भी सच है कि जीवन के अंतिम दिनों में वे मानसिक रूप से अस्थिर हो गई थी! उनकी लाश उनके अपार्टमेंट से दो-तीन दिन बाद निकाली गई!
- जिया ख़ान
  नि:शब्द, गजनी और हाउसफुल में काम कर चुकी जिया ख़ान ने 2013 को अपने घर पर पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली। 25 साल की ये अदाकारा मरने के पीछे कई सवाल छोड़ कर गई है जिसके जवाब आज भी नहीं मिले हैं। उन्होंने प्रेम में असफल होने पर मौत को गले लगाया या काम न मिलने से वे डिप्रेशन में थी! ये बात स्पष्ट नहीं हो सकी! 
- वर्षा भोंसले
  गायिका आशा भौंसले की वर्षा अपने वैवाहिक संबंधों को लेकर निराश थी! वर्षा ने 2012 में खुद को गोली मार ली थी। आशा भोंसले की बेटी वर्षा लिखने के साथ-साथ भोजपुरी और हिंदी में प्लेबैक गायिका भी थीं। वर्षा 2008 में भी ख़ुदकुशी करने की कोशिश कर चुकी थीं। 

- विवेका बाबाजी
  मॉडल विवेका बाबाजी ने 2010 को 37 साल की उम्र में आत्महत्या कर ली। वे 'कामसूत्र' के विज्ञापन में काम करने के बाद चर्चा में आई थी! इसके अलावा 1993 में उन्होंने मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भी भाग लिया था और मिस मॉरीशस भी रह चुकी हैं। माना जाता है कि निजी ज़िंदगी में चल रहे उतार-चढ़ाव के कारण विवेका ने अपनी जान दी थी!
- नफीसा जोसफ़
   नफीसा एमटीवी चैनल में वीडियो जॉकी भी थीं। वे मॉडल होने के साथ 1997 में मिस इंडिया यूनिवर्स की विजेता भी रही थी। जोसफ़ ने 2004 को अपने फ्लैट पर फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली थी। जोसफ़ के माता-पिता का कहना है कि शादी टूटने के बाद उसने ऐसा कदम उठाया! जबकि, ये भी कहा जाता था कि वे बेकार थी और काम मिलने के कोई आसार भी नजर नहीं आ रहे थे। 
- कुलजीत रंधावा
  कुलजीत ने 'कोहिनूर' और 'हिप हिप हुर्रे' समेत कुछ धारावाहिकों में छोटे-मोटे रोल किए थे। 2006 में उन्होंने आत्महत्या कर ली और सुसाइड नोट में इसका कारण मानसिक दबाव बताया। जबकि, कुलजीत का साथ भी काम न मिलना सबसे बड़ा तनाव था। 

- शिखा जोशी
  अभिनेत्री शिखा जोशी अपने घर में मृत पाई गई थी। उन्होंने फ़िल्म 'बीए पास' में छोटा सा रोल किया था। हालांकि, उनकी मौत से रहस्य का पर्दा नहीं उठा है। पुलिस के मुताबिक यह आत्महत्या का मामला था। लेकिन कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है। शिखा किराए के फ्लैट में एक अन्य महिला के साथ रहती थीं। साथ रहने वाली महिला ने जब दरवाजा खटखटाया तो जोशी ने दरवाजा नहीं खोला। महिला ने अपनी चाबी से दरवाजा खोला तो जोशी को खून से लथपथ पड़ा पाया। तेज धार वाला चाकू उनके गले में घुसा था। वह उन्हें पास के कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल ले गई, जहां जोशी को मृत घोषित कर दिया गया। शिखा 2011 में तब विवादों में आई थीं, जब उन्होंने अपना ब्रेस्ट इंप्लांट सर्जरी करने वाले डॉक्टर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था।
- दिव्या भारती
  मशहूर अभिनेत्री दिव्या भारती की मात्र 19 साल की उम्र में मृत्यु हो गई थी! हालांकि, आत्महत्या, हत्या या महज हादसे को लेकर कोई तस्वीर साफ़ नहीं हुई! मरने से एक साल पूर्व उन्होंने साजिद नाडियावाला से शादी की थी। मुंबई के वर्सोवा इलाके के तुलसी अपार्टमेंट के पांचवे फ्लोर से गिर जाने के कारण दिव्या की मृत्यु हुई थी। 
- कुणाल सिंह
   सोनाली बेंद्रे के साथ ‘दिल ही दिल में’ में काम करने वाले अभिनेता कुणाल सिंह ने 2008 में खुदकुशी कर ली। वह मुंबई स्थित अपने घर में लटके हुए पाए गए थे। उनके पिता ने आरोप लगाया था कि कुणाल की मौत आत्महत्या नहीं बल्कि एक हत्या थी।
- दिशा गांगुली     
  बंगाली फिल्मों की अभिनेत्री दिशा गांगुली ने अपने ही घर में आत्महत्या कर ली थी। उनके आवास का दरवाजा तोड़कर उनके झूलते हुए शव को बरामद किया  गया था। इस अभिनेत्री की आत्महत्या की खबर मिलते ही उनकी एक महिला मित्र ने भी आत्महत्या की कोशिश की थी। दिशा गांगुली कई लोकप्रिय बँगला सीरियल में अभिनय से दर्शकों के बीच चहेती थी। 
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