Saturday, 18 February 2017

हिट की दुनिया में आंकड़ों की बाजीगरी

- एकता शर्मा 

  आमिर खान की 'दंगल' ने करीब 400 करोड़ की कमाई की! सलमान खान की 'सुल्तान' का आंकड़ा भी 300 तक पहुंचा! ऐसे में शाहरुख़ खान कहाँ पीछे रहने वाले थे, उनकी नई फिल्म 'रईस' ने भी रिकॉर्ड तोड़ कमाई की और अभी भी फिल्म की कमाई जारी है। ये तो हुई, आज की फिल्मों की बात। आज फिल्म की सफलता को उसके सौ, दो सौ करोड़ या उससे ज्यादा की कमाई से आकलित किया जाता है। एक वक़्त था जब किसी फिल्म के सिल्वर, गोल्डन और प्लेटिनम जुबली मनाने को ही फिल्म का हिट होना समझा जाता था! तब फिल्म ने कमाई से दर्शकों को कोई सरोकार नहीं था। असल में फिल्म का हिट होना तभी था, जब दर्शकों में 'फर्स्ट डे-फर्स्ट शो' देखने की होड़ लगा करती थी! दर्शक टिकट खिड़की पर टूट पड़ते थे।
  यदि फिल्म की लागत और कमाई के अनुपात से फिल्म की सफलता को तौला जाए तो आँखे फटी रह जायेगी! फ़िल्मी दुनिया की सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्म 1975 में आई 'जय संतोषी मां' मानी जाएगी! इस धार्मिक फिल्म ने संभवतः आजतक प्रदर्शित करोडों की लागत वाली सभी फिल्मों को पीछे छोड रखा है। इस फिल्म की सफलता का आश्चर्यजनक आकलन इसलिए किया गया कि 'जय संतोषी माँ' के निर्माण में 4 से 5 लाख रूपए लगे थे। जबकि, इसके वितरकों की कमाई का आंकड़ा 5 करोड रूपए तक पहुंचा था। लागत और कमाई की तुलना में ये 100 गुना ज्यादा था! इस नजरिए से आज 50-60 करोड में बनने वाली फिल्म को यदि 'जय संतोषी  माँ' का रिकॉर्ड तोडना है तो उसे 5 से 6 हज़ार करोड़ की कमाई करना पड़ेगी, जो संभव नहीं है।
 इस अनुपात से दूसरी सुपरहिट फिल्म है, 1989 में प्रदर्शित 'मैने प्यार किया।' जिसने अपनी लागत से लगभग 15 गुना कमाई का रिकॉर्ड बनाया था। इसके बाद भी यह फिल्म 'जय संतोषी माँ' से पीछे है। फिल्मकार मेगा ब्लाक-बस्टर उन फिल्मों मानते हैं, जिन्हें दर्शकों ने ऑल टाइम पसंद किया! जिन्हें देखने के लिए दर्शकों ने सिनेमाघरों के चक्कर लगाए। इस लिहाज से 'जय संतोषी मां' की तुलना में 'मैने प्यार किया' ऑल टाइम ब्लाक-बस्टर कहलाएगी। क्योंकि, इस फिल्म को दर्शकों ने बार-बार देखा! 
 बॉलीवुड के इतिहास में 'मैंने प्यार किया' के अलावा सात और ऐसी फिल्में हैं, जिन्हें ऑल टाइम ब्लाक-बस्टर माना जाता है। इन फिल्मों ने सारे रिकार्ड तोड़कर ऐसे रिकार्ड बनाए हैं, जिन्हें छूना आज की फिल्मो के लिए मुश्किल है। 1975 में बनी शोले को हिन्दी फिल्म इतिहास की यह एक ऐसी फिल्म है जिसे रिलीज के एक सप्ताह बाद माउथ पब्लिसिटी मिली। 1960 की फिल्म 'मुगल-ए-आजम' जब पहली बार जब सिनेमाघरों में लगी, तो इसने सारे रिकार्ड तोड़ दिए थे। राजश्री प्रोडक्शन की 'हम आपके हैं कौन' (1994) ने तो फिल्म इंडस्ट्री की परिभाषा ही बदल दी! 2001 में आई 'गदर-एक प्रेम कथा' आज के दौर की सबसे ज्यादा देखी जाने वाली फिल्म बन गई! 'मदर इंडिया' (1957) ने भी 'मुगल-ए-आजम' के बराबर बिजनेस किया था। 
  1995 में आई 'दिल वाले दुल्हनियां ले जाएंगे' भी 'हम आपके हैं कौन' के बाद मुंबई के एक सिनेमाघर में लगातार 15 साल तक चली थी, जो एक रिकॉर्ड है। मल्टीप्लैक्स के जमाने में 2009 में आई 'थ्री इडियटस' पहली सच्ची मेगा ब्लाक-बस्टर है। इस फिल्म को ऑल टाइम हिट कहा जाना गलत नहीं होगा। यशराज प्रोडक्शन की 2012 में आई 'एक था टाइगर' की सफलता का सबसे बड़ा कारण सलमान खान को माना जा सकता है। प्रेम और एक्शन भरी इस जासूसी फिल्म में सलमान का जादू भरा है। 2015 की 'बजरंगी भाईजान' भी इस फेहरिस्त की अगली फिल्मों में शुमार की जा सकती है! 
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Wednesday, 15 February 2017

एक प्यार ऐसा भी ...

- एकता शर्मा 

  शक्तिचंद 'बिमल' यही नाम बताया था उन्होंने मुझे पहली मुलाकात में! नाम अटपटा सा लगा, पर मैंने ध्यान नहीं दिया! करीब 4 साल पहले उनकी कंपनी के लीगल केस के सिलसिले में वो मुझसे मिलने आए। उसके बाद मैं उनकी वकील बन गई! कंपनी से जुड़े कई लीगल मामलों में उनसे सलाह-मशविरा होता रहा। करीब 60-62 साल के साधारण पर्सनालिटी वाले, इस खुशमिजाज व्यक्ति से उसके बाद कई बार मुलाकात हुई! 4 साल से वे लगातार कोर्ट में केस की हर तारीख पर आते रहे। लगातार मिलते रहने से अनौपचारिक बातचीत भी हुई! इस दौरान मैं और मेरे ऑफिस का स्टॉफ उन्हें 'बिमल साहब' के नाम से ही पहचानते हैं। यहाँ तक कि कंपनी के मालिकों से भी जब मेरी बात हुई, उन्होंने उनके बारे में 'बिमलजी' कहकर ही संबोधित किया। आशय यह कि वे सभी के लिए सिर्फ 'बिमलजी' ही हैं शक्तिचंद नहीं। 

  एक केस के सिलसिले में उनका एक शपथ पत्र लगना था। जानकारी देने के हिसाब से उनके पिता का नाम पूछा तो मैं सुनकर अचंभित रह गई! पिता के नाम के साथ उन्होंने अपना सरनेम 'राजपूत' बताया। मैंने चकित होकर पूछा कि आपका सरनेम 'बिमल' है और आपके पिता 'राजपूत' ये कैसे? मेरे सवाल पर वो थोड़ा झिझके! लेकिन, इस अटपटे सरनेम को लेकर उन्होंने जो कहानी बताई उसने मुझे अंदर तक हिला दिया! कोई सोच नहीं सकता कि उनके नाम के साथ जुड़ा 'बिमल' सरनेम उनकी पारिवारिक पहचान नहीं, एक निष्णात प्रेम की कहानी होगी! एक ऐसा प्रेम जो उनके नाम के साथ हमेशा के लिए चस्पा हो गया है! आज के इस दौर में जहाँ प्रेम सुबह से शाम तक भी नहीं टिक पाता, वहाँ ऐसा प्रेम सचमुच दुर्लभ है। जो कहानी शक्तिचंद ने बताई, वो सुनकर मुझसे रहा नहीं गया। मेरी कलम उठ गई, सबको वो प्रेम कहानी सुनाने के लिए जिसकी परिणति सुखांत तो नहीं हुई, पर ये प्रेम का एक ऐसा स्वरुप है, जो किसी की भी आँखे गीली कर देता है।   
... तो सुनिए शक्तिचंद 'राजपूत' के 'बिमल' बनने की सच्ची प्रेम कथा :
   शक्तिचंद उर्फ़ 'बिमल साहब' यानी हमारी इस कहानी के नायक हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गाँव के रहने वाले हैं। प्रकृति की गोद में सुदूर हरियाली और पहाड़ियों के प्रेम भरे वातावरण में ही उनका बचपन बीता। जब थोड़ी समझने की उम्र हुई तो उनके दिल को गाँव की ही एक लड़की अच्छी लगने लगी। लड़की उन्हीं के स्कूल में थी, इसलिए नजरें दो से चार होने वक़्त नहीं लगा! इस लड़की का नाम था 'बिमला!' उस लड़की को शक्तिचंद से लगाव था या नहीं, ये तो नहीं पता! जो भी था एकतरफा ही था! लेकिन, शक्तिचंद ने उस लड़की को साथ जोड़कर अपने जीवन के सपनों का महल खड़ा कर लिया था। इस पर भी वे कभी बिमला के सामने प्यार का इजहार नहीं कर सके! गाँव का माहौल, लड़कपन, समाज और परिवार के डर के कारण उनकी हिम्मत भी नहीं हुई!     
   कहते हैं कि इश्क़ और मुश्क छुपाए नहीं जाते, वही शक्ति के साथ भी हुआ! दोस्तों के मजाक ने स्कूल में उनके बिमला से प्रेम को उजागर कर दिया। लेकिन, ये उम्र प्रेम करने और उसे निभाने की थी भी नहीं तो इसे मजाक की तरह लिया गया। दोस्तों ने भी इसे हंसी-ठिठोली में लिया और परिवार ने भी! भाई-बहनों ने भी शक्ति से उसके एकतरफा प्रेम की बातें मजाक में करना शुरू कर दी! यहाँ तक कि पिता ने भी समझाया कि ये उम्र नहीं है कि तुम प्रेम प्रपंच पड़ो! लेकिन, शक्ति का दिल तो कुछ और ही ठान चुका था। उन्हें अपने निस्वार्थ प्रेम को मजाक बनते देख दुःख हुआ! उधर, स्कूल में बिमला तक बात पहुँची तो उसने भी इसे गंभीरता से लिया! एक दिन शक्ति ने बिमला को स्कूल के कॉरिडोर में रोककर अपने मन की बात कहना चाही! लेकिन, शक्ति कुछ कह पाते, उसके पहले उसने आँख तरेरकर कहा 'तुम्हारे नाम के साथ मेरा नाम नहीं जुड़ना चाहिए!' ये कहकर वो रास्ता बदलकर चली गई! उसकी आँखों में भी तिरस्कार के भाव थे! लेकिन, शक्ति (बिमल साहब) को अपने प्यार का ये तिरस्कार और मजाक सहन नहीं हुआ! बिमला ने अपने नाम के साथ शक्ति का नाम जुड़ने को लेकर जो कहा, वो शक्ति के लिए असहनीय पल था। उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि अब इस नाम से तो उनका जन्म जन्मांतर का रिश्ता बंधेगा! वे अपने प्यार को साबित करेंगे। उस एकतरफा प्यार को जिसे सिर्फ दिल्लगी और मजाक समझ लिया गया था।   
 इस सबके बीच स्कूल में परीक्षाओं का समय शुरू हो गया। परीक्षा के फॉर्म भरे जाने लगे! अपना परीक्षा फॉर्म भरते वक़्त शक्ति को अपने प्यार का सच साबित करने की सूझी! उन्होंने फॉर्म में अपना नाम शक्तिचंद और सरनेम की जगह 'बिमला' लिख दिया। ये सोचकर कि इस बहाने मैं अपने प्यार को हमेशा अपने साथ रखूँगा। प्यार की दीवानगी इस हद तक थी कि वो अपने नाम के साथ हमेशा के लिए 'बिमला' का नाम जोड़ना चाहते थे। उनकी ये दीवानगी काम कर गई। जब परीक्षा की अंक सूची आई तो सरनेम की जगह 'बिमल' (बिमला की जगह) लिखा हुआ था। घर में हंगामा हो गया। बात गाँव में भी फ़ैल गई कि राजपूत साहब के बेटे ने अपने नाम के आगे से सरनेम हटाकर 'बिमला' का नाम जोड़ लिया! पिता भी बहुत नाराज हुए और अंक सूची में इस नाम में संशोधन करना चाहा! लेकिन, शक्ति की जिद के आगे वो भी हार गए। लेकिन, शक्ति ने इस बहाने 'बिमला' को ये प्रेम संदेश जरूर दे दिया कि उनका प्रेम महज आकर्षण न होकर सच्चा है। 
  लेकिन, जीवन की कड़वी सच्चाई प्रेम को कब मानने लगी। गाँव का माहौल, समाज और जाति का डर, आज से चार दशक पहले की गाँव की मानसिकता ने शक्ति के प्रेम के अंकुर को पनपकर पौधा बनने से पहले ही मसल डाला! प्रेम विरोधी शक्तियों के सामने शक्तिचंद की ताकत जवाब दे गई। लेकिन, फिर भी उनकी बिमला 'बिमल' के रूप में उनके नाम के साथ जुड़ी थी! 
  इसी बीच बिमला की कहीं और शादी हो गई। वो गाँव से चली गई। वक्त के साथ शक्तिचंद को भी परिवार के दबाव में घर बसाना पड़ा। अपना घर, गाँव, परिवार सबकुछ छोड़कर बड़े शहर में बसना पड़ा। लेकिन, उन्होंने अपने नाम के साथ बिमला का नाम जुड़ा रहने दिया। 'शक्ति' के साथ 'बिमल' का नाम कोई भी अलग नहीं कर सका। ये बात उनकी पत्नी को भी पता है, पत्नी ने भी इस नाम से समझौता कर लिया। शक्तिचंद नाम से पुकारा जाना भी अच्छा नहीं लगता, वे चाहते हैं कि उन्हें 'बिमल साहब' कहकर ही पुकारा जाए। वे आज भी 'बिमला' के नाम को उसी शिद्दत और प्यार से निभा रहे हैं। जबकि, उस बिमला को देखे और मिले उन्हें 45 साल से ज्यादा हो गए। अब तो उन्हें बिमला के बारे में कोई जानकारी तक नहीं है! वो कहाँ है, कैसी है, कभी शक्तिचंद को उसने याद भी किया है या नहीं ये तक पता नहीं! इसके बावजूद वे अपने उस एकतरफा प्यार को अपने नाम के साथ चस्पा किए हुए हैं! शक्ति कहते हैं कि प्रेम में जरुरी नहीं कि दोनों तरफ से हो, मेरे दिल में उसके लिए भावना थी, वो उसके दिल में हो न हो! मेरा अमर प्रेम यही है कि जब तक जियूँगा 'बिमल' के नाम के साथ ही पुकारा जाऊंगा और मेरे बाद भी कोई 'बिमला' को मुझसे अलग नहीं कर पाएगा। मैं 'बिमला' के साथ नहीं हूँ तो क्या हुआ, वो तो मेरे साथ।  मेरे दिल में, मेरे नाम में भी!
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दर्शकों का गम भुलाने वाली फ़िल्में

- एकता शर्मा 

  कॉमेडी फ़िल्में ऐसी हैं, जिनका दौर कभी ख़त्म नहीं होता! बीच-बीच में जब भी कोई फिल्म हिट होती है, तो नई फिल्म का इंतजार शुरू हो जाता है। फिल्मों का इतिहास देखा जाए तो हर काल में कॉमेडी फ़िल्में ही सबसे ज्यादा पसंद की गई हैं। आज भी दर्शकों को ऐसी  फिल्मों का इंतजार होता है, जो उनके गम भुलाकर उन्हें तीन घंटे का स्वस्थ्य मनोरंजन दे सकें! कॉमेडी कभी भी फिल्मों का मूल विषय नहीं रहा! ब्लैक एंड व्हाइट ज़माने से फिल्मों में कॉमेडियन एक ऐसा पात्र होता था, जो कहानी में सीन बदलनेभर लिए होता था। ये कभी फिल्म कि मूल कहानी से जुड़ा होता था, कभी अलग होता था! 
  गोप, आगा और टुनटुन ऐसे ही कॉमेडियन थे! फिर आए, बदरुद्दीन उर्फ़ जॉनी वॉकर जिन्होंने अपनी कौम को नई पहचान दी और फिल्म में कॉमेडियन को अहम भूमिका में खड़ा कर दिया! लम्बे समय तक जॉनी वॉकर सिक्का चला! इसी दौर में किशोर कुमार ने भी 'चलती का नाम गाड़ी' और 'हाफ टिकट' जैसी फिल्मों से अपने जलवे दिखाए! लेकिन, फिर भी अच्छी कॉमेडी फ़िल्में आज भी उँगलियों पर गिनी जा सकती हैं। कुछ फिल्मकारों ने जरूर अच्छी कॉमेडी फ़िल्में दी, जिन्हें आज भी दर्शक देखना पसंद करते हैं। सवाल उठता है कि अच्छी कॉमेडी फ़िल्म किसे कहा जाए? इसका एक ही जवाब है कि जिस फिल्म को हम अपनी ज़िन्दगी और उसकी उलझनों के जितना करीब पाते हैं, वही अच्छी कॉमेडी फिल्म होती है! 1968 में आई 'पड़ोसन' को! ये ऐसी फिल्म थी, जिसे जितनी बार देखा जाए मन नहीं भरता! रोमांटिक कॉमेडी वाली ये फिल्म गंवार सुनील दत्त और मार्डन सायरा बानो के आसपास कॉमेडी के रंग बिखेरती है। 
  1972 में अमिताभ बच्चन की शुरूआती फिल्म 'बाम्बे टू गोआ' को भी फिल्में देखने वाले भूल नहीं पाते, जिसमें बस सफर में हास्य खोजा गया था! 1975 में बनी 'चुपके चुपके' भी ऐसी फिल्म थी, जिसमें अमिताभ बच्चन और धर्मेन्द्र ने कॉमेडी रिकॉर्ड बनाया था। इस फिल्म में नकली और बेढंगे हास्य के बजाए परिस्थितिजन्य से उपजा शिष्ट हास्य था। इस परम्परा को इसी साल आई 'छोटी सी बात' ने आगे बढ़ाया। दर्शकों को इस फिल्म में शिष्ट कॉमेडी नजर आई, जिसमें फूहड़ता और द्विअर्थी संवादों लिए कोई जगह नहीं थी! इसी तरह का शिष्ट हास्य 1979 में आई फिल्म 'गोलमाल' में भी नजर आया! इसी को आधार बनाकर रोहित शेट्टी ने 'बोल बच्चन' बनाई, जिसने भी सराहा गया। कॉमेडी को नया रूप देने वाली 1981 में आई सईं परांजपे की फिल्म 'चश्मे बद्दूर' को भी भुलाया नहीं जा सकता। 2013 में इसी स्टोरी को नए कलाकारों के साथ डेविड धवन ने बनाया था। सई परांजपे की ही फिल्म 'कथा' ने अपने तरीके से खरगोश और कछुवे पुरानी कहानी को जिंदा किया था। 
   1983 में कुन्दन शाह ने 'जाने भी दो यारो' बनाई और दर्शकों को बांधे रखा! इसके एक सीन महाभारत का मंचन और क्लाइमेक्स में लाश की गड़बड़ को दर्शक आज भी नहीं भूले हैं। प्रकाश मेहरा ने 1986 में अनिल कपूर, अमृता सिंह को लेकर 'चमेली की शादी' में कॉमेडी का तालमेल बनाया था। अब ये जरुरी नहीं कि कॉमेडियन ही फिल्मों में  किरदार निभाएं! गोविंदा, संजय दत्त, आमिर खान, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र और सलमान जैसे बड़े कलाकारों ने भी कॉमेडी रोल करने मौका नहीं छोड़ा! कुली नंबर-1, मुन्नाभाई, अंदाज अपना अपना, हेराफेरी, गोलमाल और वेलकम सीरीज की फ़िल्में इसी का उदहारण है।  
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Sunday, 1 January 2017

2016 - बॉलीवुड रिपोर्ट कार्ड

    'सुल्तान' और 'दंगल' ने परदे को बनाया अखाड़ा   

- एकता शर्मा 

  बीते साल में बॉलीवुड में कुछ ख़ास नहीं हुआ! बहुत कम फ़िल्में हिट रही! बॉक्स ऑफिस की बात की जाए तो, ये साल भी औसत ही रहा। कुछ फिल्मों को छोड़कर किसी ने भी बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं किया! साल 2016 में हिट और फ्लॉप फिल्मों का आंकडा भी एक सा ही रहा! हिट की सूची में चंद फ़िल्में हैं और फ्लॉप होने वाली फिल्मों की लिस्ट लंबी है। इस साल भी दो खानों का जलवा रहा! सलमान ने 'सुल्तान' बनकर दर्शकों का दिल जीता तो साल के आखिरी हफ्ते में आमिर 'का दंगल' बॉक्स ऑफिस लूट ले गया! बॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा की यहाँ तो एक ही फिल्म रिलीज हुई, वो भी नहीं चली! पर, इस अभिनेत्री ने हॉलीवुड में अपनी जगह जरूर बना ली! लेकिन, साल 2016 में बॉलीवुड में महिलाओं से जुडी कहानियों को ज्यादा जगह मिली! महिलाओं की कहानियां कहती हुई 10 से भी ज़्यादा फ़िल्में रिलीज़ हुई, जिन्होंने 'नायक प्रधान' हो चले बॉलीवुड की परिपाटी को तोड़ा! बरसों बाद बॉलीवुड में रियल सिनेमा दिखाई दिया! 2016 में कई बायोपिक फिल्में बनी, जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की! दंगल, नीरजा, अजहर, रुस्तम, सरबजीत, एमएस धोनी : दी अनटोल्ड स्टोरी और अलीगढ़ जैसी फिल्में इसी कड़ी का हिस्सा हैं। इस साल जिस तरह की फिल्मों को सफलता मिली, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि दर्शकों का मिजाज बदल रहा है। नई पीढ़ी के दर्शकों की पसंद वे कहानियां देखने में ज्यादा है, जो सच्चाई  करीब हैं! मनगढंत फ़िल्मी कहानियों से अब दर्शक ऊबने लगे हैं! ये फिल्मकारों के लिए भी संकेत है।
   ये साल किसी एक एक्टर या एक्ट्रेस का नहीं रहा! जो भी फ़िल्में चली, वो अच्छी कहानी, अदाकारी और डायरेक्शन के कारण दर्शकों की पसंद में शामिल हुई! यदि सलमान खान की 'सुल्तान' चली तो अक्षय कुमार की 'रुस्तम' को भी पसंद किया गया। साल के जाते-जाते आमिर खान भी 'दंगल' में उतर आए और 'सुल्तान को पटखनी देने की कोशिश की! लेकिन, शुरुवाती दांव तो 'सुल्तान' का ही सही बैठा! नए साल में 'दंगल' क्या कमाल करती है, ये देखना है! जहाँ तक अच्छी फिल्मों का सवाल है सोनम कपूर ने भी नीरजा' से अपना दम दिखाया।
  बॉलीवुड के लिए 2016 भले ही बहुत ज्यादा अच्छा नहीं रहा हो, पर कुछ फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर जमकर कमाई की। सलमान की 'सुल्तान' से लेकर अक्षय कुमार की 'रुस्तम' और टाइगर श्रॉफ और श्रद्धा कपूत की 'बागी' बॉक्स ऑफिस पर छाई रहीं। इस साल अक्षय कुमार की तीन फ़िल्में रिलीज़ हुईं, तीनों ने ही 100 करोड़ बिजनेस किया। सोनम कपूर की नीरजा, अमिताभ बच्चन की ‘पिंक’ ने भी बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की। फिल्म की लागत के हिसाब से कमाई करने वाली फिल्मों की फेहरिस्त में सबसे ऊपर रही सोनम कपूर की फिल्म ‘नीरजा’। इस फ़िल्म ने अपनी लागत से 260% ज्यादा की कमाई की! दूसरे नंबर पर है सलमान खान की कबीर खान निर्देशित 'सुल्तान।' इस फिल्म ने लागत के मुकाबले 234 % कमाई की है। अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू की फिल्म ‘पिंक’ की कमाई का प्रतिशत 223.80 रहा!
 अक्षय कुमार की 'एयर लिफ्ट' चौथे नंबर पर है। इस फिल्म ने 219.5% का मुनाफ़ा कमाया। अक्षय की ही ‘रुस्तम’ पांचवे नंबर पर है। ‘रुस्तम’ ने 218.55% की कमाई की है। टाईगर श्राफ और श्रद्धा कपूर की 'बागी' का नंबर छठा रहा। बागी ने 100% कमाया! 'कपूर एंड सन्स' भी कामयाब फिल्मों में शामिल है। इस फिल्म ने भी 34 करोड़ की कमाई की। इन फिल्मों के अलावा हाउसफुल-3, की एंड का, एम एस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी और जय गंगाजल ने भी अच्छी कमाई की।
  कमाई के लिहाज सेज्यादातर फिल्मों के लिए बीता साल अच्छा नहीं रहा! कई हाई प्रोफाइल फिल्में जिनसे बड़ी कमाई की उम्मीद की गई, बॉक्स ऑफिस पर धराशायी हो गईं। 'घायल वन्स अगेन' बनाने में सनी देअोल ने जितने साल लगाए, यह फिल्म उतने दिन भी सिनेमाघरों में नहीं टिकी। फिल्म की कुल कमाई 40 करोड़ रही। चंद अच्छे एक्शन सीन इस कमाई की वजह बने, वरना कहानी ने तो पूरे पैसे डूबाने में कोई कसर नहीं बाकी रखी थी। 'अजहर' को बनाने में भी एकता कपूर की टीम ने काफी वक्त लिया। जो ट्रेलर में दिखाया जा रहा था जब दर्शकों को वो बड़े परदे पर देखने को नहीं मिला तो उन्होंने इसकी जबरदस्त बुराई की। क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन के जीवन की कुछ घटनाअों पर बनी इस फिल्म ने केवल 33 करोड़ रुपए की कमाए।
  एडल्ट कॉमेडी तो अक्सर फायदे का सौदा रही हैं, ऐसे में एकता कपूर की फ्रेंचाइज 'क्या कूल हैं हम' की तीसरी कड़ी का टिकट खिड़की पर बुरी तरह गिरना चौंकाता है। अक्षय कुमार की 'एयरलिफ्ट' से टकराना इसे भारी पड़ा। फिल्म मात्र 31 करोड़ रुपए ही कमा पाई। ऐश्वर्या राय बच्चन की 'सरबजीत' का जबरदस्त प्रचार हुआ। जब यह रिलीज हुई तो बायोपिक होने का फायदा भी इसे नहीं मिल पाया। अोमंग कुमार बुरी तरह एक्सपोज हुए खामियाजा ऐश्वर्या राय ने भी भुगता। फिल्म को मिले केवल 31 करोड़। कटरीना कैफ ने बॉलीवुड के तीनों खान के साथ काम करके खूब लंबी उड़ान भरी। लेकिन, जब 'फितूर' में अकेले पूरी फिल्म का जिम्मा उठाने की बात आई तो कटरीना की असलियत सामने आई। फिल्म जबरदस्त फ्लॉप साबित हुई और केवल 19 करोड़ रुपए ही वसूल हो पाए।
  इस बार कम बजट की फिल्मों ने भी बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की। इसके उलट बड़े बजट की फिल्में खास कमाल नहीं दिखा पाईं। लीक से हटकर और कम बजट में बनी कई फिल्मों ने भी दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। इनमें की एंड का, पिंक, कपूर एंड संस, बागी, उड़ता पंजाब और 'डियर जिंदगी' जैसी फिल्में शामिल है। वजीर ने बॉक्स ऑफिस पर 42 करोड़ कमाई की, जबकि इसकी लागत उतनी नहीं थी! 'की एंड का' ने 51 करोड़ की शानदार कमाई की तो बागी ने 76 करोड़ रुपए का बिजनेस किया। आलिया और शाहरुख़ की ;डियर जिंदगी' ने बॉक्स ऑफिस पर 67 करोड़ रुपए के आंकड़े को छुआ।
 जबकि, जय गंगाजल, वजीर, सनम रे, अजहर, सरबजीत, ढिशूम, हैप्पी भाग जाएगी और 'शिवाय' जैसी फिल्मों को औसत सफलता मिली। इस साल बड़े बजट और बड़े सितारों वाली कई फिल्में फ्लॉप हुईं। इनमें घायल वंस अगेन, मोहन जोदाड़ो, क्या कूल हैं हम, मस्तीजादे, फितूर, अलीगढ़, रॉकी हैंडसम, फैन, तीन, ग्रेट ग्रैंड मस्ती, ए फ्लांइग जट, अकीरा, मिर्जिया, बार बार देखो, रॉकऑन-2, फोर्स-2, कहानी-2 और 'बेफिक्रे' जैसी फिल्में शामिल हैं।
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चली नहीं पर पसंद की गई कुछ फ़िल्में

  जो फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाई के झंडे गाड़े, वही फिल्म हिट है, ऐसा नहीं होता! कुछ फ़िल्में कमाई के लिहाज से हिट नहीं होती, पर दर्शक और समीक्षक उन्हें पसंद करते हैं। ‘वज़ीर’ अमिताभ बच्चन की ऐसी ही एक शानदार फिल्म रही। हंसल मेहता की ‘अलीगढ़’ साल की सबसे अलग फिल्म रही, मगर दर्शक इसे पचा नहीं पाए! ऐसी फिल्मों के न चलने से पता चलता है कि दर्शकों की पसंद क्या है! शाहरूख की ‘फैन’ एक अलग कोशिश थी, मगर फिल्म का अंत असहनीय है। अश्विनी तिवारी की ‘नील बट्टे सन्नाटा’ ने सबसे अधिक चौंकाया। मां और बेटी का स्कूल की एक ही क्लास में पढ़ने जाना जैसी फिल्म बनाना ही हिम्मत का काम है! इस जैसी फिल्म को बार-बार देखा जाना चाहिए।
    नागेश कुकनूर की 'धनक' एक बेहतरीन फिल्म थी। तीन, रमन राघव-2 पूरी तरह अभिनय केंद्रित फ़िल्में रहीं! सबसे अलग 2016 को याद रखा जाना चाहिए ‘उड़ता पंजाब’ के लिए। कल को दर्शक किस तरह की फ़िल्में देखना चाहते हैं, ये फिल्म उसका एक संकेत भी है। सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म पर कैंची चाहे जितनी चलाई हो, पर विवादस्पद जरूर बना दिया! बीते साल जिन फिल्मों की उम्मीदें धराशाई हुई, उनमें आशुतोष गोवारिकर की ‘मोहनजो दाड़ो' सबसे आगे खड़ी है! ये एक चेतावनी भी है कि उस इतिहास के साथ छेड़छाड़ नहीं की जाना चाहिए, जिसके बारे में पता न हो! फिल्म ‘हैप्पी भाग जाएगी’ एक नया कॉमेडी प्रयोग थ! लेकिन, हजम नहीं किया जा सका! आलिया भट्ट को लेकर दर्शकों में जो भी भावना हो, पर उनकी फिल्म ‘डियर ज़िंदगी’ को साल की उपलब्धि कहा जा सकता है।
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औरतों की आवाज़ ज्यादा मुखर हुई!

   हिंदी फ़िल्मों की इस बात पर आलोचना की जाती है कि इन फ़िल्मों में महिलाओं को दूसरा दर्जा दिया जाता है। लेकिन, 2016 में बॉलीवुड में महिलाओं की कहानियों को अच्छी जगह मिली। महिलाओं की कहानियों को कहती हुई ऐसी 10 से ज़्यादा फ़िल्में रिलीज़ हुई। 2016 में बॉलिवुड ने ऐसी कई फ़िल्में दर्शकों को दी जिनमें महिलाओं को लीड रोल या उनका नजरिया सामने आया। 'कहानी-2' छोटी बच्चियों के साथ चारदीवारी में होने वाले यौन शोषण पर आधारित है। इस फिल्म में विद्या बालन ने गज़ब का अभिनय किया है। एक महिला मुक्केबाज़ या खिलाड़ी के समक्ष आने वाली परेशानियों को दिखाती 'साला खड़ूस', एक महिला की ज़िंदगी में शिक्षा की ज़रुरत को दर्शाती 'निल बटे सन्नाटा', अपनी धुनों को तलाश करती एक महिला संगीतकार की कहानी 'जुगनी' या फिर पुलिस की वर्दी पहने 'जय गंगाजल' की प्रियंका चोपड़ा! साल 2016 इसलिए भी याद रखा जाएगा कि इस साल में महिलाएं 70 एमएम के पर्दे पर सिर्फ़ शो पीस नहीं रही!
  'दंगल' का डायलॉग 'म्हारी छोरियां, छोरो से कम हैं के?' फ़िल्म के कथानक को स्पष्ट कर देती हैं। आमिर ख़ान की इस फ़िल्म में एक पहलवान पिता का कुश्ती जैसे 'मर्दों' के खेल में अपनी बेटियों को लाना, लड़कियों के लिए बनाई गई सामाजिक रीतियों और बंधनो को तोड़ना ख़ूबसूरती से फिल्माया गया है। एयर होस्टेस नीरजा भनोट ने 1986 में हाईजैक हुए एक विमान के यात्रियों की सुरक्षा के लिए अपनी जान दाँव पर लगा दी थी! नीरजा की ज़िंदगी पर बनी इस फ़िल्म ने दिखाया कि कैसे मुश्किल परिस्थिति में भी एक 'लड़की' अपना आपा नहीं खो सकती पर एक 'लड़का' भयभीत हो सकता है। 2012 में निर्देशक सुजॉय घोष और अभिनेत्री विद्या बालन की सस्पेंस थ्रिलर फ़िल्म 'कहानी' का सीक्वल 'कहानी-2' बच्चियों के साथ घर की चारदीवारी में होने वाले यौन शोषण जैसे गंभीर विषय पर आधारित है।
   गौरी शिंदे की फिल्म 'डियर ज़िंदगी' महिला निर्देशक का नज़रिया होने के कारण ताज़गी भरी फिल्म रही! एक युवा कैमरा वूमन जो ख़ुद की एक फ़िल्म निर्देशित करना चाहती है, लेकिन उसे गॉडफ़ादर का सहारा नहीं है। मुंबई जैसे महानगर में सिंगल होने के कारण किराए के घर से निकाल दी गई! फ़िल्म दर्शकों को एक लड़की की मनोदशा से मिलवाती है। 'पिंक' में अमिताभ के कहे एक डॉयलॉग ने नारीवाद से जुड़े कई सवालों पर विराम लगा दिया! अमिताभ कहते हैं, 'नो अपने आप में एक वाक्य है और इसे किसी स्पष्टीकरण की ज़रूरत नहीं!'
  लीना यादव कि फ़िल्म 'पार्च्ड' के चर्चा में आने का कारण रहा अभिनेत्री राधिका आप्टे का एक टॉपलैस दृश्य! राजस्थान के एक छोटे से गाँव में पितृसत्ता, बाल विवाह, दहेज, विवाहेत्तर बलात्कार जैसे गंभीर विषयों को दिखाया! फिल्म में दिखाया कि कैसे डिजिटल हो रहे भारत में अभी भी महिलाएं कुरीतियों का शिकार हैं और सभ्य समाज में रहते हुए भी दूसरे दर्जे का जीवन जीने को मज़बूर हैं! 'की एंड का' ने समाज में लड़के और लड़कियों के लिए निर्धारित भूमिकाओं पर सवाल उठाए! फ़िल्म की अच्छी बात यह है कि यह न सिर्फ़ सवाल उठाती है, उसका समाधान भी दिखाती है। फ़िल्म का हीरो अपनी मां की तरह एक घर चलाने वाला शख़्स बनना चाहता है और वहीं फ़िल्म की हीरोईन घर से बाहर निकल कर पैसे कमाने वाली भूमिका में है।
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असल जिंदगी पर बनी फिल्मों ने किया राज

  अब बॉलीवुड के डायरेक्टर्स असल जिंदगी पर ज्यादा फ़िल्में बना रहे हैं। ये फिल्में काफी अच्छा बिजनेस भी कर रही हैं। इन फिल्मों ने अच्छा बिजनेस करके साबित कर दिया कि अच्छी फिल्म बनाने के लिए एक्शन और कॉमेडी की जरूरत नहीं होती! कहानी को अच्छा डायरेक्टर और सही एक्टर मिल जाए तो असल जिंदगी पर बनी फिल्में, काल्पनिक कहानियों से कहीं ज्यादा दमदार साबित होती हैं।
    2016 में कई बायोपिक फिल्में बनी, जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की! दंगल, नीरजा, अजहर, रुस्तम, सरबजीत, एमएस धोनी : दी अनटोल्ड स्टोरी और अलीगढ़ जैसी फिल्में इसी कड़ी का हिस्सा हैं। इनमें भी 'अजहर' और 'अलीगढ़' नकार दी गई! सबसे सफल फिल्मों में रुस्तम रही जिसमें अक्षय कुमार ने नौसेना अधिकारी के एम नानावटी के रोल में नजर आए! नानावटी पर हत्या का सनसनीखेज मुकदमा चला था। साल के अंत में परदे पर उतरी 'दंगल' हरियाणा के पहलवान महावीर फोगट की कहानी है जो अपनी दो बेटियों को पहलवानी गुर सिखाने में सफल हो जाता है! आमिर खान ने पहलवान के किरदार में एक बार फिर अपना लोहा मनवा दिया। 'नीरजा' साल की ऐसी फिल्म है जिसने कमाई तो की ही, सोनम कपूर की एक्टिंग से भी दर्शकों को रूबरू करवाया! ओमंग कुमार निर्दशित फिल्म 'सरबजीत' असल जिंदगी पर उस भारतीय कैदी  थी, जिसे पाकिस्तान की पुलिस ने आतंकवादी समझकर वहां कैद कर लिया था। सरबजीज की भूमिका रणदीप हुडा ने निभाई थी। भारतीय क्रिकेट टीम के विवादास्पाद पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरूद्दीन के जीवन पर बनी फिल्म 'अजहर' भी रिलीज हुई। लेकिन, चली नहीं! इसके अलावा अन्ना हजारे, वीरप्पन, बुधिया सिंह जैसी फिल्में भी भी रिलीज हुई, लेकिन इन्हें दर्शकों ने नकार दिया।  
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खुलेपन का तड़का, दर्शकों को नहीं पचा!  

   बॉलीवुड में बीते साल में बहुत से ऐसी फिल्में आई जिनमें कहानी का पता नहीं था! ये फ़िल्में अपने बदन दिखाऊ दृश्यों की बदौलत दर्शकों के बीच बनी रहीं! ऐसी फिल्मों में 'ए दिल है मुश्किल को लिया जा सकता है जिसमें रणबीर कूपर, एश्वर्या राय बच्चन, अनुष्का शर्मा और फवाद खान के लव सीन्स जलवा छाया रहा! इस  फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 100 करोड़ से ज्यादा की कमाई की। फिल्म में रणबीर और एश्वर्या ने जबरदस्त सीन्स दिए, जिस कारण ये फिल्म लोगों के बीच अपनी जगह बना पाई।
   ऐसी ही एक फिल्म 'बेफिक्रे' भी है जिसका युवा दर्शकों को बेहद इंतजार था! इस फिल्म में भी कहानी नदारद थी। फिल्म में वाणी कपूर ने खुलकर प्रदर्शन किया और रणबीर सिंह के साथ किसिंग सीन्स दिए। अजय देवगन के बैनर की फिल्म 'पॉर्चेड' भी इसी तरह की फिल्म रही। ये फिल्म पीरियड मेलोड्रामा थी! कहानी अच्छी थी, पर आज की डिमांड के मुताबिक नहीं! लेकिन, अपने इंटीमेंट दृश्यों के कारण ये फिल्म सुर्खियां बटोरने में कामयाब रही।
  'ए स्कैंडिल' इस तरह की फिल्मों में से ही एक है। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अपनी आमद तक दर्ज नहीं करा सकी! जबरदस्त इंटीमेट सीन्स के बावजूद ये फिल्म दर्शकों के बीच जगह बना पाने में असफल साबित हुई! किसिंग सीन्स के साथ रिलीज हुई फिल्म 'वजह तुम हो' भी दर्शकों द्वारा नकार दी गई। 'वन नाइट स्टैंड' को इस साल की सर्वाधिक न्यूड सीन्स वाली फिल्म माना जा सकता है। फिल्म में सनी लियोनी और तनुज वीरवानी की जोड़ी रोमांस करती नजर आई! अपने खुले दृश्यों के बावजूद फिल्म मात्र 2.21 करोड़ रुपए का बिजनेस कर पाई!
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जग घुमियां तेरे जैसा ना कोई 

   बॉलीवुड की फिल्मों के कई गानों ने बीते साल में जमकर धूम मचाई। इन गानों को दर्शकों ने खूब पसंद किया। कई गाने तो ऐसे रहे, जो फिल्म के रिलीज होने से पहले ही यूट्यूब पर हिट हो गए। 2016 के वे गाने, जिन्होंने इस साल के हिट गानों में अपनी जगह बनाई! इनमें सुल्तान, सनम रे और रुस्तम के गानों ने खूब तारीफ बटोरी! इस साल सबसे ज्यादा सुने जाने वाले गानों में सलमान खान की फिल्म 'सुल्तान' का गीत 'जग घुमिया तेरे जैसा न कोई' माना जा सकता है!
   इसी फिल्म के गीत 'बेबी को बेस पसंद है' को भी लोगों ने पसंद किया! अक्षय कुमार की फिल्म 'रुस्तम' का गाना 'तेरा संग यारा' बॉलीवुड के साल के लोकप्रिय गानों में से एक है। इस गाने को अतिफ असलम ने गाया है। 'दंगल' के गाने 'ऐसी धाकड़ है' को भी सुनने वाले मुरीदों की भी कमी नहीं रही। रणबीर सिंह की 'बेफिक्रे' बॉक्स आॅफिस पर अच्छा कलेक्शन न दे पाई हो, लेकिन फिल्म का गाना 'कुड़ी नशे सी चढ़ गई' काफी रास आया। फिल्म 'बार बार देखो' का गाना 'तेनु काला चश्मा' के तो कहने ही क्या हैं। ये गाना रिमिक्स है, पर इसे बहुत पसंद किया गया।
   'ऐ दिल है मुश्किल' का टाइटल ट्रैक लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इस साल शाहरुख खान ​अभिनीत फिल्म 'फैन' का गाना 'जबरा फैन' भी काफी पॉपुलर हुआ। 'सनम रे' भले से न चली हो, लेकिन फिल्म का गाना 'हुआ है आज पहली बार' को यूट्यूब पर करोड़ों लोगों ने देखा। करन जौहर की फिल्म 'ऐ दिल है मुश्किल' का गाना 'संइयाजी से ब्रैकअप हो गया' तो दिल वालों को काफी पसंद आया। 'कपूर एंड सन्स' का आलिया भट्ट और सिद्धार्थ मल्होत्राा पर फिल्माया गया गाना 'लड़की ब्यूटीफुल कर गई चुल' की मस्ती भी जमकर चली! बादशाह की आवाज ने इसने किसी का दिल जीता।
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सोनम, अनुष्का से आगे रही आलिया 

  बॉलीवुड की कुछ हीरोइनों ने बीते साल अपनी अदाकारी से कमाल किया है। दर्शकों और क्रिटिक्स की नज़र में ही नहीं, बॉक्स ऑफ़िस पर भी इसका असर दिखाई दिया। 2016 में बॉक्स ऑफ़िस कलेक्शंस के हिसाब से 2016 की सबसे कामयाब अभिनेत्री अनुष्का शर्मा रही! उनकी दो फ़िल्में रिलीज़ हुईं। सलमान ख़ान के साथ ‘सुल्तान’ और रणबीर कपूर के साथ ‘ऐ दिल है मुश्किल!' ‘सुल्तान’ ने जहां 300.45 करोड़ का बॉक्स ऑफ़िस कलेक्शन किया, वहीं ‘ऐ दिल है मुश्किल’ ने 113 करोड़ जमा किए। दूसरी कामयाब अभिनेत्री एक्ट्रेस रहीं इलियाना डिक्रूज़। उनकी इस साल अक्षय कुमार के साथ 'रुस्तम' आई, जिसने 127 करोड़ का बिजनेस किया।
  सोनम कपूर की इस साल एक ही फ़िल्म ‘नीरजा’ रिलीज़ हुई! लेकिन, इस फ़िल्म के आधार पर सोनम इस साल की तीसरी सबसे कामयाब हीरोइन हैं। क्योंकि, उनकी फ़िल्म ने 75 करोड़ का कलेक्शन किया। जैकलिन फर्नांडिस के लिए 2016 कुछ ख़ास रहा। उनकी तीन फ़िल्मों ‘ढिशूम’ (70 करोड़), ‘अ फ्लाइंग जट’ (38.61) और ‘हाउसफुल 3’ (107) में लीड रोल्स में दिखाई दीं। इस आधार पर जैकलिन 2016 की चौथी सबसे कामयाब एक्ट्रेस हैं।
  पांचवीं पायदान पर ऐश्वर्या राय हैं। ऐश की ‘सरबजीत’ और ‘ऐ दिल है मुश्किल’ आईं। ‘सरबजीत’ ने 29 करोड़, जबकि ‘ऐ दिल है मुश्किल' ने 113 करोड़ का कलेक्शन किया। छठे नंबर पर आलिया भट्ट हैं, जिनकी 2016 में तीन फ़िल्में डियर ज़िंदगी, उड़ता पंजाब और ‘कपूर एंड संस’ रिलीज़ हुईं। इन तीनों फ़िल्मों के कलेक्शंस का औसत कलेक्शन 66 करोड़ रहा। लेकिन, एक्टिंग के मामले में करीना ने नई पहचान जरूर बनाई है। सातवें नंबर पर करीना कपूर हैं। करीना इस साल ‘की एंड का’ और ‘उड़ता पंजाब’ में नज़र आईं। 'की एंड का' ने जहां 51.62 करोड़ का कलेक्शन किया, वहीं ‘उड़ता पंजाब’ को 59.60 करोड़ मिले। आठवीं पॉजिशन पर श्रद्धा कपूर हैं, जिनकी दो फ़िल्में आईं। ‘बाग़ी’ ने जहां 76 करोड़ जमा किए, वहीं ‘रॉक ऑन 2’ 12 करोड़ पर सिमट गई। इन कलेक्शंस का एवरेज 44 करोड़ रहा। प्रियंका चोपड़ा की इस साल एक ही फ़िल्म ‘जय गंगाजल’ रिलीज़ हुई, जिसका बॉक्स ऑफ़िस कलेक्शन लगभग 38 करोड़ रहा! इस कलेक्शन के आधार पर प्रियंका रैंकिंग में नवीं पॉजिशन पर रहीं। टॉप-10 की अंतिम पायदान पर सोनाक्षी सिन्हा रहीं। उनकी इस साल ‘अकीरा’ और ‘फोर्स-2’ में दिखाई दीं।
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Sunday, 18 December 2016

संगीत के बिना अधूरी है फ़िल्में

-  एकता शर्मा  

  संगीत हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को भी प्रदर्शित करता है। जहाँ तक हिन्दी फिल्मों के गानों का सवाल है, वह समय के साथ बदलते रहे हैं। कभी गजलों का दौर आता है, कभी परदे पर कव्वालियां गूंजने लगती है। फिल्मों के संगीत ने कभी किसी संगीत से परहेज नहीं किया! फिर वो शास्त्रीय संगीत हो, पॉप संगीत वो या फोक संगीत! फिल्म की कहानी शहर की हो या गांव की, रोमांटिक फिल्म हो या सस्पेंस हमेशा ही गाने फिल्म का हिस्सा थे, हैं और रहेंगे! कथानक के साथ गीत और संगीत का तालमेल बैठा ही लिया जाता है।  

  फिल्मों के आरंभिक वर्षों में कई तरह की फिल्में बनी, जिन्हें आसानी से ऐतिहासिक, पौराणिक ,धार्मिक, फेंटेसी फिल्मों के रूप में वर्गीकृत किया सकता था। जब हिन्दी फिल्मों ने पहली बोलती फिल्म 'आलमआरा' के साथ आवाज पाई, ये चलन तभी से शुरू हो गया! 1931 में अर्देशर इरानी की इस फिल्म में 7 गाने थे। इसके बाद ही जमशेदजी की फिल्म 'शीरी फरहाद' आई, जिसमें आपेरा स्टाइल में 42 गाने थे। इसके बाद 'इंद्रसभा' में 69 गीतों का भंडार था। लेकिन, इसके बाद फिल्मों में गानों की संख्या घटने लगी! हर फिल्म में 6 से लेकर 10 गाने शामिल किए जाने का सिलसिला शुरू हुआ। 1934 से गानों को ग्रामोफोन्स पर रिकार्ड किए जाने शुरू हुआ और बाद में रेडियो चैनलों पर इसका प्रसारण आरंभ हुआ।
    फिल्मों के शुरूआती दिनों में फिल्मी गीतों की जगह भजनों का दौर जारी रहा। उसके बाद इस पर उर्दू जुबान में लिखे गीतों का जादू छाया! अब तो वो दौर है कि इसमें सारी भाषाएं और शैलियां घुलमिल गई! फिर भी ब्रज, भोजपुरी, पंजाबी और राजस्थानी लोक गीतों का इस पर हमेशा प्रभाव रहा है। हिन्दी फिल्मों में गानों के साथ नृत्य का भी चोली-दामन का साथ रहा है। फिल्म की सिचुएशन कैसी भी हो, फिल्मकार इसके अनुरूप गाने बनवा ही लेते है। यहां तक कि एक्शन फिल्मों में भी मारधाड़ के बीच भी गानों के लिए जगह बनाने का कारनामा कई फिल्मों में दोहराया जाता रहा है।  
  हमारी बहुसंस्कृति जीवन शैली ने हिन्दी फ़िल्मी गानों ने भाषाओं के सारे बंधन तोड़ दिए और देश के कोने-कोने में हिन्दी फिल्मी गीत सुने जाने लगे! यहां तक की स्थानीय लोक मनोरंजन के साधनों जैसे रामलीला, नौटंकी और तमाशों में भी हिन्दी फिल्मों के गाने गूंजने लगे। पिछले सात दशक से ये गाने हमारे देश के अलावा दक्षिण एशिया के कई देशों में धूम मचा रहे हैं। हिन्दी फिल्म संगीत को लोकप्रिय बनाने में 80 के दशक में आए सस्ते टेपरिकार्डरों और सस्ती टेपों ने भी भरपूर योगदान दिया। आज भी हिन्दी फिल्मी गीत रेडियो, टीवी और यू-टयूब जैसी साइटों पर उपलब्ध हैं। इसके अलावा सीडी और डीवीडी के माध्यम से भी हिन्दी फिल्मी गीत सारी दुनिया में सुने जा रहे हैं।
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Friday, 9 December 2016

इस्लाम में निकाह बंधन नहीं महज कॉन्ट्रैक्ट!

- एकता शर्मा 

प्रसंग : तीन तलाक़ 

   किसी भी शादीशुदा मुस्लिम महिला के लिए ‘तलाक, तलाक, तलाक’ ऐसे शब्द हैं जो उसकी जिंदगी को बर्बाद करने की कुव्वत रखते हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट का ताजा फैसला इसी पृष्ठभूमि से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट के पूछने पर केंद्र सरकार ने भी स्पष्ट किया था कि वो इस प्रथा का विरोध करती है। इसे जारी रखने देने के पक्ष में नहीं है। सरकार का दावा है कि उसका ये कदम देश में समानता और मुस्लिम महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकार दिलाने के लिए है। सरकार ये भी कह रही है कि ऐसी मांग खुद मुस्लिम समुदाय के भीतर से उठी है! क्योंकि, मुस्लिम महिलाएं लंबे समय से तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठाती आ रही हैं। कुल मिलाकर सरकार तलाक के मुद्दे पर खुद को मुस्लिम महिलाओं के मसीहा के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है।
   इस्लाम में निकाह हिंदू विवाह व्यवस्था की तरह बंधन नहीं होता! निकाह को 'अहदो पैमान' यानि पक्का समझौता (सिविल कॉन्ट्रैक्ट) माना गया है। मर्द और औरत आपसी रज़ामंदी के बाद ये करार करता है। इस्लाम ने पति-पत्नी को इस समझौते को निभाने के लिए कई हिदायतें दी हैं! इसे तोड़ना आसान भी नहीं है। सिर्फ तीन बार तलाक़ कह देने से ही शादी टूट जाती हो, ऐसा नहीं है। शरिअत में पूरे इंतजाम हैं कि एक बार रिश्त-ए-निकाह में जुड़ने वाला पुरुष और महिला खानदान बनाएं और आखिरी वक़्त तक इसको कायम रखने की पूरी कोशिश करें। कुरआन ने भी निकाह को मीसाक-ए-गलीज़ यानी मजबूत समझौता करार दिया है।
  इस्लाम में तलाक देने के तीन तरीके सबसे ज्यादा चलन में हैं। तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-बिद्अत! यही झगड़ें की सबसे बड़ी वजह भी हैं। एक साथ तलाक, तलाक, तलाक कहना ये मामला 'तलाक-ए-बिद्अत' से जन्मा है। मुसलमानों के बीच तलाक-ए-बिद्अत का ये झगड़ा 1400 साल पुराना है। जबकि, भारत में मुस्लिम पर्सनल के झगड़े की बुनियाद 1765 में पड़ी! इस्लाम में निकाह तोड़ने के चार तरीके हैं! तलाक, तफवीज़-ए-तलाक़, खुलअ और फ़स्ख़-ए-निकाह। 'तलाक' के तहत पूरा अधिकार मर्द को है। इसी तरह निकाह को खत्म करने के लिए तफवीज़-ए-तलाक़, खुलअ और फ़स्ख़-ए-निकाह का अधिकार औरतों को भी है।
  इस्लाम में 'तफवीज़-ए-तलाक़' पति-पत्नी के अलग होने का एक तरीका है। इसमें निकाह तोड़ने का अधिकार औरत को है। मर्द तलाक देने का अपना अधिकार बीबी के सुपुर्द कर देता है। ख़ुलअ भी निकाह तोड़ने का एक तरीका है। इसका हक भी औरत को है। अगर औरत को लगता है कि वो शादीशुदा जिंदगी की जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर सकती या इस मर्द के साथ उसका निर्वाह संभव नहीं है, तो वो अलग होने का फैसला करती है। लेकिन, अलग होने पर औरत को मैहर की रक़म वापस पड़ती है। तीसरा है तलाक़। ये अधिकार मर्द को है और सारा झमेला इसे लेकर है। तलाक देने का तरीका बहुत ही साफ है। इसकी तीन कड़ियाँ हैं। तलाक-ए-रजई, तलाक-ए-बाइन और तलाक-ए-मुगल्लज़ा।
  'तलाक-ए-रजई' को तलाक की कार्रवाई का पहला चरण कहा जाता है। इस्लाम के मुताबिक यदि कोई पति अपनी पत्नी को छोड़ना चाहता है तो पहले उसे एक तलाक देना होता है। ये तलाक भी माहवारी के समय लागू नहीं माना जाता! 'तलाक-ए-बाइन' दूसरा चरण है। शुरु के दो महीनों में यदि पुरुष ने दिया गया पहला तलाक वापस नहीं लिया और तीसरा महीना शुरू हो गया तो अब तलाक पड़ना माना जाता है। इसे 'तलाक-ए-बाइन' कहते हैं। तीसरा चरण है 'तलाक-ए-मुगल्लज़ा!' ये तलाक का तीसरा और अंतिम चरण है। तीसरे महीने में अगर पुरुष ने कहा कि 'मैं तुमको तीसरी बार तलाक देता हूँ!' ऐसा कहने के बाद आखिरी तलाक भी पड़ गई मानी जाती है। इसे 'तलाक-ए-मुगल्लज़ा' कहा जाता हैं। इसके बाद पति-पत्नी के बीच निकाह नहीं हो सकता!
    ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) मुसलमानों में प्रचलित ‘तीन तलाक’ की प्रथा में किसी भी फेरबदल के खिलाफ अड़ा है। जबकि, इस मुद्दे पर पूरी दुनिया का नजरिया उलट है। करीब 22 मुस्लिम देश जिनमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं, ने अपने यहां सीधे तीन बार तलाक की प्रथा खत्म कर दी। इस सूची में तुर्की और साइप्रस भी शामिल है, जिन्होंने धर्मनिरपेक्ष पारिवारिक कानूनों को अपना लिया। ट्यूनीशिया, अल्जीरिया और मलेशिया के सारावाक प्रांत में कानून के बाहर किसी तलाक को मान्यता नहीं है। ईरान में शिया कानूनों के तहत तीन तलाक की कोई मान्यता नहीं है। यह अन्यायपूर्ण प्रथा इस समय भारत और दुनियाभर के सिर्फ सुन्नी मुसलमानों में बची है।
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विवादों की विरासत है कंगना रनौत

 - एकता शर्मा 

  कंगना रनौत का जब भी जिक्र होता है, बात उनसे जुड़े विवादों की ही होती है। उसके अभिनय को लेकर चर्चा कम ही होती देखी गई! क्योंकि, कंगना उन एक्ट्रेस में से है, जो अपने विवादस्पद बयानों और कारनामों से मीडिया में छाई रहती है। फिलहाल वे रितिक रोशन से चल रहे अदालती मामले को लेकर सुर्ख़ियों में है। कंगना ने दावा किया था कि वो और रितिक रोशन रिलेशनशिप में थे, तब रितिक ने उन्हें कई मेल किए थे। इस पर रितिक ने साइबर क्राइम सेल में शिकायत दर्ज कराई थी कि कोई उनके नाम का इस्तेमाल करके कंगना को मेल भेज रहा है। इससे पहले अध्ययन सुमन से रिश्ते को लेकर भी वे ख़बरों में छाई रही थी!
  जबकि, इस एक्ट्रेस ने अपने छोटे से करियर में तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार जीता है और एक्टिंग के मामले में अपनी समकालीन एक्ट्रेस से आगे हैं। क्वीन, फैशन और तनु वेड्स मनू सीरीज की दोनों फिल्मों में कंगना ने अपने रोल में जान डाल दी थी! कंगना ने भी 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' की रिलीज से पहले कहा था कि इस फिल्म में मैं जो रोल मैं कर रही हूँ, जानती हूँ कि इसे काफी पसंद किया जाएगा! आखिरकार जब फिल्म परदे पर आई तो न सिर्फ व्यवसायिक रूप से सफल रही बल्कि इसे कई पुरस्कार भी मिले।
  कंगना को फिल्म 'फैशन' में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री व फिल्म 'क्वीन' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने पर तो उत्साहित कंगना ने अपने उत्साह का कारण पुरस्कार के बजाए ये बताया था कि मैं इसलिए ज्यादा रोमांचित हूं, क्योंकि मेरे साथ अमिताभ बच्चन को भी सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया। ‘पीकू’ में श्रेष्ठ अभिनय के लिए अमिताभ बच्चन को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है। 'क्वीन' में अभिनय के लिए पहले सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का 'फिल्म फेयर' और फिर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलने के बाद से ही कंगना को नंबर वन अभिनेत्री माना जाने लगा है। कंगना को बॉलीवुड की उन एक्ट्रेस में भी गिना जाता है, जो अपने बलबूते पर किसी फिल्म को हिट कराने का माद्दा रखती हैं, वह भी अभिनय के दम पर।
  रितिक रोशन से जुबानी जंग के अलावा कंगना अपने पूर्व बॉयफ्रेंड अध्ययन सुमन को लेकर भी खासी चर्चित रही है। अध्ययन ने कंगना के सनकीपन और बर्ताव को लेकर कई आरोप लगाए थे। यहाँ तक कहा था कि वे काला जादू करती हैं। दोनों काफी करीब थे, पर अचानक न जाने क्या हो गया कि दोनों के बीच दूरियां आने लगीं और फिर दोनों का ब्रेकअप हो गया! दोनों के ब्रेकअप की कहानी किसी रहस्य से कम नहीं थी! इसके अलावा कंगना के एटीट्यूट को लेकर भी कई बार विवाद उभरे हैं। खुद के बारे में कंगना रनौत का कहना है कि उन्हें एक स्वतंत्र और मजबूत महिला माना जाता है, इसलिए युवतियां खुद को उनसे जोड़कर देख पाती हैं। मेरे स्टाइल की समझ का इसलिए अनुसरण किया जाता हैं कि मेरे ड्रेसिंग सेंस से प्रतिबिंबित होने वाली आधुनिक सोच से वे खुद को जोड़ पाती हैं।
   आशा चंद्रा से प्रशिक्षण लेकर 2005 में कंगना ने फिल्मों में अपना भाग्य आजमाया। एक कैफे में निर्देशक अनुराग बसु की उन पर नजर पड़ी और उन्होंने कंगना को अपनी फिल्म 'गैंगस्टर' का लीड़ रोल का प्रस्ताव दिया, जिसे कंगना ने स्वीकार कर लिया। फिल्म चल निकली और इसी के साथ कंगना भी बॉलीवुड में छा गई! इसके बाद कंगना की 'वो लम्हे' आई, जो हिट रही। कंगना ने अनुराग बसु की 'लाइफ इन ए मेट्रो' में भी काम किया, जिसमें उनके काम को समीक्षकों की अच्छी सराहना मिली। 2008 में आई मधुर भंडारकर की 'फैशन' ने तो कंगना के दिन फेर दिए! इस फिल्म में कंगना के साथ प्रियंका चोपड़ा भी थीं। फिल्म में अपनी भूमिका के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहअभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला।
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