Tuesday 26 July 2016

नए कानून से नहीं रुकेगी महिलाओं की तस्करी!

- एकता शर्मा 
  महिलाओं और युवतियों की तस्करी के सबसे अधिक मामले पूर्वी भारत में दर्ज किए जाते हैं। ये इलाका महिलाओं की तस्करी और खरीद-फरोख्त के बड़े केंद्र के तौर पर उभर रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण वहाँ के ग्रामीण इलाकों में गरीबी और पड़ोसी बांग्लादेश व नेपाल से लगी लंबी सीमा है! पूर्व वाममोर्चा सरकार के दौर में ग्रामीण इलाकों में गरीबी की वजह से कम उम्र में बेटियों के ब्याह की जो परंपरा शुरू हुई थी, वह सरकार बदलने के बावजूद जस की तस है। 'नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो' के ताजा आंकड़ों के बाद राज्य सरकार भी मानती हैं कि राज्य में महिलाओं की खरीद-फरोख्त का धंधा तेजी से फल-फूल रहा है। 
  देश में युवतियों और महिलाओं की तस्करी के 76 प्रतिशत मामले हैं। ये आंकड़ा है 'राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो का!' तस्करी से प्रभावित इन महिलाओं की मदद करने के लिए सरकार ने 'मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक-2016' को पारित करने की पहल की है! लेकिन, अभी ये विधेयक संसद में नहीं रखा गया है। जबकि, कहा जा रहा है कि नया कानून बनाने के बजाए मानव तस्करी के खिलाफ मौजूदा कानूनों में ही सुधार किया जाना था!  इस विधेयक की धारा-4 के अनुसार, जिसे तस्करी से बचाया है, उसे 'ज़िला तस्करी विरोधी समिति' के सदस्य/सचिव के सामने लाना जरुरी होगा! विधेयक में इस बात का उल्लेख नहीं है कि उसे कितने समय में समिति के समक्ष पेश किया जाना चाहिए 24 घंटे में, एक सप्ताह में या एक वर्ष के अंदर? तस्करी से सम्बंधित मौजूदा प्रक्रियाओं के अनुसार, ये काम 24 घंटे के भीतर हो जाना चाहिए, ताकि उन महिलाओं को अधिक वक़्त तक सरकारी सहायता घरों में न रहना पड़े!
  विधेयक में मौजूदा लाभ तक पहुँचने के लिए एक रास्ता ही दिया गया है, महिला को एक सरकारी सहायता घर में भर्ती होना पड़ेगा! जो महिलाएँ ऐसे घरों में नहीं रहना चाहतीं, उन्हें कोई सुविधा नहीं मिलेगी! हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में आदेश दिया था कि तस्करी से जूझती महिलाओं को सरकारी घरों में रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता! महिला संगठनों ने इस बात पर चिंता जताई है कि उन्ही के ‘पुनर्वास’ के मुद्दे पर उनसे कोई विचार विमर्श नहीं किया गया! विधेयक की धारा 8 और 9 के तहत उन्हें संरक्षण घरों में भेजा जाना जरुरी है। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, ये घर किसी जेल से कम नहीं होते! इस विधेयक में सामाजिक पुनर्वास के बारे में कोई बात नहीं की गई! जबकि, सामाजिक पुनर्वास तस्करी से प्रभावित महिला और उनके बच्चों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। क्योंकि, उन्हें समाज में भेदभाव सहन करना पड़ता है। उनका परिवार उन्हें स्वीकार नहीं करता और न उन्हें परिवार से संपत्ति ही मिलती है। 
 नए विधेयक के अनुसार, यौन कर्मियों के अलावा तस्करी से जूझते लोगों को उनकी मजदूरी के वो पैसे जो मिलना थे और नहीं मिले, वे पैसे सरकार की तरफ से मिलेंगे! विधेयक की एक अच्छी बात यह है कि धारा-12 के अनुसार ऐसी संस्थाएँ जो लोगों को नौकरियाँ दिलवाने के दावे करती हैं, उन्हें अपना पंजीकरण करवाना होगा! क्योंकि, महिलाओं की तस्करी के अधिकांश मामले ऐसी संस्थाओं के माध्यम से ही होते हैं। 
   सरकार ने खुफिया विभाग में 'यूनाइटेड नेशन्स ऑफिस ऑफ ड्रग एंड क्राइम' (यूएनओडीसी) के सहयोग से एक मानव तस्करी निरोधक शाखा का गठन किया है। क्योंकि, महिलाओं की बढ़ती तस्करी में पड़ोसी देशों की भी अहम भूमिका है। देश में सबसे ज्यादा आबादी वाले दस जिलों में से पांच इसी राज्य में हैं और इनमें से तीन-उत्तर व दक्षिण 24-परगना और मुर्शिदाबाद बांग्लादेश की सीमा से सटे हैं। राज्य की लगभग एक हजार किमी लंबी सीमा बांग्लादेश से सटी है। इसके जरिए गरीबी से प्रभावित बांग्लादेशी महिलाओं को कोलकाता स्थित दक्षिण एशिया में देह व्यापार की सबसे बड़ी मंडी सोनागाछी लाया जाता है। यहां से उनको मुंबई व पुणे जैसे शहरों के दलालों के हाथों बेच दिया जाता है।
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