Wednesday 30 November 2016

त्यौहार पर रिलीज़, फिल्म का हिट फार्मूला नहीं!

- एकता शर्मा 


  त्यौहारों को किसी भी फिल्म की सफलता का ब्लैंक चैक माना जाता है। यही कारण है कि दिवाली, ईद, क्रिसमय पर फ़िल्में रिलीज़ करने की होड़ सी लग जाती है। क्योंकि, लोगों को फुरसत के वक़्त में फिल्म दिखाकर कैसे बहलाया जाए, ये सिर्फ फिल्मकार ही जानते हैं। लेकिन, ये फार्मूला धीरे-धीरे फेल होता नजर आ रहा है। क्योंकि, इस बार दिवाली पर रिलीज़ हुई दोनों फिल्में 'शिवाय' और 'ए दिल है मुश्किल' दर्शकों के दिल पर नहीं चढ़ी! बॉक्स ऑफिस के आंकड़ें भी यही इशारा करते हैं। इसलिए कि आज फिल्म की सफलता को उसके सौ, दो सौ करोड़ या उससे ज्यादा की कमाई से आकलित किया जाता है। जबकि, एक वक़्त था जब फिल्म के सिल्वर, गोल्डन और प्लेटिनम जुबली मनाने को ही फिल्म का हिट होना समझा जाता था! उस समय फिल्म ने कितनी कमाई की, इससे दर्शकों का कोई सरोकार नहीं होता था, पर आज है! 
  औसत रूप से देखा जाए तो फ़िल्मी दुनिया की सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्म 1975 में आई 'जय संतोषी मां' ही मानी जाएगी! इस धार्मिक फिल्म ने संभवतः आजतक प्रदर्शित करोडों की लागत वाली सभी फिल्मों को पीछे छोड रखा है। इस फिल्म की सफलता का आश्चर्यजनक आकलन इसलिए किया गया कि 'जय संतोषी माँ' के निर्माण में कुछ लाख रूपए लगे थे और इसके वितरकों की कमाई का आंकड़ा 5 करोड रूपए तक पहुंचा था। लागत और कमाई की तुलना में ये 100 गुना ज्यादा था! इस नजरिए से आज 50-60 करोड में बनने वाली फिल्म को यदि 'जय संतोषी  माँ' का रिकॉर्ड तोडना है तो उसे 5 से 6 हज़ार करोड़ की कमाई करना पड़ेगी, जो संभव नहीं है।
 इस अनुपात से दूसरी सुपरहिट फिल्म है, 1989 में प्रदर्शित 'मैने प्यार किया।' जिसने अपनी लागत से लगभग 15 गुना कमाई का रिकॉर्ड बनाया था। इसके बाद भी यह फिल्म 'जय संतोषी माँ' से पीछे है। बॉलीवुड के इतिहास में 'मैंने प्यार किया' के अलावा सात और ऐसी फिल्में हैं, जिन्हें ऑल टाइम ब्लाक-बस्टर माना जाता है। इन फिल्मों ने सारे रिकार्ड तोड़कर ऐसे रिकार्ड बनाए हैं, जिन्हें छूना आज की फिल्मो के लिए मुश्किल है। 1975 में बनी शोले को हिन्दी फिल्म इतिहास की यह एक ऐसी फिल्म है जो अपने प्रदर्शन के समय तो औसत बिजनेस कर रही थी! लेकिन, एक सप्ताह के बाद जब इसे माउथ पब्लिसिटी मिली, तो इसे देखने के लिए थिएटरों में भीड़ उमड़ पड़ी। यह फिल्म अपने प्रदर्शन के तीन दशक बाद आज भी जब दर्शकों के सामने आती है, तो दर्शक बंध सा जाता हैं।
  बॉक्स आफिस पर रंग ज़माने वाली यादगार फिल्मों मे संगम, उपकार, बॉबी, रोटी कपडा और मकान, क्रांति, कुली, राम तेरी गंगा मैली, कभी-कभी, राजा हिन्दुस्तानी, कुछ-कुछ होता है, कभी ख़ुशी कभी गम, धूम-2, मुन्नाभाई एमबीबीएस, दबंग और दबंग-2, बॉडीगार्ड, सिंघम, बरफी आदि फ़िल्में भी हैं। लेकिन, ये सभी उन 8 मेगा ब्लाक-बस्टर से नीचे हैं। इसलिए कि कम निर्माण लागत के मुकाबले इन फिल्मों ने पैसा तो ज्यादा बटोरा, लेकिन दर्शक नहीं बटोरे! शायद 'शिवाय' और 'ए दिल है मुश्किल' का हश्र देखकर फिल्मकार सीखेंगे कि फिल्म अच्छी पटकथा से चलती है, कोई और फार्मूला उसे सफल नहीं बना सकता!
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