Saturday 5 August 2017

फिल्मों में सबसे हिट रहा दोस्ती का फार्मूला

- एकता शर्मा 

   फिल्मों की अपनी अलग ही दुनिया है। यहाँ सबकुछ मसालेदार फार्मूलों पर चलता है। जिस डायरेक्टर का फार्मूला चल जाता है, उसकी फिल्म सफलता के झंडे गाड़ देती है। लेकिन, बाद में यही दूसरी फिल्मों के लिए एक रास्ता बन जाता है। बदले और रोमांस वाली कहानियों के अलावा फिल्मों में जो फार्मूला सबसे ज्यादा चला है, वो है दोस्ती वाला। दो दोस्तों की दोस्ती को लेकर सैकड़ों कहानियां गढ़ी गई! जब इनसे दर्शक बोर हो गए तो उनके बीच प्रेम का तड़का लगा दिया गया। फिल्मों में दोस्ती को याद करने का कारण ये कि आज 'फ्रेंडशिप-डे' है। दोस्‍ती के नाम के इस दिन की अहमियत को बॉलीवुड ने बरसों पहले भी माना था और आज भी ये बरक़रार है।
   यादों के कुछ पन्ने पलटे जाएं तो राजश्री प्रोडक्शन द्वारा 1964 में बनाई फिल्म 'दोस्ती' को इस तरह की कहानियों पर बनी पहली सफल माना जाता है। ये फ़िल्म दो ऐसे दोस्तों की कहानी है, जिसमें एक अपाहिज है और दूसरा अंधा। इस फ़िल्म को छः फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड्स से नवाज़ा गया था। उस साल की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म भी यही थी। आज भी इस फिल्म गाने दोस्ती रिश्ते लेकर याद किए जाते हैं। 
   इंडस्ट्री में दोस्ती के साथ प्रेम त्रिकोण को जोड़कर फिल्मी बनाने की कोशिश सबसे ज्यादा की गई। दोस्तों के बीच एक प्रेम का एंगल डालकर दोनों में ग़लतफ़हमी करवाई गई। फिर दोस्तों के बीच दुश्मनी हुई और क्लाइमेक्स तक गलतफहमी दूर हो जाती है और दुश्मनी भी। फिर एक दोस्त का दूसरे के लिए प्रेम का त्याग कर देता है। इस तरह की कुछ फिल्मों का अंत सुखद नहीं होता है। कुछ फिल्मों में दोस्त फिर एक भी हुए हैं। दिलीप कुमार, नर्गिस, राज कपूर की 'अंदाज' और फिर राजकपूर, नर्गिस, राजेंद्र कुमार की फिल्म 'संगम' बहुत लोकप्रिय हुई। इसके बाद में आरजू, दोस्ताना, नसीब, हेराफेरी में भी इसी कथानक को सफलता के साथ आजमाया गया।
  अब याद किया जाए दोस्ती पर बनी चुनिंदा फिल्मों को, जो मील का पत्थर हैं। अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना की जोड़ी वाली फिल्म 'आनंद' की कहानी ऐसे मरीज पर केंद्रित थी, जो जिंदगी के आखरी दिन गिन रहा है। लेकिन, बहुत जिंदादिली से। वो आने वाली मौत को भी एंजॉय करता है। दूसरा एक डॉक्टर है जो उसे बचाना चाहता है। मरीज की भूमिका निभाई थी राजेश खन्‍ना ने और डॉक्‍टर बने थे अमिताभ बच्‍चन। 'शोले' में जय और वीरू की दोस्‍ती भी ऐसी फिल्मों में मिसाल है। इस फ‍िल्‍म की सफलता में अमिताभ बच्‍चन और धर्मेंद्र के रूप में इनकी जय और वीरू की जोड़ी का हाथ माना जाता है। फिल्म का गाना 'ये दोस्‍ती हम नहीं छोड़ेंगे' अभी भी दोस्ती लिए गुनगुनाया जाता है। 
   'रंग दे बसंती' भी ऐसी ही फिल्म है जिसमें कॉलेज के दोस्त आमिर खान, आर माधवन, शरमन जोशी, सिद्धार्थ और सोहा अली खान अपने एक दोस्त की मौत का बदला लेने की ठानते हैं। इस बहाने वे करप्शन के खिलाफ आवाज बुलंद करते हैं। 'दिल चाहता है' में सैफअली खान, आमिर खान और अक्षय खन्ना में दोस्‍ती है। दोस्‍ती को लेकर फिल्म का संदेश है कि दोस्‍तों में कितने भी मतभेद हों, पर जब उनका दोस्त मुसीबत में हो तो दोस्‍त ही उसके काम आते हैं। सफलतम फिल्मों में से फिल्म है 'थ्री इडियट्स' जिसमें आमिर खान, आर माधवन और शर्मन जोशी ने दोस्तों के किरदार निभाए हैं। फिल्म में कॉलेज लाइफ के किस्सों की भी भरमार थी। 
    'जिंदगी न मिलेगी दोबारा' वास्तव में जीना सिखाने वाली फिल्म है। जिंदगी में दोस्‍तों की अहमियत क्या होती है, यही फिल्म का संदेश है। रितिक रोशन, फरहान अख्तर और अभय देओल ने इसमें दोस्तों का किरदार निभाया है। 'रॉक ऑन' भी इसी दर्जे की फिल्म है जिसमें फरहान अख्तर, पूरब कोहली, अर्जुन रामपाल और ल्युक केन्नी ने भूमिका निभाई है। ये फिल्म बताती है कि दोस्त कभी बिछुड़ते नहीं हैं। जब भी कोई तकलीफ में होता है, सच्‍चे दोस्‍त ही हाथ थामकर साथ खड़े होते हैं। ऐसी ही कुछ और फ़िल्में हैं जाने तू या जाने ना, काई पो चे, कोई मिल गया, कुछ-कुछ होता है, ये जवानी है दिवानी, इक़बाल और दिल तो पागल है। अभी ये लिस्ट पूरी नहीं हुई है, और न हो सकेगी। क्योंकि, हर हिट फार्मूला फिल्मकारों की पहली पसंद रहा है।   
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