Sunday 21 June 2020

लॉक डाउन के बाद जिंदगी सोच से ज्यादा बदलेगी!

  लॉक डाउन के बाद जीवन में बहुत कुछ बदलेगा। लोगों के व्‍यवहार के साथ सोचने के तरीके भी बदल जाएंगे! मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसी स्थिति में लोग एकाकी हो जाएं तो आश्चर्य नहीं! उनके रहन-सहन और खानपान का तरीका भी बदल जाएगा। बाजारों में सन्नाटा होगा, आने-जाने, खाने-पीने, घूमने-फिरने, सामाजिक मेलजोल, सोचने के तरीकों, कारोबार के माध्‍यमों, घरों की व्यवस्था, सुरक्षा और कामकाज के तरीकों में बदलाव आएगा। जान बचाने की कोशिश लोगों को अज्ञात भय से हमेशा भयभीत रखेगी। ये कब तक होगा, कहा नहीं जा सकता! लेकिन, लॉक डाउन के बाद जब लोग घर से निकलेंगे, उनका सामना एक नई दुनिया से होगा, जिसमें वो सब बदला हुआ होगा, जिसके हम अभी तक अभ्यस्त थे।  
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- एकता शर्मा

     स समय लोग किसी भी चीज को छूने, लोगों के नजदीक जाने को खतरनाक मान रहे हैं। उन्‍हें भय है कि ये उनके लिए जानलेवा संक्रमण का कारण बन सकता है! सरकार भी 'सोशल डिस्‍टेंसिंग' को न सिर्फ प्रोत्‍साहित कर रही, बल्कि इसे अपराध बताकर डरा भी रही है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि व्यक्ति में डर से उपजी बातें हमारे हमेशा के लिए दिल में घर कर जाती हैं! जब लोग लॉक डाउन के बाद सामान्य जिंदगी जीने की कोशिश करेंगे, तो यही डर उन्हें रोकेगा। किसी भी चीज को छूने से परहेज करना, हाथ मिलाने से कतराना, बार-बार हाथ धोने की आदत और सोशल लाइफ से कटकर रहना लोगों में एक तरह के 'डिसआर्डर' की तरह पनप सकता है। लोग अकेले रहने में ज्यादा बेहतर और सुरक्षित महसूस करने लगेंगे। हर किसी को शंका भरी नजरो से देखेंगे और एक-दूसरे के घर मिलने जाने से कतराएंगे। ऐसी स्थिति में ऑनलाइन कम्युनिकेशन बढ़ जाएगा। क्योंकि, लोग मेलजोल से बचने की कोशिश करेंगे। ऐसे में आपसी रिश्‍तों में दूरियां बढ़ेंगी। लेकिन, एक-दूसरे का हालचाल जानने के बहाने संभव है, लोग फोन पर ज्यादा बातचीत करने लगें! 
     दुनियाभर में इन दिनों महामारी का आतंक है। ऐसी बीमारी जिसका किसी को कोई अता-पता नहीं! बीमारी अज्ञात है, इसलिए उसका सटीक इलाज भी नहीं हो पा रहा। चिकित्सा विज्ञान की सारी रिसर्च हाशिये पर चली गई! ये छूत की बीमारी है, जो किसी संक्रमित व्यक्ति के नजदीक जाने या उसे छूने से भी लग सकती है, इसलिए लोगों के दिल में अज्ञात भय व्याप्त है। लॉक डाउन के कारण लोग परिवार के साथ घरों में कैद हैं। घर के बाहर भी निकलते हैं, तो अहतियात बरतते हुए! चेहरे पर मास्क और हाथ में ग्लब्स लगे होते हैं। सबसे बड़ी बात ये कि जिनके साथ घंटों गुजरते थे, वे लोग बेगाने हो चले! चारों तरफ संदेह के बादल छाए हैं।
     अब लोगों को सबसे ज्‍यादा चिंता इस बात की है कि आखि‍र लॉकडाउन के बाद क्या होगा! ज‍िंदगी क‍िस तरह और कहाँ-कहाँ बदलेगी! जब लोग घर से बाहर निकलेंगे तो अपने चारों तरफ क्या नया दिखाई देगा! क्या कभी वे दिन लौटेंगे, जब लोग कॉफी हॉउस या चाय के ठीयों पर घंटों गुजार दिया करते थे! पान की दुकानों पर हंसी-ठट्ठा हुआ करता था! बात-बात में गले मिलना और मिलते ही हाथ मिलाना सामाजिक संस्कार थे! अब उनका क्या होगा? लोगों में जबरदस्त अविश्वास की भावना पनपेगी! हो सकता है वो सारे संस्कार तिरोहित हो जाएं, जो हमारी पहचान थे! क्योंकि, लॉक डाउन के बाद लोग अपनी जान की खातिर दूरी बनाकर रहने को मजबूर होंगे। ये भी संभव है कि सरकार हमेशा के लि‍ए ही 'सोशल ड‍िस्‍टेंस‍िंग' को कोई न‍ियम ही बना दे। यह सब आसान तो नहीं है, पर जीवन से बड़ा दुनिया में कुछ नहीं होता, तो लोग मन से न सही, मज़बूरी में ही दूरियां बनाकर तो रहेंगे!
   भारत जैसे देश में जहाँ जनसँख्या के कारण मेलजोल का रिवाज कुछ ज्यादा ही है, बहुत ज्यादा बदलाव आएगा। परिवार से बाहर लोग न तो ज्यादा संपर्क रखना चाहेंगे और ये उम्मीद करेंगे कि कोई उनके घर आए! वे भी किसी के घर नहीं जाएंगे! इसलिए कि वायरस से होने वाली ये ऐसी बीमारी है, जो व्यक्ति को छुपकर और बचकर रहने के लिए मजबूर करेगी। अभी तक हालात ये थे कि जब भी कोई परिचित बीमार होता था, तो सदाशयता के नाते उसकी सेहत पूछने वालों का अस्पताल और घर में तांता लग जाता था! अब शायद ऐसा नजारा दिखाई न दे! औपचारिकता के नाते लोग फोन पर हालचाल पूछकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेंगे! तात्पर्य यह कि इस महामारी का सबसे ज्यादा असर सामाजिकता और निजी व्यवहार पर पड़ेगा! लोगों में इस बीमारी की वजह से जो अविश्वास पनपा है, वो लम्बे समय तक बना रहेगा!
    शादी और पार्टियों की भीड़ कुछ सालों तक शायद ही नजर आए! क्योंकि, हर किसी के दिल में ये खतरे के बड़े ठिकाने होंगे! ये भी हो सकता है कि सरकार ही ऐसे आयोजनों को प्रतिबंधित कर दे या सीमित कर दे! ऐसे में भव्य शादियां सिर्फ यादें बनकर रह जाएगी। लोग भीड़ का हिस्सा बनने से तो बचेंगे ही, पार्टियों में खाना भी पसंद न करें। ऐसी स्थिति में शादी के आयोजन महज औपचारिकता के लिए होंगे! जहाँ पार्टी होगी, हो सकता है वहाँ मेहमानों की जाँच की जाए! जिस होटल में आयोजन होगा, वहां उसे ही आने की अनुमति मिले, जो अपने आपको स्वस्थ साबित करेगा! बात सिर्फ शादियों के आयोजन और पार्टियों तक ही सीमित नहीं है! ऐसे सभी आयोजनों का भी चेहरा बदल जाएगा, जहाँ अभी तक भीड़ ही व्यक्ति के संबंधों की पहचान हुआ करती थी।    धार्मिक उत्सव भी सिमट जाएं तो आश्चर्य नहीं! धार्मिक स्थलों में भी लोग दूरियां बनाकर रहेंगे या हो सकता है दूर से ही भगवान के दर्शन कर लौट जाएं! हज़ारों, लाखों की भीड़ वाले कुंभ और सिंहस्थ जैसे आयोजनों का बदला स्वरुप कैसा होगा, इसकी कल्पना भी सिहरन पैदा करती है! सभी धर्मों की  मान्यताओं पर जिंदा रहने की जंग हावी हो गई है। इसलिए इस वायरस का खतरा हर धर्म को मानने वालों के पूजा-पाठ के तरीकों को बदल देगा। समय की भी मांग मानवता की बेहतरी के लिए फिलहाल इन तौर-तरीकों को बदला भी जाए। लेकिन, यदि ये बदलाव ज्‍यादा समय तक बरकरार रखा गया तो इसके स्‍थायी व्‍यवहार में तब्‍दील होने का भी खतरा है।
    जब इतना कुछ बदलेगा तो बाजारों की रौनक का भी गायब होना तय है। शॉपिंग मॉल की दुकानें और शोरूम भीड़ देखने को तरस जाएंगे। लोग शायद घूमने या तफरीह के मूड से बाजार जाना ही छोड़ दें! ऐसे में ऑनलाइन शॉपिंग का बाजार ऊंचाई छूने लग सकता है! हालांकि, बाजार के कारोबारी जानकार ऐसी आशंकाओं को खारिज करते हैं। उनका मानना है कि मॉल्स यदि अपने ग्राहकों को पूरी तरह सुरक्षित माहौल देंगे, तो लोग आना नहीं छोड़ेंगे! लेकिन, मॉल को अपने संक्रमणमुक्‍त होने की गारंटी देना होगी। यही स्थिति होटल और रेस्टॉरेंट के सामने भी आएगी। क्योंकि, इस महामारी का होटलों और रेस्टॉरेंट पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। बाहर खाने की आदत पर तो समझो अंकुश जैसा ही लग सकता है! क्योंकि, इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण ही लोगों के संपर्क में ज्यादा आना होता है। ऐसे में होटल और रेस्टॉरेंट इस बीमारी के जनक साबित हो सकते हैं!
  ऑनलाइन फ़ूड डिलीवरी का जो बूम आया था, वो भी थमना लगभग तय है! क्योंकि, ये खाना कई हाथों से गुजरकर घर तक पहुँचता है। लोग जब घर से निकलना ही कम करेंगे तो उनकी फ़िल्में देखने की आदत भी छूट जाएगी! इसलिए कि 'सोशल डिस्टेंसिंग' का यहाँ कोई मायना नहीं रहता! सिनेमा और नाटकघरों की पास-पास में सटी सीटों को संक्रमण का कारण समझा जाएगा! दर्शक उन सीटों से भी परहेज करना चाहेंगे, जहाँ उनसे पहले कोई अंजान व्यक्ति बैठकर गया है!   
    जीवन में एक और बड़ा बदलाव यात्राओं के लेकर आने की संभावना है! बात चाहे बस यात्रा की हो, रेल यात्रा की व हवाई यात्रा की! संक्रमण के भय से लोग इससे बचेंगे। कम से कम सालभर तो लोग तभी यात्रा करेंगे, जब बहुत ज्यादा जरुरी होगा! हालात देखकर लगता है कि हर यात्री को तभी अनुमति होगी, जब वो निर्धारित मापदंडों पर खरा उतरे! यानी कोई बीमार व्यक्ति यात्रा ही न कर सके! हर बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट पर जाने और आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग होने लगे! साथ बैठे यात्री के प्रति संदेह की भावना इतनी प्रबल हो सकती है कि पहले की तरह लोग पास वाले से बात ही न करें! एक खतरा ये भी है कि लोग लोकसेवा वाहनों का इस्तेमाल करने से बचेंगे! सिटी बसें, लोकल ट्रेनें और मेट्रो पर भी इसके असर से नहीं बचेंगी। ऑफिस, स्कूल और कॉलेज में क्या बदलाव होगा, इसकी तो कल्पना करना ही शायद मुश्किल हो!
  देश की बहुत बड़ी कुछ सालों में गांव या कस्‍बों से बड़े शहरों में छोटे-छोटे काम धंधे के लालच में पहुँच गई थी। लेकिन, कोरोना ने इन्हें घर लौटने के लिए मजबूर कर दिया। ऐसे में लाखों लोग अपने गांवों और कस्बों में लौट गए। इनकी वापसी की पीड़ा अंतहीन है। आशंका है कि अब ये लोग शायद कुछ सालों तक शहरों की तरफ रुख न करें! काफी लोग तो लौटकर ही न जाएं और अपने गांव, कस्‍बों या छोटे शहरों में ही वैकल्पिक धंधों की तलाश कर लें। तात्पर्य ये कि हर व्यक्ति का जीवन कई जगह से बदलेगा।
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