Sunday 21 June 2020

समाज की सच्चाई की पोल खोलने में 'पाताल लोक' बेजोड़!

- एकता शर्मा
 ब फिल्मों की तरह वेब सीरीज के कथानकों पर भी उंगली उठने लगी है। जबकि, विवाद खड़ा करने वाले जानते हैं कि वेब सीरीज पर आपत्ति उठाने से कुछ होगा नहीं! क्योंकि, इन पर कोई सेंसर लागू नहीं होता! यही कारण है कि वेब सीरीज में खुलकर गालियां बकी जाती है और ऐसे सीन भी होते  हैं,जो सामान्यतः फिल्मों में नहीं दिख सकते! पहले नेटफ्लिक्स की 'सेक्रेट गेम्स' जैसी लोकप्रिय सीरीज में खामियाँ खोजी गईं, अब यही अमेजन-प्राइम की 'पाताल लोक' के साथ हुआ। लेकिन, 'पाताल लोक' की कहानी दिलचस्प है, जो पुलिस, राजनीति और पत्रकारिता जैसे पेशों की सच्चाई की पोल खोलती है!     
     वेब सीरीज 'पाताल लोक' जितनी लोकप्रिय हुई, उसके साथ उतने ही विवाद भी जुड़े। इस वेब सीरीज ने कई सीरीज को पीछे छोड़ दिया है। लेकिन, विवादों के मामले में भी ये सबसे आगे रही। इस सीरीज पर मानहानि, जातिगत और धार्मिक भावनाओं को भड़काने के भी आरोप लगे! सबके टारगेट पर रही फिल्म अभिनेत्री और निर्माता अनुष्का शर्मा। 'पाताल लोक' उनकी ही निर्माण कंपनी 'क्लीन स्लेट' ने बनाया है। लेकिन, प्रतिबंध लगाने जैसी मांगें नई नहीं है। कई फ़िल्में ऐसे विवादों का शिकार हो चुकी हैं। लेकिन, ये विवाद खड़ा होने से पहले 'पाताल लोक' अपना काम कर चुकी है। इसे हाल के वर्षों की श्रेष्ठ वेब सीरीज माना जाने लगा है। समीक्षकों ने इसे नेटफ्लिक्स की बहुचर्चित 'सेक्रड गेम्स' सीरीज से भी बेहतर माना। इसकी तुलना विश्वविख्यात 'मनी हाइस्ट' वेब सीरीज से की जाने लगी है। अनुराग कश्यप ने 'पाताल लोक' को के बारे में कहा कि ये देश में निर्मित अब तक की श्रेष्ठ क्राइम थ्रिलर है। भारत की सही शिनाख़्त कर पाने की वजह से ही ऐसा हुआ है।
   जातिगत या धार्मिक आधार पर विरोध करने वालों या इसे हिंदू बनाम मुस्लिम का मुद्दा बनाने की कोशिश करने वालों की आवाज कितनी देर टिकी रह पाती है, ये अभी देखना है! क्योंकि, समकालीन समय के अनुभव बताते हैं कि बात 'सेक्रड गेम्स' की हो या 'पाताल लोक' की, सोशल मीडिया दौर में विवाद इतना आसानी से पीछा नहीं छोड़ते! अनुष्का शर्मा का बतौर निर्माता पहली बार ऐसी स्थितियों से सामना हुआ है। उनके लिए ये एक बड़ा इम्तिहान है। जहां वे स्वर्ग, धरती और पाताल तीनों लोकों में निर्भीक और आत्मविश्वास से भरी नजर आती हैं।
    'पाताल लोक' हाल के दिनों में जबर्दस्त हिट होने वाली वेब सीरीज़ है। इस सीरीज को मिल रहे व्यूज से अंदाजा लग रहा है कि इसे बड़े पैमाने पर देखा जा रहा है। माउथ पब्लिसिटी ने इसे खासी लोकप्रियता दी। इसे युवा दर्शकों ने बहुत ज्यादा पसंद किया। लेकिन, कुछ नेताओं, सामाजिक संगठनों और धार्मिक संगठनों ने इस वेब सीरीज को बंद करने या उसमे बदलाव करने की मांग और शिकायतें की। किसी फिल्म को लेकर यदि ऐसी मांग या शिकायत होती, तो कुछ होने के आसार। लेकिन, ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ऐसी बातों को तवज्जो नहीं दी जाती। हिंदी दर्शकों के बेल्ट में ये वेब सीरीज इसलिए भी पसंद की जा रही है, कि इसमें भाषा, जाति और धर्म को लेकर जमकर धज्जियाँ उधेड़ी गई। नौकरशाही, पुलिस, मीडिया, राजनीति और इन सबसे बंधे एक बड़े पॉलिटिकल और सोशल सिस्टम को भी उघाड़ा गया है। अंधेरों-उजालों, नाइंसाफियों और यातनाओं और आत्मसंघर्षों की छानबीन करती ये सीरीज अपने कलाकारों के अभिनय और अनुष्का शर्मा की हिम्मत के लिए भी याद की जा रही है। ये वेब सीरीज पुलिस सिस्टम अंदर की विसंगतियों और विद्रूपताओं को उजागर करते हुए सामाजिक संकटों की शिनाख्त करती है। इसमें दलित चेतना के उभार से जुड़ी चुनौतियों की तलाश भी की गई है।
     वेब सीरीज पर आरोप लगाया गया कि हिंदुओं, सिखों और गोरखाओं की भावनाओ का अपमान किया गया और इस तरह सांप्रदायिक, जातीय और नस्ली सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिश की गई! उत्तरप्रदेश के एक विधायक का आरोप है कि जिस फोटो को कथित रूप से दर्शाकर सीरीज में इस्तेमाल किया गया, वो उनके जैसा दिखता है। इससे उनकी मानहानि हुई है और जिस गुर्जर जाति से वे आते हैं, उसका भी अपमान हुआ! हिंदू धर्म के कथित अपमान पर भी उन्होंने अनुष्का शर्मा के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। दिल्ली के एक सिख संगठन के पदाधिकारी ने सिख पात्र को खराब ढंग से चित्रित करने का आरोप लगाया है। गोरखा समुदाय के एक वकील ने भी अनुष्का शर्मा के खिलाफ रिपोर्ट करते हुए सीरीज पर आरोप लगाया कि नेपाली शब्द के साथ गाली का इस्तेमाल कर समुदाय का अपमान हुआ है। सिक्किम के सांसद इंद्राहुंग सुब्बा ने भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय से शिकायत की है।
    इसकी कहानी कई ऐसे सवाल छोड़ती है, जो दर्शक को सोचने पर विवश करते हैं। समाज में सौतेले व्यवहार का मुकाबला नागरिक धैर्य से करते रहने की कठिन परीक्षा से गुजरता किरदार हर दर्शक के सामने कुछ सवाल छोड़ जाता है। नौ कड़ियों में किरदारों का समावेश इस तरह है, कि वो वो 'पाताल लोक' की दुर्दशा के कथानक को अपनी अपनी निराशाओं, पराजयों और लालसाओं की ठोस जमीन मुहैया करा देते हैं। हालांकि सीरीज अपने पहले सीजन के अंत तक पहुंचते-पहुंचते कुछ जानी पहचानी कमजोरियों का शिकार भी होती है। अपने उन चार पात्रों को सहसा भुला देती है, जिनसे ये कहानी शुरू होती है। 
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