Sunday, 21 June 2020

लॉक डाउन के बाद जिंदगी सोच से ज्यादा बदलेगी!

  लॉक डाउन के बाद जीवन में बहुत कुछ बदलेगा। लोगों के व्‍यवहार के साथ सोचने के तरीके भी बदल जाएंगे! मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसी स्थिति में लोग एकाकी हो जाएं तो आश्चर्य नहीं! उनके रहन-सहन और खानपान का तरीका भी बदल जाएगा। बाजारों में सन्नाटा होगा, आने-जाने, खाने-पीने, घूमने-फिरने, सामाजिक मेलजोल, सोचने के तरीकों, कारोबार के माध्‍यमों, घरों की व्यवस्था, सुरक्षा और कामकाज के तरीकों में बदलाव आएगा। जान बचाने की कोशिश लोगों को अज्ञात भय से हमेशा भयभीत रखेगी। ये कब तक होगा, कहा नहीं जा सकता! लेकिन, लॉक डाउन के बाद जब लोग घर से निकलेंगे, उनका सामना एक नई दुनिया से होगा, जिसमें वो सब बदला हुआ होगा, जिसके हम अभी तक अभ्यस्त थे।  
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- एकता शर्मा

     स समय लोग किसी भी चीज को छूने, लोगों के नजदीक जाने को खतरनाक मान रहे हैं। उन्‍हें भय है कि ये उनके लिए जानलेवा संक्रमण का कारण बन सकता है! सरकार भी 'सोशल डिस्‍टेंसिंग' को न सिर्फ प्रोत्‍साहित कर रही, बल्कि इसे अपराध बताकर डरा भी रही है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि व्यक्ति में डर से उपजी बातें हमारे हमेशा के लिए दिल में घर कर जाती हैं! जब लोग लॉक डाउन के बाद सामान्य जिंदगी जीने की कोशिश करेंगे, तो यही डर उन्हें रोकेगा। किसी भी चीज को छूने से परहेज करना, हाथ मिलाने से कतराना, बार-बार हाथ धोने की आदत और सोशल लाइफ से कटकर रहना लोगों में एक तरह के 'डिसआर्डर' की तरह पनप सकता है। लोग अकेले रहने में ज्यादा बेहतर और सुरक्षित महसूस करने लगेंगे। हर किसी को शंका भरी नजरो से देखेंगे और एक-दूसरे के घर मिलने जाने से कतराएंगे। ऐसी स्थिति में ऑनलाइन कम्युनिकेशन बढ़ जाएगा। क्योंकि, लोग मेलजोल से बचने की कोशिश करेंगे। ऐसे में आपसी रिश्‍तों में दूरियां बढ़ेंगी। लेकिन, एक-दूसरे का हालचाल जानने के बहाने संभव है, लोग फोन पर ज्यादा बातचीत करने लगें! 
     दुनियाभर में इन दिनों महामारी का आतंक है। ऐसी बीमारी जिसका किसी को कोई अता-पता नहीं! बीमारी अज्ञात है, इसलिए उसका सटीक इलाज भी नहीं हो पा रहा। चिकित्सा विज्ञान की सारी रिसर्च हाशिये पर चली गई! ये छूत की बीमारी है, जो किसी संक्रमित व्यक्ति के नजदीक जाने या उसे छूने से भी लग सकती है, इसलिए लोगों के दिल में अज्ञात भय व्याप्त है। लॉक डाउन के कारण लोग परिवार के साथ घरों में कैद हैं। घर के बाहर भी निकलते हैं, तो अहतियात बरतते हुए! चेहरे पर मास्क और हाथ में ग्लब्स लगे होते हैं। सबसे बड़ी बात ये कि जिनके साथ घंटों गुजरते थे, वे लोग बेगाने हो चले! चारों तरफ संदेह के बादल छाए हैं।
     अब लोगों को सबसे ज्‍यादा चिंता इस बात की है कि आखि‍र लॉकडाउन के बाद क्या होगा! ज‍िंदगी क‍िस तरह और कहाँ-कहाँ बदलेगी! जब लोग घर से बाहर निकलेंगे तो अपने चारों तरफ क्या नया दिखाई देगा! क्या कभी वे दिन लौटेंगे, जब लोग कॉफी हॉउस या चाय के ठीयों पर घंटों गुजार दिया करते थे! पान की दुकानों पर हंसी-ठट्ठा हुआ करता था! बात-बात में गले मिलना और मिलते ही हाथ मिलाना सामाजिक संस्कार थे! अब उनका क्या होगा? लोगों में जबरदस्त अविश्वास की भावना पनपेगी! हो सकता है वो सारे संस्कार तिरोहित हो जाएं, जो हमारी पहचान थे! क्योंकि, लॉक डाउन के बाद लोग अपनी जान की खातिर दूरी बनाकर रहने को मजबूर होंगे। ये भी संभव है कि सरकार हमेशा के लि‍ए ही 'सोशल ड‍िस्‍टेंस‍िंग' को कोई न‍ियम ही बना दे। यह सब आसान तो नहीं है, पर जीवन से बड़ा दुनिया में कुछ नहीं होता, तो लोग मन से न सही, मज़बूरी में ही दूरियां बनाकर तो रहेंगे!
   भारत जैसे देश में जहाँ जनसँख्या के कारण मेलजोल का रिवाज कुछ ज्यादा ही है, बहुत ज्यादा बदलाव आएगा। परिवार से बाहर लोग न तो ज्यादा संपर्क रखना चाहेंगे और ये उम्मीद करेंगे कि कोई उनके घर आए! वे भी किसी के घर नहीं जाएंगे! इसलिए कि वायरस से होने वाली ये ऐसी बीमारी है, जो व्यक्ति को छुपकर और बचकर रहने के लिए मजबूर करेगी। अभी तक हालात ये थे कि जब भी कोई परिचित बीमार होता था, तो सदाशयता के नाते उसकी सेहत पूछने वालों का अस्पताल और घर में तांता लग जाता था! अब शायद ऐसा नजारा दिखाई न दे! औपचारिकता के नाते लोग फोन पर हालचाल पूछकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेंगे! तात्पर्य यह कि इस महामारी का सबसे ज्यादा असर सामाजिकता और निजी व्यवहार पर पड़ेगा! लोगों में इस बीमारी की वजह से जो अविश्वास पनपा है, वो लम्बे समय तक बना रहेगा!
    शादी और पार्टियों की भीड़ कुछ सालों तक शायद ही नजर आए! क्योंकि, हर किसी के दिल में ये खतरे के बड़े ठिकाने होंगे! ये भी हो सकता है कि सरकार ही ऐसे आयोजनों को प्रतिबंधित कर दे या सीमित कर दे! ऐसे में भव्य शादियां सिर्फ यादें बनकर रह जाएगी। लोग भीड़ का हिस्सा बनने से तो बचेंगे ही, पार्टियों में खाना भी पसंद न करें। ऐसी स्थिति में शादी के आयोजन महज औपचारिकता के लिए होंगे! जहाँ पार्टी होगी, हो सकता है वहाँ मेहमानों की जाँच की जाए! जिस होटल में आयोजन होगा, वहां उसे ही आने की अनुमति मिले, जो अपने आपको स्वस्थ साबित करेगा! बात सिर्फ शादियों के आयोजन और पार्टियों तक ही सीमित नहीं है! ऐसे सभी आयोजनों का भी चेहरा बदल जाएगा, जहाँ अभी तक भीड़ ही व्यक्ति के संबंधों की पहचान हुआ करती थी।    धार्मिक उत्सव भी सिमट जाएं तो आश्चर्य नहीं! धार्मिक स्थलों में भी लोग दूरियां बनाकर रहेंगे या हो सकता है दूर से ही भगवान के दर्शन कर लौट जाएं! हज़ारों, लाखों की भीड़ वाले कुंभ और सिंहस्थ जैसे आयोजनों का बदला स्वरुप कैसा होगा, इसकी कल्पना भी सिहरन पैदा करती है! सभी धर्मों की  मान्यताओं पर जिंदा रहने की जंग हावी हो गई है। इसलिए इस वायरस का खतरा हर धर्म को मानने वालों के पूजा-पाठ के तरीकों को बदल देगा। समय की भी मांग मानवता की बेहतरी के लिए फिलहाल इन तौर-तरीकों को बदला भी जाए। लेकिन, यदि ये बदलाव ज्‍यादा समय तक बरकरार रखा गया तो इसके स्‍थायी व्‍यवहार में तब्‍दील होने का भी खतरा है।
    जब इतना कुछ बदलेगा तो बाजारों की रौनक का भी गायब होना तय है। शॉपिंग मॉल की दुकानें और शोरूम भीड़ देखने को तरस जाएंगे। लोग शायद घूमने या तफरीह के मूड से बाजार जाना ही छोड़ दें! ऐसे में ऑनलाइन शॉपिंग का बाजार ऊंचाई छूने लग सकता है! हालांकि, बाजार के कारोबारी जानकार ऐसी आशंकाओं को खारिज करते हैं। उनका मानना है कि मॉल्स यदि अपने ग्राहकों को पूरी तरह सुरक्षित माहौल देंगे, तो लोग आना नहीं छोड़ेंगे! लेकिन, मॉल को अपने संक्रमणमुक्‍त होने की गारंटी देना होगी। यही स्थिति होटल और रेस्टॉरेंट के सामने भी आएगी। क्योंकि, इस महामारी का होटलों और रेस्टॉरेंट पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। बाहर खाने की आदत पर तो समझो अंकुश जैसा ही लग सकता है! क्योंकि, इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण ही लोगों के संपर्क में ज्यादा आना होता है। ऐसे में होटल और रेस्टॉरेंट इस बीमारी के जनक साबित हो सकते हैं!
  ऑनलाइन फ़ूड डिलीवरी का जो बूम आया था, वो भी थमना लगभग तय है! क्योंकि, ये खाना कई हाथों से गुजरकर घर तक पहुँचता है। लोग जब घर से निकलना ही कम करेंगे तो उनकी फ़िल्में देखने की आदत भी छूट जाएगी! इसलिए कि 'सोशल डिस्टेंसिंग' का यहाँ कोई मायना नहीं रहता! सिनेमा और नाटकघरों की पास-पास में सटी सीटों को संक्रमण का कारण समझा जाएगा! दर्शक उन सीटों से भी परहेज करना चाहेंगे, जहाँ उनसे पहले कोई अंजान व्यक्ति बैठकर गया है!   
    जीवन में एक और बड़ा बदलाव यात्राओं के लेकर आने की संभावना है! बात चाहे बस यात्रा की हो, रेल यात्रा की व हवाई यात्रा की! संक्रमण के भय से लोग इससे बचेंगे। कम से कम सालभर तो लोग तभी यात्रा करेंगे, जब बहुत ज्यादा जरुरी होगा! हालात देखकर लगता है कि हर यात्री को तभी अनुमति होगी, जब वो निर्धारित मापदंडों पर खरा उतरे! यानी कोई बीमार व्यक्ति यात्रा ही न कर सके! हर बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट पर जाने और आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग होने लगे! साथ बैठे यात्री के प्रति संदेह की भावना इतनी प्रबल हो सकती है कि पहले की तरह लोग पास वाले से बात ही न करें! एक खतरा ये भी है कि लोग लोकसेवा वाहनों का इस्तेमाल करने से बचेंगे! सिटी बसें, लोकल ट्रेनें और मेट्रो पर भी इसके असर से नहीं बचेंगी। ऑफिस, स्कूल और कॉलेज में क्या बदलाव होगा, इसकी तो कल्पना करना ही शायद मुश्किल हो!
  देश की बहुत बड़ी कुछ सालों में गांव या कस्‍बों से बड़े शहरों में छोटे-छोटे काम धंधे के लालच में पहुँच गई थी। लेकिन, कोरोना ने इन्हें घर लौटने के लिए मजबूर कर दिया। ऐसे में लाखों लोग अपने गांवों और कस्बों में लौट गए। इनकी वापसी की पीड़ा अंतहीन है। आशंका है कि अब ये लोग शायद कुछ सालों तक शहरों की तरफ रुख न करें! काफी लोग तो लौटकर ही न जाएं और अपने गांव, कस्‍बों या छोटे शहरों में ही वैकल्पिक धंधों की तलाश कर लें। तात्पर्य ये कि हर व्यक्ति का जीवन कई जगह से बदलेगा।
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Friday, 1 May 2020

'ऋषि कपूर चले गए ... मैं टूट गया हूँ!'


- एकता शर्मा

   ऋषि कपूर को 2008 में जब 'फिल्म फेयर' का लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला, तो वे खुश नहीं थे। अपनी नाखुशी उन्होंने शर्मिला टैगोर के सामने व्यक्त करते हुए कहा था कि मुझे अभी ये अवॉर्ड क्यों दिया गया, क्या मैं मरने वाला हूँ? ये किस्सा खुद शर्मिला ने दुखी होकर सुनाया! ऋषि के उस समय जो सवाल किया था उसका जवाब सामने मिल गया! वो अवॉर्ड यहीं रखा रह गया और वे अनंत की यात्रा पर निकल गए! इरफ़ान खान की तरह उन्हें भी कैंसर ने हरा दिया। 
  ऋषि के चले जाने की पहली सूचना अमिताभ बच्चन ने ट्वीट करके की। उन्होंने अपने ट्वीट में जो लिखा, उसमें उनका दर्द रिसता नजर आता है। सुबह 9.32 को किए ट्वीट में अमिताभ ने लिखा, 'वो चले गए ... ऋषि कपूर ... वो चले गए ... उनका निधन हो गया। मैं टूट गया हूं।' इसलिए कि अमिताभ और ऋषि कपूर ने कई फिल्मों में साथ काम किया था! शायद '102 नॉट आउट' में निभाए बाप-बेटे के किरदार को याद करके उन्होंने 'मैं टूट गया हूँ' जैसी भाषा इस्तेमाल की। दोनों ने 'अमर-अकबर-एंथोनी' से '102 नॉट आउट' तक करीब 8 फिल्मों में साथ काम किया। ऋषि सोशल मीडिया पर  बहुत ज्यादा ऐक्टिव थे, लेकिन 2 अप्रैल से उन्होंने कुछ भी पोस्ट नहीं किया था। वे कई बार सोशल मीडिया पर अपनी मुखर और तल्ख़ टिप्पणियों के लिए भी चर्चा में रहे। 
    ऋषि कपूर पिछले दो साल से कैंसर से जूझ रहे थे। अमेरिका के कैंसर अस्पताल में 11 महीने 11 दिन गुजारने के बाद पिछले साल सितम्बर में जब ऋषि लौटे, तो उन्होंने बताया था कि उनका इलाज अभी पूरा नहीं हुआ, ये आगे भी जारी रहेगा और पूरी तरह से ठीक होने में वक्त लगेगा। इस साल तबियत ख़राब होने से फ़रवरी में उन्हें दो बार अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बाद में वे मुंबई में वायरल फीवर की वजह से भर्ती हुए थे। दो दिन पहले उन्हें सांस लेने में परेशानी की वजह से फिर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लेकिन, इस बार वे स्वस्थ नहीं हो सके। 
  ऋषि कपूर उर्फ़ 'चिंटू' का जन्म 4 सितंबर 1952 को हुआ था। वे अभिनेता-फिल्म निर्देशक राज कपूर और अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के पोते के दूसरे पुत्र थे। उन्होंने कैंपियन स्कूल, मुंबई और मेयो कॉलेज, अजमेर में अपने भाइयों के साथ अपनी स्कूली शिक्षा की! अपने चार दशक के करियर में उन्होंने  अभिनय के अलावा निर्माता और निर्देशन में भी हाथ आजमाया! उनके अभिनय की शुरुआत 'मेरा नाम जोकर' में बाल कलाकार के रूप में हुई थी। इस फिल्म में उन्होंने अपने पिता राजकपूर के बचपन का किरदार निभाया था।
  1973 में बतौर एक्टर डिंपल कपाड़िया के साथ उनकी फिल्म 'बॉबी' आई थी, जिसने रोमांटिक फिल्मों का एक नया ट्रेंड बनाया! इस फिल्म की सफलता ने फ़िल्मी दुनिया को ऐसा रोमांटिक चेहरा दिया जो लगातार दो दशक तक परदे पर छाया रहा! 1974 में 'बॉबी' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड और साथ ही 2008 में फ़िल्म फेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार सहित कई अवॉर्ड्स से सम्मानित किया गया। उन्होंने पहली फिल्म 'बॉबी' से ही लोकप्रियता की ऊंचाई छूना शुरू की थी। 1973 से 2000 तक उन्होंने सबसे ज्यादा रोमांटिक भूमिकाएं की। वे युवा दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय थे। ऋषि कपूर को अपने समय का फैशन आइकॉन भी माना जाता था। उन्होंने स्वेटर का ऐसा ट्रेंड चलाया था कि उन्हें कई बार स्वेटर कपूर भी कहा गया।
   उनके करियर में एक ऐसा दौर भी आया जब वे रोमांटिक फिल्मों के लिए टाइप्ड माने जाने लगे थे। उनके पास न तो बहुत ज्यादा वैसी फिल्में थीं और न फ़िल्में चल रही थीं। उसी समय उन्हें मनमोहन देसाई ने उन्हें 'अमर अकबर एंथोनी' में कव्वाल अकबर इलाहाबादी  किरदार दिया जिसने उनके बारे में सारी राय बदल दी। ये फिल्म उनकी करियर का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुई थी। बताते हैं कि मनमोहन देसाई खुद भी ऋषि कपूर को लेकर ज्यादा आश्वस्त नहीं थे! लेकिन, उन्हें उम्मीद थी कि वो ऋषि को वे एक अलग किरदार में दिखाने में सफल होंगे और उन्होंने ऐसा किया भी! जब फिल्म रिलीज हुई, तो अकबर इलाहाबादी छा गया!
  अपनी निजी जिंदगी में भी ऋषि बहुत रोमांटिक रहे हैं। उनका नाम अपनी पहली को-स्टार डिंपल कपाड़िया से भी जुड़ा था। लेकिन, उन्होंने शादी नीतू सिंह से 5 साल के लम्बे अफेयर के बाद की थी। उनके जीवन का एक दिलचस्प किस्सा ये भी अपने चालीस साल के फ़िल्मी करियर में  उन्होंने पहली बार फिल्म 'अग्निपथ' के लिए ऑडिशन दिया था। फ़िल्मी करियर में पहली बार वे इस फिल्म में निगेटिव रोल में दिखाई दिए, जिसे उनके फैंस ने बेहद पसंद किया। 1977 में आई फिल्म 'हम किसी से कम नहीं', 1982 में आई 'प्रेम रोग', 1986 में आई 'नगीना' और 1993 में रिलीज हुई फिल्म 'दामिनी' को भी दर्शकों ने पसंद किया। लेकिन, 1979 में आई 'सरगम' में उनकी डफली बजाने की अदा अनोखी रही! उन्होंने कई फिल्मों में डफली बजाई और 'स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर' तक उनके हाथ से डफली नहीं छूटी! इन फिल्मों को कई अवॉर्ड्स भी मिले। 
  चार दशक के करियर में ऋषि ने तीन तरह के अलग-अलग किरदार निभाए! 1973 से 1995 तक की फिल्मों में वे रोमांटिक हीरो रहे! लेकिन, इसके बाद उनके किरदारों का चेहरा बदल गया। फ़ना, हम-तुम और नमस्ते लंदन जैसी फिल्मों में इस पीढ़ी के दर्शकों ने उन्हें परिपक्व चरित्र में देखा! लेकिन, 2010 के बाद उनकी फिल्मों में वे उम्रदराज नजर आए! इनमें मुल्क, कपूर एंड संस और '102 नॉट आउट' जैसी फ़िल्में रहीं। कहा जाता है कि फिल्म एक्टर कभी नहीं मरता, वो सेलुलॉइड पर हमेशा जिंदा रहता है! ऐसे ही ऋषि भी अपनी फिल्मों के किरदारों में हमेशा जीवित रहेंगे!  
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इरफ़ान जिसकी आँखे भी अभिनय करती रही!

- एकता शर्मा 
   
   ये खबर विश्वास करने वाली नहीं है, पर करना पड़ेगी। बड़े परदे के बेहतरीन अभिनेता इरफ़ान खान अब नहीं रहे। उन्होंने कैंसर को हरा दिया था, पर मौत ने उन्हें तब भी छोड़ा! वे दो दिन मुंबई के कोकिलाबेन  हॉस्पिटल में भर्ती रहे और आज जिंदगी से हार गए। उन्हें इस दौर का बेहतरीन अभिनेता माना जाता था! वे सर से पैर तक अभिनेता थे! उन्ही आवाज से लगाकर आँखें तक अभिनय करती थी! हाल ही में दर्शकों ने उन्हें 'इंग्लिश मीडियम' में देखा था, जो 'हिंदी मीडियम' की अगली कड़ी थी! उन्हें 'पानसिंह तोमर' के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है। लेकिन, अब सारी बीती बातें हो गई! उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि भी एक अलग ही रंग लिए थी! कुछ साल पहले उन्होने अपने नाम के साथ जुड़ा 'खान' ही निकाल दिया था! इसलिए कि इससे उनके किसी धर्म विशेष का होने का पता चलता था! 
      इरफान खान ने हिंदी के साथ अंग्रेजी फ़िल्मों व टेलीविजन में भी काम किया। उन्होंने द वारियर, मकबूल, हांसिल, द नेमसेक, रोग और हिंदी मीडियम जैसी फिल्मों में अभिनय किया। 2004 में उन्हें 'हांसिल' के लिए फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड में श्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार भी मिला था। उन्होंने बॉलीवुड की 30 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। वे हॉलीवुड में भी जाना-पहचाना नाम थे। उन्होंने ए माइटी हार्ट, स्लमडॉग मिलियनेयर, इनफर्नो और द अमेजिंग स्पाइडर मैन जैसी फिल्मों में काम किया था। 2011 में उन्हें 'पद्मश्री' से भी सम्मानित किया गया।
   इरफ़ान के अभिनय की खासियत थी कि वे किरदार में पूरी तरह डूब जाते थे। 2012 में उन्हें 'पानसिंह तोमर' में अभिनय के लिए श्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया था। दर्शकों का मानना है कि वे पूरा अभिनय अपनी आंखों से करते थे। इसके अलावा वे लीक से हटकर फिल्‍में करने के लिए भी मशहूर हुए। अभिनय के क्षेत्र में ऑलराउंडर माने जाने वाले इरफान खान ने हमेशा ही अपने अभिनय से हर वर्ग के दर्शकों को प्रभावित किया! उनका अपना एक अलग अंदाज था और वे ऐसे एक्टर थे जो अपने अभिनय से किसी भी किरदार में जान डाल देते थे। हॉलीवुड अभिनेता टॉम हैंक्स का कहना था कि इरफान की तो आंखें भी एक्टिंग करती हैं। 
  इरफ़ान जब एमए की पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्हें नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के लिए स्कॉलरशिप मिली। अभिनय में ट्रेंड होने के बाद इरफ़ान ने मुंबई का रूख किया और टीवी धारावाहिकों में व्यस्त हो गए। चाणक्य, चंद्रकांता, स्टार बेस्ट सेलर्स जैसे कई धारावाहिकों में इरफ़ान ने काम किया और यहीं से फिल्म निर्माता-निर्देशकों का उनकी तरफ ध्यान गया। मीरा नायर की फिल्म 'सलाम बांबे' में उन्हें छोटी सी भूमिका निभाने का मौका मिला था। 'सलाम बांबे' के बाद उन्होंने कई ऑफबीट फ़िल्में की। एक डॉक्टर की मौत, कमला की मौत और 'प्रथा' जैसी समांतर फिल्मों में अभिनय के बाद इरफ़ान ने मुख्यधारा की फिल्मों की और रूख किया। 
    इरफ़ान ख़ान कभी नायक की भूमिका के दायरे में कैद नहीं रहे। वे लाइफ इन ए मेट्रो, आजा नचले, क्रेजी-4 और सनडे जैसी फिल्मों में महत्वपूर्ण चरित्र भूमिकाएं निभाई तो मकबूल,रोग और बिल्लू में भी काम किया। गंभीर अभिनेता की छवि वाले इरफ़ान की एक्टिंग का जादू सिर्फ बॉलीवुड में ही नहीं, पूरी दुनिया के लोगों पर छाया रहा! लेकिन, उन्होंने अपने अभिनय जीवन की शुरुआत जूनियर कलाकार की तरह की थी। पहली बार उन्हें 'हांसिल' से पहचाना गया था। उनकी हॉलीवुड फिल्म ‘इनफर्नो’ को भी दर्शकों ने सराहा था। ‘इनफर्नो’ भारत और अमेरिका में एक साथ रिलीज हुई थी। इरफान का कहना था कि यह उनके लिए पुरस्कार जैसा है। उनका सपना था कि वे ध्यानचंद जैसे विख्यात हॉकी खिलाड़ी की जीवनी पर फिल्म करें, लेकिन उनका ये सपना अधूरा रह गया। उनका कहना था कि ध्यानचंद जैसे खिलाड़ी की जीवनी पर फिल्म में काम करना उनके लिए गर्व की बात होगी। 
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कोरोना काल में छोटी फिल्मों से मिलते बड़े संदेश!



- एकता शर्मा 

   ज पूरी दुनिया में जानलेवा कोरोना वायरस ने कहर बरपा रखा है। ज्यादातर देशों में लॉकडाउन की स्थिति है। इस जानलेवा वायरस के चलते सभी देशों के नागरिकों में डर का माहौल है। भारत में भी तेजी से कोरोना वायरस का संक्रमण फैल रहा है। इस बीच कोरोना लॉकडाउन के चलते सिनेमा हॉल बंद हैं। फिल्मों की रिलीज़ रुक गई! शूटिंग भी रुक गई है। सारे सितारे घरों में बंद हैं। लेकिन, क्रिएटिव लोगों के लिए पाबंदी भी क्रिएटिविटी का सोर्स बन रही है। संकट की इस घड़ी में भी बॉलीवुड अपनी जिम्मेदारी निभाने में पीछे नहीं हट रहा! वे जरूरतमंदों की मदद के लिए तो सामने आए ही हैं, मनोरंजन करने और एक मकसद का संदेश देने में भी पीछे नहीं हट रहे!
    पिछले दिनों साढ़े 4 मिनट की एक फिल्म 'सब-टीवी' के यूट्यूब चैनल‘ पर रिलीज हुई! इसमें बॉलीवुड के कई सितारों ने एक्टिंग की है। ये हैं रजनीकांत, अमिताभ बच्चन, ममूटी, मोहनलाल, आलिया भट्ट, सोनाली कुलकर्णी, प्रियंका चोपड़ा, चिरंजीवी, शिवा राजकुमार, प्रसन्नजीत चटर्जी, दिलजीत दोसांझ और रणबीर कपूर। इसके कॉन्सेप्ट और डायरेक्शन का क्रेडिट जाता है प्रसून पांडे को, जो एडवरटाइजिंग फिल्म के फील्ड में बड़े नाम हैं।   खास बात यह है कि फिल्म बनकर तैयार हो गई, लेकिन एक भी एक्टर अपने घर से बाहर नहीं निकला। सबने अपने घरों में बैठकर ही शूटिंग की। देश के अलग-अलग कोने में! कोई पंजाब में, कोई बंगाल में, कोई महाराष्ट्र तो कोई तमिलनाडु में! हालांकि, फिल्म देखते हुए आपको लगेगा कि सभी लोग एक ही घर में हैं। यही तो सिनेमा का जादू है और इसी को फिल्म कॉन्टिन्यूइटी कहते हैं! इस शॉर्ट फिल्म का नाम है ‘फैमिली!’ फिल्म एक लाइट कॉमेडी है घर के एक बुजुर्ग यानी अमिताभ बच्चन को अपना काला चश्मा नहीं मिल रहा, इसलिए घर के सभी लोग वह चश्मा ढूंढने लगते हैं!
    यह फिल्म सोनी नेटवर्क के सभी चैनल पर दिखाई गई थी। इससे मनोरंजन तो होगा ही! लेकिन, उसके अलावा एक और मकसद अमिताभ बच्चन ने बताया! इस शार्ट फिल्म के अंत में. उन्होंने कहा 'हमारे देश का फिल्म उद्योग एक है. हम सब एक परिवार हैं. लेकिन हमारे पीछे एक और बहुत बड़ा परिवार है, जो हमारे लिए काम करता है। वो हैं हमारे वर्कर्स और डेली वेज अर्नर्स, जो इस लॉकडाउन की वजह से संकट में हैं। हम सबने मिलकर स्पॉन्सर्स और टीवी चैनल के सहयोग से धनराशि इकट्ठी की है। इस संकट की घड़ी में, ये जो धनराशि है, वो हम देशभर के फिल्म उद्योग के वर्कर्स और डेली वेज अर्नर्स को राहत के तौर पर देंगे! इसलिए डरिए मत, घबराइए मत, यह भी गुज़र जाएगा, टल जाएगा ये संकट का समां! धन्यवाद. नमस्कार!' 
   कोरोना संक्रमण के चलते पैदा हुए डर के माहौल को हल्का करने के लिए बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार और निर्माता-निर्देशक-प्रोड्यूसर जैकी भगनानी ने मिलकर एक गाना बनाया है। इसमें बॉलीवुड के मौजूदा दौर के ज्यादातर सेलिब्रेटीज नजर आ रहे हैं। अक्षय की पहल पर बनाया गया इस वीडियो सॉन्ग सुनकर आंखों में आंसू और मन में जोश पैदा होता है।
    देशभक्ति से लबरेज इस वीडियो में बॉलीवुड के कई सितारे एक साथ पर्दे पर नजर आए हैं। इन्होंने मिलकर एक गाने के जरिए आम लोगों को उम्मीद देने की कोशिश की है। इनमें बॉलीवुड के खिलाड़ी अक्षय कुमार, विकी कौशल, तापसी पन्नू, टाइगर श्रॉफ, भूमि पेडनेकर, कृति सेनन, कार्तिक आर्यन, कियारा आडवाणी, आयुष्मान खुराना, जैकी भगनानी, शिखर धवन, सिद्धार्थ मल्होत्रा, रकुल प्रीत सिंह, राजकुमार राव, आरजे मलिष्का और अनन्या पांडे दिखाई दे रहे हैं और इस विशेष एंथम सॉन्ग के जरिए लोगों में हिम्मत बढ़ाते नजर आ रहे हैं।
  लोगों में जोश पैदा करने वाले गाने की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस वीडियो मैसेज से होती है जिसमें वो कोरोना से लड़ाई जीतने की बात कर रहे हैं। इसके बाद गाने में पूरे भारत को समाहित करने की कोशिश की गई थी। इस गाने में पुलिस, डॉक्टर्स व आम लोगों के विजुअल भी दिखाई देते हैं। आखिर में यह गाना देशभक्ति से लबरेज और भावुक करने वाला हो जाता है। इस गाने को 'उम्मीद का गाना' कहा जा रहा है। इसका म्यूजिक विशाल मिश्रा ने दिया है और अपनी जादुई आवाज से सजाया भी है। जबकि, इसके बोल कौशल किशोर ने लिखे हैं। उम्मीद की जा रही है कि यह गाना घर बैठे लोगों के दिलों को जरूर छुएगा और ज्यादा से ज्यादा लोग इसे पसंद करेंगे।
   अपने इस गाने को लेकर अक्षय कुमार का कहना है कि इस समय हमारे सिर पर मुश्किलों के काले बादल छाए हुए हैं। लोगों की जिंदगी जैसे एक ही जगह पर थम सी गई है। ऐसे में हमारा यह गाना लोगों को इस बात का एहसास कराएगा कि सब कुछ जल्द ही सामान्य हो जाएगा। इस गाने से होने वाली कमाई कोरोना से लड़ने वाले केंद्र और राज्य सरकार के समर्थन में इस्तेमाल होगी। यह गाना 1.3 करोड़ भारतीयों को हमारा ट्रिब्यूट है।उन्होंने आगे कहा कि हम सभी को कोविड-19 के खिलाफ एकजुट होकर डटे रहना होगा और तब मुस्कुराएगा इंडिया। वहीं गाने को लेकर जैकी भगनानी का कहना है कि यह गाना संकट की इस घड़ी में भारतीयों के चेहरों पर मुस्कान लाएगा। जैकी ने कहा कि मैंने और अक्षय ने महसूस किया कि यह गाना इस मुश्किल समय में एक उम्मीद कायम करेगा। यहीं से हमें इस गाने को बनाने का विचार आया।
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बरसों बाद भी 'दूरदर्शन' के ये सीरियल आज भी बेजोड़!

- एकता शर्मा 

   अपने शुरूआती काल से अभी तक टेलीविजन में बहुत कुछ बदलाव आया है। तकनीकी विस्तार के अलावा सीरियलों के कथानक भी बदले और दर्शकों का सोच भी! इन सालों में निजी चैनलों ने मनोरंजन की ऐसी नईदुनिया रच दी, जिसके सामने 'दूरदर्शन' के पुराने सीरियलों को लेकर दर्शकों में कोई रूचि नहीं रही! लेकिन, कोरोना के कारण हुए लॉक डाउन ने इस भ्रम खंडित कर दिया। 'दूरदर्शन' ने पुराने सीरियलों का पुनर्प्रसारण करके देश के करोड़ों दर्शकों को फिर जोड़ लिया। रामायण, महाभारत, शक्तिमान, चाणक्य और श्रीमान-श्रीमती जैसे सीरियल देखने के लिए दर्शक टूट पड़े! ऐसे ही कुछ चुनिंदा सीरियलों पर एक नजर!
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   जंगल, जंगल बात चली है पता चला है ऐसे ... चड्ढी पहन के फूल खिला है फूल खिला है! ये वो लाइन हैं जिन्हें गुलजार ने 'जंगल बुक' सीरियल के लिए लिखी थी! ये लाइनें और ये सीरियल आज भी उस दौर के दर्शकों के दिलों में बसा है! बच्चों से लेकर बड़ों तक को बेसब्री से इंतज़ार रहता था। यही क्यों 80 और 90 के दशक में दूरदर्शन पर प्रसारित ऐसे कई सीरियल हैं, जो बहुत ज्यादा पसंद किए गए। 'रामायण, महाभारत, हम लोग और 'बुनियाद' तो लोकप्रियता में मील का पत्थर थे ही, इनके अलावा भी ऐसे कई सीरियल हैं, जो निर्माण के मामले में भले ही आज से हल्के दिखाई देते हों, पर अपने कथानक कारण दर्शकों की पहली पसंद थे।    
   'जंगल जंगल पता चला है, चड्ढी पहन के फूल खिला है' गुलज़ार लिखी ये लाइन्स हर किसी को याद होंगी। इस गाने को संगीतबद्ध किया था विशाल भारद्वाज ने। इस सीरियल पत्र मोगली हर घर का चहेता था। रात में 9 बजे दूरदर्शन पर ये एनिमेटेड इंग्लिश सीरीज़ आती थी जिसे हिंदी में रूपांतरित किया गया था। कहा जाता था कि कई गाँवों में तब बिजली नहीं होती थी, तो लोग बैटरी से टीवी को जोड़कर ये शो देखते थे। इस सीरीज के 52 एपिसोड बने थे। ये दरअसल एक जापानी शो था, जिसे हिंदी में डब किया गया था। जापान में 1989 में दिखाए गए इस शो को भारत में 1993 में प्रसारित किया गया था। इसकी कहानी को रुडयार्ड किप्लिंग ने लिखा था। 2016 में इसी कहानी पर एक फिल्म भी बनी थी।
  आरके नारायण की कहानियों पर आधारित 'मालगुड़ी डेज़' भी बच्चों का ही सीरियल था, जिसकी शुरुआत 1987 में हुई थी। इसे भी लोगों ने काफी पसंद किया था। इस सीरियल में स्वामी एंड फ्रेंड्स तथा वेंडर ऑफ स्वीट्स जैसी लघु कथाएं व उपन्यास शामिल थे। इसे हिन्दी और अंग्रेज़ी में बनाया गया था। 'दूरदर्शन' पर मालगुडी डेज़ के 39 एपिसोड प्रसारित हुए थे और इसे 'मालगुडी डेज़ रिटर्न' नाम से पुनर्प्रसारित भी किया गया था।  
    भारतीय टेलीविजन इतिहास में 'हम लोग' पहला सीरियल था, जो 7 जुलाई 1984 को दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ। दर्शकों को यह शो इतना पसंद आया था कि इसके चरित्र विख्यात हो गए! इस सीरियल की कहानी लोगों की रोज़मर्रा की बातचीत का हिस्सा बन गई थी। इस सीरियल ने देश के माध्यम वर्ग की ज़िंदगी को बहुत नजदीक से दर्शाया था। इसकी लोकप्रियता का पैमाना कुछ वैसा ही था, जैसा बाद में 'रामायण' और 'महाभारत' का रहा!
  'रामायण' को भारतीय टेलीविजन के सबसे सफल सीरियलों में से एक माना जाता है। रामानंद सागर के इस सीरियल का असर ऐसा था दर्शकों की धार्मिक भावनाएं उभरकर सामने आ गईं! जबकि, रामानंद सागर पर इसके असर का चरम ये था, कि उन्होंने उसके बाद फ़िल्में बनाना ही छोड़ दिया था। दूरदर्शन पर ये सीरियल जब पहली बार प्रसारित किया गया गाँव व शहरों में कर्फ्यू जैसा माहौल हो जाता था। जिनके घरों में टीवी नहीं था, वे दूसरों के घर जाकर 'रामायण' देखते थे।
  बीआर चोपड़ा ने भी 'महाभारत' बनाकर छोटे परदे पर कुछ ऐसा ही जादू किया था। ये सीरियल 2 अक्टूबर 1988 को पहली बार प्रसारित हुआ था। इस सीरियल की शुरुआत सबसे खास हिस्सा होता था जब हरीश भिमानी की आवाज गूंजती थी 'मैं समय हूं!' ब्रिटेन में इस धारावाहिक का प्रसारण बीबीसी ने किया था, जिसकी इसकी दर्शक संख्या 50 लाख के आंकड़े को भी पार कर गई थी।
   दूरदर्शन पर 1994 में प्रसारित होने वाले 'अलीफ लैला' के दो सीज़न में 260 एपिसोड प्रसारित हुए! जादू, जिन्न, बोलते पत्थर, एक मिनट में गायब हो जाना, राजा व राजकुमारी की कहानी को मिलाकर बने इस सीरियल को लोग आज भी याद करते हैं। '1001 नाइट्स' पर आधारित इस धारावाहिक में मिस्र, यूनान, फ़ारस, ईरान और अरब देशों की बहुत सी रोमांचक कहानियां थीं जिनके हीरो 'सिन्दबाद', 'अलीबाबा और चालीस चोर', 'अलादीन' हुआ करते थे।
  रामानंद सागर ने 'रामायण' से पहले 'विक्रम और बेताल' बनाया था। इस धारावाहिक के सिर्फ 26 एपिसोड ही प्रसारित हुए थे। ये 1985 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था। ये महाकवि सोमदेव की लिखी 'बेताल पच्चीसी' पर आधारित था। राजा विक्रम के किरदार अरुण गोविल ने निभाया था, उनके कंधे पर बेताल टंगा रहता था जो कहानी सुनाता और कहता था कि मुझसे सवाल मत करना वरना मैं भाग जाऊंगा।
  भारत के बच्चों को अपना पहला सुपर हीरो 'शक्तिमान' 27 सितम्बर 1997 को मिला था। इससे पहले के सारे सुपर हीरो सिर्फ कॉमिक्स बुक्स तक ही सीमित थे! लेकिन 'शक्तिमान' का अपना अलग ही क्रेज़ था। 400 एपिसोड वाला दूरदर्शन का ये शो करीब 10 साल तक चला! इस शो से शुरू हुए दो जुमले 'सॉरी शक्तिमान' और 'गंगाधर ही शक्तिमान' है आज भी प्रचलित हैं।
 'दूरदर्शन' पर 'चंद्रकांता' का प्रसारण 4 मार्च 1994 को शुरू हुआ था। देवकीनंदन खत्री के फंतासी उपन्यास पर बने इस सीरियल को लोगों ने पसंद किया। इस सीरियल के किरदार क्रूर सिंह को लोगों ने काफी सराहा। क्रूर सिंह के अलावा जादुई अय्यार, पंडित जगन्नाथ, ऐसे चरित्र थे जो आज भी लोगों को याद हैं। सीरियल देखने के लिए बड़ी बेसब्री से रविवार की सुबह का इंतज़ार किया जाता था।
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Thursday, 26 March 2020

निम्मी जिसे सबसे पहले राज कपूर परदे पर लाए!

स्मृति शेष : निम्मी 


- एकता शर्मा 
   पने जीवनकाल में राज कपूर ने कई खूबसूरत चेहरों को परदे पर आने का मौका दिया! लेकिन, जिस पहले खूबसूरत नए चेहरे को उन्होंने अपनी फिल्म के लिए चुना, वो निम्मी उर्फ़ नवाब बानो थीं। निम्मी ने 16 साल तक फिल्मों में काम किया। वे ब्लैक एंड व्हाइट के दौर में दर्शकों में काफी लोकप्रिय रहीं। बुधवार को इस गुजरे ज़माने की एक्ट्रेस का निधन हो गया! वे 88 साल की थीं। निम्मी कुछ समय से बीमार चल रही थीं। उनके निधन के साथ ही बॉलीवुड के एक युग का अंत हो गया! साल 1949 से लेकर 1965 तक वे फिल्मों में सक्रिय रहीं। उन्हें अपने दौर की बेहतरीन एक्ट्रेस के तौर पर शुमार किया जाता था। निम्मी ने अपने फिल्मी करियर में कई सुपरहिट फिल्म दी। उनकी बेहतरीन फिल्मों में सजा, आन, उड़न खटोला, भाई भाई, कुंदन, मेरे महबूब, पूजा के फूल, आकाशदीप, लव एंड गॉड शामिल हैं। उन्हें हॉलीवुड से भी चार फिल्मों के ऑफर आए थे, लेकिन उन्होंने इन्हें ठुकरा दिया था। वजह ये थी कि वे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ही करियर बनाना चाहती थी। 
   उनके राजकपूर के सामने आने और उन्हें अपनी फिल्म की अभिनेत्री चुने जाने का किस्सा भी बेहद दिलचस्प है। एबटाबाद में पैदा हुई निम्मी जब 9 साल की थीं, तब उनकी मां का निधन हो गया था। उनकी मां वहीदन अच्छी गायिका और फिल्म अभिनेत्री थीं। उन्होंने उस समय निर्देशक महबूब खान के साथ कुछ फिल्में भी की थीं। निम्मी के पिता सेना कॉन्ट्रेक्टर के तौर पर काम करते थे। वे अपनी दादी के साथ पली और बढ़ीं। विभाजन के बाद ये परिवार भारत आ गया था। निम्मी ने अपनी मां का रिफरेंस देकर निर्माता-निर्देशक महबूब खान से मुलाकात की! वे उन दिनों 'अंदाज' बनाने की तैयारी कर रहे थे। 
  उन्होंने निम्मी को सेंट्रल स्टूडियो में बुलाया था। वे वहाँ शूटिंग देखने पहुंची और नरगिस की माताजी के पास बैठ गईं। राज कपूर का निम्मी को देखने किस्मत बदल दी। वहाँ 'अंदाज' की शूटिंग हो रही थी। इसी सेट पर निम्मी की मुलाकात राज कपूर से हुई, जो उन दिनों 'बरसात' के लिए नया चेहरा तलाश रहे थे। एक्ट्रेस के लिए नरगिस को साइन कर चुके थे। निम्मी की खूबसूरती से राज कपूर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे फिल्म में सेकंड लीड के रूप में काम करने का प्रस्ताव उनके सामने रखा! इसे निम्मी ने स्वीकार कर लिया। 1949 में प्रदर्शित 'बरसात' की सफलता के बाद निम्मी की इंडस्ट्री में पहचान बन गईं। 
  उनका नाम नवाब बानो से निम्मी रखे जाने के पीछे भी राज कपूर ही थे। निम्मी ने जब अपनी फिल्म का पहला शॉट दिया और उसमें वह पास हो गई, तो राज कपूर ने सेट पर मिठाई बंटवाई। निम्मी को समझ नहीं आया। जब उन्होंने असिस्टेंट से पूछा तो बताया गया कि आप इस स्क्रीन टेस्ट में पास हो गई हैं।उसके बाद ही राज कपूर आए और उन्होंने नवाब बानो को 'निम्मी' नाम दिया। 'बरसात' के पहले आई राज कपूर की फिल्म 'आग' में हीरोइन का नाम निम्मी ही था। 
  निम्मी की मौसी भी फिल्मों में ज्योति के नाम से काम किया करती थीं। उनकी शादी मशहूर संगीतकार, गायक व अभिनेता जीएम दुर्रानी से हुई थी। निम्मी की शादी मशहूर लेखक एस अली रजा से हुई और ये शादी करवाने में मशहूर अभिनेता मुकरी का बड़ा हाथ रहा। निम्मी के लेखक पति का 2007 में निधन हो गया था। उनकी कोई संतान नहीं थी और वे अपनी भांजी परवीन के साथ रहती थीं। 50 और 60 के दशक की बॉलीवुड अभिनेत्र‍ियों की बात करें, तो निम्मी का नाम सबसे ऊपर आता है। उनकी खूबसूरती का जादू सिर चढ़कर बोलता था। उन्होंने करीब एक दर्जन फिल्मों में काम किया था। 
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बॉलीवुड पर कोरोना का काला साया!

- एकता शर्मा

 कोरोना वायरस से पूरी दुनिया सहमी हुई है। इस वायरस के भय से कई फिल्म निर्माताओं ने फिल्म की शूटिंग बंद कर दी, तो कई ने फिल्मों की रिलीज डेट आगे बढ़ा दी। बॉलीवुड कलाकार सलमान खान, अमिताभ बच्चन, प्रियंका चोपड़ा अपने फैंस को कोरोना से बचकर रहने की अपील कर रहे हैं। फिल्मों और सीरियलों की शूटिंग रोक दी गई! कोरोना से दुनिया जैसे थम-सी गई है। फिल्मों की शूटिंग रोक दी गई और फिल्म महोत्सवों को टाल दिया गया है। कोरोना वायरस के कारण पैदा हुई घबराहट से जूझते हुए इरफान खान की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ ने देश में अपनी रिलीज के पहले दिन 4.03 करोड़ रुपए की कमाई की। तिलोतमा शोम की फिल्म ‘सर’ को भी टाल दिया गया। हॉलीवुड फिल्म ‘ए क्वाइट प्लेस 2’ के साथ-साथ ‘मुलान’ की रिलीज भी देरी से होगी। कई राज्यों में सिनेमाघरों को बंद कर दिया गया है। रैपर जे कोल के ‘ड्रीमविले फेस्टीवल’, मैक्सिको के ग्वादलजारा अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एफआईसीजी) के 35वें संस्करण, लॉस एंजिलिस फैशन वीक को टाल दिया गया है।  
    कोरोना वायरस के डर से मनोरंजन की दुनिया भी अछूती नहीं रही। दुनियाभर में तेजी से फैल रहे संक्रमण को देखते हुए कई सितारों ने अपनी फिल्मों की शूटिंग को री-शेड्यूल कराने के अलावा, कई शहरों की यात्राओं और फिल्मों के प्रमोशन को भी रद्द कर दिया है। कोरोना वायरस से फिल्म इंडस्ट्री को 500 करोड़ डॉलर के घाटे का सामना करना पड़ रहा है। इससे सिनेमा हॉल और लाइव शो पर भी प्रभाव पड़ रहा है। फिल्मों की रिलीज की बात करें तो टाइगर श्रॉफ और श्रद्धा कपूर की 'बागी-3' 6 मार्च को रिलीज हुई, लेकिन ये भी कोरोना से प्रभावित हो गई। इरफान खान की 'अंग्रेजी मीडियम' 13 मार्च को रिलीज हुई, लेकिन इस पर कोरोना ने असर दिखा दिया। जानकारी के मुताबिक इस फिल्म को कुछ दिन बाद फिर से रिलीज किया जाएगा। अक्षय कुमार की 'सूर्यवंशी' (24 मार्च), परिणीति चोपड़ा और अर्जुन कपूर की 'संदीप और पिंकी फरार' (20 मार्च) और रणवीर सिंह की '83' (10 अप्रैल) को रिलीज होने वाली थी, जिसे टाल दिया गया है। अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की 'गुलाबो सिताबो', वरुण धवन-सारा अली खान की 'कुली नं. 1', सलमान खान की 'राधे : योर मोस्ट वांटेड भाई', अक्षय कुमार की 'लक्ष्मी बॉम्ब', 'बंटी और बबली-2' और कंगना रनौत की 'थलाइवी' आने वाली है। साथ ही 'हाथी मेरे साथी', 'गुंजन सक्सेना', 'रूही आफ्जा', 'लूडो', और 'चेहरे' भी कतार में हैं। ऐसी स्थिति में जिन फिल्मों की रिलीज टलेगी, क्या उन्हें बाद में सही समय मिलेगा और क्या साथ में रिलीज होने वाली फिल्मों से उनके बिजनेस पर असर नहीं पड़ेगा!
   कोरोना सभी के काम को प्रभावित कर रहा है। फिल्म और टीवी इंडस्ट्री ने 31 मार्च तक शूटिंग बंद करने का फैसला लिया गया है। इस समय देश और देश के बाहर फिल्म और टीवी के लिए शूटिंग चल रही है। टीवी और वेबसीरीज के चेयरमैन जेडी मजेठीया ने कहा की देश-दुनिया, समाज, फिल्म इंडस्ट्री और वर्कर के हित में फिल्म इंडस्ट्री में काम कर रही सभी संस्थाओं ने मिलकर यह फैसला लिया है कि फिलहाल 31 मार्च तक फिल्म, टीवी, वेब सीरीज और अन्य सभी तरह की शूटिंग पूरे भारत मे बंद कर दी जाए।
  इंडियन फिल्म टीवी डायरेक्टर एसोशिएसन के चेयरमैन अशोक पंडित ने कहा कि दुनियाभर में कोरोना वायरस की दहशत है। हमने फिल्म इंडस्ट्री में काम कर रहीं सभी संस्थाओं के साथ मीटिंग में लंबी चर्चा की और यह निर्णय लिया कि 31 मार्च तक किसी भी प्लेटफॉर्म की शूटिंग नहीं होगी। फिर चाहे वह फिल्म हो, टेलीविजन हो या फिर डिजटल प्लेटफॉर्म की शूटिंग। इस फैसले में सभी फिल्म इंडस्ट्री सहमत है, चाहे वह साउथ फिल्म और टीवी इंडस्ट्री हो या कोई और रीजनल सिनेमा से जुड़ी इंडस्ट्री।
  फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लाइज के जनरल सेक्रेटरी अशोक दुबे के मुताबिक मैं 25 लाख वर्कर और टेक्निशन को रिप्रजेंट करता हूं, जो डेली वेजेस पर काम करते हैं। रोज कमाते हैं और रोज खाते हैं। लेकिन, जान से बढ़कर कुछ भी नहीं है। प्रड्यूसर्स बॉडी ने जो भी निर्णय लिया है, हम उनके साथ हैं और 31 मार्च को जो भी निर्णय लिया जाएगा, हम उससे भी सहमत होंगे। हमने 5 मार्च को ही सर्क्युलेशन निकाल दिया था कि सेट पर शूटिंग के दौरान साफ-सफाई और सैनिटेशन के साथ शूटिंग करें। हम बीच-बीच मे सेट पर जाकर चेक भी कर रहे हैं कि शूटिंग की जगह पर बराबर नियमों का पालन हो रहा है या नहीं।'
  ज़ोया अख्तर और रीमा कागती की जानी-मानी एमेज़ॉन प्राइम की वेब सिरीज़ 'मेड इन हेवेन' बेहद लोकप्रिय हुई थी और अब बहुत जल्द इसके दूसरे सीज़न यानी 'मेड इन हेवन-2' की शूटिंग यूरोप में होने वाली थी जिसे अब कैंसिल कर दिया गया है। इस फ़िल्म में भी शोभिता धुलिपाला मुख्य किरदार निभा रही है। ये फ़िल्म रॉनी स्क्रूवाला प्रोड्यूस कर रहें हैं। इसकी शूटिंग केरल में होने वाली थी जो फ़िलहाल रोक दी गई है।
थिएटर को बड़ा नुक़सान  
  फ़िल्म व्यापार विश्लेषक अमोद मेहरा ने कहा कि पहले कोरोना वायरस का बॉलीवुड पर इतना असर नहीं था। लेकिन, अब इसका बहुत बड़ा नुक़सान दिखने लगा है। सरकार ने आदेश दिए हैं कि दिल्ली, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, केरल, जम्मू और कश्मीर और मुंबई के सभी सिनेमाघर बंद रहेंगे। यह सुनकर कहा जा सकता है कि आगे स्थिति बहुत ख़राब होने वाली है। कोई फ़िल्म रिलीज़ नहीं होगी तो थिएटर मालिकों को भारी नुकसान तो होगा ही।
'कोरोना' पर फिल्म       
   बॉलीवुड इस महामारी पर फिल्म बनाने की भी तैयारी कर रहा है। कई फिल्मकारों ने कोरोना पर फिल्म बनाने के लिए टाइटल भी रजिस्टर कराना शुरू कर दिया। रॉस इंटरनेशनल ने 'कोरोना प्यार है' रजिस्टर्ड करवाया है। इसे लेकर प्रोड्यूसर कृषिका लुल्ला का कहना है कि इस फिल्म का सब्जेक्ट प्रेम कहानी पर आधारित होगा। यह रितिक रोशन और अमीषा पटेल की सुपरहिट फिल्म 'कहो ना प्यार है' के टाइटल से मिलता-जुलता है। कृषिका लुल्ला ने भी इस बात की पुष्टि की और बताया कि फिल्म की स्क्रिप्टिंग शुरू कर दी गई है। फिल्म का विषय एक महामारी और प्रेम कहानी के इर्द-गिर्द घूमता है। हम स्क्रिप्ट में सुधार कर रहे हैं और स्थिति के सामान्य कम होने का इंतजार कर रहे हैं। जब सब कुछ सामान्य हो जाएगा, तो हम प्रोजेक्ट को शुरू करेंगे। वहीं, इम्पा (इंडियन मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन) ने भी कहा कि उन्हें फिल्ममेकर्स और प्रोड्यूसर्स ने कोरोना वायरस प्रकोप से संबंधित फिल्म टाइटल रजिस्टर करने के लिए संपर्क किया है। एक रजिस्टर्ड फिल्म टाइटल है ‘डेडली कोरोना!’
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