Monday, 3 August 2020

परदे पर भाई-बहन का स्नेह और यादगार गीत

- एकता शर्मा



    फिल्मों में त्यौहार मनाने की अलग ही परंपरा है। ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के ज़माने से आज तक ये परंपरा निभाई जा रही है। परदे पर सबसे ज्यादा मनाया जाने वाला त्यौहार रहा है होली और सबसे कम दिवाली। इस बीच कई फिल्मों में करवा चौथ भी दर्शाया गया। लेकिन, फिल्मों में धीरे-धीरे राखी का त्यौहार फ़िल्मी कहानियों से गायब होता जा रहा है। जिस भी फिल्म में भाई-बहन का स्नेह दिखाया गया, उसमें राखी से जुड़ा कोई गाना भी रहा! करीब दो से अढ़ाई दशकों में बॉलीवुड ने पाश्चात्य सभ्यता की आगोश में भारतीय परंपराओं, तीज त्योहारों, पर्वों को मानो पर्दे से ओझल कर दिया है।
    परदे पर पर राखी का जिक्र सबसे पहले 1949 में प्रकाश पिक्चर्स की फिल्म 'राखी' से हुआ। शांति कुमार की इस फिल्म में कामिनी कौशल, करन दीवान, उल्हास, गोप आदि की भूमिकाएं थीं। इसके बाद 1959 में एलवी प्रसाद की फिल्म 'छोटी बहन' आई, जिसमें भाई-बहन के स्नेह के रिश्ते को परदे पर बड़ी शिद्दत से दिखाया गया था। फिल्म में बलराज साहनी ने भाई और नंदा ने बहन की भूमिका निभायी थी। लता मंगेशकर का गाया गीत 'भईया मेरे राखी के बंधन को निभाना' आज भी सुना जाता है।
    ए भीमसिंह ने 1962 में भी इस विषय को भुनाया और 'राखी' नाम से फिल्म बनाई। अशोक कुमार और वहीदा रहमान ने भाई-बहन की भूमिका निभाई थी।1976 में 'रक्षा बंधन' नाम से निर्माता केजी भट्ट ने शांतिलाल सोनी के निर्देशन में एक धार्मिक फिल्म बनाई जिसमें सचिन, सारिका तथा सत्यजीत ने मुख्य किरदार अदा किए थे। 1968 में भाई-बहन में सुनील दत्त और नूतन मुख्य भूमिकाओं में थे। इनके अलावा 'राखी-राखी' (1969), 'राखी और हथकड़ी' (1972), 'राखी और राइफल' (1976) तथा 'राखी की सौगंध' (1979) जैसी फ़िल्में बनी। फिल्मों के राखी गीतों ने भी कामयाबी के नए कीर्तिमान स्थापित किए। आज भी रक्षाबंधन पर्व आसपास गीत गुनगुनाए जाते हैं।
    1971 में आई देवआनंद की फिल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' में देव आनंद और जीनत अमान ने भाई-बहन के किरदार निभाए थे। फिल्म का गीत 'फूलों का तारों का सबका कहना है,. एक हजारों में मेरी बहना है!' आज भी सुना जाता है। फिल्म ;रेशम की डोरी' में सुमन कल्याणपुर का गाया 'बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा है' आज भी खूब बजता है। मनोज कुमार अभिनीत फिल्म 'बेईमान' का 'ये राखी बंधन है ऐसा' और राजेश खन्ना अभिनीत 'सच्चा झूठा' का 'मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनियां' के सुनाई देते ही आँखों के आगे वो दृश्य उभर आता है। 'चंबल की कसम' का चंदा रे मेरे भइया से कहना, 'प्यारी बहना' का राखी के दिन, 'हम साथ साथ हैं' का 'छोटे छोटे भाईयों की बड़ी बहना, 'तिरंगा' का इसे समझो न रेशम का तार, 'रिश्ता कागज का' फिल्म का 'ये राखी की लाज तेरा भइया निभाएगा' गीत भी काफी लोकप्रिय हुए।
   'अनपढ़' और 'काजल' में भाई-बहन के प्रेम पर दो खूबसूरत गीत थे। इनमें..'अनपढ़' का माला सिन्हा पर फिल्माया गीत 'रंग बिरंगी राखी लेकर आई बहना' और 'काजल' में मीना कुमारी पर फिल्माया गीत 'मेरे भइया मेरे चंदा मेरे अनमोल रतन' फिल्माया गया था। विमल राय की फिल्म 'बंदिनी' में भी एक बेहद मार्मिक गीत था। जिसमें बहन अपने पिता से भाई को सावन में भेजने का अनुरोध करती है। 'अब के बरस भेज भइया को बाबुल सावन में दीजो बुलाय रे' बहन की व्यथा को बताने वाले इस गीत को भी आशा भौंसले ने गाया था। मेरी बहना ओ मेरी बहना (ढोंगी), चंदा रे मेरे भैया से कहना,बहना याद करे (चंबल की कसम), ये रक्षाबंधन सबसे बड़ा त्योहार है (हम बच्चे हिंदुस्तान के), ये राखी-राखी प्यार मोहब्बत की लाई हूं मेरे भैया (अनोखा इंसान)। लेकिन, अब ये गीत ही बचे हैं, जो फिल्मों में राखी के त्यौहार की याद दिलाते हैं।
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'मेरा जलवा जिसने देखा वो मेरा हो गया'

स्मृति शेष : कुमकुम

-एकता शर्मा
  जो दर्शक पुरानी फिल्मों के शौकीन हैं, उनके लिए अभिनेत्री कुमकुम जाना पहचाना नाम है! लेकिन, नई पीढ़ी के दर्शक उनसे अनजान थे। गुजरे ज़माने की इस जानी मानी अभिनेत्री कुमकुम ने 86 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। वे लम्बे समय से बीमार थीं। अपने दो दशक लम्बे फिल्म करियर में उन्होंने 115 फिल्मों में काम किया। उन्हें ब्लैक एंड व्हाइट दौर की डांसिंग स्टार कहा जाता था। उन पर पिक्चराइज़ गीत ओ मोरा नादान बालमा न जाने दिल की बात, कभी आर कभी पार लागा तीरे नजर और 'मेरा जलवा जिसने देखा वो मेरा हो गया' जब भी सुनाई देते हैं, आँखों के आगे कुमकुम का चेहरा आ जाता है। आज लिंकिंग रोड को मुंबई का सबसे पॉश इलाक़ा कहा जाता है, कभी यहाँ कुमकुम का उनके ही नाम पर बंगला था। पर, वक़्त बदला और इस बंगले की जगह ऊँची बिल्डिंग ने ले ली। 
    कुमकुम अपने ज़माने की जानी-मानी अभिनेत्री थीं। उन्होंने उस दौर के करीब सभी बड़े कलाकारों के साथ काम किया। गुरुदत्त, राजकपूर, देवानंद, दिलीप कुमार और किशोर कुमार के साथ वे कई फिल्मों में दिखाई दीं। 'कुमकुम' मूलतः बिहार की रहने वाली थीं और उनका वास्तविक नाम जेब्बुनिसा था। कहा जाता है कि उनके पिता हुसैनाबाद के नवाब थे।फिल्मों में आने के बाद उन्होंने नाम बदलकर 'कुमकुम' रखा था। एक समय ऐसा था, जब इस एक्ट्रेस की अदाकारी का जादू चलता था। यही कारण था कि इस फिल्म इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनी। उन्हें पहला ब्रेक तो गुरुदत्त ने दिया था, पर वे बरसों तक रामानंद सागर की फिल्मों की स्थाई कलाकार बनी रहीं। इंडस्ट्री में कहा जाता था कि दोनों के बीच काफी नजदीकी रिश्ता था।
    कुमकुम को गुरुदत्त ने 'आर-पार' में पहली बार ब्रेक दिया था। वे फिल्म के गीत 'कभी आर कभी पार लागा तीरे नजर' को पहले जगदीप पर फिल्माया चाहते थे। पर, जब जगदीप ने इंकार किया तो गुरुदत्त ने एक महिला अभिनेत्री को खोजा और यहीं से 'कुमकुम' का परदे पर आगमन हुआ। कुमकुम ने बाद में गुरुदत्त की फिल्म 'प्यासा' में भी काम किया। कुमकुम को 50 और 60 के दशक की प्रसिद्ध अभिनेत्रियों में थी। उन्होंने मिस्टर एक्स इन बॉम्बे, मदर इंडिया, सन ऑफ इंडिया, कोहिनूर, उजाला, नया दौर, श्रीमान फंटूश, प्यासा, आर-पार और एक सपेरा एक लुटेरा जैसी सफल फिल्मों में काम किया। 1963 में पहली भोजपुरी फिल्म 'गंगा मैया तोहे पियारी चढ़ाईबो में भी कुमकुम ने काम किया था।
   वे नावेद जाफरी और जावेद जाफरी के पिता जगदीप की भी करीबी दोस्त रही थी। कुमकुम के न रहने की पहली सूचना भी जगदीप के बेटे नावेद ने ट्वीट करके दी। उन्होंने लिखा ‘हमने एक और हीरा खो दिया। मैं उन्हें तब से जानता था जब मैं एक बच्चा था। वो एक परिवार थी। बेहद शानदार अदाकारा और बेहतरीन इंसान। कुमकुम आंटी आपकी आत्मा को शांति मिले।’ जॉनी वॉकर के बेटे नासिर ने भी उन्हें याद करते हुए ट्वीट करते हुए याद किया कि 'ये है बॉम्बे मेरी जान' गाने में वे मेरे पिता के साथ दिखाई दी थीं।
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शोले के 'सूरमा भोपाली' को कोई कैसे भूलेगा!

- एकता शर्मा

    इस साल फिल्म इंडस्ट्री से अच्छी ख़बरें नहीं मिल रही! एक तरफ कोरोना के कारण पूरी इंडस्ट्री बंद है, दूसरी तरफ दुखद ख़बरों का सिलसिला जारी है। बीते तीन महीने में पांच बड़ी फ़िल्मी हस्तियों ने दर्शकों को अलविदा कह दिया। अप्रैल महीने में इरफान खान और ऋषि कपूर, इसके बाद जून के महीने में सुशांतसिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली। इसी महीने पहले सरोज खान का निधन हो गया था और अब जाने-माने कॉमेडियन जगदीप हमसे विदा हो गए! जगदीप हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय कॉमेडियन थे। बुधवार को मुंबई में उनका निधन हो गया। वे 81 साल के थे और लम्बे समय से बीमार चल रहे थे। जगदीप उनका फ़िल्मी नाम था। उनका वास्तविक नाम तो सैयद इश्तियाक जाफरी था और उनका जन्म मध्यप्रदेश के दतिया में हुआ था। फिल्म 'हम पंछी एक डाल के' में उनके काम को लोगों ने काफी सराहा था और देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी जगदीप के अभिनय की तारीफ की थी।  
   अपने फ़िल्मी करियर में जगदीप ने कितनी फिल्मों में काम किया, इसका आंकड़ा खुद जगदीप को भी शायद नहीं पता था। उन्होंने परदे पर कई तरह के किरदार निभाए। लेकिन, उन्हें असल पहचान कॉमेडी से ही मिली। उनका सबसे ज्यादा चर्चित किरदार फिल्म 'शोले' का सूरमा भोपाली वाला रहा! फ़िल्म में उनका काम तो 10 से 12 मिनट का ही था, लेकिन अपनी अदाकारी से उन्होंने इसे जीवंत किया था। फ़िल्मी दुनिया में ऐसे गिने चुने कलाकार ही हैं, जो अपने किरदार के रूप में जनता में पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं। वो भी ऐसे कि असल जिंदगी में भी दर्शक उन्हें उसी किरदार के रूप में जानने लगते है। ऐसे ही उंगलियों पर गिने जाने वाले कलाकारों में सूरमा भोपाली यानी जगदीप भी थे। याद किया जाए 'तो 'शोले' के जिन दो कलाकारों को दर्शक आज भी उनके किरदारों के रूप में पहचानते हैं, उसमें एक थे गब्बर सिंह और दूसरे सूरमा भोपाली! जगदीप 2012 में फिल्म 'गली गली चोर है' में आखिरी बार दिखाई दिए थे। 
   जगदीप का जन्म 29 मार्च, 1939 को हुआ था। अपने 6 दशक के फिल्म करियर की शुरुआत उन्होंने 1951 में बीआर चोपड़ा की फिल्म 'अफसाना' में बाल कलाकार से की थी। 1953 में आई 'फुटपाथ' में पहली बार उन्हें 'जगदीप' नाम मिला। लेकिन, बतौर कॉमेडियन उन्होंने 'दो बीघा ज़मीन' में पहली बार काम किया। 1972 में आई फिल्म 'अपना देश' से उन्हें दर्शकों ने ठीक से पहचाना। फिर 'शोले' और 'अंदाज़ अपना-अपना' जगदीप की यादगार फ़िल्में रही। अब दिल्ली दूर नहीं, मुन्ना, आर-पार और 'हम पंछी एक डाल के' में भी वे नज़र आए। जगदीप ने क़रीब 400 फिल्मों में काम किया!
   उन्होंने रामसे ब्रदर्स की फिल्म 'पुराना मंदिर' में मच्छर के किरदार में दर्शकों का जबरदस्त मनोरंजन किया था! 'अंदाज अपना अपना' में सलमान खान के पिता बांकेलाल का किरदार आज भी दर्शक भूले नहीं हैं। फिरोज खान की फिल्म 'कुर्बानी' और अमिताभ बच्चन की 'शहंशाह' जैसी फिल्मों में भी वे  अदाकारी दिखा चुके हैं। उन्होंने एक फिल्म का निर्देशन भी किया, जिसका नाम ही 'सूरमा भोपाली' था। इस फिल्म का लीड किरदार भी उन्होंने खुद ही निभाया था। बेहतरीन डांसर और एक्टर जावेद जाफरी और टीवी प्रोड्यूसर नावेद जाफरी दोनों जगदीप के बेटे हैं।
बॉलीवुड दुखी   जगदीप ने निधन पर अजय देवगन ने ट्वीट कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्होंने लिखा 'जगदीप साहब के निधन के बारे में जानकर बहुत दुख हुआ। उन्हें स्क्रीन पर देखते हुए मैंने हमेशा एन्जॉय किया। वह ऑडियंस के लिए हमेशा खुशी लेकर आते थे। मेरी संवेदना जावेद और उनके परिवार के साथ है। जगदीप साहब की आत्मा के लिए प्रार्थना करें।' इसके अलावा डायरेक्टर हंसल मेहता ने भी जगदीप को श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने लोगों से अपील है कि वे जगदीप की फिल्म मुस्कुराहट देखें। इसमें उनके परफॉर्मेंस का कोई सानी नहीं है। फिल्म डायरेक्टर मधुर भंडारकर ने ट्वीट किया कि 'हमारा सात दशकों तक मनोरंजन करने के बाद जगदीप साहब का निधन हो गया! काफी दुखद है! मेरी संवेदनाएं जावेद, नावेद और पूरे जाफरी परिवार के साथ है। अभिनेता अनुपम खेर ने भी उन्हें याद करते हुए श्रद्धंजलि अर्पित की। 
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सितारों को नचाने वाली सरोज की आखिरी स्टेप!

स्मृति शेष : सरोज खान

- एकता शर्मा
     रोज खान नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। ये नाम जहन में आते ही एक डांसर का चेहरा सामने आ जाता है। ऐसी डांसर का जिसने कई हीरोइनों को अपने इशारों पर नचाया। जिस माधुरी दीक्षित को आज धक् ... धक् गर्ल के रूप में जाना जाता है, वो सरोज खान की ही डांसिग खोज है। 'एक-दो-तीन' डांसिंग स्टेप्स भी इसी कोरियोग्राफर की देन था। ये भी कहा जा सकता है कि माधुरी को नंबर वन तक पहुंचाने में सरोज खान की बड़ी भूमिका रही। माधुरी की प्रतिभा को सरोज ने ही पहचाना और उसे तराशकर हीरा बना दिया। श्रीदेवी का 'चांदनी' वाला गाना 'मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियाँ हैं' भी इसी कोरियोग्राफर की रचना है। वो सरोज खान अब नहीं रही, बीते रात डेढ़ बजे दिल के दौरे ने उन्हें दुनिया से विदा कर दिया। वे 71 साल की थीं। उनके साथ ही फिल्म डांसिग का एक युग ही समाप्त हो गया, जिसने परदे पर हीरोइनों को नए ज़माने के डांस से परिचित करवाया। सरोज खान को 20 जून को सांस की परेशानी के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनका कोविड टेस्ट भी हुआ, जो निगेटिव आया। धीरे-धीरे उनकी तबियत संभल रही थी और अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी, लेकिन अचानक रात में उनकी तबियत बिगड़ी और उन्हें बचाया नहीं जा सका। 

   उन्होंने माधुरी दीक्षित और श्रीदेवी जैसी नामचीन हीरोईनों को डांसिंग स्टेप्स सिखाई। लेकिन, बाद में किसी बात पर उनके श्रीदेवी से संबंध मधुर नहीं रहे। इस वजह से कई अच्छी फ़िल्में निकल गई थी। लेकिन, 'तेजाब' के माधुरी के डांस ने उन्हें लोकप्रियता दिलाई और वे दर्शकों की नजरों में चढ़ गईं! इसके बाद 'सैलाब' और 'अंजाम' ने उनको जो पहचान दी, जिसने कई बड़े कोरियोग्राफर्स को पीछे छोड़ दिया। अपने करीब 40 साल के डांसिंग करियर में सरोज खान ने कई सितारों को नचाया। उन्होंने 2 हज़ार से ज्यादा फिल्मों में गानों की कोरियोग्राफी की। उन्हें तीन बार कोरियोग्राफी को लेकर नेशनल अवॉर्ड भी मिले। 'देवदास' फिल्म के गाने 'डोला-रे-डोला' जो माधुरी और ऐश्वर्या पर फिल्माया गया था, जिस पर उन्हें कोरियोग्राफी का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। इससे पहले 'तेजाब' के आइटम सांग 'एक-दो-तीन' और 'जब वी मेट' के गाने 'ये इश्क ...' के लिए भी उन्हें नेशनल अवॉर्ड मिला। सरोज खान की अंतिम फिल्म करण जौहर की 'कलंक' थी, जिसमें सरोज खान ने माधुरी के लिए 'तबाह हो गए' गाना कोरियोग्राफ किया था। 
   सरोज खान का वास्तविक नाम निर्मला नागपाल था। उनके पिता किशनचंद सद्दू सिंह और माँ नोनी सिंह देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से भारत आ गए थे। सरोज को बचपन से ही एक्टिंग और डांस का शौक था। तीन साल की उम्र में सरोज ने बाल कलाकार के रूप में फिल्मों में काम शुरू किया। पहली फिल्म 'नजराना' थी, जिसमें सरोज ने श्यामा नाम की बच्ची की भूमिका की थी। इसके बाद सरोज खान ने डांस की दुनिया में कदम रखा और बैकग्राउंड डांस करना शुरू किया। उन्होंने बी.सोहनलाल से कोरियोग्राफर की शिक्षा ली। 1974 में उन्हें पहली बार 'गीता मेरा नाम' में अकेले काम मिला था। लेकिन, बहुत मेहनत के बाद भी उनके काम को लम्बे समय तक पहचाना नहीं गया। मिस्टर इंडिया, नगीना, चांदनी, तेजाब, थानेदार, बेटा, सैलाब और 'जब वी मेट' उनकी वे फ़िल्में रही जिसने उन्हें पहचान दी। बाद में उन्होंने अपने करियर में कई नए कोरियोग्राफर को जन्म दिया और एक पीढ़ी शुरू की।
   उनका वास्तविक नाम निर्मला नागपाल है, जिसके सरोज खान बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। उन्होंने अपने डांस गुरु बी. सोहनलाल से 13 साल की उम्र में शादी की। बताते हैं कि सरोज उन दिनों स्कूल में पढ़ती थी! तभी एक दिन सोहनलाल ने उनके गले में काला धागा बांध दिया और दोनों की शादी हो गई। दोनों की उम्र में 30 साल का अंतर था। सरोज खान से शादी के वक्त सोहनलाल ने अपनी पहली शादी की बात छुपाई थी। 1963 में सरोज खान के बेटे राजू खान के जन्म के समय उन्हें सोहनलाल की पहली शादी के बारे में जानकारी मिली। किंतु, सोहनलाल ने सरोज के बच्चों को अपना नाम देने से मना कर दिया। इसके बाद दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ती गई! सरोज की एक बेटी कुकु भी हैं। सरोज ने दोनों बच्चों की परवरिश अकेले ही की। एक बार सरोज खान ने बताया था कि इस्लाम धर्म मैंने अपनी मर्जी अपनाया था। मुझ पर कोई दबाव नहीं था। इसलिए कि मुझे इस्लाम धर्म से प्रेरणा मिली। 
सितारे दुखी  
   फिल्म इंडस्ट्री के कोरियोग्राफर और कलाकार सरोज खान को याद करके दुखी हैं। मनीषा कोइराला उनके निधन से सदमे में हैं। उन्होंने ट्वीट किया 'सुबह उठते ही ये दुखद समाचार मिला। मैं बचपन से ही क्लासिकल डांस सीखी हूं। सरोज खान ने ही मुझे डांस सिखाया था जब मैंने फिल्मी करियर शुरू किया था। वो एक सख्त कोरियोग्राफर थीं और महान भीं! एक्टर अक्षय कुमार भी सरोज खान के निधन से दुखी हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी संवेदना व्यक्त की है। वो लिखते हैं, मुझे दुखद समाचार मिला कि लेजेंड्री कोरियोग्राफर सरोज खान हमारे बीच नहीं रही! उन्होंने डांस को इतना आसान बना दिया था कि मानो हर कोई डांस कर सकता है। इंडस्ट्री के लिए ये बड़ा नुकसान है। उनकी आत्मा को शांति मिले। 
   अनुपम खेर ने भी सरोज खान की याद में इमोशनल नोट लिखा। उन्होंने उनकी जमकर तारीफ की और लिखा 'डांस की मल्लिका सरोज खानजी अलविदा! आपने कलाकारों को ही नहीं बल्कि पूरे हिन्दुस्तान को बहुत ख़ूबसूरती से सिखाया कि इंसान शरीर से नहीं, दिल और आत्मा से नाचता है! आपके जाने से नृत्य की एक लय डगमगा जाएगी! मैं पर्सनली न सिर्फ़ आपको बल्कि आपकी मीठी डांट को भी बहुत मिस करूँगा। निमृत कौर ने भी सरोज खान को याद किया। वो अपनी जिंदगी में उनका बड़ा योगदान मानती हैं। उन्होंने ट्वीट किया 'सरोजजी ने मुझे कोरियोग्राफर शब्द से रूबरू करवाया था। उन्होंने बेहतरीन काम से हर उस सितारे को भी अमर कर दिया और हर उस गाने को भी जिसमें उन्होंने काम किया। उनके परिवार को भगवान शक्ति दे। उनके जैसा अब कोई नहीं होगा।
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Sunday, 21 June 2020

समाज की सच्चाई की पोल खोलने में 'पाताल लोक' बेजोड़!

- एकता शर्मा
 ब फिल्मों की तरह वेब सीरीज के कथानकों पर भी उंगली उठने लगी है। जबकि, विवाद खड़ा करने वाले जानते हैं कि वेब सीरीज पर आपत्ति उठाने से कुछ होगा नहीं! क्योंकि, इन पर कोई सेंसर लागू नहीं होता! यही कारण है कि वेब सीरीज में खुलकर गालियां बकी जाती है और ऐसे सीन भी होते  हैं,जो सामान्यतः फिल्मों में नहीं दिख सकते! पहले नेटफ्लिक्स की 'सेक्रेट गेम्स' जैसी लोकप्रिय सीरीज में खामियाँ खोजी गईं, अब यही अमेजन-प्राइम की 'पाताल लोक' के साथ हुआ। लेकिन, 'पाताल लोक' की कहानी दिलचस्प है, जो पुलिस, राजनीति और पत्रकारिता जैसे पेशों की सच्चाई की पोल खोलती है!     
     वेब सीरीज 'पाताल लोक' जितनी लोकप्रिय हुई, उसके साथ उतने ही विवाद भी जुड़े। इस वेब सीरीज ने कई सीरीज को पीछे छोड़ दिया है। लेकिन, विवादों के मामले में भी ये सबसे आगे रही। इस सीरीज पर मानहानि, जातिगत और धार्मिक भावनाओं को भड़काने के भी आरोप लगे! सबके टारगेट पर रही फिल्म अभिनेत्री और निर्माता अनुष्का शर्मा। 'पाताल लोक' उनकी ही निर्माण कंपनी 'क्लीन स्लेट' ने बनाया है। लेकिन, प्रतिबंध लगाने जैसी मांगें नई नहीं है। कई फ़िल्में ऐसे विवादों का शिकार हो चुकी हैं। लेकिन, ये विवाद खड़ा होने से पहले 'पाताल लोक' अपना काम कर चुकी है। इसे हाल के वर्षों की श्रेष्ठ वेब सीरीज माना जाने लगा है। समीक्षकों ने इसे नेटफ्लिक्स की बहुचर्चित 'सेक्रड गेम्स' सीरीज से भी बेहतर माना। इसकी तुलना विश्वविख्यात 'मनी हाइस्ट' वेब सीरीज से की जाने लगी है। अनुराग कश्यप ने 'पाताल लोक' को के बारे में कहा कि ये देश में निर्मित अब तक की श्रेष्ठ क्राइम थ्रिलर है। भारत की सही शिनाख़्त कर पाने की वजह से ही ऐसा हुआ है।
   जातिगत या धार्मिक आधार पर विरोध करने वालों या इसे हिंदू बनाम मुस्लिम का मुद्दा बनाने की कोशिश करने वालों की आवाज कितनी देर टिकी रह पाती है, ये अभी देखना है! क्योंकि, समकालीन समय के अनुभव बताते हैं कि बात 'सेक्रड गेम्स' की हो या 'पाताल लोक' की, सोशल मीडिया दौर में विवाद इतना आसानी से पीछा नहीं छोड़ते! अनुष्का शर्मा का बतौर निर्माता पहली बार ऐसी स्थितियों से सामना हुआ है। उनके लिए ये एक बड़ा इम्तिहान है। जहां वे स्वर्ग, धरती और पाताल तीनों लोकों में निर्भीक और आत्मविश्वास से भरी नजर आती हैं।
    'पाताल लोक' हाल के दिनों में जबर्दस्त हिट होने वाली वेब सीरीज़ है। इस सीरीज को मिल रहे व्यूज से अंदाजा लग रहा है कि इसे बड़े पैमाने पर देखा जा रहा है। माउथ पब्लिसिटी ने इसे खासी लोकप्रियता दी। इसे युवा दर्शकों ने बहुत ज्यादा पसंद किया। लेकिन, कुछ नेताओं, सामाजिक संगठनों और धार्मिक संगठनों ने इस वेब सीरीज को बंद करने या उसमे बदलाव करने की मांग और शिकायतें की। किसी फिल्म को लेकर यदि ऐसी मांग या शिकायत होती, तो कुछ होने के आसार। लेकिन, ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ऐसी बातों को तवज्जो नहीं दी जाती। हिंदी दर्शकों के बेल्ट में ये वेब सीरीज इसलिए भी पसंद की जा रही है, कि इसमें भाषा, जाति और धर्म को लेकर जमकर धज्जियाँ उधेड़ी गई। नौकरशाही, पुलिस, मीडिया, राजनीति और इन सबसे बंधे एक बड़े पॉलिटिकल और सोशल सिस्टम को भी उघाड़ा गया है। अंधेरों-उजालों, नाइंसाफियों और यातनाओं और आत्मसंघर्षों की छानबीन करती ये सीरीज अपने कलाकारों के अभिनय और अनुष्का शर्मा की हिम्मत के लिए भी याद की जा रही है। ये वेब सीरीज पुलिस सिस्टम अंदर की विसंगतियों और विद्रूपताओं को उजागर करते हुए सामाजिक संकटों की शिनाख्त करती है। इसमें दलित चेतना के उभार से जुड़ी चुनौतियों की तलाश भी की गई है।
     वेब सीरीज पर आरोप लगाया गया कि हिंदुओं, सिखों और गोरखाओं की भावनाओ का अपमान किया गया और इस तरह सांप्रदायिक, जातीय और नस्ली सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिश की गई! उत्तरप्रदेश के एक विधायक का आरोप है कि जिस फोटो को कथित रूप से दर्शाकर सीरीज में इस्तेमाल किया गया, वो उनके जैसा दिखता है। इससे उनकी मानहानि हुई है और जिस गुर्जर जाति से वे आते हैं, उसका भी अपमान हुआ! हिंदू धर्म के कथित अपमान पर भी उन्होंने अनुष्का शर्मा के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। दिल्ली के एक सिख संगठन के पदाधिकारी ने सिख पात्र को खराब ढंग से चित्रित करने का आरोप लगाया है। गोरखा समुदाय के एक वकील ने भी अनुष्का शर्मा के खिलाफ रिपोर्ट करते हुए सीरीज पर आरोप लगाया कि नेपाली शब्द के साथ गाली का इस्तेमाल कर समुदाय का अपमान हुआ है। सिक्किम के सांसद इंद्राहुंग सुब्बा ने भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय से शिकायत की है।
    इसकी कहानी कई ऐसे सवाल छोड़ती है, जो दर्शक को सोचने पर विवश करते हैं। समाज में सौतेले व्यवहार का मुकाबला नागरिक धैर्य से करते रहने की कठिन परीक्षा से गुजरता किरदार हर दर्शक के सामने कुछ सवाल छोड़ जाता है। नौ कड़ियों में किरदारों का समावेश इस तरह है, कि वो वो 'पाताल लोक' की दुर्दशा के कथानक को अपनी अपनी निराशाओं, पराजयों और लालसाओं की ठोस जमीन मुहैया करा देते हैं। हालांकि सीरीज अपने पहले सीजन के अंत तक पहुंचते-पहुंचते कुछ जानी पहचानी कमजोरियों का शिकार भी होती है। अपने उन चार पात्रों को सहसा भुला देती है, जिनसे ये कहानी शुरू होती है। 
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शांत हो गया बड़े परदे का अभिनेता 'सुशांत'


- एकता शर्मा

  सुशांतसिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली, ये खबर विश्वसनीय तो नहीं है, पर सच यही है। बॉलीवुड पर कोरोना काल की आई त्रासदियों की ये एक और कड़ी है। बताते हैं कि वे पिछले 6 महीने से अवसाद में थे। उनकी पूर्व मैनेजर दिशा सलील ने भी चार दिन पहले बिल्डिंग से कूदकर आत्महत्या कर ली थी।क्या सुशांत और दिशा की आत्महत्या में कोई संबंध है, ये कयास भी लगाए जा रहे हैं। जाने-माने विलेन शक्ति कपूर की इस बात में दम है कि बॉलीवुड को नजर लग गई! एक-एक करके चर्चित लोग जा रहे हैं। 
  सुशांत के अंतिम इंस्टा मैसेज में भी बहुत कुछ ऐसा है, जो सोचने को मजबूर करता है। 'आंसू की बूंदों से धुंधला अतीत हवा में घुलता जा रहा है। अंतहीन सपने मुस्कान ला रहे हैं। ... और क्षणभंगुर जीवन दोनों के बीच से गुजर रहा है # मां!
  स्टार पुत्रों की भीड़ के बीच सुशांत अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुए थे। वे उन चंद भारतीय टीवी और फ़िल्म अभिनेताओं में हैं जिन्होंने टेलीविजन से अपना करियर शुरू करके फिल्मों में भी मुकाम बनाया। सबसे पहले उन्होनें 'किस देश में है मेरा दिल' धारावाहिक में काम किया था। पर, उनको पहचान मिली एकता कपूर के धारावाहिक 'पवित्र रिश्ता' से। इसके बाद उन्हें फिल्मों के प्रस्ताव मिलना शुरु हुए। फ़िल्म 'काय पो छे' में उनके अभिनय की तारीफ़ हुई। इसके बाद वे 'शुद्ध देसी रोमांस' में वाणी कपूर और परिणीति चोपड़ा के साथ दिखे। फ़िल्म सफल रही और सुशांत का फ़िल्मी करियर परवान चढ़ गया। 
   अपनी पहली ही फिल्म से बॉलीवुड में अपनी जगह बनाने वाले सुशांतसिंह राजपूत  का भी जीवन आसान नहीं रहा है। मां बाप की इच्छा के बिना उन्होंने फिल्मों को अपना करियर चुना और इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाई। फिल्म ‘काय पे चे’ में निभाए गए अपने किरदार की प्रेरणा उन्हें अपनी बहन मीतू सिंह से मिली थी। एक समय ऐसा भी था, जब कोई बड़ी अभिनेत्री उनके साथ काम तक नहीं करना चाहती थीं! क्योंकि, वे एक साधारण परिवार से थे और उनका कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं था। फिल्म ‘शुद्ध देसी रोमांस’ इसका उदाहरण है। काफी समय बाद फिल्म के लिए परिणीति चोपड़ा को साइन किया गया था। वे अपनी लव लाइफ को लेकर भी अखबारों और टीवी की सुर्खियों में रहे हैं। 
    सुशांत फिल्म इंडस्ट्री में एक ऐसे अभिनेता हैं, जिन्होंने अपनी काबिलियत के दम पर सफलता हांसिल की। सबसे यंग टैलेंट के रूप में उनको बॉलीवुड इंडस्ट्री में देखा जाता था। वे एक ऐसे अभिनेता थे, जो कभी भी मेहनत करने से पीछे नहीं हटे। उनके अंदर अभिनय के अलावा डांस की भी काबिलियत मौजूद थी। उनका करियर उतार-चढ़ाव से होकर गुजरा! वे ऐसे अभिनेता थे, जिनका बॉलीवुड इंडस्ट्री से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था। जब वे कॉलेज की पढ़ाई कर रहे थे, उनकी दिलचस्पी डांस में बढ़ने लगी थी। फिर उन्होंने डांस सीखने का निर्णय लिया, पर उनका परिवार इससे सहमत नहीं था। परिवार की सहमति न मानकर उन्होंने हार न मानते हुए श्यामक डाबर के डांस ग्रुप को ज्वाइन कर लिया था। श्यामक उनकी मेहनत और डांस के प्रति जुनून देखकर बहुत ही प्रभावित हुए और उन्होंने 2006 के कामनवेल्थ गेम में उन्हें डांस का अवसर दिया था। इसके बाद वे मुंबई आ गए, यहां उन्होंने डांस ग्रुप के साथ भी परफॉर्मेंस किया। इस डांस ग्रुप को प्रसिद्ध कोरियोग्राफर ऐश्ले लोबो ने प्रशिक्षित किया था। सुशांत ने अपनी जिंदगी में बहुत उतार-चढ़ाव देखे! उनके अंदर शुरू से ही अदाकारी का जुनून था। इसी जुनून ने उन्हें कुछ अलग करने की प्रेरणा दी! उन्होंने थिएटर में भी काम किया और बड़ा कारण यही है, कि कठिन परिश्रम ने ही उन्हें स्टार बनाकर लोगों के सामने प्रस्तुत किया। सुशांतसिंह ने अपनई कला को और ज्यादा चमकाने के लिए मशहूर एक्शन डायरेक्टर अल्लन अमीन से मार्शल आर्ट की भी ट्रेनिंग ली थी। 
   उन्होंने 'जरा नच के दिखा-2' और 'झलक दिखला जा-4' जैसे बड़े डांसिंग शो भी किए। झलक दिखला जा-4 में इनकी परफारमेंस को मद्देनजर रखते हुए इनको मोस्ट कंसिस्टेंट परफारमेंस का टाइटल भी प्रदान किया गया था। सुशांत ने कई बड़ी फिल्में की, जो दर्शकों द्वारा पसंद भी की गई! 2016 में भारतीय क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के ऊपर आई उनकी जीवनी फिल्म में सुशांत राजपूत को धोनी का किरदार करने को मिला था। इस फिल्म ने भारतीय पर्दे पर बड़ी सफलता हांसिल की। 

सुशांत राजपूत के टीवी शो .
- 2008 और 2010 में 'किस देश में है मेरा दिल'
- 2010 में 'जरा नच के दिखा' डांस शो
- 2010 और 2011 में 'झलक दिखला जा-4'
- 2009 और 2011 एवं 2014 में 'पवित्र रिश्ता'
- 2015 में 'सीआईडी'
- 2016 में 'कुमकुम भाग्य'

सुशांत राजपूत की चर्चित फिल्में - काय पो चे
- शुद्ध देसी रोमांस
- पीके
- एम एस धोनी : द अनटोल्ड स्टोरी
- राब्ता
- छिछोरे
- अमरनाथ
आने वाली फिल्में ?- दिल बेचारा
- पानी
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मिडिल क्लॉस फैमेली की 'छोटी सी बात' अब कौन सुनाएगा!

यादें : बासु चटर्जी

- एकता शर्मा

  हिंदी और बंगाली फिल्मों के जाने-माने डायरेक्टर बासु चटर्जी ने जिंदगी को अलविदा कह दिया। लॉक डाउन में ये बॉलीवुड के लिए एक और बड़ी क्षति है। उनके निधन का कारण उम्र संबंधी बीमारियां बताया जा रहा है। उन्होंने सुबह के समय नींद में ही शांति से अंतिम सांस ली। वे उम्र संबंधी परेशानियों के कारण कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे। 70 और 80 के दशक में उनकी फिल्मों को बेहद पसंद किया गया। उन्होंने रजनीगंधा, चित्तचोर, छोटी सी बात, खट्टा-मीठा, एक रुका हुआ फैसला और चमेली की शादी जैसी रोमांटिक कॉमेडी वाली फ़िल्में बनाई, जिन्हें हर वर्ग के दर्शक रिझाया।
  उनकी अधिकांश फिल्मों के हीरो अमोल पालेकर और हीरोइन विद्या सिन्हा या जरीना वहाब हुआ करती थी। अपनी पहली फिल्म 'सारा आकाश' अलग तरह फिल्म की गंभीर मूड  थी, पर बाद उन्होंने ट्रेंड बदला और जीवन के छोटे-छोटे किस्सों को कहानियों  पिरोकर फ़िल्में बनाईं! अनिल कपूर को लेकर उन्होंने 'चमेली की शादी' डायरेक्ट की थी, जिसे आज भी याद किया जाता है। उनकी फिल्मों का आधार मिडिल क्लास फैमेंली की रोजमर्रा के जीवन में होने वाली कॉमेडी हुआ करती थी। 
   उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक पत्रिका में कार्टूनिस्ट और इलस्ट्रेटर के रूप में की थी। वे 18 साल तक इसी काम में लगे रहे। इसके बाद उन्होंने फिल्म निर्माता के रूप में अपना करियर बनाया और 1966 में राज कपूर और वहीदा रहमान स्टारर फिल्म 'तेरी कसम' में असिस्टेंट बनकर काम किया। इस फिल्म ने भी अपने दौर में राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता था। उन्होंने 10 से ज्यादा सफल फिल्मों का निर्देशन किया। चटर्जी को 1969 में अपनी पहली फिल्म 'सारा आकाश' के साथ सफलता मिली। इस फिल्म के लिए उन्होंने स्क्रीन प्ले के लिए भी पुरस्कार जीता था।
  बासु चटर्जी का जन्म अजमेर में हुआ था. फिल्मों में बासु चटर्जी के योगदान के लिए 7 बार फिल्म फेयर अवॉर्ड और दुर्गा के लिए 1992 में नेशनल फिल्म अवॉर्ड भी मिला था. 2007 में उन्हें आईफा ने लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाजा था. 1969 से लेकर 2011 तक बासु दा फिल्मों के निर्देशन में सक्रिय रहे। बासु चटर्जी के परिवार में उनकी दो बेटियां- सोनाली भट्टाचार्य और रूपाली गुहा है। रूपाली ने फिल्में डायरेक्ट की है। वह टीवी सीरियल की भी प्रोड्यूसर हैं।
    बॉलीवुड में बासु चटर्जी को प्यार से 'बासु दा' कहकर बुलाया जाता था। मिडिल क्लास फैमेंली की गुदगुदाती और हल्के से छू जाने वाली रोमांटिक कॉमेडी फिल्मों ने बासु चटर्जी को फिल्म  इंडस्ट्री में अलग पहचान दिलाई। बासु चटर्जी ने कुछ बंगाली फिल्मों के अलावा टीवी के लिए भी सीरियल बनाएं! इनमें 90 के दशक का 'ब्योमकेश बख्शी' सर्वाधिक लोकप्रिय रहा! ये एक जासूसी सीरियल था, जिसमें रजत कपूर मुख्य भूमिका में थे। बाद में उन्होंने दर्पण और कक्काजी कहिन जैसे सीरियल भी डायरेक्ट किए। उनकी आखिरी फिल्म बंगाली की 'साल त्रिशंकु' थी, जो साल 2011 में रिलीज हुई!
  बासु चटर्जी के निधन पर फिल्म निर्माता और भारतीय फिल्म और टीवी निर्देशकों के एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक पंडित ने ट्विटर पर लिखा, ' मैं अशोक पंडित दिग्गज फिल्म निर्माता बासु चटर्जी जी के निधन की सूचना देते हुए काफी दुखी हूं। यह इंडस्ट्री के लिए एक बड़ी क्षति है। बॉलीवुड के मशहूर निर्माता और निर्देशक मधुर भंडारकर ने ट्वीट करते हुए कहा, 'निर्माता श्रीबासु चटर्जी के निधन का सुनकर बहुत दुःख हुआ। उन्हें हमेश लाइट हार्टेड कॉमेडी और सिंपलिसिस्ट फिल्म्स के लिए याद किया जाएगा।
उनकी फ़िल्में   प्रतीक्षा, गुदगुदी, त्रियाचरित्र, कमला की मौत, ज़ेवर, भीम भवानी, किरायेदार, चमेली की शादी, शीशा, लाखों की बात, पसन्द अपनी अपनी, हमारी बहू अलका, शौकीन, अपने-पराये, मन पसंद, जीना यहाँ, मंज़िल, दो लड़के दो कड़के, रत्नदीप, बातों बातों में, प्रेम विवाह, तुम्हारे लिए, खट्टा मीठा, दिल्लगी, सफेद झूठ, प्रियतमा, स्वामी, चितचोर, छोटी सी बात, रजनीगंधा, उस पार, पिया का घर
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