Sunday 28 April 2019

जॉन की जासूसी नहीं चली, पर ये थीम हमेशा हिट रही!

-  एकता शर्मा

 दुनियाभर में जासूसी कहानियों पर बनीं फिल्मों की भरमार हैं। हॉलीवुड की सबसे सफल जेम्सबांड सीरीज़ भी जासूसी के ही कथानक पर बनी थी। हिंदी में भी जासूसी पर कई फ़िल्में बनी, जिन्हें दर्शकों ने पसंद भी किया! लेकिन, फिर भी कोई एक भी ऐसी फिल्म याद नहीं आती, जो ऑलटाइम हिट कही जाए! पिछले साल आई आलिया भट्ट की 'राजी' जासूसी और देशभक्ति पर बनी बेहतरीन फिल्म है। लेकिन, हाल ही में आई जॉन इब्राहम की 'रॉ' ज्यादा दम नहीं मार सकी और पहले ही हफ्ते में उसकी साँसे उखड़ गई! बॉक्स ऑफिस के मुताबिक 'रॉ' की पहले दिन की कमाई 5-7 करोड़ रुपए ही रही! इसे निराशाजनक प्रदर्शन ही माना जाएगा। इससे पहले रिलीज हुई जॉन अब्राहम की 'सत्यमेव जयते' पहले दिन 20 करोड़ की कमाई करने में कामायाब रही थी! 
   फिल्म की कहानी जासूसी पर केंद्रित होते हुए फिल्म के न चलने के दो बड़े कारण माने जा सकते हैं। पहला, फिल्म को क्रिटीक्स से न मिलने वाला अच्छा रिस्पांस है। फिल्म समीक्षकों ने 'रॉ' को सामान्य फिल्म बताया है। इस कारण भी दर्शकों ने इस पर पैसे और समय खर्च करने से इंकार कर दिया। दूसरा कारण आईपीएल मैचों को माना रहा है। जब दर्शकों को पता चला कि 'रॉ' में खास कुछ नहीं है, तो उन्होंने आईपीए देखने में ही भलाई समझी। 'रॉ' ने पहले दिन जिस तरह शुरूआत की उसके बाद उसे दर्शकों का रिस्पांस नहीं मिल रहा! 
  अब फिर बात करते हैं हिंदी की जासूसी फिल्मों की! सत्तर के दशक में रामानंद सागर की फिल्म 'आँखे' ने धूम मचाई थी। इस फिल्म में धर्मेन्द्र, माला सिन्हा और महमूद तीनों जासूस बने थे। वे चीन के चंगुल में फंसे भारतीय वैज्ञानिक को बचाने के मिशन पर काम करते हैं। इसके बाद आया जेम्स बांड के बॉलीवुड संस्करण वाली हिंदी फिल्मों का दौर जिसमें जितेंद्र की 'फर्ज' ने झंडे गाड़े थे। इसके बाद 80 के दशक में मिथुन चक्रवर्ती ने 'सुरक्षा, वारदात जैसी कई फिल्मों में 'जी-7' नामक जासूस को जिंदा रखा। विजय आनंद और राज खोसला ने इस थीम पर कई फ़िल्में बनाई! राज खोसला की 'ब्लेकमेल' में वैज्ञनिक के अपहरण और देश की सुरक्षा से जुड़े दस्तावेजों की चोरी को अनोखे ढंग से फिल्माया गया था। हमेशा सामाजिक और पारिवारिक फिल्में बनाने वाले राजश्री प्रोडक्शन ने भी एक बार महेंद्र संधू के साथ 'एजेंट विनोद' जैसी जासूसी फिल्म में हाथ आजमाए थे।  
  1994 में आई फिल्म 'द्रोहकाल' में बताया गया था कि जब आतंकवाद चरम पर पहुंच जाता है, तब दो पुलिस वाले मिलकर इसे खत्म करने की ठान लेते हैं। 'इंटरनल अफेयर्स' और 'द डिपार्टेड' के बाद 'द्रोहकाल' में दिखाया था कि कैसे आतंकवादी सामाजिक और लोकतांत्रिक उथल-पुथल के बीच खुद को खड़ा करते हैं। जॉन अब्राहम की फिल्म 'मद्रास कैफे' में श्रीलंका में उपजे आतंरिक हालातों को एक जासूस की नजर से दर्शाया था। सुजीत सरकार के द्वारा निर्देशित इस फिल्म में भेदभाव और मानसिक दुविधाओं के बावजूद इस थीम को बेहतरीन तरीके से दिखाया गया! कमल हासन की फिल्म 'विश्वरूपम' में  वैश्विक आतंकवाद का नजारा था, जो समुद्र के किनारे से होकर अफगानिस्तान के टोरा-बोरा मैनहट्टन तक फैला है। इस फिल्म की सबसे ख़ास बात यही थी। इसमें एक महिला को पति पर जासूस होने का शक होता है, यहीं से फिल्म की कहानी शुरू होती है। 'विश्वरूपम' को अब तक की सबसे बेहतरीन जासूसी फिल्मों में शुमार किया जाता है।
    जासूस ऐसा किरदार है, जिसे हर अभिनेता आजमाना चाहा। अमिताभ बच्चन ने भी 'ग्रेट गैम्बलर' जैसी फिल्म में जासूस की भूमिका निभाई थी। अमिताभ की फिल्म 'डॉन' भी जासूसी जैसी ही फिल्म थी। इस फिल्म ने सिनेमाघरों में खूब धमाल मचाया। बाद में शाहरुख़ खान ने भी 'डाॅन' के बाद 'डाॅन-2' में यही कारनामा किया और धमाल मचाया। सलमान खान ने 'एक था टायगर' और 'टायगर जिंदा है' में भारतीय जासूस बनकर इस्तंबुल की गलियों में पाकिस्तानी जासूस कैटरीना के साथ गोलियों की बौछार में इश्क फरमाया! वहीं परफेक्शनिस्ट आमिर खान ने 'सरफरोश' में पाकिस्तानी जासूसों का पर्दाफाश किया। मनोज कुमार के नए संस्करण      अक्षय कुमार ने भी बेबी, एयरलिफ्ट सहित आधा दर्जन फिल्मों में जासूसी कर अपनी नई छवि गढने का काम किया है।
-----------------------------------------------------------------------------------

No comments:

Post a Comment