Friday 8 April 2016

'मेरी आवाज ही पहचान है ...'


लता मंगेशकर : सात दशक से छाया आवाज का जादू 

  संगीत का एक महत्वपूर्ण अंग है 'ताल।' इस शब्द को उलट दिया जाए तो जो शब्द बनता है, संगीत की शुरूआत उसी शब्द से होती है। संगीत के सारे सुर उस शब्द पर आकर थम जाते हैं, यह शब्द है 'लता।' भारत रत्न लता मंगेशकर को दुनिया में किसी परिचय की जरूरत ही नहीं है। आखिर चांद, सितारों, जमीन, आसमान, नदियों और सागरों की तरह शास्वत वस्तुएं किसी परिचय की मोहताज नहीं होती। संगीत की स्वरलहरियों और सात सुरों के संसार में लता ऐसी ही शास्वत शख्यियत है, जिनके कंठ से सरस्वती के सुर निकलते हैं। 'रामलीला' में गाकर लताजी ने फ़िल्मी दुनिया में 71 साल पूरे जरूर कर लिए, पर ये सफर अभी भी जारी है।   
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- एकता शर्मा 

   हिन्दी सिनेमा के ट्रेजेडी किंग और विख्यातनाम कलाकार दिलीप कुमार ने लगभग चार दशक पहले 1974 में लंदन स्थित रायल एलबर्ट हाल में अपनी दिलकश आवाज में कहा था 'जिस तरह कि फूल की खुशबू या महक का कोई रंग नहीं होता, वह महज खुशबू होती है। जिस तरह बहते पानी के झरने या ठंडी हवा का कोई मुकाम, घर, गांव, देश या वतन नहीं होता। जिस उभरते सूरज या मासूम बच्चे की मुस्कान का कोई मजहब या भेदभाव नहीं होता, उसी तरह से कुदरत का एक करिश्मा है लता मंगेशकर।' तो दर्शकों से खचाखच भरे हाल में कई मिनटों तक तालियों की गडगडाहट गूंजती रही! वास्तव में दिलीप कुमार ने लता मंगेशकर का जो परिचय दिया वह न केवल उनकी सुरीली आवाज बल्कि उनके सौम्य व्यक्तित्व का सच्चा इजहार है। 
   1974 से 1991 तक दुनिया में सबसे ज्यादा गीत गाकर 'गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड' में अपना नाम शुमार कराने वाली लता मंगेशकर ने सभी भारतीय भाषाओं में अपने सुर बिखेरें हैं। यदि  भारतीय फिल्मी गायक-गायिकाओं में कोई नाम सबसे ज्यादा सम्मान से लिया जाता है, तो वह है सिर्फ और सिर्फ लता मंगेशकर। 28 सितम्बर 1929 को मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी इंदौर मे जन्मी लता को गायन कला विरासत में मिली। उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर शास्त्रीय गायक तथा थिएटर कलाकार थे। यदि दीनानाथ मंगेशकर के नाटक 'भावबंधन' की नायिका का नाम लतिका न होता और उनके माता-पिता अपनी सबसे बड़ी बेटी को यह नाम नहीं देते, तो आज शायद हम उन्हें उनके बचपन के नाम हेमा हर्डिकर के नाम से जानते! लता का बचपन का नाम हेमा और सरनेम हर्डिकर था, जिसे बाद में उनके परिवार ने गोवा मे अपने गृह नगर मंगेशी के नाम पर मंगेशकर रखा और आज इसी नाम लता मंगेशकर को सारी दुनिया जानती है और स्वरसामज्ञी सा सम्मान देती है। 
सफर सत्तर सालों का 
   1942 में जब लताजी मात्र 13 साल की थी, उनके पिताजी की हृदय रोग से मृत्यु हो गई। तब अभिनेत्री नंदा के पिता और नवयुग चित्रपट कंपनी के मालिक मास्टर विनायक ने बतौर अभिनेत्री और गायिका लता मंगेशकर का करियर आरंभ करने में मदद की। वसंत जोगलेकर की मराठी फिल्म 'किती हसाळ' में 1942 में पहली बार सदाशिव राव नर्वेकर की संगीत रचना में गाए गीत 'नाचु या गडे, खेलू सारी मानी हाउस भारी' गाकर अपना करियर आरंभ करने वाली लता ने कभी पीछे मुड कर नहीं देखा! सत्तर सालों से वे हिन्दी फिल्म जगत की शीर्षस्थ और सर्वाधिक सम्मानित गायिका के रूप में विराजमान है। उस्ताद अमानत अली खान से हिन्दुस्तानी संगीत सीखकर उन्होंने 1946 में पहला हिन्दी गीत 'पा लागू कर जोरी' गाया। 1945 में 'बड़ी मां' में अभिनय के साथ लता ने 'माता तेरे चरणों में' भजन गाया। 
   1947 में विभाजन के बाद जब उनके गुरू अमानत अली खान पाकिस्तान चले गए तो उन्होंने अमानत खान देवास वाले से शास्त्रीय संगीत सीखा। इस दौरान बड़े गुलाम अली खान के शिष्य पंडित तुलसीदास शर्मा ने भी उन्हें प्रशिक्षित किया और संगीतकार गुलाम हैदर ने उन्हें 1948 में 'मजबूर' फिल्म का गीत 'दिल मेरा तोडा' गवाया और अपने उर्दू के उच्चारण को सुधारने के लिए मास्टर शफी से बकायदा उर्दू का ज्ञान लिया। 1949 में जब कमाल अमरोही की फिल्म 'महल' में उन्होंने मधुबाला पर फिल्माया गीत 'आएगा आने वाला गाया' तो सारा देश उनकी आवाज से मंत्रमुग्ध हो गया। उसके बाद से हर फिल्म में लता का गाया गाना जरूरी माना जाने लगा।
   पचास के दशक में अनिल विश्वास के साथ अपना गायन आरंभ कर लताजी ने शंकर-जयकिशन, नौशाद, एसडी.बर्मन, पंडित हुस्नलाल भगतराम, सी. रामचन्द्र, हेमंत कुमार, सलिल चौधरी, खैयाम, रवि, सज्जाद हुसैन, रोशन, कल्याणजी-आनंदजी, वसंत देसाई, सुधीर फडके, उषा खन्ना, हंसराज और मदनमोहन के साथ स्वरलहरियां बिखेरी। साठ और सत्तर के दशक में लता ने चित्रगुप्त, आरडी बर्मन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, सोनिक ओमी जैसे नए संगीतकारों के साथ काम किया। उसके बाद उन्होंने राजेश रोशन, अनुमलिक, आनंद मिलिन्द, भूपेन हजारिका, ह्रदयनाथ मंगेशकर, शिवहरी, राम-लक्ष्मण, नदीम श्रवण, जतिन-ललित, उत्तम सिंह, एआर रहमान और आदेश श्रीवास्तव जैसे नए संगीतकारों को अपनी आवाज देकर फिल्मी दुनिया में स्थापित किया। जहां तक गायकों का सवाल है लता ने हर काल के हर छोटे बड़े गायकों की आवाज से आवाज मिलाकर श्रोताओं के कानों में रस घोला है। 
लता पर हर शख्स फिदा 
  लता मंगेशकर की आवाज में यदि शहद सी मिठास है तो चंदन सी महक भी है। यदि उनमें चांदनी सी चमक है तो भक्ति संगीत की पवित्रता और बाल सुलभ सादगी और सरलता भी है। उनकी आवाज की एक खासियत यह भी है कि यदि आंखें मूंदकर लताजी के गीतों को सुना जाए तो सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि पर्दे पर यह गीत किस पर फिल्माया जा रहा है। अपने उम्र के इस पडाव में जब वह माधुरी, काजोल या किसी नर्ह तारिका के लिए गाती हैं, तो ऐसा लगता नहीं कि यह आवाज किसी परिपक्व गायिका की है। बल्कि, ऐसा लगता है जैसे कोई सोलह बरस की अल्हड युवती गा रही है। उनकी आवाज की इसी खासियत की वजह से पिछले सत्तर बरसों से वह लगभग सभी नायिकाओं को अपने सुरो से अलंकृत कर चुकी है और उनकी इसी अदा पर हर शख्स उन पर फिदा है। 
   वैसे तो हर गायक या गायिका का किसी खास संगीतकार से तालमेल ज्यादा बेहतर होता है। वे उसके लिए बेहतरीन गायन करते हैं। लेकिन, लता ने सभी संगीतकारों के साथ उम्दा और बेहद उम्दा ही गाया। यह बात जरुर है कि संगीतकार मदनमोहन और सी. रामचन्द्र के साथ उनकी खास पटती थी। मदनमोहन की फिल्म 'अनपढ़' के गीत 'आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे' सुनकर संगीतकार नौशाद ने मदनमोहन को फोन करके कहा कि आपके इस गीत पर मेरा सारा संगीत कुर्बान है! ऐसी ही एक रोचक बात यह भी सुनी जाती थी कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकारअली भुट्टो ने कहा था कि एक लता हमें दे दो और पूरा पाकिस्तान ले लो! हालांकि, इस बात में कोई सच्चाई होगी, मानना मुश्किल है। क्योंकि, यह वही लता है जिसने 27 जून 1963 को  नई दिल्ली में 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाकर पंडित नेहरू को रूला दिया था। 
हर शैली में हीरे सी चमक 
   लता मंगेशकर ने हर शैली के गीतों में अपनी सुरीली आवाज से प्राण फूंके हैं। सलील चैधरी के संगीत से सजी 'मधुमती' में जब वे 'आ जा रे परदेसी' गाती हैं, तो लगता है जन्मों से कोई विरहन अपने प्रेमी के इंतजार में तड़फकर उसे पुकार रही है। शंकर-जयकिशन की धुन पर जब वे 'चोरी-चोरी' में 'पंछी बनूं उडती फिरूं मस्त गगन में' गाती हैं तो सुनने वालों को ऐसा लगता है जैसे लताजी की आवाज को पर मिल गए हों! इसी फिल्म के गीत 'ये रात भीगी भीगी' और 'आ जा सनम मधुर चांदनी में हमतुम मिले तो' सुनकर ऐसा लगता है जैसे उन्होंने अपनी आवाज में सारे जहां की रूमानियत उडेंल दी है! इसके साथ ही जब 'मुगले आजम' में उन्होंने 'प्यार किया तो डरना क्या' गाया तो शहंशाह के सामने अनारकली की बगावत के सुर सभी को सुनाई देने लगे। इसी फिल्म में जब 'मोहे पनघट पर नंदलाल छेड गयो रे' गाया तो श्रोताओं के मन भक्ति मे डूब गए। इसी तरह 1962 में संगीतकार जयदेव की संगीत रचना 'अल्लाह तेरो नाम' और 'प्रभु तेरो नाम' गाकर अपनी आवाज के समर्पण का जादू दिखाया।
आज भी बह रही है सुर गंगा 
   वैसे तो वे आजकल गाती नहीं हैं, लेकिन पिछले साल उन्होंने अपने जन्मदिन पर खुद का म्यूजिक एलबम निकालकर भजन प्रस्तुत किए। संजय लीला भंसाली की आने वाली फिल्म 'रामलीला' में गाना गाकर लताजी ने अपनी संगीत यात्रा के 71 साल पूरे कर लिए हैं। लेकिन, आज भी उनकी आवाज में कुदरत का वही आशीर्वाद और मां सरस्वती की वही अनुकम्पा विद्यमान है ।  
सम्मान और पुरस्कार  
   'भारत रत्न' सा सम्मानित लता मंगेशकर को 1969 में पदमभूषण, 1999 में पद्म विभूषण, 1989 में दादा साहब फालके पुरस्कार, 1997 में महाराष्ट्र भूषण अवार्ड, 1999 में एनटीआर नेशनल अवार्ड, 2009 में एएनआर नेशनल अवार्ड, तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, चार बार फिल्मफेयर पुरस्कार तथा 1993 में फिल्मफेयर लाइफटाइम एचीवमेट पुरस्कार मिले। नई प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए उन्होंने फिल्मफेयर पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया था। 1984 में मध्य प्रदेश सरकार ने उनके नाम से लता मंगेशकर अवार्ड आरंभ किया। 1992 में महाराष्ट्र सरकार ने भी उनके नाम से लता मंगेशकर अवार्ड आरंभ किया। 
गायिका का साथ संगीतकार भी  
   बहुत कम लोग जानते हैं कि लता मंगेशकर एक अच्छी गायिका ही नहीं एक अच्छी संगीतकार और फिल्म निर्मात्री भी हैं। उन्होंने 1955 में पहली बार मराठी फिल्म 'राम राम पाव्हणे' में संगीत दिया। इसके बाद आनंद घन के छद्म नाम से मराठा टिटुका मेलवावा, मोहित्याची मंजुला, ताम्बादी माटी और साधी माणसे में संगीत दिया। इसके साथ ही 1953 मे मराठी फिल्म वाडाल, 1953 में सी. रामचन्द्र के साथ मिलकर हिन्दी फिल्म जहांगीर,1955 में कंचन और 1990 में 'लेकिन' फिल्म का निर्माण किया। फोटोग्राफी की शौकीन लता की गायकी की महक इतनी फैली कि 1999 में उनके नाम से एक परफ्यूम 'लता यू डि' प्रस्तुत किया गया था। 
संगीत से संसद तक 
  1999 में राज्यसभा के लिए मनोनीत लता मंगेशकर ने  बतौर सांसद न तो कभी वेतन लिया और न कोई भत्ता! यहां तक कि उन्होंने दिल्ली में सांसदों को मिलने वाला आवास तक नहीं लिया। संसद से दूर रहकर भी उन्होंने देश सेवा में हमेशा हाथ बंटाया! 2001 में 'भारत रत्न' जैसे सर्वोच्च सम्मान से नवाजी गई लताजी ने इसी साल अपने पिता के नाम से पुणे में 'मास्टर दीनानाथ मंगेशकर हास्पिटल बनवाया। 2005 में भारतीय डायमंड एक्सपोर्ट कंपनी 'एडोरा' के लिए स्वरांजलि नाम से ज्वेलरी कलेक्शन प्रस्तुत किया। इस कलेक्शन के पांच आभूषणों की नीलामी से मिले 105,000 पौंड उन्होंने 2005 को कश्मीर मे आए भूकम्प पीड़ितों के लिए दान कर दिया। 
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