Saturday 30 April 2016

फिल्मों में आज भी कमजोर क्यों है नारी?


 हिंदी फिल्मों में हीरो और हीरोइन का दर्जा बराबर का माना जाता है, पर हीरोइन की हैसियत ऐसी नहीं होती कि वो फिल्म का बोझ अपने कंधे पर उठा सके! इसलिए नहीं कि वो ऐसा कर नहीं सकती! बल्कि, इसलिए कि निर्माता और निर्देशक को भरोसा नहीं होता! यही कारण है कि देश में हरसाल सैकड़ों फ़िल्में बनती हैं, पर महिला प्रधान फिल्मों की गिनती की जाए तो सालभर में उतनी फ़िल्में भी नहीं बनती जितनी हाथ में उंगलियां होती हैं। आज मदर इंडिया, अर्थ, दामिनी और लज्जा जैसी फ़िल्में क्यों नहीं बनती जिनसे भारतीय नारी की अलग छवि बनती है।  

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 * एकता शर्मा 
  करीना कपूर और अर्जुन कपूर की फिल्म 'की एंड का' में नायक को नायिका की तरह घरेलू काम करते हुए बताया गया है! इस पर भी करीना का कहना है कि ‘की एंड का’ यह महिला सशक्तीकरण पर आधारित नहीं है। फिल्म के जरिए समाज में बदलाव लाने की कोई कोशिश नहीं की गई है। सबसे पहले तो फिल्म मनोरंजन का एक जरिया है। यह फिल्म महिला सशक्तीकरण, लैंगिक समानता अथवा समाज बदलने के उद्देश्य से बनाया गया वृत्तचित्र नहीं है। दरअसल, यही वो कारण है कि कोई फिल्म निर्माता महिला प्रधान फिल्म बनाने का साहस कम ही करता!

  अब तक की श्रेष्ठ महिला प्रधान फिल्मों पर नजर दौड़ाई जाए तो चंद फिल्में ही हैं जिन्हें याद किया जाए! 1957 में बनी 'मदर इंडिया' वो भारतीय फ़िल्म है जिसे महबूब ख़ान द्वारा लिखा और निर्देशित किया गया। फ़िल्म में नर्गिस, सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार और राजकुमार मुख्य भूमिका में हैं। ये फ़िल्म महबूब ख़ान द्वारा ही निर्मित औरत (1940) का रीमेक है। यह गरीबी से पीड़ित गाँव में रहने वाली औरत राधा की कहानी है जो कई मुश्किलों का सामना करते हुए अपने बच्चों का पालन पोषण करने और जागीरदार से बचने की मेहनत करती है। उसकी मेहनत और लगन के बावजूद वह एक आदर्श उदाहरण पेश करती है और भारतीय नारी की परिभाषा स्थापित करती है। फिर अंत में खुद अपने गुंडे बेटे को मार देती है। 1975 में बनी गुलज़ार की फिल्म 'आंधी' के जरिए विवादों की ऐसी आंधी उठी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर फिल्म के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया गया! कथित रूप से गांधी के जीवन पर आधारित फिल्म की नायिका सुचित्रा सेन का पूरा गेटअप उनसे प्रेरित था! बालों के कुछ हिस्सों की सफेदी वाले हेयर स्टाइल और एक हाथ से साड़ी का पल्लू संभालने और दूसरे हाथ से लोगों को देखकर हाथ हिलाने की उनकी शैली को ही नायिका ने अपने अभिनय में उतारा था! 1977 में निर्मित 'भूमिका' को श्याम बेनेगल ने निर्देशित किया था! फिल्म में मुख्य भूमिका में थे स्मिता पाटिल, आमोल पालेकर, अनंत नाग, नसीरुद्दीन शाह, अमरीश पुरी। फिल्म 1940 के वक्त की स्क्रीन एक्ट्रेस हंसा वाडकर पर आधारित थी।

  1982 में आई फिल्म अर्थ को महेश भट्ट ने निर्देशित किया था। फिल्म में शबाना आजमी, कुलभूषण खरबंदा, स्मिता पाटिल मुख्य भूमिका में थे। फिल्म में महेश भट्ट ने परवीन बॉबी के साथ अपने विवाहेत्तर संबंधों को फिल्माया था। 1987 की केतन देसाई की फिल्म 'मिर्च मसाला' में उन महिलाओं की पीड़ा को उभारा गया था, जो मसालों के कारखानों में काम करती है। 1993 में आई राजकुमार संतोषी की फिल्म 'दामिनी' में दामिनी का रोल किया था मीनाक्षी शेषाद्री ने। 'दामिनी' एक ऐसी नारी की गाथा है जो अन्याय के विरुद्ध बीड़ा उठाकर चैन से नहीं बैठते तथा मरते दम तक संघर्ष करते हैं। दामिनी अपने देवर राकेश को नौकरानी के साथ दुष्कर्म करते देख लेती है. अपने परिवार के खिलाफ जाकर दामिनी नौकरानी को इंसाफ दिलाने में जुट जाती है।
  सन 2001 में मधुर भंडारकर की फिल्म 'चांदनी बार' में बार में काम करने वाली लड़कियों की जिंदगी पर प्रकाश डाला गया है. तबू इस फिल्म में मुख्य भूमिका में हैं। 2001 में ही आई राजकुमार संतोषी की फिल्म 'लज्जा' पुरुष आधिपत्यवाद की शिकार चार अलग-अलग वर्गों से संबंधित महिलाओं की यात्रा कथा है, जो उन्हें एक साथ ले आती है। और वे प्रताडि़त होने से इंकार कर, अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करती हैं। 2011 में आई 'नो वन किल्ड जेसिका' राजकुमार गुप्ता द्वारा निर्देशित फिल्म थी, जो सनसनीखेज जेसिका लाल हत्याकांड पर आधारित थी। इसी साल आई 'द डर्टी पिक्चर' सिल्क स्मिता की जीवनी पर आधारित हिन्दी फिल्म थी। फिल्म का निर्देशन मिलन लुथरिया ने किया! सुजॉय घोष द्वारा निर्देशित 'कहानी' फिल्म की हीरोइन विद्या बालन के इर्दगिर्द घूमती है जो कि प्रेग्नेंट होती है। विद्या लंदन से कोलकाता अपने पति अर्णब बागची को ढूंढने के लिए आती है जो दो महीनों से लापता होता है। इसी साल आई फिल्म 'नीरजा' मुंबई की पैन एम एयरलाइन्स की विमान परिचारिका नीरजा भनोट पर आधारित थीं। 5 सितंबर 1986 को मुम्बई से न्यूयॉर्क जा रही फ्लाइट के अपहृत विमान में यात्रियों की सहायता एवं सुरक्षा करते हुए वे आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गईं थीं। 2014 में आई विकास बहल की फिल्म 'क्वीन' को भी औरत की आजादी की प्रतीक फिल्म कहा जा सकता है। मंगेतर द्वारा शादी स्थगित करने से रानी बनी कंगना रनौत हनीमून पर अकेले ही जाने का निर्णय लेती है। यूरोप घूमते हुए वह खुश होती है, नए दोस्त बनाती और आजादी हांसिल करती है। 'क्वीन' एक बेहतरीन फिल्म है जिसमें एक लड़की की बाहरी यात्रा के साथ-साथ आंतरिक यात्रा देखने को मिलती है, जो उसमें बदलाव लाती है। कंगना रनोट ने फिल्म में बेहतरीन अभिनय किया है।
   पिछले साल (2015) भी कुछ महिला प्रधान फ़िल्में बनी। कुछ फिल्मों ने अच्छा बिजनेस भी किया! कुछ महिला प्रधान फिल्में दर्शकों के जहन में हमेशा रहेंगी। 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' में श्रेष्ठ भूमिका के लिए कंगना रनौत को नेशनल अवॉर्ड दिया गया! फिल्म में दोहरे अवतार में कंगना ने अपने एक्टिंग के दम पर दर्शकों का मनोरंजन तो किया ही साथ ही अपने दो अलग-अलग किरदारों में शानदार अदायगी से पूरी इंडस्ट्री को हैरत में डाल दिया। अनुष्का शर्मा की 'एनएच-10' में अनुष्का ने जमीनी हकीकत पर आधारित फिल्म बनाई और नील भूपलम के साथ अहम किरदार निभाया। 'पीकू' में दीपिका पादुकोण ने फिर अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया। दीपिका ने अमिताभ की बेटी 'पीकू' के रूप में पूरा घर संभाला और दर्शकों ने अपने परिवार के साथ इस फिल्म को सराहा। 'मसान' में ऋचा चढ्डा के किरदार को दर्शकों ने जमकर सराहा। ऋचा ने अपने टैलेंट के जरिए इस फिल्म के साथ दर्शकों को सोचने पर विवश किया। 'मार्गरिटा विद अ स्ट्रॉ' में कल्कि कोचलिन को भी इस फिल्म से काफी सराहना मिली।
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