Wednesday 7 March 2018

औरत के लिए बने कानून से औरत का ही शिकार!

   

  'दहेज़ उत्पीड़न कानून' ससुराल में बहू की रक्षा के लिए बनाया गया था, लेकिन वह बहू को बचाते-बचाते परिवार की अन्य औरतों को सताने लगा। दरअसल, ये न्याय की एकपक्षीय अवधारणा है। इसके तहत अंतर्गत औरत को सिर्फ बहू या पत्नी माना गया था। ये नहीं देखा गया कि वह सास, ननद, जेठानी और देवरानी भी है वे भी औरतें हैं। इस कानून से प्रचारित भी किया गया कि ये सभी औरतें सिर्फ बहुओं को सताने के लिए हैं। बहुएं भी किसी को सता सकती हैं, इसे बिल्कुल भुला दिया गया। जिसने भी इस बात को कभी उठाने की कोशिश की, उसे महिला विरोधी कहा जाने लगा। 
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- एकता शर्मा 
  सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पहले अपने एक फैसले में कहा था कि दहेज उत्पीड़न के मामले में ससुराल पक्ष के लोगों की गिरफ्तारी तभी की जाए, जब ऐसा करना बहुत ज्यादा जरूरी हो। जबकि, पहले ससुराल पक्ष के लोगों को शिकायत के तत्काल बाद गिरफ्तार कर लिया जाता था। 'राष्ट्रीय महिला आयोग' ने इस फैसले के खिलाफ सुधारात्मक याचिका दायर की थी। देशभर के महिला संगठनों ने भी इस फैसले का विरोध किया था। मगर कोर्ट ने अपने पहले के फैसले में किसी भी तरह का बदलाव करने से इंकार कर दिया। महिला आयोग की याचिका भी खारिज कर दी गई। दरअसल, इस कानून से औरत का ही शिकार ज्यादा होने लगा था। लगने लगा था कि सास, ननंद और जेठानी जैसे रिश्ते सिर्फ बहू पर जुल्म करने के लिए ही बने हैं।  
  दहेज उत्पीड़न विरोधी धारा 498-ए ऐसी है, जिसका नाम सुनते ही लोग दहशत में आ जाते हैं। सालों पहले सुप्रीम कोर्ट इस धारा को 'लीगल टेररिज्म' यानी 'कानूनी आतंकवाद' तक कह चुका है। क्योंकि, इस कानून के तहत बहू और उसके घर वाले जिसका नाम ले लें, उसे पकड़ लिया जाता! कई मामलों में तो ससुराल पक्ष को झूठे ही फंसाने के लिए भी ऐसे मामले गढ़े गए थे। यह भी देखने में आया कि वर पक्ष के पूरे कुनबे के नाम लिखवा दिए गए। जो लोग विदेश में रहते थे और जिनका इस मामले से कोई वास्ता नहीं था, उन्हें भी आरोपी बना दिया गया। क्योंकि, अभी तक शायद ही कोई ऐसा अध्ययन हुआ हो, जिससे पता चल सके कि दहेज उत्पीड़न कानून के जरिए वास्तव में सताई गई कितनी औरतों को न्याय मिला और कितनी निरपराध फंसाई गईं! 
 इस धारा के दुरूपयोग के बारे में 'सेव इंडियन फैमिली' नामक संस्था ने एक बार कहा था कि इस धारा में हर 21 मिनट में एक औरत गिरफ्तार हो रही है। अजीब बात ये थी कि जिस कानून को औरतों की रक्षा के लिए बनाया गया था, वही औरतों को सताने लगा। न्याय की एकपक्षीय अवधारणा अकसर ऐसा ही करती है। इस कानून के अंतर्गत औरत सिर्फ बहू थी या पत्नी! मां, बहन, चाची, ताई , बुआ, सास, ननद, जिठानी, देवरानी आदि औरतें नहीं थीं। मान लिया गया और लगातार प्रचारित भी किया गया कि ये सबकी सब औरतें सिर्फ बहुओं को सताने के लिए बनी हैं। बहुएं भी किसी को सता सकती हैं, इसे बिल्कुल भुला दिया गया। जिसने भी इस बात को कभी उठाने की कोशिश की, उसे महिला विरोधी होने का तमगा सौंप दिया गया।
 कुछ साल पहले ये जानकारी भी सामने आई थी कि बहुत से गांव ऐसे हैं, जो बाकायदा 'दहेज उत्पीड़न कानून' के नाम पर ब्लैकमेलिंग करते हैं। वहां ऐसे बहुत से संगठित गिरोह बन गए हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट देखें, तो कहा जा सकता है कि दहेज उत्पीड़न के मामले बढ़े हैं। मगर ब्यूरो थाने में की गई शिकायतों के आधार पर यह निष्कर्ष निकालता है। वह कभी उन बातों और खबरों पर ध्यान नहीं दे पाता, जिनमें कहा जाता है कि इन दिनों इस कानून के तहत की जाने वाली अधिकांश शिकायतें या तो झूठी होती हैं या बदला लेने के लिए की गई होती हैं। यह दुखद ही है कि एक कानून महिलाओं के भले के लिए बनाया गया था। मगर उसके दुरुपयोग के कारण आज उसे कमजोर किया जा रहा है। पक्ष दोनों ही मजबूत हैं। इस कानून को ढीला कर देने से दहेज़ के लिए बहू को पीड़ित करने वाले बेख़ौफ़ होंगे! उधर, ऐसे लोगों को राहत भी मिली है जो निरपराध होते हुए भी बेवजह इस कानून में फंसा दिए गए थे।  
  देश में जब 'दहेज उत्पीड़न कानून' बना था, उस समय सोचा गया था कि इससे हमारे समाज में फैला दहेज़ उत्पीड़न का रोग दूर होगा। लड़कियों और उनके माता-पिता को राहत की सांस मिलेगी। मगर ऐसा हुआ नहीं! एक तरफ शादी अपनी हैसियत दिखाने की चीज बनी और दहेज में दी जाने वाली चीजें स्टेट्स सिम्बल बनती चली गईं। दूसरी तरफ वे गरीब माता-पिता थे, जो लड़की को जैसे-तैसे पालते, पढ़ाते थे, लेकिन दहेज नहीं दे सकते थे, उनकी विपत्तियां कम नहीं हुईं। क्योंकि कानून भी उसे न्याय दे पाता है, जिसके पास उसका लाभ उठाने के संसाधन होते हैं। लेकिन, कुछ चालाक लोग, जिन्हें 498-ए की जानकारी थी, वे इसे एक तरह से लड़के वालों को सताने और उनसे वसूली करने का साधन समझने लगे। 
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