Saturday 17 August 2019

'रजनीगंधा' सी महकती 'विद्या' का ख़ामोशी से चले जाना!

   फ़िल्मी दुनिया का अपना अजीब सा ढर्रा है, जो आजतक कोई समझ नहीं पाया! यहाँ जो कलाकार जिस किरदार में ढल जाता है, वही उसकी पहचान बन जाती है। ऐसे में वो वहाँ से बड़ी मुश्किल से निकल पाता है! सबसे ज्यादा परेशानी नायिकाओं के साथ आती है! यदि उनका करियर सीधी-साधी घरेलू लड़की में ढल गया तो उन्हें मॉर्डन गर्ल का रोल मिलना आसान नहीं होता! 70 के दशक की नायिका विद्या सिन्हा ऐसी ही अभिनेत्री थी, जो दस साल में 30 फ़िल्में करने के बाद भी अपनी छवि का कवच तोड़कर बाहर नहीं निकल सकीं और अपनी उसी पहचान के साथ दुनिया से बिदा हो गईं! विद्या की निजी जिंदगी काफी तकलीफों भरी रही। उन्होंने दो शादियां की थीं। लेकिन, उन्हें जीवन का सुख एक से भी नहीं मिला। 
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  फिल्मों में आदर्श भारतीय लड़की का रोल निभाने वाली विद्या सिन्हा उस खाके में कभी फिट नहीं हुई, जिसे हिंदी फिल्मों की हीरोइन कहा जाता है। उनकी नैसर्गिक सुंदरता सहज और आम भारतीय नारी जैसी थी! सामाजिक नजरिए से ये पहचान अच्छी है, पर विद्या सिन्हा के लिए ये खामी की तरह थी! आम तौर पर फिल्मों में यही होता है। 1974 में आई 'रजनीगंधा' से लगाकर बाद में आई सभी फिल्मों में इस अभिनेत्री को साड़ी वाले रोल मिले! कारण वे चाहकर भी उस मुकाम तक नहीं पहुँच सकी, जो उनकी काबलियत थी! वे शबाना आजमी की तरह बड़े बाप की बेटी तो थी नहीं, जिन्हें अंकुर, निशांत, मंथन और चक्र जैसी ठेठ कला फ़िल्में करने के बाद शशि कपूर के साथ 'फकीरा' और विनोद खन्ना के साथ 'परवरिश' जैसी बड़ी फिल्म करने का मौका मिले! विद्या सिन्हा ने काम तो संजीव कुमार, राजेश खन्ना और शशि कपूर जैसे बड़े नायकों के साथ किया, पर अपनी छवि को तोड़कर बाहर नहीं निकल सकी! 
     आमतौर पर फ़िल्मी दर्शक शादीशुदा हीरोइनों को ज्यादा पसंद नहीं करते! वही विद्या सिन्हा के साथ भी हुआ! 'मिस मुंबई' बनने के बाद उन्होंने अपने पडोसी वेंकेटेश्वर अय्यर से शादी कर ली! विद्या के ससुराल वाले उनके फिल्मों में काम करने के खिलाफ थे! लेकिन, बाद में वे मान गए। विद्या को पहली फिल्म 'राजा काका' ही राजेश खन्ना के साथ मिली थी! पर ये रिलीज हुई 'रजनीगंधा' के बाद! हुआ यूँ कि 'मिस मुंबई' बनने के बाद विद्या मॉडलिंग करने लगी थी! साड़ी के एक विज्ञापन में उन्हें वासू चटर्जी ने देखा और अमोल पालेकर के साथ 'रजनीगंधा' के लिए सिलेक्ट कर लिया। 'रजनीगंधा' पहले रिलीज हुई और हिट भी हो गई। इस फिल्म के दो गीत 'कई बार यूं भी देखा है, ये जो मन की सीमा रेखा है और 'रजनीगंधा फूल तुम्हारे' तो इतने पसंद किए गए कि आज साढ़े 4 दशक बाद भी गुनगुनाए जाते हैं। 'रंजनीगंधा' ने बेस्ट फिल्म का 'फिल्म फेयर' अवॉर्ड भी जीता। 'कई बार यूं भी देखा है ...' के लिए गायक मुकेश को भी 'फिल्म फेयर' मिला। लेकिन, विद्या की दूसरी फिल्म 'राजा काका' नहीं चली! एक हिट और एक फ्लॉप का असर ये हुआ कि 'रजनीगंधा' के बाद विद्या को कोई फिल्म नहीं मिली!
  करीब दो साल बाद फिर उन्हें बासु चटर्जी ने ही 'छोटी सी बात' में मौका दिया। इस फिल्म ने भी अपार लोकप्रियता पाई और एक बार फिर फिल्म की सफलता में गीतों की अहम भूमिका रही। इस फिल्म के गीत 'ना जाने क्यों, होता है ये जिंदगी के साथ' और 'जानेमन जानेमन तेरे दो नयन' को भुलाया नहीं जा सकता! विद्या सिन्हा को इसके बाद फ़िल्में तो मिली, पर उसी छवि में जो उनकी बन चुकी थी! सीधी-साधी घरेलू लड़की की उनकी पहचान इतनी मजबूत हो गई थी कि उन्हें कभी भी ग्लैमरस किरदार नही मिले। विद्या ने चालू मेरा नाम, इंकार और 'मुकद्दर' जैसी फिल्में भी की पर बात नहीं बनी! राजेश खन्ना के साथ उन्होंने अंधविश्वास वाली फिल्म 'कर्म' भी की, लेकिन छवि नहीं टूटी! उनके जीवन में 'मुक्ति' अहम पड़ाव बनी। इसमें शशि कपूर और संजीव कुमार जैसे कलाकार थे, इस कारण विद्या फिल्म में गुम होकर रह गई! विद्या की सबसे बड़ी फिल्मों में एक थी संजीव कुमार और रंजीता के साथ 'पति पत्नी और वो!' ये भी खूब चली पर सारा श्रेय संजीव कुमार को मिला। दस साल में भी अपनी छवि से बाहर न निकल पाने की पीड़ा उन्हें इतनी सालने लगी कि विद्या ने फिल्मों से संन्यास ले लिया। उसके बाद वे फिल्म परिदृश्य से गायब ही हो गई!
   बेटी के कहने पर विद्या सिन्हा ने अभिनय की दूसरी पारी खेलने का फैसला किया और शुरूआत टीवी से की। 'तमन्ना' उनका पहला सीरियल था। फिर बहूरानी, हम दो हैं ना, काव्यांजलि, भाभी और 'कुबूल है' जैसे कई सीरियलों में वे दिखाई दीं। उन्होंने सलमान खान की 'फिल्म बॉडीगार्ड' में भी काम किया। 'कुल्फी कुमार बाजेवाला' विद्या का आखिरी सीरियल था, जिसमें उन्होंने मां का रोल किया था। साधारण महिला के किरदार में फिट होने वाली विद्या चली भी बड़ी ख़ामोशी से गई! लेकिन, 'रजनीगंधा' की महक की तरह वे उनके प्रशंसकों के दिल से जल्दी बिदा नहीं होंगी!  
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