Saturday 3 August 2019

तू मेरा चाँद मैं मेरी चाँदनी...!


- एकता शर्मा 

  हिन्दी फ़िल्मों में 'चाँद' सबसे लोकप्रिय और दिलचस्प किरदार है। हमारे देश ने भले ही चाँद पर पहुँच के लिए यान भेज दिया हो, पर हमारे लिए चाँद आज भी भगवान है, जिसकी साल में दो-चार बार पूजा तक होती है। फिल्मी किरदारों से लेकर फ़िल्मों के शीर्षकों और गानों तक में चाँद बरसों से चमक रहा है! हिन्दी फ़िल्मों मे दिल के अलावा 'चाँद' ही ऐसा शब्द है जिसे गीतकारों ने भी सबसे ज्यादा बार सुरीले गीतों में पिरोया है। अधिकांश गीतों नें नायिका के चेहरे की तारीफ में कसीदे पढ़े हैं। ऐसे ही गीतों में ये चांद सा रोशन चेहरा, चौदहवीं का चांद हो, चांद सा मुखड़ा क्यों शरमाया और चांद छुपा बादल में जमकर लोकप्रिय हुए। चांद की एक खूबी यह भी है कि फिल्मकारों ने इसे एक रिश्ते या सीमा में बांधकर नहीं रखा। स्त्री पुरुष के भेद से भी इसे मुक्त रखा गया। इसीलिए तो नायिका की चांद से तुलना करते हुए नायक कहता है 'एक चांद आसमान पे एक मेरे पास है।' वहीं बहन अपने भाई को चांद की उपमा देते हुए गाती है 'मेरे भईया मेरे चंदा मेरे अनमोल रतन तेरे बदले मैं जमाने की कोई चीज न लूँ।' ऐसे में फिल्मी मां भी कहां पीछे रहने वाली हैं, वह भी अपने लाडले को दुलारते हुए गुनगुनाती है- 'चंदा है तू मेरा सूरज है तू।' 
   हिन्दी फिल्मी गीतों में चांद को प्रतीक तो कभी संबंध बनाने के लिए भी उपयोग में लाया गया है। कुछ बानगियां प्रस्तुत है तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी, चांद मेरा दिल चांदनी हो तुम!, कभी चांद को संबोधित करते हुए नायक और नायिका एक दूसरे को संदेश देते हैं चांद फिर निकला, मगर तुम ना आए, चांद छुपने से पहले चली जाऊंगी, ओ चांद जहाँ वो जाए। हिन्दी फ़िल्मों में शायद ही कोई नायक या नायिका हो, जिसने रूपहले पर्दे पर चांद को याद न किया हो। हिन्दी फिल्मों की त्रिमूर्ति देव-दिलीप-राज भी चांद की चर्चा किए बिना रह नहीं पाए! दरअसल, इन पर फिल्माए गए चंद्र गीत आज भी भूलाए नहीं भूलते। राजकपूर-नरगिस पर फिल्माए गए गीतों में 'उठा धीरे धीरे वो चांद प्यारा प्यारा, दम भर जो उधर मुँह फेरे ओ चंदा' और 'आजा सनम मधुर चांदनी में हम-तुम।' देव आनंद पर फिल्माए गए गीत खोया खोया चांद, धीरे धीरे चल चांद गगन में  और दिलीप कुमार पर फिल्माया गया 'आदमी' फिल्म का गीत 'एक चांद आसमान पर एक मेरे पास है' आज भी लोकप्रिय है। करण जौहर ने करवा चौथ के जरिए हिंदी फिल्मों जो चन्द्र अभियान आरंभ किया है, वह भी खासा लोकप्रिय और कमाऊ साबित हुआ! 
  हिन्दी फ़िल्मों में चांद को लेकर सभी सिचुएशन के गीतों को फिल्माए जाने की परम्परा रही है। खुशी का मौका हो तो चांद, बिरह की सिचुएशन हो तो चांद यानी हिन्दी सिनेमाघरों के लिए चांद, चांद नहीं अलादीन का चिराग बन गया है। ऐसे में गुलज़ार जैसे प्रयोगवादी गीतकार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता! उन्होंने चांद का अलग अंदाज में उपयोग करते हुए कभी कहा है चांद चुरा कर लाया हूं, चांद कटोरा लिए रात भिखारन आए रे ...  जैसे बेमिसाल शब्दों को अपना कर सभी को चौंकाया है।  
  फिल्म निर्माताओं ने चाँद को लेकर भी कई फिल्में बनाई, जो सफल भी रही! 'चांद' शीर्षक से बनी पहली फिल्म फिल्म 40 के दशक में आई थी, जो मुस्लिम संस्कृति पर आधारित थी। उसके बाद 'चांद' नाम से प्रदर्शित ज्यादातर फिल्मों में मुस्लिम समाज की कहानी दोहराई गईं! चाहे फिर वो गुरुदत्त की सुपरहिट फिल्म 'चौदहवीं का चांद हो' या सलमान खान की 'चांद का टुकड़ा' हो। चांद और इससे मिलते जुलते शीर्षकों पर बनी फिल्मों में चांद मेरे आजा, दूज का चांद, चांदनी, खोया खोया चांद, ट्रिप टू मून, चंदा और बिजली, ईद का चाँद प्रमुख हैं। हम भले ही चाँद को फतह कर लें, फिर भी हमारा चाँद से रिश्ता कभी ख़त्म नहीं होगा!
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