Sunday 28 January 2018

करणी विवाद ने 'पद्मावत' को बचा लिया!

- एकता शर्मा

संजय लीला भंसाली ने 'पद्मावत' बनाकर जो मुसीबत मोल ली है, उसने उन्हें कई सबक दे दिए। अब शायद वे खुद कोई और फिल्मकार इतिहास के साथ खिलवाड़ करने का साहस नहीं कर सकेगा! अब विवाद का विषय ये नहीं रह गया कि भंसाली सही हैं या राजपूतों का विरोध! क्योंकि, फिल्म भी रिलीज हो गई और राजपूतों ने विरोध भी दर्ज करवा दिया! लेकिन, रिलीज के बाद फिल्म को लेकर जो प्रतिक्रियाएं सामने आई, वो भंसाली की फिल्म निर्माण क्षमता पर ही सवाल उठाती हैं। क्योंकि, फिल्म भले ही रानी पद्मावती को ध्यान में रखकर बनाई हो, पर तीन घंटे की ये पूरी फिल्म क्रूर शासक अलाउद्दीन खिलजी के आसपास ही घूमती है। फिल्म में सबसे ज्यादा फुटेज भी खिलची के चरित्र को ही मिले हैं। रानी पद्मावती और चित्तौड़ के राजा रतनसिंह का प्रसंग तो फिल्म का एक हिस्सा बनकर रह गया! यदि इस फिल्म का विरोध न होता तो शायद ये फिल्म संजय लीला भंसाली की अब तक की सबसे बड़ी फ्लॉप साबित होती!

  फिल्म की कहानी बेहद कमजोर है और रफ्तार के मामले में भी फिल्म काफी सुस्त है। घटनाएं बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ती है। फिल्म के क्लाइमेक्स को ज्यादा लंबा खींच दिया गया। फिल्म को भव्य बनाने के मोह में भंसाली दर्शकों को पूरी तरह बाँधने में भी सफल नहीं हुए! फिल्म में महारानी पद्मावती की शान में खूब कसीदे गढ़े गए हैं। यदि करणी सेना के जवान फिल्म देखकर विरोध करने का सोचते तो शायद वे कुछ कर नहीं पाते! क्योंकि, ऐसी स्थिति में विरोध करने वाले भी साथ नहीं आते! फिल्म में विरोध करने जैसा कुछ है भी नहीं!
  इस फिल्म के विरोध में राजपूत क्यों सड़क पर आ गए, समझ नहीं आता! जबकि, वास्तव में फिल्म के खिलाफ मुसलमानों और ब्राह्मणों को आवाज उठाना थी! कारण कि फिल्म में ब्राह्मण कुलगुरु को विश्वासघाती, धोखेबाज और मतलबी दर्शाया गया। जबकि, अलाउद्दीन खिलजी को अय्याश, मक्कार और क्रूर दिखाया गया! राजपूतों की शान में तो कहीं गुस्ताखी नहीं हुई! खिलजी को इतना अय्याश बताया गया कि निकाह के लिए उसकी राह देखी जाती है, और वो किसी और के साथ अय्याशी करता रहता है। राजपूतों को इस बात पर विरोध है कि रानी पद्मावती और खिलची के बीच 'स्वप्न दृश्यों' में नजदीकी दिखाई गई! जबकि, फिल्म में दोनों का कहीं आमना-सामना तक नहीं होता! आईने में धुंधलेपन के बीच खिलची को पद्मावती की एक झलक मात्र दिखाई देती है। इसके अलावा पद्मावती तो कभी खिलची के ख्वाबों में भी नहीं आती!
  जयपुर के आमेर किले में फिल्म की शुरूआती शूटिंग पर हुए हमले के बाद भंसाली में जो भय समाया था, वो फिल्म के निर्माण पर भी साफ़ झलकता है। शायद इसीलिए फिल्म में राजपूती आन-बान-शान को कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ाकर दिखाने की कोशिश की गई। गर्दन कटने के बाद भी राजपूतों को युद्ध में लड़ते दिखाया गया हैं। राजपूती शान का बखान करने में गोरा सिंह और बादल के किरदारों को आगे किया गया। युद्ध में राजा रतनसिंह लहूलुहान हो जाते हैं। उनकी पीठ में कई तीर लग जाते हैं, लेकिन उनकी मौत तब होती है, जब वे सीना तानकर आसमान की तरफ देख रहे होते हैं। यानी यहाँ भी राजपूती शान का ध्यान रखा गया! जहाँ तक फिल्म में राजपूतों की बात है तो उन्हें खिलची से युद्ध जीतने की रणनीति बनाने की योजना बनाने के बजाए लफ्फाजी करते ज्यादा दर्शाया गया है। फिल्म में रानी पद्मावती को सुशील, युद्ध कला और युद्ध नीति की माहिर दर्शाया गया है। देखा जाए तो फिल्म का नाम रानी पद्मावती के नाम पर है! लेकिन, संजय लीला भंसाली नाम के साथ भी पूरी तरह न्याय नहीं कर सके। फिल्म का अंत संजय लीला भंसाली की ही फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' की याद जरूर दिलाता है। 'पद्मावत' में जौहर के लिए जाते वक़्त रानी पद्मावती (दीपिका पादुकोण) के चेहरे पर जो तेज और अंदाज दिखाई दिया, वही 'बाजीराव मस्तानी' में बेड़ियों में जकड़ी मस्तानी के चेहरे पर भी दिखाया गया है! 
  फिल्म में खिलजी के किरदार में रणबीर सिंह सब पर भारी हैं। अय्याश, मक्कार, और क्रूरता वाली इस भूमिका में रणबीर सिंह ने जोरदार काम किया है। कहा जाए तो पूरी फिल्म पर खिलजी ही है। राजा रतनसिंह के किरदार में शाहिद कपूर ने जान डालने की पूरी कोशिश की, फिर भी वे रणबीर सिंह के अलाउद्दीन खिलची के किरदार को पीछे नहीं छोड़ पाए। फिल्म को भव्य बनाने की कोशिश में भंसाली न तो प्रेम को सही तरीके से फिल्मा पाए और न खिलची और राजा रतन सिंह की दुश्मनी ही परवान चढ़ सकी। फिल्म पर डर भी हावी था। यही कारण था कि क्लाइमेक्स लम्बा होने के बावजूद अधूरा ही रह गया! ढेर सारी कमजोरियों के बाद भी 'पद्मावत' बॉक्स ऑफिस पर तो कमाल दिखाएगी ही! क्योंकि, फिल्म के विरोध ने उसे इतना ज्यादा प्रचारित कर दिया कि दर्शक तो चुम्बक की तरह खींचे चले आएंगे। 
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