Monday 21 March 2016

महिलाओं के कोमल ह्रदय में पनपते अपराधिक षड्यंत्र!


- एकता शर्मा 

  हाल ही में दो ऐसी घटनाएँ घटी, जिसने समाज को ये सोचने को मजबूर कर दिया है कि अपराधिक मानसिकता सिर्फ पुरुषों के दिमाग में ही नहीं पनपती, महिलाएं भी उससे मुक्त नहीं हैं। हाईप्रोफाइल सोसायटी में रहने वाली इंद्राणी मुखर्जी ने अपनी ही बेटी को साजिश रचकर मार डाला! ये षड़यंत्र इतना सोच समझकर रचा गया कि तीन साल तक किसी को कानो कान खबर नहीं लगी! हत्या क्यों की गई, ये सच अभी सामने आना बाकी है! दूसरी घटना गुजरात के अमरेली की है, जहाँ 17 साल की एक लड़की ने अपने बड़े भाई की गला रेतकर हत्या कर दी! क्योंकि, उसका भाई बहन के प्रेम प्रसंग में बाधा बन रहा था। बताते हैं कि लड़की को भाई के मर्डर करने का आईडिया एक टीवी शो से मिला! उसने भाई की हत्या के बाद उसे छुपाने का भी पूरा प्रयास किया!

  यही दो घटनाएँ ऐसी नहीं हैं, जिनमें महिलाओं की अपराधिक मानसिकता का पता चलता है। ऐसा अकसर देखा गया है। अपराध की दुनिया में तमाम तरह की ऐसी घटनाएं घटने लगी हैं, जिनमें महिलाएं शामिल होती हैं। महिलाएं भी वैसी ही अपराधिक घटनाओं को अंजाम देने लगी हैं, जैसे कोई दूसरा अपराधी देता है। समाज में महिलाओं को लेकर सोच है कि वे गलत काम नहीं कर सकतीं! क्रूरता नहीं कर सकतीं और अपराधों में साझेदारी नहीं कर सकतीं! लेकिन, पुलिस का मानना है कि ‘महिलाएं अगर ठान लें, तो वे हर तरह के अपराध में शामिल हो सकती हैं। किन्तु, महिला अपराधियों से सच्चाई कुबूल करवा पाना पुरुष अपराधियों के मुकाबले ज्यादा कठिन होता है। वे मार्मिक बातों और आंसुओं से जांच की दिशा को भटकाने की कोशिश करती हैं। इसके अलावा महिलाओं के प्रति समाज में जो सोच है, उसका भी वे लाभ लेने की कोशिश करती हैं।’
   समाज में अब इस धारणा का कोई ठोस आधार नहीं रहा कि महिलाओं का ह्रदय कोमल होता है, इसलिए वे क्रूरता नहीं कर सकती! जिस तरह से समाज की सोच और नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है, उसका महिलाओं के सोच पर भी असर पड़ा है। महिलाएं जब तरक्की की राह में आगे बढ़ रही हैं, तो समाज की बुराइयां भी उनमें आने लगी हैं! वे पहले की तरह संवेदनशील सोच से बाहर निकल रही हैं। वे वैसे ही अपराध भी कर रही हैं, जैसे कोई पुरुष करता है। दरअसल, अपराध करने वाले इंसान की सोच एक जैसी ही होती है फिर वो पुरुष हो या महिला! आज का समाज पुरुष प्रधान है। यहाँ महिलाओं द्वारा किए गए अपराध को अलग नजर से देखा जाता है। उसकी सोच की भी कुछ अलग ही आलोचना होती है। महिला अपराधी की आलोचना करते समय उसके घर, परिवार और बच्चों को भी शामिल कर लिया जाता है।
   महिला अपराधों को गंभीरता से समझने वाली एक वकील का निष्कर्ष है कि कई बार तो अपराध का ग्लैमर भी महिलाओं को लुभाता है! इसके अलावा अब महिलाओं की जरूरतें बढ़ गई हैं। चोरी, लूट और धोखाधड़ी जैसे अपराधों में तो ज्यादातर महिलाएं पुरुषों की सोहबत में ही आती हैं। महिलाओं की कोमल छवि का लाभ उठाने के लिए पुरुष अपराधी उन्हें आगे कर देते हैं, जिससे काम करना सरल हो जाए! शुरुआत में महिलाएं लालच में ऐसे काम करने लगती हैं! लेकिन, अपराध की दलदल में फंसने के बाद वे इससे दूर नहीं जा पाती! ऐसे कई मामले देखे गए हैं, जहाँ महिलाएं शातिर अपराधियों की तिकड़म का शिकार हो जाती हैं। उनको जबरन अपराध में फंसा दिया जाता है। लेकिन, महिलाओं में बढ़ती अपराधिक सोच हमारे समाज के लिए एक बड़ा खतरा भी है। महिलाओं के अपराध में शामिल होने का सबसे ज्यादा असर उसके बच्चों पर पड़ता है। वे घर, गली, मुहल्ले से लेकर स्कूल तक में अकेले पड़ जाते हैं।
  इंद्राणी मुखर्जी और अपने भाई  हत्यारी बहन की तरह अपराध करने से पहले हर महिला को लगता है कि वो अपराध करके बच जाएगी! लेकिन, पुलिस जांच की गंभीरता से अब ऐसा नहीं रहा! पुलिस जांच से लेकर मीडिया रिपोर्ट तक में महिला अपराधी होने पर मामला रोचक बढ़ जाता है। एक कारण ये भी है कि महिला अपराधी के शामिल होने से मीडिया का रुख भी अलग हो जाता है। घटना को ख़ास दर्जा मिल जाता है। कारण पुलिस पर भी दबाव पड़ता है और उसे पड़ताल जल्द करनी होती है।
  देश की कानून व्यवस्था ऐसी है, जिसमें न्याय देर से होता है। ऐसे में अगर महिला अपराध से मुक्त भी हो जाए तो भी उसके खोए हुए सम्मान को वापस नहीं लौटाया जा सकता है। मीडिया में भी उन खबरों को जगह कम ही दी जाती है, जिनमें महिला अपराध से मुक्त हो जाती हैं! ऐसे में समाज को वास्तविकता का पता ही नहीं चल पाता! इसलिए जरुरी है कि महिलाएं अपराध से खुद को अलग रखे! थोड़े से लालच में किसी के बहकावे और षडयंत्र में शामिल नहीं हो! महिलाओं के अपराध में शामिल होने से केवल उनका भविष्य ही खराब नहीं होता, उनके घर, परिवार और बच्चों का भविष्य भी प्रभावित होता है।
(लेखक वकील, पत्रकार और महिला अधिकारों की जानकार है।)
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