Wednesday 23 March 2016

रंगों से सराबोर रहा है हिंदी फिल्मों परदा!


- एकता शर्मा 
       होली महज एक शब्द नहीं है! ये प्रतीक है रंगों का! बदलती दुनिया में बहुत कुछ बदला है, लेकिन होली के रंग नहीं बदले! कुछ ऐसा ही है फिल्मों के साथ भी हुआ! दशक बदले, दौर बदला, दर्शक बदले पर होली की उमंग वैसी ही कायम रही! जीवन में त्यौहारों की अहमियत कम हो रही है! क्योंकि, लोगों के पास अब त्यौहार मनाने वक़्त ही नहीं बचा! होली को लेकर भी अब वो उत्साह और उमंग कहीं नजर नहीं आती जो 20-25 साल पहले थी! कहा जाता है कि हमारी फिल्में भी समाज के बदलते नजरिए से प्रभावित होती है! यही कारण है कि अब फिल्मों में भी होली करीब-करीब नदारद हो गई! एक वक़्त ऐसा भी था जब फिल्मों में होली  और गीत भरे रहते थे, आज वो सब नहीं बचा! याद भी करें तो इक्का-दुक्का फ़िल्में ही होंगी, जिनमें पिछले कुछ सालों में होली नजर आई है।    

  हिंदी फिल्मों में होली दृश्यों की शुरूआत 1940 में सरदार अख्तर व कन्हैयालाल अभिनीत फिल्म 'औरत' को माना जाता है। यह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म थी! जिसमें संगीत अनिल विश्वास ने दिया था। 1944 में आई दिलीप कुमार की फिल्म 'ज्वार भाटा' में भी जमकर होली मनी थी! इस फिल्म में होली के दृश्यों ने तो मानों इतिहास ही रच दिया था। इसके बाद तो वी शांताराम, जे ओमप्रकाश, रमेश सिप्पी, यश चोपड़ा समेत कई निर्देशकों ने होली को कथानक के मुताबिक नए-नए संदर्भों में उपयोग किया! दिलीप कुमार ने 1052 में आई 'आन' में निम्मी के साथ भी होली खेली! राजेश खन्ना और आशा पारेख की 1970 में आई 'कटी पतंग' के गीत आज ना छोडेंगे बस हम जोली खेलेंगे हम होली को भी दर्शक आजतक नहीं भूले हैं।     महबूब ख़ान की 'मदर इंडिया' में सुनील दत्त, नरगिस, राजकुमार, हीरालाल और अन्य कलाकारों के साथ फ़िल्माया गया होली गीत 'होली आई रे कन्‍हाई रंग छलके सुना दे बाँसुरी!' वी शांताराम की 'नवरंग' में होली का एक शानदार गीत था 'जा रे नटखट ना खोल मेरा घूंघट पलट के दूँगी तुझे गाली रे, मोहे समझो ना तुम भोली भाली रे!' 'कोहिनूर' में दिलीप कुमार और मीना कुमारी ने जब 'तन रंग लो जी आज मन रंग लो' गाया तो लगा होली को एक नई परिभाषा मिली! 'शोले' का गीत 'होली के दिन दिल खिल जाते हैं, रंगों में रंग मिल जाते हैं' जैसे गाने आज भी पसंद किए जाते हैं। यश चोपड़ा ने दर्शकों को तीन यादगार होलियों से रूबरू करवाया! 'सिलसिला' की 'रंग बरसे भीगे चुनरवाली' उसके बाद आई 'मशाल' की होली जिसमें दिलीप कुमार गाते हैं 'यही दिन था यही मौसम जवाँ जब हमने खेली थी!' अनिल कपूर वाली पंक्ति है 'अरे क्या चक्कर है भाई देखो होली आई रे, ये लड़की है या काली माई देखो होली आई रे!' यशराज की तीसरी होली मनी 'डर' में! जिसमें शाहरूख़ ख़ान ढोल बजाते हुए होली समारोह में बिन बुलाए चले आते हैं गाने के बोल थे 'अंग से अंग लगाना पिया हमें ऐसे रंग लगाना!' 'आखिर क्यों' में राकेश रोशन भी होली खेलते नज़र आए थे! बोल थे 'सात रंग में खेल रही हैं दिलवालों की होली रे!' 'बागबान' का ये गीत भी काफी लोकप्रिय हुआ था 'होली खेलें रघुबीरा अवध में होली खेलें रघुबीरा।'
   फिल्मों में होली सिर्फ गीतों तक ही सीमित नहीं रही! कथानक में भी होली का त्यौहार अपनी ख़ास जगह रखता था! 'शोले' में गब्बर सिंह का संवाद 'होली कब है, कब है होली? आज भी सबको याद है! कामचोर, फागुन, आप की कसम, सिलसिला और कोहिनूर जैसी फिल्मों में भी रंगों का ये त्यौहार खूब नजर आया! अमिताभ बच्चन रेखा और जया बच्चन की फिल्म 'सिलसिला' में भी होली के गीत से फिल्म की कहानी धूमती है। अमिताभ की आवाज में इस फिल्म का गीत रंग बरसे भीगे चुनरवाली आज भी सुनाई दे जाता है। मशाल, दयावान, नदिया के पार मोहब्बतें, दामिनी, मंगलपांडे और बागबान जैसी फिल्मों में भी होली का रंग देखने को मिला! 
  आज के निर्माता-निर्देशकों ने फिल्मों में होली के गीतों को भुला सा दिया है! एक जमाना था जब होली के गीत फिल्मों में रखे ही जाते थे! इन दिनों न इस तरह की फिल्में बन रही हैं और न होली आधारित गीत लिखे जा रहे हैं। हिन्दी फिल्मों में होली पर आधारित गीतों की शुरुआत 50 के दशक से मानी जाती है। उस दौर में रंगों के इस त्यौहार पर कई फिल्में बनी! होली के रचे गए! ये गीत आज भी उतने ही जिन्दा हैं, जितने उस वक़्त थे! आज याद भी किया जाए तो शायद कोई फिल्म याद नहीं आएगी, जिसमें होली गीत हो! 
(लेखिका ने 'हिंदी फिल्मों के 100 साल'पर शोध कार्य किया है)

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