Monday 21 March 2016

'लैंगिक समानता' हमारा सबसे बड़ा लक्ष्य



ये हैं संयुक्त राष्ट्र के '17 ग्लोबल गोल्स' 

   गरीबी हटाना, भुखमरी दूर करना, अच्छा स्वास्थ्य और खुशहाली, एक समान शिक्षा, लैंगिक समानता, स्वच्छ पानी और सफाई, सामर्थ्य के अनुसार ऊर्जा, उपयुक्त कार्य और आर्थिक विकास, उद्योग-खोज-संरचना, असमानता दूर करना, स्थाई शहर और समाज, उत्तरदायी सेवन और उत्पादन, मौसम का अमल, जल में जीवन, पृथ्वी पर जीवन, शांति-न्याय और महत्वपूर्ण संस्थान, लक्ष्य  जुड़ाओ!
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- एकता शर्मा  
   आने वाले सालों में दुनिया के सामने कौनसी चुनौतियाँ होंगी और उनका मुकाबला कैसे किया जाएगा! इस मकसद को लेकर संयुक्त राष्ट्र से जुड़े देशों ने अगले 15 सालों के लिए अपने कुछ लक्ष्य निर्धारित किए हैं। ये वो 17 चुनौतियाँ हैं, जिनसे पूरी दुनिया को जूझना है और एक ऐसे समाज की रचना करना है, जिसमें सभी सुखी हों और कोई अभाव न हो! संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव तैयार किया है जिसका नाम है '2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेव्लपमेंट' जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्वीकृति के लिए पटल पर रखा। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत दुनियाभर के 100 देशों के वैश्विक नेता मौजूद रहे।

   दुनियाभर के उद्योगपति, दिग्गज हस्तियाँ, नामी कंपनियाँ और समाजसेवी संगठन भी संयुक्त राष्ट्र के '17 ग्लोबल गोल्स कैम्पेन' से जुड़ी हैं। इस 'ग्लोबल गोल्स कैम्पेन' की शुरुआत फिल्मकार रिचर्ड कर्टिस ने की थी! वे चाहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र इन 17 कार्यक्रमों को लोकप्रियता दिला सकें और इन्हें दुनियाभर में लागू करने की पहल कर सकें। संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल बेन की-मून ने भी अपने संदेश में कहा है कि हर देश के नागरिक को इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहिए! माना जा रहा है कि आने वाले 15 सालों में वैश्विक मुहिमों की रूपरेखा इसी से तय होना है। दुनियाभर के कई नामी सितारे सात दिन तक सात अरब धरतीवासियों को प्रेरणा देंगे कि 'अब समय आ गया है दुनिया बदली जाए।'
  'सस्टेनेबल डेव्लपमेंट' को समर्पित इस ‘ग्लोबल कैम्पेन’ का मकसद है दुनिया में व्याप्त घोर असमानताओं को मिटाने, गरीबी-दरिद्रता को खत्म करने तथा पर्यावरण बदलाव जैसे समस्याओं से लड़ने के लिए लगातार मापदंड तय करते रहना। ताकि, आज की जरूरतों को इस तरह पूरा कर सके कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी जरूरतें पूरी करने के लाले न पड़े! संयुक्तराष्ट्र का मकसद है कि इस मुहिम से आम आदमी भी जुड़े और पूरी दुनिया को बेहतर भविष्य देने के लिए जागरूक बने। इस मुहिम से जिन हस्तियों ने खुद को जोड़ा गया है वे हैं अक्षय कुमार, रितिक, रहमान, हॉलीवुड एक्टर ऐशटन कुचर, जेनिफर लॉरेंस, शांतिदूत लैंग लैंग, यूसुफजई मलाला इत्यादि। इंडियन सुपर लीग्स के चेन्नई-इन, एफ़सी और एफ़सी-पुणे सिटी जैसे संगठन और ई-बे इंडिया, रिलायंस समूह, सीआईआई भी इससे जुड़े हुए हैं।
'लैंगिक समानता' सबसे बड़ा मुद्दा
  संयुक्त राष्ट्रसंघ के 17 कार्यक्रमों के इस ग्लोबल कैम्पेन में भारत के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण हैं नंबर 5 का मिशन 'लैंगिक समानता।' विश्व आर्थिक मंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक लैंगिक समानता सूचकांक में भारत का स्थान पिछले कुछ सालों में काफी नीचे गिर गया है! भारत गिरकर 113वें स्थान पर पहुंच गया! वर्ष 2006 के लैंगिक समानता सूचकांक में भारत 115 देशों में से 98वें स्थान पर था। इस सूचकांक में आइसलैंड पहले स्थान पर है, जिसके बाद नॉर्वे, फ़िनलैंड और स्वीडन है। सूचकांक में यमन सबसे नीचे है। जहां तक पड़ोसी देश पाकिस्तान और नेपाल की बात है, तो वो नीचे से तीसरे व दसवें स्थान पर हैं। विश्व आर्थिक मंच यानि 'वर्ल्ड इकॉनॉमिक फ़ोरम' का सूचकांक देशों की उस क्षमता को मापता है कि उसने पुरुषों और महिलाओं को बराबर संसाधन और अवसर देने के लिए कितना प्रयास किया।
   इस सूचकांक को चार श्रेणियों में बांटा गया है आर्थिक भागीदारी और अवसर, शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनीतिक सशक्तिकरण इन चारों श्रेणियों में से केवल अंतिम श्रेणी में भारत की थोड़ी सकारात्मक तस्वीर उभरकर आई है, वो है राजनीतिक सशक्तिकरण। इस क्षेत्र के मामले में भारत को 20 सबसे अच्छे देशों में से 19वें स्थान पर रखा गया है। लेकिन, बाकी सभी श्रेणियों में भारत की तस्वीर निराशाजनक ही है। रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव, आर्थिक भागीदारी में बढ़ता अंतर भारत के विकास के आड़े आ सकता है। ब्राज़ील, रूस, चीन और भारत यानी ब्रिक्स समूह के देशों में भी देखा जाए, तो भारत इन तीनों देशों के मुक़ाबले सूचकांक में सबसे नीचे है। 'लैंगिक समानता' का सीधा संबंध बढ़ती हुई आर्थिक प्रतिस्पर्धा से है! विश्व का ध्यान ज़्यादा से ज़्यादा नौकरियों के अवसर पैदा करने पर है, और ऐसे में लैंगिक समानता एक अहम मुद्दा है।' वैश्विक स्थिति की बात की जाए तो रिपोर्ट में कहा गया है कि 85 प्रतिशत देशों ने पिछले छह सालों में लिंग समानता अनुपात में सुधार किया है! लेकिन, बाकी 15 प्रतिशत देशों में स्थिति और ख़राब हुई है। अफ्रीका और उत्तरी अमरीका में ख़ासतौर पर पिछले छह सालों में स्थिति लगातार ख़राब हुई है।
   भारत ने संयुक्त राष्ट्र से कहा है कि लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य हांसिल करने के लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) उपकरणों का इस्तेमाल अहम साबित होगा! इससे डिजिटल उपकरणों के इस्तेमाल के क्षेत्र में अंतर पाटने में भी मदद मिलेगी! 21वीं सदी की मौजूदा और उभरती चुनौतियों से पार पाने में सभी महिलाओं, लडकियों, पुरुषों और लडकों की समान भागीदारी को प्रोत्साहित करना विकास की प्रक्रिया की कुंजी है। कमीशन ऑफ द स्टेटस ऑफ विमेन' के 59वें सत्र के मुताबिक भी 'लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तिकरण के लक्ष्यों को हांसिल करने में आईसीटी उपकरणों का इस्तेमाल अहम भूमिका निभा सकता है।
   'लैंगिक समानता' के पैमाने पर भारत तो बांग्लादेश से भी पीछे है। हम रोज महिलाओं को बराबरी का हक देने की बात करते हैं! जबकि, सच्चाई यह है कि देश की 60 फीसदी लड़कियां सिर्फ इसलिए स्कूल जाना छोड़ देती हैं, क्योंकि वहां टॉयलेट नहीं होता! 'ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स' से जुड़ी एक रिपोर्ट के अनुसार छोटी-छोटी बच्च‍ियां सिर्फ इसलिए स्कूल जाना छोड़ देती हैं, या फिर उनके माता-पिता स्कूल भेजना बंद कर देते हैं, क्योंकि स्कूल में शौचालय नहीं है। कहीं शौचालय हैं, तो दरवाजा नहीं है। दरवाजा है, तो साफ़-सफाई नहीं है। ऐसी लड़कियों का आंकड़ा 60 फीसदी है। अब अगर एश‍िया प्रशांत (एपीएसी) की रिपोर्ट पर गौर करें तो लैंगिक समानता में भारत बांग्लादेश और श्रीलंका से पीछे है। 'मास्टरकार्ड' के एक सर्वे के अनुसार भारत 44.2 अंकों के साथ आख‍िरी पायदान पर रहा। वहीं बांग्लादेश 44.6 और श्रीलंका 46.2 अंकों से थोड़ा ऊपर।
  लैंगिक समानता के क्षेत्र में स्थायी विकास लक्ष्य हांसिल करना, राजनीतिक इच्छाशक्ति और संसाधनों का इस्तेमाल, लैंगिक परिप्रेक्ष्य वाले विकास एजेंडे के वास्तविक समावेशी, न्यायसंगत लक्ष्यों को पाने में अहम होगा। विकास के लिए कार्यक्रमों, कानूनों और नीतियों के निर्माण में लैंगिक परिप्रेक्ष्य को मुख्य रूप से ध्यान में रखना भारत सरकार की प्राथमिकता है। उन्होंने छोटी बचत को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू की गई जमा योजना 'सुकन्या समृद्धि योजना' और महिला उद्यमियों की मदद के लिए स्थापित किए गए देश के पहले 'महिला बैंक' का उदाहरण दिया। घटते लैंगिक अनुपात की समस्या से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रव्यापी बहुक्षेत्रीय पहल 'बेटी बचाओ, बेटी पढाओ' आरंभ की गई है।
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