Thursday 15 September 2016

ऋगवेद और पारितोष की सुनने वाला कोई है क्या?

- एकता शर्मा 

  जिस बस्ते में बच्चा अपनी कॉपी-किताबें लेकर जाता है, उसका वज़न उसकी सेहत और शारीरिक विकास पर ख़राब असर डाल रहा है। एक सर्वे के मुताबिक बच्चों के स्कूल बैग का औसत वज़न 8 किलो होता है! औसतन साल में 200 दिन तक स्कूल खुलते हैं। स्कूल जाने और स्कूल से वापस आने के दौरान, जो वज़न आपका बच्चा अपने कंधों पर उठाता है। अगर उसे आधार माना जाए तो बच्चा सालभर में 3200 किलो का वज़न उठाता है। अच्छे नंबर लाने का दबाव और भारी भरकम कॉपी किताबों के बोझ से बचपन दब रहा है। लेकिन, कोई इसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाता! ब्रिटेन ही अकेला देश है, जहाँ स्कूल बैग का औसत वजन (12 किलो) भारतीय बच्चों के स्कूल बैग से ज्यादा है। 

  महाराष्ट्र के चंद्रपुर में स्कूल जाने वाले 2 बच्चों ने स्कूल बेग के भारी वज़न के खिलाफ आवाज़ उठाई! इन बच्चों ने एक प्रेस कांफ्रेंस करके बताया कि कैसे स्कूल जाने वाले बच्चे अपनी क्षमता से ज्यादा वज़न को उठाने पर मजबूर हैं। सातवीं में पढ़ने वाले इन दो बच्चों के नाम हैं ऋगवेद और पारितोष ने कहा कि उन्हें रोज़ अपने स्कूल बैग में 19 कॉपियां और किताबें ले जानी होती हैं। हर पीरियड के हिसाब से कॉपी और किताब रखना जरुरी है। इसके अलावा भी कुछ किताबें स्कूल बैग में रखनी ही पड़ती है। लंच बॉक्स और पानी की बॉटल वज़न भी जोड़ लें, तो एक स्कूल बैग का वज़न 11 किलो से ज्यादा हो जाता है। ये पहली बार है कि स्कूल जाने वाले बच्चो ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके स्कूल बैग के वज़न के खिलाफ आवाज़ उठाई! 
  बच्चा भले ही ठीक से खाता पीता हो, अच्छी नींद लेता हो और अन्य बच्चों की तरह चहकता रहता हो! लेकिन, रोजाना स्कूली बस्ते का बोझ उसकी सेहत के लिए समस्या खड़ी कर सकता है। स्कूली बस्ते का उसकी सेहत पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। बच्चा अपनी पीठ पर असामान्य बोझ ढो रहा हो, तो उसे कमरदर्द, रीढ़ की विकृति या गरदन के पास खिंचाव जैसी तकलीफें हो सकती हैं। स्कूली बच्चे और्थोपैडिक समस्याओं की चपेट में आ रहे हैं और डाक्टर पीठ या कमरदर्द से पीडि़तों के आयुवर्ग में जबरदस्त बदलाव के गवाह बन रहे हैं। सेहत संबंधी परेशानियों के कई ऐसे खतरे हैं, जिनसे बच्चे का वास्ता पड़ सकता है। 
  30 साल वर्ष पहले 1986 में जानेमाने लेखक आरके नारायण ने राज्यसभा में स्कूल बैग के ज्यादा वज़न पर बोलते हुए कहा था कि जब भी वो किसी बच्चे को भारी भरकम स्कूल बैग लटकाए हुए स्कूल जाते हुए देखते हैं तो उनका दिल दुखता है। नारायण ने कहा था कि इस वज़न से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास नहीं होता! बल्कि, ये वज़न उन्हें कूबड़ा बना देता है। स्कूल बैग के वज़न को लेकर जिस दुख का इज़हार आरके नारायण ने 30 साल पहले किया था। उसमें आज भी कोई अंतर नहीं आया। यशपाल समिति ने भी काफी पहले सुझाव दिया था कि बस्ते का बोझ कम किया जाए। लेकिन न तो निजी स्कूलों को यह सलाह अच्छी लगी, न सरकार ने इसे गंभीरता से लिया। अधिकांश शहरों में बच्चों को अपने वजन का 35% या उससे अधिक बस्ता ढोते देखा गया। इस सिलसिले में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत में महाराष्ट्र सरकार ने सफाई दी कि बच्चों को भारी बस्ता ढोने की मज़बूरी से छुटकारा दिलाने के लिए स्कूलों में लॉकर बनाने पर विचार किया जा रहा है। 
  'चिल्ड्रन स्कूल बैग एक्ट 2006' के अनुसार स्कूल जाने वाले किसी भी छात्र के बैग का अधिकतम वज़न उसके शरीर के भार का 10 प्रतिशत होना चाहिए। एक्ट में ये भी कहा गया है कि स्कूलों को चाहिए कि वो छात्रों को स्कूल में ही लॉकर की सुविधा दें। 2012 में 'एसोचैम' ने भी देश के 5 से 12 साल की आयु के 2 हज़ार बच्चों पर एक सर्वे किया था! सर्वे में पाया गया कि 82 प्रतिशत बच्चे अपने वज़न के 35 प्रतिशत के बराबर वज़न वाला स्कूल बैग ढोते हैं। सर्वे में 1500 बच्चों ने माना था कि उनकी कमर में दर्द होता है! वो बिना सहारे ठीक से बैठ भी नहीं पाते! 2015 में महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट में दाखिल एक रिपोर्ट में माना था कि 10 वर्ष तक के 58 प्रतिशत बच्चे हड्डियों से जुड़े दर्द की वजह से परेशान हैं। इस समस्या के लिए भारी स्कूल बैग को ही ज़िम्मेदार माना गया था। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पास भी कुछ आंकड़े हैं! मौजूद आंकड़ों के अनुसार हरियाणा के बच्चे सबसे वजनी स्कूली बैग ढोते हैं! फिर, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान के स्कूली बैग का नंबर आता है। यही स्थिति सरकारी स्कूलों की है। देश के अधिकतर निजी स्कूलों में तो बच्चों को 8 से 10 किलो या इससे भी अधिक वजन के बस्ते के साथ स्कूल जाना पड़ता है। राज्यवार स्कूली बस्ते के वजन में भी अंतर है। जैसे गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में दूसरे राज्यों के मुकाबले स्कूली बच्चों को कम कॉपी-किताबें ढोनी पड़ती हैं!
    ज्यादातर देशों के बच्चे भारतीय बच्चों के मुकाबले कम वज़न वाले स्कूल बैग उठाते हैं। अमेरिका में स्कूल बैग का औसत वज़न करीब 5.7 किलोग्राम है। ब्रिटेन में जरूर स्कूल जाने वाले बच्चों के बैग का भारतीय स्कूल बैग के वज़न ज्यादा होता है। यहाँ औसत वज़न 12 किलोग्राम है। लेकिन, इन बच्चों के बैग में टैबलेट और लैपटॉप जैसे उपकरण होने से स्कूल बैग का वज़न बढ़ जाता है। ईरान में औसत वज़न 4.6 किलोग्राम है। फिनलैंड में 8 साल की उम्र तक के स्कूल जाने वाले बच्चे औसतन 4.5 किलो वज़न उठाते हैं। फ्रांस में स्कूल जाने वाले बच्चों के बस्ते काफी हल्के होते हैं। फ्रांस में बच्चों को औसतन 2 किलो 600 ग्राम वज़न ही उठाना पड़ता है।
  अगर बच्चा भारी स्कूल बैग से परेशान हैं, तो पालक इसकी शिकायत कर सकते हैं? 'नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स' को कॉल करके भी शिकायत दर्ज कराई जा सकती हैं। 'इबलिदान डॉट निक डॉट निक' पर भी भारी स्कूल बैग के मुद्दे पर ऑनलाइन शिकायत हो सकती हैं। सीबीएससी के हेल्प लाइन नंबर पर फोन करके भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। अगर आपके बच्चे को भी भारी स्कूल बैग उठाने पर मजबूर किया जाता है तो संबंधित जिले के शिक्षा अधिकारी से भी शिकायत की जा सकती है।  
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