Tuesday 13 September 2016

कामकाजी महिलाओं की भागीदारी में हम बहुत पीछे!

'एसोचैम' की रिपोर्ट ने पोल खोली 

- एकता शर्मा 

  सरकार कामकाज में महिलाओं  भागीदारी बढ़ाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है! लेकिन, जो तथ्य सामने आए हैं, वे सरकार की कोशिशों को सही नहीं ठहरा रहे! तथ्य बताते हैं कि कामकाजी महिलाओं की भागीदारी के मामले में भारत अन्य देशों से बहुत पीछे है। 'एसोचैम' और 'थॉट आर्बिट्रेज रिसर्च' द्वारा संयुक्त रूप से कराए गए सर्वे रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ! भारत सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, सेल्फी विद डॉटर, मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप जैसे कार्यक्रमों के जरिए महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दे रही है। लेकिन, एसोचैम की ये स्टडी चौंकाने वाली है!
  'महिला श्रम बल भागीदारी' पिछले एक दशक में 10 फीसदी घटकर निचले स्तर पर पहुंच गई! इस रिसर्च स्टडी के मुताबिक 2000-05 में कार्यशील महिलाओं की भागीदारी 34 प्रतिशत से बढ़कर 37 फीसदी तक पहुंची थी! जो साल 2014 तक लगातार गिरते हुए 27 फीसदी पर आ गई! देश में महिला श्रम बल भागीदारी (एफएलएफपी) दर एक दशक में 10 फीसदी कम हुई है। 'वर्ल्ड बैंक' के आंकड़ों के मुताबिक भी महिला भागीदारी के मामले में भारत 186 देशों में 170वें पायदान पर है। ब्रिक्स देशों में भी भारत 27 फीसदी के साथ आखिरी पायदान पर है। जबकि, महिला श्रम बल भागीदारी के मामले में चीन में 64 फीसदी के साथ पहले पायदान पर है। इसके बाद ब्राजील में 59 फीसदी, रूस में 57 फीसदी, दक्षिण अफ्रीका में 45 फीसदी और आखिर में भारत 27 फीसदी पर है। साल 2011 में ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष और महिला श्रम बल भागीदारी का फासला जहां करीब 30 फीसदी रहा, वहीं शहरी क्षेत्रों में यह करीब 40 फीसदी रहा!
    महिलाओं के सशक्तीकरण की चाहें कितनी ही बातें की जाएं लेकिन महिलाएं न सिर्फ पुरुषों के मुकाबले रोजगार के मामले में पीछे हैं बल्कि वेतनमान में भी भेदभाव की शिकार हैं। श्रम बाजार में महिलाओं को शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों में कम दर पर पारिश्रमिक मिलता है। नौकरीपेशा महिलाओं के लिए भारत में अनुकूल परिस्थितियां एक अपरिहार्य जरूरत है। लेकिन, भारत में जिस तरह से कई दूसरे क्षेत्रों में भी महिलाएं भेदभाव की शिकार हैं, उसे देखते हुए यह जल्द होना संभव नहीं लगता!
   मुद्दा ये है कि क्या कारण है कि सरकार की तमाम कोशिशों और कार्यक्रमों के बावजूद महिलाओं की श्रम बल भागीदारी लगातार घट रही है? 'एसोचैम' के सुझावों के मुताबिक श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए विशेष स्किल डेवलप ट्रेनिंग, छोटे शहरों में रोजगार के अवसर, बच्चों और बुजुर्गों की देखरेख के लिए केयर सेंटर, सुरक्षित वर्क एनवायरमेंट, सुरक्षित शहर-सड़क, महिला ओरिएटेंड बैंक, ओनली वुमेन पुलिस स्टेशन जैसे महत्वपूर्ण कदम सरकार को उठाने होंगे। वहीं कामकाजी महिलाओं की मानें तो समाज को महिलाओं के प्रति सोच और नजरिया बदलना होगा! सामाजिक बंदिशों में जकड़ने की बजाए उन्हें जब तक सुरक्षित माहौल नहीं मिलेगा, इस अंतर को कम करना संभव नहीं होगा! 'वुमेन एक्टिविस्ट' भी इस रिपोर्ट को चिंताजनक मानते हैं। 'यूएन इकनॉमिक एंड सोशल कमीशन फॉर एशिया एंड द पैसेफिक' के मुताबिक एफएलएफपी दर में 10 फीसदी बढ़ोतरी से जीडीपी में 0.3 फीसदी वृद्धि हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि सरकार देश में महिलाओं का श्रम बल अनुपात बढ़ाने के लिए नीतियां और कार्यक्रम को गंभीरता से लागू करें!
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