Tuesday 5 December 2017

स्क्रीन पर रोमांस का आइकॉन नहीं रहा

स्मृति शेष : शशि कपूर

- एकता शर्मा
 'शशि' का मतलब होता है चाँद! जब चाँद दिखाई नहीं देता तो रात अँधियारी हो जाती है। कुछ ऐसा ही अहसास शशि कपूर के न रहने से हो रहा है। सत्तर और अस्सी के दशक में उन्हें बड़े पर्दे पर रोमांस के आयकन के तौर पर देखा जाता था। पृथ्वीराज कपूर के तीसरे बेटे बलबीर राजकपूर यानि शशि कपूर का निधन हो गया! वे 79 साल के थे। शशि कपूर की स्कूली पढाई मुम्बई के 'डॉन बास्को स्कूल में हुई। स्कूल में भी वे नाटकों में काम करना चाहते थे, लेकिन कभी रोल पाने में कामयाब नहीं हुए! उनकी यह तमन्ना पूरी हुई, अपने पिता के पृथ्वी थिएटर में! उन्होंने 1940 के दशक में ही फिल्मो में काम करना शूरू कर दिया था। शशि कपूर ने बचपन में कई धार्मिक फिल्मों में बाल कलाकार के भूमिकाएं निभाई! पिता पृथ्वीराज उन्हें स्कूल की छुट्टियों के दौरान स्टेज पर अभिनय करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। इसके बाद बड़े भाई राज कपूर ने उन्हें 'आग' (1948) और 'आवारा' (1951) में रोल दिए। 'आवारा' में उन्होंने राजकपूर के बचपन का रोल किया था। 1958 में शशि कपूर ने जेनिफर केंडल से शादी की। उनकी तीन संताने हुई पुत्र कुणाल कपूर और करन कपूर तथा पुत्री संजना कपूर। 
  शशि कपूर ने बतौर हीरो सिने करियर की शुरुआत 1961 में यश चोपड़ा की फिल्म 'धर्मपुत्र' से की थी। उन्हें विमल राय की फिल्म 'प्रेम पत्र' में भी काम करने का मौका मिला। लेकिन, ये दोनों ही फ़िल्में चली नहीं! उन्होंने 'मेहंदी लगी मेरे हाथ' और 'हॉलिडे इन बॉम्बे' में काम किया, लेकिन ये भी बॉक्स ऑफिस पर नकार दी गई। 1965 का साल उनके लिए कामयाबी लाया औरउनकी फिल्म 'जब जब फूल खिले' प्रदर्शित हुई। बेहतरीन गीत, संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की जबरदस्त कामयाबी ने शशि कपूर को हीरो के रूप में स्थापित कर दिया। 1965 में शशि कपूर की फिल्म 'वक्त' रिलीज़ हुई, जो अच्छी चली। इनकी सफलता से उनकी छवि रोमांटिक हीरो की बन गई। 1965 से 1976 के बीच कामयाबी के सुनहरे दौर में उन्होंने जिन फिल्मों में काम किया, उनमें अधिकांश हिट हुई। लेकिन, अमिताभ बच्चन के आने के बाद पर्दे पर रोमांस का जादू चलाने वाले इस अभिनेता का जादू खत्म होने लगा था। लेकिन, उनकी सबसे ज्यादा सफल जोड़ी भी अमिताभ के साथ ही बनी। दीवार, त्रिशूल, सुहाग, कभी-कभी, दो और दो पाँच, काला पत्थर, सिलसिला, शान, ईमान, रोटी कपडा और मकान, अजूबा जैसी फ़िल्में उन्होंने अमिताभ के साथ ही की!       
 अपने पूरे करियर में शशि कपूर ने 116 फिल्मों में अलग-अलग किरदार निभाए। सात फिल्मों में वे मेहमान कलाकार के तौर पर भी दिखाई दिए। शशि कपूर ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा और प्रयोगधर्मी फ़िल्में बनाई! जूनून, कलयुग, 36 चौरंगी लेन, विजेता और 'उत्सव' जैसी फ़िल्में बनाकर उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। हालांकि, ये फिल्मे ज्यादा सफल नहीं हुई, लेकिन इन्हें समीक्षकों ने पसंद किया। 1991 में उन्होंने अमिताभ बच्चन को लेकर अपनी 'अजूबा' बनाई और निर्देशन किया। लेकिन, कमजोर पटकथा की वजह से फिल्म सफल नहीं हुई। 
  शशि कपूर को फिल्मफेर लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें 1965 में आई फिल्म 'जब जब फूल खिले' के लिए श्रेष्ठ अभिनेता का बॉम्बे जर्नलिस्ट एसोसिएशन अवार्ड, 1984 में आई 'न्यू दिल्ली टाइम्स' के लिए राष्ट्रीय पुरुस्कार और 1993 में प्रदर्शित फिल्म 'मुहाफिज' के लिए स्पेशल जूरी का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। सन 2011 में उन्हें पद्मभूषण तथा 2015 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 
  पृथ्वी थिएटर में काम करने के दौरान वे भारत यात्रा पर आए गोडफ्रे कैंडल के थिएटर ग्रुप 'शेक्सपियेराना' में शामिल हो गए। थियेटर ग्रुप के साथ काम करते हुए उन्होंने दुनियाभर की यात्राएं कीं और गोडफ्रे की बेटी जेनिफर के साथ कई नाटकों में काम किया। इसी बीच उनका और जेनिफर का प्यार परवान चढ़ा और 20 साल की उम्र में ही उन्होंने खुद से तीन साल बड़ी जेनिफर से शादी कर ली। कपूर खानदान में इस तरह की यह पहली शादी      थी। बॉलीवुड से वे लगभग संन्यास ले चुके थे। 1998 में आई फिल्म 'जिन्ना' उनके करियर की आखिरी फिल्म थी। 
---------------------------------------------------

No comments:

Post a Comment