Thursday 26 March 2020

निम्मी जिसे सबसे पहले राज कपूर परदे पर लाए!

स्मृति शेष : निम्मी 


- एकता शर्मा 
   पने जीवनकाल में राज कपूर ने कई खूबसूरत चेहरों को परदे पर आने का मौका दिया! लेकिन, जिस पहले खूबसूरत नए चेहरे को उन्होंने अपनी फिल्म के लिए चुना, वो निम्मी उर्फ़ नवाब बानो थीं। निम्मी ने 16 साल तक फिल्मों में काम किया। वे ब्लैक एंड व्हाइट के दौर में दर्शकों में काफी लोकप्रिय रहीं। बुधवार को इस गुजरे ज़माने की एक्ट्रेस का निधन हो गया! वे 88 साल की थीं। निम्मी कुछ समय से बीमार चल रही थीं। उनके निधन के साथ ही बॉलीवुड के एक युग का अंत हो गया! साल 1949 से लेकर 1965 तक वे फिल्मों में सक्रिय रहीं। उन्हें अपने दौर की बेहतरीन एक्ट्रेस के तौर पर शुमार किया जाता था। निम्मी ने अपने फिल्मी करियर में कई सुपरहिट फिल्म दी। उनकी बेहतरीन फिल्मों में सजा, आन, उड़न खटोला, भाई भाई, कुंदन, मेरे महबूब, पूजा के फूल, आकाशदीप, लव एंड गॉड शामिल हैं। उन्हें हॉलीवुड से भी चार फिल्मों के ऑफर आए थे, लेकिन उन्होंने इन्हें ठुकरा दिया था। वजह ये थी कि वे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ही करियर बनाना चाहती थी। 
   उनके राजकपूर के सामने आने और उन्हें अपनी फिल्म की अभिनेत्री चुने जाने का किस्सा भी बेहद दिलचस्प है। एबटाबाद में पैदा हुई निम्मी जब 9 साल की थीं, तब उनकी मां का निधन हो गया था। उनकी मां वहीदन अच्छी गायिका और फिल्म अभिनेत्री थीं। उन्होंने उस समय निर्देशक महबूब खान के साथ कुछ फिल्में भी की थीं। निम्मी के पिता सेना कॉन्ट्रेक्टर के तौर पर काम करते थे। वे अपनी दादी के साथ पली और बढ़ीं। विभाजन के बाद ये परिवार भारत आ गया था। निम्मी ने अपनी मां का रिफरेंस देकर निर्माता-निर्देशक महबूब खान से मुलाकात की! वे उन दिनों 'अंदाज' बनाने की तैयारी कर रहे थे। 
  उन्होंने निम्मी को सेंट्रल स्टूडियो में बुलाया था। वे वहाँ शूटिंग देखने पहुंची और नरगिस की माताजी के पास बैठ गईं। राज कपूर का निम्मी को देखने किस्मत बदल दी। वहाँ 'अंदाज' की शूटिंग हो रही थी। इसी सेट पर निम्मी की मुलाकात राज कपूर से हुई, जो उन दिनों 'बरसात' के लिए नया चेहरा तलाश रहे थे। एक्ट्रेस के लिए नरगिस को साइन कर चुके थे। निम्मी की खूबसूरती से राज कपूर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे फिल्म में सेकंड लीड के रूप में काम करने का प्रस्ताव उनके सामने रखा! इसे निम्मी ने स्वीकार कर लिया। 1949 में प्रदर्शित 'बरसात' की सफलता के बाद निम्मी की इंडस्ट्री में पहचान बन गईं। 
  उनका नाम नवाब बानो से निम्मी रखे जाने के पीछे भी राज कपूर ही थे। निम्मी ने जब अपनी फिल्म का पहला शॉट दिया और उसमें वह पास हो गई, तो राज कपूर ने सेट पर मिठाई बंटवाई। निम्मी को समझ नहीं आया। जब उन्होंने असिस्टेंट से पूछा तो बताया गया कि आप इस स्क्रीन टेस्ट में पास हो गई हैं।उसके बाद ही राज कपूर आए और उन्होंने नवाब बानो को 'निम्मी' नाम दिया। 'बरसात' के पहले आई राज कपूर की फिल्म 'आग' में हीरोइन का नाम निम्मी ही था। 
  निम्मी की मौसी भी फिल्मों में ज्योति के नाम से काम किया करती थीं। उनकी शादी मशहूर संगीतकार, गायक व अभिनेता जीएम दुर्रानी से हुई थी। निम्मी की शादी मशहूर लेखक एस अली रजा से हुई और ये शादी करवाने में मशहूर अभिनेता मुकरी का बड़ा हाथ रहा। निम्मी के लेखक पति का 2007 में निधन हो गया था। उनकी कोई संतान नहीं थी और वे अपनी भांजी परवीन के साथ रहती थीं। 50 और 60 के दशक की बॉलीवुड अभिनेत्र‍ियों की बात करें, तो निम्मी का नाम सबसे ऊपर आता है। उनकी खूबसूरती का जादू सिर चढ़कर बोलता था। उन्होंने करीब एक दर्जन फिल्मों में काम किया था। 
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बॉलीवुड पर कोरोना का काला साया!

- एकता शर्मा

 कोरोना वायरस से पूरी दुनिया सहमी हुई है। इस वायरस के भय से कई फिल्म निर्माताओं ने फिल्म की शूटिंग बंद कर दी, तो कई ने फिल्मों की रिलीज डेट आगे बढ़ा दी। बॉलीवुड कलाकार सलमान खान, अमिताभ बच्चन, प्रियंका चोपड़ा अपने फैंस को कोरोना से बचकर रहने की अपील कर रहे हैं। फिल्मों और सीरियलों की शूटिंग रोक दी गई! कोरोना से दुनिया जैसे थम-सी गई है। फिल्मों की शूटिंग रोक दी गई और फिल्म महोत्सवों को टाल दिया गया है। कोरोना वायरस के कारण पैदा हुई घबराहट से जूझते हुए इरफान खान की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ ने देश में अपनी रिलीज के पहले दिन 4.03 करोड़ रुपए की कमाई की। तिलोतमा शोम की फिल्म ‘सर’ को भी टाल दिया गया। हॉलीवुड फिल्म ‘ए क्वाइट प्लेस 2’ के साथ-साथ ‘मुलान’ की रिलीज भी देरी से होगी। कई राज्यों में सिनेमाघरों को बंद कर दिया गया है। रैपर जे कोल के ‘ड्रीमविले फेस्टीवल’, मैक्सिको के ग्वादलजारा अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एफआईसीजी) के 35वें संस्करण, लॉस एंजिलिस फैशन वीक को टाल दिया गया है।  
    कोरोना वायरस के डर से मनोरंजन की दुनिया भी अछूती नहीं रही। दुनियाभर में तेजी से फैल रहे संक्रमण को देखते हुए कई सितारों ने अपनी फिल्मों की शूटिंग को री-शेड्यूल कराने के अलावा, कई शहरों की यात्राओं और फिल्मों के प्रमोशन को भी रद्द कर दिया है। कोरोना वायरस से फिल्म इंडस्ट्री को 500 करोड़ डॉलर के घाटे का सामना करना पड़ रहा है। इससे सिनेमा हॉल और लाइव शो पर भी प्रभाव पड़ रहा है। फिल्मों की रिलीज की बात करें तो टाइगर श्रॉफ और श्रद्धा कपूर की 'बागी-3' 6 मार्च को रिलीज हुई, लेकिन ये भी कोरोना से प्रभावित हो गई। इरफान खान की 'अंग्रेजी मीडियम' 13 मार्च को रिलीज हुई, लेकिन इस पर कोरोना ने असर दिखा दिया। जानकारी के मुताबिक इस फिल्म को कुछ दिन बाद फिर से रिलीज किया जाएगा। अक्षय कुमार की 'सूर्यवंशी' (24 मार्च), परिणीति चोपड़ा और अर्जुन कपूर की 'संदीप और पिंकी फरार' (20 मार्च) और रणवीर सिंह की '83' (10 अप्रैल) को रिलीज होने वाली थी, जिसे टाल दिया गया है। अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की 'गुलाबो सिताबो', वरुण धवन-सारा अली खान की 'कुली नं. 1', सलमान खान की 'राधे : योर मोस्ट वांटेड भाई', अक्षय कुमार की 'लक्ष्मी बॉम्ब', 'बंटी और बबली-2' और कंगना रनौत की 'थलाइवी' आने वाली है। साथ ही 'हाथी मेरे साथी', 'गुंजन सक्सेना', 'रूही आफ्जा', 'लूडो', और 'चेहरे' भी कतार में हैं। ऐसी स्थिति में जिन फिल्मों की रिलीज टलेगी, क्या उन्हें बाद में सही समय मिलेगा और क्या साथ में रिलीज होने वाली फिल्मों से उनके बिजनेस पर असर नहीं पड़ेगा!
   कोरोना सभी के काम को प्रभावित कर रहा है। फिल्म और टीवी इंडस्ट्री ने 31 मार्च तक शूटिंग बंद करने का फैसला लिया गया है। इस समय देश और देश के बाहर फिल्म और टीवी के लिए शूटिंग चल रही है। टीवी और वेबसीरीज के चेयरमैन जेडी मजेठीया ने कहा की देश-दुनिया, समाज, फिल्म इंडस्ट्री और वर्कर के हित में फिल्म इंडस्ट्री में काम कर रही सभी संस्थाओं ने मिलकर यह फैसला लिया है कि फिलहाल 31 मार्च तक फिल्म, टीवी, वेब सीरीज और अन्य सभी तरह की शूटिंग पूरे भारत मे बंद कर दी जाए।
  इंडियन फिल्म टीवी डायरेक्टर एसोशिएसन के चेयरमैन अशोक पंडित ने कहा कि दुनियाभर में कोरोना वायरस की दहशत है। हमने फिल्म इंडस्ट्री में काम कर रहीं सभी संस्थाओं के साथ मीटिंग में लंबी चर्चा की और यह निर्णय लिया कि 31 मार्च तक किसी भी प्लेटफॉर्म की शूटिंग नहीं होगी। फिर चाहे वह फिल्म हो, टेलीविजन हो या फिर डिजटल प्लेटफॉर्म की शूटिंग। इस फैसले में सभी फिल्म इंडस्ट्री सहमत है, चाहे वह साउथ फिल्म और टीवी इंडस्ट्री हो या कोई और रीजनल सिनेमा से जुड़ी इंडस्ट्री।
  फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लाइज के जनरल सेक्रेटरी अशोक दुबे के मुताबिक मैं 25 लाख वर्कर और टेक्निशन को रिप्रजेंट करता हूं, जो डेली वेजेस पर काम करते हैं। रोज कमाते हैं और रोज खाते हैं। लेकिन, जान से बढ़कर कुछ भी नहीं है। प्रड्यूसर्स बॉडी ने जो भी निर्णय लिया है, हम उनके साथ हैं और 31 मार्च को जो भी निर्णय लिया जाएगा, हम उससे भी सहमत होंगे। हमने 5 मार्च को ही सर्क्युलेशन निकाल दिया था कि सेट पर शूटिंग के दौरान साफ-सफाई और सैनिटेशन के साथ शूटिंग करें। हम बीच-बीच मे सेट पर जाकर चेक भी कर रहे हैं कि शूटिंग की जगह पर बराबर नियमों का पालन हो रहा है या नहीं।'
  ज़ोया अख्तर और रीमा कागती की जानी-मानी एमेज़ॉन प्राइम की वेब सिरीज़ 'मेड इन हेवेन' बेहद लोकप्रिय हुई थी और अब बहुत जल्द इसके दूसरे सीज़न यानी 'मेड इन हेवन-2' की शूटिंग यूरोप में होने वाली थी जिसे अब कैंसिल कर दिया गया है। इस फ़िल्म में भी शोभिता धुलिपाला मुख्य किरदार निभा रही है। ये फ़िल्म रॉनी स्क्रूवाला प्रोड्यूस कर रहें हैं। इसकी शूटिंग केरल में होने वाली थी जो फ़िलहाल रोक दी गई है।
थिएटर को बड़ा नुक़सान  
  फ़िल्म व्यापार विश्लेषक अमोद मेहरा ने कहा कि पहले कोरोना वायरस का बॉलीवुड पर इतना असर नहीं था। लेकिन, अब इसका बहुत बड़ा नुक़सान दिखने लगा है। सरकार ने आदेश दिए हैं कि दिल्ली, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, केरल, जम्मू और कश्मीर और मुंबई के सभी सिनेमाघर बंद रहेंगे। यह सुनकर कहा जा सकता है कि आगे स्थिति बहुत ख़राब होने वाली है। कोई फ़िल्म रिलीज़ नहीं होगी तो थिएटर मालिकों को भारी नुकसान तो होगा ही।
'कोरोना' पर फिल्म       
   बॉलीवुड इस महामारी पर फिल्म बनाने की भी तैयारी कर रहा है। कई फिल्मकारों ने कोरोना पर फिल्म बनाने के लिए टाइटल भी रजिस्टर कराना शुरू कर दिया। रॉस इंटरनेशनल ने 'कोरोना प्यार है' रजिस्टर्ड करवाया है। इसे लेकर प्रोड्यूसर कृषिका लुल्ला का कहना है कि इस फिल्म का सब्जेक्ट प्रेम कहानी पर आधारित होगा। यह रितिक रोशन और अमीषा पटेल की सुपरहिट फिल्म 'कहो ना प्यार है' के टाइटल से मिलता-जुलता है। कृषिका लुल्ला ने भी इस बात की पुष्टि की और बताया कि फिल्म की स्क्रिप्टिंग शुरू कर दी गई है। फिल्म का विषय एक महामारी और प्रेम कहानी के इर्द-गिर्द घूमता है। हम स्क्रिप्ट में सुधार कर रहे हैं और स्थिति के सामान्य कम होने का इंतजार कर रहे हैं। जब सब कुछ सामान्य हो जाएगा, तो हम प्रोजेक्ट को शुरू करेंगे। वहीं, इम्पा (इंडियन मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन) ने भी कहा कि उन्हें फिल्ममेकर्स और प्रोड्यूसर्स ने कोरोना वायरस प्रकोप से संबंधित फिल्म टाइटल रजिस्टर करने के लिए संपर्क किया है। एक रजिस्टर्ड फिल्म टाइटल है ‘डेडली कोरोना!’
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Monday 9 March 2020

हर दौर में रंगों से सराबोर रहा फिल्मों का परदा!

- एकता शर्मा

   होली और हिंदी फिल्मों का साथ बहुत पुराना है। क्योंकि, फिल्मों और त्यौहारों का आपस में जबरदस्‍त रिश्ता रहा है। कहानी में खुशी के पल दिखाना हो, बिछोह के बाद मिलन का दृश्य हो या किसी से बदला लेना हो! सभी के लिए होली सबसे अच्छा बहाना रहा है। होली से जुड़ा एक पहलू यह भी है कि कुछ फिल्मकारों ने इसे कहानी बढ़ाने के लिए उपयोग किया, तो कुछ ने टर्निंग प्वाइंट के लिए। कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने इसे सिर्फ मौज-मस्ती और गाने फिट करने के लिए फिल्म में डाला। कुछ सालों से फ़िल्मी कथानक में होली का प्रसंग कम जरूर हुआ, पर ख़त्म नहीं हुआ! अभी जैसी फ़िल्में बन रही है, उसमें त्यौहारों की गुंजाइश बहुत कम हो गई! आज के युवा दर्शक भी अब त्यौहारों के प्रति कम ही रूचि दिखाते हैं! यही वजह है कि फिल्मों के परदे से होली बिदा होती नजर आ रही है। हाल की फिल्मों में अग्निपथ, जॉली एलएलबी-2 और 'वार' में ही होली गीत दिखाई दिए, पर उनका फिल्म की कहानी से कोई जुड़ाव नहीं दिखा! 
   राजकुमार संतोषी ने ‘दामिनी’ में होली दृश्य फिल्म में टर्निंग प्वाइंट के लिए किया था। जबकि, ‘आखिर क्यों’ के गाने ‘सात रंग में खेल रही है दिल वालों की होली रे’ और ‘कामचोर’ के ‘मल दे गुलाल मोहे’ में निर्देशक भी इससे फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाया था। होली के दृश्य और गीत फिल्म की मस्ती को बढ़ाने के लिए फिल्माए जाते रहे हैं। ऐसी फिल्मों में ‘मदर इंडिया’ भी है, जिसका गाना ‘होली आई रे कन्हाई’ याद किया जाता है। ‘नवरंग’ का ‘जा रे हट नटखट’, ‘फागुन’ का ‘पिया संग होली खेलूँ रे’ और ‘लम्हे’ का ‘मोहे छेड़ो न नंद के लाला’ गाने ने भी होली का फिल्मों में प्रतिनिधित्व किया।
  होली जैसे रंग-बिरंगे त्यौहार में फ़िल्मी गीत मस्‍ती का तड़का लगा देते हैं। जब भी होली के गानों की बात छिड़ती है, जहन में ऐसे कई गीत आते हैं, जो यादों को रंगीन बना देते हैं। भागी रे भागी रे भागी बृजबाला ... कान्हा ने पकड़ा रंग डाला, रंग बरसे भीगे चुनरिया वाली और होली के दिन दिल मिल जाते हैं जैसे आइकॉनिक गीत भला कौन भूल सकता है! 'ये जवानी है दीवानी' का गाना 'बलम पिचकारी' और 'रामलीला' का गाना 'लहू मुंह लग गया' भी काफी लोकप्रिय रहा। जब से फ़िल्में बनना शुरू हुई, होली एक ऐसा त्यौहार रहा जिसे जमकर भुनाया गया। होली आयोजन का आधार रहे भक्त प्रहलाद पर भी फ़िल्में बनी हैं। 
    पहली बार 1942 में चित्रपू नारायण मूर्ति ने तेलुगु में ‘भक्त प्रहलाद’ बनाई थी। 1967 में इसी नाम से हिंदी फिल्म बनी। फिल्म इतिहास बताता है कि ‘होली’ और 'फागुन’ नाम से दो बार फिल्म बनी, जिसमें होली दिखाई गई थी। जहाँ तक परदे पर रंगीन होली की बात है, तो पहली टेक्नीकलर फ़िल्म 'आन' 50 के दशक में आई थी! इसमें दिलीप कुमार और निम्मी की होली दिखाई दी! 1958 की 'मदर इंडिया' में भी होली हुई और 'होली आई रे कन्हाई' गीत सुनाई दिया। वी शांताराम ने 'नवरंग' में होली का अनोखा रंग दिखाया था। 1959 की इस फ़िल्म में संध्या ने 'चल जा रे हट नटखट' पर नृत्य किया जो अविस्मरणीय था। 
   इसके बाद फ़िल्म कोहिनूर, गोदान और 'फूल और पत्थर' में भी होली गीत सुनाई दिए। राजेश खन्ना और आशा पारेख की फ़िल्म 'कटी पतंग' में राजेश खन्ना होली पर आशा पारेख को न छोड़ने की बात करते हुए 'आज न छोड़ेंगे बस हमजोली, खेलेंगे हम होली' गाते हैं। वहीदा रहमान और धर्मेन्द्र की फ़िल्म 'फ़ागुन' में भी 'फ़ागुन आयो रे' गीत था। अमिताभ बच्चन ने भी 'नमक हराम' में 'नदिया से दरिया' रेखा और राजेश खन्ना के साथ गाया था। 1975 में आई 'शोले' में डकैत होली के दिन ही गांव पर हमला करते हैं। फिल्म में 'होली के दिन दिल खिल जाते हैं' आज भी सुनाई देता है। सुनील दत्त 'ज़ख़्मी' में 'आई रे आई रे होली आई रे' गाते नज़र आए। थे 
  बासु चटर्जी ने 'दिल्लगी' में धर्मेन्द्र पर होली गीत फिल्माया था। इस गाने को होली का एंथम भी कहा जाता है। यश चोपड़ा की फिल्म 'सिलसिला' का अमिताभ, रेखा और संजीव कुमार पर फिल्माया 'रंग बरसे भीगे चुनर वाली' होली गीत आज पहले नंबर पर है। 'राजपूत' का गीत 'भागी रे भागी बृज बाला' पसंद किया जाता है। राकेश रोशन की फ़िल्म 'कामचोर' का गीत 'रंग दे गुलाल मोहे' होली पर रिश्तों का रंग बताता है। परदे पर होली का रंग बिखेरने वालों में अमिताभ बच्चन का नाम सबसे आगे है। रेखा के साथ ‘सिलसिला’ में, हेमा मालिनी के साथ ‘बागबां’ में परदे को रंगीन किया। अमिताभ ने ‘वक्त’ में अक्षय कुमार और प्रियंका चोपड़ा के साथ ‘डू मी ए फेवर, लेट्स प्ले होली’ गाते हुए भी खासे जँचे। धर्मेंद्र और हेमा मालिनी ने भी होली को फिल्मों में रंगीन बनाया। इस जोड़ी पर फिल्माया फिल्म ‘शोले’ का गीत ‘होली के दिन दिल खिल जाते हैं’ आज भी होली की मस्ती दिखाते हैं। इसके बाद इस जोड़ी ने फिल्म ‘राजपूत’ में भी 'कान्हा ने पकड़ा रंग डाला’ गाकर होली खेली।
   'मशाल' में सड़क छाप होली के सीन उल्लेखनीय थे। अनिल कपूर और रति अग्निहोत्री पर फ़िल्माए गीत को लोग याद रखते हैं। फ़िल्म 'आख़िर क्यों' के गाने 'सात रंग में खेले' में स्मिता पाटिल के साथ राकेश रोशन और टीना मुनीम भी नज़र आए थे। 1993 में आई फ़िल्म 'डर' का गाना 'अंग से अंग लगाना सजन हमें ऐसे रंग लगाना' में जूही चावला, सनी देओल की मस्ती थी। 'मोहब्बतें' का गाना शहरी होली के इर्द-गिर्द बुना गया था। 2013 'ये जवानी है दीवानी' का गाना 'बलम पिचकारी' और साल 2014 में आई फ़िल्म 'रामलीला' का गाना 'लहू मुंह लग गया' भी युवाओं में लोकप्रिय है।
   राजकुमार संतोषी ने ‘दामिनी’ में होली दृश्य फिल्म में टर्निंग प्वाइंट के लिए किया था। जबकि, ‘आखिर क्यों’ के गाने ‘सात रंग में खेल रही है दिल वालों की होली रे’ और ‘कामचोर’ के ‘मल दे गुलाल मोहे’ में निर्देशक भी इससे फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाया था। होली के दृश्य और गीत फिल्म की मस्ती को बढ़ाने के लिए फिल्माए जाते रहे हैं। ऐसी फिल्मों में ‘मदर इंडिया’ भी है, जिसका गाना ‘होली आई रे कन्हाई’ याद किया जाता है। ‘नवरंग’ का ‘जा रे हट नटखट’, ‘फागुन’ का ‘पिया संग होली खेलूँ रे’ और ‘लम्हे’ का ‘मोहे छेड़ो न नंद के लाला’ गाने ने भी होली का फिल्मों में प्रतिनिधित्व किया था। 
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Saturday 7 March 2020

एक औरत के संघर्ष और दो औरतों के सहारा बनने की दास्तान!

महिला दिवस पर विशेष


- एकता शर्मा

  मैं रोज की तरह उस दिन कोर्ट में अपने काम में लगी थी! लोग लगातार आ रहे थे! किसी को अपनी अगली तारीख की जानकारी लेना थी, कोई गवाही देने आया था! तभी एक 18-20 साल का नौजवान लड़का आकर खड़ा हुआ। डेनिम की जैकेट पहले उस लड़के के चेहरे पर हल्की सी दाढ़ी थी। उसने आते ही झुककर मेरे पैर पड़े और बोला 'मैडम आपने मुझे पहचाना!' मैंने उसके चेहरे को ध्यान से देखा, पर कुछ याद नहीं आया। तभी वो बोला 'मैडम मैं गणेश हूँ। जब 5 साल का था तब माँ के साथ आपके पास आता था!' मैं कुछ याद करती, उससे पहले ही वो बोल पड़ा कि मैं जशोदाबाई का लड़का हूँ मैडम! मैंने उसकी तरफ देखा और याद करने की कोशिश करने लगी! उसकी आँखों की तरफ देखा जो भर आई थी! 'आपने हमारी बहुत मदद की है! अब मेरी नौकरी लग गई है, कल मैं ज्वाइन करने जाऊंगा! माँ ने बोला कि पहले आपका आशीर्वाद लेकर आऊं! हमारे लिए तो मैडम आप ही सबकुछ हो!'     
   एक बार में गणेश सबकुछ बोल गया। लेकिन, मैं कुछ बोल नहीं सकी, शब्द गुम से हो गए थे। जो लोग मेरे ऑफिस में मौजूद थे, वे भी यह सब देखते रहे! 14-15 साल पुरानी घटना आँखों के सामने घूम गई! जशोदा भी याद आई, जिसे मैं भूल गई थी। गणेश से मैंने उसकी माँ और छोटे भाई के बारे में पूछा! वो बोला 'सब ठीक है मैडम! माँ भी आने वाली है आपसे मिलने!' गणेश तो चला गया, पर मेरे जहन में 15 साल पुराना वो घटनाक्रम घूम गया! जशोदा, उसके दोनों बेटे और उसकी माँ का वो चेहरा याद आया, जब पहली बार ये सभी मेरे पास आए थे। 
     मैं वकील हूँ इसलिए मुझे रोज ही ऐसे लोगों से मिलना होता है, जो किसी न किसी परेशानी से घिरे होते हैं। ऐसी ही ये कहानी जशोदा बाई की है। उस दिन तेज गर्मी थी, अचानक दो महिलाएं ऑफिस में टेबल के सामने आकर खड़ी हुई और बोलीं 'मैडम क्या आप हमारी मदद करोगी?' काम करते हुए मैंने गर्दन उठाकर देखा तो एक अधेड़ उम्र की महिला के साथ एक 25-26 साल की महिला खड़ी थी। अधेड़ महिला ने मुझे साथ आई महिला को बेटी के रूप में मिलाते हुए कहा 'मैडम ये मेरी बेटी जशोदा है। बहुत परेशान है, आपकी मदद चाहिए।' मैली-कुचैली साड़ी में सिर पर पल्ला लिए ग्रामीण परिवेश की उस महिला के नाक नख़्स तीखे थे। जशोदा सुंदर थी, पर चेहरे पर अजीब सा सूनापन था।
    उसने अपनी जो परेशानी बताई वो कुछ यूँ थी। जशोदा पास के ही गाँव की रहने वाली थी। उसकी शादी 6 साल पहले हुई थी। पास ही के गाँव में उसका पति किसान था। जमीन और मकान सब कुछ था! दो बेटे जिनकी उम्र लगभग 5 और 3 साल थी। जशोदा का जीवन आराम से कट रहा था। लेकिन, वक़्त की मार ने जशोदा के खुशहाल जीवन को पलभर में अनथक संघर्ष में झोंक दिया! इसकी शुरुआत उसके पति की मौत से हुई थी! सड़क दुर्घटना में पति की मौत हो गई! इसके बाद तो जशोदा की सारी खुशियां मानो ख़त्म हो गई! यहीं से शुरू हुआ उसके संघर्ष का सफर। दो छोटे बच्चों के साथ वो अकेली रह गई। कैसे खेती होगी, कैसे घर चलेगा? ऐसे कई सवाल उसके सामने खड़े हो गए! पति की मौत के सदमे से जशोदा अभी उबरी भी नहीं थी, कि ससुराल वालों ने भी आँखें फेर ली। देवर और उसकी पत्नी ने जशोदा को घर से चले जाने का दबाव बनाया। ससुराल के बाकी लोगों ने भी उसे डायन करार दे दिया। पति की मौत को अभी एक महीना भी नहीं हुआ था कि उसे ससुराल वालों ने ताने दे देकर घर से निकाल दिया।
  माँ-बाप की लाडली और पति की प्यारी जशोदा जो अभी तक ससुराल में रानी बनकर रह रही थी, सड़क पर आ गई! जिसने दुनियादारी की कोई समस्या नहीं देखी थी, उसके सामने पहाड़ सी जिंदगी और दो बच्चों को पालने की चुनौती भी! जशोदा अपने माँ-बाप के पास गाँव आ गई! लेकिन, उसने अपने आपको संभालकर जीना शुरू किया। जीवन-यापन के लिए जशोदा खुद खेती करने को तैयार हुई, तो देवर ने अड़ंगा शुरू कर दिया। उसने पत्नी के नाम कब फर्जी रजिस्ट्री भी करवा ली, ये जशोदा को बाद में पता चला! पति के जीते जी बंटवारा नहीं हुआ था। जमीन सास के नाम पर जमीन थी, इसलिए देवर की ये साजिश  कामयाब हो गई! 
    क़ानूनी रूप से रजिस्ट्री की हुई ज़मीन को विक्रय ही माना जाता है। इसलिए क़ानूनी लड़ाई में जशोदा को राहत मिलने की उम्मीद कम ही थी। उसके अलावा अदालती लड़ाई में लगने वाला खर्च, वकीलों की फीस और रोज-रोज के कोर्ट के चक्कर! गाँव की कोई भी घरेलू महिला ये सोचकर ही हार मान लेती! लेकिन, जशोदा ने हिम्मत नहीं हारी। जब मैंने उसे बताया की केस लड़ने में खर्च और समय दोनों लगेगा तो मेरी बात सुनकर उसने बड़ी हिम्मत के साथ हामी भरी। उसकी हिम्मत देखकर मैंने भी उसकी मदद करने की ठान ली। मैंने बिना फीस के उसका केस लड़ने का फैसला किया! क्योंकि, जब एक महिला हिम्मत के साथ आगे बढ़ी है, तो उसे इतनी मदद तो दी ही जानी चाहिए। मेरे सामने संघर्ष से जूझती जशोदा पहली और आखिरी महिला नहीं थी! लेकिन, जब भी ऐसा कोई मामला सामने आता है, तो मैं उस महिला से फीस नहीं लेती। इसी के साथ शुरू हुआ जशोदा का संघर्ष। बच्चों की परवरिश के लिए उसने गाँव में ही मजदूरी करना शुरू कर दिया था।
   हालांकि, जशोदा के मामले में जीत के आसार बहुत कम ही थे। फिर भी उसके साथ मिलकर मैंने क़ानूनी जंग की शुरुआत की! तारीख पर तारीख चलना शुरू हुई। लेकिन, जशोदा की हिम्मत समय के बढ़ती चली गई। कभी वो अपने दोनों छोटे बच्चों को साथ लाती, कभी किसी के सहारे छोड़कर आती! मगर, कभी भी केस की तारीख नहीं चूकती! गर्मियों की तपती दोपहर में वो सुबह गाँव से निकलती, करीब 2 किलोमीटर पैदल रास्ता तय करके सड़क तक आती, वहाँ से बस में बैठकर कोर्ट आती! सारे रास्ते और बस की भीड़ में एक कम उम्र की सुंदर महिला होना भी उसकी परेशानी थी! लोगों से तो वो बच जाती! लेकिन, गंदी नजरों से बचना उसके लिए भी आसान नहीं था। ये सब कुछ सहते हुए भी वो आती रही।
    देवर के वकील ने भी अपनी तरफ से केस में रोडे अटकाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस सबमें करीब एक साल बीत गया। इस बीच क़ानूनी पैचीदगी के चलते जशोदा की तरफ से मैंने चार केस लगा दिए। हर केस की तारीख पर हाजिर होना, खर्चीला तो होता ही! लेकिन, उस दिन उसकी मजदूरी का भी नुकसान होता। इस तरह उसे दोहरी मार झेलनी पड़ती। लेकिन, उसकी हिम्मत देखते हुए मैंने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी। कानून के नजरिए से जशोदा का मामला कमजोर था। लेकिन, उसकी हिम्मत ने मुझे भी हिम्मत दिलाई और हम लड़ते गए। आखिर सालभर बाद जब उसकी जमीन पर फसल पकी, तब एक रास्ता निकाला। मैंने उसे हिम्मत दिलाई और और एक रास्ता भी सुझाया! जशोदा क़ानूनी लड़ाई के साथ खेत में खुद लाठी लेकर खड़ी हो गई! क्योंकि, खेत पर कब्ज़ा उसका था और जमीन की जो फर्जी रजिस्ट्री उसकी जानकारी के बिना हुई थी! जब वो खेत में लाठी लेकर खड़ी हुई, तब उसके सामने वो ही लोग सामने थे, जिनका पति के रहते वो सम्मान करके घूंघट निकाला करती थी। जिनके सामने जशोदा एक बहू बनकर खड़ी होती थी, अब वो उन्हीं के सामने दुर्गा का रूप लेकर खड़ी थी। उसके उस रूप को देखकर उसके ससुराल वाले भी डर गए! 
     आखिर देवर पीछे हट गया और जशोदा को पहली जीत जमीन की फसल के रूप में मिली। जशोदा को ये सलाह देने से पहले मैंने कानूनी बारीकियां भी जाँच ली थी। मेरे कहने पर संबंधित थाने के प्रभारी ने भी जशोदा की मदद की!    इस घटना के बाद जशोदा की हिम्मत दोगुनी हो गई! वो अब और ज्यादा हिम्मत से कोर्ट आती। बयान के वक़्त भी उसे अपनों के सामने ही जवाब देना थे। तब भी जशोदा ने उसी हिम्मत से उनका सामना किया। उसकी इतनी हिम्मत देखकर देवर कहीं न कहीं अंदर से डरने भी लगा था। उसने मुझसे संपर्क भी किया। मैंने समझौते की कार्यवाही पर जोर दिया! क्योंकि, वकील होने के नाते मुझे शुरू से ही अंदेशा था कि जशोदा की जीत के आसार कम हैं। इसलिए बीच का रास्ता निकालना जरुरी था। जशोदा की दिन पर दिन बढ़ती हिम्मत देखकर उसके देवर के हौंसले जवाब देने लगे थे। धीरे-धीरे गाँव के लोगों ने भी जशोदा का साथ देना शुरू कर दिया। इस सबके चलते देवर पर दबाव बढ़ने लगा। उसने खुद मुझसे संपर्क करके राजीनामे की बात की! मैंने भी उसे समझाया कि जशोदा की जमीन उसके नाम कर दो, तभी राजीनामा संभव है।   
     कई बार की बातचीत का नतीजा यह हुआ कि देवर ने जशोदा के हिस्से की जमीन की रजिस्ट्री उसके और उसके बच्चों के नाम करवा दी। रजिस्ट्री होने के बाद हमने भी वादे के अनुसार राजीनामा कर लिया और सारे केस उठा लिए। अब जशोदा की अपनी खेती थी। उसने दोनों बच्चों के साथ खेती करना शुरू कर दिया और बच्चों का पालन पोषण करने लगी। इस तरह अपनी हिम्मत से क़ानूनी रूप से कमजोर होते हुए भी जशोदा ने लगभग हारी हुई बाजी जीत ली! उसकी इस लड़ाई में एक खासियत यह भी रही कि उसका साथ देने वाली भी दो महिलाएं ही थी! एक उसकी माँ और दूसरी उसकी वकील यानी मैं! कहा जा सकता है कि तीन महिलाओं ने मिलकर एक लगभग हारी हुई बाजी जीतकर बाजीगर बन गई।  आज गणेश के अचानक सामने आने से ये पूरी घटना फिल्म की तरह आँखों के सामने से गुजर गई! जशोदा की जंग उन महिलाओं के लिए एक प्रेरणा तो है, जो मुसीबत में टूटकर बिखर जाती हैं। उसकी हिम्मत का ही नतीजा था कि उसे अपने हिस्से की जमीन मिली और बच्चों को भी उसने ठीक से पाल लिया। गणेश को देखकर मुझे भी अपने फैसले पर संतोष हुआ कि आखिर मेरी मेहनत से एक बिखरा परिवार फिर संवर गया। दरअसल, ये एक महिला के संघर्ष की ऐसी अनथक दास्तान है, जिसकी मिसाल दी जा सकती है। समाज में जशोदा अकेली महिला नहीं है, जिसके सामने ये संकट आया! पर, लगता है कि मेरी तरह महिला वकीलों को ऐसी महिलाओं की मदद के लिए आगे आना चाहिए! आखिर एक महिला ही दूसरी का सहारा नहीं बनेगी तो कौन बनेगा!
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