Monday 21 October 2019

जन्मदिन भी जोड़ी से, पर परदे पर टूट गया साथ!

-  एकता शर्मा

   अक्टूबर के इस दूसरे सप्ताह में बॉलीवुड की सबसे ज्यादा सदाबहार रही जोडी अमिताभ बच्चन और रेखा के जन्मदिन हैं। रेखा का 11 अक्टूबर को और अगले दिन यानी 12 को अमिताभ का। एक दिन आगे-पीछे जन्मे अमिताभ और रेखा कभी फिल्मों में भी एक दूसरे के आगे पीछे ही रहे! परदे पर इनकी केमिस्ट्री को दर्शकों ने राजकपूर-नर्गिस, धर्मेन्द्र-हेमा मालिनी और ऋषि कपूर-नीतू सिंह की जोडी की तरह सराहा और पसंद किया। आज भी रेखा और अमिताभ की जोड़ी का जिक्र होता है। इस जोड़ी ने जितनी हिट फिल्में दी, उतने ही वे विवादित भी रहे! अमिताभ का रेखा से एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर इतना चर्चा में रहा कि अब दोनों एक-दूसरे से नजरें मिलाने में डरते हैं। अब ये दोनों एक-दूसरे का सामना तक नहीं करते! आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी है जो एक ही जगह पर होते हुए भी वो एक-दूसरे को देख मुस्कुराते तक नहीं! 80 के दशक की सबसे चर्चित जोड़ी अमिताभ-रेखा आज उम्र के उस पायदान पर खड़े हैं, जहां सारे गिले-शिकवे भुला दिए जाते हैं। लेकिन, इनके साथ ऐसा नहीं हुआ!   
  सिनेमा को पसंद करने वाले लोग जानते हैं कि रेखा के फिल्म करियर ने अमिताभ का साथ मिलने के बाद ही सही उड़ान भरी थी। लगता था जैसे अमिताभ उनके लिए किस्मत की लॉटरी का टिकट लेकर आए हों। प्रकाश मेहरा की फिल्म 'मुकद्दर का सिकंदर' में रेखा और अमिताभ की जोड़ी ने पहली बार शोहरत के आसमान को छुआ था। देखते ही देखते इस जोड़ी ने हिन्दी सिनेमा के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया था। इस तरह बनी जोड़ियों को बहुत जल्द निजी जिंदगी की प्रेम कहानी से जोड़ने की पुरानी परंपरा है। रील लाइफ को रियल लाइफ के प्यार में बदलने की जो परंपरा राजकपूर-नर्गिस, देवआनंद-सुरैया, दिलीप कुमार-मधुबाला, ऋषि कपूर-नीतू सिंह, रणधीर कपूर-बबीता और धर्मेन्द्र हेमा मालिनी ने आरंभ की थी। उसी परम्परा को अमिताभ-रेखा ने बड़े प्यार से आगे बढाया। जैसे-जैसे इन दोनों की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट होने लगी, वैसे-वैसे ही निजी जिंदगी में भी इनका प्यार के किस्से सुनाई देने लगे। दोनों की एक साथ की गई सुपरहिट फिल्में आई जैसे दो अंजाने, सुहाग, मि. नटवरलाल, गंगा की सौगंध, नमक हराम, खून पसीना और सिलसिला हैं। 
  अमिताभ का साथ मिलने के बाद रेखा ने अपने आपको पूरी तरह बदल दिया था। पहली फिल्म 'सावन भादो' में सांवली और मोटी सी दिखने वाली रेखा का नाम जब अमिताभ के साथ जुड़ा तो वे काफी बोल्ड नजर आने लगीं। दोनों के चाहने वाले आज भी फिल्म 'सिलसिला' में दिखाई गई अमिताभ और रेखा की लव स्टोरी को याद करते हैं। फिल्म 'कुली' की शूटिंग के दौरान हुए हादसे के बाद फिल्मी दुनिया के इन दो परिंदों की सच्ची प्रेम कहानी का अंत हो गया था। घायल अमिताभ की जान की दुआ मांगने के लिए रेखा ने वह सब किया जो शायद 'किसी' ने नहीं किया होगा। उज्जैन आकर महामृत्युंजय जाप और परिक्रमा के प्रभाव से अमिताभ तो बच गए, लेकिन दोनों के बीच का प्यार नहीं बच पाया। इस दौरान दोनों के बीच एक तनाव की स्थिति निर्मित हो गई, जिसे दोनों के सिवा तीसरा कोई नहीं जानता! आज भी यह बात राज ही है कि 'कुली' के दौरान हुई घटना के बाद ऐसा क्या हो गया था जो अमिताभ और रेखा को एक-दूसरे का साथ छोड़ना पड़ा। बीच-बीच में दोनों के बीच सौहार्द्रपूर्ण वातावरण की खबरें आती है। अमिताभ और रेखा के अधूरे प्यार का पूरा सच कोई नहीं जानता। इन दोनों ने 'सिलसिला' के बाद एक साथ कभी काम नहीं किया। दोनों को अपनी फिल्म में लेने के लिए आज भी कई फिल्मकार तैयार है। लेकिन, अब शायद ये ही ये संभव हो!
--------------------------------------------------------------------------------------------

अब गब्बर को कौन बताएगा 'कितने आदमी थे?'

- एकता शर्मा

   हिंदी फिल्म इतिहास में मील का पत्थर बन चुकी फिल्म 'शोले' का हर डायलॉग चर्चित हुआ है! फिल्म के किरदारों की छवि दर्शकों के दिमाग में कहीं छप सी गई है। गब्बर सिंह, ठाकुर साहब, जय-वीरू, बसंती के अलावा 'सांभा' और 'कालिया' के किरदार तो अमर हो चुके हैं। इस फिल्म में 'कालिया' जैसा छोटा सा रोल करने वाले कलाकार वीजू खोटे तक को दर्शकों ने पहचाना था! ये फिल्म के सबसे चर्चित किरदार गब्बर सिंह की गेंग के तीन ख़ास साथियों में से एक था। कालिया का रोल बहुत छोटा था, लेकिन इसके डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर हैं।   
  कालिया के इस रोल की खासियत थी, कि डाकू होते हुए वो पहले जय और वीरू से पिटता है और फिर गब्बर के हाथों मारा गया। हालांकि, शुरु में ये किरदार दर्शकों को डराने में कामयाब हुआ था। लेकिन, अब ये कलाकार नहीं रहा, दिल का दौरा पड़ने से 78 साल की उम्र में उनका निधन हो गया! इसके साथ ही अब गब्बर के इस सवाल का जवाब देने वाला इस दुनिया में नहीं रहा कि 'कितने आदमी थे!'     
   'शोले' में वीजू खोटे का एक और डायलॉग था 'सरदार, हमने आपका नमक खाया है!' को भी दर्शकों ने बहुत पसंद किया था। वीजू खोटे ने कुछ सालों से फिल्म के पर्दे से दूरी बना ली है। आखिरी बार उन्हें 'गोलमाल-3' में देखा गया था। उससे पहले वो 'अजब प्रेम की गजब कहानी' फिल्म में भी दिखाई दिए थे। सेहत की समस्याओं से लगातार शूटिंग में उन्हें परेशानी होती है। वीजू ने हिंदी फिल्मों के अलावा मराठी फिल्मों में भी काफी काम किया है। उन्होंने अपने करियर में चाइना गेट, मेला, अंदाज अपना अपना, गोलमाल-3 और नगीना समेत 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया।
  उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1964 में की थी। शोले के 'कालिया' वाले रोल के अलावा 'अंदाज अपना-अपना' में उनके किरदार 'रॉबर्ट' को भी याद किया जाता है। काफी लंबे समय से बीमार चल रहे विजू खोटे को हाल ही में अस्पताल में भी भर्ती कराया गया था। उन्होंने 300 से ज्यादा हिंदी और मराठी फिल्मों और धारावाहिकों में काम किया। छोटे से सीन के जरिए ही दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बनाने वाले कलाकार वीजू खोटे को कई फिल्मों में देखा और पसंद किया गया। 'शोले' में कालिया के अलावा, कॉमेडी फिल्म 'अंदाज अपना-अपना' में भी वीजू खोटे के 'रॉबर्ट' के किरदार को काफी पसंद किया गया था जिसमें उनका डायलॉग 'गलती से मिस्टेक हो गई' काफी लोकप्रिय हुआ था।   
-------------------------------------------------------------------------

संगीत के इस सुर में समाया माधुर्य और महक!

- एकता शर्मा

  संगीत का एक महत्वपूर्ण अंग है 'ताल।' इस शब्द को उलट दिया जाए तो जो शब्द बनता है, संगीत की शुरूआत उसी शब्द से होती है। संगीत के सारे सुर उस शब्द पर आकर थम जाते हैं, यह शब्द है 'लता।' भारत रत्न लता मंगेशकर को दुनिया में किसी परिचय की जरूरत ही नहीं है। आखिर चांद, सितारों, जमीन, आसमान, नदियों और सागरों की तरह शास्वत वस्तुएं किसी परिचय की मोहताज नहीं होती। संगीत की स्वरलहरियों और सात सुरों के संसार में लता ऐसी ही शास्वत शख्यियत है, जिनके कंठ से सरस्वती के सुर निकलते हैं। लताजी ने फ़िल्मी दुनिया में 71 साल और उम्र के 90 साल जरूर पूरे जरूर कर लिए, पर संगीत का ये सफर आज भी जारी है। उनकी आवाज में कुदरत का वही आशीर्वाद और मां सरस्वती की वही अनुकम्पा है।
   हिन्दी सिनेमा के ट्रेजेडी किंग और विख्यातनाम कलाकार दिलीप कुमार ने लगभग चार दशक पहले 1974 में लंदन स्थित रायल एलबर्ट हाल में अपनी दिलकश आवाज में कहा था 'जिस तरह कि फूल की खुशबू या महक का कोई रंग नहीं होता, वह महज खुशबू होती है। जिस तरह बहते पानी के झरने या ठंडी हवा का कोई मुकाम, घर, गांव, देश या वतन नहीं होता। जिस उभरते सूरज या मासूम बच्चे की मुस्कान का कोई मजहब या भेदभाव नहीं होता, उसी तरह से कुदरत का एक करिश्मा है लता मंगेशकर।' तो दर्शकों से खचाखच भरे हाल में कई मिनटों तक तालियों की गडगडाहट गूंजती रही! वास्तव में दिलीप कुमार ने लता मंगेशकर का जो परिचय दिया वह न केवल उनकी सुरीली आवाज बल्कि उनके सौम्य व्यक्तित्व का सच्चा इजहार है।
   1974 से 1991 तक दुनिया में सबसे ज्यादा गीत गाकर 'गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड' में अपना नाम शुमार कराने वाली लता मंगेशकर ने सभी भारतीय भाषाओं में अपने सुर बिखेरें हैं। यदि भारतीय फिल्मी गायक-गायिकाओं में कोई नाम सबसे ज्यादा सम्मान से लिया जाता है, तो वह है सिर्फ और सिर्फ लता मंगेशकर। 28 सितम्बर 1929 को इंदौर मे जन्मी लताजी को गायन कला विरासत में मिली। उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर शास्त्रीय गायक तथा थिएटर कलाकार थे। यदि दीनानाथ मंगेशकर के नाटक 'भावबंधन' की नायिका का नाम लतिका न होता और उनके माता-पिता अपनी सबसे बड़ी बेटी को यह नाम नहीं देते! ऐसा नहीं होता तो शायद आज हम उन्हें उनके बचपन के नाम हेमा हर्डिकर के नाम से ही जानते! लता का बचपन का नाम हेमा और सरनेम हर्डिकर था, जिसे बाद में उनके परिवार ने गोवा मे अपने गृह नगर मंगेशी के नाम पर मंगेशकर रखा और आज इसी नाम लता मंगेशकर को सारी दुनिया जानती है। 
  1942 में जब लताजी मात्र 13 साल की थी, उनके पिताजी की हृदय रोग से मृत्यु हो गई। तब अभिनेत्री नंदा के पिता और नवयुग चित्रपट कंपनी के मालिक मास्टर विनायक ने बतौर अभिनेत्री और गायिका लता मंगेशकर का करियर आरंभ करने में मदद की। वसंत जोगलेकर की मराठी फिल्म 'किती हसाळ' में पहली बार सदाशिवराव नार्वेकर की संगीत रचना में गाए गीत 'नाचु या गडे, खेलू सारी मानी हाउस भारी' गाकर अपना करियर आरंभ करने वाली लताजी ने कभी पीछे मुड कर नहीं देखा! उस्ताद अमानत अली खान से हिन्दुस्तानी संगीत सीखकर उन्होंने 1946 में पहला हिन्दी गीत 'पा लागू कर जोरी' गाया। 1945 में 'बड़ी मां' में अभिनय के साथ लता ने 'माता तेरे चरणों में' भजन गाया। 90 साल की उम्र में भी वे हिन्दी फिल्म जगत की शीर्षस्थ और सर्वाधिक सम्मानित गायिका के रूप में विराजमान है।
   1947 में विभाजन के बाद जब उनके गुरू अमानत अली खान पाकिस्तान चले गए तो उन्होंने अमानत खान देवास वाले से शास्त्रीय संगीत सीखा। इस दौरान बड़े गुलाम अली खान के शिष्य पंडित तुलसीदास शर्मा ने भी उन्हें प्रशिक्षित किया और संगीतकार गुलाम हैदर ने उन्हें 1948 में 'मजबूर' फिल्म का गीत 'दिल मेरा तोड़ा' गवाया और अपने उर्दू के उच्चारण को सुधारने के लिए मास्टर शफी से बकायदा उर्दू का ज्ञान लिया। 1949 में जब कमाल अमरोही की फिल्म 'महल' में उन्होंने मधुबाला पर फिल्माया गीत 'आएगा आने वाला गाया' तो सारा देश उनकी आवाज से मंत्रमुग्ध हो गया। उसके बाद से हर फिल्म में लता का गाया गाना जरूरी माना जाने लगा।
   पचास के दशक में अनिल विश्वास के साथ अपना गायन आरंभ कर लताजी ने शंकर-जयकिशन, नौशाद, एसडी.बर्मन, पंडित हुस्नलाल भगतराम, सी. रामचन्द्र, हेमंत कुमार, सलिल चौधरी, खैयाम, रवि, सज्जाद हुसैन, रोशन, कल्याणजी-आनंदजी, वसंत देसाई, सुधीर फडके, उषा खन्ना, हंसराज और मदनमोहन के साथ स्वरलहरियां बिखेरी। साठ और सत्तर के दशक में लता ने चित्रगुप्त, आरडी बर्मन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, सोनिक ओमी जैसे नए संगीतकारों के साथ काम किया। उसके बाद उन्होंने राजेश रोशन, अन्नु मलिक, आनंद मिलिन्द, भूपेन हजारिका, ह्रदयनाथ मंगेशकर, शिवहरी, राम-लक्ष्मण, नदीम श्रवण, जतिन-ललित, उत्तम सिंह, एआर रहमान और आदेश श्रीवास्तव जैसे नए संगीतकारों को अपनी आवाज देकर फिल्मी दुनिया में स्थापित किया। जहां तक गायकों का सवाल है लता ने हर काल के हर छोटे बड़े गायकों की आवाज से आवाज मिलाकर श्रोताओं के कानों में रस घोला है।
-------------------------------------------------------------------------