- एकता शर्मा
शक्तिचंद 'बिमल' यही नाम बताया था उन्होंने मुझे पहली मुलाकात में! नाम अटपटा सा लगा, पर मैंने ध्यान नहीं दिया! करीब 4 साल पहले उनकी कंपनी के लीगल केस के सिलसिले में वो मुझसे मिलने आए। उसके बाद मैं उनकी वकील बन गई! कंपनी से जुड़े कई लीगल मामलों में उनसे सलाह-मशविरा होता रहा। करीब 60-62 साल के साधारण पर्सनालिटी वाले, इस खुशमिजाज व्यक्ति से उसके बाद कई बार मुलाकात हुई! 4 साल से वे लगातार कोर्ट में केस की हर तारीख पर आते रहे। लगातार मिलते रहने से अनौपचारिक बातचीत भी हुई! इस दौरान मैं और मेरे ऑफिस का स्टॉफ उन्हें 'बिमल साहब' के नाम से ही पहचानते हैं। यहाँ तक कि कंपनी के मालिकों से भी जब मेरी बात हुई, उन्होंने उनके बारे में 'बिमलजी' कहकर ही संबोधित किया। आशय यह कि वे सभी के लिए सिर्फ 'बिमलजी' ही हैं शक्तिचंद नहीं।
एक केस के सिलसिले में उनका एक शपथ पत्र लगना था। जानकारी देने के हिसाब से उनके पिता का नाम पूछा तो मैं सुनकर अचंभित रह गई! पिता के नाम के साथ उन्होंने अपना सरनेम 'राजपूत' बताया। मैंने चकित होकर पूछा कि आपका सरनेम 'बिमल' है और आपके पिता 'राजपूत' ये कैसे? मेरे सवाल पर वो थोड़ा झिझके! लेकिन, इस अटपटे सरनेम को लेकर उन्होंने जो कहानी बताई उसने मुझे अंदर तक हिला दिया! कोई सोच नहीं सकता कि उनके नाम के साथ जुड़ा 'बिमल' सरनेम उनकी पारिवारिक पहचान नहीं, एक निष्णात प्रेम की कहानी होगी! एक ऐसा प्रेम जो उनके नाम के साथ हमेशा के लिए चस्पा हो गया है! आज के इस दौर में जहाँ प्रेम सुबह से शाम तक भी नहीं टिक पाता, वहाँ ऐसा प्रेम सचमुच दुर्लभ है। जो कहानी शक्तिचंद ने बताई, वो सुनकर मुझसे रहा नहीं गया। मेरी कलम उठ गई, सबको वो प्रेम कहानी सुनाने के लिए जिसकी परिणति सुखांत तो नहीं हुई, पर ये प्रेम का एक ऐसा स्वरुप है, जो किसी की भी आँखे गीली कर देता है।
... तो सुनिए शक्तिचंद 'राजपूत' के 'बिमल' बनने की सच्ची प्रेम कथा :
शक्तिचंद उर्फ़ 'बिमल साहब' यानी हमारी इस कहानी के नायक हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गाँव के रहने वाले हैं। प्रकृति की गोद में सुदूर हरियाली और पहाड़ियों के प्रेम भरे वातावरण में ही उनका बचपन बीता। जब थोड़ी समझने की उम्र हुई तो उनके दिल को गाँव की ही एक लड़की अच्छी लगने लगी। लड़की उन्हीं के स्कूल में थी, इसलिए नजरें दो से चार होने वक़्त नहीं लगा! इस लड़की का नाम था 'बिमला!' उस लड़की को शक्तिचंद से लगाव था या नहीं, ये तो नहीं पता! जो भी था एकतरफा ही था! लेकिन, शक्तिचंद ने उस लड़की को साथ जोड़कर अपने जीवन के सपनों का महल खड़ा कर लिया था। इस पर भी वे कभी बिमला के सामने प्यार का इजहार नहीं कर सके! गाँव का माहौल, लड़कपन, समाज और परिवार के डर के कारण उनकी हिम्मत भी नहीं हुई!
कहते हैं कि इश्क़ और मुश्क छुपाए नहीं जाते, वही शक्ति के साथ भी हुआ! दोस्तों के मजाक ने स्कूल में उनके बिमला से प्रेम को उजागर कर दिया। लेकिन, ये उम्र प्रेम करने और उसे निभाने की थी भी नहीं तो इसे मजाक की तरह लिया गया। दोस्तों ने भी इसे हंसी-ठिठोली में लिया और परिवार ने भी! भाई-बहनों ने भी शक्ति से उसके एकतरफा प्रेम की बातें मजाक में करना शुरू कर दी! यहाँ तक कि पिता ने भी समझाया कि ये उम्र नहीं है कि तुम प्रेम प्रपंच पड़ो! लेकिन, शक्ति का दिल तो कुछ और ही ठान चुका था। उन्हें अपने निस्वार्थ प्रेम को मजाक बनते देख दुःख हुआ! उधर, स्कूल में बिमला तक बात पहुँची तो उसने भी इसे गंभीरता से लिया! एक दिन शक्ति ने बिमला को स्कूल के कॉरिडोर में रोककर अपने मन की बात कहना चाही! लेकिन, शक्ति कुछ कह पाते, उसके पहले उसने आँख तरेरकर कहा 'तुम्हारे नाम के साथ मेरा नाम नहीं जुड़ना चाहिए!' ये कहकर वो रास्ता बदलकर चली गई! उसकी आँखों में भी तिरस्कार के भाव थे! लेकिन, शक्ति (बिमल साहब) को अपने प्यार का ये तिरस्कार और मजाक सहन नहीं हुआ! बिमला ने अपने नाम के साथ शक्ति का नाम जुड़ने को लेकर जो कहा, वो शक्ति के लिए असहनीय पल था। उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि अब इस नाम से तो उनका जन्म जन्मांतर का रिश्ता बंधेगा! वे अपने प्यार को साबित करेंगे। उस एकतरफा प्यार को जिसे सिर्फ दिल्लगी और मजाक समझ लिया गया था।
इस सबके बीच स्कूल में परीक्षाओं का समय शुरू हो गया। परीक्षा के फॉर्म भरे जाने लगे! अपना परीक्षा फॉर्म भरते वक़्त शक्ति को अपने प्यार का सच साबित करने की सूझी! उन्होंने फॉर्म में अपना नाम शक्तिचंद और सरनेम की जगह 'बिमला' लिख दिया। ये सोचकर कि इस बहाने मैं अपने प्यार को हमेशा अपने साथ रखूँगा। प्यार की दीवानगी इस हद तक थी कि वो अपने नाम के साथ हमेशा के लिए 'बिमला' का नाम जोड़ना चाहते थे। उनकी ये दीवानगी काम कर गई। जब परीक्षा की अंक सूची आई तो सरनेम की जगह 'बिमल' (बिमला की जगह) लिखा हुआ था। घर में हंगामा हो गया। बात गाँव में भी फ़ैल गई कि राजपूत साहब के बेटे ने अपने नाम के आगे से सरनेम हटाकर 'बिमला' का नाम जोड़ लिया! पिता भी बहुत नाराज हुए और अंक सूची में इस नाम में संशोधन करना चाहा! लेकिन, शक्ति की जिद के आगे वो भी हार गए। लेकिन, शक्ति ने इस बहाने 'बिमला' को ये प्रेम संदेश जरूर दे दिया कि उनका प्रेम महज आकर्षण न होकर सच्चा है।
लेकिन, जीवन की कड़वी सच्चाई प्रेम को कब मानने लगी। गाँव का माहौल, समाज और जाति का डर, आज से चार दशक पहले की गाँव की मानसिकता ने शक्ति के प्रेम के अंकुर को पनपकर पौधा बनने से पहले ही मसल डाला! प्रेम विरोधी शक्तियों के सामने शक्तिचंद की ताकत जवाब दे गई। लेकिन, फिर भी उनकी बिमला 'बिमल' के रूप में उनके नाम के साथ जुड़ी थी!
इसी बीच बिमला की कहीं और शादी हो गई। वो गाँव से चली गई। वक्त के साथ शक्तिचंद को भी परिवार के दबाव में घर बसाना पड़ा। अपना घर, गाँव, परिवार सबकुछ छोड़कर बड़े शहर में बसना पड़ा। लेकिन, उन्होंने अपने नाम के साथ बिमला का नाम जुड़ा रहने दिया। 'शक्ति' के साथ 'बिमल' का नाम कोई भी अलग नहीं कर सका। ये बात उनकी पत्नी को भी पता है, पत्नी ने भी इस नाम से समझौता कर लिया। शक्तिचंद नाम से पुकारा जाना भी अच्छा नहीं लगता, वे चाहते हैं कि उन्हें 'बिमल साहब' कहकर ही पुकारा जाए। वे आज भी 'बिमला' के नाम को उसी शिद्दत और प्यार से निभा रहे हैं। जबकि, उस बिमला को देखे और मिले उन्हें 45 साल से ज्यादा हो गए। अब तो उन्हें बिमला के बारे में कोई जानकारी तक नहीं है! वो कहाँ है, कैसी है, कभी शक्तिचंद को उसने याद भी किया है या नहीं ये तक पता नहीं! इसके बावजूद वे अपने उस एकतरफा प्यार को अपने नाम के साथ चस्पा किए हुए हैं! शक्ति कहते हैं कि प्रेम में जरुरी नहीं कि दोनों तरफ से हो, मेरे दिल में उसके लिए भावना थी, वो उसके दिल में हो न हो! मेरा अमर प्रेम यही है कि जब तक जियूँगा 'बिमल' के नाम के साथ ही पुकारा जाऊंगा और मेरे बाद भी कोई 'बिमला' को मुझसे अलग नहीं कर पाएगा। मैं 'बिमला' के साथ नहीं हूँ तो क्या हुआ, वो तो मेरे साथ। मेरे दिल में, मेरे नाम में भी!
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