Monday 11 January 2021

घरों पहुंची फिल्मों से बहुत कुछ बदला!

   कई फिल्में अभी भी थिएटर खुलने का इंतजार कर रहीं हैं। पर, सोशल डिस्टेंसिंग की बढ़ती अहमियत के बीच अगर थिएटर न खुलने या फुल कैपेसिटी पर फिल्में न दिखा पाने के कारण फिल्मों को नुकसान दिखता है, तो कई फिल्मकार ओटीटी की तरफ जल्द ही बढ़ सकते हैं। देश में फिल्मों का कारोबार नए युग की तरफ जा रहा है, फ़िलहाल ये कहना जल्दबाजी होगी! पर, देश में परिवार और दोस्तों के साथ जाकर फिल्म देखना सालों की आदत है। ये मान लेना कि ओटीटी का बढ़ता चलन थिएटर के बिज़नेस को कम कर देगा, अभी दावे से ये नहीं कहा जा सकता! 
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- एकता शर्मा

   ह सच है कि लॉक डाउन ने मनोरंजन में जिस बदलाव की रफ्तार तेज कर दी, उसकी तैयारी पिछले कुछ सालों से चल रही थी! फिल्म प्रोड्यूसर और सिनेमाघरों के बीच की खींचतान भी नई बात नहीं है। सिनेमाघर फिल्म व्यवसाय का एक बड़ा हिस्सा है। थिएटर मालिक कभी कम पैसे में फिल्म के राइट्स खरीदने या फिल्म चलाने के लिए कंटेंट में बदलाव या फिर एक्शन, डांस या सेक्स सीन बढ़ाने की भी डिमांड करते रहे हैं। ऐसी स्थिति में ओटीटी प्लेटफार्म का उदय नई बात जरूर है, पर अनोखी नहीं! बड़ी कमर्शियल फिल्मों के बराबर पैसे और अहमियत न मिलने के कारण छोटे बजट की फिल्में और आर्ट सिनेमा थिएटर के अलावा दूसरे विकल्प तलाशता ही रहा है। ओटीटी के जरिए उन्हें अपने लिए बेहतर प्लेटफॉर्म मिला है। कुछ साल पहले तक फिल्में कई हफ्तों तक थिएटर में लगी रहती थी। आज बड़ी से बड़ी फिल्में भी 2-4 हफ्ते का वक्त निकाल पाती हैं। उसमें भी बिज़नेस का सबसे बड़ा हिस्सा पहले वीकेंड में ही मिल जाता है! लेकिन, इस वक्त ठप पड़े बिज़नेस और भविष्य को लेकर बढ़ती अनिश्चितता बड़ी फिल्मों को भी थिएटर से दूर खींच रही हैं! 
    कई फिल्में अभी भी थिएटर खुलने का इंतजार कर रहीं हैं। पर, सोशल डिस्टेंसिंग की बढ़ती अहमियत के बीच अगर थिएटर न खुलने या फुल कैपेसिटी पर फिल्में न दिखा पाने के कारण फिल्मों को नुकसान दिखता है, तो ओटीटी का दायरा जल्द ही बढ़ सकता हैं। हालांकि, थिएटर में जाकर फिल्म देखना लोगों की वीकेंड आउटिंग का हिस्सा है और ओटीटी उसमें ज्यादा बदलाव ला पाएंगे, ऐसा मुमकिन नहीं! कोरोना वायरस ने लोगों को बाहर निकलकर करने वाली हर चीज से पहले दो बार सोचने पर मजबूर तो कर दिया है! लेकिन, सभी को जल्द स्थिति नॉर्मल होने की उम्मीद है। ओटीटी प्लेटफार्म के बढ़ते चलन से लोगों की फिल्म देखने की आदतों पर कितना फर्क पड़ेगा, इस पर पिछले कुछ सालों से लगातार बात हो रही है। ये कहना गलत नहीं कि भारत में आज भी ज्यादातर फिल्में बड़े पर्दे को ध्यान में रखकर ही बनाई जाती है। लेकिन, घर में आराम के साथ किसी भी वक्त फास्ट फॉर्वर्ड और रीवाइंड कर मूवी देखने का अनुभव धीरे-धीरे ओटीटी के लिए नया मार्केट बना रहा है, जो शायद लोगों को थिएटर तक जाने से भी रोके!
   अब तक इस इंडस्ट्री के चलते रहने का कारण रहा है भारत में लगातार बढ़ता फिल्म व्यवसाय! इसमें हर प्लेटफॉर्म के लिए कंटेंट की कोई कमी नहीं रही। भारत में 20 से अधिक भाषाओं में हर साल एक हज़ार से ज्यादा फिल्में बनती हैं और 3.3 अरब टिकटों की बिक्री के साथ भारत में थिएटरों की संख्या भी सबसे अधिक है। अब तक सिनेमाघरों के पास ओटीटी के मुकाबले जो सबसे बड़ी बढ़त हांसिल थी, वो थी नई फिल्मों की रिलीज। जहां नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म दुनियाभर से नया और पुराना कंटेंट दर्शकों के लिए लाते रहे हैं, वहीं बॉलीवुड की सभी बड़ी फिल्में सिनेमाघरों में पहले रिलीज होती रही है।
   फिल्मों का कारोबार एक नए युग में जा रहा है! पर, देश में परिवार और दोस्तों के साथ जाकर फिल्म देखना सालों की आदत है। ये मान लेना कि ओटीटी का बढ़ता चलन थिएटर के बिज़नेस को कम ही करेगा, ऐसी बात शायद जल्दबाजी हो सकती है। मल्टीप्लेक्स आने के कई सालों बाद भी मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में अभी भी कुछ आईकॉनिक सिंगल स्क्रीन थिएटर हैं, जो चाहे पॉपुलर न रहे हों, लेकिन अपनी एक जगह बनाए हैं। मुंबई का मराठा मंदिर वो सिनेमा है जिसने 90 के दशक की शाहरुख खान की फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' को लगातार 20 साल तक दिखाया। ये अपने आपमें एक एतिहासिक उदाहरण है, जो ये साबित करता है कि भारत में फिल्मों का कारोबार इतना बड़ा है कि उसमें सबके लिए जगह है। मल्टीप्लेक्स के सिंगल स्क्रीन की तरह आउटडेटेड होने में भी अभी कई साल का वक्त है। फिल्मों की ओटीटी पर रिलीज शायद जल्द ही कॉमन हो जाए और थिएटरों और ऑनलाइन के बीच बिज़नेस बंट जाए! पर, कहा जा सकता है कि सालाना हजारों फिल्में बनाने वाली भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में हर प्लेटफॉर्म के लिए कंटेंट बनाने की क्षमता है। ओटीटी प्लेटफार्मों की ग्रोथ से फिल्मों को बेहतर मौके मिल जाते हैं।
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