Monday 21 March 2016

महिलाओं के संघर्ष के चार चेहरे

- एकता शर्मा 

  महिलाओं के संघर्ष का कोई अंत नहीं है। ये कहानी शुरू तो होती है, पर ख़त्म नहीं होती! जब इस तरह की कोई कहानी अदालतों में पहुँचती है और महिलाओं को उससे रूबरू होना पड़ता है! तब लगता है कि पुरुष प्रधान समाज में अभी भी महिलाओं की बराबरी की बात करना बेमानी है! एक वकील के तौर पर मुझे ऐसी कई महिलाओं से सामना करने का मौका मिला, जिनका संघर्ष हमेशा नया और रोज का लगता है। ऐसी 4 महिलाओं के संघर्ष की दास्तान जो पति, परिवार, बच्चे और समाज से अपने हक़ के लिए अदालतों में लड़ रही हैं।  

दृश्य - एक 
  ये कहानी है एक 30 साल की विधवा महिला ललिता (बदला हुआ नाम) की, जिसे पति की मौत के बाद अपने पति के हिस्से की जमीन के लिए ससुराल से जूझना पड़ा! ये दास्तान शुरू होती है पति की दुर्घटना में मौत से! इसके बाद तो ललिता की जिंदगी ही बदल गई! ससुराल वालों ने आँखे फेर ली! ससुराल की साझा जमीन पर देवर ने कब्ज़ा कर लिया! जब उसने जमीन में पति का हिस्सा माँगा तो देवर ने टरका दिया कि परिवार की कोई जमीन नहीं है। इसलिए कि देवर ने पुश्तैनी जमीन पर अफरा-तफरी करके उसे अपनी पत्नी के नाम करवा लिया था! अब एक ही रास्ता बचा था कि अदालतों के चक्कर लगाए जाएँ! घरेलू महिला ललिता को पहली बार ससुराल के खिलाफ घर से बाहर निकलना पड़ा! यहीं से शुरू हुई जीवन के संघर्ष की दास्तान! वकीलों की फीस, कोर्ट फीस, आवेदन, फोटो कॉपियां, जमाने की नजरें, तारीखों का लम्बा इंतजार! हर दूसरे-तीसरे दिन कोट जाना! जिस दिन कोर्ट जाना हो, उस दिन की मजदूरी का नुकसान! गांव से करीब 2 कोस पैदल चलकर जाना, फिर वहाँ से बस से जाना! इन सारे खर्चों के लिए जूझना। कोर्ट तक पहुँचने बच्चों को अकेले छोड़कर आने का दर्द और जिम्मेदारी! फिर पूरा दिन उनके सुरक्षित होने की चिंता! सबसे ज्यादा पीड़ादायक बात तो ये थी कि ललिता को अपने ही लोगों से जूझना पड़ा था!
  अपने ही हक़ को अदालत में साबित करना आसान नहीं होता! खासकर उस महिला के लिए जिसके पति का परिवार उसके खिलाफ खड़ा हो! देवर ये साबित करने में लगा था कि ये जमीन पुश्तैनी नहीं, उसकी अपनी है! उधर, अदालत में उसका वकील भी ललिता को झूठा साबित करने में अड़ा रहा! ऐसे वक़्त में मैंने भी उसके (ललिता के) वकील के तौर पर नहीं, एक दोस्त की तरह उसका साथ देने का फैसला किया और कानूनी दांव पेंच से जमीन पर हक़ साबित करने का रास्ता निकाला! उस विवादस्पद जमीन पर बोई गई फसल पर उसे कब्ज़ा करने की हिम्मत दिलाई! उसे मानसिक तौर पर तैयार किया कि यदि हक़ चाहिए तो हर स्तर पर लड़ाई लड़ना पड़ेगी! तारीफ करना पड़ेगी ललिता की, कि हमेशा घूँघट में दुबकी रहने वाली ललिता में अपने हक़ को पाने का जज्बा जागा और उसने अदालत की लड़ाई के साथ हिम्मत करके मौके पर भी अपनी लड़ाई लड़ी! कटती फसल के वक़्त देवर के सामने डंडा लेकर खड़े होने का साहस किया! देवर को कानूनी दांव पेंचों में उलझाकर इतना मजबूर कर दिया कि उसे समझौते के लिए मजबूर होना पड़ा! यदि ऐसा नहीं होता तो ये मामला 4 साल के बदले कई और साल खिंचता रहता! कानून ने अपना काम किया वो तो अपनी जगह है, पर यदि ललिता खुद हक़ के लिए हिम्मत नहीं करती, तो शायद मैं भी कुछ नहीं कर पाती!    
दृश्य - 2 
  ये कहानी है उस महिला सावित्री (बदला हुआ नाम) की, जिसे उसका पति इसलिए छोड़ना चाहता है। इसलिए कि उसके जीवन में कोई दूसरी महिला आ गई! सावित्री पर चारित्रिक आरोप लगाकर उसे घर से निकाल दिया! मजबूर होकर वो पिता के घर रहने आ गई! वहाँ उसे भाई-भाभियों के ताने सुनने पड़ रहे हैं। आर्थिक समस्या से वो जूझ ही रही है। बच्चों की पढाई को लेकर भी उसे चिंता है। अदालत में उसे पति द्वारा दायर मुक़दमे का सामना करने के लिए वकीलों की फीस और अन्य खर्च से भी निपटना पड़ रहा है! दो बच्चों की इस माँ पर अनर्गल आरोप लगाकर पति ने उसके खिलाफ तलाक़ का मुकदमा दायर किया है। जिस महिला का अपना कोई दोष नहीं, कोई जुर्म नहीं, जिसने कोई गलती नहीं की! पर, वो सिर्फ इसलिए कटघरे में खड़ी होने को मजबूर हो गई कि पति का दिल किसी और पर आ गया! वो नहीं चाहती कि पति का साथ छूटे! यदि ऐसा होता है तो वो अपने बच्चे के साथ कहाँ जाएगी? अपनी मजबूरी की खातिर सावित्री सौतन को भी स्वीकारने को तैयार है! लेकिन, पति इसके लिए भी राजी नहीं!
दृश्य - 3 
  अब ये एक अन्य महिला राजकुमारी (बदला हुआ नाम) की दर्दभरी दास्तान है। इस महिला ने अपराधिक चरित्र वाले पति के खिलाफ तलाक का मामला अदालत में दर्ज किया है, पर पति उसे छोड़ने को राजी नहीं! राजकुमारी को सात साल पहले नहीं मालूम था कि उसने जिस मनोज से प्रेम विवाह करने का फैसला किया है वो एक अपराधिक सोच वाला व्यक्ति है! वो नशीली दवाइयों का आदी रहा! लूटपाट, चोरी, हत्या के उसपर कई मामले दर्ज हैं। शादी के बाद पति की मार, नशे में की जाने वाली क्रूरता! नशीले पति की मानसिक स्थिति से जूझना! लेकिन, जब राजकुमारी ने पति का सच जाना, तब तक बहुत देर हो चुकी थी! हत्या के एक मामले में मनोज को आजीवन कारावास की सजा हो गई! एक बच्चे की माँ राजकुमारी अब जीवन में बदलाव चाहती है! लेकिन, अब वो अपराधी पति उसकी मजबूरी का फ़ायदा उठा रहा है। वो राजकुमारी को तलाक नहीं दे रहा! अब इस महिला को अदालत में ये साबित करना है कि वो पति की क्रूरता से पीड़ित है, इसलिए उसे पति से मुक्त किया जाए! लेकिन, अदालत में साबित करना इसलिए मुश्किल है कि पति के परिवार वाले उसका साथ नहीं दे रहे! पास-पड़ोस के लोग मनोज की अपराधिक छवि के कारण भयभीत हैं, इसलिए खामोश हैं! उसने प्रेम विवाह किया था, इसलिए माता-पिता और परिवार के ताने भी उसे सुनना पड़ रहे हैं। आशय ये कि एक महिला अपराधी पति से छुटकारा इसलिए नहीं पा रही कि उसे साबित करना आसान नहीं है! आर्थिक समस्या, पारिवारिक समस्या, लोगों की कौंधती नजरें, अदालतों के चक्कर, बच्चे की पढाई में पति के नाम के कारण आती परेशानी! ये मामला अभी विचाराधीन है!
दृश्य - 4 
  ये उस माँ मैहर बाई (81 साल-बदला हुआ नाम) की दास्तान है, जिसे अपने बेटे से ही भरण-पोषण के लिए अदालत में जूझना पड रहा है। पति की मौत के बाद जिन लोगों की नजरें बदल जाती है, उनमें बेटा भी होगा, ये उसने सोचा नहीं था! पीहर में भी कोई बचा नहीं! रिश्तेदारों के यहाँ दो-चार दिन रहकर दिन गुजार रही है। रोटी-रोटी के लिए मजबूर इस माँ को जब बेटे ने सारी संपत्ति पर कब्ज़ा करने के बाद घर से निकाल दिया, तो अदालत का दरवाजा खटखटाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था! इस बूढी महिला के मामले का अभी फैसला नहीं हुआ है! लेकिन, उसे उम्मीद है कि एक दिन बेटा उसे माँ के रूप में घर में पनाह देगा! फिलहाल तो वो भरण-पोषण के लिए अदालत के चक्कर लगा रही है! उसके पास तो गांव से अदालत तक आने का बस का किराया भी नहीं होता! मैं उसकी वकील जरूर हूँ, पर उसके दर्द में उसकी साझेदार भी!
(लेखिका वकील तथा महिला अधिकारों की कानूनी जानकार है)
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