Wednesday 8 March 2017

डायलॉग बोलने का अंदाज ही जिनकी पहचान बना

 - एकता शर्मा 

  फिल्मों में संवाद अदायगी का अपना अलग ही अंदाज होता है। कई एक्टर तो सिर्फ इसलिए पसंद किए गए कि उनके संवाद बोलने का अंदाज  पहचान बना! फ़िल्मी दुनिया के हर दौर के सितारों के हिस्से में ऐसे संवाद आते रहे, जिन्होंने दर्शकों में उनकी लोकप्रियता बढ़ाई। उन सितारों के साथ ज्यादा ऐसा ज्यादा हुआ जिनडायलॉग बोलने का अंदाज नाटकीय रहा। राजकुमार के हर डायलॉग से पहले 'जॉनी' बोलना उनका ट्रेड मार्क बन गया था। ‘पाकीजा’ में उनका बोला एक संवाद 'आपके पैर देखे, बहुत हसीन हैं। इन्हें जमीन पर मत उतारिए मैले हो जाएंगे’ बहुत चला। राजेश खन्ना ने कई फिल्मों में काम किया। लेकिन, ‘आनंद’ के कई दिल को छू लेने वाले संवादों ने फिल्म  डाल दी थी। फिर ‘अमर प्रेम’ का उनका संवाद ‘पुष्पा, आई हेट टियर्स’ ने तो मानो सनसनी मचा दी! लेकिन, बेहतरीन आवाज होने के बावजूद अमिताभ बच्चन को सुनील दत्त ने ‘रेशमा और शेरा’ में गूंगे का किरदार दिया था। 
  अपने करियर में दमदार आवाज के दम पर अमिताभ ने कई संवादों को यादगार बना दिया। ‘मर्द’ का ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ हो या ‘कालिया’ का ‘हम जहां खड़े हो जाते हैं लाइन वहीं से शुरू हो जाती है’, ‘शराबी’ का ‘मूंछे हों तो नत्थूलाल जैसी’ या ‘शाहंशाह’ का ‘रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते हैं नाम है बादशाह।’ 1978 में बनी ‘डॉन’ का एक संवाद ‘डॉन का इंतजार तो ग्यारह मुल्कों की पुलिस कर रही है लेकिन सोनिया, डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमिक है’ सब पर भारी रहा। शत्रुघ्न सिन्हा का ‘विश्वनाथ’ का संवाद ‘जली को आग कहते हैं बुझी को राख कहते हैं, जिस राख से बारूद बने उसे विश्वनाथ कहते हैं’ बेहद हिट हुआ। 
  इन दिनों फिल्मों में फूहड़ संवादों का चलन भी बढ़ा है। सलमान खान ने अपनी पहली फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ में एक संवाद बोला था ‘दोस्ती का एक उसूल है मैडम, नो सॉरी नो थैंक यू।’ लेकिन, ‘दबंग’ का उनका संवाद था ‘इतने छेद कर देंगे कि कनफ्यूज हो जाओगे!’ ‘वांटेड’ में उनका डायलॉग था ‘एक बार जो मैंने कमिटमेंट कर दी तो मैं अपने आप की भी नहीं सुनता।’ यह ठीक ठीक रहा और लोकप्रिय भी हुआ। लेकिन, उनकी ज्यादातर फिल्मों में सड़क छाप संवादों का ही जोर रहा। ‘इश्क’ में आमिर खान का डायलॉग था ‘दुनिया में तीन चीजों के पीछे कभी नहीं भागना चाहिए बस, ट्रेन और छोकरी। एक जाती है दूसरी आ जाती है।’
  विलेन के बोले संवाद को लोगों तक पहुंचाने का जो काम ‘शोले’ ने किया, वह कोई और फिल्म तो नहीं दिखा पाई! लेकिन, ‘कालीचरण’ में अजित का बोला संवाद ‘सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है’ और ‘मिस्टर इंडिया’ में अमरीश पुरी का संवाद ‘मोगैंबो खुश हुआ’ काफी लोकप्रिय रहा। अभिनेत्रियों के हिस्से में लोकप्रिय संवाद कम ही आए हैं। ‘दबंग’ में सोनाक्षी सिन्हा का संवाद 'थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब प्यार से लगता है’ और ‘द डर्टी पिक्चर्स’ में विद्या बालन का संवाद ‘फिल्म तीन वजह से चलती है एंटरटेनमैंट, एंटरटेनमैंट और एंटरटेनमैंट और मैं एंटरटेनमैंट हूं’ लोकप्रिय हुआ। अब तो संवादों में अशिष्ट शब्द और कहीं कहीं तो गाली गलौच इस्तेमाल करने का चलन शुरू हो गया! नो वन किल्ड जेसिका, मर्दानी, गुलाब गैंग, डेढ़ इश्किया, गैंग्स आफ वासेपुर की गालियां को सवादों की तरह पेश किया गया! यह प्रवृत्ति रुकने वाली नहीं है। हो सकता है, कुछ दिनों बाद फिल्मों में डायलॉग की जगह खुलेआम गालियां सुनने को मिले!
------------------------------------------------------------------------------

No comments:

Post a Comment