Saturday 13 July 2019

बच्चे को सिर्फ प्यार ही न दें, उसकी सुरक्षा भी करें!



 बाल यौन शोषण

- एकता शर्मा
र तरह के अपराध का एक अपना अलग मनोविज्ञान होता है। अपराध करने वाले की शारीरिक भावभंगिमाएं और उनकी नजरें इस बात की चुगली करती हैं कि वे कोई वारदात करने की मंशा में हैं! लेकिन, बाल यौन शोषण ऐसा अपराध है, जिसके अपराधी को न तो नजर से परखकर पहचाना जा सकता है और न उसकी भंगिमाएं ही आम अपराधियों जैसी होती है! समाज के अंदर पनपता ये सबसे वीभत्स अपराध है। वहीं ये पनपता है और समाज ही इसे छुपाता भी है! कहा जा रहा है कि आजकल ऐसी घटनाएं ज्यादा बढ़ गई है! ये बात कुछ हद तक सही है, पर घटनाओं के सामने आने का मुख्य कारण समाज में आई जागरूकता भी है! लेकिन, सबसे बड़ा सवाल है कि ऐसी घटनाओं से बच्चों को बचाया कैसे जाए? इसलिए कि ये ऐसा अपराध है, जिसका दोषी कहीं भी हो सकता है!
   आए हर दिन बच्चों के साथ होने वाली यौन शोषण की घटनाएं सामने आती हैं। बाल यौन शोषण देश और समाज की कितनी बड़ी समस्या है, इसका सहजता से अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता! कहा जाता है कि रोजाना चार में से एक लड़की और छह में से एक लड़के के साथ बाल्यावस्था में यौन शोषण होता है। बच्चों की मासूमियत का फ़ायदा उठाने वाला या तो कोई परिवार का व्यक्ति है, परिचित होता है या ये घटना स्कूल में घटती है। शोषक का परिचित होना ही, इस तरह की घटनाओं के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण माना जा सकता है। क्योंकि, बच्चा उस पर सहजता से भरोसा कर लेता है और बहलावे में आ जाता है। ऐसी घटनाओं में सामान्यतः बच्चे ये नहीं समझ पाते कि उनके साथ जो हो रहा है, वो गलत है। वो परिवार के व्यक्ति, परिचित व्यक्ति या स्कूल में बिना समझे शोषित हो जाता है!
  आज के हालात में परिवार के लिए सबसे ज्यादा जरुरी है कि वे अपने बच्चों को प्यार के अलावा उनकी सुरक्षा पर भी अतिरिक्त ध्यान दें! देखा गया है कि परिवारों में बच्चों की हर फरमाइश को तो पूरा करने की कोशिश होती है, पर बच्चे के मनोभावों को नहीं परखा जाता! कामकाजी परिवारों में ये समस्या सबसे ज्यादा है। जहाँ पति और पत्नी दोनों ही अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों को सँभालने की जिम्मेदारी या तो झूलाघर वालों की होती है या घर में किसी सर्वेंट की! पति-पत्नी दोनों अपने बच्चे की सुरक्षा और देखभाल से निश्चिंत हो जाते हैं, पर समस्या यहीं से शुरू होती है। बच्चा झूलाघर या घर में होने वाले उस कथित शोषण को समझ नहीं पाता! ये घटना बाद में कभी पकड़ में जरूर आती है, पर तब सिवाय हाथ मलने के और कुछ नहीं होता! ऐसी स्थिति में जरुरी है कि बच्चे को उसकी शोषण से सुरक्षा के लिए अच्छे और बुरे में फर्क़ करना सिखाना जाए! कई परिजनों को संकोच होता है कि यौन शोषण जैसी बातों की समझ के लिए उनका बच्चा अभी बहुत छोटा है। ये धारणा कई सभ्रांत परिवारों में देखी गई है! वे तो इसे कोई समस्या ही नहीं मानते! ऐसे में बच्चों के यौन शोषण के शिकार हो जाने की आशंका ज़्यादा बढ़ जाती है। क्योंकि समाज, परिवार और बच्चे के परिवेश में मौजूद यौन शोषक इसी अज्ञानता का फ़ायदा उठाने  नहीं चूकते!
  कुछ ऐसी बातें हैं, जो हर परिवार को अपने बच्चों को निसंकोच बताना जरुरी है! इसलिए कि हमारे देश में यौन शिक्षा अभी शर्म के दायरे से बाहर नहीं निकल सकी है! इसलिए परिवार का ही दायित्व है कि अपने बच्चों को वो जानकारियां जरूर दें, जो उसकी सुरक्षा और के लिए जरुरी है! लड़कों के मुकाबले लड़कियों को ये जानकारी विस्तार और संभावित खतरे को देखते हुए देना सबसे ज्यादा जरुरी है! बच्चों को 'गुड़ टच' और 'बेड टच' तक ही सीमित न रखें, उसके आगे भी उन्हें खुलकर बताएं कि क्या सही है क्या गलत! बच्चे को बताएं कि किसी गैर व्यक्ति की गोद में न बैठे, जबरदस्ती करे तो घर के किसी सदस्य को तत्काल बताएं! बच्चे जब बाहर खेलने जाएँ, तो ध्यान रखें कि वे कहाँ और क्या खेल रहे हैं! बच्चा यदि किसी से मिलने असहज महसूस करता है तो उसकी अनदेखी करें और न दबाव बनाएं! पता जरूर करें कि इसके पीछे क्या कारण है! इसके अलावा किसी के प्रति ज्यादा लगाव तो भी ध्यान दें कि ऐसा क्यों है! यदि बच्चा खामोश रहने लगे और दोस्तों से कटने लगे तो भी कारण पता लगाने की कोशिश करें!   
   इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चा किस तरह की किताबें पढ़ने में रूचि ले रहा हैं और वो टीवी के कौनसे प्रोग्राम देखने में उसकी रूचि हैं, इस बात पर भी ध्यान दें। यदि बच्चा किसी अन्य बच्चे, परिवार के किसी सदस्य या किसी टीचर की शिकायत करता है, तो उसकी अनदेखी न करें, उसे गंभीरता से लें और सही कदम उठाएं। बच्चे को ये भी बताएं कि वो हर बात निसंकोच बताए! जहाँ तक संभव हो, उसका दोस्त बन कर रहें, ताकि ऐसा कुछ होने पर बताने में उसे झिझक न हो! ! ध्यान देने वाली बात ये भी है कि बच्चे के सामने यौन जानकारी खतरनाक रूप न ले! उसे खुद ही इस बारे में शिक्षित करें और इसकी अच्छाई और बुराई से अवगत कराएं! पेरेंट्स का सिखाना इसलिए जरुरी है कि ऐसे मामलों में जो शिक्षा पेरेंट्स दे सकते हैं, वो किसी और से संभव नहीं है! हो सकता है, बाहर वाले की शिक्षा को बच्चा गलत नजरिए से ले!
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