Saturday 21 September 2019

हर मूड में हिट और फिट हैं, बरसते सावन के गीत!

- एकता शर्मा

  हिंदी फिल्मों में सावन और बरसात के गीतों की अलग ही रंगत रही है। अब तो न ऐसी फ़िल्में बनती हैं और न सावन के गीत फिल्माने का कोई चलन है। लेकिन, ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के ज़माने में ज्यादातर गीत नायिकाओं पर विरह के अंदाज में फिल्माए गए! नायिका को ये विरह अपने साजन का भी था, पीहर का भी, भाई का भी और पिता का भी! लेकिन, नायिका को अपने साजन के घर वापस आने का इंतजार कुछ ज्यादा होता था। इस अहसास का फिल्मों में जमकर इस्तेमाल किया गया।
   1944 की फिल्म ‘रतन’ में ‘रूमझुम बरसे बदरवा मस्त हवाएं आई, पिया घर आजा ...' इसी तरह 1955 में आई ‘आजाद’ में नायिका बादलों से याचना करती है ‘जारी-जारी ओ कारी बदरिया, मत बरसो री मेरी नगरिया, परदेस गए हैं सांवरिया।’ 1955 में ही आई राजकपूर और नरगिस की 'श्री 420' का गीत ‘प्यार हुआ इकरार हुआ’ संगीत प्रेमियों का पसंदीदा है। फिल्म ‘जुर्माना’ (1969) का लता मंगेशकर का गाया गीत ‘सावन के झूले पड़े, तुम चले आओ’ आज भी सावन में बजता सुनाई देता है। 'पड़ गए झूले सावन ऋतु आई रे' (बहू बेगम), ‘गरजत बरसत सावन आयो रे’ (बरसात की रात), ‘अब के सजन सावन में आग लगेगी बदन में’ (चुपके चुपके) गीत नायिका के विरह की याद दिलाते हैं। 'सावन आया बादल आए मोरे पिया नहीं आए’ (‘जान हाजिर है), ‘तुझे गीतों में ढालूंगा, सावन को आने दो’ (सावन को आने दो), और ‘लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है’ (चांदनी) को कौन भूल सकता है। अक्षय कुमार और रवीना टंडन का 'मोहरा' का गीत ‘टिप टिप बरसा पानी सावन में आग लगाए’ अपने ख़ास अंदाज के लिए याद किया जाता है। इसी तरह मिक्का के एलबम ‘सावन में लग गई आग, दिल मेरा हाय’ लोकप्रिय है।
   किशोर कुमार का सावन वाले गीतों से खास रिश्ता रहा है! उन्होंने इस रंगीले मौसम के कई गीतों गाए हैं। 1958 की फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' का किशोर कुमार और मधुबाला पर फिल्माया गीत ‘एक लड़की भीगी-भागी सी’ भी बहुत प्यारा गीत है। 'मंजिल' फिल्म के ‘रिमझिम गिरे सावन सुलग-सुलग जाए मन’ किशोर कुमार का बरसात पर गाया खूबसूरत गाना था। 'अजनबी' फिल्म के ‘भीगी-भीगी रातों में’ किशोर कुमार की मदहोश कर देने वाली आवाज थी। 'नमक हलाल' के लिए किशोर कुमार का गाया ‘आज रपट जाएं तो हमें न उठईयों’ बेहद खुशनुमा गीत है। जितेन्द्र, रीना राय पर फिल्माया ‘अब के सावन में जी डरे रिमझिम सर से पानी गिरे तन में लगे आग सी...’ (जैसे को तैसा) बरसात में होंठों पर आ ही जाता है।
 आशा पारेख और धर्मेन्द्र का गीत ‘आया सावन झूम के (आया सावन झूम के), और राजेन्द्र कुमार, बबीता पर फिल्माया ‘रिमझिम के गीत सावन ... ’ (अंजाना) के अलावा फिल्म 'मिलन' में सुनील दत्त की गायन क्लास में शिष्या नूतन की मीठी तान ‘सावन का महीना पवन करे शोर’ की मधुरता का कोई जवाब नहीं! धर्मेन्द्र और आशा पारेख की जोड़ी वाली फिल्म 'मेरा गाँव-मेरा देश' का गीत ‘कुछ कहता है ये सावन’ भी बेहतरीन प्रस्तुति था। नीलम और शशि कपूर पर फिल्माया 'सिंदूर' का गीत ‘पतझड़ सावन बसंत बहार, एक बरस में मौसम चार’ मर्म आज भी सुनने वाले को कचोटता है।
  देशभक्ति वाली फ़िल्में बनाने वाले मनोज कुमार ने भी 'रोटी कपड़ा और मकान' में जीनत अमान को देहदर्शना गीत 'हाय हाय ये मज़बूरी ...' पर नचाकर दर्शकों को प्रसन्न किया था। 1958 की फिल्म 'फागुन' के गीत 'बरसो रे बैरी बदरवा बरसो रे ...' के बोल ही नायिका के मनोभाव को व्यक्त करते हैं। प्रेमियों के साथ सावन गीत किसानों को भी सुकून दिलाते हैं। किसानों को इस मौसम का हमेशा ही इंतजार रहता है। 'लगान' का गीत ‘घनन-घनन घिर-घिर आए बदरा’ इसी का उदाहरण है। 'गुरु' के गीत ‘बरसो रे मेघा-मेघा’ के जरिए एक ग्रामीण अल्हड़ लड़की के बारिश में सबसे बेखबर होकर मस्ती करती दिखती है। 60 और 70 के दशक में जब ग्रामीण पृष्ठभूमि पर फिल्में बनती थीं, तब होली गीतों को सावन गीत की तरह भी इस्तेमाल किया गया। कई फिल्मों के तो नाम तक सावन से जोड़कर रखे गए! आया सावन झूम के, सावन को आने दो, ‘प्यासा सावन, सोलहवां सावन, सावन की घटा, और ‘सावन भादो’ जैसी कई फ़िल्में उस दौर में बनी!
----------------------------------------------------------------

No comments:

Post a Comment