Saturday 21 September 2019

इस अत्याचार का जख्म जिंदगीभर नहीं भरता!

बाल यौन शोषण

- एकता शर्मा 



  यौन विकृतियों से पीड़ित लोगों को बच्चे सबसे सॉफ्ट टारगेट लगते हैं। इसलिए कि बच्चों का बालमन ये भी समझ नहीं पाता कि उनके साथ जो हो रहा है, वो एक घृणित कृत्य है! वे छोटे-छोटे लालच में फँस जाते हैं या धमकियों से डरकर शोषण झेल जाते हैं। मनोचिकित्सकों का कहना है कि अभी बाल यौन शोषण के जितने मामले पुलिस में दर्ज किए जा रहे हैं, असली संख्या उससे कहीं बहुत ज्यादा है। ये इसलिए दर्ज नहीं होते कि कई मामलों में घटना का आरोपी परिवार का नजदीकी सदस्य ही होता है।
  रेलवे स्टेशन, सडकों या धार्मिक स्थलों पर लावारिस घूमने वाले बच्चों के पुनर्वास के क्षेत्र में काम कर रही 'चाइल्ड हेल्प लाइन' के मुताबिक घरों से भागने वाले अधिकांश बच्चे घरों पर किसी न किसी रूप में यौन अत्याचार के शिकार पाए गए हैं। देशभर में 53.22 प्रतिशत बच्चे यौन अत्याचार के शिकार होते हैं। इस पर नियंत्रण का सबसे अच्छा उपाय है 'जागरूकता।' बच्चों को जितना ज्यादा जागरूक किया जाएगा, इस तरह से शोषण को रोकना उतना ही आसान होगा। इसे विडंबना ही माना जाना चाहिए कि हर साल 'विश्व बाल यौन अत्याचार दिवस' की औपचारिक निभाई जाती है, पर कोई सार्थक पहल नहीं होती।  
  इंदौर के एमवाय अस्पताल के मनोरोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वीएस पाल का कहना है कि बच्चों के साथ बचपन में हुआ ये ऐसा हादसा है, जिस अत्याचार के जख्म वे जिंदगीभर नहीं भरता। वे बताते हैं कि मेरे इलाज के लिए आने वाले अधिकांश मनोरोगी ऐसी ही किसी न किसी समस्या से ग्रस्त पाए जाते हैं। हम यह स्वीकार नहीं करना चाहते, कि हमारे देश में ऐसा भी होता है! लेकिन, यह सच है और ये सच्चाई महिला एवं बाल मंत्रालय द्वारा कराए गए अध्ययन और पुलिस में दर्ज शिकायतों से से स्पष्ट हो जाती है। इसके लिए सबसे जरुरी है कि पालक (विशेषकर माताएं) अपने बच्चों के प्रति इस दृष्टिकोण से भी जागरूक हों! बच्चों को आँख मूंदकर किसी के भी भरोसे नहीं किया जाए।
  डॉ पाल का कहना है कि अकसर घरों में रहने वाले अपने बुजुर्गों पर विश्वास करके बच्चे उनके हवाले कर देते हैं। इसी के चलते बच्चे सॉफ्ट टारगेट बन जाते हैं। वे न तो यौन शोषण का विरोध कर पाते हैं और न किसी से अपने साथ हुए अत्याचार का जिक्र कर पाते हैं। ये भी देखा गया है कि कई बार माता या पिता ही बदनामी के डर से घटना को दबा देते हैं। घर के बड़े पुराने नौकर, मामा, चाचा, ताऊ या पिता के दोस्त में से किसके मन में क्या खोट है, कोई नहीं समझ सकता! कई ऐसे मामले भी सामने आए, जब भाई, पिता, काका या बहुत नजदीकी रिश्तेदार ही परिवार की बेटियों या बहनों के यौन शोषण का आरोपी निकला। लेकिन, बदनामी और सामाजिक भय के कारण या तो मामला पुलिस के पास नहीं पहुँचता या उसे दबा दिया जाता है। यदि तात्कालिक प्रतिक्रिया के तहत पुलिस तक पहुँचता भी है, तो मामला अदालत में इतना कमजोर हो जाता है, कि आरोप साबित नहीं हो पाता!
  डॉ पाल बताते हैं कि 55 साल की एक महिला मनोविकार के चलते चिकित्सकीय परामर्श के लिए मेरे यहाँ लाई गई थी। काफी कोशिशों के बाद उसने बताया कि उसके साथ बचपन में दुष्कृत्य करने वाले बड़े काका थे। 'मैं उनके साथ खेलती थी। जब थोड़ी बड़ी हुई, तो उन्होंने मेरे साथ 'बुरा काम' किया। इस हादसे के बाद मैं उनसे डरने लगी और बहुत बुलाने पर भी उनके पास कभी नहीं गई! मैंने माता-पिता या किसी रिश्तेदार तक से इस बात का कभी जिक्र नहीं किया। मैं सारे समय माँ के पास ही चिपकी रहती थी। बड़ी हुई तो मेरे मन में पुरुषों के प्रति नफरत भरी है। आज भी मैं उस हादसे से मुक्त नहीं हो सकी हूँ।' दूसरा मामला 40 साल के एक व्यक्ति का भी है, जिसके मन पर बचपन में हुई यौन शोषण की घटना ने ऐसा दुष्प्रभाव डाला कि शादी के बाद भी वह कभी सामान्य नहीं हो पाया। तीसरी घटना 26 साल की एक युवती की है, जिसने बताया था 'मैं और मेरे काका का लड़का संयुक्त परिवार में एक साथ खेल और पढ़-लिखकर बड़े हुए हैं। वो उम्र में मेरे से एक साल बड़ा था। मैं जब चौथी क्लास में थी, तब उसने मेरे साथ ये कुकृत्य किया। वो घटना काफी त्रासद थी! मैं इस घटना को कभी भूल नहीं पाती। आज भी जब वो हादसा याद आ जाता है, तो मैं कई रातों को सो नहीं पाती!'
  हमारे समाज में संयुक्त परिवारों में रहने वाले बुजुर्ग सम्मानित होते हैं। उनके अनुभव को देखते हुए अधिकांश लोग बच्चों पढ़ाने या घुमाने ले जाने की जिम्मेदारी इन्हें ही सौंपते हैं! जबकि, कोई ये नहीं सोचता कि अकेला बुजुर्ग बच्चों पर यौन अत्याचार करने वाला सबसे बड़ा शिकारी होता है। वर्षों तक मस्तिष्क में इकट्ठा होने वाली यौन कुंठाएँ, बढ़ती उम्र के कारण हो रहे हार्मोनल चेंजेस इस असंतुलित व्यवहार के लिए जिम्मेदार हैं। प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने के साथ ही यौन इच्छाएँ भी बढ़ जाती हैं। परिवार के बच्चे आसानी से उनके चंगुल में आ जाते हैं, इसलिए वे आसानी से शिकार भी बन जाते हैं। मनोचिकित्सकों के मुताबिक, बुजुर्गों को पूरा सम्मान दें उनकी देखभाल करें पर बच्चों को उनके हवाले करें तो नजर जरूर रखें! क्योंकि, ऐसे मामलों में सबसे ज्यादा धोखे विश्वास में ही हुए हैं!   
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