Friday 1 May 2020

'ऋषि कपूर चले गए ... मैं टूट गया हूँ!'


- एकता शर्मा

   ऋषि कपूर को 2008 में जब 'फिल्म फेयर' का लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला, तो वे खुश नहीं थे। अपनी नाखुशी उन्होंने शर्मिला टैगोर के सामने व्यक्त करते हुए कहा था कि मुझे अभी ये अवॉर्ड क्यों दिया गया, क्या मैं मरने वाला हूँ? ये किस्सा खुद शर्मिला ने दुखी होकर सुनाया! ऋषि के उस समय जो सवाल किया था उसका जवाब सामने मिल गया! वो अवॉर्ड यहीं रखा रह गया और वे अनंत की यात्रा पर निकल गए! इरफ़ान खान की तरह उन्हें भी कैंसर ने हरा दिया। 
  ऋषि के चले जाने की पहली सूचना अमिताभ बच्चन ने ट्वीट करके की। उन्होंने अपने ट्वीट में जो लिखा, उसमें उनका दर्द रिसता नजर आता है। सुबह 9.32 को किए ट्वीट में अमिताभ ने लिखा, 'वो चले गए ... ऋषि कपूर ... वो चले गए ... उनका निधन हो गया। मैं टूट गया हूं।' इसलिए कि अमिताभ और ऋषि कपूर ने कई फिल्मों में साथ काम किया था! शायद '102 नॉट आउट' में निभाए बाप-बेटे के किरदार को याद करके उन्होंने 'मैं टूट गया हूँ' जैसी भाषा इस्तेमाल की। दोनों ने 'अमर-अकबर-एंथोनी' से '102 नॉट आउट' तक करीब 8 फिल्मों में साथ काम किया। ऋषि सोशल मीडिया पर  बहुत ज्यादा ऐक्टिव थे, लेकिन 2 अप्रैल से उन्होंने कुछ भी पोस्ट नहीं किया था। वे कई बार सोशल मीडिया पर अपनी मुखर और तल्ख़ टिप्पणियों के लिए भी चर्चा में रहे। 
    ऋषि कपूर पिछले दो साल से कैंसर से जूझ रहे थे। अमेरिका के कैंसर अस्पताल में 11 महीने 11 दिन गुजारने के बाद पिछले साल सितम्बर में जब ऋषि लौटे, तो उन्होंने बताया था कि उनका इलाज अभी पूरा नहीं हुआ, ये आगे भी जारी रहेगा और पूरी तरह से ठीक होने में वक्त लगेगा। इस साल तबियत ख़राब होने से फ़रवरी में उन्हें दो बार अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बाद में वे मुंबई में वायरल फीवर की वजह से भर्ती हुए थे। दो दिन पहले उन्हें सांस लेने में परेशानी की वजह से फिर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लेकिन, इस बार वे स्वस्थ नहीं हो सके। 
  ऋषि कपूर उर्फ़ 'चिंटू' का जन्म 4 सितंबर 1952 को हुआ था। वे अभिनेता-फिल्म निर्देशक राज कपूर और अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के पोते के दूसरे पुत्र थे। उन्होंने कैंपियन स्कूल, मुंबई और मेयो कॉलेज, अजमेर में अपने भाइयों के साथ अपनी स्कूली शिक्षा की! अपने चार दशक के करियर में उन्होंने  अभिनय के अलावा निर्माता और निर्देशन में भी हाथ आजमाया! उनके अभिनय की शुरुआत 'मेरा नाम जोकर' में बाल कलाकार के रूप में हुई थी। इस फिल्म में उन्होंने अपने पिता राजकपूर के बचपन का किरदार निभाया था।
  1973 में बतौर एक्टर डिंपल कपाड़िया के साथ उनकी फिल्म 'बॉबी' आई थी, जिसने रोमांटिक फिल्मों का एक नया ट्रेंड बनाया! इस फिल्म की सफलता ने फ़िल्मी दुनिया को ऐसा रोमांटिक चेहरा दिया जो लगातार दो दशक तक परदे पर छाया रहा! 1974 में 'बॉबी' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड और साथ ही 2008 में फ़िल्म फेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार सहित कई अवॉर्ड्स से सम्मानित किया गया। उन्होंने पहली फिल्म 'बॉबी' से ही लोकप्रियता की ऊंचाई छूना शुरू की थी। 1973 से 2000 तक उन्होंने सबसे ज्यादा रोमांटिक भूमिकाएं की। वे युवा दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय थे। ऋषि कपूर को अपने समय का फैशन आइकॉन भी माना जाता था। उन्होंने स्वेटर का ऐसा ट्रेंड चलाया था कि उन्हें कई बार स्वेटर कपूर भी कहा गया।
   उनके करियर में एक ऐसा दौर भी आया जब वे रोमांटिक फिल्मों के लिए टाइप्ड माने जाने लगे थे। उनके पास न तो बहुत ज्यादा वैसी फिल्में थीं और न फ़िल्में चल रही थीं। उसी समय उन्हें मनमोहन देसाई ने उन्हें 'अमर अकबर एंथोनी' में कव्वाल अकबर इलाहाबादी  किरदार दिया जिसने उनके बारे में सारी राय बदल दी। ये फिल्म उनकी करियर का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुई थी। बताते हैं कि मनमोहन देसाई खुद भी ऋषि कपूर को लेकर ज्यादा आश्वस्त नहीं थे! लेकिन, उन्हें उम्मीद थी कि वो ऋषि को वे एक अलग किरदार में दिखाने में सफल होंगे और उन्होंने ऐसा किया भी! जब फिल्म रिलीज हुई, तो अकबर इलाहाबादी छा गया!
  अपनी निजी जिंदगी में भी ऋषि बहुत रोमांटिक रहे हैं। उनका नाम अपनी पहली को-स्टार डिंपल कपाड़िया से भी जुड़ा था। लेकिन, उन्होंने शादी नीतू सिंह से 5 साल के लम्बे अफेयर के बाद की थी। उनके जीवन का एक दिलचस्प किस्सा ये भी अपने चालीस साल के फ़िल्मी करियर में  उन्होंने पहली बार फिल्म 'अग्निपथ' के लिए ऑडिशन दिया था। फ़िल्मी करियर में पहली बार वे इस फिल्म में निगेटिव रोल में दिखाई दिए, जिसे उनके फैंस ने बेहद पसंद किया। 1977 में आई फिल्म 'हम किसी से कम नहीं', 1982 में आई 'प्रेम रोग', 1986 में आई 'नगीना' और 1993 में रिलीज हुई फिल्म 'दामिनी' को भी दर्शकों ने पसंद किया। लेकिन, 1979 में आई 'सरगम' में उनकी डफली बजाने की अदा अनोखी रही! उन्होंने कई फिल्मों में डफली बजाई और 'स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर' तक उनके हाथ से डफली नहीं छूटी! इन फिल्मों को कई अवॉर्ड्स भी मिले। 
  चार दशक के करियर में ऋषि ने तीन तरह के अलग-अलग किरदार निभाए! 1973 से 1995 तक की फिल्मों में वे रोमांटिक हीरो रहे! लेकिन, इसके बाद उनके किरदारों का चेहरा बदल गया। फ़ना, हम-तुम और नमस्ते लंदन जैसी फिल्मों में इस पीढ़ी के दर्शकों ने उन्हें परिपक्व चरित्र में देखा! लेकिन, 2010 के बाद उनकी फिल्मों में वे उम्रदराज नजर आए! इनमें मुल्क, कपूर एंड संस और '102 नॉट आउट' जैसी फ़िल्में रहीं। कहा जाता है कि फिल्म एक्टर कभी नहीं मरता, वो सेलुलॉइड पर हमेशा जिंदा रहता है! ऐसे ही ऋषि भी अपनी फिल्मों के किरदारों में हमेशा जीवित रहेंगे!  
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