Sunday 16 July 2017

बाल कुपोषण बीमारी नहीं, सरकारी लापरवाही!

- एकता शर्मा 

  हमारे देश में हर साल कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है। दक्षिण एशिया के देशों में भारत कुपोषण के मामले में सबसे बुरी हालत में है। ये बात संयुक्त राष्ट्र के सामने एक रिपोर्ट के माध्यम से आई है। इधर, मध्यप्रदेश में भी सरकारी स्तर पर करवाए गए सर्वे में 36 हज़ार से ज्यादा बच्चे कुपोषित पाए गए! सबसे चिंताजनक बात ये है कि सरकार कुपोषण को बीमारी मानती है, जबकि वास्तव में ये सरकारी लापरवाही का नमूना है।


  राजस्थान और मध्य प्रदेश में किए गए सर्वेक्षणों में पाया गया कि देश के सबसे गरीब इलाकों में आज भी बच्चे भुखमरी के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इस ओर ध्यान दिया जाए तो इन मौतों को रोका जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र ने भारत में जो आंकड़े पाए हैं, वे अंतरराष्ट्रीय स्तर से कई गुना ज्यादा हैं. संयुक्त राष्ट्र ने स्थिति को "चिंताजनक" बताया है।
  भारत में 'फाइट हंगर फाउंडेशन' और 'एसीएफ इंडिया' ने मिलकर 'जनरेशनल न्यूट्रिशन प्रोग्राम' की शुरुआत की है। भारत में एसीएफ के उपाध्यक्ष राजीव टंडन ने इस प्रोग्राम के बारे में बताते हुए कहा कि कुपोषण को 'चिकित्सीय आपात स्थिति' के रूप में देखने की जरूरत है। साथ ही उन्होंने इस दिशा में बेहतर नीतियों के बनाए जाने और इसके लिए बजट दिए जाने की भी पैरवी की। नई दिल्ली में हुई कॉन्फ्रेंस में सरकार से जरूरी कदम उठाने पर जोर दिया गया! राजीव टंडन ने सरकार से कुपोषण मिटाने को एक "मिशन" की तरह लेने की अपील की है। उन्होंने कहा कि सरकार अगर चाहें, तो इसे एक नई दिशा दे सकते हैं।
  एसीएफ की रिपोर्ट बताती है कि भारत में कुपोषण जितनी बड़ी समस्या है, वैसा पूरे दक्षिण एशिया में और कहीं देखने को नहीं मिला! रिपोर्ट में लिखा गया है कि भारत में अनुसूचित जनजाति (28%), अनुसूचित जाति (21%), पिछड़ी जाति (20%) और ग्रामीण समुदाय (21%) पर अत्यधिक कुपोषण का बहुत बड़ा बोझ है। वहीं महाराष्ट्र में राजमाता जिजाऊ मिशन चलाने वाली वंदना कृष्णा का कहना है कि राज्य सरकार कुपोषण कम करने के लिए कई कदम उठा रही है, पर साथ ही उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि दलित और आदिवासी इलाकों में अभी भी सफलता नहीं मिल पाई है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बच्चों को खाना ना मिलने के साथ साथ, देश में खाने की बर्बादी का ब्योरा भी दिया गया है।
मध्यप्रदेश में हालात और बदतर
  देश के साथ मध्यप्रदेश में कुपोषण के हालात और बदतर हैं। सरकार इसे खत्म करने की बात कर रही हो, लेकिन स्थिति जस की तस हैं। महिला और बाल विकास विभाग के सर्वे में भी सामने आया हैं की प्रदेश में 36  हजार से ज्यादा बच्चे ऐसे हैं, जो कुपोषण के शिकार हैं। ये सरकारी आंकड़े हैं, जिनपर आँख मूंदकर विश्वास नहीं किया जा सकता, पर फिर भी ये चिंताजनक तो है हीं! इस सर्वे के दौरान 81 हजार आंगनबाड़ियों के 56 लाख 35 हजार बच्चों का वजन लिया, जिसमें 11 लाख 30 हजार बच्चों का वजन सामान्य से कम मिला है। एक लाख 72 हजार बच्चे अति कम वजन के सामने आए।
  संयुक्त संचालकों ने आंगनबाड़ियों में जाकर 11 हजार बच्चों के वजन लिए गए हैं।। जिला कार्यक्रम अधिकारी ने 70 हजार तथा बाल विकास परियोजना अधिकारियों ने 8 लाख बच्चों का वजन लिया। इसके बाद सेक्टर सुपरवाइजर द्वारा भी वजन कराए गए। प्रदेश में ऐसा पहली बार हुआ है कि अधिकारियों ने खुद वजन लिए। संबंधित मंत्री ने कहा की अब इन सारे बच्चों को शुध्द शाकाहारी भोजन देकर कुपोषण से बचाया जाएगा।इसके लिए स्व सहायता समूह को पोषण का काम भी दिया जा चुका हैं। जो बच्चों के लिए ऐसी सामग्री उपलब्ध कराएंगें जो ज्यादा दिनों तक न चले सिर्फ हफ्ते के पहले ही खत्म हो जाए।
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