Sunday 30 July 2017

परदे पर नई नायिका के उदय का दौर

 - एकता शर्मा 

  फिल्मों में लम्बे अरसे तक नायिका की भूमिका नायक के साथ रोमांस तक सीमित थी। फ़िल्म की कहानियों में नायिका को बहुत कम केंद्रीय भूमिका दी जाती थी। कथानक का ताना-बाना ऐसा बुना जाता था कि नायक ही केंद्र में रहे! महिलाओं के मुद्दों पर बनने वाली फ़िल्में या तो कला फ़िल्में बन जाती या उन पर 'लीक से हटकर' बनी फ़िल्म का ठप्पा लगा दिया जाता है। लेकिन, अब यह चलन बदलता लग रहा है। लेकिन, अब फ़िल्मों में नायिकाओं का उदय होने लगा! अब वो अकेली हनीमून मना आती है, अपराधियों को ढूंढ लेती है और खुद गैंग भी चला लेती है। 
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  भारतीय सिनेमा में लंबे समय तक पुरुषों का रहा है। निर्माता से लगाकर दर्शकों तक पुरुष की केंद्र में रहे। ऐसे में नायक को अपनी एक सहयोगी भी चाहिए। जिसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं हो, पर नायिका की भूमिका में वो नायक को आगे बढाती नजर आए! वो अपना व्यक्तित्व तक दांव पर लगाने में पीछे नहीं हटे। फिल्मों के कथानक के अपने अलग ही विषय होते हैं, जो समय, काल और परिस्थितियों के मुताबिक बदलते रहते हैं। कभी दर्शकों को लगातार प्रेम कहानियां परोसी जाती है, कभी एक्शन तो कभी सामाजिक फिल्मों से बड़ा परदा सराबोर रहता है। 
  फिल्म इंडस्ट्री की इसी परंपरा की ताजा कड़ी है महिला प्रधान फ़िल्में! पिछले तीन सालों में परदे पर ऐसी फ़िल्में ज्यादा दिखाई दीं जो महिलाओं पर केंद्रित रहीं! इनमें पिछला साल तो ऐसी फिल्मों के लिए काफी अच्छा रहा। बीते साल में बॉलीवुड में महिलाओं से जुड़ी कई फ़िल्में रिलीज़ हुई जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर भी अच्छी कमाई की। कमर्शियल फिल्मों के बजाए इनफार्मेशनल फिल्मों ने भी काफी नाम कमाया! महिलाओं पर केंद्रित कहानियों पर कई फिल्में बनी जो महिलाओं के प्रति रुढ़िवादी सोच को खारिज करने और महिला सशक्तिकरण से जुड़ी थीं। 
 साल 2014 में महिलाओं के मुद्दों या उनके नज़रिए को दर्शाती गुलाब गैंग, क्वीन, मर्दानी और मैरी कॉम जैसी फ़िल्में बनी! 2015 में दम लगा के हईशा, एन एच 10, पीकू, तनु वेड्स मनु रिटर्न्स, एंग्री इंडियन गॉडेस परदे पर दिखाई दी। लेकिन, 2016 में बॉलीवुड में महिलाओं से जुडी कहानियों को ज्यादा जगह भी मिली और उन फिल्मों को पसंद भी किया गया। महिलाओं की कहानियां कहती दस से ज़्यादा फ़िल्में रिलीज़ हुई। इन फिल्मों ने 'नायक प्रधान' फिल्म इंडस्ट्री की निर्धारित परंपरा को तोड़ दिया। 
  अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म 'पिंक' महिला केंद्रित फिल्म नहीं है। बल्कि, उससे भी कहीं आगे है। मीरा नायर की फिल्म क्वीन आफ काटवे, नीरजा, अकीरा, सरबजीत, साला खुडूस जैसी फिल्में भी महिलाओं पर केन्द्रित फिल्में थी। सुजाय घोष द्वारा निर्देशित 'कहानी-2' के सस्पेंस में विद्या बालन और अर्जुन रामपाल की मुख्य भूमिकाएं हैं। लेकिन, फोकस पूरी तरह फिल्म की नायिका पर ही रहा। आमिर खान की फिल्म 'दंगल' महावीर सिंह फोगट की जीवन कथा पर आधारित स्पोर्ट्स ड्रामा थी। इसमें फोगट अपनी बेटियों गीता और बबिता को कुश्ती सिखाकर उन्हें अंतर्राष्ट्रीय महिला पहलवान बनाता हैं। 
  इस साल आई फिल्म 'नूर' भी महिला केंद्रित थी। पाकिस्तानी लेखिका सबा इम्तियाज के उपन्यास 'कराची : यू आर किलिंग मी!' का कथानक भी महिला प्रधान था। फिल्म में लेखिका ने मुंबई आधारित प्रेम गाथा का चित्रण किया था। लेकिन, सोनाक्षी सिन्हा अभिनीत ये फिल्म चली नहीं। आने वाली फिल्म 'हसीना' का मूल कथानक भी एक गैंगस्टर महिला का है। ये फिल्म कुख्यात दाउद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर की जीवन शैली पर आधारित है। इसमें श्रृद्धा कपूर ने 'हसीना' की भूमिका निभाई है। देखना है कि ये दौर कब तक चलता है। 
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