Monday 16 October 2017

असुरक्षित स्कूल, संकट में बचपन

- यूनिसेफ की रिपोर्ट : 65 फीसदी स्कूली बच्चे कभी न कभी स्कूलों में यौन शोषण के शिकार। 

- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग : स्कूलों में बच्चों के साथ होने वाले शोषण में तीन गुना बढ़ोतरी। 

- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट : देश में हर चौथा स्कूली बच्चा यौन शोषण का शिकार। 

  हमारे शिक्षा मंदिर आज बुरी तरह दूषित और संवेदनहीन होते जा रहे हैं। उसी का नतीजा है कि हमारे सामने स्कूल परिसर में यौन दुर्व्यवहार जैसी शर्मसार करने वाली घटनाएं सामने आने लगीं। ऐसी अधिकांश घटनाओं में वही लोग ज्यादा शामिल हैं, जिनपर बच्चों की सुरक्षा का दारोमदार होता है। वे या तो सुरक्षा से जुड़े कर्मचारी होते हैं या शिक्षक। त्रासदी ये है कि आज न तो स्कूलों को मंदिर की तरह पवित्र माना जा सकता है और न शिक्षकों का आचरण अपनाने लायक रह गया। 
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- एकता शर्मा 
  शिक्षक और शिक्षक संस्थान दोनों ही सामाजिक संस्कारों की वर्जनाएं तोड़कर प्रतिमान खंडित कर रहे हैं। गुरु और शिष्य के रिश्तों की परंपरा और ये संवेदनशील आज कलंकित होने लगा। स्थिति इतनी बदतर हो गई कि शिक्षा के मंदिर व्यभिचार के अड्डे दिखाई देने लगे। जहां चरित्र गढ़े जाते हैं वहां का ही चरित्र गहरे संकट है। जहाँ ज्ञान की गंगा प्रवाहित होनी चाहिए वहाँ शोषण की चीख सुनाई दे रही है। हालात के बदतर होने का अंदाजा इसी लगाया जा सकता है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया कि देश में हर चौथा स्कूली बच्चा यौन शोषण का शिकार हो रहा है। हर ढाई घंटे में एक स्कूली बच्ची को हवस का शिकार बनाया जा रहा है।
  दिल्ली सिर्फ देश की राजधानी ही नहीं है। जघन्य अपराधों के मामले में भी दिल्ली देश में सबसे अव्वल है। निर्भया कांड के बाद भी दिल्ली में कई ऐसे अपराध हुए हैं, जो निर्दयता का चरम कहे जा सकते हैं। हाल ही में राजधानी क्षेत्र के दो नामचीन स्कूलों में फिर दो ऐसी ही वारदात हुईं! पहले गुरुग्राम (गुड़गांव) के इंटरनेशनल स्कूल के टॉयलेट में सात साल के बच्चे की हत्या हुई। दूसरी घटना दिल्ली के गांधी नगर इलाके के टैगोर पब्लिक स्कूल में हुई। यहाँ पांच साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटी। गुरुग्राम मामले में आरोप है कि स्कूल की बस के कंडक्टर ने बच्चे के साथ यौन-दुर्व्यवहार की कोशिश की। नाकाम रहने पर उसने हत्या कर दी। जबकि, टैगोर स्कूल मामले में आरोपी स्कूल का चपरासी है। गौर करने वाली बात है कि दोनों ही घटनाओं में आरोपी वही हैं, जिनपर बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा था। दोनों ही घटनाओं में आरोपियों का मकसद यौन शोषण रहा। लेकिन, रेयान स्कूल में बच्चे को जिस निर्दयी ढंग से मारा गया वो आरोपी की मनःस्थिति बताता है। 
  दिल्ली के रेयान इंटरनेशल स्कूल में तो डेढ़ साल पहले एक छात्र देवांश की सेप्टिक टैंक में गिरने की वजह से मौत हो गई थी। लेकिन, बाद में पता चला कि मौत का कारण कोई दुर्घटना नहीं, बल्कि अमानवीय कृत्य था। नि:संदेह यह घटना भी देश और समाज को शर्मसार करने वाली थी। लेकिन, स्कूल प्रशासन ने देवांश की मौत को लेकर भी एक के बाद एक नई कहानियां गढ़ी थी। ये तथ्य दुष्कर्म की सारी आशंकाओं सही साबित करता है कि उस बालक के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था। अभिभावकों की मानें तो देवांश के साथ पहले दुष्कर्म हुआ, फिर उसकी हत्या कर सेप्टिक टैंक में फेंक दिया गया। 
  रांची के सफायर इंटरनेशनल स्कूल के हॉस्टल में 12 वर्षीय छात्र विनय की मौत भी अखबारों छाई थी। इस मौत को भी यौन शोषण से जोड़कर देखा गया था। इस मामले में स्कूल के तीन शिक्षकों को गिरफ्तार भी किया गया था। लेकिन, इसके बाद क्या हुआ, कुछ पता नहीं चला। लेकिन, इस घटना के बाद ज्यादातर परिजनों ने अपने बच्चों को स्कूल के छात्रावास निकाल लिया था। ऐसी घटनाओं से ये समझना कठिन हो गया है कि जब स्कूलों में ही बच्चे सुरक्षित नहीं रहेंगे। तो फिर अन्य स्थानों पर उनकी सुरक्षा को लेकर निश्चिंत कैसे हुआ जा सकता है। 
  स्कूलों में बच्चों के साथ यौन शोषण की ऐसी दिल दहलाने वाली घटनाएं अब आम हो चली हैं। तीन साल पहले देश के आईटी हब कहे जाने वाले बंगलुरु में दसवीं की एक छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार का मामला सामने आया था। लखनऊ, मध्यप्रदेश के दमोह और बवाना में भी स्कूली बच्चों के साथ यौन शोषण का मामले उजागर हुए। दो साल पहले मथुरा में एक टीचर ने भी अपनी  छात्रा को डरा धमकाकर उसके साथ कई दिनों तक दुष्कर्म किया था। भुवनेश्वर में दस साल की एक बच्ची के साथ ज्यादती के आरोप में एक शिक्षक को पकड़ा गया था। 
 यूनिसेफ की रिपोर्ट में भी स्पष्ट हो चुका है कि 65 फीसदी स्कूली बच्चे कभी न कभी स्कूलों में यौन शोषण के शिकार होते हैं। इनमें 12 वर्ष से कम उम्र के लगभग 41-17 फीसदी, 13 से 14 साल के 25.73 फीसदी और 15 से 18 साल के 33.10 फीसदी बच्चे शामिल हैं। उसकी रिपोर्ट के मुताबिक देश की राजधानी दिल्ली में ही 68.88 फीसदी मामले छात्र-छात्राओं के शोषण से जुड़े पाए गए। ये वो सच है जो हमारी शिक्षा व्यवस्था की नींव को हिला देने वाला है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के मुताबिक बीते तीन-चार सालों में स्कूलों के भीतर बच्चों के साथ होने वाले शारीरिक प्रताड़ना, यौन शोषण, दुर्व्यवहार और हत्या जैसे मामलों में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है। शिक्षकों और स्कूल कर्मचारियों द्वारा बच्चों के यौन-उत्पीड़न की घटनाएं पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ी हैं। स्कूलों में बढ़ता यौन शोषण एक दिन समाज को खंडित कर दे तो कोई आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए। 
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(लेखिका पेशे से वकील और बाल एवं महिला अधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत है)
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