Friday 20 July 2018

'कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे'

यादें  : गोपालदास 'नीरज'

- एकता शर्मा

   हिंदी के जाने-माने कवि और गीतकार गोपालदास 'नीरज' का एक लोकप्रिय गीत 'कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे' आज बहुत याद आ रहा है। क्योंकि, आज नीरज का कारवां अनंत यात्रा पर निकल गया, हम दूर से उनकी यादों का गुबार हम देख रहे हैं। वे हिंदी मंचों के प्रसिद्ध कवियों में से एक थे। लम्बे अरसे तक कवि सम्मेलनों का दौर उनके बिना अधूरा रहता था, पर अब ये खालीपन हमेशा बना रहेगा। गोपालदास सक्सेना उर्फ़ 'नीरज' का फिल्मी सफर बहुत छोटा रहा! उन्होंने महज पाँच साल ही गीत लिखे, लेकिन सांस बंद होने तक लिखने रहने की ख्वाहिश रखने वाले इस कवि को इस दौर में लिखे गए ‘कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे’ और ‘जीवन की बगिया महकेगी’ जैसे अमर गीतों के लिए अंत तक रायल्टी मिलती रही। दिनकर उन्हें हिंदी की 'वीणा' मानते तो अन्य कवि उन्हें 'संत कवि' कहा करते थे। 
  नीरज की रचनाएँ करीब सात दशक तक सुनने वालों को लुभाती रही! पहचान की ख्वाहिश से अछूते इस गीतकार का यह सफर शायद कवियों, गीतकारों में सबसे लम्बा रहा! हिन्दी कवियों की नई पौध के अगुवा माने जाने वाले नीरज प्रख्यात कवि हरिवंशराय बच्चन को अपना आदर्श मानते थे। उनका कहना था कि मेरा कवित्व बच्चनजी की प्रेरणा से ही जागा! हरिवंशराय बच्चन से जुड़ा एक किस्सा वे अकसर सुनाते थे। कहते थे कि मैं उन कवियों में से हूँ, जिन्हें बच्चनजी की गोद में बैठने का भी मौका मिला था! वो वाक्या सुनाते हुए उन्होंने बताया था कि उस वक्त मेरी उम्र करीब 17 साल रही होगी। मैं, बच्चनजी कुछ कवियों के साथ बांदा में एक कवि सम्मेलन के लिए बस से जा रहे थे। बस खचाखच भरी थी और मुझे सीट नहीं मिली थी। उस वक्त बच्चनजी ने मुझे अपनी गोद में बैठने को कहा और मैं बैठ भी गया! मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ कि मुझे उनसे इतना स्नेह मिला। 
   फिल्मों में कई सुपरहिट गाने लिख चुके नीरज को उनके गीतों के लिए कई सम्मान मिले। उन्हें 1991 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था। इससे पहले नीरज को 2007 में पद्मभूषण सम्मान से नवाजा गया! उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें 'यश भारती' सम्मान से भी सम्मानित किया था। फिल्मों में कई हिट गीत लिखने वाले गोपालदास नीरज को तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड मिला! 'पहचान' फिल्म के गीत 'बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं' और 'मेरा नाम जोकर' के 'ए भाई ज़रा देख के चलो' ने नीरज की प्रतिभा को कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचाया! उनके एक दर्जन से ज्यादा कविता संग्रह प्रकाशित हुए! 
  उनका जन्म 4 जनवरी, 1924 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरावली गांव में हुए था। जीवन की शुरुआत इटावा की कचहरी में टाइपिस्ट का काम करते हुए शुरू की थी। उसके बाद एक दुकान पर नौकरी की! फिर दिल्ली में सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डीएवी कॉलेज में क्लर्की की। मेरठ कॉलेज में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर अध्यापन कार्य भी किया। इसके बाद कवि सम्मेलनों में लोकप्रियता के चलते नीरज को मुंबई फ़िल्मी दुनिया में गीतकार के रूप में काम करने का अवसर मिला। 
  नीरज ने एक बार कहा था कि अगर दुनिया से रुखसती के वक्त आपके गीत और कविताएँ लोगों की जबान और दिल में हों, तो यही आपकी सबसे बड़ी पहचान होगी। इसकी ख्वाहिश हर फनकार को होती है। शायद सचिन देव बर्मन और संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन के शंकर जैसे मौसीकीकारों के निधन की वजह से उनका फिल्मी सफर बहुत छोटा रह गया। लिखे जो खत तुझे’ ‘ए भाई जरा देख के चलो’ ‘दिल आज शायर है, ‘फूलों के रंग से’ और ‘मेघा छाए आधी रात’ जैसे सदाबहार गीतों के रचयिता नीरज का मानना था कि     सचिन देव बर्मन के संगीत ने इन गीतों को यादगार बनाया, इसी वजह से देश-विदेश में मेरे गीतों की  रॉयल्टी बढ़ गई है।
  नीरज सिर्फ मंचीय कवि ही नहीं थे, उन्हें फिल्मों में भी उतनी ही कामयाबी मिली! उनके लिखे लोकप्रिय फिल्मी गीतों में शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब, लिखे जो खत तुझे, ऐ भाई ... जरा देखकर चलो, दिल आज शायर है, खिलते हैं गुल यहां, फूलों के रंग से, रंगीला रे ...  तेरे रंग में और आदमी हूं  आदमी से प्यार करता हूं शामिल है। नीरज' की लोकप्रियता का इसी से आंकी जा सकती है कि उन्होंने अपनी हिंदी रचनाओं से पाठकों के मन की गहराई में अपनी जगह बनाई, वहीं गंभीर पाठकों के मन को भी गुदगुदाया! उनकी कई कविताओं का गुजराती, मराठी, बंगाली, पंजाबी और रूसी में भी अनुवाद हुआ है। उनकी रचनाओं में जो दर्द था, वो उनकी अपनी पीड़ा थी। उनकी लिखे संग्रहों में आसावरी, बादलों से सलाम लेता हूँ, गीत जो गाए नहीं, नीरज की पाती, नीरज दोहावली, गीत-अगीत, कारवां गुजर गया, पुष्प पारिजात के, काव्यांजलि, नीरज संचयन, नीरज के संग-कविता के सात रंग, बादर बरस गयो, मुक्तकी, दो गीत, नदी किनारे, लहर पुकारे, प्राण-गीत, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिये, वंशीवट सूना है और नीरज की गीतिकाएँ शामिल हैं। लेकिन, अब ये सारे संग्रह रखे रह गए! उनका भी एक कारवां था, जो आज गुजर गया ... हमेशा के लिए! उससे उठने वाला गुबार हमें उनकी याद दिलाता रहेगा। 
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