Monday 16 July 2018

फ़िल्में किसी की सलाह से नहीं चलती!



 - एकता शर्मा 

    ब वो दौर नहीं रहा, जब दर्शक फिल्म की समीक्षा पढ़कर फिल्म देखने जाते थे! एक समय था जब शुक्रवार को फिल्म रिलीज होती थी, उसकी समीक्षा रविवार के अखबार में छपती थी! फिल्म के निर्माता और निर्देशक भी फिल्म समीक्षकों को प्रभावित करने का बहाना ढूंढते रहते थे। लेकिन, अब वो दौर नहीं रहा! फिल्म देखने वालों को अब न तो समीक्षा का इंतजार रहता है और न वे इससे प्रभावित ही होते हैं। असल बात तो ये है कि फिल्म समीक्षा अब स्वांतः सुखाय होकर रह गई है। इसलिए भी कि फिल्मों के ब्लैक एंड व्हाइट के ज़माने से आजतक फिल्मों का कारोबार कभी समीक्षाओं का मोहताज नहीं रहा! ऐसी फिल्मों की लिस्ट बहुत लम्बी है, जिन्हें समीक्षकों ने नकार दिया, पर वे देखने वालों की पसंद पर खरी उतरी! ताजा उदाहरण है ईद पर रिलीज हुई सलमान खान की फिल्म 'रेस-3' जिसे समीक्षकों ने नकार दिया, लेकिन सलमान के चाहने वालों ने फिल्म को हिट करा दिया! इस फिल्म ने 200 करोड़ की कमाई की है। 

  थोड़ा पीछे जाएं, तो हिंदुस्तानी फिल्म इतिहास के सफलतम फिल्मों में से एक 'शोले' (1975) के बारे लिखा गया था कि ये बुझे अंगारे जैसी  फिल्म है। बदले के फॉर्मूले पर बनी इस फिल्म में कुछ भी नयापन नहीं है। पर, 'शोले' ने सफलता का जो शिखर रचा, वो किसी से छुपा नहीं हैं। अमिताभ बच्चन की फिल्म 'मर्द' (1985) को भी देशभक्ति के जबरन ठूंसे फॉर्मूले की फिल्म कहा गया था। लेकिन, इस फिल्म ने भी धमाल किया था। सलमान खान की सुपर हिट फिल्म 'हम आपके है कौन' को भी नापसंद कर दिया था। लिखा गया था कि ये किसी शादी के वीडियो लगता है। जबकि, बॉलीवुड में 100 करोड़ रुपए कमाने वाली ये पहली फिल्म थी। आमिर खान और करिश्मा कपूर की 1996 में आई 'राजा हिंदुस्तानी' को समीक्षकों ने औसत दर्जे की फिल्म कहा था। जबकि, ये फिल्म उस साल की सबसे बड़ी हिट फिल्म हुई! 'गदर' (2001) की भी जबरदस्त आलोचना का शिकार हुई थी। कहा गया था कि इसे देशभक्ति का पुराना फॉर्मूला कहा गया था। पर, जब फिल्म परदे पर उतरी तो बॉक्स ऑफिस तक गरमा गया था।
 1943 में आई अशोक कुमार की फिल्म 'किस्मत' के बारे में समीक्षकों ने लिखा था कि फिल्म में अशोक कुमार को जिस तरह जेबकतरा और अपराधी बताया गया है, उसे देखकर युवाओं का सोच अपराधी बनने की तरफ मुड़ सकता है! लेकिन, दर्शकों ने उस फिल्म को बेहद पसंद किया था। राजकपूर की फिल्म 'श्री-420' (1955) भी जबरदस्त आलोचना का शिकार हुई थी। पर इस फिल्म को भी दर्शकों ने हाथों हाथ लिया। सर्वकालीन सफल प्रेम कहानी 'बॉबी (1973) को समीक्षकों ने प्यार के घिसे पिटे फॉर्मूले पर बनी फिल्म बताकर नकार दिया था। पर, दर्शकों ने 'बॉबी' को सफलता की उस ऊंचाई पर पहुँचाया। 
  शाहरुख़ खान और अनुष्का शर्मा की 2008 में आई फिल्म 'रब ने बना दी जोड़ी' को पुरानी प्रेम कहानी बताया गया था। फिल्म के कुछ हिस्सों को बेवकूफियों से भरा लिखा गया। जबकि, इस फिल्म ने 90 करोड़ की धुंवाधार कमाई की थी। सलमान खान की बॉडीगार्ड (2011) के बारे में कि इस फिल्म में कई खामियां हैं। पर, इस फुरसतिया सलाह को दर्शकों ने झटक दिया! ये फिल्म बॉलीवुड के इत‌िहास की सबसे सफल फिल्मों में दर्ज हुई! राउडी राठौर (2012) के बारे में तो कहा गया था कि ये मूर्खतापूर्ण घटनाओं से भरी फिल्म है। जबकि, अक्षय कुमार के दो दशक लंबे करियर में इस फिल्म ने सबसे शानदार ओपनिंग की थी। ग्रांड मस्ती (2013), 2 स्टेट (2014), और 'जय हो' भी ऐसी ही फ़िल्में हैं, जो समीक्षकों को पसंद नहीं आई थी, पर दर्शकों ने इन्हें सर पर चढ़ाया। दरअसल, फ़िल्में दर्शकों के लिए बनती हैं न कि समीक्षकों के लिए! इसलिए सच्ची सफल फिल्म वही है जो दर्शकों की नजरों में चढ़े! वैसे भी आजकल दर्शक फिल्म की रिलीज से हफ्तेभर पहले फिल्म की ऑनलाइन बुकिंग करवाते हैं। लेकिन, फिर भी यदि समीक्षकों को लगता है कि फिल्म उनकी वजह से चलती है तो ये उनकी खुशफ़हमी ही है।  
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