Sunday 15 December 2019

अपराध के आंकड़े बताते हैं, मध्यप्रदेश में बच्चे सबसे ज्यादा असुरक्षित!

- एकता शर्मा 

   समाज में सबसे घृणित कृत्य है बच्चों के साथ यौन शोषण! हमारे लिए सबसे शर्मनाक बात ये है कि पूरे देश में बाल यौन शोषण के मामले में मध्यप्रदेश का नंबर दूसरा है। हमसे आगे सिर्फ उत्तरप्रदेश है। लेकिन, वहाँ की आबादी मध्यप्रदेश से करीब तीन गुना ज्यादा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक मध्यप्रदेश की आबादी 7.33 है, जबकि उत्तरप्रदेश की आबादी करीब 20 करोड़ है। ऐसे में कल्पना की जा सकती है कि बाल यौन अपराध की मध्यप्रदेश में स्थिति क्या होगी! इस नजरिए से सबसे ज्यादा बाल यौन शोषण के मामलों में मध्यप्रदेश को देश में नंबर-वन माना जाना चाहिए। हाल ही में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2017 की रिपोर्ट में भी मध्यप्रदेश में 2016 में नाबालिग मासूमों से ज्यादती के 3082 मामले रिकॉर्ड में आए थे। 
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   बाल यौन शोषण की लगातार बढ़ती घटनाओं ने समाज का सिर शर्म से झुका दिया। कायदे-कानून कड़े किए जाने के बावजूद ऐसी घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही। एक उल्लेखनीय पहलू यह भी है कि अधिकांश मामलों में अपराधी कोई अपरिचित नहीं, बल्कि क़रीबी ही निकला! इतना करीबी कि सहज विश्वास करना मुश्किल है। ऐसी ही एक घटना की गंभीरता को समझिए! धार के भोज अस्पताल परिसर में पिछले दिनों दो बहनें कचरा बीन रही थी। इन दोनों बहनों को इस हालत में देखकर किसी व्यक्ति ने बाल कल्याण समिति को सूचित किया। समिति ने दोनों बच्चियों को बुलवाकर माता-पिता के बारे में जानकारी ली। उन्हें घर भेजने की कोशिश की गई, तो बड़ी बच्ची रोने लगी! उसने घर जाने से साफ़ इंकार किया और अजीब से डर से सहम सी गई! उसकी इस हालत को देखकर बाल कल्याण समिति के सदस्यों को शक हुआ! उन्होंने दोनों को काउंसलर के पास भेजा और उसकी घबराहट का कारण जानना चाहा! बड़ी मुश्किल से बच्ची ने बताया कि पिता उसके साथ जबरदस्ती करता है। माता, पिता में झगडे के बाद माँ घर छोड़कर अपने पीहर चली गई! उसने बताया कि पिता ने उसके साथ कई बार बलात्कार किया। पिता की इस हरकत से उसे असहनीय पीड़ा होती है, इस कारण वह घर जाना नहीं चाहती! इसके बाद न्यायालय ने सुरक्षा की दृष्टि से दोनों बच्चियों को सुरक्षा की दृष्टि से बाल आश्रय गृह में रखने का आदेश दिया। ये महज एक घटना नहीं, ये इस बात का प्रमाण है कि बच्चे अपने घर में ही सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे में वे अपनी पीड़ा किससे कहें?
  ये महज एक घटना नहीं, समाज की दुर्दशा का एक नमूना मात्र है। बच्चियां यदि अपने घर, परिवार और परिजनों के बीच ही सुरक्षित नहीं होगी तो कहाँ होगी? बाल यौन शोषण को लेकर देशभर में जितनी भी घटनाएं होती हैं, उनमें 70% मामलों में अपराध करने वाला कोई रिश्तेदार या परिचित ही होता है! यही कारण है कि मामले दब जाते हैं या अपराधी अदालत से छूट जाते हैं! आश्चर्य है कि दुनिया के आधुनिकीकरण के बावजूद ऐसी घटनाएं कम होने के बजाए बढ़ रही हैं। इसका सुबूत है, देशभर में होने वाली सभी आपराधिक घटनाओं पर 'नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो' (एनसीआरबी) हर साल आने वाली रिपोर्ट! 2016 में जारी 'एनसीआरबी' की रिपोर्ट पर नजर डालें, तो देशभर में बच्चों के साथ होने वाले अपराधों में तेजी से बढ़ौतरी हुई है। 2014 में जहाँ बच्चों के साथ अपराध की 89,423 घटनाएं दर्ज हुईं, 2015 में इनकी संख्या 94,172 हुई और 2016 में 1,06,958 घटनाएं दर्ज की गईं! इन 3 सालों में ही बच्चों के साथ अपराध की दर 24% तक पहुंच गई! 2014-15 में 5.3% की तुलना में 2015-16 में 13.6% अपराध हुए! 2016 में बच्चों के साथ हुए 1,06,958 घटनाएं हुई। इनमें 36,022 मामले पॉक्सो एक्ट के थे। देखा जाए तो बाल यौन शोषण के मामले में 34.4% की वृद्धि दर्ज की गई! 2017 की रिपोर्ट में मध्यप्रदेश में नाबालिग मासूमों से ज्यादती के 3082 मामले प्रकाश में आए हैं। मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा
  पॉक्सो एक्ट और आईपीसी के सेक्शन 376 के तहत बाल यौन शोषण (चाइल्ड रेप) के मामलों में भी मध्यप्रदेश अव्वल है। बच्चों के साथ सबसे ज्यादा दुष्कर्म के मामले दर्ज हुए। मध्यप्रदेश (2,467) के बाद महाराष्ट्र (2,292) और उत्तर प्रदेश (2,115) का नाम है! इन्हीं 3 राज्यों में पॉक्सो एक्ट और आईपीसी के सेक्शन 376 के तहत 2 हजार से ज्यादा केस दर्ज हुए।  यौन शोषण के 692 मामले झूठे
  एक मुद्दे की बात ये भी है कि बाल यौन शोषण की घटनाओं को पुलिस अपनी जाँच में गंभीरता से तवज्जो नहीं देती। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2016 में जारी रिपोर्ट कहती है कि पॉक्सो के तहत 2015 में बाल यौन शोषण के 36,022 मामले दर्ज हुए, जबकि उसके पिछले साल 12,038 मामलों की जांच शुरू होनी थी। इसी तरह से 48,060 मामले पॉक्सो के तहत दर्ज हैं। 12,226 मामले बच्चों के साथ यौन शोषण के दर्ज हुए। जबकि, शोषण के 19,765 नए मामले पॉक्सो सेक्शन 4 और 6/आईपीसी की धारा 376 के तहत सामने आए। बाल यौन शोषण के तहत दर्ज 48,060 मामलों के अलावा 868 मामलों में यौन शोषण के आरोप सही तो पाए गए, लेकिन ठोस सबूत न होने के कारण आरोपी बरी हो गए! जबकि 692 यौन शोषण के मामले झूठे साबित हुए। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भी बाल यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं पर लगाम कसने के लिए बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) कानून को कड़ा किया है। इन संशोधनों में बच्चों के साथ गंभीर यौन उत्पीड़न करने वालों को मौत की सजा और नाबालिगों के साथ दूसरे अपराधों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। 
  पॉक्सो कानून की 3 धाराओं (4, 5 और 6) में बदलाव कर बाल यौन शोषण के मामलों में सजा को और कड़ा करने के लिए मौत की सजा का प्रावधान  लाया गया है। अब बाल यौन शोषण के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कोर्ट सरकार की मदद से कुछ ऐसे और कड़े कदम उठाए जाएंगे कि खुद को सभ्य समाज का हिस्सा कहने वाले मानव समाज ऐसे वीभत्स कुकृत्य करने से बचेगा और बच्चों का बचपन सुरक्षित रहेगा। लेकिन, दोषियों को समय पर कड़ी सजा देने के बाद ही अपराधियों के सुरक्षित बच निकलने के रास्ते बंद होंगे। लेकिन, सरकारी आंकड़ेबाजी से ऐसी घटनाएं तो रूक नहीं सकती! पिता, बड़ा भाई. चाचा या फिर कोई नजदीकी रिश्तेदार कब किसी मासूम बच्ची को कुचल दे, कहा नहीं जा सकता! ऐसी घटनाएं सरकारी प्रयासों से थम सकेंगी, इस बात का भी दावा नहीं किया जा सकता! समाज को खुद बदलना होगा या ऐसे अपराधियों को इतनी कड़ी सजा दी जाना चाहिए कि देखने और सुनने वालों की रूह काँप जाए! 
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